Depositories Act 1996 Notes

Depositories Act 1996 Notes

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Depositories Act 1996 Notes

निक्षेपागार अधिनियम, 1996 [Depositories Act, 1996]

डिपॉजिटरी शब्द ‘डिपॉजिट बैक’ (ट्रस्ट बैंक या ट्रस्ट कम्पनी) की पार्टी के रूप में परिभाषित किया गया है। जिसका भरोसा किया जाता है। डिपॉजिटरी वह जगह होती है जहाँ पर प्रतिभूतियों को रखा जाता है। निक्षेपागार का दायित्व यह है कि वह प्रतिभूतियों की उचित देखभाल रखे। एक डिपॉजिटरी इलेक्ट्रॉनिक रूप में निवेशकों की प्रतिभूतियाँ (जैसे—शेयर, डिबेंचर, बॉण्ड, सरकारी प्रतिभूति, इकाइयाँ आदि) रखती है। प्रतिभूतियों को रखने के अलावा, एक डिपॉजिटरी प्रतिभूतियों में लेन-देन से सम्बन्धित सेवाएँ भी प्रदान करती है। वह मालिक ट्रस्टी के रूप में कार्य करती है क्योंकि प्रतिभूतियों को ट्रस्ट के साथ ही सौपा जाता है। वह प्रतिभूतियों के स्वामी की एजेण्ट भी कहलाती है।

 भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड 1992 की धारा 12 की उपधारा 1() के अनुसार, “डिपॉजिटरी का अर्थ कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत गठित और पंजीकृत कम्पनी से है और जिसे उपधारा 1(ए) के तहत पंजीकरण का प्रमाण-पत्र दिया गया है। भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 की धारा 12 की उपधारा 1(ए)।

एक डिपॉजिटरी इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रतिभूतियों को रखने की सुविधा प्रदान करती है और डिपॉजिटरी पार्टिसिपेट (डी०पी०) द्वारा बुक एण्ट्री प्रतिभूतियों के लेन-देन को संसाधित करने में सक्षम बनाती है, जो डिपॉजिटरी का एक एजेण्ट है, जो निवेशकों को डिपॉजिटरी सेवाएँ प्रदान करती है, सेबी के दिशा-निर्देशों के अनुसार, वित्तीय संस्थान, बैंक संरक्षक, स्टॉक ब्रोकर आदि डी०पी० के रूप में कार्य करने के लिए पात्र होते है। निवेशक जिसे लाभकारी स्वामी (B.O.) के रूप में जाना जाता है, उसे किसी भी डी०पी० के माध्यम से डीमैट खाता खोलना होता है ताकि उसकी होल्डिंग का डिमैटीरियलाइजेशन हो सके और प्रतिभूतियों को स्थानान्तरित किया जा सके।

अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of the Act)

