Corporate Formal Informal Communication And Grapevine

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 निगमित सम्प्रेषण से आशय

Corporate Formal Informal Communication And Grapevine :व्यवसारिक एवं अन्य संस्थाओ का अपना संगठन होता है | संस्था के निर्धारित लक्ष्यों एवं उदेश्य को प्राप्त करने के लिए संगठन में शामिल व्यक्तियों के समूह की क्रियाओ, निर्णयों एवं सम्बन्धो के विश्लेषण के आधार पर संगठन सरचना का निर्धारण किया जाता है | इस सरचना के द्वारा संगठन में विभिन्न स्तरों एवं विभागों के मध्य सम्प्रेषण का प्रवाह ( Flow) होता है | संचार प्रक्रिया के द्वारा निगम या कम्पनी संगठन के विभिन्न सदस्यों के मध्य प्रतीकों या चिन्हों सामान्य प्रणाली का प्रयोग करके सन्देशो को आदान-प्रदान करते है जिसका उदेश्य सन्देश के अर्थ को आपस में समझना या बाटँना होता

है | निगम संगठन में संचार के दो प्रमुख कार्य है –

(1) संगठन में विभिन्न व्यक्तियों को संदेश या सुचना के आदान-प्रदान के योग्य बनाना |

(2) संगठन के व्यक्तियों को गौर-सदस्यों से अलग बने रहने में सहायता करना |

इस प्रकार व्यवसायिक संगठन अपने उदेश्य की पूर्ति के लिये संचार पर निर्भर रहते है | निगम संगठन में जहाँ हजारो कर्मचारी एक साथ कार्य करते है तथा वह जगह-जगह नियुक्त होते है वहाँ सही व्यक्ति को सही समय पर सही सुचना या सन्देश देना वास्तव में एक बड़ी चुनौती होता है |



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नैगमिक सम्प्रेषण की विधियाँ (Corporate Formal Informal Communication And Grapevine)

स्थापन में संचार की विधि के अंतर्गत सुचना को कुछ माध्यमो द्वारा प्रवाहित किया जाता है | सूचनाओ के प्रवाह के लिये जो भी विधि या प्रध्दति अपनाई जाती है उसे हम नेटवर्क के नाम से पुकारते है | निगमित सम्प्रेषण में सूचनाओ के प्रवाह के लिये नेटवर्क नियमित आकार, पध्दति अथवा बनावट का होता है जो संगठन के व्यक्तियों का अन्य व्यक्तियों से सम्बन्ध को बनाए रखता हैं | नैगमिक सम्प्रेषण की विभिन्न विधियों की अगले प्रष्ठ पर प्रदर्शित चार्ट द्वारा सरलता पूर्वक समझा जा सकता है –

अत: स्पष्ट है की संचार विधियाँ प्रमुख रूप से दो प्रकार की होती है औपचारिक सम्बन्ध होता है तथा इस सम्बन्ध के अनुसार ही सन्देश उपर से नीचे अर्थार्त अधिकारीयों से कर्मचारियों की तरफ तथा नीचे से उपर की और अर्थार्त कर्मचारियों से अधिकारियो की तरफ प्रेषित किये जाते है तो ऐसी संचार प्रणाली को औपचारिक संचार प्रणाली कहते है | इस व्यवस्था में सन्देश एक पूर्व निश्चित मार्ग या माध्यम द्वारा ही प्रेषित किए जाते है | वस्तुतः औपचारिक सम्प्रेषण एक प्रबन्धन द्वारा तैयार किया गया नेटवर्क होता है | जब हम किसी कार्य के लिए विधिवत् होने की बात करते है, इसका अभिप्राय किसी संगठन के प्रबन्धक ने जो नेटवर्क तैयार किया है प्रक्रिया से कार्य के होने की बात करते है | जैसे, एक क्लर्क जो किसी संगठन के किसी अन्य भाग में कार्यरत है, वह सीधे इस संगठन के प्र्बन्द्क निदेशक से संचार क्रिया नही कर सकता है | वह अपने पर्यवेक्षक से बात करेगा और उसके माध्यम से सन्देश को विभागीय प्रबन्धक के पास प्रेषित करेगा, तत्पश्चात उसका सन्देश प्रबन्धक निदेशक तक पहुचेगा |

