BCom 1st Year Business Economics Short Run and Long Run Coast Curves in Hindi
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प्रश्न 12-उत्पादन लागत सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं ? अल्पकाल तथा दीर्घकाल में लागत-उत्पादन सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
(2009)
अथवा
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में परम्परागत औसत लागत वक्र के व्यवहार की विवेचना कीजिए। चित्रों की सहायता से इसके आकार में होने वाले परिवर्तनों को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– अल्पकाल का आशय-अल्पकाल से आशय उस समय अवधि से होता है जिसमें उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन केवल परिवर्तनशील साधनों की सहायता से ही किया. जा सकता है तथा फर्म के स्थिर प्लाण्ट की क्षमता या आकार में परिवर्तन सम्भव नहीं होता है। इसके अन्तर्गत उत्पादन के पास इतना समय होता है कि वे उत्पादन की मात्रा को अपनी उत्पादन क्षमता की सीमा तक कम या अधिक कर सकते हैं, लेकिन उत्पादन क्षमता को परिवर्तित नहीं कर सकते । अतः अल्पकाल में स्थिर प्लाण्ट क्षमता के साथ परिवर्तनशील साधनों अल्पकों की सहायका आशयन केवल परिवता या आकार के उत्पादन कामता को पांसाधनों
जैसे—कच्चा माल, श्रम, शक्ति आदि में परिवर्तन करके उत्पादन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।
अल्पकाल में लागत–उत्पादन सम्बन्ध
अल्पकाल में उत्पादन की लागतों को स्थिर लागतें एवं परिवर्तनशील लागतें दो भागों में विभाजित किया जाता है तथा लागत-उत्पादन सम्बन्ध का अध्ययन औ
सत स्थिर लागत, औसत परिवर्तनशील लागत, औसत कुल लागत तथा सीमान्त लागत के सन्दर्भ में किया जाता है |
(1) औसत स्थिर लागत– कुल स्थिर लागत को उत्पादित इकाइयों की संख्या से भाग देने पर औसत स्थिर लागत प्राप्त होती है
औसत स्थिर लागत (AFC) = कुल स्थिर लागत/उत्पादित इकाइयों की संख्या
चूँकि कुल स्थिर लागत उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर समान रहती है, इसलिए उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ औसत स्थिर लागत घटती जाती है । औसत स्थिर लाग
त वक्र हमेशा बायें से दायें नीचे की ओर झुका हुआ रहता है । इसे निम्न सारणी तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
वस्तु की इकाइयाँ | कुल स्थिर लागत | औसत स्थित लागत |
1 | 100 | _ |
2 | 100 | 50 |
3 | 100 | 33 |
4 | 100 | 25 |
5 | 100 | 20 |
(2) औसत परिवर्तनशील लागत– इसे ज्ञात, करने के लिये वस्तु की कुल परिवर्तनशील लागत । को उत्पादित इकाइयों की संख्या से भाग 4 देकर दिया जाता है अर्थात् औसत परिवर्तन
शील लागत को उत्पादित इकाइयों की संख्या से भाग देकर दिया जाता है अर्थात्
औसत परिवर्तनशील लागत
= कुल परिवर्तनशील लागत/उत्पादित वस्तु की इकाइयाँ
उत्पादित वस्तु की इकाइयाँ उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ औसत 12+ परिवर्तनशील लागत एक निश्चित बिन्दु तक तो गिरती है, लेकिन उस बिन्दु के पश्चात् बढ़ना शुरू हो जाती है । इसी कारण औसत परिवर्तनशील लागत वक्र U आकार वाला हो जाता है।
