Due to Unemployment In India Business Environment Notes In Hindi

Due to Unemployment In India Business Environment Notes In Hindi

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Due to Unemployment In India Business Environment Notes In Hindi
Due to Unemployment In India Business Environment Notes In Hindi

बेरोजगारी (Unemployment)

Meaning of Unemployment (Due to Unemployment In India Business Environment Notes In Hindi) बेरोजगारी का अर्थ

बेरोजगारी एक एसी स्थिति है जहा कार्य करने के योग्य एव इछुक व्यक्ति को अपने जीवन निर्वाह के लिये कार्य नही मिल पाता है अत: जब कोई  व्यक्ति कार्य करने का इछुक है और वह शारिरिक रूप से कार्य करने में समर्थ है, परन्तु उसे प्रचलित मजदूरी की दर पर कोई और कार्य नही मिलता, जिससे वह अपनी आजिबिका कमा सके तो इस प्रकार की समस्या को बेरोजगारी की समस्या कहते है |

बचचो, बुढो, बीमारो, अपाहिजों, पागलो,साधुओ तथा भिखारियों आदि को बेरोजगारी नही कहा जाता क्योकि वे या तो कम करने के योग्य होते है अथवा वे काम करना नही चाहते |

पीगू जे अनुसार,  “एक व्यक्ति को तभी बेरोजगार कहा जा सकता है जब उसके पास कोई कार्य नही होता किन्तु वह कार्य करना चाहता है “

भारत में बेरोजगारी का विस्तार अथवा अनुमान

भारत ने बेरोजगारी के विभिन स्वरूप पाए जाते है इसी करण बेरोजगारी के सम्बन्ध में पूर्णत: सही अनुमान लगाना बहुत ही कठिन होता है विश्वसनीय आकडे उपलब्ध न हो पाने के करण बेरोजगारी के जो अनुमान लगए गये है वे न तो सही है और न विश्वसनीय | बेरोजगारी के उपलब्ध अनुमानों में भी वहुत अंतर पाया जाता है |




वर्ष जनसख्या श्रम बल रोजगार बेरोजगारी बेरोजगारी की दर (%)
2001-02 102.9 37.82 34.34 3.48 9.21%
2004-05 109.28 41.97 38.49 3.47 8.28%
2007-12* 113.8 36.9 33.9 3.00 8.1%
2011-12(अनुमनित) 120.80 48.37 46.03 2.34 4.83%
2016-17(अनुमनित) 128.32 52.41 51.82 0.59 1.12%

 

Due to unemployment in India (भारत में बेरोजगारी के कारण)

  1. जनसख्या में तीर्व वर्धि— भारत में बेरोजगारी का मुख्य कारण यह है की देश में जनसख्या की वर्धि दर बहुत तीर्व है |

देश में जिस दर से जनसख्य बड रही है उस दर से रोजगार सुविधाए नही बड रही है यहा लगभग 70 लाख व्यक्ति प्रति वर्ष रोजगार चाहने वाले व्यक्तियों की सख्या में जुड़ जाते है |