 

( TYPES OF FORMAL COMMUNICATION ) औपचारिक संचार के प्रकार

औपचारिक संचार निमनलिखित तीन प्रकार का हो सकता है –

(1) उध्वार्धाकर संचार (2) क्षेतिज या समतल संचार (3) आरेखी संचार

(1) उध्वार्धाकर ( लम्बवत् ) संचार ( Vertical Communication ) – संगठन सरचना ले विभिन्न स्तरों के मध्य जब सम्प्रेषण का प्रवाह उच्च आधिकरयो से अधिनस्थो से उच्च आधिकरयो की ओर होता है, तो उसको लम्बवत् व्यावसायिक सम्प्रेषण कहते है | लम्बवत् सम्प्रेषण निम्न दो प्रकार हो सकता है –

(i) अवरोही या निचे की और संचार (Downward communication) : जब सन्देश उच्च अधिकारियो द्वारा अधीनस्थ अधिकारियो एंव कर्मचारियों को दिया जतय है तो इसे अवरोही संचार कहते है | यह संचार लिखित व मौखिक हो सकता है | इसमें प्रबंधक वर्ग द्वारा अपने अधिनस्थो को कार्य के सम्बन्ध में आदेश एंव दिशा निर्देश दिए जाते है आदेश, निर्देशपत्र , जॉब सहित, बुलेटिन आदि इसके प्रमुख उदहारण है |

(ii) आरोही या ऊपर की और संचार ( Upward Communication ) : जब सन्देश का प्रवाह निम्न पदों से उच्च पदों की और होता है अर्थात जब सन्देश अधीनस्थ क्रमचारियो द्वारा उच्च अधिकारियो को भेजे जाता है तो इसे आरोही संचार कहा जाता है | इस संचार में क्रमचारियो की भावनाओ , समस्याओ व् सुझाव का ज्ञान हो जाता है तथा उनके मनोबल एंव उत्पादक में वृधि होती है |

(2) क्षैतिज या समतल संचार ( Horizontal Communication ) :  जब संगठन में सामान स्तर के क्रमचारियो, अधिकारियो अथवा विभागाध्यक्षौ के मध्य संदेशो का आदान-प्रदान होता है तो इसे क्षैतिज या समतल संचार कहते है |यह संचार सहकारिता व सामूहिक कार्य की भावना को जनम देता है | उदहारण के लिए, संगठन के विपन्न प्रबंधक व उत्पादन प्रबंधक के मध्य सम्प्रेषण अथवा एक सेल्समेन का उसी संगठन में कार्य करने वाले दुसरे सेल्समेन के साथ सम्प्रेषण, क्षैतिज संचार कहलाता है | इस संचार का प्रमुख उद्देश्य संगठन के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों में मध्य सुचना या सन्देश का आदान – प्रदान करना होता है |

(3) आरेखी संचार (DIAGONAL COMMUNICATION ) : संगठन के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों के मध्य होने अल संचार जिनमे कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नही होता आरेखी संचार कहलाता है | इस प्रकार का संचार एक संगठन के उदेश्य व् लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होता है तथा साथ ही सहकारिता की भावना को बढ़ावा भी देता है | इस संचार में अन्य संचार की तुलना में समय कम लगता है तथा अनुक्रम का बंधन नही होता इसीलिए यह अत्यधिक प्रभावी होता है |




MERITS OF FORMAL COMMUNICATION औपचारिक संचार के लाभ

औपचारिक संचार के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है –

(1) उतरदायित्व का बोध – औपचारिक संचार विभिन्न अधिकारियो व् जिम्मेदार व्यक्तयो के मध्य से होता है , अत: इसमें क्रमचारियो में उतरदायित्व की भावना उत्पन्न होती है |

