BCom 1st Year Business Economics Utility Analysis in Hindi

BCom 1st Year Business Economics Utility Analysis in Hindi

 

 

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Business Economics Utility Analysis
Business Economics Utility Analysis

 

उपयोगिता विश्लेषण

Utility Analysis

 

 

प्रश्न 3-“जहाँ पर सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है वहाँ पर कुल उपयोगिता अधिकतम होती है पूर्णतया समझाइए।

अथवा                                                                   (2007)

 

उपयोगिता से आप क्या समझते हैं ? उपयोगिता की मापसेसम्बन्धितगणनावांचक तथा क्रमवाचक दृष्टिकोणों में अन्तर बताइए

 

 

उत्तर

 

उपयोगिता का अर्थ

(Meaning of Utility)

 

सामान्य बोलचाल की भाषा में उपयोगिता का अर्थ ‘लाभदायकता’ से लगाया जाता है, परन्तु अर्थशास्त्र में ‘उपयोगिता’ का अर्थ किसी वस्तु के उपभोग से मिलने वाली सन्तुष्टि से है। संक्षेप में, उपयोगिता किसी वस्तु की वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति की आवश्यकता को पूरा करती है। उपयोगिता की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं

 

(1) उपयोगिता एक सापेक्षिक शब्द है जो समय, स्थान तथा व्यक्ति के साथ परिवर्तित होता है।

(2) उपयोगिता का कोई भौतिक रूप नहीं होता अर्थात् उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है जिसको केवल अनुभव किया जा सकता है।

(3) उपयोगिता का लाभदायकता से कोई सम्बन्ध नहीं है ।

(4) उपयोगिता आवश्यकता की तीव्रता पर निर्भर करती है।

 

उपयोगिता का गणनावाचक एवं क्रमवाचक दृष्टिकोण

(Cardinal and Ordinal Approach of Utility)

 

 

उपयोगिता एक व्यक्तिनिष्ट (Subjective) तथा मनोवैज्ञानिक धारणा है। उदाहरणार्थ, केले में आवश्यकता-पूर्ति की क्षमता या गुण है, किन्तु यदि कोई व्यक्ति डॉक्टर की सलाह पर उसके उपभोग से वंचित है तो उसके लिये केले में कोई उपयोगिता नहीं है। इस प्रकार उपयोगिता आत्मनिष्ठः (Subjective) होती है जिसका सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक स्थिति तथा दृष्टिकोण से है। यहाँ यह जिज्ञासा उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि क्या इस उपयोगिता या ‘सन्तुष्टि को मापा जा सकता है ? उपयोगिता मापनीय है अथवा नहीं ? यह निश्चित ही एक विवादग्रस्त विषय है। उपयोगिता की भाप के सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों ने दो दृष्टिकोण अपनाये हैं –

 

(1) गणनावाचक दृष्टिकोण (Cardinal Approach)-मार्शल, पीगू आदि गणनावाचक अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि उपयोगिता को मोटे रूप में मापा जा सकता है। उन्होंने मुद्रा को उपयोगिता का मापक माना है। उनके अनुसार कोई व्यक्ति जब किसी वस्तु को खरीदता है तो उसका भुगतान मुद्रा में करता है। वह उस वस्तु से प्राप्त होने वाली उपयोगिता से अधिक कीमत नहीं चुकायेगा; अत: कीमत-वस्तु की उपयोगिता की माप है। जैसे एक पुस्तक की कीमत यदि दस रुपया दी जाती है तो उस पुस्तक की उपयोगिता दस रुपये के बराबर है। इस प्रकार मार्शल के अनुसार किसी वस्तु की उपयोगिता को सीधी संख्याओं; जैसे 1,2,3 आदि द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। 1, 2, 3 आदि संख्याओं को गणित में गणनावाचक अंक (Cardinal Numbers) कहा जाता है। इन संख्याओं को एक-दूसरे से अनुपातिक रूप से भी प्रकट किया जा सकता है। जैसे दो, एक का दुगुना तथा तीन एक का तीन गुना है। जब हम वस्तु की उपयेगिता को इस प्रकार की संख्याओं द्वारा व्यक्त करते हैं तो उसे गणनावाचक उपयोगिता (Cardinal Utility) कहते हैं।

 