  1. दोषपूर्ण शिछा प्रणाली— भारत की शिछा प्रणाली व्यवसाय प्रधान n होकर सिधान्त-प्रधान है | परिणाम स्वरूप देश के आर्थिक विकास में इसकी उपयोगिता कम हो जाती है तथा देश में शिछित बेरोजगारी में निरंतर वर्धि हो रही है |
  2. कुटीर एव ग्रामीण उधोगो का पतन— कुटीर एव ग्रामीण उधोगो का पतन भी ग्रामीण बेरोजगारी की एक प्रमुख करण है स्वतन्त्रता के पशचात भी ग्रामीण औधोगिकरण पर विशेष ध्यान नही दिया गया | इन सभी कारणों से ग्रामीण श्रेत्रो में बेरोजगार की समस्या बनी हुइ है |
  3. आर्थिक विकास की धीमी गति— रोजगार की मात्रा में वर्धि आर्थिक विकास की दर पर निर्भर करती है | जब आर्थिक विकास की दर तीर्व होती है तो रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न होते है | पिछले 63 वर्षो के योजनाबद्ध विकास के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में वार्षिक विकास दर कमी रही है |इससे रोजगार के प्रयाप्त अवसर उत्पन नही हो सके | परिणाम यह हुआ की बेरोजगारी बढती गयी |
  4. पूजी निर्माण की धीमी गति— देश में पूजी-निर्माण की गति बहुत ही धीमी रही है उसके कारण उधोगो, व्यवसाय व् सेवाओ का विस्तार भी धीमी गति से ही हुआ है, रोजगार सुविधाए उस दर से नही बड पायी है जिस दर से जनसख्या में वर्धि हुई है |
  5. राष्टीय रोजगार नीति का अभाव— भारतीय योजनाओ में राष्टीय रोजगार नीति का अभाव रहा है इसीलिए प्रतिवर्ष शिश्रित व अशिश्रित बेरोजगारों की नयी फोज खड़ी हो रही है भारतीय नियोजन प्रकिर्या में रोजगार को योजना के मूल उदेश्यों में आवश्यक रखा गया है | लेकिन इसे उच्च प्राथमिकता नही दी गई |
  6. क्रषि का पिछड़ापन— भारत में क्रषि श्रेत्र का भी अपेश्रित विकास नही हुआ है जिससे इसमे अतिरिक्त रोजगार के अवसर कम उपलब्ध होते है क्रषि श्रेत में मोसमी व् अद्र्शीय बेरोजगारी की समस्या विधमान रहती है क्रषि शेत्र में धीमे विकास के करण क्रषि पर आधारित उधोगो जैसे चीनी कपड़ा आदि उधोगो के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है |
  7. पूजी प्रधान तकनीको का अधिक प्रयोग— भारतीय योजनाओ में उत्पादन की पूजी प्रधान तकनीको पर बल दिया गया है विभिन उधोगो में आधुनिककरण, यंत्रीकरण स्वचालन तथा श्रम बचाने वाले अन्य तरीको को अपनाया जा रहा है, जिससे अनेक श्रमिक बेरोजगार हो जाते |
  8. औधोगिक की मन्दी गति— देश में योजनाकाल के दोरान यधपि उधोगो का चमुमुखी विकास किया गया है | लेकिन फिर भी जनसख्या व श्रम शक्ति में वर्धि के अनुरूप भारतीय उधोग रोजगार अवसर उपलब्ध कराने में असफल रहे है | भारत में अनेक उधोग अपनी स्थापित श्रमता का पूर्ण उपयोग नही कर पा रहे और इसी करण वे अपनी सामर्थ्य से काफी कम श्रमिको को रोजगार प्रदान करा पाते है |
  9. श्रमिको में गतिशीलता का अभाव— हमारे देश में ग्रामीण श्रमिक अशिश्रित रुदिवादी तथा परम्परावादी होते है वे अपने गाव अथवा-उसके आसपास ही रोजगार चाहते है | वे गाँव से बाहर काम करने नही जाना चाहिते | कुछ लोग तो घर छोडकर बाहर रोजगार प्राप्त करने की अपेश्रा बेरोजगार रहना अधिक पसन्द करते है | यह भी बेरोजगारी का एक कारण है |




Measures to Remove Unemployment ( बेरोजगारी दूर करने का उपाय )

 