(2) आदेश की एकता – औपचारिक संचार में आदेस्ख की एकता को बनाये रखा जा सकता है और भिन्न –भिन्न आदेशो व् निर्देशो० में तालमेल बैठाया जा सकता है | इसमें अपने विभाग के क्रमचारियो के कार्य के लिए विभागीय अधिकारी को ही जिम्मेदार ठराया जाता है |

(3) सन्देश की विश्वसनीयता – औपचारिक संचार में दिए गये सन्देश की जिमेदारी प्रक्रिया में सम्मिलित व्यक्तयो की होती है जिसमे सन्देश में प्रम्निकता व् विश्वसनीयता बनी रहती है |

(4)  उचित व् प्रभावशाली संचार – संचार की इस पढ़ती में आदेशो की एकता को कायम रखा जाता है और भिन्न भिन्न आदेशो व् निर्देशों में तालमेल बैठाया जा सकता है | साथ ही इस पढ़ती में आगे भेजे जाने वाले सन्देश की भाषा, व्याख्या तथा सामयिकता को कर्मचारी या अधिकारी की समझ तथा वक्त की जरुरत के अनुसार ढला जा सकता है |

(5) नियन्त्रणीय संचार – इस संचार की दिशा, प्रक्रति तथा गति पर संस्था के पर्बंधाको का पूरा नियंत्रण रहता है , साथ ही वे इस संचार में दी गई सूचनाओ को गंभीरता से लेते है क्योंकि इन्हें नाकारा नही जा सकता | इसीलिए इस प्रकार का संचार पूरी तरह से नियंत्रणीय होता है |
(6) संदेशो को तोड़ मरोड़ की सम्भावना कम होना = औपचारिक संचार में , संचार की प्रक्रिया पूर्णरूप से स्पष्ट व् निश्चित होती है जिसमे सन्देश के तोड़-मरोड़ की सम्भावना कम हो जाती है | इससे सन्देश मूलरूप में सम्बंधित व्यक्ति तक भेजा जा सकता है |

 

DEMERITS OF FORMAL COMMUNICATION औपचारिक संचार के दोष

औपचारिक संचार के प्रमुख दोष निम्न प्रकार है –

(1) सूचनाओ के प्रवाह में देरी –  औपचारिक संचार में सूचनाये एक पूर्व निश्चित मार्ग या माध्यम के द्वारा ही प्रेषित की जाती है | इसमें सूचनाओ को संगठन के विभिन्न स्तरों से होकर गुजरना पदत्या है तथा सही व्यक्ति तक सुचना पहुचने में बहुत देरी हो जाती है | फलस्वरूप उस पर तुरंत कार्यवाही नही हो पाती जिससे कभी- कभी संस्था को हानि भी उठानी पड जाती है |

(2) प्रबंधको के कार्य – भार में वृधि –  औपचारिक संचार प्रक्रिया में अधिकारिक के कार्य भार में अनावश्यक वृधि हो जाती है , क्योंकि सभी संचार उनके माध्यम से ही प्रभावी होते है |

(3) सन्देश के मूल भाव में परिवर्तन – इसमें सूचनाये प्रबंधक के विभिन्न स्तरों से होकर गुजरती है तथा हर स्तर पर मूल सुचना सन्देश प्रेषक के पूर्वाग्रह तथा समझ से प्रभावित होती है | इसी कारन कभी-कभी सन्देश के मूल भाव में परिवर्तन हो जाता है तथा सन्देश की यथार्थता कम हो जाती है
|

(4) लालफीताशाही –  इस प्रकार की सम्प्रेषण प्रक्रिया से संगठन में लालफीताशाही को बढ़ावा मिलता है | इससे उच्च अधिकारी व निम्न क्रमचारियो के मध्य सम्प्रेषण अंतर उत्पन्न हो जाता है तथा इसका उनके संबंधो पर पर्टिकुल प्रभाव पड़ता है |

