Meaning and Definition of Company Promoter Corporate Law Bcom Part 2

Meaning and Definition of Company Promoter Corporate Law Bcom Part 2

Meaning and Definition of Company Promoter Corporate Law Bcom Part 2
Meaning and Definition of Company Promoter Corporate Law Bcom Part 2

Meaning and Definition of Company Promoter Corporate Law Bcom Part 2 :-

प्रवर्तक का अर्थ एंव परिभाषा MEANING AND DEFINITION OF PROMOTER

प्रवर्तक से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से है जो कंपनी प्रवर्तन सम्बन्धी कार्य करते है प्रवर्तक ही वह व्यक्ति है जिसके मस्तिष्क में सर्वप्रथम कंपनी के निर्माण के विचार आता है और जिसे वह क्रियांव्न्ति करते हेतु आवश्यक कदम उठता है वह व्यापर सम्बन्धी अनुसन्धान करता है एक निश्चित योजना के अनुसार कंपनी का निर्माण करता है आवश्यक साधन एकत्रित करता है और प्राम्भिक व्ययों का भुगतान करता है वास्तव  में प्रवर्तक अपने ऊपर भरी जोखिम लेता है क्योंकि यदि कंपनी असफल होती है तो समस्त हानि का भार उसे ही वहां करना होता है |







कंपनी अधिनियम पर प्रवर्तक शब्द की कोई परिभाषा नही दी गई है परन्तु कुछ प्रमुख विद्वानों एंव न्यायधिशो द्वारा प्रवर्तकों शब्द कुई दी गई परिभाषाये है इस प्रकार है –

न्यायाधीश कोक्बर्ण के अनुसार :- “प्रवर्तक निश्चित उदेश्यों के आधार प्र कंपनी का निर्माण करता है और अक्पने उदेश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक कार्यवाही करता है |

निष्कर्ष :- उपर्युक्त परिभाषा का अध्यन करने के पश्चात निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है की ,”प्रवर्तक वह व्यक्ति है जो कंपनी की स्थापना के विचार से लेकर कंपनी को प्रारंभ करने की अवस्था तक किये जाने वाली सभी कार्यो को सम्पन्न करता है |”

प्रवर्तकों के प्रकार (TYPES OF PROMOTERS)

पेशेवर प्रवर्तक :- ऐसे प्रवर्तकों के प्रमुख व्यवसाय नई कंपनियों का प्रवर्तन करना  होता है +| ये प्रवर्तन सम्बन्धी कार्यो में दक्ष होते है |

सामयिक प्रवर्तक :- इनका मुख्य व्यवसाय कंपनियों का प्रवर्तन न होकर कोई और होता है ये कभी कभी ही कंपनी के प्रवर्तनी का कार्य करते है |

वित्तीय प्रवर्तक :- ये वे प्रवर्तक है जो वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिए प्रवर्तन कार्य में वित्तीय सहयता देते है |

विशिष्ट संस्थाएं :- ये ऐसी विशिष संस्थाए है जो कंपनियों के प्रवर्तक का कार्य करने हेतु स्थापित की जाती है भारत में राष्ट्री औधोगिक विकास निगम इसका श्रेष्ठ उदहार है |

प्रवर्तकों के कार्य FUNCTIONS OF PROMOTERS



प्रवर्तकों द्वारा सामान्यत: किये जाने वाले मुख्य कार्य निम्न प्रकार है –

कंपनी निर्माण की कल्पना करना :- प्रवर्तक के मस्तिष्क में ही सर्वप्रथम कंपनी मके निर्माण का विचार आता है और इसकी इस कल्पना को साकार रूप देने हेतु व्ही आवश्यक प्र्यक्स करता है |

विक्रेताओ के साथ अनुबंध करना :- यदि कंपनी का निर्माण किसी विधमान व्यवसाय को करी करके किया जाना है तो उस व्यवसाय के करी के संबंध में बातचीत करना एंव विक्रेताओ के साथ आवश्यक अनुबंध करने का कार्य भी प्रवर्तकों द्वारा ही किया जाता है |

नाम, उदेश्य एंव पूंजी निश्चित करना :- प्रवर्तक का कार्य यह निश्चित करना भी है की कंपनी किस नाम से व्यापर करेगी , उसका रजिस्टर्ड कार्यालय कहाँ स्थिति होगा कंपनी का उदेश्य क्या होगा तथा पूंजी की सीमा एंव स्वरूप क्या होगा |

