BCom 1st Year Business Economics: An Introduction in Hindi

BCom 1st Year Business Economics: An Introduction in Hindi

 

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Business Economics: An Introduction
Business Economics: An Introduction

 

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र : एक परिचय

Business Economics An Introduction

प्रश्न 1-“प्रबन्ध को निर्णय लेने और भावी नियोजन में सुविधा प्रदान करने के लिए आर्थिक सिद्धान्तों का व्यावसायिक व्यवहार के साथ एकीकरण व्यावसायिक अर्थशास्त्र है।स्पष्ट कीजिए। 

अथवा 

(2004; 06) व्यावसायिक अर्थशास्त्र सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में फर्मों के आचरण का अध्ययन है।स्पष्ट कीजिए और व्यावसायिक अर्थशास्त्र की विशेषतायें बताइये व्यावसायिक अर्थशास्त्र की उपयोगिता पर भी प्रकाश डालिये।

(2005, 2009)

 

उत्तरअर्थशास्त्र का सम्बन्ध आर्थिक सिद्धान्तों (Economic Theories) से होता है । आधुनिक युग में व्यापार एवं वाणिज्य के बढ़ते हुए आकार एवं विषम आर्थिक परिस्थितियों में एक व्यवसाय प्रबन्धक को यह ज्ञान होना नितान्त जरूरी हो गया है कि किसी व्यावसायिक फर्म की आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में अर्थशास्त्र के सिद्धान्त किस प्रकार प्रयोग किये जा सकते हैं और ये सिद्धान्त किस प्रकार प्रबन्ध को निर्णय लेने एवं भावी नियोजन में सहायक हो सकते हैं। व्यवसाय-प्रबन्धक की इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए ही व्यावसायिक अर्थशास्त्र का जन्म हुआ है। परम्परागत (सामान्य) अर्थशास्त्र में उपभोग, माँय, पूर्ति,मूल्य,प्रतियोगिता,वितरण आदि के सिद्धान्तों का निर्धारण किया जाता है तथा व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत इन सिद्धान्तों को व्यापार-प्रबन्ध में लागू किया जाता है। प्रबन्ध विज्ञान के विकास के साथ-साथ अब इस शास्त्र के लिये ‘प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र (Managerial Economics) शब्द का प्रयोग बढ़ता जा रहा है । इसे ‘फर्म का अर्थशास्त्र’ (Economics of the Firm) एवं फर्म का सिद्धान्त’ (Theory of the Firm) भी कहते हैं परन्तु ये नाम अधिक प्रचलित नहीं हैं।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Business Economics) Business Economics: An Introduction

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र सामान्य अर्थशास्त्र की एक व्यावहारिक शाखा है जिसे प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र (Managerial Economics) के नाम से भी जाना जाता है। सामान्य अर्थशास्त्र जहाँ निरपेक्ष आर्थिक सिद्धान्तों की व्याख्या करता है वहीं व्यावसायिक अर्थशास्त्र व्यावहारिक फर्मों के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों आचरणों का विवेचन करता है। दूसरे शब्दों में, व्यावसायिक अर्थशास्त्र में सामान्य अर्थशास्त्र के निरपेक्ष सिद्धान्तों को वास्तविक एवं व्यावहारिक परिस्थितियों के अनुरूप ढाला जाता है और इन्हें व्यावसायिक फर्मों की समस्याओं के समाधान के लिए और भावी नियोजन के लिए प्रयोग किया जाता है । व्यावसायिक अथवा प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं–

स्पेन्सर एवं सैलिगमैन के अनुसार, प्रबन्ध को निर्णय लेने और भावी नियोजन में सुविधा प्रदान के लिए आर्थिक सिद्धान्तों का व्यावसायिक व्यवहार के साथ एकीकरण व्यावसायिक अर्थशास्त्र है।”

 

 