(INFORMAL COMMUNICATION) अनौपचारिक सम्प्रेषण

जब सूचनाओ का आदान-प्रदान संगठन में निर्धारिक संबंधो के आधार पर नही बल्कि अनौपचारिक संबंधो के आधार पर किया जाता है , तो इसे अनौपचारिक सम्प्रेषण कहते है | अनौपचारिक संबंधो का निर्माण व्यक्तिगत एंव सामाजिक संबंधो , भावनाओ, धर्म, मित्रता, रूचि आधी के आधार पर होता है तथा इन्ही संबंधो के आधार पर वे सन्देश का प्रवाह करते है |

सम्प्रेषण की इस प्रणाली में सूचनाये एक क्रम से ऊपर से निचे या निचे से ऊपर या समान स्तर पर दांये-  बांये नही जाती बल्कि एक अत्यंत टेढ़े मेधे रस्ते से जाती है जो संगठन के चार्ट में नजर नही आता | इस विधि में सूचना बहुत शीघ्रता से फैलती है |

कुछ संस्थाओ द्वारा इस पढ़ती का उपयोग औपचारिक सम्प्रेषण के विकल्प के रूप में किया जाता है इसमें प्राय: मौखिक रूप से ही सन्देश दिया जाता है तथा यह अनौपचारिक संबंधो के आधार पर एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति तक पहुचता है |

इस प्रणाली में पद-स्थिति का कोई ध्यान नही रखा जाता है यदि कोई सुचना तेजी से फैलानी हो तो इस विधि सर्वोतम रहती है परन्तु इस विधि का सबसे बड़ा दोष यह है | की सुचना में प्रत्येक व्यक्ति अपनी और से कुछ जोड़-तोड़ कर देता है , इससे सही सुचना व्यक्ति तक नही पहुचती बल्कि गलत अफवाहे फैलती है जो की कई बार बहुत हानिकारक सिद्ध होती है | यदि इस प्रणाली का उचित ढंग से उपयोग किया जाये तो औपचारिक संचार को स्पष्ट करने और उनका प्रचार करने में यह बहुत सहायक होती है |

अनौपचारिक संचार की विशेषताएं (Corporate Formal Informal Communication And Grapevine)

अनौपचारिक संचार की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित है –

(1)  इसमें सन्देश प्राय: मौखिक रूप से दिए जाते है | और  इसका प्रसार कानो-कण आगे बढ़ता जाता है |

(2)  इस संचार पद्धति में पद स्थिति का कोई ध्यान नही रखा जाता और यह संगठन के चार्ट में नजर नही आता |

(3) अनौपचारिक संचार में सूचनाये किसी क्रम से नही बल्कि टेढ़े-मेढे रास्ते से गुजरती है |

(4) अनौपचारिक संचार में सूचनाये बहुत तीव्रता से फैलती है |

(5) यह संचार अधिकांशत: अफवाह तथा गलतफहमियो  से ओत-प्रोत होता है और अंतिम व्यक्ति तक पहुँचते पहुँचते अपने मूल स्वरूप को खो देता है |




(ADVANTAGES OF INFORMAL COMMUNICATION)  अनौपचारिक संचार के लाभ

(1) संचार  का त्रिव और लचीला माध्यम – अनौपचारिक संचार संदेशो के आदान-प्रदान का बहुत लचीला माध्यम है क्योंकि इसमें पदस्थिति या आदेश श्रंखला का कोई भी ध्यान नही रखा जाता है | साथ ही, यह बहुत तेजी से सुचना प्रसारित करने का तरीका है क्योंकि यह कानोकान फ़ैल जाता है |

(2)  सहयोग की भावना – इस संचार पद्धि के द्वारा उच्च प्रबंध तथा अधिनस्थो की मध्य मधुत मानवीय संबंधो का सर्जन होता है तथा उनमे आपकी सहयोग तथा सद्भाव का विकास होता है |