(3) औसत कुल लागत – औसत लागत ज्ञात करने के लिये कुल लागत को उत्पादित इकाइयों की संख्या से भाग कर दिया जाता है अर्थात्
औसत कुल लागत = कुल लगत/उत्पादित इकाइयों की संख्या
उत्पादन में वृद्धि के साथ- साथ एक निश्चित सीमा तक औसत कुल लागत घटती है, परन्तु इसके पश्चात् बढ़ना शुरू हो जाती है। जिस बिन्दु पर औसत कुल लागत न्यूनतम होती है,उसे ही उत्पादन का आदर्श बिन्दु कहा जाता है।
(4) सीमान्त लागत– एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन करने से, कुल लागत में जो वृद्धि होती है, उसे ही सीमान्त लागत कहा जाता है। इसे निम्न प्रकार ज्ञात किया जा सकता है-…
सामान्त लागत = कुल लागत में परिवर्तन/उत्पादित इकाइयों की संख्या में परिवर्तन
सीमान्त लागत का सम्बन्ध कुल लागत से होता है, अतः एक निश्चित सीमा तक तो.. सीमान्त लागत घटती जाती है, परन्तु उसके पश्चात् वह बढ़ना शुरू हो जाती है।
अल्पकालीन उत्पादन- मात्रा लागत वक्र
अल्पकालीन औसत लागतों तथा उत्पादन मात्रा के सम्बन्ध को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
चित्र में X-अक्ष पर उत्पादन तथा Y-अक्ष पर लागतों को दर्शाया गया है। रेखाचित्र से . लागत वक्रों की निम्नलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं
(1) AFC, औसत स्थायी लागत रेखा है । उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ यह लगातार नीचे गिरती गयी है।
(2) औसत परिवर्तनशील लागत वक्र MC (AVC), औसत कुल लागत वक्र (ATC): तथा सीमान्त लागत व
क्र (MC), उत्पादन में वृद्धि होने पर एक निश्चित सीमा तक नीचे गिरते गए हैं तथा उसके बाद से बढ़ना शुरू हो जाते हैं। इसी कारण इन तीनों वक्रों की आकृति लागत U आकार वाली है।
(3) जब तक औसत लागत वक्र (ATC) गिरता जाता है,सीमान्त लागत (MC) वक्र भी
गिरता
हैऔर यह ATC के नीचे रहता है, परन्तु जैसे ही ATC वक्र ऊपर की ओर उठना आरम्भ होता है, MC वक्र भी तेजी से बढ़ना शुरू हो जाता है।
(4) MC वक्र, ATC वक्र को उस बिन्दु पर काटता है, जिस पर ATC न्यूनतम होती हैं इसे ही फर्म का अनुकूलतम उत्पादन स्तर कहा जाता है।
(5) जब उत्पादन में वृद्धि होती है, तो AVC दोनों ही लागतें प्रारम्भ में गिरती हैं, लेकिन । बाद में बढ़ना शुरू कर देती हैं । परन्तु ATC की तुलना में AVC पहले बढ़ना शुरू कर देती हैं |
(6) ATC में AVC की तुलना में अधिक परिवर्तन होते हैं, इसी कारण ATC वक्र AVC वक्र की तुलना में अधिक चपटा होता है।
दीर्घकाल में लागत–उत्पादन मात्रा सम्बन्ध
दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। इसमें फर्म अपने उत्पादन को किसी भी सीमा तक परिवर्तित कर सकती है। उत्पादन को बढ़ाने के लिये फर्म अपनी विद्यमान उत्पादन क्षमता का विस्तार कर सकती है तथा नया संयन्त्र भी स्थापित कर सकती हैं, चूंकि इस काल में सभी लागतें परिवर्तनशील होती हैं, अतः दीर्घकाल में केवल औसत लागत तथा सीमान्त लागत का ही महत्त्व रह जाता है। दीर्घकालीन लागत वक्र भी अल्पकालीन लागत वक्रों की भाँति U आकार वाले ही होते हैं, परन्तु इनकी आकृति अपेक्षाकृत चपटी होती है।
दीर्घकालीन औसत लागत वक्र
