New Export Import Policy of India B com Study Materials Environment

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भारत की आयत-निर्यात नीति Export Import Policy of India

प्रत्येक देश के लिये अन्तराष्टीय व्यापार का विशेष महत्व होता है | इसको नियमित, नियन्त्रित एव सही दिशा  देने के लिए जो नीति अपनाई जाती है | उसे “आयात निर्यात नीति” के नाम से जाना जाता है | आयात निर्यात नीति को वाणिज्यिक नीति भी कहा जाता है |

अधिकाश: विकासशील देशो के व्यापार शेष में घाटा रहता है व्यापार शेष की प्रतिकूलता को कम करने के लिए वे आयातों पर अंकुश लगाते है तथा निर्यात को प्रोत्साहन देते है आयातों को प्रतिबन्ध करके वे स्वदेशी उधोगो को भी प्रोत्साहित करते है  निर्यातो में वर्धि करने में भी आयात निर्यात नीति का अपना विशेष महत्व होता है विकास शील देशो के पास विदेशी मुद्रा के सिमित भण्डार होते है अत: उन्हें अपने आयातों एव निर्यातों को इन कोषों के अनुरूप समायोजित करना पड़ता है देश में विकास कार्यक्रम की आवश्यकताओ को ध्यान में रखते हुए उन्हें आयातों तथा निर्यातों में परिवर्तन करना पड़ता है अत: आयात निर्यात नीति का देश के समग्र आर्थिक विकास पर बहुत प्रभाव पड़ता है |

वाणिज्य नीति के प्रकार— वनिजिय्क नीति या आयात निर्यात नीति दो प्रकार की होती है—

  1. स्वतन्त्र व्यापार नीति— जब एक देश की सरकार आयात-निर्यात पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नही लगाती, तब इसे स्वतन्त्र व्यापार नीति कहते है इसमे यदि सरकार तटकर लगाती भी है तो उसका उदेश्य सरकारी आय में वर्धि करना होता है न  की आयात निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना |
  2. संरक्षित व्यापार नीति— जब एक देश स्वदेशी उधोगो को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए आयातों पर प्रतिबन्ध लगाती है तो उसे संरक्षित व्यापार नीति कहते है | इसमे दो देशो के मध्य वस्तुओ व् सेवाओ का स्वतन्त्र आदान-प्रदान नही होता | इससे विकासशील देशो को विनियोग त्तथा पूँजी निर्माण में वर्धि करने तथा भुगतान सन्तुलन की असंयता को कम करने में सहायता मिलती है |

 New Export Import Policy नई निर्यात-आयात नीति  2009-14  (नई विदेशी व्यापार नीति)

नई विदेशी व्यापार नीति 2009-14 की घोषणा 27 अगस्त, 2009 को की गयी | इसकी समयावधि 27 अगस्त 2009 से 31 मार्च, 2014 तक है | इसकी घोषणा ऐसे समय में की गयी जब पूरा जब विश्व सर्व-व्यापी मन्दी के दोर से गुजर रहा था | सभी देशो में आर्थिक सूचक; जैसे— औघोगिक उत्पादन, विदेशी व्यापार, विदेशी पूँजी प्रवाह, बेरोजगारी आदि के आकडे मंदी को दर्शा रहे थे | विकसित देशो में अमंग की कमी के कारण भारतीय निर्यात पर बुरा प्रभाव पड़ा रहा था नई विदेशी व्पापार नीति का दीर्घकालीन उदेश्यों निर्यातों की गिरती परवर्ति को ठीक करना है तथा ऐसे क्षेत्रो को विकसित करना है जो आर्थिक मंदी के कारण कुप्रभावित हुए है |