(3) क्रमचारियो की राय के बारे में जानकारी –  अनौपचारिक संचार पर्बंध्को को संगठन के कम करने वाले विभिन्न लोगो की राय के में लगभग सही उनकी अछि जानकारी करा देती है | फलस्वरूप वे अपनी नीतियों की स्वंय जाँच क्र सकते है |

(4) निति निर्माण में सहायक –  अनौपचारिक संचार के द्वारा उच्च अधिकारियो को संस्था की कार्य- प्रणाली के बारे में सही जानकारी प्राप्त करके उनमे सुधर कर सकते है | इससे प्रबंधको को निति-निर्माण में सहायता मिलती है |

( DISADVANTAGES OF INFORMAL COMMUNICATION ) अनौपचारिक संचार के दोष

(1) विश्वसनीयता की कमी – अनौपचारिक संचार के द्वारा प्राप्त सूचनाये पूर्ण रूप से विश्वसनीय नही होती | अधिकांश अनौपचारिक संचार जो कानो-कण फैलाया जाता है उसमे सच कम अफवाह व लग-लपेट अधिक होता है |

(2)  अनियंत्रित संचार – इस संचार पर प्रबंधको का कोई नियंत्रण नही होता , अत: यह अनियंत्रित होता है | इस संचार के प्रवाह व दिशा को नियंत्रित करना असंभव होता है |

(3) सन्देश के तोड़-मरोड़ की सम्भावना अधिक होना – अनौपचारिक संचार में सूचनाये तीव्रता से फैलती है तथा इसमें पद-स्थिति को भी ध्यान में नही रखा जाता इसमें सुचना में प्रत्येक व्यक्ति अपनी तरफ से कुछ जोड़-तोड़ कर देता है जिससे सही न्सुचना सही व्यक्तियों तक नही पहुचती बल्कि गलत अफवाहे फैलती है |

(4) असंगठित संचार – अनौपचारिक संचार में भिन्न-भिन्न आदेशो व निर्देशों में तालमेल बैठाना संभव नही हो पता जिससे आदेशो में एकता का आभाव रहता है | साथ ही इस संचार में यह दर भी रहता है की कर्य्वाह्गी से सम्बंधित स्तर के प्रबंधक को शायद अपने विभाग में चल रही कार्यवाही की कोई जानकारी ही न हो, क्योंकि कार्यवाही से सम्बंधित आदेश उसने तो दिए नही , वे तो ऊपर से क्रमचारियो के द्वारा खुद निजी संबंधो के कारन लाये गये है |

(GRAPEVINE ) अंगूरीलता (अपुष्ट या ग्रेपवाईन )

अपुष्ट या ग्रेपवाइन संचार से आशय संचार की उस पर्नाली से है जो पूर्णतया अनौपचारिक होता है तथा जिसमे किसी भी नियम का पालन न्म्ही किया जाता इस प्रकार के संचार का न तो कोई आरामब होता है और न ही अंत | इसमें सुचना प्रदान करने का तरीका कभी भी एक सा नही रहता बल्कि समय व् परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है | इसमें सामान्यत: सुनी-सुने सूचनाओ , अनुमानों, तोड़े-मरोड़े गये तथ्यों तीखी – चटपटी खबरों तथा मिथ्या प्रचारों आदि का प्रसार होता है | इसीलिए इसे “अफ्वाओ का मिल “ भी कहते है | इस प्रकार के संचार की विश्वसनीयता संदेशपूर्ण होती है तथा इसमें वास्तविक सत्य गम हो जाता है | इस प्रकार के संचार की गति बहुत तीव्र होती है लेकिन यह आवश्यक नही होता है की यह संचार पूर्णत: असत्य ही हो, कई बार यह सत्य के ख़ा९ई भी होता है | ऐसे संदेशो का प्रचार, सामाजिक समारोहों, दोपहर के भोजन के समय, सामूहिक कार्यक्रमों आदि के द्वारा होता है | इसे अंगूरीलता सम्प्रेषण भी कहा जाता है |

