BCom 1st Year Business Economics Production Function in Hindi
BCom 1st Year Business Economics Production Function in Hindi:-
उत्पादन फलन
Production Function
प्रश्न 5-उत्पादन फलन से आप क्या समझते हैं? इसकी मान्यताओं एवं विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर
‘उत्पादन फलन‘
अथवा
उत्पादन प्रकार्य का अर्थ एवं परिभाषा
‘उत्पादन फलन’ में ‘फलन’ शब्द गणित से लिया गया है। यह दो विभिन्न चरों (variables) के सम्बन्ध को व्यक्त करता है । उदाहरण के लिए, जब हम यह कहते हैं कि ‘Y’ चर, ‘X’ चर का फलन है तो इसका अर्थ है कि Y-चर, X-चर पर निर्भर करता है अर्थात् यदि X-चर में कोई परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव Y-चर पर भी पड़ेगा। गणितीय रूप में इस सम्बन्ध को निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है
Y = f(X)
इसमें ‘Y’ एक आश्रित-चर (Dependent Variable) तथा ‘X’ स्वतन्त्र-चर (independent variable) है । f चिन्ह निर्भरता का सूचक है।
जिस वस्तु का उत्पादन किया जा रहा है उसे अर्थशास्त्र में ‘निर्गत’ या ‘प्रदा’ (output). कहते हैं एवं जिन साधनों की सहायता से उत्पादन किया जाता है उन्हें ‘आगत’ या ‘आदा’ (Input) कहा जाता है। वस्तुतः आगम’ या ‘आदा’ में उन सभी वस्तुओं को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें किसी फर्म द्वारा उत्पादन-क्रिया में प्रयोग किया गया है। इसके विपरीत ‘प्रदा’ (output) शब्द उन सभी वस्तुओं की मात्राओं की ओर संकेत करता है जिन्हें विभिन्न आदाओं’ (Input) की सहायता से फर्म द्वारा उत्पादित किया जाता है।
आदाओं’ तथा ‘प्रदाओं के तकनीकी सम्बन्ध को ही उत्पादन फलन कहते हैं। दूसरे शब्दों में, उत्पादन फलन एक दी हुई समयावधि में साधनों के सभी सम्भव संयोगों या प्रत्येक संयोग से सम्बन्धित उत्पादन (अर्थात् अधिकतम उत्पादन) के मध्य भौतिक सम्बन्ध को बताता है जबकि प्रबन्ध योग्यता एवं तकनीकी ज्ञान की स्थिति दी हई हो । उत्पादन फलन को गणितीय समीकरण के रूप में निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
X = f (A, B, C, D)
यहा X वस्तु की उत्पादन मात्रा (निर्गत’ अथवा ‘प्रदा’) को व्यक्त करता ह एवी, C तथा D उत्पत्ति के विभिन्न साधन हैं। इस समीकरण के अनुसार उत्पादन का माना (‘ साधनों की मात्रा (A, B, C, D) पर निर्भर है।
सम्युलसन के अनुसार, “उत्पादन फलन वह तकनीकी सम्बन्ध है जो हमें बताता है कि उत्पादन के साधनों के प्रत्येक समूह से कितना उत्पादन किया जा सकता है । यह समय पर पर तकनीकी ज्ञान के दिये हए स्तर की मान्यता के आधार पर परिभाषित किया जाता है।
लिप्से तथा स्टीनर के अनसार, “उत्पत्ति साधनों तथा उत्पत्ति मात्रा के तकनीकी सम्बन्ध को अर्थशास्त्र में उत्पादन फलन कहा जाता है ।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि उत्पादन फलन ‘आदाओं’ तथा ‘प्रदाओं’ में तकनीकी सम्बन्ध होता है।
प्रत्येक फर्म का अपना अलग उत्पादन फलन होता है। यह उस फर्म की प्रबन्ध योग्यता एवं तकनीकी ज्ञान की स्थिति से निर्धारित होता हैं। उनमें कोई भी परिवर्तन पुराने उत्पादन फलन को भंग कर देता है और नये उत्पादन फलन को जन्म देता है।
उत्पादन फलन की मान्यताएँ
(Assumptions of Production Function)