मैकनेअर एवं मेरियम के अनुसार, “व्यावसायिक परिस्थतियों के विश्लेषण हेतु आर्थिक . मॉडलों का उपयोग ही व्यावसायिक अर्थशास्त्र में निहित है।”

 

जेम्स बेट्स एवं पार्किन्सन के अनुसार, “व्यावसायिक अर्थशास्त्र सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में फर्मों के आचरण का अध्ययन है।”

 

जोल डीन के अनुसार, “प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र का उद्देश्य यह दर्शाना है कि आर्थिक विश्लेषण का उपयोग किस तरह से व्यावसायिक नीतियों के निर्धारण में किया जा सकता है ।” – हेन्स, मोट एवं पॉल के अनुसार, प्रबन्धकीय अर्थशास्त्र निर्णय लेने में प्रयोग किया जाने वाला अर्थशास्त्र है । यह अर्थशास्त्र की वह विशेष शाखा है जो विशुद्ध सिद्धान्तों तथा प्रबन्धकीय व्यवहार के बीच की खाई को पाटती है।”

 

उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि व्यावसायिक अर्थशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसमें आर्थिक विश्लेषण (अर्थशास्त्र) के सिद्धान्तों का व्यावसायिक प्रबन्ध की समस्याओं के समाधान करने तथा नीति निर्धारण हेतु प्रयोग किया जाता है । यह विज्ञान अर्थशास्त्र तथा व्यावसायिक प्रबन्ध की सीमा पर स्थित है और अर्थशास्त्र एवं व्यावसायिक प्रबन्ध के बीच एक पुल का कार्य करता है । संक्षेप में,व्यावसायिक अर्थशास्त्र के माध्यम से व्यवसाय प्रबन्धक सरलतापूर्वक व्यवसाय की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन एवं नियोजन कर सकता है।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र की विशेषताएँ

(Characteristics of Business Economics) Business Economics: An Introduction

 

(1) सूक्ष्म अर्थशास्त्रीय स्वभाव (Micro Economic Character)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र वस्तुतः सूक्ष्म अर्थशास्त्र की मान्यता पर आधारित है क्योंकि इसमें एक फर्म की समस्याओं (जैसे-उत्पादन की मात्रा, मांग का पूर्वानुमान, लागत एवं कीमत, लाभ-नियोजन, पूंजी-प्रबन्ध आदि) पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

 

(2) निर्देशात्मक प्रकृति (Prescriptive Nature)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति वर्णनात्मक न होकर निर्देशात्मक होती है । इसके अन्तर्गत आर्थिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन नहीं किया जाता,वरन् यह अध्ययन किया जाता है कि इन सिद्धान्तों का प्रयोग व्यावसायिक समस्याओं के समाधान के लिए किस प्रकार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, अर्थशास्त्र में जब माँग के नियम का अध्ययन किया जाता है, तब यह बताया जाता है कि कीमत बढ़ने पर माँग घटती है और कीमत घटने पर माँग बढ़ती है परन्तु यहाँ यह नहीं स्पष्ट किया जाता कि माँग में जो परिवर्तन होता है,वह उचित है अथवा अनुचित । इसके विपरीत व्यावसायिक अर्थशास्त्र में मूल्य वृद्धि से माँग में कमी अथवा मूल्य में कमी से माँग में वृद्धि का फर्म पर प्रभाव देखकर आवश्यक निर्देश दिया जाता है कि फर्म को मूल्य में वृद्धि करनी चाहिए अथवा नहीं।

 

(3) व्यापक अर्थशास्त्र का समुचित महत्त्व (Adequate Importance to Macro Economics)-यद्यपि व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति सूक्ष्म अर्थशास्त्र की होती है, परन्तु इसके अध्ययन में व्यापक अर्थशास्त्र की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। व्यापक अर्थशास्त्र के अध्ययन से एक व्यवसाय प्रबन्धक को उस सम्पूर्ण वातावरण (बाह्य शक्तियों) का ज्ञान होता है जिसमें उसकी फर्म को कार्य करना होता है। व्यापक अर्थशास्त्र के वे सभी पहलू जो फर्म विशेष को प्रभावित करते हैं, व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अध्ययन के भाग माने जाते हैं। अतः एक प्रबन्धक को व्यापक परिवेश में सरकार की श्रम नीति, कर नीति, औद्योगिक नीति,विदेशी व्यापार नीति, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, राष्ट्रीय आय विश्लेषण एवं व्यापार चक्र आदि का भी ज्ञान होना अनिवार्य है।

