Bcom 2nd Year Public Finance Government Budget

Bcom 2nd Year Public Finance Government Budget

 

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Bcom 2nd Year Public Finance Government Budget
Bcom 2nd Year Public Finance Government Budget

सरकारी बजट (Government Budget)

प्रश्न 5, बजट के अर्थ एवं महत्त्व का विवेचन कीजिए। भारत में इसको किस प्रकार तैयार, पारित एवं क्रियान्वित किया जाता है ?

(Meerut, 2011 BP, 2009 and 2006; Avadh, 2011 and 2006)

अथवा

भारतीय आय-व्ययक का क्या तात्पर्य है ? भारतीय आय-व्ययक किस प्रकार बनाया, क्रियान्वित किया जाता है?

अथवा

बजट क्या है? यह किस प्रकार तैयार किया जाता है? भारत में केन्द्रीय सरकार के बजट पास करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए। (Bundelkhand Jhansi, 2012; Meerut, 2006)

उत्तर:-

बजट का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Budget)

बजट शब्द की उत्पत्ति फ्रेंच भाषा के ‘Bougettee’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है – चमड़े का बैग या थैला। इस थैले में देश के आय-व्यय का एक वर्ष का विवरण होता है जिसे वित्त मन्त्री प्रस्तुत करता है। धीरे-धीरे ‘बजट’ शब्द का अर्थ चमड़े के थैले के स्थान पर उस विवरण से लिया जाने लगा जो उसके अन्दर रखा होता है।

इस प्रकार बजट सरकारी आय एवं व्यय का एक वार्षिक विवरण-पत्र है। दूसरे शब्दों में, बजट पिछले वर्ष एवं चालू वर्ष के वित्तीय लेखों का और आगामी वर्ष की आय एवं व्यय के अनुमानों का वार्षिक वित्तीय विवरण पत्र होता है। यह एक ऐसा तुलनात्मक विवरण है जिसमें एक वर्ष-विशष की आय की राशियों तथा किये जाने वाले व्ययों को दिखाया जाता है। वस्तुत: बजट को केन्द्रीय सरकार के वित्तीय प्रशासन का केन्द्र बिन्दु कहा जाता है। – बजट की मुख्य परिभाषाएँ इस प्रकार हैं

रेने स्टोर्न के अनुसार, “बजट एक ऐसा प्रपत्र है जिसमें सार्वजनिक आय एवं व्यय की प्रारम्भिक स्वीकृति होती है।” ,,

टेलर के अनुसार, “बजट सरकार की मास्टर वित्तीय योजना है। यह बजट वर्ष के लिये प्रत्याशित आय के अनुमान और प्रस्तावित व्ययों के अनुमान एक साथ प्रदान करता है।”

फिण्डले शिराज के अनुसार, “बजट आय तथा व्यय का वार्षिक विवरण है जो सरकार द्वार! अनुमानित व्यय को पूरा करने के लिए बनाया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर बजट की एक उपयुक्त एवं सरल परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है

“बजट एक ऐसा वित्तीय विवरण है जो एक निश्चित समय से पूर्व बनाया जाता है, जिसमें आगामी वित्तीय वर्ष के आय एवं व्यय के अनुमान तथा पिछले वर्ष के बजट एवं संशोधित अनुमान सहित सम्बन्धित आंकड़े दिये रहते हैं। यह एक ऐसा उपकरण है जिसके द्वारा सरकार अपनी आय, व्यय तथा ऋण सम्बन्धी नीतियों को क्रियान्वित करती है।”

बजट की विशेषताएँ एवं आवश्यक तत्व (Characteristics and Necessary Elements of Budget)

(1) यह एक प्रकार का विवरण होता है।

(2) बजट का आधार नकद राशि होता है अर्थात् यह माना जाता है कि सरकार की सम्पूर्ण आय नकदी में प्राप्त होगी तथा व्यय भी नकदी में करना होगा।

(3) यह एक निश्चित अवधि (सामान्यत: 1 वर्ष) के लिए बनाया जाता है।

(4) इसमें अनुमानित आय तथा व्यय के आंकड़े दिय हुए होते हैं।

(5) इसमें आय-व्यय की दो प्रकार की मदें होती हैं—पूँजीगत मदें एवं आयगत मदें।

(6) बजट को स्वीकृत कराना आवश्यक होता है।

बजट बनाने की विधि या बजट प्रक्रिया (Budgetary Procedure)

प्रत्येक देश में बजट का निर्माण उस देश के संविधान में दी हुई विधि के अनुसार किया जाता है, फिर भी लगभग सभी देशों में बजट बनाने की प्रक्रिया एक समान ही है।

हमारे देश में (भारत में) संघीय शासन व्यवस्था है, अत: केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों अपना अलग-अलग बजट तैयार करती हैं। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार द्वारा भी सामान्य बजट एवं रेल-बजट अलग-अलग रूप से तैयार किये जाते हैं। केन्द्रीय सरकार द्वारा “सामान्य बजट’ सम्बन्धी निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन अग्र शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

