Business Environment Notes in Hindi Meaning Industrial Policy India Characteristics

Business Environment Notes in Hindi Meaning Industrial Policy India Characteristics

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Business Environment Notes in Hindi Meaning Industrial Policy India Characteristics
Business Environment Notes in Hindi Meaning Industrial Policy India Characteristics

 Industrial Policy In India भारत में औधोगिक नीति



 Meaning of  Industrial Policy In India भारत में औधोगिक नीति का अर्थ

देश के औधोगिक विकास के लिए एक निशिचत औधोगिक नीति का होना परमावश्यक है | अत: स्वतन्त्रता मिलने पर भारत सरकार ने 1948  में एक औधोगिक नीति की घोषणा की | 1951 में देश में आर्थिक नियोजन प्रारम्भ किया गया तथा आर्थिक क्षेत्र में अनेक परिवर्तन किये गये इन परिवर्तनों के फलस्वरूप यह आवश्यक हो गया की 1948 के औधोगिक नीति प्रस्ताव की घोषणा की गई | देश में अनेक आर्थिक सामाजिक व् राजनितिक परिवर्तन के कारण 1956 की औधोगिक नीति में 1970, 1973, 1975, 1977,1980 व 1990 में अनेक परिवर्तन किए गए |

1991 में सरकार ने उदारीकरण की नीति को औधोगिक क्षेत्र में अपनाया तथा औधोगिकारण के तीर्व विकास में आने वाली विभिन बाधाओ को दूर करने के लिए व्यापक परिवर्तन किए अत: 1991 में एक नयी औधोगिक नीति की घोषणा की गई, जो की सभी पुरानी औधोगिक नीतियों से बिल्कुल भिंन है |

 

New Industrial Policy Characteristics नई औधोगिक नीति का विशेषताए 




 

  • लाइसेन्स व्यवस्था की समाप्ति— राष्टीय अर्थव्यवस्था से नियन्त्रित की भूमिका को समाप्त करने व अर्थव्यवस्था को और अधिक उदार बनाने के लिए सरकार ने 5 उधोगो को छोडकर अन्य सभी उधोगो के लिए लाइसेन्स प्राप्त करने की व्यवस्था को समाप्त कर दिया है | इन 5 उधोगो में शराब, सिगरेट, खतरनाक रसायन, सुरक्षा का सामना तथा औधोगिक विस्फोटक शामिल है |
  • विदेशो विनियोग को प्रोत्साहन— विदेशी विनियोगो के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष पाबंदी को समाप्त कर दिया गया है | अब नई नीति के अन्तगर्त उच्च प्राथमिकता वाले उधोगो जिनमे अधिक विनियोग व् उच्च तकनीक की आवश्यकता होती है में विदेशी विनियोग को आकर्षित करने के लिए 51 प्रतिशत विदेशी पूँजी की भागीदारी तक सरकार की स्वीक्रति प्राप्त करने की आवश्यकता नही है | खनन की किर्याओ से सम्बन्धित 3 उधोगो में विदेशी पूँजी निवेश सीमा 50% तथा 9 अन्य उधोगो में विदेशी पूँजी निवेश की सीमा को 74% तक बढ़ा दिया गया है| व्यवसाय से व्यवसाय-ई कामर्स, ऊर्जा क्षेत्र, तेल रिफाइनरी, विशेष आर्थिक क्षेत्रो (SEZs) एव टेलीकाम क्षेत्र में 100% विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की अनुमति दी गई |
  • विदेशी तकनीक— उत्पादन व् निर्यात में व्रद्धि के लिये विदेशी पूँजी निवेश और विदेशी तकनीकी सहयोग को प्रोत्साहन दिया जाएगा | उच्च प्राथमिकता प्राप्त 35 उधोगो के लिये विदेशी तकनीक के समझोतों को स्वत: स्वीक्रति प्रदान की जाएगी | विदेशी तकनीकी विशेषज्ञ नियुक्त करने अथवा देश में विकसित तकनीको का विदेशो में परिक्षण करने के लिए अव विदेशी मुदा में भुगतान के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नही है |
  • उधोगो की स्थापना नीति का उदारीकरण— नई नीति में उधोगो की स्थानीयकरण की नीति में भी परिवर्तन किया गया है | इस नीति के अनुसार अब उन उधोगो को छोडकर जिनके लिये लाइसेन्स लेना आवश्यक है अन्य उधोगो की स्थापना के सम्बन्ध में उन शहरों में कोई रुकावट नही है जिनके आबादी 10 लाख से कम है |

दस लाख से अधिक जनसख्या बाले नगरो के मामले में इलेक्रोतिक्स और किसी तरह के अन्य गैर-प्रदुषणकारी, उधोगो को छोडकर अन्य नई नीति औधोगिक विकेन्द्रीयकरण को बडवा देती है |