कीथ देविस के अनुसार “ग्रेपवाइन या अपुष्ट , संचार आधारिक रूप से स्मस्त्रिय संचार का एक चैनल है क्योंकि यह श्रेनिबध सामान स्तर पर कार्य करने वाले केवल उन व्यक्तियों से सम्बंधित है जो पुरे आराम से एक दुसरे के साथ अनौपचारिक संचार कर सकते है |”

( CHARACTERISTICS OF GRAPE-VINE COMMUNICATION ) अपुष्ट या ग्रेपवाइन सम्प्रेषण की विशेषताएं

अपुष्ट या ग्रेपवाइन सम्प्रेषण की प्रमुख विशेषताए निम्न प्रकार है –

(1) अपुष्ट संचार पूर्णतया अनौपचारिक होता है जिसमे सूचनाओ के प्रवाह के लिए किसी भी नियम का पालन नही किया जाता |

(2) इसमें सुनी-सुने सूचनाओ का प्रसारण किया जाता है अत: यह सत्यता के निकट हो सकता है और नही भी |

(3) ग्रेपवाइन सम्प्रेषण, सम्प्रेषण की प्राचीनतम प्रणालियों में से एक है और आज के परिप्रेक्ष्य में इसका बहुत महत्त्व है |

(4) इसमें सुचना प्रदान करने का तरीका कभी भी एक जैसा नही रहता बल्कि समय व् परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है |

(5) इसमें सूचनाओ की विश्वसनीयता संदेशपूर्ण होती है क्योंकि जितने व्यक्तियों के मध्य होकर यह सन्देश गुजरता है उतना ही अधिक विकर्त हो जाता है |

(6) यह एक ही स्तर पर कार्य करने वाले उन व्यक्तियों से सम्बन्ध रखता है जिनमे अनौपचारिक सम्बन्ध रखता है जिनमे अनौपचारिक सम्बन्ध होता है |

 

TYPES OF GRAPEVINE CHAINS ग्रेपवाइन श्रंखला के प्रकार

ग्रेपवाइन श्रंखला प्रमुख रूप से चार प्रकार की हो सकती है –

(1) एकल आधार श्रंखला ( single stand chain ) –  इस प्रकार के संचार में संदेश एक सीधी रेखा में प्रभावित होता है इस आधार में एक व्यक्ति एक क्रम के अनुसार दुसरे को सन्देश देता है तथा सन्देश प्राप्त करने वाला व्यक्ति आगे सन्देश देता रहता है | उदहारण के लिए राजीव किसी सन्देश  कोई संजीव से कहता है , संजीव इसी सन्देश को आशिस से कहता है तथा आशिस इसी सन्देश को आयुष से कहता है और इसी प्रकार निरंतर आगे क्रम चलता तहत है | इसके प्रत्येक संचारक अपनी तरफ से भी सन्देश में कुछ मिलावट स्वाभाविक रूप से क्र देता है इसे निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

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(2)  गपशप श्रंखला (Gossip Chain ) –  गपशप में एक व्यक्ति द्वारा बिना चयनित आकर के सभी को एक साथ सन्देश दिया जाता है | गोशिप श्रंखला एक गोल चक्र या पहिये की भांति है | इसमें सम्प्रेषण की भूमिका केंद्र बिंदु अथवा धुरी पर स्थित होती है वह गोसिप द्वारा अपना सम्प्रेषण एक साथ कई व्यक्ति को करता है जो चक्र के किनारों (RIM) पर विभिन्न स्तरों एंव स्थितियों पर होते है |

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(3)  गुच्छ या समूह श्रंखला (Cluster Chain) –  जिस प्रकार अंगूर के गुच्छे में अंगूर एक दुसरे से सम्बन्ध होते हुए एक समहू के रूप में दिखत्ते है , ठीक उसी प्रकार इस संचार श्रंखला में भी सम्प्रेषण एनी व्हाक्तियो को जो उससे सम्बंधित होते है अथवा उस पर विश्वास करते है , संचार करता है | उपरोक्त निरंतर रूप से संचार को आगे फैलाती है इसे निम्न चित्र स्पष्ट किया जा सकता है |