(1) बजट तैयार करना‘सामान्य बजट’ केन्द्रीय सरकार के वित्त मन्त्रालय द्वार तैयार किया जाता है और इसके लिए वह सभी मन्त्रालयों से सहयोग प्राप्त करता है। बजट की तैयारी से सम्बन्धित कार्य अगले वित्तीय वर्ष के शुरू होने से 6-8 महीने पहले ही आरम्भ हो जाता है। प्राय: जुलाई अगस्त माह में वित्त मन्त्रालय विभिन्न विभागों के अध्यक्षों को अनुमान-पत्र (Estimate form) भेजता है जिसके द्वारा सम्बन्धित विभाग से आगामी वर्ष के अनुमानित आय-व्यय की जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके बाद विभिन्न विभाग अपने-अपने विभाग के वर्तमान एवं आगामी आय-व्यय का अनुमान तैयार करते हैं। विभिन्न विभागाध्यक्षों से अनुमान प्राप्त करने के पश्चात् वित्त मन्त्रालय इन अनुमानों के आधार पर सामूहिक अनुमान तैयार करता है। बजट अनुमानों पर महालेखापाल (Accountant General) द्वारा भी विचार किया जाता है और जो अपनी राय वित्त मन्त्रालय को भेज देता है। सामूहिक अनुमान एवं महालेखापाल की राय के सन्दर्भ में सभी अनुमानों पर वित्त मन्त्रालय द्वारा पुनर्विचार किया जाता है। आवश्यकता होने पर मन्त्रिमण्डल स्तर पर निर्णय लिए जाते हैं। वित्त मन्त्रालय कुल अनुमान तैयार करके पुन: महालेखापाल के पास भेजता है जिससे उनके अनुमानों का लेखा-वर्गीकरण (Accounting Classification) हो सके। अन्त में वित्त मन्त्रालय द्वारा पूर्व अनुमान के अतिरिक्त परिस्थितिजन्य अन्य नये अनुमानों पर भी विचार कर पूर्ण रूप से बजट तैयार कर लिया जाता है।

(2) बजट पेश करनाबजट को तैयार करने के पश्चात् संसद का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए उसे संसद में प्रस्तुत किया जाता है। सामान्यत: वित्त मन्त्री द्वारा फरवरी के अन्तिम दिन बजट को लोक सभा में प्रस्तुत किया जाता है। उसी दिन राज्य सभा में भी वित्त : मन्त्रालय का कोई अन्य मन्त्री बजट प्रस्तुत करता है। वित्त मन्त्री बजट प्रस्तुत करने के साथ ही बजट भाषण भी देता है बजट भाषण के पश्चात् उस दिन लोक सभा की बैठक स्थगित कर संसद-सदस्यों को बजट प्रस्तावों पर विचार करने हेतु पर्याप्त समय दिया जाता है। सामान्यतः बजट के साथ ही वित्त विधेयक भी प्रस्तुत किया जाता है जिसमें कर सम्बन्धी प्रस्ताव होते हैं।

(3) बजट पर विचारविमर्श या बहस-बजट प्रस्तुत करने के पश्चात् उस पर सामान्य विचार-विमर्श के लिए एक तिथि निश्चित कर दी जाती है। यह विचार-विमर्श लगभग दो से चार दिन तक चलता है। बहस की समाप्ति पर धित मन्त्री बहस में की गई आलोचनाओं और उठाई गई शंकाओं का उत्तर देता है। बहस के दौरान प्रस्ताव रखने या मतदान का कोई अधिकार नहीं होता है। इस प्रकार सामान्य बहस का चरण पूरा हो जाता है।

(4) मतदानबजट पर सामान्य बहस होने के पश्चात् बजट पर मतदान होता है। : मतदान की दृष्टि से बजट की मदें दो प्रकार की, होती हैं–(i) गैर-मतदान योग्य मदें, तथा | (ii) मतदान योग्य मदें।

हमारे देश में भारत में) संघीय शासन व्यवस्था है, अत: केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकार अपना अलग-अलग बजट तैयार करती हैं। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार द्वारा भी सामान्य बजट एवं रेल-बजट अलग-अलग रूप से तैयार किये जाते हैं। केन्द्रीय सरकार ,,, द्वारा “सामान्य बजट” सम्बन्धी निर्माण प्रक्रिया का अध्ययन अग्र शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(1) बजट तैयार करना‘सामान्य बजट’ केन्द्रीय सरकार के वित्त मन्त्रालय द्वार तैयार किया जाता है और इसके लिए वह सभी मन्त्रालयों से सहयोग प्राप्त करता है। बजट की तैयारी से सम्बन्धित कार्य अगले वित्तीय वर्ष के शुरू होने से 6-8 महीने पहले ही आरम्भ हो जाता है। प्राय: जुलाई अगस्त माह में वित्त मन्त्रालय विभिन्न विभागों के अध्यक्षों को अनुमान-पत्र (Estimate form) भेजता है जिसके द्वारा सम्बन्धित विभाग से आगामी वर्ष के अनुमानित आय-व्यय की जानकारी प्राप्त की जाती है। इसके बाद विभिन्न विभाग अपने-अपने विभाग के वर्तमान एवं आगामी आय-व्यय का अनुमान तैयार करते हैं। विभिन्न विभागाध्यक्षों से अनुमान प्राप्त करने के पश्चात् वित्त मन्त्रालय इन अनुमानों के आधार पर सामूहिक अनुमान तैयार करता है। बजट अनुमानों पर महालेखापाल (Accountant General) द्वारा भी विचार किया जाता है और जो अपनी राय वित्त मन्त्रालय को भेज देता है। सामूहिक अनुमान एवं महालेखापाल की राय के सन्दर्भ में सभी अनुमानों पर वित्त मन्त्रालय द्वारा पुनर्विचार किया जाता है। आवश्यकता होने पर मन्त्रिमण्डल स्तर पर निर्णय लिए जाते हैं। वित्त मन्त्रालय कुल अनुमान तैयार करके पुन: महालेखापाल के पास भेजता है जिससे उनके अनुमानों का लेखा-वर्गीकरण (Accounting Classification) हो सके। अन्त में वित्त मन्त्रालय द्वारा पूर्व अनुमान के अतिरिक्त परिस्थितिजन्य अन्य नये अनुमानों पर भी विचार कर पूर्ण रूप से बजट तैयार कर लिया जाता है।

