Bcom 1st Year Business Economics Short Questions Answer
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लघु उत्तरीय प्रश्न Short Answer Questions
प्रश्न 1. व्यावसायिक अर्थशास्त्र किसे कहते हैं?
What do you mean by Business Economics?
उत्तर– व्यावसायिक अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसमें आर्थिक विश्लेषण (अर्थशास्त्र) के सिद्धान्तों का व्यावसायिक प्रबन्ध की समस्याओं के समाधान करने तथा नीति निर्धारण हेतु प्रयोग किया जाता है। यह विज्ञान अर्थशास्त्र तथा व्यावसायिक प्रबन्ध की सीमा पर स्थित है और अर्थशास्त्र एवं व्यावसायिक प्रबन्ध के बीच एक पुल का कार्य करता है। संक्षेप में, व्यावसायिक अर्थशास्त्र के.माध्यम से व्यवसाय प्रबन्धक सरलतापूर्वक व्यवसाय की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन एवं नियोजन कर सकता है।
प्रश्न 2. व्यावसायिक अर्थशास्त्र की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
Explain the main characteristics of Business Economics
उत्तर– व्यावसायिक अर्थशास्त्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं (1) सूक्ष्म अर्थशास्त्रीय स्वभाव, (2) निर्देशात्मक प्रकृति, (3) व्यापक अर्थशास्त्र का समुचित महत्त्व,(4) फर्म के सिद्धान्त के अध्ययन से सम्बन्धित,(5) प्रबन्धकीय स्तर पर निर्णय, (6) समन्वयात्मक प्रकृति,(7) फल-मूलक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण,(8) व्यावसायिक अर्थशास्त्र विज्ञान भी है तथा कला भी।
प्रश्न 3. माँग की लोच से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Elasticity of Demand?
उत्तर– माँग की लोच से आशय सामान्यतः ‘माँग की कीमत लोच’ से ही लगाया जाता . है। माँग की लोच किसी वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप उस वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव की माप है।
प्रो० मेयर्स के अनुसार, “माँग की लोच मूल्य के सापेक्ष परिवर्तन के प्रभावस्वरूप वस्तु की क्रय की गयी मात्रा में सापेक्ष परिवर्तन पर दिये हुये माँग वक्र की माप है।”.
प्रश्न 4. माँग के नियम और माँग की लोच में अन्तर कीजिये।
Differentiate between Law of Demand and Elasticity of Demand.
उत्तर– माँग का नियम, कीमत एवं माँग के सम्बन्ध का एक गुणात्मक कथन है, जो हमें कीमत एवं माँग में होने वाले परिवर्तनों की दिशा के बारे में बताता है । यह नियम हमें मूल्य परिवर्तनों के परिणामस्वरूप माँग में होने वाले परिवर्तनों की ‘मात्रा’ या ‘दर’ के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं देता जबकि माँग की लोच एक प्रकार का मापक है जो कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग-मात्रा में होने वाले परिवर्तन की ओर संकेत करता है। ..
प्रश्न 5. माँग की लोच को प्रभावित करने वाले कौन–कौन से तत्त्व हैं?
What are the factors which affects the elasticity of demand?
उत्तर-(1) वस्तु की प्रकृति,(2) वस्तु के प्रयोग,(3) संयुक्त माँग,(4) स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता, (5) वस्तु का उपभोग स्थगित होने की सम्भावना, (6) उपभोक्ता की आदत; (7) उपभोक्ता की आर्थिक स्थिति, (8) वस्तु पर व्यय की मात्रा, (9) समाज में धन का वितरण, (10) समय प्रभाव।
प्रश्न 6. माँग की लोच कितने प्रकार की होती है?
What are the types of Elasticity of Demand?
उत्तर-मांग की लोच से सम्बन्धित प्रमख अवधारणाएँ निम्न प्रकार हैं
(i) माँग की कीमत लोच अर्थात वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माग में परिवर्तन।
(ii) माँग की आय लोच अर्थात् आय में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में परिवर्तन ।
iii) माँग की आड़ी लोच अर्थात् सम्बन्धित प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में परिवर्तन ।
(iv) माँग की विज्ञापन लोच अर्थात् विज्ञापन व्यय में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में परिवर्तन।
प्रश्न 7. माँग की मूल्य लोच को समझाइये।
Explain the Price Elasticity of Demand.
उत्तर-माँग की मूल्य लोच किसी वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप उस वस्तु की माँग पर पड़ने वाले प्रभाव की माप है।
प्रश्न 8. माँग की आय लोच को समझाइये।
Explain the Income Elasticity of Demand.
उत्तर– यदि कीमत तथा अन्य कारक तत्त्व समान रहें तो उपभोक्ता की आय में परिवर्तन के परिणामस्वरूप वस्तु की माँग में जो परिवर्तन होते हैं, उन परिवर्तनों की माप ही माँग की आय लोच कहलाती है । वाटसन के अनुसार, “माँग की आय लोच से अभिप्राय आय में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँगी गई मात्रा में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात से है।”
प्रश्न 9. माँग की आड़ी लोच की विचारधारा को समझाइये।
Explain the Concept of Cross Elasticity of Demand.
(Meerut, 2005 Main)
उत्तर–परस्पर सम्बन्धित वस्तुओं में से किसी एक वस्तु के मूल्य में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप दूसरी वस्तु की माँग में जो सापेक्षिक परिवर्तन होता है, उसकी माप ही माँग की आड़ी लोच कहलातो है । फर्गुसन के अनुसार, “माँग की आड़ी लोच सम्बन्धित वस्तु की कीमत में होने वाले सापेक्ष परिवर्तन के परिणामस्वरूप एक्स वस्तु की माँगी गई मात्रा में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन है।”
प्रश्न 10. माँग की दिगापन लोच को समझाइये।
Explain Advertisement Elasticity of Demand.
(Meerut, 2005 Back)
उत्तर– माँग की विज्ञापन लोच का प्रयोग विज्ञापन व्ययं में परिवर्तन के फलस्वरूप वस्त की माँग में होने वाले परिवर्तन को मापने के लिये किया जाता है। दूसरे शब्दों में विज्ञापन व्यय में आनुपातिक (प्रतिशत) परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग में जो आनुपातिक परिवर्तन आता है, उसे ही माँग की विज्ञापन लोच कहते हैं।
प्रश्न 11. उत्पादन फलन क्या है?
What is Production Function?
उत्तर– किसी फर्म के उत्पादन (Output) और आदा (Input) के बीच के सम्बन्धों को उत्पादन फलन कहते हैं। उत्पाद फलन यह बताता है कि एक दिये हुए तकनीकी ज्ञान और प्रबन्ध योग्यता की सहायता से उत्पादक आदाओं के विभिन्न संयोगों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा किस प्रकार प्राप्त कर सकता है । संक्षेप में, उत्पादन फलन उत्पादन सम्भावनाओं की सूची है |
प्रश्न 12. उत्पादन फलन की क्या मान्यताएँ है?
What are the assumptions of Production Function?
उत्तर– उत्पादन फलन का विचार निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित हैं –
(i) उत्पादन-फलन एक निश्चित समयावधि से सम्बन्धित होता है।
(ii) जिस समयावधि में उत्पादन फलन का अध्ययन किया जाता है उसके लिए यह मान लिया जाता है कि तकनीकी ज्ञान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
(iii) फर्म सर्वश्रेष्ठ एवं आधुनिकतम उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है।
(iv) उत्पादन के विभिन्न साधन छोटी-छोटी इकाइयों में विभाज्य होते हैं।
(v) उत्पादन के साधनों की कीमतें यथास्थिर रहती हैं अर्थात् उत्पादन के साधनों की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
प्रश्न 13. साधन की प्रतिस्थापन लोच क्या है?
What is elasticity of a factor substitution?