अल्पकाल में समय कम होने के कारण प्लाण्ट में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता. जबकि दीर्घकाल में प्लाण्ट में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है। दीर्घकाल में एक फर्म अपनी आवश्यकतानुसार अनेक स्तरों पर उत्पादन कर सकती है, अतः एक फर्म द्वारा उत्पादन की मात्रा में जितनी बार परिवर्तन किया जाता है, उतनी ही बार उस फर्म . के लिये नए अल्पकालीन लागत. वक्र प्राप्त होंगे। रेखाचित्र के द्वारा इस स्थिति “को स्पष्ट किया जा सकता. है |
इस रेखाचित्र में एक ‘फर्म के विभिन्न अल्पकालीन औसत लागत वक्र SACI,E SAC2, SAC3, SACA... SAC, अंकित किये गए हैं। इन सभी अल्पकालीन औसत लागत वक्रों को उनके तलों से स्पर्श करता हुआ खींचा गया वक्र औसत लागत वक्र (LAC) कहलाता है। LAC सभी अल्पकालीन औसत लागत वक्रों को उनके न्यूनतम मूल्य पर स्पर्श नहीं करता । यह वक्र उत्पादन के पैमाने में परिवर्तन के कारण औसत लागतों के परिवर्तन को स्पष्ट करता है। इस वक्र से प्रत्येक उत्पादन स्तर की न्यूनतम लागत का भी ज्ञान प्राप्त होता है। दीर्घकाल में एक फर्म का अनुकूलतम उत्पादन स्तर वह होता है जहाँ उसकी दीर्घकालीन औसत लागतें न्यूनतम होती हैं। इस स्तर पर SAC वक्र का न्यूनतम बिन्दु LAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु को स्पर्श करता है । LAC वक्र को लपेटने वाला वक्र (Envelope curve) भी कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा सभी अल्पकालीन वक्रों को ढक लिया जाता है।
भविष्य में उत्पादन को अधिकतम तथा लागत को न्यूनतम बनाने के लिये फर्म ऐसे प्लाण्टों का चयन तथा निर्माण करना चाहती है जोकि कुशलतम हों। चूंकि दीर्घकालीन औसत लागत वक्र न्यूनतम लागत पर उत्पादन की सर्वश्रेष्ठ सम्भावनाओं को प्रकट करता है, इसलिये इसको आयोजन वक्र (Planning curve) भी कहते हैं।
दीर्घकालीन सीमान्त लागत वक्र
दीर्घकाल में एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से कुल लागत में जो वृद्धि होती है, उसे दीर्घकालीन सीमान्त लागत कहते हैं । दीर्घकालीन सीमान्त लागत (LMC) तथा दीर्घकालीन औसत लागत में ठीक उसी प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता
है जैसा कि अल्पकालीन सीमान्त लागत (SMC) तथा अल्पकालीन औसत लागत (SAC) में होता है। LMC रेखा अंग्रेज़ी के U आकार की होती है।
रेखाचित्र के द्वारा स्पष्ट है कि जहाँ कहीं भी SAC वक्र LAC वक्र को स्पर्श करता है, वहाँ उससे सम्बन्धित SMC तथा LMC आपस में बराबर होते हैं। जब तक LAC वक्र नीचे गिरता रहता है तब तक SMC तथा LMC की यह समानता SAC तथा LAC वक्रों के स्पर्श बिन्दु से नीचे होती है। प्लाण्ट के न्यूनतम आकार पर जहाँ LAC तथा SAC दोनों अपने न्यूनतम बिन्दुओं पर परस्पर स्पर्श करते हैं | वहाँ LMC = SMC = LAC = SAC की स्थिति प्राप्त होती है । इस प्रकार LAC तथाLMC में वहीं सम्बन्ध पाया जाता है । जो SAC तथा SMC में पाया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Questions)
प्रश्न –अल्पकालीन लागत विश्लेषण का प्रबन्धकीय निर्णय में क्या महत्त्व होता है ?