(4) फर्म के सिद्धान्त के अध्ययन से सम्बन्धित (Related to the study of Theory of Firm)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र में विशेष रूप से. फर्म के सिद्धान्त का अध्ययन होता है। इसके अन्तर्गत व्यक्तिगत फर्मों को माँग, पूर्ति, उत्पादन, लागत, मूल्य, पूँजी-प्रबन्ध आदि समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें मख्यत: इस बात पर जोर दिया जाता है कि एक व्यक्तिगत फर्म अपने सीमित साधनों का किस प्रकार सर्वोत्तम उपयोग कर सकती है।

 

(5) प्रबन्धकीय स्तर पर निर्णय (Decision-making at Managerial Level) व्यावसायिक अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य नीति-निर्धारण एवं भावी नियोजन में प्रबन्ध की

सहायता करना है। वास्तविक निर्णय तो स्वयं प्रबन्धकों को ही प्रबन्ध के विभिन्न स्तर पर लेने . होते हैं, व्यावसायिक अर्थशास्त्र तो निर्णय लेने के लिए आवश्यक सूचनाएँ एवं समंक उपलब्ध कराने का कार्य करता है।

(6) समन्वयात्मक प्रकृति (Co-ordinating Nature)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने का गुण विद्यमान है। यह व्यावसायिक प्रबन्धकों व्यवसाय की आर्थिक समस्याओं का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक हल उपलब्ध करवाता

(7) फलमूलक एवं व्यावहारिक दृष्टिकोण (Pregmatic and: Applied Approach)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों के प्रत्येक पहलू को व्यावहारिक धरातल पर देखा जाता है और व्यावसायिक फर्मों की दैनिक समस्याओं का व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत किया जाता है।

(8) व्यावसायिक अर्थशास्त्र विज्ञान भी है तथा कला भी (Both Science and Art)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र का उपयोग व्यवस्थित ज्ञान के रूप में किया जाता है, अतः यह एक विज्ञान है। इसमें वस्तुस्थिति का अध्ययन किया जाता है, अतः यह वास्तविक विज्ञान . है एवं भावी सफलता के लिए आदर्श निर्धारित किया जाता है, अत: यह आदर्श विज्ञान भी है। इसके अन्तर्गत यह भी बताया जाता है कि अमुक समस्या का समाधान किस प्रकार किया .. जाना चाहिए, अतः यह कला भी है।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र का महत्त्व (उपयोगिता)

(Importance or Utility of Business Economics) Business Economics: An Introduction

 

किसी भी व्यवसाय की सफलता प्रायः उसके प्रबन्ध द्वारा सही समय पर लिये गये सही निर्णयों पर निर्भर करती है। आधुनिक औद्योगिक युग में व्यावसायिक क्रियाएँ जोखिम और अनिश्चितता का पर्याय बनकर रह गयी हैं। अतः कुशल प्रबन्ध के लिए यह आवश्यक है कि सम्भावित जोखिम और अनिश्चितताओं को न्यूनतम करने के सही समय पर उचित निर्णय करें।

 

व्यवसाय से जुड़ी विभिन्न आर्थिक समस्याओं के निराकरण हेतु समुचित निर्णय लेने में। व्यावसायिक अर्थशास्त्र का अपना एक विशिष्ट महत्त्व है जिसे निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से सरलतापूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है

 