(2) बजट पेश करनाबजट को तैयार करने के पश्चात् संसद का अनुमोदन प्राप्त करने के लिए उसे संसद में प्रस्तुत किया जाता है। सामान्यत: वित्त मन्त्री द्वारा फरवरी के अन्तिम दिन बजट को लोक सभा में प्रस्तुत किया जाता है। उसी दिन राज्य सभा में भी वित्त : मन्त्रालय का कोई अन्य मन्त्री बजट प्रस्तुत करता है। वित्त मन्त्री बजट प्रस्तुत करने के साथ ही बजट भाषण भी देता है बजट भाषण के पश्चात् उस दिन लोक सभा की बैठक स्थगित कर संसद-सदस्यों को बजट प्रस्तावों पर विचार करने हेतु पर्याप्त समय दिया जाता है। सामान्यत: बजट के साथ ही वित्त विधेयक भी प्रस्तुत किया जाता है जिसमें कर सम्बन्धी प्रस्ताव होते हैं।

(3) बजट पर विचारविमर्श या बहस-बजट प्रस्तुत करने के पश्चात् उस पर सामान्य विचार-विमर्श के लिए एक तिथि निश्चित कर दी जाती है। यह विचार-विमर्श लगभग दो से चार दिन तक चलता है। बहस की समाप्ति पर वित्त मन्त्री बहस में की गई आलोचनाओं और उठाई गई शंकाओं का उत्तर देता है। बहस के दौरान प्रस्ताव रखने या मतदान का कोई अधिकार नहीं होता है। इस प्रकार सामान्य बहस का चरण पूरा हो जाता है।

(4) मतदानबजट पर सामान्य बहस होने के पश्चात् बजट पर मतदान होता है। र मतदान की दृष्टि से बजट की मदें दो प्रकार की, होती हैं–(i) गैर-मतदान योग्य मदें, तथा है। (ii) मतदान योग्य मदें।

(i) गैरमतदान योग्य मदेंये ऐसी मदें होती हैं जिनकी व्यय की स्वीकृति के लिए लोकसभा में मतदान की कोई आवश्यकता नहीं होती। ये व्यय ‘भारत के संघनित कोष’ (Consolidated Fund of India) में से चुकाये जाते हैं। इन मदों में राष्ट्रपति का वेतन, भत्ता और उनके कार्यालय से सम्बन्धित व्यय, संसद के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का वेतन और भत्ते तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते इत्यादि शामिल होते हैं।

(ii) मतदान योग्य मदेंजिन व्ययों की स्वीकृति के लिए संसद में मतदान की आवश्यकता होती है, उन्हें मतदान योग्य मदें कहते हैं। ऐसी मदों की स्वीकृति के लिए सम्बन्धित मन्त्रालय के मन्त्री संसद में अनुदान की माँग करते हैं, जिन पर अलग-अलग बहस होती है। प्रत्येक माँग पर बहस का समय निश्चित होता है। बहस के दौरान सदस्य उस अनुदान की माँग को कम करने या अधिक करने का प्रस्ताव रखते हैं। बहस के बाद मतदान किया जाता है तथा मतदान के आधार पर बजट को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया जाता है |

(5) विनियोग एवं वित्त विधेयक अनुदान माँगों की स्वीकृति के बाद वित्त मन्त्री एक विनियोग विधेयक प्रस्तुत करता है जिसमें गैर-मतदान योग्य मदें तथा स्वीकृत मतदान योग्य मदें शामिल होती हैं। इस विधेयक के पास (पारित) हो जाने पर सरकार को बजट राशि के व्यय करने का अधिकार मिल जाता है। इसके बाद वित्त विधेयक को पारित किया जाता है जिससे सरकार को कराधान द्वारा धन संग्रह करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। दोनों विधेयकों को लोकसभा में पारित कराने के बाद इन पर विचार करने के लिए राज्य सभा में भेज दिया जाता है। इन विधेयकों पर विचार करके राज्य सभा को 14 दिन के अन्दर लोकसभा को वापिस करना होता है। यदि राज्य सभा इस अवधि में यह बिल पास नहीं करती तो लोक सभा यह मान लेती है कि राज्य सभा इनसे सहमत है और दोनों विधेयकों को स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेज देती है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के पश्चात् बजट अन्तिम रूप से स्वीकृत हो जाता है।