(Meerut, 2005 Back)
उत्तर– साधन की प्रतिस्थापन लोच का विचार जे० आर० हिक्स द्वारा प्रस्तुत किया गया है। उत्पादन साधनों की सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन होने पर, उत्पादक एक साधन का दूसरे साधन से प्रतिस्थापन करता है ताकि उत्पादन लागत को कम किया जा सके। अतः उत्पादन मात्रा को पूर्ववत् रखते हुए, साधनों की कीमत में परिवर्तन होने पर, एक साधन का दूसरे साधन से प्रतिस्थापन का माप ही, साधन की प्रतिस्थापन लोच कहलाता है। सूत्र रूप में
साधन की प्रतिस्थापन लोच = साधनों के अनुपात में आनुपातिक परिवर्तन / साधनों की कीमतों के अनुपात में आनुपातिक परिवर्तन
साधन की प्रतिस्थापन लोच सदैव ही धनात्मक होती है।
प्रश्न 14. परिवर्तनशील अनुपातों का नियम क्या है?
What is the Law of Variable Proportion?
(Meerut, 2005 Main)
उत्तर-उत्पत्ति ह्रास नियम को ही आधुनिक अर्थशास्त्री ‘परिवर्तनशील अनुपातों का नियम’ कहते हैं । इस नियम के अनुसार, यदि किसी साधन (या साधनों) को स्थिर रखकर अन्य परिवर्तनशील साधनों (या साधन) को बढ़ाया जाता है तो एक सीमा के पश्चात् उत्पादन क्रमश: घटने लगता है।
प्रश्न 15. क्रमागत उत्पत्ति हास नियम को समझाइये।
Explain the Law of Diminishing Returns.
उत्तर–श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, उत्पत्ति ह्रास नियम यह व्यक्त करता है कि उत्पत्ति के किसी एक साधन को स्थिर रखा जाये तथा अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाये तो एक निश्चित बिन्दु के पश्चात् उत्पादन की मात्रा में घटती हुई दर में वृद्धि होगी।”
प्रश्न 16. क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि (वर्द्धमान प्रतिफल) नियम को समझाइये।
Explain the Law of Increasing Returns.
उत्तर– जब उत्पादन के एक या एक से अधिक साधनों को स्थिर रखकर,अन्य परिवर्तनशील साधनों (अथवा साधन) की मात्राओं में वृद्धि करने के परिणामस्वरूप उत्पत्ति के साधनों की मात्रा में की गई वृद्धि के अनुपात या प्रतिशत की तुलना में वस्तु के कुल उत्पादन में हुई वृद्धि का अनुपात या प्रतिशत अधिक होता है तो उसे उत्पत्ति वृद्धि नियम कहते हैं। दूसरे शब्दों में,जब उत्पत्ति के साधनों की मात्रा में की गई वृद्धि के अनुपात या प्रतिशत की तुलना में वस्तु के कुल उत्पादन की मात्रा में होने वाली वृद्धि का अनुपात या प्रतिशत अधिक होता है तो उसे उत्पत्ति वृद्धि नियम कहते हैं। उत्पति वृद्धि नियम उत्पादन की प्रारम्भिक अवस्था में लागू होता है।
प्रश्न 17. उत्पत्ति समता नियम क्या है?
What is the Law of Constant Returns?
उत्तर– उत्पत्ति समता नियम उत्पादन की उस प्रवृत्ति को प्रकट करता है जब उत्पत्ति के . साधनों में वृद्धि करने पर, सीमान्त उत्पादन ठीक उसी अनुपात में बढ़ता है जिस अनुपात में . साधनों की मात्रा में वृद्धि की गई है।
प्रश्न 18. क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम किस प्रकार लागत ह्रास नियम है?
How Law of Increasing Returns is the Law of Diminishing Cost?
उत्तर– क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम को लागत ह्रास नियम भी कहा जाता है, क्योंकि जिस अनुपात में परिवर्तनशील साधनों को बढ़ाया जाता है उस अनुपात से कहीं अधिक उत्पादन प्राप्त हो जाता है जिससे सीमान्त तथा औसत लागत (Marginal and Average Cost) में कमी आ जाती है। इस प्रकार लागतों में कमी होने के कारण ही इसे ‘लागत ह्रास नियम’ (Law of Diminishing Cost) कहा जाता है।
प्रश्न 19. समोत्पाद रेखा (वक्र) से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Iso-product Curves?
उत्तर – एक समोत्पाद वक्र दो साधनों (श्रम और पूँजी) के उन विभिन्न संयोगों का बिन्दु-पथ है जिनसे समान मात्रा में उत्पादन प्राप्त होता है। चूंकि यह सभी संयोग समान उत्पादन प्रदान करते हैं; अतः एक उत्पादक इन संयोगों के प्रति तटस्थ हो जाता है।
प्रश्न 20. तटस्थता वक्र तथा समोत्पाद वक्र में अन्तर बताइये।
Differentiate between Indifference Curves and Iso-product Curves.
उत्तर– (1) तटस्थता वक्र दो उपभोक्ता वस्तुओं का बनाया जाता है, जबकि समोत्पाद वक्र दो उत्पादन के साधनों का बनाया जाता है । (2) तटस्थता वक्र सन्तुष्टि का माप करता है, जबकि समोत्पाद वक्र उत्पादन का माप करता है।
प्रश्न 21. सम–लागत रेखा क्या है?
What is Iso-cost Line?
उत्तर– सम-लागत रेखा दो साधनों (श्रम और पूँजी) के उन विभिन्न संयोगों को व्यक्त . करती है जिन्हें फर्म एक दी हुई कुल व्यय राशि से दी हुई कीमतों पर क्रय कर सकती है। इसे साधन कीमत रेखा, कुल व्यय रेखा, व्यय परिधि रेखा, बजट संयमन रेखा आदि नामों से भी जाना जाता है।
प्रश्न 22. अनुकूलतम साधन संयोग क्या है?
What is Optimum Factor Combination?
उत्तर– अनुकूलतम साधन संयोग का आशय श्रम और पूँजी साधनों के उस अनुपात से, है जिस पर एक दिये हुए स्तर के उत्पादन की कुल लागत न्यूनतम हो, अथवा जो दिये हुए . कुल व्यय से उत्पादन को अधिकतम करता है।
प्रश्न 23. विस्तार पथ क्या है?
What is the Expansion Path?
उत्तर– विस्तार पथ समोत्पाद रेखाओं तथा सम-लागत रेखाओं के बीच स्पर्श बिन्दुओं का रास्ता है, अर्थात् विस्तार पथ या स्केल रेखा साधनों के न्यूनतम लागत वाले संयोगों को बताता है जिनके द्वारा उत्पादन की विभिन्न मात्राएँ उत्पादित की जा सकती हैं।
प्रश्न 24. पैमाने के प्रतिफल के विचार को समझाइये।
Describe the term ‘Return to Scale’.
उत्तर– पैमाने के प्रतिफल से अभिप्राय उत्पादन में होने वाले उस परिवर्तन से है जो. उत्पादन के सभी साधनों में समान अनुपात में परिवर्तन करने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है। उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन केवल दीर्घकाल में ही सम्भव होता है, अत: पैमाने के प्रतिफल का सम्बन्ध दीर्घकालीन उत्पादन फलन से होता है । प्रो० लीभाफस्की के अनुसार, “पैमाने के प्रतिफल का सम्बन्ध सभी साधनों में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है, यह एक दीर्घकालीन धारणा है।”
प्रश्न 25. अनुपात एवं पैमाने में अन्तर बताइये।
Differentiate between Ratio and Scale.
उत्तर– एक या अधिक साधनों के साथ परिवर्तन साधनों के संयोग को अनुपात कहा जाता है। अनुपात का विचार अल्पकालीन है, क्योंकि अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि उत्पत्ति के सभी साधनों को नहीं बढ़ाया जा सकता इसलिये अल्पकाल में फर्म का उत्पत्ति का पैमाना स्थिर रहता है जबकि पैमाने के प्रतिफल में उत्पत्ति के सभी साधनों को स्थिर रखते हुए सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि करना पैमाने का प्रतिफल कहलाता है।
प्रश्न 26. पैमाने के स्थिर प्रतिफल का क्या आशय है?
What is meant by Constant Return to Scale?