(2) क्रमवाचक दृष्टिकोण (Ordinal Approach)–उपयोगिता सम्बन्धी उपर्यत विचारधारा हमारे सामने कई प्रकार की कठिनाइयाँ लाती है। अत: पैरेटो, हिक्य, एलेन (Pareto, Hicks, Allen) आदि ने कहा है कि उपयोगिता को मापा नहीं जा सकता है। ये अर्थशास्त्री मार्शल के विचार से सहमत नहीं हैं। उन्होंने यह विचार व्यक्त किया है कि उपयोगिता को न तो विभाजित किया जा सकता है और न इसे जोड़ा या घटाया जा सकता है क्योंकि इन लोगो के अनुसार, उपयोगिता का अर्थ चाहे सन्तुष्टि से लिया जाये अथवा इच्छा की तीव्रता से, दोनों ही मनोवैज्ञानिक तथा व्यक्तिगत (Subjective) विचार हैं जिन्हें किसी वस्तुगत पैमाने (Objective Standard) से नहीं मापा जा सकता। उपयोगिता सदैव स्थिर (Constant). नहीं रहती, वरन् परिवर्तनशील है, अतः उसे मापना कठिन है। उपयोगिता को मपने का कोई उचित मापदण्ड भी उपलब्ध नहीं है। मार्शल द्वारा प्रयुक्त ‘मुद्रा रूपी मापदण्ड’ उपयोगिता मापने का कोई स्थिर तथा निश्चित. पैमाना नहीं है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में भी उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। उपर्युक्त कठिनाइयों के कारण क्रमवावक अर्थशास्त्रियों का कहना है कि उपयोगिता को मापा नहीं जा सकता है और इसी कारण उन्होंने उपयोगिता विश्लेषण के स्थान पर ‘तटस्थता वक्र विश्लेषण विधि का प्रयोग किया।

 

इन अर्थशास्त्रियों के अनुसार, वस्तुओं को उनके विभिन्न संयोजनों (Combinations) के आधार पर क्रमानुसार प्रकट किया जा सकता है। जैसे हम यह नहीं कह सकते हैं कि एक कप कॉफी की उपयोगिता 50 तथा एक गिलास दूध की उपयोगिता 100 है। हम अधिक से अधिक यह कह सकते हैं कि उपभोक्ता कॉपी की तुलना में दूधको अधिक उपयोगी समझा रहा है। दूध तथा कॉफी से प्रापा उपयोगिता को संख्या में मापकर इनकी तुलना नहीं की जा सकती है। हाँ, यह अवश्य कहा जा सकता है कि दूय का स्थान उपभोक्ता के उपभोग ब्रम में पहला है और कॉफी का दूसरा । यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि दूध की उपयोगिता कॉफी से दुगुनी है या तीन गुनी ।

 

निष्कर्ष :- निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है की यघपि गणनावाचक दृष्टिकोण उपयोगिता मापने का पुराना तरीका होते हुए भी अभी तक अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुये है, किन्तु आधुन्की अर्थशास्त्री इस मापन विधि को महत्त्व नही देते है | उनके अनुसार तो उपयोगिता एक क्रमवाचक विचारधारा (Ordinal Concept) ही है, न कि गणनावाचक विचारधारा (Cardinal Concept) है।

 

उपयोगिता के भेद–कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता  Kinds of Utility : ‘Total Utility and Marginal Utility)

 

किसी भी वस्तु या सेवा की उपयोगिता को माप के आधार पर निम्न दो भागों में बाँटा नामकता है—

 

(1) सीमान्त उपयोगिता (Marginal Utility)- प्राचीन अर्थशास्त्रिया के अनुसार, सीमान्त उपयोगिता से अभिप्राय किसी समय विशेषः पर उपभोग की जाने वाली वस्तु की अन्तिम इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता से है, परन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, सीमान्त उपयोगिता से अभिप्राय उपयोगिता की उस अतिरिक्त वृद्धि से है जो उस वस्तु की अतिरिक्त इकाई के उपभोग से प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में, दो क्रमिक कुल उपयोगिताओं. का अन्तर ही सीमान्त उपयोगिता है।

 

बोल्डिंग के अनुसार, वस्तु की किसी मात्रा की सीमान्त उपयोगिता उसकी कुल उपयोगिता में वृद्धि है जोकि उपभोग में एक और इकाई के परिणाम स्वरूप होती है।” ।

 

