Business Environment Study Material Infection Meaning Savings and Investments

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बचत व विनियोग ( Saveings and Investments)

भारत में बचत विनियोग की परवर्तिया Infection of savings appropriation in India

प्रत्येक विकासशील राष्ट को अपने आर्थिक विकास के लिये पूजी की आवस्यकता होती है |  पूजी का निर्माण का महत्वपूर्ण घटक घरेलू बचते है बचत की दर अधिक होने पर ही पूजी निर्माण का स्तर ऊचा होगा तथा आर्थिक विकास की गति भी तीर्व होगी |

बचत— एक निशचित अवधि में राष्टीय आय का वह भाग जो चालू उपभोग की वस्तुओ पर व्यय करने के बाद बचत है उसे बचत कहा जाता है |

लार्ड कीन्स के अनुसार—  “आय का उपभोग की तुलना में अधिक्य बचत कहलाता है”

सूत्र रूप में,                       S = Y – C             (S = बचत, Y = आय, C = उपभोग)

विनियोग— बचत राशि का वह भाग जिसे और आर्थिक धन आर्जित करने के लिये लगाया जाता है , विनियोग (पूजी निर्माण) कहलाता है विनियोग से अभिप्राय चालू प्रतिभूतियो, बरण्ड, हिस्सों को खरीदने से नही होता वरन इससे अभिप्राय नई फैक्ट्री, मशीनो, पुजीगत,पदार्थ आदि के खरीदने से होता है |

कीन्स के अनुसार— “विनियोग से अभिप्राय पुजीगत पदार्थो में होने वाली वर्धि से है”

भारत में बचत एव विनियोग की परवर्तिया

विश्व के विभिन राष्टो के आर्थिक विकास का विशलेषण करने से ज्ञात होता है जिन राष्टो की बचत दर २०% से अधिक रही है वही राष्ट तीर्व गति से विकास क्र सके है अत: भारतीय अर्थव्यवस्था के वारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए विभिन योजनामे बचत एव विनियोग की प्रवर्तिया का अध्धयन आवश्यक हो जाता है निम्नलिखित तालिका के द्वारा भारत में विभिन योजनाओ में बचत एव विनियोग की दरो का अध्धयन किया जा सकता है—




योजनाए

बचत की प्रतिशत दर

GDP के  % में

विनियोग की प्रतिशत दर

GDP के  % में

प्रथम योजना (1957-56)

10.0

12.0

द्वितीय योजना (1956-61)

12.0

15.0

तृतीय योजना (1961-66)

15.0

17.4

चतुर्थ योजना (1969-74)

14.0

14.8

पचंम योजना (1974-78)

18.5

18.8

पष्ठम योजना (1980-85)

19.6

22.4

सप्तम योजना (1985-90)

20.4

22.7

अष्टम योजना (1990-95)

23.1

24.4

नवम योजना (1997-2002)

23.6

24.3

दसवी योजना (2002-2007)

31.9

32.1

ग्यारहवी योजना (2007-2011)

34.8

36.7




 

तालिका से स्पष्ट है कि—

  • प्रथम योजना में बचत दर 10% तथा विनियोग की दर 12% थी | वियोजन के प्रारम्भिक काल में बचत व् विनियोग दर में तीर्व वर्धि हुई है तथा तीसरी योजना में यह क्रमशः 15 व 17.4 प्रतिशत हो गई थी |
  • चतुर्थ योजना के दोरान अर्थव्यवस्था में बचत व् विनियोग दरो में गिरावट आई तथा बचत व् विनियोग दर घटकर क्रमशः 14 व 14.8 % रह गई
  • पाचवीं योजना के दोरान बचत व विनियोग दरो में पुनः वर्धि प्रारम्भ हुई तथा छटी, सातवी तथा आठवी योजना में भी यह वर्धि जरी रही |
  • आठवी योजन के अंत में विनियोग की वार्षिक दर 4 % थी जो नोवी योजना में घटकर 24.3 % रह गई दसवी योजना में विनियोग दर बढकर 32.1% तथा ग्यारवी योजना में 36.7% हो गई है |

निष्कर्स रूप में यह कहा जा सकता है की 1990-91 के बाद बचत दर व विनियोग दे में विशेस वर्धि नही हुई है 2007-2012 में यह दर 36.7% रही है अब अर्थव्यवस्था में बचत दर के बढने की सम्भावना बहुत कम है | अत: हमे अनावस्यक उपभोक्ता वस्तुओ से विनियोग को हटकर प्राथमिकता के आधार पर पूजी का प्रयोग करना होगा |

भारत में बचत एव विनियोग दर निम्न होने के कारण Reasons for Savings and Investment Rate in India