उत्तर– जब किसी वस्तु के उत्पादन में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन उत्पादन के साधनों में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन के बराबर होता है तो उसे पैमाने का समता या स्थिर प्रतिफल ” कहते हैं । इस नियम को लागतों के सन्दर्भ में भी व्यक्त किया जा सकता है। उत्पादन में वृद्धि होने पर उत्पादन की सीमान्त लागत स्थिर होती है तथा वह औसत लागत के बराबर होती है।
प्रश्न 27. पैमाने के घटते हुए प्रतिफल से क्या आशय है?
What is Decreasing Returns to Scale?
उत्तर– जब उत्पादन में होने वाली आनुपातिक वृद्धि उत्पादन के साधनों में होने वाली आनुपातिक वृद्धि से कम है तो उसे पैमाने का घटता हुआ या ह्रासमान प्रतिफल कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पैमाने का ह्रासमान या घटता हुआ प्रतिफल की अवस्था में उत्पादन में एक समान वृद्धि प्राप्त करने के लिए क्रमशः साधनों की बढ़ती मात्रा में वृद्धि की आवश्यकता पड़ेगी।
प्रश्न 28. पैमाने की मितव्ययितायें शब्द से आप क्या समझते हैं?
What do you mean by the term Economies of Scale?
(Meerut; 2006 Main)
उत्तर– ऐसी बचतें जो कि किसी फर्म को उसके उत्पादन के आकार में वृद्धि के कारण अथवा उस उद्योग विशेष में फर्मों की संख्या बढ़ जाने के कारण प्राप्त होती है, उन्हें पैमाने की बचते कहते हैं।
प्रश्न 29. पैमाने की आन्तरिक बचतों की विचारधारा को समझाइये।
Explain the concept of Internal Economies of Scale.
उत्तर– जब एक फर्म को उत्पत्ति का पैमाना बढ़ाने पर अपनी आन्तरिक कुशलता तथा संगठन की श्रेष्ठता के कारण बचतें प्राप्त होती हैं तो उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं । इन बचता का सम्बन्ध सम्पूर्ण उद्योग से नहीं होता है बल्कि किसी फर्म विशेष से होता तो बचत प्रत्यक उद्योग में प्रत्यक फर्म के लिए अलग-अलग होती हैं। “आन्तरिक मितव्ययिताएँ वे होती हैं जो एक फर्म को उसकी आन्तरिक कुशलता तथा व्यवस्था
आदि की श्रेष्ठता के कारण होती हैं।”
प्रश्न 30. पैमाने की बाह्य मितव्ययिताओं को समझाइये।
Explain the concept of External Economies of Scale.
उत्तर– बाह्य मितव्ययिताएँ वे हैं जो विभिन्न फर्मों को सम्पूर्ण उद्योग के विस्तार के कारण उपलब्ध होती हैं और ये किसी व्यक्तिगत फर्म के उत्पादन पैमाने के स्तर पर निर्भर नहीं होती हैं। दूसरे शब्दों में, बाह्य मितव्ययिताएँ वे बचतें हैं जो प्रायः समान रूप से किसी उद्योग की सभी फर्मों को उपलब्ध होती हैं।
प्रश्न 31. ‘तकनीकी बचतों‘ को समझाइये।
Explain the Technical Economies.
(Meerut, 2005 Back)
उत्तर–तकनीकी बचतों से आशय उन बचतों से है जो उत्पादन तकनीक में सुधार करने के फलस्वरूप प्राप्त होती हैं। इन बचतों के अन्तर्गत उन्नत मशीनें, विशिष्टीकरण तथा आकार की कुशलता सम्बन्धी बचतों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 32. रिज रेखाओं, को समझाइये।
Explain the Ridge Lines.
(Meerut, 2005 Main)
उत्तर– समोत्पाद वक्र के बिन्दुओं के मार्ग ज़िन पर साधनों की सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है, रिज रेखायें बनाते हैं। रिज रेखायें श्रम तथा पूँजी की उन आवश्यक मात्राओं को व्यक्त करती हैं जो उत्पादन की विभित्र मात्राओं के लिए न्यूनतम रूप से आवश्यक होती हैं। इन परिधि रेखाओं के क्षेत्र में उत्पादन करके ही उत्पादक अपने लाभों को अधिकतम कर सकते हैं। रिज रेखाओं के बाहर के क्षेत्र उत्पादन के अनार्थिक क्षेत्र होते हैं। इनके बाहर साधनों की सीमान्त उत्पादकता ऋणात्मक होने लगती है तथा पूर्ववत् उत्पादन प्राप्त करने के लिये ही दोनों साधनों की अधिक मात्राओं की आवश्यकता होती है। अतः कोई भी विवेकशील उत्पादक रिज रेखाओं के बाहर साधन संयोगों का चयन नहीं करेगा। स्पष्ट है कि रिज रेखाओं के बीच का क्षेत्र ही उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र होता है।
प्रश्न 33. अवसर लागत विचारधारा को समझाइये।
Explain the concept of opportunity cost.
(Meerut 2004, 2005)
उत्तर– यह धारणा मूलतः इस तथ्य पर आधारित है कि हमारे साधन दुर्लभ तथा सीमित होती हैं और उनके वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। परन्तु जब हम किसी साधन को किसी एक विशेष प्रयोग में लगा देते हैं तो फलस्वरूप उसके अन्य प्रयोगों में उपयोग के अवसर समाप्त हो जाते हैं। उदाहरण के लिये भूमि के किसी टुकड़े पर गेहूँ की बुवाई कर देने पर उस पर गन्ने की बुवाई करने के अवसर समाप्त हो जाते हैं। उत्पादन का कोई साधन अपने वर्तमान प्रयोग में तभी तक बना रहता है जब तक कि उसके वर्तमान प्रयोग का पुरस्कार उसके अन्य वैकल्पिक प्रयोगों से अधिक रहता है । यह अन्य वैकल्पिक प्रयोगों से अर्जित किये जा सकने वाला आगम ही साधन की अवसर लागत कहलायेगा।
प्रश्न 34. भेदात्मक लागत (वृद्धिशील लागत) शब्द को परिभाषित कीजिये।
Define the term Differential Cost (Incremental Cost).
(Meerut, 2004 Back)
उत्तर– दो वैकल्पिक कार्यवाही अथवा उत्पादन स्तरों की कुल लागत के अन्तर को भेदात्मक लागत कहा जाता है । भेदात्मक लागत, वृद्धिगत लागत (Incremental Cost) अथवा कमीगत लागत (Decremental Cost) हो सकती है । जब उत्पादन के स्तर में वृद्धि के कारण लागत में वृद्धि होती है तो उसे वृद्धिगत लागत कहते हैं और उत्पादन के स्तर में कमी के फलस्वरूप लागत में जो कमी होती है वह कमीगत लागत कहलाती है।
प्रश्न 35. सीमान्त लागत किसे कहते हैं?
What do you understand by Marginal Cost?
उत्तर– सीमान्त लागत से आशय उत्पादन की एक अतिरिक्त इकाई उत्पादित करने के फलस्वरूप कुल लागत में होने वाली वृद्धि से है। उदाहरणार्थ, यदि फर्म के द्वारा 10 इकाईयाँ उत्पादित करने की कुल लागत 90 रुपये है और 11 इकाइयाँ उत्पादित करने पर कुल लागत 96 रुपये है तो ऐसी दशा में फर्म की सीमान्त लागत 96 – 90 = 6 रुपये होगी। सूत्रानुसार
MC = TC, – TC – 1 = 96 — 90 = 6 रुपये
जहाँ MC = सीमान्त लागत (Marginal Cost)
TCn = n इकाइयों की कुल लागत
TCn -1 = n – 1 इकाइयों की कुल लागत
प्रश्न 36. औसत लागत से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Average Cost?
उत्तर– औसत लागत से आशय उत्पादन की प्रति इकाई लागत से है । कुल लागत में उत्पादित इकाइयों का भाग कर देने से औसत लागत ज्ञात हो जाती है ।
औसत लागत (AC) = कुल लागत (TC)’ कुल उत्पादन (Output)
प्रश्न 37. मौद्रिक लागत से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Money Cost?