(6) बजट का क्रियान्वयन बजट के क्रियान्वयन के अन्तर्गत आय को एकत्रित करना, प्राप्त आय को व्यय करना तथा वित्तीय लेखों का अंकेक्षण करना सम्मिलित होते हैं। वित्त-मन्त्रालय की दो परिषदें हैं–(अ) केन्द्रीय प्रत्यक्ष-कर-परिषद, (ब) केन्द्रीय उत्पादन शुल्क एवं सीमा शुल्क परिषद। प्रत्येक परिषद् में पाँच-पाँच सदस्य होते हैं जिन्हें: केन्द्रीय सरकार नियुक्त करती है। ये परिषदें अपने-अपने क्षेत्र में कर-निर्धारण और कर-एकत्रीकरण के लिए आवश्यक व्यवस्था करती हैं।

कोषों का वितरण (Distribution of the Funds)विनियोग विधेयक पास हो जाने के बाद विभिन्न मन्त्रालयों और विभागों को उनके लिए स्वीकृत राशि सम्बन्धी सूचना भेज दी जाती है। प्रत्येक मन्त्रालय तथा प्रत्येक विभाग स्वीकृत मदों पर स्वीकृत राशि से अधिक राशि व्यय नहीं कर सकता। प्रत्येक विभाग द्वारा व्यय सम्बन्धी लेखे रखे जाते हैं और लेखों के तैयार होने पर महालेखा अंकेक्षक उनकी जाँच करता है और अपनी रिपोर्ट देता है, जिसे संसद में प्रस्तुत किया जाता है। रिपोर्ट में आय प्राप्ति, व्यय और ऋण आदि से सम्बन्धित सभी अनियमितताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है।

बजट का महत्व (Importance of Budget)

बजट केवल आय एवं व्यय सम्बन्धी आंकड़ों का पिटारा नहीं बल्कि राष्ट्रीय उद्देश्यों की पूर्ति का एक प्रभावशाली साधन भी है। वास्तव में बजट किसी देश की आर्थिक स्थिति का दर्पण होता है। बजट को देखकर हम उस देश की सरकार की आर्थिक नीति व प्रगति का पता लगा सकते हैं। संक्षेप में, बजट को राजकोषीय नीतियों के क्रियान्वयन एवं नियंत्रण हेतु एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता है। बजट के महत्व को निम्न शीर्षकों में व्यक्त किया जा सकता है-

(1) प्रशासनिक कुशलता में वृद्धि बजट प्रशासनिक कुशलता को बढ़ाता है क्योंकि यह सरकार और उसके अधिकारियों के कार्यों का सीमांकन करता है।

(2) राजकोषीय नीतियों का उपकरण सरकार को उत्पादन वृद्धि, आर्थिक स्थायित्व और पूर्ण रोजगार आदि की दृष्टि से कर, व्यय, ऋण आदि के सम्बन्ध में जिन विभिन्न नीतियों को लागू करना होता है, उन्हें बजट के माध्यम से ही अपनाया जाता है।

(3) सार्वजनिक कोषों पर विधायी (Legislative) नियन्त्रण बजट के माध्यम से केन्द्रीय सरकार की दशा में संसद को और राज्य सरकारों की दशा में विधान सभाओं को सार्वजनिक कोषों की प्राप्ति और प्रयोग के सम्बन्ध में नियन्त्रण का अधिकार प्राप्त हो जाता है|

(4) प्रजातन्त्रीय सरकार का आधार प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली में विभिन्न क्षेत्र एवं वर्ग की विभिन्न आवश्यकताओं, आकांक्षाओं, हितों एवं लक्ष्यों को पूरा करना पड़ता है। बजट इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है।

(5) सामाजिक कल्याण के लक्ष्य की पूर्ति मे सहायक बजट से न्यायपूर्ण करारोपण सम्भव होता है। आय के वितरण की असमानता को दूर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पिछड़े क्षेत्रों का विकास करके, निर्धन वर्ग के कल्याण हेतु व्यय करके सामाजिक कल्याण के उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है।

](6) उत्तरदायित्व बजट के माध्यम से विभिन्न मन्त्रालयों और विभागों द्वारा किये जाने वाले व्यय, राशि एवं उद्देश्य निश्चित कर दिये जाते हैं। अत: बजट के द्वारा सरकार के विभिन्न विभागों एवं मन्त्रालयों पर इस निश्चित राशि के व्यय किये जाने एवं उपलब्धियों की हिसाबदेयता आ जाती है।

(7) आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन बजट के साथ देश की आर्थिक प्रगति जैसे राष्ट्रीय आय में वृद्धि, आर्थिक विकास की दर, औद्योगिक उत्पादन की स्थिति, सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की भूमिका आदि का विश्लेषण भी प्रस्तुत किया जाता है। इससे देश की आर्थिक प्रगति का मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है।