New Foreign Trade Policy Objectives नई विदेशी व्यापार नीति के उदेश्य

  1. निर्यातों की गिरती परवर्ति को रोकना व् निर्यात में वर्धि करना | वर्ष 2013-14 के लिए 500 बिलियन US डालर का निर्यात लक्ष्य निधार्रित किया गया है |
  2. निर्यात के उन क्षेत्रो पर विशेष ध्यान देना जो वैश्विक मंदी से कुप्रभावित हुए है |
  3. पहले दो वर्षो 2009-10 व 2010-11 में 15% वार्षिक निर्यात विकास दर लाना तथा अन्तिम तीन वर्षो ( 2011-12 से 2013-14 ) में 25% औसतन वार्षिक निर्यात विकास दर लाना |
  4. 31 मार्च 2014 तक उत्पादों व सेवाओ के निर्यातो को दुगुना करना |
  5. विदेशो व्यापार को आर्थिक विकास के सयंत्र के रूप में प्रयोग करना |
  6. रोजगार प्रेरक-क्षेत्रो पर जोर देकर रोजगार अवसरों में वर्धि करना जैसे— क्रषि हस्तकला, ह्थाकरण चमडा आदि |
  7. विदेशी व्पापार क्षेत्र में अनावश्यक नियन्त्रण की समाप्ति करना तथा विस्वास का माहोल बनाना |
  8. विदेशी व्यापार की कार्यविधि फार्मो तथा प्रपत्रों को सरल बनाना |
  9. पुजीगत सामान व् टेक्नोलोजी के आसन आयात से अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रो में तकनीकी व् संरचनात्मक सुधर करना |
  10. देश में उत्क्रष्ट निर्यात के शहरों को विकसित करना |




The main features of the new import policy 2009-14 नई आयात नीति 2009-14 की मुख्य विशेषताए

  1. क्रषि व् ग्रामोद्योग के लिए सुविधाए ( Facilities For Agriculture and Village Industry )— ग्रामीण क्षेत्रो में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने व आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में क्रषि क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है | अत: नई निर्यात-आयात नीति में क्रषि क्षेत्र के लिए निम्न प्रावधान किए गए है—
  2. विशेष क्रषि व ग्राम उधोग योजना को अधिक सुद्र्ड किया गया है ताकि क्रषि उत्पादन वन-उत्पादों व् ग्रामोद्योग उत्पादों के निर्यातों को बढ़ाया जा सके |
  3. क्रषि उत्पादों के संग्रहण ( Storange ) पैकिग व परिवहन के लिए पूँजी उत्पादो के आयत का उदारीकरण किया गया है |
  4. पिछली निर्यात-आयात नीति में स्थापित क्रषि-निर्यात क्षेत्रो ( Agri-Export Zones ) को मजबूत बनाया गया है | इन क्रषि-निर्यात क्षेत्रो से क्रषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए इन क्षेत्रो को बहुत सी रियायते दी गई है | इन क्षेत्रो के अधोसंरचना विकास पर भी ध्यान दिया गया है |
  5. क्रषि आगतो जैसे— कीटनाशक दवाओ, बीजो, पोधो सामग्री के आयात को उदार बनाया गया है |
  6. क्रषि निर्यातों के लिए उत्क्रष्ट निर्यात शहरों (Towns of Export Excellence) की सीमा को कम करके 150 करोड़ रूपये कर दिया गया है |




Rating of New Foreign Trade Policy, 2009-2014 नयी विदेशी व्यापार नीति, 2009-14 का मूल्याकंन

  1. व्यापक ( Comprehensive )— यह आयात-निर्यात निति बहोत ही व्यापक है | इसमे अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रो को शामिल किया गया है ; जैसे— क्रषि, हस्तकला, सेवा क्षेत्र, समुद्री क्षेत्र (Marine Sector) विशेष आर्थिक क्षेत्र आदि |
  2. विदेशी व्यापार में वर्धि (Increase In Foreign Trade)— इस निति के परिणाम स्वरूप विदेशी व्यापार की गिरती परवर्ती को रोकने में सफलता मिली है | वर्ष 2010-11 में अमेरिकन डालर के रूप में निर्यात वर्धि दर 29.5% थी जबकि इसी वर्ष आयात वर्धि दर 19 % थी | यह वर्धि लक्षित वर्धि दर 15% से अधिक है |
  3. वस्तु निर्यात व्यापार में बढ़ता हिस्सा (Increasing Share in Merchandise Export Trade)— भारत का वस्तु निर्यात व्यापार में वर्ष 2008 में विश्व में 27वा स्थान था | वर्ष 2009 में यह 21वा हो गया |
  4. सेवाओ के बढ़ते निर्यात (Increasing Export of Services)— भारत के सेवा क्षेत्र के निर्यात वर्धि दर वर्ष 2010-11 में 27.4% रही | सेवाओ के निर्यात में वर्ष 2009 में भारत का विश्व में 11वा स्थान रहा |
  5. प्रकिर्याओ का सरलीकरण— (Procedural Simplification)— नयी निर्यात-आयात निरी में दस्तावेजो व् फर्मो को बहुत सरल बना दिया गया है | अब दस्तावेजो को आनलाइन जमा (On-line Submission) करवाया जा सकता है तथा इनकी जाँच भी आनलाइन हो सकती हिया इससे निर्यातको व् आयातकों को बहुत सुविधा हो गई है |

 

 


 


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