उत्तर– एक उत्पादक किसी वस्तु का उत्पादन करने हेतु उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के प्रयोग के लिये जो धन व्यय करता है, वह उसकी मौद्रिक लागत कहलाती है। दूसरे शब्दों में, मौद्रिक लागत धन का वह भुगतान है जो एक उत्पादक उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को उनकी सेवाओं के बदले में करता है।
प्रश्न 38. वास्तविक लागत किसे कहते हैं?
What is Real Cost?
उत्तर– मार्शल के अनुसार, “किसी वस्तु के निर्माण में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से लगने वाले सभी प्रकार के समस्त प्रयास और उसमें लगायी गयी पूँजी की बचत के लिये किया गया त्याग,संयम अथवा प्रतीक्षा; इन सभी प्रकार के प्रयासों या त्यागों को मिलाकर उस वस्तु की वास्तविक उत्पादन लागत कहा जायेगा।” वास्तविक लागत.को सामाजिक लागत भी कहा जाता है।
प्रश्न 39. स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
Distinguish between Explicit Cost and Implicit Cost.
उत्तर– स्पष्ट लागतों से आशय ऐसी लागतों से है जो एक उत्पादक को उत्पत्ति के विभिन्न साधनों के प्रयोग के बदले चुकानी पड़ती हैं । इन लागतों में केवल ऐसे व्ययों को ही शामिल किया जाता है जिनका उत्पादक द्वारा नकद रूप में भुगतान किया जाता है। इसके विपरीत, अस्पष्ट लागतें उत्पत्ति के उन साधनों के मूल्य को कहते हैं जिनका स्वामी स्वयं उत्पादक होता है अर्थात अस्पष्ट लागतों से आशय उत्पादन के आन्तरिक साधनों की लागत से है।
प्रश्न 40. किस औसत लागत वक्र को ‘नियोजन वक्र‘ कहा जाता है ?
Which average cost curve is called as ‘Planning Curve’.
(Meerut, 2004 Back)
उत्तर-दीर्घकालीन औसत लागत (LAC) वक्र को नियोजन वक्र कहा जाता है । इसका कारण यह है कि यह वक्र प्रबन्ध को संयन्त्र के सर्वोत्तम आकार के नियोजन में सहायता करता है। यह वक्र उत्पादन तथा लागत सम्बन्धी भविष्य की सर्वश्रेष्ठ सम्भावनायें प्रदर्शित करता है |
प्रश्न 41: कुल आगम को समझाइये।
Explain the Total Revenue (TR).
उत्तर– वस्तु की एक निश्चित मात्रा को बेचकर किसी विक्रेता को जो कुल आय होती है, उसे ही कुल आगम कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी विक्रेता ने वस्तु की 10 इकाइयाँ बेचकर 50 रुपये प्राप्त किये तो 50 रुपये को कुल आगम कहेंगे।
प्रश्न 42. औसत आगम को समझाइये।
Explain the Average Revenue (AR).
उत्तर– औसत आगम का आशय प्रति इकाई आगम से है। कुल आगम में कुल बेची गई इकाइयों का भाग कर देने से औसत आगम ज्ञात हो जाती है।
प्रश्न 43. सीमान्त आगम को समझाइये।
Explain the Marginal Revenue.
उत्तर– सीमान्त आगम से आशय एक अतिरिक्त इकाई विक्रय करने के फलस्वरूप कुल आगम में होने वाली वृद्धि से है। उदाहरणार्थ, यदि किसी वस्तु की 10 इकाईयों को विक्रय करने से 50 रुपये प्राप्त होते हैं एवं उक्त वस्तु की 11 इकाईयों को विक्रय करने से 54 रुपये प्राप्त होते हैं तो ऐसी दशा में सीमान्त आगम 54 – 50 = 4 रुपये होगी।
प्रश्न 44. बाजार शब्द को परिभाषित कीजिये।
Define the term ‘Market’.
उत्तर– सामान्य बोलचाल की भाषा में बाजार से आशय किसी स्थान विशेष से लगाया जाता है, जहाँ पर किसी वस्तु या वस्तुओं के क्रेता एवं विक्रेता एकत्र होते हैं और वस्तुओं का क्रय-विक्रय करते हैं। अर्थशास्त्र के अन्तर्गत बाजार से अभिप्राय उस समस्त क्षेत्र से है जिसमें किसी वस्तु के क्रेता एवं विक्रेता फैले हुये हों और उनके मध्य प्रतियोगिता विद्यमान हो।
प्रश्न 45. पूर्ण प्रतियोगिता की व्याख्या कीजिये।
Explain the Perfect Competition.
(Meerut, 2006 Main)
उत्तर– पूर्ण प्रतियोगिता’ बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें वस्तु के बहुत से क्रेता व विक्रेता उपलब्ध होते हैं तथा उनमें वस्तु को क्रय एवं विक्रय करने के लिए परस्पर प्रतियोगिता होती है। वास्तव में पूर्ण प्रतियोगिता, बाजार की वह स्थिति है जिसमें कोई भी क्रेता अथवा विक्रेता व्यक्तिगत रूप से किसी वस्तु विशेष के बाजार मूल्य को प्रभावित करने की स्थिति में नहीं होता और इसलिये सम्पूर्ण बाजार में वस्तु का एक ही मूल्य पाया जाता है।
प्रश्न 46. अल्पाधिकार क्या है ?
What is Oligopoly?
(Meerut, 2004 Main)
उत्तर– अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्त के बहत कम विक्रेता होते हैं तथा प्रत्येक विक्रेता कुल पूर्ति के बड़े भाग पर नियन्त्रण रखता है और वस्तु के मूल्य को प्रभावित कर सकता है । अल्पाधिकार के अन्तर्गत फर्मे या तो समान वस्तुओं का अथवा ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करती हैं जो कि निकट स्थानापन्न हों।
प्रश्न 47. अपूर्ण प्रतियोगिता की व्याख्या कीजिये।
Explain Imperfect Competition.
उत्तर– जब पूर्ण प्रतियोगिता की वांछित दशाओं में से किसी भी दशा का अभाव होता है तो अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। दूसरे शब्दों में, अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार की ऐसी दशा को कहा जाता है जिसमें या तो क्रेताओं एवं विक्रेताओं की संख्या अधिक नहीं होती या उनकी वस्तु एकरूप नहीं होती या उन्हें बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता।
प्रश्न 48. एकाधिकार से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by ‘Monopoly’?
उत्तर– एकाधिकार का अंग्रेजी शब्द ‘Monopoly’ दो शब्दों Mono + Poly से मिलकर बना है । Mono का अर्थ है ‘अकेला’ तथा Poly का अर्थ है ‘उत्पादक’ । इस प्रकार . Monopoly का अर्थ अकेले उत्पादक सें से है। दूसरे शब्दों में, एकाधिकार बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें वस्तु का एक ही उत्पादक होता है तथा वस्तु की समस्त पूर्ति पर उसका पूर्ण नियन्त्रण होता है। एकाधिकारी बाजार में वस्तु का एक ही उत्पादक होने के कारण फर्म तथा उद्योग में कोई अन्तर नहीं होता अर्थात् एकाधिकार में उद्योग ही फर्म है अथवा फर्म ही. उद्योग है । एकाधिकार उसी वस्तु के सम्बन्ध में हो सकता है जिसकी कोई निकट स्थानापन्न वस्तु नहीं होती । इसके कारण वस्तु की कीमत में होने वाला परिवर्तन अन्य वस्तुओं की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है । विशुद्ध एकाधिकार की स्थिति व्यावहारिक जीवन में सामान्यतः नहीं पाई जाती है। स्टोनियर एवं हेग के अनुसार, “एकाधिकार उस बाजार स्थिति को कहते हैं जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही उत्पादक होता है और उसका अपनी वस्तु की पूर्ति पर, जिसका कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता, पूर्ण नियन्त्रण होता है।”
प्रश्न 49. एकाधिकारी प्रतियोगिता की विचारधारा को समझाइये।
Explain the concept of Monopolistic Competition.