उत्तर– अल्पकालीन लागत विश्लेषण,व्यावसायिक अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है। किसी भी फर्म के उत्पादन, लागत तथा मूल्य सम्बन्धी निर्णय में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। – प्रबन्धकीय निर्णय में, इस विश्लेषण के महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं |
(1) अल्पकाल में उत्पादक विभिन्न प्रतियोगी दशाओं में, इस विश्लेषण की सहायता से उत्पादन मात्रा तथा वस्तु का मूल्य निर्धारित कर सकता है । प्रत्येक उत्पादक उस बिन्दु पर उत्पादन करता है जहाँ पर उसकी सीमान्त लागत तथा सीमान्त आगम बराबर होती है ।
(2) अल्पकाल में यदि किसी फर्म को हानि हो रही है तो वह इस विश्लेषण की सहायता . से यह निर्णय ले सकती है कि किस बिन्दु तक उत्पादन कार्य चालू रखा जाए? फर्म उस बिन्दु तक उत्पादन कार्य चालू रखेगी जब तक कि मूल्य, औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक रहता है।
(3) यदि उत्पादन तकनीक में परिवर्तन हो जाता है, तो यह विश्लेषण यह निर्णय लेने . में सहायक होता हैं कि नवीन तकनीक को अपनाया जाए या नहीं।
(4) अल्पकालीन विश्लेषण यह निर्णय लेने में सहायक होता है कि उत्पादन का अनुकूलतम स्तर क्या होगा अर्थात् कितना उत्पादन करने पर उसकी औसत कुल लागत न्यूनतम होगी?
(5) वर्तमान संयत्रों की सहायता से किसी नयी उत्पाद मात्रा को प्रारम्भ करने अथवा किसी वर्तमान उत्पाद मात्रा को त्यागने के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिये भी यह विश्लेषण महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 3-अल्पकालीन औसत लागत वक्र के U आकार वाला होने के कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– अल्पकालीन औसत लागत वक्र के U आकार का होने के लिए निम्न कारण उत्तरदायी हैं –
(1) औसत स्थिर लागत तथा औसत परिवर्तनशील लागतों पर आधारित – अल्पकालीन औसत लागत वक्र के U आकार वाला होने का प्रमुख कारण यह होता है कि यह औसत स्थिर लागत (AFC) तथा औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) का योग होता है। जैसे-जैसे उत्पादन में वृद्धि होती है, AFC तथा AVC घटनी शुरू हो जाती हैं, इसी कारण प्रारम्भ में औसत लागत भी घटती जाती हैं, किन्तु एक बिन्दु के पश्चात्. उत्पादन में वृद्धि करने पर AFC ” तो गिरती है, परन्तु AVC में वृद्धि होने लगती है तथा परिणामस्वरूप औसत लागत वक्र भी ऊपर की तरफ उठने लगता है । AVC की वृद्धि दर, AFC के घटने की दर से अधिक होती है, इसी कारण कुल प्रभाव AC वक्र के ऊपर की तरफ उठने के रूप में आता है।
(2) परिवर्तनशील अनुपातों के नियम पर आधारित– अल्पकाल में एक स्थिर साधन के साथ, अन्य साधनों में वृद्धि करने पर उत्पादन परिवर्तनशील अनुपातों के नियम के अनुसार होता है। प्रारम्भ में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होने के कारण औसत लागतें कम होने लगती हैं, जिससे औसत लागत वक्र नीचे की तरफ को गिरने लगता है। यह स्थिति कुछ सीमा तक बनी रहती हैं तथा फिर समान लागत का नियम लागू हो जाता है। एक बिन्दु के पश्चात् जब स्थिर साधनों की पूर्ण क्षमता का उपयोग होने लगता है तब उत्पादन पर घटते प्रतिफल या बढ़ती लागत का नियम लागू हो जाता है, जिससे औसत लागत वक्र ऊपर की ओर उठने लगता है। इन तीनों नियमों के लागू होने के कारण ही औसत लागत वक्र U आकार वाला हो जाता है।
(3) आन्तरिक बचतों का प्रभाव– प्रारम्भ में उत्पादन में वृद्धि होने पर फर्म को अनेक आन्तरिक बचतें प्राप्त होती हैं जिससे औसत लागत वक्र नीचे गिरने लगता है। लेकिन एक बिन्दु के पश्चात् उत्पादन में वृद्धि होने पर इन बचतों का प्रभाव कम हो जाता है तथा औसत लागत वक्र ऊपर की तरफ उठने लगता है।’