निष्कर्ष संक्षेप में, बजट सरकार की सम्पूर्ण विचारधारा की एक झलक प्रस्तुत करता है। अर्थशास्त्रियों के लिए यह देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने का एक ढंग है, राजनेता इसके माध्यम से सरकार की आलोचना या समर्थन करते हैं तथा प्रशासक इसका प्रयोग प्रशासनिक ढाँचे में अनुशासन लाने के लिए करते हैं।

प्रश्न 6, निष्यादन बटिंग (PBB) से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख गण एवं सीमाएँ बताइये।

उत्तर

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग (Programming and Performance Budgeting)

किसी भी सरकार के पास असीमित मात्रा में वित्तीय संसाधन उपलब्ध नहीं होते। अन्य आर्थिक इकाइयों की भाँति सरकार के पास भी आवश्यकताओं की तुलना में साधनों की कमी रहती है। अत: सार्वजनिक हित में आवश्यक है कि इनका उपयोग मितव्ययिता एवं कुशलतापूर्वक किया जाये। इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, सरकार द्वारा वैकल्पिक मदों पर व्यय करते समय लागत-लाभ विश्लेषण के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि चयनित परियोजनाओं के वास्तविक लाभ प्रत्याशित लाभ से कम न हों। इस कसौटी के प्रयोग का मुख्य कारण यह है कि लोक व्यय के अपेक्षित एवं वास्तविक निष्पादन में कुछ न कुछ असमानता सदैव बनी रहती है।

उपर्युक्त कसौटी के प्रयोग के लिए यह आवश्यक है कि विचाराधीन परियोजना के कार्यान्वयन की समय सारणी और उससे सम्बन्धित प्रत्येक कारण में अपेक्षित व्यय तथा अपेक्षित प्राप्तियों की संरचना (Structure) को पहले से ही निर्धारित कर लिया जाए। बजट के इस भाग को कार्यक्रम बजटिंग कहते हैं। इसका उद्देश्य निष्पादन को ईष्टतम बनाना और अपव्यय को नियन्त्रित करना है।

निष्पादन बजट (Performance Budgeting) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1949 के हूवर आयोग (Hoover Commission) ने किया था और सुझाव दिया था कि बजट पद्धति कार्यों, कार्यक्रमों और क्रियाओं पर आधारित होनी चाहिए। इस पद्धति की दो प्रमुख बातें थीं-

(अ) व्यय बजट को मदों के बजाय कार्यों पर आधारित किया जाए।

(ब) कार्यों के कुशल निष्पादन के लिए कार्य-लागत की माप की जाए।

संक्षेप में, निष्पादन बजटिंग सरकारी बजट तैयार करने की वह विधि है जिसमें बजट में सम्मिलित होने वाली प्रत्येक मद किसी आर्थिक क्रिया को व्यक्त करती है। यह कार्यों, उद्देश्यों और कार्य- कलापों के रूप में वर्गीकरण करने की एक प्रणाली है। इसका उद्देश्य बजट में नियोजन, वित्तीय आय और उसके भौतिक परिणाम की प्राप्ति के बीच समन्वय बनाये रखना है।

परिभाषाएँ (Definitions)

(i) अमेरिका के एक बजट प्रतिवेदन के अनुसार, “निष्पादन बजट वह है जो सरकार के उन उद्देश्यों, जिनके लिए कोषों की माँग की जाती है को पूरा करने की प्रस्तावित लागत और प्रत्येक परियोजना के अन्तर्गत पूरे किये जाने वाले कार्य का मुल्यांकन करने सम्बन्धी परिमाणात्मक आँकड़ों का वर्णन प्रस्तुत करता है।”

(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ नियमावली के अनुसार, “यह बजट प्रकिया के प्रबन्ध सम्बन्धी बातों पर बल देता है तथा ऐसा करते समय यह बजट के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आर्थिक, वित्तीय तथा भौतिक पहलूओं पर प्रकाश डालता है।”

(iii) एम० जे० के० थावराज के अनुसार, “सार रूप में कार्यक्रम बजटिंग दीर्घकालीन उद्देश्यों के प्रकाश में सम्पूर्ण कार्यक्रम प्रबन्ध की आवश्यकता पर बल देता है। दूसरी ओर निष्पादन बजटिंग का मूल तत्त्व है—किसी वर्ष सम्पादित कार्य की मात्रा तथा इसकी लागत के आधार पर आन्तरिक प्रबन्ध में सुधार।”

निष्पादन एवं कार्यक्रम बजट निर्माण में अन्तर (Distinguish between Performance and Programme Budgeting)

प्रो० जे० बुर्खहैड ने कार्यक्रम एवं निष्पादन की दोनों प्रणालियों में भेद करने का प्रयास किया है-“निष्पादन बजट निर्माण की कोई संक्षिप्त परिभाषा नहीं है, प्रत्येक क्षेत्र जो इसका कार्यान्वयन करता है, उसके लिए इसका अर्थ अलग ही होता है। विशेष रूप में कार्यक्रम बजट और निष्पादन बजट निर्माण की समानार्थक शब्द बनाने की प्रवृत्ति है जिससे बहुत-सी पारिभाषिक अस्पष्टता उत्पन्न हुई है। कार्यक्रम और निष्पादन को उनके समय आयामों के अनुसार भिन्न किया जा सकता है। बजट निर्माण कार्यक्रमों की प्रवृत्ति दूरदर्शी है जो एक सरकार की सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों का प्रक्षेपण होता है। निष्पादन आवश्यक रूप में भूतकाल पर अथवा पूर्व निष्पत्ति पर आधारित होता है।”3