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प्रस्तुत चित्र में A चार व्यक्तयो B, C, D, तथा E को सुचना प्रदान करता है | B पुन: F, G, H तीन व्यक्तयो को जो उससे सम्बंधित , संचार करता है | इसी प्रकार C आगे I को सन्देश संचारित करता है तथा D तीन व्यक्तियों J, K, L को सुचना प्रदान करता है | इसी प्रकार यह श्रंखला चलती रहती है |

(4) प्रायिकता श्रंखला (Probability Chain) – प्रायिकता श्रंखला में प्रायिकता के सिधांत के आधार पर एक व्यक्ति द्वारा एनी व्यक्तियों को अनियमित रूप से सन्देश दिया जाता है | इसमें अचानक किसी रोचक सन्देश को व्यक्त किया जाता है तथा उसका आगे भी अकस्मात सम्प्रेषण फैलाव होता रहता है | इस सन्देश श्रंखला का आकर कभी भी एक जैसा नही होता | इसे अग्रे चित्र द्वार स्पष्ट किया जा सकता हैं |

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 ( ADVANTAGES OF GRAPEVINE ) ग्रेपवाइन या अपुष्ट संचार के गुण

(1)  सूचनाओ का तीव्र प्रसारण – अपुष्ट सम्प्रेषण में संदेस अत्यंत तीव्रता के साथ प्रसारित होता है | कर्मचारियो की यह परवर्ती होती है की जव कोई एक बात जिसे गोपनीय कहा जाता है, उसके प्रति वह अत्यंत जिज्ञासु होता है और वह इसे अपने अबसे निकटतम मित्र को बताया जाता है और वह मित्र अन्य को | इस प्रकार कुछ ही क्षणों में वह बात चारो तरफ फ़ैल जाती है |

(2) संकटनात्मक शक्ति का विकास – यह संचार संगठन में कार्य करने वाले व्यक्तियों को मनोवैज्ञानिको सन्तुष्ट प्रदान करता है | इससे वे एक दुसरे के करीब आते है, फलत: संकटनात्मक शक्ति का विकास में सहायता मिलती है |

(3) प्रबन्धको तथा कर्मचारियों में मधुर सम्बन्ध – ग्रेपवाइन संचार व्यवसाय में प्रबन्ध व कर्मचारीयो दोनों ही द्रष्टि से महत्वपूर्ण होता है | यह कर्मचारियों की भावनाओ का समर्थन करने के लिए एक सुरक्षा माध्यम का कार्य करता है | इससे प्रबन्धको तथा कर्मचारियों में मधुर समबन्ध बनाते है |

(4) प्रतिपुष्टि प्राप्त होना – ग्रेपवाइन संचार के माध्यम से प्रबन्धको को अपने संगठन की नीतियो, निर्णयो आदि के सम्बन्ध में प्रतिपुष्टि प्राप्त होती रहती है | इससे प्रबन्धको को अपने संगठन की दिशा के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती रहती है |




(DISADVANTAGES OF GRAPEVINE COMMUNICATION) ग्रेपवाइन संचार के अवगुण (दोष या सीमाएँ)

(1) अव्यवस्थित तथा अविश्वसनिय – मौखिक रूप से दिया गया अपुष्ट संदेश सदैव गम्भीरतापूर्वक नही लिया जाता | यह अव्यवस्थित तथा अविश्वसनिय होता है, अंत: इस पर निर्भर नही रहा जा सकता |

(2) संगठन की गोपनीयता भंग होना – अपुष्ट संचार से, संगठन की नीतियों तथा निष्कर्षो की गोपनीयता भंग होती है जिससे संगठन की छवि को हानि पहुचाती है तथा कभी-कभी प्रबन्धको द्वारा बनायी गयी योजनाए भी चौपट हो जाती है |