सीमान्त उपयोगिता के स्वरूप-सीमान्त उपयोगिता के निम्न तीन स्वरूप हैं

(1) धनात्मक उपयोगिता (Positive Utility),

(2) शून्य उपयोगिता (Zero Utility),

(3) ऋणात्मक उपयोगिता (Negative Utility) ।

(1) धनात्मक उपयोगिता (Positive Utility)- धनात्मक उपयोगिता से अभिप्राय यह है कि जब किसी वस्तु के उपभोग से कुछ सन्तुष्टि प्राप्त होती है तो वह उपयोगिता, सीमान्त धनात्मक उपयोगिता कहलाती है।

(2) शून्य उपयोगिता (Zero Utility)- जब किसी वस्तु के प्रयोग से न तो कोई सन्तुष्टि प्राप्त होती है और न कोई असन्तुष्टि अर्थात् उपयोगिता शून्य (Zero) रहती है तो इस अवस्था को ‘सीमान्त शून्य उपयोगिता’ कहते हैं । वास्तव में यह अवस्था पूर्ण सन्तुष्टि का बिन्दु कहलाती

(3) ऋणात्मक उपयोगिता (Negative Utility) — यह अवस्था पूर्ण संतुष्टि के बिन्दु के उपरान्त शुरू होती है। जब किसी वस्तु के उपभोग से सन्तुष्टि प्राप्त न होकर असन्तुष्टि ही मिलती है अर्थात् अनुपयोगिता प्राप्त होती है तो उसे सीमान्त ऋणात्मक उपयोगिता कहते हैं।

 

 

कुल उपयोगिता (Total Utility)

 

Business Economics Utility Analysis
Business Economics Utility Analysis

किसी वस्तु की . विभिन्न इकाइयों के उपभोग करने पर जो उपयोगिता प्राप्त होती है, उसके योग को ही  “कुल उपयोगिता” कहते हैं। मेयर्स के शब्दों में “किसी वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग के परिणामस्वरूप प्राप्त. सीमान्त. उपयोगिताओं योग ही कुल उपयोगिता होती है |”

 कुल उपयोगिता की प्रवृति– कुल उपयोगिता की प्रवृति निम्नवत् होती है –

(1) प्रारम्भ में वस्तु की अधिकाधिक इकाइयों का प्रयोग करने से कुल उपयोगिता बढ़ती जाती है, किन्तु यह वृद्धि घटती हुई दर से होती हैं |

(2) ‘पूर्ण सन्तुष्टि बिन्दु’ अर्थात् शून्य सीमान्त उपयोगिता पर कुल उपयोगिता अधिकतम होती है। इसके उपरान्त कुल उपयोगिता का बढ़ना बन्द हो जाता है।

(3) ‘पूर्ण सन्तुष्टि के बाद भी यदि अगली इकाइयों का उपभोग किया जाता है तो ऐसी स्थिति में कुल उपयोगिता घटने लगती है

 

तालिका द्वारा स्पष्टीकरण

 

Business Economics Utility Analysis
Business Economics Utility Analysis

 

 

 

 

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण 

उपरोक्त तालिका में प्रदर्शित उपयोगिता के आधार पर सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता को क्रमशः चित्र 2.1 एवं चित्र 2.2 की सहायता से समझा जा सकता है

 

 

Business Economics Utility Analysis
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सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में सम्बन्ध

(Relation between Marginal Utility and Total Utility)

 

किसी भी वस्तु की विभिन्न इकाइयों के उपभोंग से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता के बीच पाये जाने वाले सम्बन्ध को उपरोक्त तालिका के आधार पर निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –

 

Business Economics Utility Analysis
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1.पूर्ण सन्तुष्टि के बिन्दु से पूर्व की स्थिति मेंसीमान्त उपयोगितापूर्ण सन्तुष्टि घटती जाती है, परन्तु धनात्मक होती है इसके विपरी कुल उपयोगिता घटती हुई दर से बढती जाती है (उपयोक्त तालिका से स्पष्ट है की यहाँ स्थिति पहली तिन इकाई तक है)

2. पूर्ण सन्तुष्टि के बिन्दु पर सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है तथा कुल उपयोगिता अधिकतम होती है (उपरोक्त तालिका में यह स्थिति चौथी इकाई पर है) ।

3.पूर्ण सन्तुष्टि के बिन्दु के पश्चात् सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है तथा कुल उपयोगिता घटने लगती है (उपरोक्त तालिका में यह स्थिति चौथी इकाई के पश्चात् प्रारम्भ होती है) ।

 

 

 

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