  1. जनसख्या पर प्रभावी नियन्त्रण— श्रम शक्ति का सीधी सम्बन्ध जनसख्या से है | जनसख्या वर्धि पर पर्याप्त नियन्त्रण करके ही बढती हुई श्रम-शक्ति को नियन्त्रित किया जा सकता है | इसको घटाने में सिर्फ परिवार नियोजन उपायों को अपनापा ही पर्याप्त नही होगा | बल्कि बालिका शिछा, मातत्व एव शिशु स्वास्थ्य तथा महिला रोजगार के कार्यक्रम अपनाने होगे |
  2. स्वरोजगार कार्यक्रम(Self Employment Scheme)— बेरोजगार की स्थिति को दूर करने के लिए सरकार द्वारा शिश्रित एव प्रशिश्रित युवको को अपना रोजगार प्रारम्भ करने के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए | इसके लिए तकनीकी सलाह व वितीय सहायता भी उपलब्ध करायी जानी चाहिए |
  3. उत्पादन श्रमता का पूर्ण उपयोग— भारत में प्राय: प्रत्येक उधोग में स्थापित उत्पादन श्रमता का पूर्ण उपयोग नही किया जाता है | यदि उत्पादन की स्थापित श्रमता का उत्पादन श्रमता का पूर्ण उपयोग किया जाये तो बड़ी मात्रा में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते है |
  4. श्रम प्रधान तकनीक की प्रधानता— ऐसे उधोगो को छोडकर जहा तकनीकी कारणों से पूजी प्रधान तकनीकी का प्रयोग आवश्यक हो, शेष सभी उधोगो में श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाना चाहिए | अत: सरकार को रोजगारसूचक तकनीक को प्राथमिकता देनी चाहिए | श्रम प्रधान तकनीको के विकास के लिए वितीय प्रोत्साहन एव तकनीकी सहायता प्रदान की जानी चाहिए |
  5. लघु एव कुटीर उधोगो को प्रोत्साहन— बड़े उधोगो की अपेछा छोटे उधोगो में रोजगार प्रदान करने का अधिक श्रमता होती है अत: लघु उधोगो को प्रोत्साहन देना चाहिए | कुछ ऐसे उत्पादन श्रेत्र चुने जा सकते है जो केवल लघु उधोगो के लिए ही निधारित किये गये हो | उनसे बड़े उधोगो को प्रवेश की अनुमति नही दी जानी चाहिए | सरकार ने इसके लिए 1988 में लघु उधोग विकास बैक (SIDBI) की स्थापना की है तथा 1991 में लघु उधोगो के सम्बन्ध में औधोगिक नीति की घोषणा भी की है |
  6. जन शक्ति नियोजन— देश में बेरोजगारी को दूर करने के लिए जन-शक्ति का नियोजन किया जाए, जिससे देश में श्रमिक की माँग के अनुसार उनको शिषित एव प्रशिश्रित किया जा सके | इससे एक और श्रमिक तकनीकी अभाव के कारण बेरोजगार नही रहेगा तथा दूसरी और योग्य श्रमिको का अभाव के करण देश में उत्पादन एव आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव नही पड़ेगा |
  7. क्रषि पर आधारित उधोगो-धन्धो का विकास— भारत में क्रषि में प्रच्छन बेरोजगारी एव मोसमी बेरोजगारी पायी जाती है | अत: यह सुझाव दिया जाता है की गाँवो में क्रषि सहायक उधोग-धन्धो का विकास किया जाना चाहिए जिससे की कर्षक खाली समय में भी कुछ कार्य कर सके | इसके लिए पशुपालन, मुर्गीपालन, बागवानी, दुग्ध व्यवसाय,मत्स्य-पालन आदि जैसे धन्धो का विकास किया जा सकता है |
  8. आधार भूत ढाचे का विकास— देश में आधारभूत ढाचा पिछड़े हुआ है जिसके कारण रोजगार अवसरों में अधिक वर्धि नही हो पाती | सरकार को जल, विधुत,परिवाहन, शिछा, स्वास्थ्य आदि का विकास करके एक सूद्रढ आधारभूत ढाचे का निर्माण करना चाहिए ताकि रोजगार अवसरों में वर्धि हो सके |
  9. विनियोग दर में वर्धि— रोजगार सुविधाओ को बढ़ाने के लिए धरेलू बचतों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिससे की पूजी निर्माण ऊँची दर से किया जा सके | इससे नये-नये उधोगो की स्थापना में सहायता मिलेगी और रोजगार सुविधाओ में वर्धि होगी |
  10. क्रषि विकास कार्य क्रम— बेरोजगारी दूर करने के लिए क्रषि का तीर्व गति से विकास आवश्यक है अधिक दरिद्रता तथा घनी आबादी वाले श्रेत्रो में क्रषि विकास दर को विशेष रूप से बढ़ाना होगा | क्रषि में शोध एव विस्तार तथा उत्पादन समर्थन के कार्यो की पुन: रचना करनी होगी जिससे की इन श्रेत्रो की विशेष आवश्यकताओ को पूरा किया जा सके |




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