(i) उत्पादन-फलन एक निश्चित समयावधि से सम्बन्धित होता है।
(ii) जिस समयावधि में उत्पादन फलन का अध्ययन किया जाता है उसके लिए यह मान लिया जाता है कि तकनीकी ज्ञान की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।
(iii) फर्म सर्वश्रेष्ठ एवं आधुनिकतम उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है।
(iv) उत्पादन के विभिन्न साधन छोटी-छोटी इकाइयों में विभाज्य होते हैं।
(v) उत्पादन के साधनों की कीमतें यथास्थिर रहती हैं अर्थात् उत्पादन के साधनों की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
उत्पादन फलन की विशेषताएँ या स्वभाव
(Characteristics or Nature of Production Function)
(1) उत्पादन फलन एक इन्जीनियरिंग समस्या है, आर्थिक समस्या नहीं – उत्पादन फलन, आदाओं अथवा साधनों की भौतिक मात्रा (Physical quantities of Inputs) तथा ‘प्रदा’ अथवा उत्पादन की भौतिक मात्रा (Physical quantities of output) के बीच सम्बन्ध को व्यक्त करता है, अत: यह.एक इन्जीनियरिंग अवधारणा है । चूँकि उत्पादन फलन की कोई मौद्रिक विशेषताएँ नहीं होती हैं, इसलिए इसे अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में शामिल नहीं कर सकते।
(2) उत्पादन फलन का कीमत से कोई सम्बन्ध नहीं होता – उत्पादन फलन का सम्बन्ध केवल उत्पादन की भौतिक मात्रा से होता है, उत्पादन के साधनों तथा उत्पादित वस्तु की कीमतों से नहीं। अतः उत्पादन फलन कीमतों से स्वतन्त्र होता है।
(3) उत्पादन फलन का निर्धारण तकनीकी ज्ञान की स्थिति द्वारा होता है – एक उत्पादन फलन को परिभाषित करने के लिए तकनीकी ज्ञान की स्थिति को स्थिर माना जाता है क्योंकि तकनीकी ज्ञान में सुधार होने पर या परिवर्तन होने पर हमें एक नया उत्पादन फलन प्राप्त हो जाता है। संक्षेप में, उत्पादन तकनीक के परिवर्तित होने पर उत्पादन फलन भी परिवर्तित हो जाता है। नये उत्पादन फलन का आशय यह है कि फर्म साधनों की पहले जितनी मात्रा से अधिक उत्पादन प्राप्त करेगी अथवा पहले जितना उत्पादन प्राप्त करने के लिए साधनों की कम मात्रा लगानी पड़ेगी।
(4) उत्पादन फलन की व्याख्या एक निश्चित समयावधि के अन्तर्गत ही की जाती है – किसी भी वस्तु का उत्पादन करने के लिए कुछ समय अवश्य लगता है, अतः उत्पादन फलन का सम्बन्ध एक निश्चित समयावधि से ही होता है। समयावधि के अनुसार उत्पत्ति साधनों की पूर्ति बदलती है जिसके कारण उत्पादन फलन के स्वरूप में परिवर्तन आ जाता है।
(5) उत्पादन फलन उत्पादन के साधनों की प्रतिस्थापन सम्भावनाओं को स्वीकार करता है – उत्पादन फलन यह भी स्वीकार करता है कि उत्पादन के साधनों का परस्पर प्रतिस्थापन सम्भव है। इसका अर्थ है कि किसी एक साधन विशेष के स्थान पर किसी दूसरे साधन का प्रयोग किया जा सकता है।
(6) उत्पादन फलन स्थैतिक अर्थशास्त्र का विषय है – चूँकि उत्पादन फलन के अन्तर्गत तकनीकी ज्ञान के स्तर, साधनों की कीमतों एवं समयावधि को स्थिर मानकर चलता है । इसलिए उत्पादन फलन की अवधारणा विशुद्ध रूप से स्थैतिक अर्थशास्त्र का विषय है, न कि प्रावैगिक अर्थशास्त्र का।
उत्पादन फलन के प्रकार
(Types of Production Function)