आवश्यक प्रलेख तैयार करवाना :- पार्षद सिमिनियम एंव पार्षद अंतर्नियम आदि महत्वपूर्ण प्रलेखो को तैयार करवाना भी प्रवर्तकों का महत्वपूर्ण कार्य होता है |

आवश्यक लाइसेंस व् अनुमति लेना :- कंपनी की स्थापना हेतु आवश्यक होने अपर लाइसेंस व् अनुमति लेना भी पर्वर्तको का ही कार्य है |

सममेलन प्रमाण पत्र एंव व्यापर प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करना :- समामेलन प्रमाण पत्र की प्राप्ति पर ही कंपनी वैधानिक रूप से अस्तित्व में आतुई है प्रवर्तक सममेलन प्रमाण पत्र प्राप्ति हेतु आवश्यकप्रपत्र रजिस्ट्रार के पास जमा करता है रजिस्ट्रार द्वारा भी प्रपत्रों व् प्रलेखो की जाँच की जाती है और सही पाए जाने पर सममेलन का प्रमाण पत्र निर्गमित कर दिया जाता है |

यह उल्लेखनीय है की एक निजी कंपनी की अवस्था में सममेलन का प्रमाण पत्र प्राप्त करते हिकम्पनिके निर्माण का कार्य पूर्ण हो जाता है ऐसी कंपनी सममेलन के तुराक्न्त बाद व्यापर शुरू कर सकती है इसके विपरीत , सार्वजनिक कंपनी के लिए सममेलन के पश्चात व्यापर प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य है व्यापर प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करके ही सार्वजनिक कंपनी व्यापर शुरू कर सकती है |

प्रविवरण का निर्गमन :- प्रविवरण तैयार करना, उसे छावना व उसके निर्गमन की व्यवस्था करना

अभिगोपन सम्बन्धी अनुबंध करना :- यदि कंपनी के अंशो के विकरय हेतु अभिगोप्को की नियुक्ति की जानी है तो अभिगोपको का चयन करना व उसके साथ आवश्यक अनुबंध करना अंश विकारी में सहयता हेतु दलालों को भी नियुक्ति की जा सकती है |

पूंजी निर्गमन:- पूंजी निर्गमन की व्यवस्था करना |

स्टॉक एक्सचेन्ज को आवेदन पत्र भेजना :- यदि कंपनी अपने अंशो के करी-विकरय की सुविधा मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में उपलब्ध करना चाहती है तो इसके लिए सम्बंधित स्टॉक EXCHANGEO में आवेदन पत्र एंव आवश्यक शुल्क जमा करने के साथ साथ अन्य औपचारिकताये भी पुरनी करनी पड़ती है |

प्रारंभिक व्ययों का भुगतान :- प्रवर्तन के सम्बन्ध में किये जाने वाले व्ययों अ भुगतान भी प्रवर्तकों द्वारा ही किया जाता है |

प्रवर्तकों के अधिकार RIGHTS OF PROMOTERS




प्रवर्तकों के मुख्य अधिकार इस प्रकार है –

प्रारंभिक व्यय पाने का अधिकार :- कंपनी के निर्माण काल में प्रवर्तक अपने द्वारा किये गये प्रारंभिक व्ययों को सममेलन के पश्चात् कंपनी से प्राप्त करने का अधिकारी है, परन्तु परिवर्तक ऐसे व्ययों का भूटान प्राप्त करने क लिए कंपनी पर प्रस्तुत नही कर सकता ह्योंकी प्रवर्तक का कंपनी के साथ इस सम्बन्ध में कोई स्पष्ट अनुबंध नही होता है इतना ही नही यदि कंपनी के अन्त्र्निय्मो में प्रारंभिक व्ययों के भुगतान की व्यवस्था हो तो भी कंपनी उसका भुगतान करने के लिए बाध्य नही है लेकिन यदि कंपनी ने सममेलन के पश्चात प्रवर्तकों के साथ प्रारम्भिकव्ययों के भुगतान के लिए कोई अनुबंध कर लिया है तो कंपनी को ऐसे व्ययों का भुगतान करना पड़ेगा |

सह-प्रवर्तकों से आनुपातिक राशी प्राप्त करने का अधिकार :- यदि विवरण पत्रिका में मिथ्यावर्णन के आधार पर सह-प्रवर्तकों में से किसी एक प्रवर्तक को क्षतिपूर्ण करनी पड़ती है तो वह प्रवर्तक सह-प्रवर्तकों से आनुपातिक राशी प्राप्त कर सकत अहि प्रवर्तकों द्वारा लिए भी गुप्त लाभों के लिए भी प्रवर्तक व्यक्तिगत तथा सयुंक्त रूप से उतरदायी होते है यदि इन लाभों की राशी एक प्रवर्तक को देनी पड़ती है तो वह उसे आनुपातिक रूप में अन्य प्रवर्तकों से प्राप्त कर सकता है |