उत्तर– एकाधिकारी प्रतियोगिता बाजार की ऐसी स्थिति को कहते हैं जिसमें एकाधिकार तथा प्रतियोगिता की विशेषताओं का मिश्रण पाया जाता है । अतः एकाधिकारी प्रतियोगिता से अभिप्राय उस अवस्था से है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या तो अधिक होती है. परन्तु उनकी वस्तुएँ एकरूप नहीं होती, वस्तुओं में थोड़ी भिन्नता या भेद होता है । ‘वस्तु विभेद’ के कारण प्रत्येक विक्रेता का अपनी वस्तु पर पूर्ण एकाधिकार होता है और वह वस्तु की कीमत को प्रभावित कर सकता है। परन्तु चूँकि ये फर्मे मिलती-जुलती वस्तुएँ बेचती हैं, इसलिये इन एकाधिकारी विक्रेताओं में बड़ी तीव्र प्रतियोगिता भी होती है।
प्रश्न 50. द्वयाधिकार क्या है?
What is Duopoly?
उत्तर– द्वयाधिकार से अभिप्राय बाजार की उस स्थिति से है जिसमें वस्तु के केवल दो ही उत्पादक होते हैं, दोनों एक ही वस्तु को बेचते हैं, दोनों उत्पादकों की वस्तुएँ प्रायः एकरूप होती हैं, दोनों ही उत्पादन कार्य में स्वतन्त्र होते हैं एवं दोनों की वस्तुएँ एक-दूसरे से प्रतियोगिता करती हैं।
प्रश्न 51. अपूर्ण प्रतियोगिता के क्या कारण हैं?
What are the causes of Imperfect Competition?
उत्तर– (1) क्रेताओं और विक्रेताओं का बहुत बड़ी संख्या में न होना, (2) वस्तु विभेद, (3) क्रेताओं तथा विक्रेताओं का अपूर्ण ज्ञान, (4) क्रेताओं का आलस्य, (5) उच्च परिवहन लागत।
प्रश्न 52. अपूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण की प्रमुख शर्ते बताइये।
Explain the main conditions in price determination under imperfect competition.
उत्तर– (1) अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत भी सीमान्त आगम का सीमान्त लागत के बराबर (MR = MC) होना आवश्यक है।
(2) प्रत्येक फर्म की माँग रेखा नीचे की ओर गिरती हुई होती है। औसत आगम,सीमान्त आगम से अधिक होता है । (AR > MR)
(3) वस्तु सीमान्त लागत से ऊँची कीमत पर बेची जाती है।
प्रश्न 53. अल्पाधिकार की क्या विशेषतायें हैं ?
What are the characteristics of Oligopoly?
उत्तर– अल्पाधिकार की मुख्य विशेषतायें- (i) विक्रेताओं की सीमित संख्या, (ii) विक्रेताओं में परस्पर निर्भरता,(iii) नई फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन में कठिनाई,(iv) विज्ञापन एवं विक्रय लागतों का प्रभाव,(v) वस्तु का एकरूप होना अथवा अलग-अलग होना ।
प्रश्न 54. पूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
Explain the main characteristics of Perfect Competition.
उत्तर– पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषतायें– (i) क्रेताओं और विक्रेताओं की बड़ी संख्या, (ii) एकरूप वस्तु, (iii) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश एवं बहिर्गमन, (iv) क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान, (v) उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिशीलता, (vi) विक्रय एवं यातायात लागतों का अभाव, (vii) समान मूल्य-नीति ।
प्रश्न 55. अपूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
Explain the main characteristics of Imperfect Competition.
उत्तर–अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषतायें– (i) क्रेताओं एवं विक्रेताओं की बड़ी संख्या, (ii) क्रेताओं एवं विक्रेताओं को बाजार का अपूर्ण ज्ञान, (iii) उत्पाद विभक्तिकरण, (iv) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश एवं बहिर्गमन, (v) क्रेताओं में पूर्ण गतिशीलता का अभाव, (vi) यातायात की उच्च लागत।
प्रश्न 56. एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
Explain the main characteristics of ‘Monopoly’.
उत्तर– एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ-(i) एकाधिकारी अपनी वस्तु का अकेला उत्पादक अथवा विक्रेता होता है । (ii) वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता, (ii) कोई . फर्म आसानी से बाजार में प्रवेश करनी की स्थिति में नहीं होती।
प्रश्न 57. एकाधिकारी प्रतियोगिता की मुख्य विशेषतसएँ बताइये।
Explain the main characteristics of ‘Monopolistic Competition’.
उत्तर– एकाधिकारी प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएँ – (i) क्रेताओं और विक्रेताओं की बड़ी संख्या में उपस्थिति,(ii) वस्तु विभेद, (iii) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश एवं बहिर्गमन, (iv) फर्मों की स्वतन्त्र मूल्य-नीति, (v) बाजार की दशाओं का अपूर्ण ज्ञान, (vi) गैर-मूल्य प्रतियोगिता ।
प्रश्न 58. मूल्य नेतृत्व को समझाइये।
Explain the Price Leadership.
उत्तर-इस स्थिति में उद्योग की समस्त फर्मे किसी एक बड़ी व शक्तिशाली फर्म को अपना मूल्य-नेता मान लेती हैं तथा उसकी मूल्य नीति का अनुसरण करती हैं । नेता-फर्म द्वारा मूल्य निर्णय सम्बद्ध बाजार दशाओं, सरकारी करारोपण एवं उत्पादन की लागत में सम्भावित परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है । अनुसरणकर्ता फर्मे नेता-फर्म द्वारा निर्धारित मूल्य पर ही अपना माल बेच सकती हैं। आर्थर बर्स के अनुसार, “यदि एक ही फर्म द्वारा सदैव या प्रायः कीमत में परिवर्तन किये जाते हैं और सदैव या प्रायः अन्य विक्रेता कीमत के इन्हीं परिवर्तनों का अनुकरण करते हैं तो इस प्रकार की कीमत-स्पर्धी मूल्य नेतृत्व के अन्तर्गत आती है।”
प्रश्न 59. मूल्य नेतृत्व के क्या कारण हैं?
What are the causes of Price Leadership?
उत्तर– (i) बाजार में पर्याप्त भाग, (ii) नीची लागत वाली फर्म, (iii) पहल, (iv) सुदृढ मूल्य नीति के लिये प्रसिद्धि, (v) प्रबल फर्म, (vi) फर्म की ख्याति तथा (vii) आक्रामक मूल्य निर्धारण।
प्रश्न 60. सफल मूल्य नेतृत्व की आवश्यक दशाएँ बताइये।
Explain the conditions necessary for Effective Price Leadership.
उत्तर– (i) वस्तु की किस्म और उपयोगिता का उच्च स्तर, (ii) दीर्घकालीन हित, (iii) मूल्य परिवर्तन बार-बार न किये जायें,(iv) प्रतियोगियों की प्रतिक्रियाओं का सही अनुमान, (v) मूल्य का एकाधिकार स्तर पर निर्धारण, (vi) अनुयायियों की वफादारी एवं सच्चाई तथा (vii) विद्रोही फर्मों से मूल्य-युद्ध की सामर्थ्य ।
प्रश्न 61. विकुंचित माँग वक्र को समझाइये।
Explain the Kinked Demand Curve.
उत्तर– विकुंचित माँग वक्र सिद्धान्त अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की व्याख्या नहीं करता । यह केवल इतना बताता है कि जब एक बार अल्पाधिकार में कीमत निर्धारित हो जाती है तो यह अपरिवर्तित या स्थिर क्यों रहती है? प्रो० स्वीजी के अनुसार, एक अल्पाधिकारी फर्म को विकुंचित माँग वक्र (Kinked Demand Curve) का सामना करना पड़ता है। माँग वक्र में एक निश्चित मूल्य पर एक मोड़ (kink) पाया जाता है, जिससे माँग की लोच में एक-साथ बहुत अधिक परिवर्तन आ जाता है। मांग वक्र का इस मोड़ से ऊपर वाला भाग अधिक लोचदार होता है तथा नीचे वाला भाग कम लोचदार होता है । इस कारण यदि फर्म ‘ अपने मूल्य में कोई भी परिवर्तन करती है, तो उसके लाभ में कोई वृद्धि नहीं होगी।
प्रश्न 62. सामान्य मल्य क्या है?