  • डिपॉजिटरी को कम्पनी अधिनियम के तहत पंजीकृत कम्पनी और सेबी द्वारा प्रदत्त पंजीकरण प्रमाण-पत्र होना चाहिए।
  • सेवी से प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के बाद ही व्यवसाय शुरू करना चाहिए।
  • सेवी अधिनियम के तहत पंजीकृत ‘प्रतिभागियों की आवश्यकता है-डिपॉजिटरी और प्रतिभागी को एक समझौते में प्रवेश करना चाहिए और डिपॉजिटरी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए इच्छुक व्यक्ति को एक प्रतिभागी के माध्यम से आवश्यक समझौते में प्रवेश करना चाहिए।
  • जारीकर्ता को आत्मसमर्पण करने के लिए सुरक्षा प्रमाण पत्र और उसी को रद्द का दिया जाए; और डिपॉजिटरी को रिकॉर्ड में पंजीकृत मालिक के रूप में प्रतिस्थापित किया जाना है; व्यक्ति डिपॉजिटरी के रिकॉर्ड में लाभकारी मालिक बन जाएगा।
  • डिपॉजिटरी के साथ पंजीकृत होने के लिए प्रतिभूतियों का स्थानान्तरण ।
  • सुरक्षा के लिए प्रत्येक ग्राहक के पास प्रमाण-पत्र प्राप्त करने या उसे डिपॉजिटरी के साथ बनाए रखने का विकल्प होता है।
  • डीमैट सिक्योरिटीज के अधिकार और दायित्व भी लाभकारी मालिक के पास होते हैं।
  • डिपॉजिटरी में रखी गई सिक्योरिटीज को गिरवी रखा जा सकता है।
  • डिपॉजिटरी और जारीकर्त्ता के बीच प्रतिभूतियों के हस्तान्तरण की सूचना ।
  • लाभार्थी मालिक के पास डिपॉजिटरी से बाहर निकालने का विकल्प है। डिपॉजिटरी की लापरवाही से लाभकारी मालिक को नुकसान की क्षतिपूर्ति की देयता । सेबी के पास निर्देश देने के लिए डिपॉजिटरी में रखी प्रतिभूतियों पर जाँच की शक्ति है।
  • अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों या कम्पनियों को दण्ड निर्दिष्ट करता है। केन्द्रीय अधिनियम में अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए किसी भी व्यक्ति को अभियोजन से प्रतिरक्षा प्रदान करने की शक्ति है।
  • केन्द्रीय सरकार और प्रतिभूति अपीलीय न्यायाकरण और सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का प्रावधान।
  • डिपॉजिटरी बोर्ड की पिछली मंजूरी के साथ अपने स्वयं के उपनियम बना सकती है।

डिपॉजिटरीज का लाभ (Advantages of Depositories)

(1) प्रतिभूतियों के कटने, फटने अथवा नष्ट होने का भय नहीं रहता है साथ ही चोरी होने का जोखिम भी नहीं होता है।

(2) सुरक्षित रखने के लिए आसान है।

(3) आसान स्थानान्तरण।

(4) सेबी द्वारा बेहतर निगरानी ।

(5) लेन-देन की लागत में कमी आदि।

डिपॉजिटरी की परिभाषा (Definition of Depository)

डिपॉजिटरी शब्द को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है –

(i) प्रतिभूतियों को जमा रखने के लिए एक केन्द्रीय स्थान के रूप में।

(ii) प्रतिभूतियों को एक बुक एंट्री ट्रांसफर को सक्षम करने के लिए प्रतिभूति या प्रमाणि रूप में प्रतिभूतियों को रखने की सुविधा के रूप में।

(iii) एक संस्था के रूप में जो अपने सदस्यों की ओर से इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रतिभूतियों के स्वामित्व को स्थानान्तरित करती है।

 निक्षेपागार के (Objectives Depository)

डिपॉजिटरी सिस्टम की शुरुआत के परिणामस्वरूप हस्तान्तरण से जुड़ी सभी समस्याएँ समाप्त यह भारतीय बाजार में निक्षेपागार प्रणाली पूँजी बाजार को निम्नलिखित उद्देश्यों को करने सक्षम बनाती है –

(1) यह उनके आसान हस्तांतरण की सुविधा के द्वारा प्रतिभूतियों की तरलता को बढ़ता है।

(2) यह निवेशक लिए लेन-देन की लागत काफी हद तक कम कर देता है।

(3) यह आसानी से आत्मसमर्पण और प्रतिभूतियों की वापसी को सक्षम बनाता है।

(4) यह विवरणों इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखकर निवेशकों की पकड़ का सटीक रखता है।

डिपॉजिटरी प्रक्रिया में शामिल संस्थान (Institutional Involved Depository Process)