 

संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यक्रम एवं निष्पादन बजट निर्माण सम्बन्धी नियम पुस्तिका में दोनों के मध्य निन्न अन्तर किया है-“कार्यक्रम बजट निर्माण में मुख्य बल बजट वर्गीकरण पर दिया गया है जिसमें कार्य, कार्यक्रम तथा उनके उपविभाजन प्रत्येक एजेन्सी के लिए स्थापित किये गये हैं तथा यह शुद्ध एवं अर्थपूर्ण वित्तीय आँकड़ों से सम्बन्धित किये गये हैं। निष्पादन बजट निर्माण अधिक परिष्कृत प्रबन्धन उपकरणों के विकास को अलिप्त करता है। जैसे-इकाई लागतें, कार्य माप और निष्पादन मापको”4

 

मान्यताएँ (Assumptions)- कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग प्रणाली निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित हैं-

1, बजट के उद्देश्यों तथा उनकी अभिव्यक्ति स्पष्ट है तथा इस सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी उपलब्ध है।

2, साधनों की उपलब्धता तथा उपयोग के बारे में पूर्ण जानकारी है।

3, वर्तमान कार्यक्रमों के निष्पादन का मूल्याँकन सम्भव है।

4, उद्देश्यों को प्राप्त करने के वैकल्पिक तरीके उपलब्ध हैं तथा उनका विश्लेषण करना सम्भव है।

5, भावी परियोजनाओं का निर्माण किया जाता है और उनमें आवश्यकता के अनरूप परिवर्तन करना सम्भव है।

6, निर्णय क्रम-बद्ध ढंग से लिये जा सकते हैं।

 

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग की अवस्थाएँ (Stages of Programme and Performance Budgeting)

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग की निम्न पाँच अवस्थाएँ हैं-

1, राजकोषीय उपायों एवं नीतियों के विभिन्न लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की स्पष्ट अभिव्यक्ति।

2, उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी वैकल्पिक कार्यक्रमों की पहचान।

3, विभिन्न परियोजनाओं, कार्यक्रमों तथा योजनाओं का लागत तकनीक अथवा प्रणाली विश्लेषण द्वारा मात्रात्मक रूप में विश्लेषण।

4, विभिन्न संगठनों/विभागों की सहायता से बजट का प्रभावी क्रियान्वयन।

5, उद्देश्यों के अनुरूप कार्यक्रमों का मूल्याँकन

कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग के गुण/सीमाएँ (Merits/Limitations of Programme and Performance Budgeting)

गुण (Merits)- कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं

1, इस प्रणाली के माध्यम से वित्तीय व्यय तथा उन व्ययों से उत्पन्न भौतिक परिणामों की प्राप्ति के मध्य निकट का सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। अत: सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण करना सरल हो जाता है।

2, इसकी सहायता से यह जाना जा सकता है कि जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए धन व्यय किया गया है, उन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सका है अथवा नहीं।

3, लागत-लाभ विश्लेषण की सहायता से कोषों के वितरण के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना सरल है।

4, यह देश तथा प्रान्त की कार्यकारिणी एवं विधान मण्डल को वैज्ञानिक मार्गदर्शन उपलब्ध करवाने का प्रयास करता है।

5, यह लेखा परीक्षण के कार्य को अधिक उपयोगी बनाता है।

सीमाएँ (Limitations)– कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं

1, यह मूल्य निर्णयों के उद्देश्यों एवं प्राथमिकताओं को परिभाषित करने में असमर्थ

2, यह बजटीय तकनीकों में नव-प्रर्वतकों को पर्याप्त क्षेत्र उपलब्ध नहीं करवाता।

3, इसके निर्णय राजनीतिक कुशलता की अपेक्षा आर्थिक कुशलता पर आधारित होते हैं, जबकि मात्रात्मक अनुमान के लिए राजनीतिक विचारों को जानना आवश्यक होता है।

4, अनेक मदों; जैसे-कानून व व्यवस्था, विदेशी सम्बन्ध आदि में निष्पादन की माप असम्भव है।

5, वैकल्पिक तरीके अत्यधिक व्यापक हो सकते हैं जिन पर निर्णय लेना कठिन है।

6, यह विभिन्न योजनाओं की वास्तविक लागतों और लाभों को मापने के लिये सही सूचना उपलब्ध नहीं करवाता।

  संक्षेप में, कार्यक्रम एवं निष्पादन बजटिंग प्रणाली के अपने दोष हैं, मुख्य रूप से यह प्रणाली सभी राजनीतिक समस्याओं के लिए सही समाधान उपलब्ध करवाने में असफल है।