What is Normal Price?
(Meerut, 2005 Back)
उत्तर– सामान्य मूल्य से आशय ऐसे मूल्य से है जो बाजार में सामान्य रूप से पाया जाना चाहिये। दूसरे शब्दों में, सामान्य मूल्य उस मूल्य को कहते हैं जो वस्तु की माँग एवं पूर्ति की स्थायी शक्तियों द्वारा दीर्घकाल में तय होता है । प्रो० मार्शल के अनुसार, “किसी वस्तु का सामान्य मूल्य वह है जो बाजार की आर्थिक शक्तियाँ अन्ततोगत्वा निश्चित करती हैं।”
प्रश्न 63. बाजार मूल्य क्या है?
What is Market Price?
उत्तर– बाजार मूल्य किसी वस्तु का वह मूल्य है जो बाजार में अति अल्पकाल के लिए अर्थात् थोड़े समय के लिये पाया जाता है। यह समय अवधि कुछ घण्टों से लेकर एक दिन या एक सप्ताह तक के लिये हो सकती है। प्रो० स्टीगलर के अनुसार, “बाजार मूल्य समय की उस अवधि के अन्तर्गत निर्धारित मूल्य को कहते हैं जिसमें उस वस्तु की पूर्ति स्थिर रहती है।”
प्रश्न 64, आरक्षित मूल्य क्या है?
What is Reserve Price?
(Meerut, 2004 Back and 2006 Main)
उत्तर– वस्तु की उस न्यूनतम कीमत को, जिस पर विक्रेता वस्तु की बिक्री बन्द कर देते हैं, आरक्षित मूल्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आरक्षित मूल्य से आशय उस मूल्य से है जिससे कम मूल्य पर उत्पादक वस्तु की कोई भी मात्रा बेचने को तैयार नहीं होंगे अर्थात् सम्पूर्ण मात्रा स्टॉक में रख लेंगे। मूल्य के बढ़ने पर वह (उत्पादक) वस्तु की पूर्ति बढ़ाता जाता है ।
प्रश्न 65. सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
Define the theory of Marginal Productivity.
उत्तर-इस सिद्धान्त के अनुसार, उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को जो पारिश्रमिक (पुरस्कार या कीमत) दिया जाता है, वह उस साधन की सीमान्त उत्पादकता के बराबर होता है । सीमान्त उत्पादकता का आशय कुल उत्पादन की उस वृद्धि से होता है जो कि अन्य साधनों को स्थिर रखकर परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई के प्रयोग से प्राप्त होती है ।
प्रश्न 66. सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त की क्या मान्यताएँ हैं?
What are the assurnptions of the marginal productivity theory?
उत्तर– (1) यह सिद्धान्त यह मानकर चलता है कि साधन की सीमान्त उत्पादकता को मापा जा सकता है । (2) साधन की सभी इकाइयाँ एक जैसी होती हैं । (3) उत्पत्ति हास नियम क्रियाशील होता है । (4) साधन बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है। (5) साधन द्वारा उत्पादित वस्तु के बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है । (6) यह सिद्धान्त पूर्ण रोजगार की स्थिति को मानकर चलता है। (7) एक साधन की इकाइयों में परिवर्तन होता रहता है जबकि अन्य साधन स्थिर रहते हैं।
प्रश्न 67. आर्थिक लगान की विचारधारा को समझाइये।
Explain the concept of Economic Rent.
(Meerut, 2005 Main)
उत्तर– आर्थिक लगान, कुल लगान का एक भाग होता है जो भूस्वामी को केवल भूमि के प्रयोग के प्रतिफल में दिया जाता है। रिकार्डो ने अधि-सीमान्त एवं सीमान्त भूमियों की . उपज के अन्तर को आर्थिक लगान कहा है, परन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार केवल भूमि ही नहीं वरन् उत्पत्ति के अन्य साधन भी आर्थिक लगान प्राप्त कर सकते हैं। उनकी दृष्टि. में आर्थिक लगान साधन की अवसर लागत (Opportunity Cost) के ऊपर आधिक्य या बचत (Saving) है।
प्रश्न 68. आर्थिक लगान और ठेके के लगान में अन्तर बताइये।
Distinguish between ‘Economic Rent’ and ‘Contract Rent’.
(Meerut, 2004 Back)
उत्तर– (1) आर्थिक लगान का निर्धारण अधि-सीमान्त एवं सीमान्त भूमियों की लागतों के आधार पर किया जाता है, जबकि ठेके के लगान का निर्धारण भूमि की माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा किया जाता है।
(2) आर्थिक लगान परिवर्तनशील प्रकृति का होता है क्योंकि ‘सीमान्त भूमि की लागत के घटने-बढ़ने के साथ-साथ यह भी घटता-बढ़ता रहता है, जबकि ठेके का लगान स्थायी प्रकृति का होता है और इसमें तब तक कोई परिवर्तन नहीं होता जब कि दोनों पक्षों के बीच नया समझौता न हो जाये।
(3) आर्थिक लगान पूर्व-निश्चित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह विभिन्न भूमियों की उपज द्वारा निर्धारित होता है, जबकि ठेके के लगान का पूर्व-निर्धारण किया जा सकता है क्योंकि यह लगान भू-स्वामी एवं कृषक के बीच समझौते द्वारा पूर्व निश्चित होता है।
प्रश्न 69. मार्शल की आभास–लगान की धारणा को समझाइये।
Explain Marshall’s concept of Quasi-Rent.
(Meerut, 2006 Main)
उत्तर– मार्शल के अनुसार, “आभास लगान उस अतिरिक्त आय को कहते हैं, जो उत्पादन के साधनों की पूर्ति के अल्पकाल में सीमित होने के कारण होती है।”
सिल्वर मैन के अनुसार, “आभास-लगान, तकनीकी रूप में, उत्पत्ति के उन साधनों को किया गया अतिरिक्त भुगतान है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर तथा दीर्घकाल में परिवर्तनशील होती है।”
प्रश्न 70. दुर्लभता लगान क्या है?
What is Scarcity Rent?
उत्तर– दुर्लभता लगान भूमि के उपयोग के लिये दी गई वह कीमत है जो इस कारण से दी जाती है कि भूमि की पूर्ति भूमि की माँग की तुलना में सीमित होती है।
प्रश्न 71. रिकार्डो के अनुसार लगान की परिभाषा दीजिये।
Write definition of Rent as given by Ricardo.
उत्तर– “लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि के स्वामी को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के बदले दिया जाता है।”
प्रश्न 72. रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की क्या मान्यताएँ हैं?
What are the assumptions of Ricardian theory of Rent?
उत्तर– (1) सिद्धान्त का पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में लागू होना; (2) उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता; (3) लगान केवल भूमि से ही प्राप्त होता है अन्य साधनों से नहीं; (4) सिद्धान्त का दीर्घकाल में लागू होना; (5) भूमि की पूर्ति का सीमित होना।
प्रश्न 73. लगान के आधुनिक सिद्धान्त की परिभाषा दीजिये।
Define the Modern theory of Rent.
उत्तर– श्रीमति जॉन राबिन्सन के अनुसार, “लगान की धारणा का सार वह आधिक्य है जो एक साधन की इकाई उस न्यूनतम आय के ऊपर प्राप्त करती है जो साधन को अपना कार्य करते रहने के लिए आवश्यक है । लगान की धारणा को प्रायः भूमि से सम्बद्ध किया जाता है। श्रम, साहस तथा पूँजी की तीन व्यापक श्रेणियों से सम्बद्ध अन्य उत्पादन साधनों की विभिन्न इकाइयाँ भी लाभ कमा सकती हैं।”
प्रश्न 74. रिकार्डो के अनुसार कौन–सी भूमि लगान–रहित भूमि होती है?
Which land is no-rent land’ as per Ricardo?