पारीश्रमिक पाने का अधिकार :- कंपनी के प्रवर्तन से सम्बंधित किये जाने वाले कार्यो के लिए प्रवर्तक कंपनी से पारीश्रमिक पाने का तभी अधिअकरी होता है जबकि प्रवर्तक ने पारिश्रमिक के सम्बन्ध में कंपनी से समामेलन के बाद इस आशय का अनुबंध कर लिया हो | कंपनी प्रवर्तक को डे पारिश्रमिक की धनराशी अंशो, ऋण-पत्रों नकदी सम्पत्तियों के करी पर कमीशन तथा सम्पति करी पर लाभ के रूप में दे सकती है यह आवश्यक है की प्रवर्तकों को दिए जाने वाले पारिश्रमिक एक सम्बन्ध में पिविव्रण में उल्लेख अवश्य करना चाहिए |

प्रवर्तकों के दायित्व LIABILITIES OF PROMOTERS

प्रवर्तकों के महत्वपूर्ण दायित्व इस प्रकार है –




समामेलन से पूर्व किये गये कार्यो के लिए दायित्व :- कंपनी एक सममेलन से पूर्व किये गये कार्यो के लिए पर्वताक व्यक्तिगत रूप से बाध्य होते है यदि समामेलन के बाद कंपनी प्रवर्तक के कार्यो का अनुमोदन कर दे तो प्रवर्तक अपने दायित्व से मुक्त हो जाते है |

गुप्त लाभ प्रकट करने का दायित्व :- प्रवर्तकों का कंपनी के साथ विश्वसश्रित सम्बन्ध होते है अत: उनसे यह आशा की जाती है की वह किसी प्रकार का गुप्त लाभ न कमाए| यदि प्रवर्तकों द्वारा कोई गुप्त लाभ कमाया गया है तो उन्हें उस लाभ को प्रकार करने का दायित्व है और उसके हिसाब सहित उसे कंपनी को वापस कर देना चाहिए प्रवर्तकों द्वारा गुप्त लाभ न लौटाने पर कंपनी को ज्ञात होने पर कंपनी लाभ की राशि प्रवर्तकों से वसूल कर सकती है |

कंपनी के साथ कपट या कर्तव्य भंग की दशा में उतरदायित्व :- यदि कंपनी ने कोई हानि प्रवर्तकों के कपट के कारण या कर्तव्य भंग के कारन उठाई है तो प्रवर्तक इस हानि को पूरा करने के लिए उतरदायी होते है |

बिना विवरण दिए हुए सम्पति के करय से होने वाली हानि के लिए दायित्व :- यदि प्रवर्तक कंपनी को बिना पूरा विवरण दिए ही कंपनी के लिए किसी सम्पति जका करी करते है जिससे कंपनी को नुकसान होता है तो कम्पनी इन हानियों की पूर्ति के लिए उन पर मुकदमा चला सकती है और वे उसके लिए उतरदायी होगे |

प्रविवरण में कपट के लिए दायित्व :- प्रवर्तक, जो प्रविवरण के निर्गमन में भाग लेते है, प्रविवरण में किये गये कपट के लिए अंश्धार्यियो के प्रति उतरदायी होते है यदि प्रविवरण में कोई मिथ्यावर्णन है तो प्रत्येक प्रवतर्क प्र जो इसका निर्गमन करने केलिए अधिकरत था अधिक से अधिक 2 वर्ष की सजा या 50000 रुपए का आर्थिक दंड या दोनों हो सकते है (धारा 62 एंव 63)

प्रविवरण की वैधानिक त्रुटियों के कारन उतरदायित्व :- यदी कम्पनी के अंशधारियो को इसलिए हानि उठानी पड़ती है की प्रविवरण में वैधानिक त्रुटिया थी और इन त्रुटिया के लिए प्रवर्तक दोषी थे तो इसे हनी प्रवर्तक उतरदायी होते है |

निस्तारक की रोर्ट पर दायित्व :- यदि कंपनी में समापन के समय निस्तारक द्वारा न्यायालय को ऐसी रिपोर्ट कीजये की प्रवर्तक द्वारा कम्पनी निर्माण के कपट किया गया है तो न्यायालय सार्वजनिक जाँच के लिए आदेश दे सकता हयाई दोषी पाए जाने पर प्रवर्तक ऐसे कपटपूर्ण कार्यो के लिए उतरदायी होगे