प्रश्न 7, शून्य आधारित बजट व्यवस्था (ZBB) को विस्तार से समझाइये। 

उत्तर

शून्य आधारित बजट व्यवस्था इस मान्यता पर आधारित है कि कोई भी व्यय मद (Item of Expenditure) आवश्यक (अनिवार्य) नहीं होती। शून्य आधारित बजट का निर्माण करते समय व्यय के वर्तमान स्तर को आधार न मानकर शून्य को आधार माना जाता है और इस आधार पर वित्त मन्त्री अपनी बजट की माँगों को प्रस्तुत करता है। इस प्रकार यह मान लिया जाता है कि गत वर्ष बजट शून्य था। अत: विभिन्न मदों में चालू वर्ष में व्यय राशि का निर्धारण किया जाता हैं। संक्षेप में यह व्यवस्था कार्यक्रम प्रेरित व निर्णय प्रेरित है।

परिभाषाएँ (Definitions)

शून्य आधारित बजटिंग की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) पीटर पायेरर के अनुसार, “शून्य आधारित बजटिंग एक संचालित नियोजन एवं बजटिंग प्रक्रिया है जिसमें प्रत्येक प्रबन्धक (वित्तमन्त्री) को अपने सम्पूर्ण बजट प्रस्तावों का औचित्य शून्य से बताना होता है और प्रत्येक प्रबन्धक (वित्तमन्त्री) पर साक्ष्य का भार डाल दिया जाता है। ये पैकेज विभाग/देश/क्षेत्र की विद्यमान या प्रस्तावित क्रियाओं को पूर्ण करते हैं।”

(ii) जिमी कार्टर के अनुसार, “शून्य आधारित बजटिंग में बजट को इकाइयों में रखा जाता है जिसे ‘निर्णय पैकेज’ कहा जाता है जो प्रत्येक स्तर के प्रबन्धक द्वारा तैयार किये जाते हैं। यह पैकेज विभाग की वर्तमान या प्रस्तावित क्रियाओं को पूर्ण करते हैं।’

शून्य आधारित बजटिंग में समस्त प्रस्तावित मदों में से केवल उसको चुना जाता है जिन्हें लागत-लाभ विश्लेषण के आधार पर उचित ठहराया गया हो तथा इसी विश्लेषण के आधार पर प्रत्येक चयनित मद की व्यय सीमा निर्धारित की जाती है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक साधनों के अपव्यय को पूरी तरह समाप्त कर देना है। यह पद्धति लेखा-निरीक्षण से इस बात में भिन्न है कि लेखा-निरीक्षण में व्ययों की जाँच व्ययोपरान्त की जाती है, जबकि शून्य आधारित बजटिंग व्यवस्था में व्यय से पूर्व ही मदों के चुनाव और उनकी व्यय सीमाएँ निर्धारण करने की प्रक्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं।

इस विधि में प्रत्येक मद को नई मद मानते हुए उसका नये सिरे से मूल्यांकन किया जाता है। यह प्रणाली अत्यधिक व्यवहारिक, औचित्यपूर्ण तथा परिणामोन्मुखी है, क्योंकि यह व्यय किये जाने वाले प्रत्येक मद के औचित्य पर बल देती है तथा किसी भी क्रिया के लिए कोई आधार या न्यूनतम व्यय स्वीकार नहीं करती। इस प्रणाली के अन्तर्गत योजनाओं, कार्यक्रमों तथा क्रियाकलापों को तीव्र गति से लागू करने, परिणामों का प्रभावी ढंग से मूल्यांकन करने तथा सभी मानवीय कौशल तथा अर्न्तवैयक्तिक सम्बन्धों को विकसित करने पर बल दिया जाता है।

सर्वप्रथम 1924 में हिल्टन यंग ने अपने लेख में ‘शून्य आधारित बजट’ का उल्लेख किया था। 1902 में अमेरिकी कृषि विभाग ने इस पद्धति को अपनाया। 1977 में जिमी कार्टर ने इसे संशोधित रूप में अपनी संघीय सरकार में अपनाया। 1985-86 में भारत सरकार ने इसे सैद्धान्तिक रूप से स्वीकार कर लिया।

शून्य आधारित बजट की विशेषताएँ (Characteristics of Zero Base Budgeting)

शून्य आधारित बजट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1, साधनों के विभिन्न मदों पर आबंटन तथा निष्पादन के विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रमों की जाँच की जाती है।

2, प्रत्येक विभाग के लिए उद्देश्यों/लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है।

3, प्रत्येक विभाग की क्रियाओं के निर्णय पैकेज के रूप में रूपान्तरित किये जाते हैं।

4, निर्णय पैकेज का मूल्यांकन किया जाता है।

शून्य आधारित बजट की पूर्व शर्ते (Pre-conditions of Zero Base Budgeting)

शून्य आधारित बजट व्यवस्था की सफलता के लिए निम्न शर्तों का पूरा होना आवश्यक है-

1, सम्बन्धित विभाग कागजी कार्यवाही व उसकी विस्तृत व्याख्या करने में सक्षम हो।

2, सभी सम्बद्ध अपेक्षित सूचनाएँ उपलब्ध हों।

3, सूचनाओं में लागत समंक सम्मिलित हों।

4, कार्यों में प्राथमिकता क्रम का निर्धारण ठीक प्रकार से हो।

शून्य आधारित बजट प्रक्रिया के चरण/अवस्थाएँ (Steps/Stages in Zero Based Budgeting Process)