  • विधमान पंजीकरण योजनाओ की समाप्ति— औधोगिक इकाईयो के पंजीयन के सम्बन्ध में विधमान सभी योजनाये, समाप्त कर दी गयी है | अब उधमियो को नयी परियोजनाओ तथा पर्याप्त विस्तार कार्यक्रमो के सम्बन्ध में एक सुचना ज्ञापन ही जमा करना होगा |
  • प्रबन्ध में श्रमिको भागीदारी— नई औधोगिक नीति में श्रमिको के हित की रक्षा करने का वचन दिया गया है | नीति वक्तव्य में कहा गया है की श्रमिक की सहकारी समितियों को रुग्ण या बीमार इकाईयों को सुचारू रूप से चलाने के लिए कम में भागीदार निभाने के लिए श्रमिको को प्रोत्साहित किया जायेगा |
  • पूंजीगत माल, कचे माल आदि के आयात में छुट— उपभोकता वस्तुओ को छोडकर लगभग सभी प्रकार के पूंजीगत माल व कचे माल आदि के आयात की खुली छुट दे दी गई है |

 

False or criticize new industrial policy नई औधोगिक नीति की कमिय या आलोचनाए 




  • विदेशी पूँजी से हानि— नई औधोगिक नीति में विदेशी विनियोग के लिए 51% तक पूँजी निवेश की छुट दी गई है जिससे अनेक उपक्रम विदेशी सहयोग से स्थापित हो गए है लेकिन ये उपक्रम देश के हित में कार्य नही करते | बहुराष्टीय कम्पनिया प्रतिवर्ष करोड़ो रूपये अपने देश में लाभ, लाभाश तथा रायल्टी के रूप में भेजती है, जिसका हमारे विदेशी विनिमय कोषों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |
  • आर्थिक शक्ति के केन्द्रिकरण को बढ़ावा— नई औधोगिक नीति के परिणामस्वरूप देश में आर्थिक शक्ति के केन्द्रीकरण को बढ़ावा मिला है इस नीति के द्वारा धनी तथा बड़े औधोगिक घरानों को अपना विस्तार करने की आर्थिक स्वतंत्र मिल गई है जिससे एकाधिकारी तथा केन्द्रीयकरण की परवर्ति बढने से जनता का शोषण बड रहा है |
  • लघु उधोगो पर प्रतिकूल प्रभाव— विदेशी कम्पनियों को आर्थिक स्वतन्त्रता विदेशी पूँजी को छुट, उदारवादी नीतियों आदि के परिणामस्वरूप देश में प्रतियोगिता में व्रद्धि होगी | लघु उधोगो बड़े उधोगो तथा विदेशी कम्पनियों के सामने प्रतियोगिता में नही टिक सकेगे जिससे उनके विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा |
  • बहुराष्टीय निगमों द्वारा शोषण— इस नीति के द्वारा भारतीय उधोगो पर विदेशी उधोगो की प्रभुसता को बढ़ावा मिलेगा | बहुराष्टीय कम्पनियों ने उच्चे तकनीकी प्राप्त क्षेत्र में उधोगो लगाने के बजाय घरेलू उपभोग की वस्तुओ; जैसे साबुन, टूथपेस्ट, टायलेट पेपर, आइसक्रीम, चाकलेट, खिलोने, पेय, खाद्य पदार्थ, डिब्बा बन्द खाद्य आदि का ही उत्पादन किया है जो स्वदेशी उधोगो भी आसानी से कर सकते है | अब स्वदेशी उधोगो इनकी प्रतिस्पर्धा में नही टिक पायेगा और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा लाभाश के रूप में विदेशो में जाने लगेगी सरकार को इस सम्बन्ध में स्पष्ट नीति अपनाते हुए कम महत्वपूर्ण क्षेत्रो के लिए बहुराष्टीय निगमों पर रोक लगानी चाहिए |
  • क्षेत्रीय असमानता को बढ़ावा— नई ओधोगिक नीति के द्वारा क्षेत्रीय असमानताओ में व्रद्धि होगी | लाइसेंसिग नीति के समाप्त होने से केवल विकसित क्षेत्रो में ही ज्यादातर उधोगो विकसित होगे, परिणामस्वरूप पिछड़े क्षेत्र फिर भी पिछड़े ही बने रहेगे | इससे क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ाने की प्रबल स्म्भावनाए है |
  • सामाजिक उद्दीश्यो की अवहेलना— नई औधोगिक के द्वारा सामाजिक उदेश्यों की पूर्ति नही हो सकेगी | सामाजिक उद्देश्य में आर्थिक शक्ति का केन्द्रीय करण न होना निजी क्षेत्र की तुलना में सावर्जनिक क्षेत्र को अधिक महत्व तथा छोटे और कुटीर उधोगो को प्रोत्साहित करना इत्याति शामिल होते है जिनकी इस नीति में पूर्णतया अवहेलना की गई है |
  • कुशलता में वर्धि न होना— इस नीति में यह माना गया है की निजीकरण के कारण उधोगो की कुशलता में बहुत व्रद्धि होगी किन्तु ऐसा नही हो पा रहा है | निजी क्षेत्र में भी रुग्ण इकाईयो की सख्या बढती जा रही है जिससे उनकी कार्यकुशलता कम हो रही है | वास्तव में उधोग चाहे वह सावर्जनिक क्षेत्र में हो या निजी क्षेत में तभी कुशल माना जाता है जब वह प्रतियोगिता का सामना करने की स्थिति में हो |




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