Industrial Growth in India b com 1st Year Notes in Hindi

Industrial Growth in India B com 1st Year Notes in Hindi

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Industrial Growth in India b com 1st Year Notes in Hindi

Industrial Growth in India भारत में औधोगिक विकास



भारत में औधोगिक शेत्रो में हुए सरंचनात्मक परिवर्तनों को स्पष्ट कीजिए |

देश का तीर्व आर्थिक विकास करने के लिये सन 1951 में भारत में आर्थिक नियोजन प्रारम्भ किया गया | आर्थिक नियोजन के दोरान भारत ने सभी श्रेत्रो भी शामिल है महत्वपूर्ण प्रगति की है देश में सावर्जनिक श्रेत्र में आधार भूत  एव भारी उधोगो की स्थापना की गई है | इससे देश का औधोगिक आधार मजबूत बना है जिसके कारण सभी श्रेत्रो में प्रगति सम्भव हो स्की है लोगो का रहन-सहन का स्तर उपर उठा है तथा अर्थव्यवस्था में विविधता आई है | औधोगिकरण के परिणाम स्वरूप हमारी आयत-निर्यात संरचना में भी बहुत परिवर्तन आया है | पहले हम विदेशो को कच्चे माल का निर्यात करके तैयार माल का आयत करते थे लेकिन अब हम इजिनियरिग  सामान तकनीकी एव प्र्बन्ध्किय्य कोशल का भी निर्यात करने लगे है | योजनाकाल में भारत के औधोगिक श्रेत में हुए सरंचनात्मक परिवर्तन प्रमुख रूप से निम्न प्रकार है—

  1. औधोगिक उत्पादन में वर्धि— भारत में विभिन योजनाओ में औधोगिक उत्पादन में वर्धि की परवर्ती रही है | अब हम लगभग सभी उपभोकता वस्तुओ के उत्पादन में आत्मनिर्भर प्राप्त कर चुके है | भारत ने मशीन उत्पादन उधोग लोहा एव इस्पात भारी इजिनियरिग सेवा, सलाह एव डिजाईन निर्माण, प्रोजेक्ट अनुसधान सेवा आदि में विशेष योग्यता प्राप्त क्र ली है औधोगिक उत्पादन के सूचकाक में वर्ष 1951-2012 के मध्य लगभग 30 गुना वर्धि हुई है |
  2. औधोगिक विकास की दर— योजना काल के प्रारम्भिक वर्षो में भारत में औधोगिक विकास दर में निरंतर वर्धि हुई तथा 1951 से 1965 के मध्य यह लगभग 8% रही | लेकिन इसके बाद से औधोगिक विकास दर में निरंतर उतार-चढ़ाव आते रहे है | 1976-77 में यह दर 9.5% थी, जबकि 1979-80 में यह (-) 1.4% रही | 1998-99 में विकास दर 4.1%, 2000 -01 में 5% तथा 2001 -02 में वर्धि दर 2.7% रही है | औधोगिक विकास दर 2002-03 में 3.1% रही |
  3. आधारभूत संरचना का निर्माण— आधुनिक औधोगिक विकास के लिए आधारभूत संरचना का विस्तार आवश्यक है | इसके बिना औधोगिक विकास संभव ही नही है योजना कल में (विशेषकर दूसरी योजना से) बुनियादी आवश्यकताओ जैसे बिजली परिवहन व् संचार, बैक व बीमा सुविधाये, कोयला, इस्पात,कच्चा खनिज तेल,पेट्रोलियम पदार्थ तथा सीमेंट सुविधाओ के विकास के लिए बहुत प्रयास किये गये है | यही कारण है की इन सुविधाओ को उपलब्ध कराने वाले तथा इनसे जुड़े उधोग के विकास को उच्च प्राथमिकता दी गई | इसमे भारी बिजली उपकरण जैसे तस्फर्म्र, स्विच गियर, बायलर इत्याति शामिल है | इनके कारण देश के औधोगिक ढाचे में विविधता आई है तथा औधोगिक आधार मजबूत हुआ है
  4. भारी तथा पुजीगत उधोगो पर बल— प्रथम योजना काल को छोडकर दूसरी योजना से औधोगिककरण पर विशेष बल दिया गया है, इससे भी मूल तथा पुजीगत वस्तुओ के उत्पादन पर अधिक बल दिया जाता रहा है अर्थव्यवस्था में निवेश का एक बड़ा दिस्सा मूल-भूत, भारी तथा तथा पुजीगत वस्तुओ के उत्पादन में लगाया गया | इन उधोगो में वे सभी उधोग शामिल है जो की भविष्य में और अधिक उत्पादन को प्रोत्साहित करते है  जैसे मशीन उत्पादन उधोग लोहा एव इस्पात, भारी इंजीनियरिग उधोग, सीमेंट, एल्युमिनियम रसायन धातु निर्माण आदि |

इससे भारत का औधोगिक आधार मजबूत हुआ है जिससे भविष्य में अर्थव्यवस्था को विकास दर और तीर्व होने की आशा है