(1) नियोजन एवं निर्णयन में सहायक (Helpful in Planning and Decision making) – किसी भी व्यवसाय की सफलता के लिए सही नियोजन एवं निर्णयन अत्यन्त आवश्यक है जिनका ज्ञान एवं बोध व्यावसायिक अर्थशास्त्र भली-भांति कराता है । व्यावसायिक अर्थशास्त्र फर्म की भूतकालीन घटनाओं एवं परिणामों का विश्लेषण करके नियोजन के लए आधार तैयार करता है तथा भविष्य के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाता है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र फर्म के सम्बन्ध में आवश्यक निर्णय लेने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है । फर्म के लिए माँग, उत्पादन, लागत मूल्य निर्धारण जैसे महत्वपूर्ण निर्णय व्यावसायिक अर्थशास्त्र की सहायता से ही लिये जाते हैं।

 

(2) अनिश्चितता को कम करने में सहायक (Helpful in lessening Uncertainty)– सामान्यतया प्रत्येक व्यावसायिक प्रबन्धक को अनिश्चितता के वातादाद में काम करना पड़ता है। यद्यपि इन अनिश्चितताओं को समाप्त तो नहीं किया जा सकता परन्त व्यावसायिक अर्थशास्त्र इन अनिश्चितताओं एवं जोखिमों को न्यूनतम करने में माला भूमिका का निर्वाह करता है।

 

(3) व्यावसायिक नीतियों को निर्धारित करने में सहायक (Helpful in Determinine Business Policies)- व्यवसाय के समुचित नियोजन, संचालन, नियन्त्रण एवं समन्वय टेट प्रत्येक व्यावसायिक प्रबन्धक को विभिन्न व्यावसायिक नीतियों को निर्धारित करना पड़ता है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र इन व्यावसायिक नीतियों के निर्धारण का मार्ग प्रशस्त करता है।

 

(4) आर्थिक सम्बन्धों का अनुमान लगाना (Estinating Economic Relationships) वस्तु की माँग की कीमत-लोच, आय-लोच, तिरछी लोच (aroes elasticity), लागत-उत्पादन सम्बन्ध (Cost-output relationship) आदि आर्थिक सम्बनों का अनुमान लगाने में व्यावसायिक अर्थशास्त्र महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। इन आर्थिक सम्बन्धों का उपयोग व्यावसायिक पूर्वानुमानों के लिए किया जाता है।

 

(5) बाह्य वातावरण को समझने में सहायक (Helpful in Understanding External Environment) व्यावसायिक अर्थशास्त्र व्यावसायिक प्रबन्धक को उस बह वातावरण को समझने तथा व्यवसाय को उसके साथ समायोजित करने का मार्ग बताता है जिसमें एक फर्म को कार्य करना पड़ता है । उदाहरणार्थ-व्यापार चक्र,राष्ट्रीय आय में उतारचढाव विदेशी व्यापार, करारोपण, श्रम कानून, श्रम सम्बन्ध, एकाधिकार विरोधी अधिनियम, औद्योगिक लाइसेन्सिग, मूल्य नियन्त्रण आदि के सम्बन्ध में सरकारी नीतियों का व्यवसाय पर क्या प्रभाव पड़ेगा तथा फर्म की नीतियों को किस प्रकार इनके साथ समायोजित किया जाए आदि को जानकारी व्यावसायिक अर्थशास्त्र ही उपलब्ध कराता है। .