  • प्रति व्यक्ति आय का निम्न स्तर— भारत में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम है जिससे लोगो की बचत करने की सामथ्र्य कम रहती है इससे पूजी निर्माण की दर निम्न बनी रहती है |
  • प्रदर्शन प्रभाव— अपने से अधिक सम्पन लोगो को शेष्ट मानकर उनकी उपभोग के करण भारत में विलासिता की वस्तुओ के उपभोग में वर्धि हुई है फलत: भारत में बचत एव विनियोग का स्तर बना हुआ है |
  • बाजार का आकार छोटा होना— देश में प्रति व्यक्ति आय कम होने के कारण जनता की क्रय शक्ति कम रहती है | इससे वस्तुओ व् सेवाओ की माग कम होती है | घरेलू बाजार में नई वस्तुओ की पूर्ति की खपत करने की छमता कम होने से नया विनियोग नही हो पता जिससे पूजी निर्माण की दर निम्न बनी रहती है |
  • बचत एकत्र करने वाली सस्थाओ का आभाव— देश में बचतों को एकत्र करने तथा प्रोत्साहन देने वाली सस्थाओ का अभाव है | इससे भी बचत व पूजी निर्माण की दर निम्न बनी रहती है |
  • निम्न उत्पादकता— देश में श्रमिको की उत्पादकता निम्न स्तर पर है इससे उनकी मजदुरी भी कम रहती है | एसी स्थिति में उनकी बचत करने की श्रमता नगण्य रहती है जिससे पूजी निर्माण की गति धीमी बनी रहती है |
  • योग्य साहसियो का अभाव— देश में योग्य साहसी व्यक्तियों, जो जोखिम लिकर नये-नये उधोग स्थापित कर सके, का अभाव पाया जाता है | देश में उधमी वर्ग जोखिमपूर्ण व्यवसायों में पूजी विनियोग करने में हिचकिचाते है | इससे पूजी निवश की गति धीमी रहती है तथा पूजी निर्माण को प्रोत्साहन नही मिल पाता |
  • बचतो का अनुत्पादक कार्यो में प्रयोग— देश में अधिकाश बचतो को अनुत्पादक कार्यो में प्रयुक्त किया जाता है जिससे विनियोग के लिये कम पूजी उपलब्ध हो पाती है |
  • पूजी का अभाव— देश में पूजी के अभाव के कारण उधोगो का विकास सम्भव नही हो पाता है | जिससे राष्टीय उत्पादन में वर्धि नही हो पाती तथा प्रति व्यक्ति आय का स्तर भी निम्न बना रहता है | फलत: बचत नही हो पाती तथा पूजी निर्माण की गति धीमी बनी रहती है |
  • करो की अधिकता—देश में करो की अधिकता के कारण भी जनता की बचत करने की शक्ति कम हो गई है जिससे विनियोग का स्तर निम्न बना हुआ है |
  • मुद्रा-स्फीति— देश में विकास कार्यो के लिये धन जुटाने के लिये घाटे की अर्थव्यवस्था का सहारा लेना पड रहा है | इससे देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन हो गई है | जनता को अब अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये अधिक व्यय करना पड़ता है जिससे उनकी बचत शमता प्रभावित हुई है |

 


भारत में बचत व विनियोग को प्रोत्साहन हेतु सुझाव Suggestions for Encouraging Savings and Investment in India

  • मूल्यों में स्थायित्व— बचत एव विनियोग में वर्धि करने के लिये देश में मुयो में स्थायित्व लाने का प्रयास किया जाना चाहिए | यदि मूल्यों में तीर्व गति से वर्धि होती रहेगी तो इसका बचतों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा पूजी निर्माण में बाधा उत्पन होगी |
  • बैक एव वितीय सस्थाओ की स्थापना— ग्रामीण बचतों को गतिशील बनाने के लिए ग्रामीण श्रेत्र व अर्द्धशहरी श्रेत्रो में अधिकाधिक सख्या में बैक एव अन्य वितीय सस्थाओ की स्थापना की जानी चाहिए |
  • घरेलू बचतों को प्रोत्साहन— देश में बचत एव विनियोग में वर्धि करने की लिए आकर्षक ब्याज दर व अन्य सुविधाए देकर बचतो को प्रोत्साहन करना चाहिए |बचतों में वर्धि होने से विनियोग में स्वत: वर्धि होने लगेगी |
  • विदेशी पूजी का प्रयोग— यदि घरेलू बचते देश की आवश्यकताओ के लिये पर्याप्त नही है तो यथासम्भव अपनी परिस्थितियों के अनुसार विदेशी पूजी की सहायता भी ली जानी चाहिए |
  • गैर-विकास व्ययों में कमी— सरकार को गैर-विकास व्ययों में कमी करने धन उन्ही योजनाओ में लगाना चाहिए जो कुल उत्पादन में वर्धि क्र सके | केंद्र व राज्य सरकारो के औसत गैर-विकास व्यय बहुत अधिक है | सरकार इन व्ययों में कमी करके भी बचत क्र सकती है और पूजी को प्रोत्साहन क्र सकती है |
  • उत्पादकता में वर्धि— देश में उपलब्ध प्राक्रतिक व मानवीय संसाधनो का पूर्ण विदोहन किया जाना चाहिए | इससे उत्पादकता तथा आय में वर्धि होगी तथा बचतों को बढ़ावा मिलेगा |
  • पूजी बाजार का विकास— देश में बचतों को गतिशील बनाने के लिये पूजी बाजार का समुचित विकास किया जाना चाहिए |
  • उपयुक्त राज्यकोष नीति— करो के द्वारा प्राप्त आय को उत्पादक कार्यो में लगाया जाना चाहिए जिससे राष्टीय उत्पादन में तीर्व वर्धि सम्भव हो सके | घाटे की वित् व्यवस्था का प्रयोग सावधानी से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में केवल उत्पादक कार्यो के लिये हो करना चाहिए | इस प्रकार उपयुक्त राज्यकोष नीति के द्वारा देश में बचत व विनियोग में वर्धि की जा सकती है |

 

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