शून्य आधारित बजट व्यवस्था एक दृष्टिकोण है जिसे प्रत्येक विभाग की आवश्यकताओं के अनुकूल ढ़ालना आवश्यक होता है। इस प्रक्रिया के प्रमुख चरण/अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं-

1, उद्देश्यों/लक्ष्यों का निर्धारण एवं मूल्यांकन करना।

2, निर्णय करने वाली इकाइयों की पहचान करना।

3, निर्णय समूह में शामिल प्रत्येक इकाई का विश्लेषण करना।

4, संगठन की विभिन्न क्रियाओं का व्यापक विश्लेषण करना।

5, सभी निर्णयन समूहों का मूल्याँकन एवं श्रेणीकरण करना।

6, विस्तृत परिचालन बजट तैयार करना जिसमें वह निर्णय समूह प्रतिबिम्बित हो जिसको बजट व्यय में स्वीकृति दी गई है।

7, आवश्यक आदाओं के क्रय के लिए उच्चाधिकारी को प्रस्ताव भेजे जाते हैं।

8, प्रस्तावों को अन्तिम रूप दिया जाता है।

शून्य आधारित बजट के सिद्धान्त (Principles of Zero Based Budgeting)

शून्य आधारित बजट के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

1, क्या हमें खर्च करना चाहिए ? (Should we Spend)- इस व्यवस्था में किसी विभाग को किसी मद पर कुछ भी व्यय प्रस्तावित करने से पूर्व शून्य आधार से इच्छित व्यय के स्तर के औचित्य को सिद्ध करना आवश्यक होता है। इसके समर्थन में जो लिखित विश्लेषणपरक प्रलेख प्रस्तुत किया जाता है, उसे निर्णय पैकेज कहा जाता है।

2, हमें कितना खर्च करना चाहिए? (How much to Spend?)- इस प्रश्न क उत्तर प्रत्येक विभाग को लागत-लाभ विश्लेषण (Cost Benefit Analysis) के आधार पर देना होता है। इस सम्बन्ध में, लागत लाभ विश्लेषण के आधार पर ही प्रत्येक विभाग की जवाबदेही तय होती है। इसका उद्देश्य किसी भी मद पर अनावश्यक व्यय को रोकना है।

3, हमें कहाँ व्यय करना चाहिए? (Where should we Spend)- सेवाएँ प्रतियोगी होती हैं। शून्य आधारित बजट प्रणाली में हमें प्रतियोगी सेवाओं के बीच प्राथमिकताएँ निर्धारित करनी होती हैं। प्राथमिकता क्रम का निर्धारण सेवाओं के महत्त्व की दृष्टि से किया जाता है।

शून्य आधारित बजट के लाभ (Benefits of Zero Based Budgeting)

शून्य आधारित बजट के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

1, यह वास्तविकता के अधिक निकट है, क्योंकि इसमें प्राथमिकताओं, उद्देश्यों व लक्ष्यों का व्यापक अध्ययन करने के पश्चात् ही लागत तत्त्वों का अधिक अच्छे ढंग से विश्लेषण किया जा सकता है।

2, अलाभकारी व्ययों को शून्य आधारित बजट के माध्यम से कम अथवा समाप्त किया जा सकता है।

3, लागते का सही आँकलन सम्भव है।

4, निम्न प्राथमिकता वाले कार्यक्रमों को कम किया/हटाया जा सकता है।

5, अधिकारियों द्वारा प्रबन्ध प्रक्रिया में भाग लेने के कारण सम्प्रेषण (Communication) सरल हो जाता है।

6, एक ही उपक्रम के अन्तर्गत संसाधनों के आबंटन में बदलाव लाकर उच्च प्रभाव वाले कार्यक्रमों के लिए अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये जा सकते हैं।

7, विभिन्न मदों में सार्वजनिक व्यय के लाभों को अनुकूलतम बनाया जा सकता है।

8, सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की क्रियात्मक कार्यक्षमता (Operational Efficiency) में वृद्धि की जा सकती है।

शून्य आधारित बजट की सीमाएँ/अवगुण (Limitations/Demerits of Zero Based Budgeting)

1, शून्य आधारित बजट पद्धति लागत-लाभ विश्लेषण पर आधारित है जिसे सार्वजनिक सेवाओं (Public utility services) पर लागू नहीं किया जा सकता।

2, थोड़ी सी भी असावधानी होने पर इस बजटिंग का क्रियान्वयन कठिन हो जाता है।

3, कार्यों का विश्लेषण एवं मूल्यांकन करने में काफी अधिक समय लग जाता है।

4, यह पद्धति आयगत प्राप्तियों (Revenue receipts) की मदों के मूल्याँकन में अधिक उपयोगी नहीं है।

5, समय-समय पर इस पद्धति में सुधार करना आवश्यक होता है।

6, इस पद्धति को राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, राज्य सभा के अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष, सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायधीशों पर लागू नहीं किया जा सकता। नौकरशाही (Bureaucracy) भी इसका विरोध करती है।


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