 

(6) सिद्धान्त एवं व्यवहार के मध्य समन्वय स्थापित करने में सहायक (Helphialis Co-ordination between Theory and Practice)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र में परम्परागत सेद्धान्तिक अवधारणाओं एवं वास्तविक व्यवसाय-व्यवहार के बीच तालमेलबेटाकर प्रबन्धकीय निर्णयों को वास्तविकता के निकट लाया जाता है।

 

(7) प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रेरित करना (Inducing the Social Responsibility of Management)…. व्यावसायिक अर्थशास्त्र प्रबन्ध को उसके सामाजिक उत्तरदायित्व का भी अहसास कराता है। यह प्रबन्ध को ऐसी आर्थिक नीतियाँ अपनाने के लिए प्रेरित करता है जिससे राष्ट्र के उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके, समृद्धि में श्रमिकों को यथोचित हिस्सा मिलता रहे, रोजगार के अवसर बढ़े, उपभोक्ताओं को अधिकतम सन्तुष्टि मिल सके तथा राष्ट्र का आर्थिक विकास हो सके।

 

प्रश्न 2. व्यावसायिक अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए। यह परम्परागत अशा से किस प्रकार से भिन्न है? 

अथवा 

(2004 lisack) व्यावसायिक अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए। इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए। यह परम्परागत अर्थशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है ? 

अथवा

 “व्यावसायिक अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धान्तों का व्यवसाय प्रबन्ध में प्रयोग है।” समझाइये और परम्परागत अर्थशास्त्र एवं व्यावसायिक अर्थशास्त्र में अन्तर कीजिये। . 

(Meerut 2005 Back)

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति

(Nature of Business Economics) Business Economics: An Introduction

व्यावसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति का अध्ययन करने के लिए हमें यह देखना होगा कि यह विज्ञान है या कला अथवा दोनों । यदि विज्ञान है तो यह वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान ।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र, विज्ञान के रूप में विज्ञान, ज्ञान की वह शाखा है जिसमें क्रमबद्ध तरीके से किसी तथ्य के कारण एवं परिणाम के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। .. व्यावसायिक अर्थशास्त्र एक विज्ञान है क्योंकि-

 

(i) व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आर्थिक तथ्य क्रमबद्ध तरीके से एकत्र किये  जाते हैं तथा उनका वर्गीकरण एवं विश्लेषण भी किया जाता है,

(ii) इसमें आर्थिक नियमों एवं सिद्धान्तों का प्रयोग किया जाता है,

(ii) व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आर्थिक घटनाओं के कारणों एवं परिणामों  के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है,

(iv) व्यावसायिक अर्थशास्त्र के नियम एवं सिद्धान्त प्रायः सार्वभौमिक एवं सर्वव्यापक  होते हैं।

 

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि व्यावसायिक अर्थशास्त्र, भौतिकशास्त्र अथवा रसायन विज्ञान की भाँति स्थिर एवं निश्चित नहीं है । वस्तुतः यह एक सामाजिक विज्ञान है क्योंकि इसकी विषय-सामग्री उपभोक्ता एवं फर्म के व्यवहार का अध्ययन है।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र, वास्तविक विज्ञान के रूप में वास्तविक विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो केवल वास्तविक स्थिति का अध्ययन करती है, समस्या के समाधान के लिए कोई सुझाव नहीं देती। इस आधार पर व्यावसायिक अर्थशास्त्र, वास्तविक विज्ञान की श्रेणी में आता है क्योंकि इसमें फर्म की उत्पादन क्षमता, लागत, लाभप्रदता आदि अनेक पहलुओं की वास्तविक स्थिति की जानकारी उपलब्ध रहती है।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र, आदर्श विज्ञान के रूप में आदर्श विज्ञान से अभिप्राय विज्ञान की एक ऐसी शाखा से है जिसका सम्बन्ध नीति निर्धारण एवं दिशा निर्देश से है। इसके अन्तर्गत ‘क्या होना चाहिये’ तथा ‘क्या नहीं होना चाहिये’ का अध्ययन किया जाता है। इस आधार पर व्यावसायिक अर्थशास्त्र निश्चित रूप से एक आदर्श विज्ञान है क्योंकि व्यावसायिक अर्थशास्त्र में व्यावसायिक फर्म की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाता है तथा इन समस्याओं के हल के लिये आवश्यक सुझाव भी प्रस्तुत किये जाते हैं।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र, कला के रूप में किसी कार्य को सर्वोत्तम ढंग से करने की क्रिया कला कहलाती है।