(Meerut, 2004)
उत्तर– रिकार्डों के अनुसार सीमान्त भूमि ही लगान-रहित भूमि मानी जाती है। इंस’ स्थिति में उत्पादन लागत तथा उत्पादन मूल्य दोनों बराबर होते हैं।
प्रश्न 75. वास्तविक मजदूरी क्या है?
What is Real Wage?
(Meerut, 2004 Main; 2005 Back)
उत्तर– वास्तविक मजदूरी में एक श्रमिक को अपने श्रम के बदले में मिलने वाली नकद मजदूरी से प्राप्त होने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं तथा नकद मजदूरी के अतिरिक्त नियोक्ता से प्राप्त होने वाली अन्य सुविधायें भी शामिल होती हैं। स्पष्ट है कि वास्तविक मजदूरी में नकद मजदूरी के अलावा, प्राप्त होने वाली अन्य सुविधाएँ भी सम्मिलित होती हैं । संक्षेप में,
वास्तविक मजदूरी = नकद मजदूरी + अन्य सुविधाएँ उदाहरण के लिए, यदि श्रमिक को नकद मजदूरी के अतिरिक्त बोनस, मुफ्त मकान, मुफ्त चिकित्सा, बच्चों की निःशुल्क शिक्षा आदि सुविधाएँ भी मिल रही हो तो ये सभी सुविधाएँ भी उसकी वास्तविक मजदूरी में सम्मिलित की जायेंगी।
प्रश्न 76. वास्तविक मजदूरी को निर्धारित करने वाले तत्त्व बताइये।
Discuss the factors determining real wages.
(Meerut, 2004 Back)
उत्तर– (1) मुद्रा की क्रय शक्ति अथवा कीमत स्तर, (2) अतिरिक्त आय, (3) अतिरिक्त सुविधायें, (4) आश्रितों को काम,(5) कार्य का स्वभाव,(6) कार्य-दशायें. (7) कार्य के घण्टे एवं अवकाश, (8) भविष्य में उन्नति की आशा, (9) कार्य की नियमितता एव (10) व्यावसायिक व्यय।
प्रश्न 77. सकल ब्याज की व्याख्या कीजिये।
Explain Gross Interest.
(Meerut, 2006 Main)
उत्तर– सकल व्याज, एक ऋणी द्वारा ऋणदाता को किया गया वह भुगतान है जिसके अन्तर्गत शुद्ध ब्याज के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के भुगतान जैसे-जोखिम, असुविधा तथा कष्ट आदि के लिये भी किये गये भुगतान सम्मिलित होते हैं। चैपमैन के अनुसार, “सकल व्याज में पूंजी उधार देने का पुरस्कार, जोखिम का पुरस्कार चाहे वे (क) व्यक्तिगत जोखिम या (ख) व्यापारिक जोखिम हों, विनियोग की असुविधाओं का पुरस्कार और विनियोग सम्बन्धी कार्य एवं चिन्ता का पुरस्कार सम्मिलित होता है।”
प्रश्न 78. वास्तविक ब्याज (शुद्ध ब्याज) किसे कहते हैं ?
What is Net Interest?
उत्तर– शुद्ध ब्याज कुल ब्याज का वह भाग है जो पूँजीपति को केवल पूँजी के प्रयोग के बदले दिया जाता है। स्पष्ट है कि शुद्ध ब्याज के अन्तर्गत केवल पूँजी का पारितोषिक ही सम्मिलित होता है, अन्य किसी प्रकार का कोई भुगतान नहीं।
प्रश्न 79. ब्याज के त्याग या प्रतीक्षा के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Waiting Theory of Interest?
उत्तर– ब्याज के प्रतीक्षा सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो० सीनियर ने किया था। वर्तमान उपभोग में कमी करना ही त्याग है। इस प्रकार बचत करने के लिये त्याग आवश्यक है। यदि समाज यह चाहता है कि लोग त्याग करें तो लोगों को उस त्याग का कुछ-न-कुछ पुरस्कार अवश्य मिलना चाहिये। यही पुरस्कार ब्याज है।
प्रश्न 80. ब्याज के तरलता पसंदगी सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
What do you understand by Liquidity Preference Theory of Interest?
उत्तर– प्रो० कीन्स ने सभी पुराने सिद्धान्तों का खण्डन करके एक नए सिद्धान्त ‘तरलता पसंदगी का सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया। उन्होंने बताया कि ब्याज नकदी की कीमत के परित्याग का पुरस्कार है, उन्हीं के शब्दों में, “ब्याज एक निश्चित अवधि के लिये द्रव्यता के परित्याग का पुरस्कार है, यह संचय करने का पुरस्कार है।”
प्रश्न 81. ब्याज दरों में भिन्नता के क्या कारण हैं?
What are the causes of difference in Interest Rates?
उत्तर– (1) जोखिम, (2) जमानत, (3) समय, (4) ऋण का उद्देश्य, (5) पूँजी की गतिशीलता, (6) असुविधा की मात्रा, (7) प्रबन्ध व्यय, (8) पूँजी की उत्पादकता, (9) बैंकिंग व साख सुविधायें, (10) आर्थिक स्थिति ।
प्रश्न 82. शुद्ध लाभ (आर्थिक लाभ) क्या है?
What is Economic Profit (Net Profit)?
(Meerut, 2004 Main)
उत्तर– आर्थिक लाभ (Economic Profit)- शुद्ध लाभ (वास्तविक लाभ या आर्थिक लाभ) वह लाभ होता है जो कि साहसी को केवल जोखिम उठाने के बदले मिलता है। कुल आगम में से स्पष्ट लागतों’ तथा ‘अस्पष्ट लागतों’ दोनों को घटाने पर जो शेष बचता है, उसे . ‘आर्थिक लाभ’ कहते हैं। संक्षेप में –
आर्थिक लाभ = कुल आगम – स्पष्ट लागतें – अस्पष्ट लागते
अथवा
= कुल लाभ – अस्पष्ट लागते
शुद्ध लाभ धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी । वास्तव में, लाभ ही एक ऐसा पुरस्कार होता है जोकि ऋणात्मक भी हो सकता है।
प्रश्न 83. सामान्य लाभ किसे कहते हैं?
What do you understand by Normal Profit?
उत्तर-किसी व्यवसाय में उद्यमी के लिये सामान्य लाभ, लाभ का वह स्तर है जो कि उद्यमी को उद्योग में कार्य करने तथा बनाये रखने हेतु पर्याप्त मात्र है।
प्रश्न 84. अतिरिक्तं या असाधारण या असामान्य लाभ किसे कहते हैं?
What do you understand by Super Profit?
उत्तर– असामान्य लाभ वह लाभ होता है जो एक साहसी को सामान्य लाभ के अतिरिक्त प्राप्त होता है। यह कुशल साहसियों को सीमान्त साहसी की तुलना में अपनी कुशलता के कारण अथवा बाजार की अपूर्णता के कारण प्राप्त होता है। सरल शब्दों में, जब ‘वास्तविक लाभ सामान्य लाभ से अधिक होता है तो दोनों का अन्तर असामान्य लाभ कहलाता है। पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में वास्तविक लाभ, सामान्य लाभ से अधिक हो सकता है, बराबर हो सकता है या उससे कम भी हो सकता है, परन्तु दीर्घकाल में वास्तविक लाभ, सामान्य लाभ के बराबर ही होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार के अन्तर्गत प्रायः सामान्य लाभ के साथ-साथ अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त होता है । वस्तुतः अतिरिक्त लाभ की मात्रा ही नई फर्मों को आकर्षित करती है।
प्रश्न 85. लाभ का मजदूरी सिद्धान्त क्या है?
What is Wage Theory of Profit?