(3) सूचनाओ का विक्रत होना – अपुष्ट सम्प्रेषण में सूचनाओ के विक्रत होने की सम्भावना बनी रहती है | कानाफूसी के रूप में संदेश प्राप्त करने वालो को सन्देश का समग्र चित या संदेश देने में असमर्थ रहता है | इसमें सुचना में प्रत्येक व्यक्ति अपनी तरफ से कुछ जोड़-तोड़ क्र देता है जिससे सही सुचना सही व्यक्ति तक नही पहुचती बल्कि गलत अफवाहे फैलाती है |

( EFFECTIVE USE OF GRAPVINE COMMUNICATION ) अंगूरीलता संप्रेषण का प्रभावी प्रयोग

अंगूरीलता (ग्रेपवाइन) सम्प्रेषण के द्वारा विक्रत एवं अपूर्ण सूचनाओ का प्रवाह होता है जिससे संगठन में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती है | इसलिए कुछ प्रबन्धक इसको पूर्णत: समाप्त करने का प्रयास करते है |       लेकिन यह भी सत्य है की अंगूरीलता सम्प्रेष्ण की परवर्ती को पूरी तरह से समाप्त नही किया जा सकता है | इसलिए यह कहा जाता है की “किसी अपुष्ट समाचार / ग्रेपवाइन को फीड करना चाहिए, उसे पानी देना चाहिए तथा उसकीं खेती करनी चाहिए न इ उसके विकास को दबाना चाहिए |” क्योकि प्राय: लोगो की यह परवर्ती होती है की जिस सुचना को दबाने या छिपाने का प्रयास किया जाता है, उसका प्रसारण उतना ही तीव्र गति से होता है | अंत: संगठन के हित में अंगूरीलता सम्प्रेषण का प्रभावी प्रयोग होना चाहिए | इस सम्बन्ध में निम्नलिखित बातो को ध्यान में रखना आवश्यक होता है –

1)  संगठन की नीतियों, योजनाओ एवं भविष्य की रुपरेखा ओ सम्बन्धित अधिनस्थो के मध्य प्रबन्धको द्वारा स्वयं सम्प्रेषित क दिया जाना चाहिए ताकि लोग अफवाहों का अनावश्यक निर्मार्ण न कर सके |

2)  संगठन के कर्मचारियों को सामूहिक वार्ताओं तथा कार्यक्रमों में औपचारिक रूप से मिलने के भरपूर अवसर उपलब्ध कराये जाने चाहिए ताकि अंगूरीलता सम्प्रेषण का सकारात्मक रूप लोगो को सम्प्रेषित हो सके |

3)  जहा तक सम्भव हो प्रबन्धको को खुले दिमाग एवं दिल से सामान्य रूप से अधिनस्थो से मिलना चाहिए जिससे किसी के प्रति कोई पक्षपात या सस्ती लोक्प्रिता न हो |

4)  संगठन में प्रत्येक स्तर पर सवांदहीनता को समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए |

5) संगठन में स्वस्थ कार्य संस्कृति एवं वातावरण का निर्माण करना चाहिए | कार्य परिणामो, लक्ष्य, प्रगति, कठिनाईयों पर सभी के विचार कुशल प्रबन्धक को ध्यानपूर्वक सुनने चाहिए |

6) कर्मचारियों एवं अधिनस्थो को व्यावसायिक निर्णयों में सहभागी बनाना चाहिए |

7) अफवाहों को दूर करने के लिए औपचारिक सम्प्रेषण का किसी भी स्तर पर अवरोध समाप्त करना चाहिए |

8) कर्मचारियों को वास्तविक नेतत्त्व को चिन्हित कर उनको विश्वास में लेना चाहिए ताकि कर्मचारियों की भावनाओ एवं विचारो को सही जानकारी प्राप्त हो सके |


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