एक व्यावसायिक फर्म के साधन सीमित होते हैं और उनके वैकल्पिक प्रयोग भी सम्भव होते हैं । व्यावसायिक अर्थशास्त्र, व्यवसाय-प्रबन्ध को विभिन्न वैकल्पिक प्रयोग में से सर्वोत्तम विकल्प के चयन में मार्गदर्शन करता है। उत्पादन, लागत, माँग, मूल्य, वित्त, लाभ, जोखिम आदि अनेक मामलों में व्यावसायिक अर्थशास्त्र सर्वोत्तम विकल्प के चयन में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त यह व्यावसायिक अनिश्चितता व अस्थिरता के वातावरण में प्रबन्धक द्वारा निर्णय लेने तथा भावी नियोजन की प्रक्रिया को सरल बनाता है। अत: व्यावसायिक अर्थशास्त्र कला भी है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि प्रकृति की दृष्टि से व्यावसायिक अर्थशास्त्र विज्ञान एवं कला दोनों है।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र का क्षेत्र

(Scope of Business Economics) Business Economics: An Introduction

व्यावसायिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र का अभिप्राय इसके अन्तर्गत अध्ययन की जाने वाली विषय-वस्तु से है। दूसरे शब्दों में, व्यावसायिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत ठन सभी बातों का समावेश होता है जिनका इसके अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र का सूक्ष्म एवं व्यापक आर्थिक सिद्धान्तों से निकट का सम्बन्ध है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र अपेक्षाकृत एक नवीन विषय होने के कारण यद्यपि इसके क्षेत्र के विषय में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है, फिर भी अधिकतर विद्वान निम्नलिखित विषयों को इसके क्षेत्र में सम्मिलित किये जाने के सम्बन्ध में सहमत हैं  —

(1) फर्म का सिद्धान्त (Theory of Firm)- इसके अन्तर्गत एक व्यावसायिक फर्म के स्वरूप, उद्देश्य, सिद्धान्त एवं उसकी कार्य-प्रणाली का अध्ययन किया जाता है।

(2) माँग विश्लेषण एवं पूर्वानुमान (Demand Analysis and Forecasting)- व्यवसाय की प्रत्येक क्रिया का अन्तिम उद्देश्य विक्रय होता है । इसलिए व्यावसायिक अर्थशास्त्र में माँग विश्लेषण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वस्तुतः माँग पूर्वानुमान की शुद्धता पर ही किसी व्यावसायिक फर्म की भावी नियोजन की सफलता निर्भर करती है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र के इस भाग के अन्तर्गत माँग का नियम, माँग की लोच, माँग को निर्धारित करने वाले तत्त्व, माँग विभेद, माँग का पूर्वानुमान, बाजार-शोध आदि का विवेचन किया जाता है।

(3) लागत एवं उत्पादन विश्लेषण (Cost and Output Analysis)- उत्पादन को मात्रा का निर्धारण तथा उसके उत्पादन में लगने वाली लागतों का विश्लेषण लाभ की मात्रा के नियोजन, मूल्य नीति-निर्धारण तथा फर्म के प्रभावी नियन्त्रण के लिए अति आवश्यक है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र के इस भाग के अन्तर्गत लागत अवधारणा, लागत वक्र, लागत और सीमान्त विश्लेषण, लागत-उत्पादन सम्बन्ध, उत्पत्ति के नियम एवं पैमाने के प्रतिफल आदि की व्याख्या की जाती है।

(4) प्रतियोगिता एवं बाजार विश्लेषण (Competition and Market Analysis) – प्रत्येक फर्म को जटिल आर्थिक वातावरण एवं प्रतियोगितात्मक वातावरण में कार्य करना पड़ता है। प्रतियोगिता एवं बाजार विश्लेषण के अभाव में व्यावसायिक सफलता की कल्पना निरर्थक है। इसके अन्तर्गत एक व्यावसायिक फर्म के भावी नियोजन के लिए विभिन्न बाजार दशाओं एवं प्रतियोगिता की स्थितियों का अध्ययन किया जाता है।