  1. टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओ के उत्पादन में वर्धि— माग की संरचना देश में औधोगिक विकास को प्रभावित करती है | भारत में उच्च आय वर्ग के व्यक्तियों की माँग को पूरा करने के लिये विगत वर्षो में टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओ के उत्पादन में वर्धि हुए है | तथा इनकी वार्षिक वर्धि दर 12 से 15% रही है | आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओ जैसे चीनी, कपड़ा, चाय, घी, तेल, आदि की वर्धि दर में थोड़ी कमी आयी है |
  2. प्रति श्रमिक शक्ति उपभोग— देश में उधोगो में मशीनीकरण, आधुनिकीकरण व तकनीकी विकास के परिणाम स्वरूप प्रति श्रमिक शक्ति के उपभोग में 10 से 12 गुना तक वर्धि हुई है | लेकिन अभी भी लघु व कुटीर उधोगो में मशीनीकरण एव आधुनिकीकरण की आवश्यकता है |
  3. सावर्जनिक एव निजी श्रेत्र की भूमिका— भारत में बड़े एव भारी आधारभूत उधोगो की स्थापना में सार्वजनिक श्रेत्र का महत्वपूर्ण स्थान है | 1997-98 में भारत में कुल कारखानों की सख्या 7% सावर्जनिक श्रेत्र में था, किन्तु कुल उत्पादन का  उनका योगदान 32%था सावर्जनिक श्रेत्र के साथ-साथ निजी श्रेत्र का भी आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान  रहा है रोजगार एव मूल्य संवद्धन  की द्रष्टि से निजी श्रेत्र का भाग क्रमश: 69% तथा 60%रहा है जबकि सावर्जनिक श्रेत्र का भाग क्रमश: 24% तथा 28% रहा है | अत: स्पष्ट है की देश में सावर्जनिक व् निजी श्रेत्रो के विकास के द्वारा औधोगिकरण को बल मिला है |
  4. आयत प्रतिस्थापन— निर्यात से पूर्व भारत को अनेक प्रकार की मशीनरी व कई प्रकार की वस्तुओ का आयत करना पड़ता था जिसमे विदेशी मुद्रा कोष पर भारी दबाव बना रहता था | नियोजन काल में आयात प्रतिस्थापन की नीति अपनाने के कारण आयातों पर निर्भरता बहुत कम हो गयी है | लोहा एव इस्पात के मामले में विदेशो पर हमारी निर्भरता अब लगभग नही के बराबर है | उर्वरको तथा पेट्रोलियम पदार्थो के सम्बन्ध में भी हमारी निर्भरता बहुत घट गई है

 

संछेप में हम यह कह सकते है की भारत ने योजनाकाल में औधोगिक श्रेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है जिससे औधोगिक ढाचे में महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाई देंने लगे है, लेकिन यह भी सत्य है की देश में अभी भी औधोगिक शमता का पूर्ण विकास नही हो पाया है | औधोगिक विकास दर पहले की तुलना में गिर गई है | देश में उधोगो के विकास के लिये आवश्यक सुविधाओ का अभाव है | जिसमे उत्पादकता कम बनी हई है | आज भी हम रोजगार की द्रष्टि से तकनीक के चुनाव में असमजस की स्थिति में है अत: हमे प्राथमिकताओ का निधार्ण करके उसके अनुरूप औधोगिक विकास का प्रारूप बनाना पड़ेगा |

Due to the industrial Recession in India भारत में ओधोगिक मंदी के कारण 




  1. आधारभूत सुविधाओ का अभाव— देश में उधोगो के विकास के लिये आधारभूत सुविधाओ जैसे यातायात, संचार व् शक्ति आदि का अभाव है | इससे उधोगो की उत्पादकता प्रभावित होती है परिणामत: औधोगिक विकास दर में गिरावट आती है |
  2. निम्न उत्पादकता— औधोगिक श्रेत्र में पुरानी विधियों एव तकनीको के प्रयोग के करण उत्पादकता का स्तर निम्न बना रहता है इससे उधोग बड़े पैमाने की बचतो का भी लाभ नही उठा पाते, फलस्वरूप लागतो में वर्धि होती है तथा औधोगिक विकास दर में गिरावट के कारण मंदी का जन्म होता है |
  3. माँग में कमी— स्वदेशी एव विदेशी स्तर पर माँग में कमी होना भी औधोगिक मंदी का प्रमुख कारण है | ऑटोमोबाइल श्रेत्र में माँग में कमी के कारण ही आर्थिक मंदी आयी है | भविष्य में वस्तुओ के मूल्यों में कमी की सम्भावना से भी माँग में कमी आती है तथा उधोगो को मंदी की स्थिति का सामना करना पड़ता है |
  4. अस्थाई माँग— बहुत से टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओ का उत्पादन करने वाले उधोगो को अस्थाई माँग के कारण मन्दी का सामना करना पड़ रहा है | टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओ की माँग में अस्थिरता के कारण माँग व् पूर्ति में सामजस्य नही हो पाता,परिणामस्वरूप पूर्ति की अधिकता के कारण इन वस्तुओ की कीमतों में कमी करनी पस्ती है, जिसका उधोगो पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है |
  5. प्रतियोगिता में वर्धि— प्रतियोगिता के कारण छोटी औधोगिक इकाईया बड़ी औधोगिक इकाईयो के सामने टिक नही पाती है | इसी करण से छोटी इकाईया, बड़ी इकाईयो में विलयित हो रही है | इस सममेलन एव विलयन प्रकिर्या में समय लगता है जिससे औधोगिक विकास दर प्रभावित होती है |
  6. व्यापार चक्र— कुछ उधोगो जैसे सीमेंट, ऑटोमोबाइल तथा इस्पात उधोग की माँग व्यापार चक्रो के प्रभाव के कारण कम हो गई हिया इससे भी इन उधोगो को मंदी की स्थिति का सामना करना पड़ा रहा है |