  1. निक्षेपागार (Central Depository) – केंद्रीय निक्षेपागार निवेशक की और से प्रतिभूतियों रखता है। और इलेक्ट्रॉनिक रूप में अभिलेखों का रख-रखाव करता है। डिपॉजिटरी द्वारा दिया गया बयान शेयरों के स्वामित्त्व का प्रमाण है।
  2. शेयर रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेण्ट (Share Registrar and Transfer Agent) – ‘रजिस्ट्रार’ एक संस्था है जो प्रतिभूतियों के जारी नियन्त्रित करती है। ट्रांसफर एजेण्ट पंजीकृत प्रतिभूतियों मालिकों के नाम और पते बरकरार रखता है।
  3. क्लियरिंग हाउस (Clearing House) – डिपॉजिटरी शेयर ट्रांसफर प्रक्रिया दौरान क्लियरिंग हाउस साथ करती क्लियरिंग हाउस यह करता है सभी फण्ड प्राप्त हो गए डिपॉजिटरी तब सिक्योरिटी डिलीवर करने वाले व्यक्ति रिसीवर तक ट्रांसफर करेगी।

अधिनियम महत्त्वपूर्ण (Important Provisions Act-Dematerialisation)

डीमैटीरियलाइजेशन (आमतौर पर ‘डीमैट’ के रूप में जाना जाता है ) एक सम्मान संख्या में होल्डिंग अपने वर्तमान भौतिक रूप से इलेक्ट्रॉनिक रूप से शेयर प्रमाण-पत्र के रूपान्तरण को दर्शाता है।

यह अत्याधुनिक जिससे शेयर और हस्तान्तरण को इलेक्ट्रॉनिक रूप से संसाधित किया जाता जिसके रूप परिवर्तित करने बाद किसी शेयर प्रमाण-पत्र या हस्तान्तरण विलेख को किया जाता है। यह प्रतिभूति खरीदारों नाम पर अंशों हस्तान्तरण के समय वाली जटिल समस्याओं समाधान करता है और साथ इस तरह की धोखाधड़ी व फर्जीवाड़ा से सुरक्षा प्रदान करता है। यह शेयरों अथवा प्रतिभूतियों को डीमैट खाते में जमा क देता है शेयरों का डीमैट रियलाइजेशन वैकल्पिक है और एक निवेशक अभी भी शेयरों को भौतिक रूप में रख सकता है हालांकि उसे स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से समान बेचने को इच्छा है तो उसे शेयरों को डिमैट करना होगा। इसी तरह, यदि कोई निवेशक शेयर खरीदता है तो उसे डीमैट फॉर्म में ही शेयरों की डिलीवरी मिलेगी।

डिपॉजिटरी एक्ट 1996 को डिपॉजिटरी और डीमैट ऑपरेशन्स के संचालन से सम्बन्धित और आकस्मिक मामलों को विनियमित करने के लिए अधिनियमित किया गया है। दो डिपॉजिटरी प्रचालन में है –

  1. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) (National Securities Depository Limited) (NSDL)
  2. सेण्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (CDSL) (Central Depository Services Limited) (CDSL).
  1. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (National Securities Limited) – नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) एक वित्तीय संगठन है जो भौतिक या गैर-भौतिक प्रमाण-पत्र के रूप में बॉण्ड, शेयर आदि जैसे प्रतिभूतियों को धारण करने के लिए बनाया गया है। इन प्रतिभूतियों को डिपॉजिटरी खातों में रखा जाता है। जैसे कि बैंक खातों में रखी गई धनराशि । यह प्रतिभूतियों के शीघ्र हस्तान्तरण की सुविधा प्रदान करता है क्योंकि स्वामित्व केवल पुस्तक प्रविष्टियों के माध्यम से स्थानान्तरित किया जाता है। यह आमतौर पर इलेक्ट्रॉनिक रूप से किया जाता है और पारम्परिक अभ्यास का पालन करने में लगने वाले अतिरिक्त समय को समाप्त कर दिया जाता है जहाँ व्यापार पूरा होने के बाद भौतिक प्रमाण-पत्र का आदान-प्रदान किया जाना था। भारत का पूँजी बाजार, जो एक सदी से भी अधिक पुराना है, हमेशा बहुत सक्रिय रहा है हालांकि कागज आधारित बस्तियों के कारण इसमें कुछ कमियाँ थीं जैसे खराब डिलीवरी, देरी से स्थानान्तरण आदि। इन मुद्दों पर अंकुश लगाने के लिए, डिपॉजिटरी अधिनियम, 1996 पारित किया गया था और यह 20 सितम्बर, 1995 को लागू हुआ। इस अधिनियम ने प्रतिभूतियों के प्रबन्धन के लिए भारत में सुरक्षा डिपॉजिटरी के निर्माण के लिए प्रदान किया।