(5) मूल्य निर्धारण सम्बन्धी नीतियाँ एवं व्यवहार (Pricing-Policies and Practices)- मूल्य फर्म के लिए आगम होता है। अत: मूल्य निर्धारण व्यावसायिक अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय है। फर्म की सफलता मूल्य निर्धारण सम्बन्धी निर्णयों पर निर्भर करती है। इसके अन्तर्गत बाजारों के विभिन्न प्रारूपों में मूल्य नीतियों तथा व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। मूल्य पूर्वानुमानों का अध्ययन भी इसी का भाग होता है। विभेदात्मक मूल्य निर्धारण तथा विभिन्न प्रकार की छूट योजनाएँ भी मूल्य निर्धारण सम्बन्धी नीति एवं व्यवहार के अन्तर्गत ही आती हैं। फर्म की अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन मूल्य नीतियों का अध्ययन भी इसमें किया जाता है।

(6) उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन (Study of Consumer’s Bchaviour)- व्यावसायिक अर्थशास्त्र में उपभोक्ता के व्यवहार का अध्ययन नितान्त आवश्यक है । उपभोक्ता की आय, पसन्द, बचत, आदि विषयों का अध्ययन एक व्यावसायिक फर्म की सफलता के लिए आवश्यक है क्योंकि व्यावसायिक फर्म को उपभोक्ता की पसन्द एवं क्षमता के आधार पर ही उत्पादन-नियोजन करना पड़ता है। अतः उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन व्यावसायिक अर्थशास्त्र का एक आवश्यक अंग है।

(7) लाभ प्रबन्ध (Profit Management)- प्रत्येक फर्म का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जित करना होता है। एक फर्म का लाभ उसकी लागत एवं आगम दशाओं के आधार पर ज्ञात किया जाता है, किन्तु अनिश्चितता के वातावरण में लाभ का पूर्वानुमान करना असम्भव नहीं तो दुष्कर कार्य अवश्य है। अत: व्यावसायिक अर्थशास्त्र में लाभ-दर को प्रभावित करने वाले सभी आन्तरिक एवं बाह्य तत्त्वों का विश्लेषण करने लाभ की भविष्यवाणी की जाती है । इस प्रकार लाभ-प्रबन्ध व्यावसायिक अर्थशास्त्र का एक मुख्य क्षेत्र है जिसके अन्तर्गत लाभ की प्रकृति एवं उसकी माप, लाभ नीति, लाभ दर, लाभ नियोजन एवं पूर्वानुमान, आदि का अध्ययन किया जाता है।

(8) पूँजी प्रबन्ध (Capital Management)- पूँजी प्रबन्धं से आशय पूँजीगत व्ययों के नियोजन एवं उन पर समुचित नियन्त्रण से है। व्यावसायिक अर्थशास्त्र के इस भाग के अन्तर्गत पूँजी की लागत, पूँजी पर लाभ-देयता तथा विभिन्न परियोजनाओं में से उपयुक्त परियोजना या परियोजनाओं का चुनाव आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।

(9) व्यापक अर्थशास्त्र का अध्ययन (Study of Macro Economics)- प्रत्येक व्यक्तिगत फर्म सम्पूर्ण उद्योग एवं अर्थव्यवस्था का एक भाग होती है। अत: व्यापक अर्थशास्त्र (Macro Economics) के वे सभी पहलू जो फर्म विशेष को प्रभावित करते हैं, व्यावसायिक अर्थशास्त्र के अध्ययन के भाग माने जाते हैं ! अतःप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित न होते हुए भी व्यापार चक्र, राष्ट्रीय आय, मौद्रक नीति, कर-नीति, प्रशुल्क नीति, औद्योगिक एवं लाइसेंसिंग नीति, आयात-निर्यात नीति,श्रम नीति, आदि का अध्ययन व्यावसायिक अर्थशास्त्र में किया जाता है ।