Suggestions for Solutions to the Industrial slowdown in India भारत में ओधोगिक मंदी के समाधान हेतु सुझाव

 

  1. वितीय सुविधा उपलब्ध करना— औधोगिक इकाईयो की वितीय समस्या का समाधान करने के लिये इन्हे पर्याप्त वित् व्यवस्था एव ऋणों की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए कमजोर इकाईयो के पुननिर्माण के लिये सरकार अनुदान की व्यवस्था भी कर सकता है |
  2. ब्याज दरो में कमी— सरकार द्वारा विनियोग को प्रोत्साहित करने के लिये ब्याज दरो में काफी कमी की गई है लेकिन अंतराष्टीय स्तर को देखते हुए अभी भी इस श्रेत्र में कमी लाने की गुजाईश है |
  3. विदेशी विवेश को प्रोत्साहन— देश में पूगी की कमी को दूर करने के लिये अनेक श्रेत्र जैसे दूर,सचर, होटल तथा पर्यटन, आवास विकास, हवाई अड्डा,विशिष्ट आर्थिक शेत्रो में उत्पादन गतिविधिया आदि के लिये शत प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति दी गई है इससे औधोगिक विकास की वर्धि दर को बढ़ाने में पर्याप्त सहायता मिलेगी |
  4. श्रम समस्याए— औधोगिक श्रमिको को सगठित होने का अवसर देता है जिसका परिणाम यह होता है की श्रमिक व मालिको में सदा ही रस्साकसी बनी रहती है | श्रमिक हमेशा कुछ-न-कुछ मांगे मालिको के सम्मुख रखते रहते है, जिन्हें न मानने पर हड़ताल व तालेबन्दी की स्थिति आये दिन बनी रहती है | इससे श्रमिको अपनी मजदूरी व मालिको को अपने लाभ से हाथ धोना पड़ता है जिसका प्रभाव देश के कुल उत्पादन पर पड़ता है और राष्टीय आय में गिरावट आती है |
  5. उत्पादन लागत अधिक होना— भारत में औधोगिक इकाईयो की प्रति इकाई उत्पादन लागत अंतराष्टीय लागतो की तुलना में बहुत अधिक है | योग्य एव प्रशिश्रित श्रमिको का अभाव, पुरानी तकनीकी,आश्रम प्रबन्ध आदि कारणों से उत्पादन लागत अधिक रहती है | भारत में लागत वियन्त्र्ण पर कोई विशेष ध्यान नही दिया जाता |
  6. पूजी का अभाव— उधोगो ने नई-नई मशीनों, यंत्र तथा तकनीको का प्रयोग करने के लिये अत्यधिक पूजी की आवश्यकता होती है | भारत में उधोगो के पास पर्याप्त पूजी का अभाव रहता है वे पुरानी मशीनों तथा यंत्रो का ही प्रयोग करते रहते है | इससे उत्पादन लागत अधिक आती है तथा वे बाजार में प्रतियोगिता का सामना नही कर पाते |
  7. उर्जा के वैकल्पिक साधनों का विकास— उधोगो में मशीनों को चलाने के लिये शक्ति की आवश्यकता होती है विधुत आपूर्ति में कोई बाधा n आये इसके लिये उर्जा के वैकल्पिक साधनों का विकास किया जाना चाहिए |
  8. श्रमिको के मधुर सम्बन्ध— हड़ताल, तालाबन्दी तथा अन्य औधोगिक सघर्षो को रोकने के लिये मजदूरों-मालिक एव प्रबन्ध के पारस्परिक सम्बन्धो में सुधार लाना चाहिए | श्रमिको को प्रबन्ध में भागीदारी एव वितीय प्रेरणए देकर श्रम उत्पादकता में वर्धि की जा सकती है |
  9. ओधोगिक विकेंद्रीकरण— उधोगो के केन्द्रीयकरण की समस्या का समाधान करने के लिये सरकार उघोगो को कच्चे माल, परिवहन,जल,विधुत,सम्बन्धी सुविधा तथा क्र सम्बन्धी रियायते देकर पिछड़े राज्यों में उधोग स्थापित करने के लिये प्रेरित कर सकती है |
  10. विदेशी पूजी को प्रोत्साहन— देश में पूजी के अभाव को दूर करने के लिये अनुकूल शर्तो पर विदेशी पूजी को प्रोत्साहन किया जाना चाहिए | इससे देश में औधोगिक विकास को पर्याप्त बल मिलेगा |




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