उत्तर– लाभ का मजदूरी सिद्धान्त (Wage Theory of Profit) इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मुख्य रूप से प्रो० टॉजिग (Taussig) तथा डेवनपोर्ट (Davenport) ने किया था। इस सिद्धान्त का सार यह है कि, “साहस एक श्रम है; अतः लाभ भी एक प्रकार की मजदूरी है।” सिद्धान्त साहसी को उसकी बुद्धि, दूरदर्शिता एवं संगठन योग्यता के कारण एक श्रमिक के रूप में स्वीकार करता है। प्रो० टॉजिग के शब्दों में, “लाभ एक प्रकार के मानसिक श्रम एवं प्रयत्न का प्रतिफल है । यह श्रम वकीलों और न्यायाधीशों के मानसिक श्रम से भिन्न नहीं होता।. अतः साहसी का प्रतिफल (लाभ) मजदूरी का ही एक विशिष्ट रूप है।”
प्रश्न 86. लाभ का जोखिम सिद्धान्त क्या है?
What is the Risk Theory of Profit?
उत्तर– प्रो० हॉले के अनुसार, “किसी व्यवसाय का लाभ या उत्पत्ति का अवशेष, जो कि भूमि,श्रम एवं पूंजी के प्रतिफल के भुगतान करने के उपरान्त अवशिष्ट रहता है,प्रबन्ध अथवा समन्वय का प्रतिफल न होकर उस जोखिम अथवा उत्तरदायित्व का प्रतिफल है जिसे एक व्यवसाय को चलाने वाला वहन करता है।”
प्रश्न 87. ‘लाभ का अनिश्चितता वहन सिद्धान्त‘ क्या है?
What is the ‘Uncertainty Bearing Theory of Profit’?
उत्तर– प्रो० नाइट द्वारा प्रतिपादित इस सिद्धान्त के अनुसार, “लाभ अनिश्चितता को वहन करने का प्रतिफल है ।” अनिश्चितता का भी वर्गीकरण (i) बीमा योग्य जोखिम,जैसे-आग, चोरी या दुर्घटना आदि तथा (ii) बीमा अयोग्य जोखिम,जैसे-व्यापार या राजकीय नीति में परिवर्तन. मन्दी व तेजी लाभ के रूप में किया गया है।
प्रश्न 88. U-आकृति के तीन औसत लागत वक्रों के नाम बताइए।
Give name of the three U-shaped average cost curves.
(2006 B)
उत्तर– (i) सीमान्त लागत वक्र, (ii) औसत परिवर्तनशील लागत वक्र, (iii) औसत लागत वक्र।
प्रश्न 89. सीमान्त उत्पादकता के तीन रूप बताइए।
State three forms of Marginal Productivity.
(2006 Back)
उत्तर– (i) सीमान्त भौतिक उत्पादकता, (ii) सीमान्त आगम उत्पादकता, (iii) सीमान्त उत्पादकता का मूल्य।
प्रश्न 90. साधन अनुपात का अर्थ बताइए।
State the meaning of factor proportion.
(2007)
उत्तर– एक या अधिक स्थिर साधनों के साथ परिवर्तनशील साधनों के संयोग को अनुपात कहा जाता है। ‘अनुपात’ का विचार अल्पकालीन है क्योंकि अल्पकाल में समय इतना कम होता है कि उत्पत्ति के सभी साधनों को बढ़ाना सम्भव नहीं होता। अतः इस काल में केवल परिवर्तनशील साधनों का अधिकाधिक प्रयोग करके उत्पादन बढ़ाया जाता है । अतः स्पष्ट है कि अल्पकाल में फर्म में उत्पत्ति का पैमाना स्थिर रहता है जबकि साधन अनुपात बदला जा सकता है।
प्रश्न 91. कार्यानुसार मजदूरी के विचार को समझाइए।
Explain the concept of Piece Wages.
(2007)
उत्तर– जब एक श्रमिक को मजदूरी उसके द्वारा किये गए कार्य की मात्रा तथा उत्तमता के आधार पर दी जाती है, तो उसे कार्यानुसार मजदूरी कहते हैं। इसमें जो श्रमिकं जितना अधिक उत्पादन करता है, उसे उतनी ही अधिक मजदूरी प्राप्त होती है।
प्रश्न 92. एकाधिकार की मूलभूत दशाएँ बताइए।
Write essential conditions of Monopoly.
उत्तर– एकाधिकार की स्थिति को जन्म देने वाले प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं –
(1) कच्चे माल पर एकाधिकार (Monopoly over raw materials)- यदि किसी वस्तु के निर्माण के लिये आवश्यक कच्चा माल किसी एक फर्म के अधिकार में आ जाता है तो एकाधिकार का जन्म हो जाता है।
(2) विशिष्ट कॉपीराइट तथा पेटेण्ट (Specific Copyright and Patent)- कुछ फर्मों को कुछ ऐसे कॉपीराइट अथवा पेटेण्ट प्राप्त हो जाते हैं जिनका आर्थिक मूल्य बहत अधिक हो जाता है और जो दूसरी फर्मों के पास नहीं होते। ऐसे कॉपीराइंट तथा पेटेण्ट के कारण भी ये फर्मे एकाधिकार की स्थिति में आ जाती हैं।
(3) विधान के द्वारा (Through Legislation)- कुछ स्थितियों में विधान के द्वारा भी एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के लिए, भारत में रेलवे, दूरदर्शन डाक एवं तार, आदि के सम्बन्ध में भारत सरकार को एकाधिकार प्राप्त है।
(4) व्यवसाय का बड़ा आकार (Large Size of Business)- जिन फर्मों का आकार बहुत बड़ा होता है, उन्हें अपने बड़े आकार के कारण अनेक प्रकार की आन्तरिक तथा बाह्य. बचतें प्राप्त होती हैं और इन बचतों के कारण उनकी उत्पादन लागत इतनी कम हो जाती है कि वे धीरे-धीरे एकाधिकार की स्थिति में आ जाती हैं।
(5) अत्यधिक पूंजी की आवश्यकता (Need of Huge Capital)- कछ उद्योगों जैसे लोहा और इस्पात,जहाजरानी आदि की स्थापनो के लिये बहुत अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है जिससे नयी फर्मे उस उद्योग में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।
(6) उत्पादन की गुप्त विधि अथवा यन्त्रों का प्रयोग (Use of Secret Production Technique or Instruments)- यदि उत्पादक ऐसी उत्पादन तकनीक का प्रयोग करता है अथवा उसके पास उत्पादन की कोई ऐसी विधि है जिसका उसके प्रतियोगियों को ज्ञान नहीं है तो भी एकाधिकार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
(7) विशिष्ट व्यक्तिगत योग्यता (Extra-ordinary Personal Ability)- कभी-कभी कुछ फर्मे प्रबन्धकों तथा संचालकों की असाधारण व्यक्तिगत योग्यता एवं कुशलता के कारण भी एकाधिकार की स्थिति में आ जाती हैं। इसी प्रकार यदि कोई पेशेवर व्यक्ति जैसे डाक्टर, वकील, एक्टर आदि अपने व्यवसाय में असाधारण रूप से कुशाग्र है तो वह भी अपने क्षेत्र में एकाधिकार की स्थिति प्राप्त कर लेता है।
(8) वस्तु का सीमित बाजार (Limited Market of the Product)- जब किसी वस्तु का बाजार अत्यधिक सीमित होता है तो प्राय: कोई नई फर्म उस क्षेत्र में प्रवेश करने के लिये आकर्षित नहीं होती। इससे वर्तमान फर्म का उस क्षेत्र में एकाधिकार बना रहता है।
(9) व्यावसायिक संयोजन (Business Combinations)- जब विभिन्न व्यावसायिक फर्मे आपसी हितों की रक्षा करने के लिये तथा गलाकाट प्रतियोगिता का सामना करने के लिये . एक-दूसरे के साथ बड़े पैमाने पर संयोजन कर लेती हैं तो यह एकाधिकार का रूप ग्रहण कर लेता है।
(10) व्यापारिक ख्याति (Business Goodwill)- जब किसी वस्तु के उत्पादन में कोई फर्म बहुत यश या ख्याति प्राप्त कर लेती है, तो नए उत्पादक उस उद्योग में प्रवेश करने में डरने लगते हैं। इससे वर्तमान फर्म धीरे-धीरे एकाधिकारी स्थिति प्राप्त कर लेती है।
https://www.youtube.com/watch?v=ERwljYKx7vE
Business Economics Questions Answer
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