 

व्यावसायिक अर्थशास्त्र एवं परम्परागत अर्थशास्त्र में अन्तर

(Difference Between Business Economics and Traditional Economics)

 

यद्यपि व्यावसायिक अर्थशास्त्र, परम्परागत अर्थशास्त्र की ही एक शाखा है, परन्तु फिर भी दोनों में पर्याप्त भिन्नता है। दोनों में पाये जाने वाले प्रमुख अन्तरों को निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है

 

 

अन्तर का आधार परम्परागत अर्थशास्त्र व्यावसायिक अर्थशास्त्र
1 विकास काल परमपरागत अर्थशास्त्र काफी पुराना विषय है | यहाँ अपेक्षाकृत एक नवीं विषय है जिसका उदय मुख्यत: दृतीय विश्व युध्द के बाद हुआ है |
2 अर्थ परमपरागत अर्थशास्त्र में आर्थिक सिधान्तों का विवेचन किया जाता है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र में आर्थिक सिधान्तो का व्यावसायिक फर्म की समस्याओं के समाधान हेतु उपयोग किया जाता है
3 पृकृति परम्परागत अर्थशास्त्र सूक्ष्म एवं व्यापक दोनों पृकृति का है क्योकि इसमें व्यक्तिगत उपभोक्ता एवं फर्म के साथ सम्पूर अर्थव्यवस्था का भी अध्ययन किया जाता है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र सूक्ष्म पृकृति का है क्योकि इसमें केवल एक फर्म की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है |
4 क्षेत्र परम्परागत अर्थशास्त्र में समस्या के केवल आर्थिक पहलू का विवेचन किया जाता है इसका क्षेत्र सीमित है क्योकि इसमें पभोग, उत्पादन, विनिमय वितरण एवं राजस्व आदि सभी का अध्ययन किया जाता है |
5 आर्थिक एवं अनार्थिक पहलू परम्परागत अर्थशास्त्र में समस्या के केवल आर्हिक पहलू का विवेचन किया जाता है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र में आर्थिक एवं अनार्थिक दोनों ही पहलुओं पर विचार करके निर्णय लिए जाते है |
6 मान्याताएँ परंपरागत अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धांतों का अध्ययन अनेक मान्यताओं के आधार पर किया जाता है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र में मान्यताओं को वास्तविकता के आधार पर ही अध्ययन का विषय बनाया जाता है |
7 विज्ञानं का स्वरूप परम्परागत अर्थशास्त्र की वास्तविक विज्ञानं के रूप में अधिक स्वीकृति है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र की एक आदर्श विज्ञानं के रूप में अधिक मान्यता है |
8 वर्णनात्मक एवं निर्देशास्तमक परम्परागत अर्थशास्त्र वर्णनात्मक है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र निर्देशात्मक है |
9 सैध्दान्तिक एवं व्यवहारिक परम्परागत अर्थशास्त्र में आर्थिक घटनाओं के सैध्दान्तिक पहलू का विवेचन किया जाता है व्यावसायिक अर्थशास्त्र आर्थिक घटनाओं के व्यवहारिक पक्ष का अध्ययन करता है |
10 महत्त्व परम्परागत अर्थशास्त्र मानव कल्याण से सम्बन्धित होने के कारण यह जनसाधारण के महत्त्व का विषय है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र मुख्य रूप से एक फर्म एवं व्यावसायिक जगत के लिए उपयोगी होती है |
11 कार्यक्षमता का आधार परंपरागत अर्थशास्त्र के अंतर्गत कार्यक्षमता का मापन अधिकतम संतुष्टि एवं मानव कल्याण के आधार पर किया जाता है | व्यावसायिक अर्थशास्त्र में कार्यक्षमता का मापन अधिकम लाभ के आधार पर किया जाता है |

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