प्रश्न 4- दीर्घकालीन औसत लागत वक्र की विशेषताएँ बताइए। उत्तर-दीर्घकालीन औसत लागत वक्र (LAC) की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) दीर्घकालीन औसत लागत वक्र,विभिन्न अल्पकालीन औसत लागत वक्रों से मिलकर बनता है ।यह सभी अल्पकालीन वक्रों को ढक लेता है। इसीलिए इसे आवरण वक्र भी कहा जाता है।
(2) LAC वक्र सदैव अल्पकालीन लागत वक्रों (SACs) के नीचे रहता है, क्योंकि दीर्घकालीन औसत लागत, अल्पकालीन औसत लागत से हमेशा कम ही रहती हैं।
(3) LAC वक्र SAC वक्रों को केवल स्पर्श करता है, उन्हें काट नहीं सकता। इसका प्रमुख कारण यह है कि अल्पकाल की तुलना में दीर्घकाल में उत्पादन की अधिक बचतें प्राप्त करना सम्भव होता है ।
(4) LAC वक्र को नियोजन वक्र भी कहा जाता है क्योंकि यह न्यूनतम लागत पर उत्पादन की सर्वश्रेष्ठ सम्भावनाओं को व्यक्त करता है।
(5) LAC का आकार भी SAC वक्रों की भाँति U आकार का होता है, परन्तु यह SAC वक्रों की तुलना में अधिक चपटा होता है। LAC वक्र के चपटा होने का प्रमुख कारण यह है कि दीर्घकाल में औसत लागत में परिवर्तन की दर, अल्पकाल की तुलना में धीमी होती है तथा दीर्घकाल में अपव्ययों की भी रोकथाम की जा सकती है।
(6) यह आवश्यक नहीं होता कि LAC वक्र भी SAC वक्रों को उनके न्यूनतम बिन्दु पर ही स्पर्श करें। अनुकूलतम उत्पादन के स्तर पर ही LAC वक्र एक SAC वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर स्पर्श करता है।
(7) LAC वक्र का न्यूनतम बिन्दु फर्म के अनुकूलतम आकार तथा उत्पादन की न्यूनतम औसत लागत को व्यक्त करता है।
(8) LAC वक्र प्रत्येक सम्भावित उत्पादन मात्रा के लिये न्यूनतम सम्भावित लागत को भी व्यक्त करता है।
(9) LAC वक्र, क्षैतिज सरल रेखा के रूप में भी हो सकता है, यदि उद्योग में उत्पत्ति समता नियम लागू हो रहा हो।
प्रश्न 5- दीर्घकालीन औसत लागत वक्रों की प्रबन्धकीय निर्णयों में उपादेयता (महत्त्व) का विवेचन कीजिए। .
उत्तर– दीर्घकालीन लागत विश्लेषण का प्रबन्धकीय निर्णयों में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इसके प्रबन्धकीय उपयोग को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) उत्पादन के अनुकूलतम आकार के निर्धारण में सहायक – इस वक्र की सहायता से फर्म के द्वारा उस उत्पादन मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है जिस पर उसकी औसत लागतः । न्यनतम हो । अतः यह वक्र उत्पादन के अनुकूलतम आकार के निर्धारण में सहायक होता है।
(2) संयन्त्र के अनुकूलतम आकार के निर्धारण में सहायक यदि कोई फर्म नया संयन्त्र चाहती है अथवा पुराने संयन्त्र का विस्तार करना चाहती है, तो प्रबन्धक LAC वक्र की सहायता से अनुकूलतम आकार के संयन्त्र का निर्धारण कर सकता है । दीर्घकाल में फर्म की रुचि केवल न्यूनतम लागत पर उत्पादन करने में ही नहीं होती, बल्कि इस बात में होती है कि वह अपने उत्पादन को माँग के अनुरूप समायोजित करके अधिकतम लाभ कमा सके। व्यवहार में उसे अपने उत्पादन को माँग के अनुरूप समायोजित करने के लिये अनुकूलतम उत्पादन स्तर से कम या अधिक उत्पादन करना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में उसके समक्ष विभिन्न आकार वाले वैकल्पिक संयन्त्र हो सकते हैं। LAC वक्र इस स्थिति में सर्वोत्तम आकार वाले संयन्त्र के चुनाव में प्रबन्ध की सहायता करता है।
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