सिक्योरिटीज वित्तीय परिसम्पत्तियाँ हैं जिनसे व्यापार किया जा सकता है अर्थात् उन्हें वित्तीय बाजार में खरीदा या बेचा जा सकता है। वे वित्तीय साधन हैं और इसमें इक्विटी, फिक्स्ड इनकम इन्स्टुमेण्ट्स, इक्विटी वारण्ट, कॉमन स्टॉक आदि शामिल हैं। वे 2 प्रकार के हो सकते हैं—डेट और इक्विटी। डेट इन्स्टुमेण्ट्स जैसे बैंक नोट, बॉण्ड, डिबेंचर आदि उधार के पैसे की तरह होते हैं और इसलिए उन्हें चुकाना पड़ता है। स्टॉक और शेयर खरीदारों को कम्पनी के आंशिक स्वामित्व के साथ प्रदान करते हैं। भारत में केन्द्रीय निक्षेपागार दो प्रकार के है

(अ) राष्ट्रीय सुरक्षा डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) और (ब) सेण्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (CDSL)। एनएसडीएल 8 नवम्बर, 1996 को स्थापित भारत में पहला और सबसे बड़ा डिपॉजिटरी है, जो मूल रूप से भारतीय पूँजी बाजार में विमुद्रीकृत रूप में रखी गई प्रतिभूतियों को सम्भालने के उद्देश्य से बनाया गया है। NSDL प्रत्येक दिन औसतन 3602 खाते खोलता है। NSDL को इण्डस्ट्रियल डेवलपमेण्ट बैंक ऑफ इण्डिया (IDBI), यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया (UTI) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।

एनएसडीएल के प्रमुख शेयरधारक इस प्रकार हैं –

(1) एक्सिस बैंक लिमिटेड

(2) सिटी बैंक

(3) ड्यूश बैंक

(4) एचएसबीसी (HSBC)

(5) भारतीय स्टेट बैंक (SBI)

(6) एचडीएफसी बैंक (HDFC)

(7) स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक

(8) देना बैंक

(9) केनरा बैंक

(10) ओरिएण्टल बैंक ऑफ कॉमर्स

सेण्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (Central Depository Services Limited)

  1. सेण्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज (इण्डिया) लिमिटेड (CDSL) को शुरुआत में बीएसई लिमिटेड द्वारा पदोन्नत किया गया था। इसके बाद प्रमुख बैंक को अपनी हिस्सेदारी दे दी। CDSL को फरवरी, 1999 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) से व्यवसाय शुरू करने का प्रमाण-पत्र मिला।

CDSL का मुख्य कार्य डीमैटीरियलाइज्ड, सिक्योरिटीज को होल्ड करने की सुविधा प्रदान करना है। CDSL इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रतिभूतियों में होल्डिंग और लेन-देन की सुविधा प्रदान करता है और स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडों के निपटान की सुविधा प्रदान करता है। इन प्रतिभूतियों में इक्विटी, डिबेंचर, बॉण्ड, एक्सचेंज ट्रेडेड फण्ड (ईटीएफ), म्यूचुअल फण्ड की इकाइयाँ, अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेण्ट फण्ड (एआईएफ) की इकाइयाँ, डिपॉजिट सर्टिफिकेट (सीडी), कॉमर्शियल पेपर (सीपी), गवर्नमेण्ट सिक्योरिटीज (जीएसईसी) और ट्रेजरी शामिल हैं।

