B.Com 1st Year Insolvency Account Insolvency Acts in India
दिवालिया सम्बन्धी खाते Insolvency Account
B.Com 1st Year Insolvency Account Insolvency Acts in India: प्रत्येक व्यापारी अपना व्यवसाय लाभ कमाने के उदेश्य से करता है परन्तु कभी-कभी व्यायसायिक किर्याओ के ठीक ढग से न हो पाने या अन्य किसी कारण से व्यापारी के समक्ष ऐसी स्थितिया उत्पन हो जाती है की वह अपने दायित्व का भुगतान करने में असमर्थ हो जाता है ऐसी दशा में वह कानून से सहायता प्राप्त करके अपने दायित्व के भुगतान से मुक्त पा सकता है ऐसी दशा में ऋणी की समस्त सम्पतियो को बेचकर जितना सम्भव हो लेनदारो को भुगतान कर दिया जाता है |
साधारण बोलचाल में ऐसा व्यक्ति जिसके दायित्व उसकी सम्पतियो से अधिक हो जाए, दिवालिया कहलाता है परन्तु वैधानिक द्रष्टि से वह व्यक्ति जो निम्न दो शर्तो को पूरा करता है दिवालिया कहलाता है –
I. उसके दायित्व उसकी सम्पतियो से अधिक हो,तथा
II. न्यायालय द्वारा उसको दिवालिया घोषित कर दिया गया हो |
भारत में दिवालिया सम्बन्धित अधिनियम (Insolvency Acts in India)
1) प्रेसिडेन्सी टाउन्स दिवाला अधिनियम 1909 (Presidency Town Insolvency act, 1909) — यह अधिनियम तीन महानगरो – मुंबई कोलकता तथा चेन्नई में लागु होता है महत्वपूर्ण है की दिल्ली पर यह अधिनियम लागु नही होता है
2) प्रान्तीय दिवाला अधिनियम 1920 (Provincial Insolvency act 1920) – यह अधिनियम उपरोक्त तीन महानगरो को छोडकर शेष भारत (Rest of India ) में लागू होता है |
दिवालिया धिषित होने की विधि (Insolvency Procedure)
किसी व्यक्ति को दिवालिया धोषित होने के लिए निम्न प्रकिर्या को अपनाना पड़ेगा –
i. दिवालिया धोषित होने के लिये प्राथनापत्र देना – न्यायालय द्वारा दिवालिया धोषित किए जाने के लिये ऋणी अथवा ऋणडादाता द्वारा न्यायालय में आवेदन पत्र देना आवश्यक होता है यदि ऋणी का भुगतान करने में असमर्थ को (उस पर 500 रु० से अधिक की देनदारी हो जिसे वह भुगतान कर पा रहा हो ) अथवा वह ऋण न चुकाने के कारण न्यायालय में हिरासत में हो तो वह स्वय न्यायालय में आवेदन कर सकता है ऋणदाता भी ऋणी के दिवालिया धोषित होने के लिये न्यायालय में प्राथनापत्र दे सकता है परन्तु इसके लिये यह आवश्यक है की उसे ऋणी से 500 रु० से अधिक लेने हो तथा उसके आवेदन देने के पूर्व के तीन माह में ऋणी ने दिवालिया का कोई आचरण किया हो |
ii. न्यायालय द्वारा दिवालिया होने का आदेश (Adjudication Order by Court) – ऋणी अथवा ऋणदाता द्वारा आवेदन देने के उपरांत न्यायालय एक तिथि धोषित क्र उसके आवेदन की सुनवाई करता है तथा यह निशचित करता है की ऋणी को दिवालिया धोषित किया जाए या नही | यदि वह ऋणी को दिवालिया धोषित करता है तो वह एक आदेश देता है जिसे दिवाला आदेश (Adjudication Order ) कहते है इस आदेश के बाद ऋणी न्यायिक रूप से दिवालिया घोषित हो जाता है तथा उसकी सम्पतियो पर न्यायालय का अधिकार हो जाता है |
iii. न्यायालय द्वारा ऋणी की सम्पति की वसूली तथा लेनदारो में वितरण ( Realisation of Assets by Court and Payment to Creditor ) — दिवाला आदेश पारित होने के पशचात न्यायालय ऋणी की सम्पतियो की वसूली के लिये एक अधिकार को नियुक्त कर देता है जिसे आफिशियल रिसीवर (Official Receiver) कहा जाता है यह अधिकारी ऋणी की सम्पतियो को अपने अधिकार में लेकर उनकी वसूली करता है तथा लेनदार को उनके भुगतान के क्रम के अनुसार भुगतान करता है |
iv. न्यायालय से मुक्ति प्रमाणपत्र प्राप्त करना (Receiving Discharge Certificate From Court) – अधिकारी की रिपोर्ट आने के पशचात न्यायालय द्वारा ऋणी को एक प्रमाण पत्र प्रदान किया जाता है जिस मुक्ति प्रमाण पत्र कहा जाता है मुक्ति प्रमाण पत्र मिलने के पशचात ऋणी अपने समस्त दायित्वों से मुक्त हो जाता है तथा इसके बाद वह नया व्यवसाय भी आरम्भ कर सकता है ऋणी को यह प्रमाण पत्र तभी दिया जाता है जब न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी अपनी रिपोर्ट में ऋणी को उसके दायित्व से पूर्णत: मुक्त घोषित करे |
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