उत्पादन फलन में समय-तत्त्व एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उत्पादन फलन की प्रकृति अल्पकाल एवं दीर्घकाल में एक समान नहीं रहती है । अल्पकालीन उत्पादन अवधि का अभिप्राय उस समयावधि से है जिसमें उत्पत्ति के सभी साधनों को परिवर्तित नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत दीर्घकालीन उत्पादन अवधि का अभिप्राय ऐसी दीर्घ समयावधि से है जिसमें फर्म उत्पादन में प्रयोग होने वाले उत्पत्ति के सभी साधनों को आवश्यकतानुसार परिवर्तित कर सकती है। इस प्रकार उत्पादन फलन को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है
(i) अल्पकालीन उत्पादन फलन (Short-term Production Function) – जब उत्पादन के अन्य साधन स्थिर रहते हैं और एक साधन में परिवर्तन किया जा सकता है, तो इसे अल्पकालीन उत्पादन फलन कहा जाता है । इस स्थिति को उत्पत्ति ह्यस नियम अथवा परिवर्तनशील अनुपातों का नियम भी कहा जाता है।
(ii) दीर्घकालीन उत्पादन फलन (Long-term Production Function) – जब उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील हों, तो उसे दीर्घकालीन उत्पादन फलन कहा जाता है। इस स्थिति को पैमाने के प्रतिफल. के नियम के नाम से भी व्यक्त किया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Question)
प्रश्न 1-अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन उत्पादन फलन में अन्तर की विवेचना कीजिए।
अधवा
प्रतिफल के नियम एवं पैमाने के प्रतिफल के नियम में अन्तर बताइये।
उत्तर– अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उत्पादन फलन में अन्तर
अथवा
प्रतिफल के नियम एवं पैमाने के प्रतिफल के नियम में अन्तर
(1) अल्पकालीन उत्पादन फलन परिवर्तनशील अनुपातों का नियम है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन ‘पैमाने के प्रतिफल का नियम’ है।
(2) अल्पकालीन उत्पादन फलन अल्पकाल में लागू होता है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन फलन दीर्घकाल में लागू होता है।
(3) अल्पकालीन उत्पादन फलन उस समय लागू होता है जब केवल एक साधन परिवर्तनशील होता है तथा बाकी साधन स्थिर रहते हैं। इसके विपरीत, दीर्घकालीन उत्पादन फलन उस समय लागू होता है जब उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं।
(4) अल्पकालीन उत्पादन फलन में समय की कमी के कारण आपसी संयोग-अनुपात बदल जाता है । परन्तु दीर्घकालीन उत्पादन फलन में साधनों में एक साथ समान अनुपात से वृद्धि या कमी की जाती है।
(5) अल्पकालीन उत्पादन-फलन के अन्तर्गत एक उत्पादक अपनी वस्तु की पूर्ति को केवल एक सीमा तक परिवर्तित कर सकता है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन-फलन में पूर्ति को मांग के अनुकूल बढ़ाया और घटाया जा सकता है।
(6) अल्पकालीन उत्पादन फलन के अन्तर्गत उत्पादन के परिवर्तनशील साधनों की कीमतें स्थिर नहीं रहती हैं, माँग एवं पूर्ति के अनुसार कीमतें कम या अधिक हो सकती हैं । दीर्घकालीन उत्पादन फलन में उत्पादित वस्तु की कीमत एवं उत्पादन के विभिन्न साधनों की कीमतों को स्थिर मानकर चला जाता है।
(7) अल्पकालीन उत्पादन-फलन के अन्तर्गत एक उत्पादन अपनी वस्तु की पूर्ति को केवल एक सीमा तक परिवर्तित कर सकता है, जबकि दीर्घकालीन उत्पादन-फलन में पूर्ति को मांग के अनुकूल बढ़ाया और घटाया जा सकता है।
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उत्पादक फलां के साधन