कंपनी के समापन की दशा में उतरदायित्व :- यदि कंपनी के समान से यह प्रकट होते है की कंपनीके प्रवर्तकों ने कम्पनिकी किसी भी राशी या सम्पति का दुरपयोग किया है तो सरकारी निस्तारक, लेनदार अथवा धनदाता के प्रार्थना पत्र पर न्यायालय इस प्रका का आदेश दे सकते है की प्रवर्तक उस सब राशी या सम्पति को लोटा दे |

विशेष – किसी प्रवर्तक की मर्त्य या दिवालिया हो जाने पर उसकी सम्पति में से उसके दायित्व की राशी वशुल की जा सकती है|

प्रवर्तकों का दायित्व कब प्रारम्भ होता है ?

कंपनी के प्रति प्रवतर्को का दायित्व उसी समय से प्रारम्भ हो जाता है जब वे कंपनी के प्रवर्तन का कार्य प्रारंभ करते है यह ध्यान देने योग्य है की प्रवर्तकों का यह दायित्व तभी उत्पन्न होता है जबकि कंपनी अस्तित्व में आ जाती है यदि कंपनी अस्तित्व में नही आती तो कंपनी के प्रति प्रवर्तकों का दायित्व भी उत्पन नही होता कंपनी के अस्तित्व में आते ही प्रवर्तक कंपनी के प्रति उस समय से उतरदायी होंगे जिस समय उन्होएँ कंपनी के निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया था |

प्रवर्तकों की विधानी स्थिति LEGAL POSTING OF A PROOTER

एक प्रवर्तक कंपनी के लिए उसके अस्तित्व में आने से पूर्व कार्य करता है कंपनी के अस्तित्व में आते ही प्रवर्तक का कार्य समाप्त हो जाता है अत: प्रवर्तक के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति अथवा व्यक्तियोकी स्थिति न तो स्वामी के रूप मवे होती है न प्रन्यासी के रूप में और न अभिकर्ता कर रूप में ही क्योकि उस समय तक कंपनी का कोई अस्तित्व ही नही होता | केलनर बनाम वेक्स्ट के विवाद में न्यायाधीश द्वारा यह निर्णय दिया गया था की एक प्रवतर्क कम्पनी का एजेंट नही होता है क्योकि वह कंपनी जो अभी तक अस्तिव्त में नही आई है, एजेंट नही रख सकती है

अब प्रशन यह उठता है की प्रस्तावित कंपनी तथा प्रवर्तक का क्या सम्बन्ध है ?

कंपनी अधिनियम में तो प्रवर्तकों के सम्बन्ध में कोई प्रावधान नही है तो फिर विभिन्न महत्वपूर्ण निर्णयों में प्रवर्तक की वैधानिक स्थिति स्पष्ट की गई है |

प्राम्भिक अनुबन्ध PRELIMINARY CONTRACTS

कंपनी के सममेलन से पूर्व कंपनी के प्रवर्तकों द्वारा कंपनी के लिए किये गये समस्त अनुबंध प्रारंभिक अनुबंध कहलाते है | ऐसे अनुबंध सामान्यता कंपनी की- (i) कुछ संपतिया प्राप्त करने के लिए तथा (ii) कुछ अधिकार प्राप्त करने के लिए किये जाते है |

वैधानिक रूप रूप में कंपनी ऐसे अनुबंधों के लिए बाध्य नही होती है क्योंकि ये कंपनी के अस्तित्व से पूर्व किये गये है |प्रवर्तक इन अनुबंधो को कंपनी के एजेंट , या ट्रस्टी की स्थिति में करते है जबकि वे वास्तव में न तो कक्म्पनी के एजेंट है और न ट्रस्टी | अत: कंपनी इनके लिए बाधित नही हो सकती , कंपनी इनका पुष्टिकरण भी नही कर सकती क्योंकि वैध पुष्टिकरण के लिए अनुबंध के समय स्वामी का अस्तित्व होना आवश्यक होता हयाई अत: ऐसे अनुबंधों के लिए न तो कम्पनी त्रतीय पक्ष के विरुद्ध इनको प्रवर्तनीय कराने के लिए वाद प्रस्तुत कर सकती है और न ही त्रतीय पक्ष कंपनी के विरुद्ध | अत: कम्पनी अपने समामेलन के बाद त्रतीय पक्षकारो के साथ पुन: अनुबंध करती है अर्थात प्रारंभिक अनुबंधों को कंपनी पुन: नये सिरे से करती है तभी उसका दायित्व होता है |






















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