CDSL नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के माध्यम से 30 जून, 2017 में सूचीबद्ध किया गया। इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) और उसके बाद पहली और एकमात्र बन निक्षेपागार में सूचीबद्ध करने के लिए एशिया-प्रशांत क्षेत्र और दूसरे विश्व में।

सेण्ट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज (इण्डिया) लिमिटेड आईपीओ की वस्तुएँ—

(1) एनएसई पर इक्विटी शेयर को सूचीबद्ध करने के लाभों को प्राप्त करें।

(2) यह दृश्यता और ब्रांड कवि को बढ़ाता है और मौजूदा शेयरधारकों को तरलता प्रदान करता है।

रीमैटीरियलाइजेशन (Rematerialization)

प्रतिभूतियों इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट दिया है, एक फिर भौतिक रूप बदलने विकल्प लोग केवल या 2 शेयरों वाले डीमैट खाते के रखरखाव प्रभार के लिए भुगतान बचने लिए रीमैटीरियलाइजेशन का विकल्प चुनते यह इलेक्ट्रॉनिक रूप में सभी प्रतिभूतियों को भौतिक परिवर्तित की प्रक्रिया है आपको रीमैट फार्म (RRF) भरना होगा और इसके साथ डिपॉजिटरी (Depository) पार्टिसिपेण्ट (DP) से सम्पर्क करना होगा।

शेयरों और प्रतिभूतियों के गाइड (Step-by-step guide for Rematerialization Shares and Securities)

एक से पारम्परिक डीमैटीरियलाइज्ड सिक्योरिटीज प्राप्त करने के लिए रिमेंट रिक्वेस्ट फॉर्म (RRF) प्राप्त करना होगा। यहाँ संक्षेपण प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दिया गया है –

  1. ग्राहक को आरपीएफ (RPF) की डीपी को जमा करना होगा।
  1. डीपी फॉर्म साथ डिपॉजिटरी के पास पहुँचता है।
  1. डीपी रजिस्ट्रार को भेजता है।
  1. रजिस्ट्रार नये भौतिक प्रमाण पत्र प्रिंट है।
  1. एक जब रजिस्ट्रार डिपॉजिटरी को रीमैट अनुरोध की पुष्टि करता है, तो निवेशक के साथ खाते में प्रमाण प्राप्त करता है।
  1. रीमैटीरियलाइजेशन में 30 दिन का समय लग सकता है।

एक डिपॉजिटरी साथ प्रतिभूतियों को रखने वाले लाभकारी इलेक्ट्रॉनिक होल्डिंग किसी समय भौतिक होल्डिंग में परिवर्तित का अधिकार है। इलेक्ट्रॉनिक होल्डिंग के स्थान पर भौतिक सुरक्षा प्रमाण प्राप्त करने इच्छुक लाभार्थी को जारीकर्ता उसके आर एण्ड टी (R&T) एजेण्ट को अपने डी०पी० के माध्यम से निर्धारित रीमैटीरियलाइजेशन रिक्वेस्ट फॉर्म (RRF) अनुरोध करना चाहिए।

विशेषताएँ (Features)

(1) एक ग्राहक किसी भी समय अपनी डीमैटीरियलाइाइज्ड होल्डिंगस को रीमैटीरियलाइजेशन कर सकता है।

(2) रीमैटीरियलाइजेशन प्रक्रिया 30 दिनों के भीतर पूरी हो जाती है।

(3) रीमैटीरियलाइजेशन के लिए भेजी गई प्रतिभूतियों का कारोबार नहीं किया जा सकता।

प्रक्रिया (Procedure)

(1) ग्राहक डी०पी० को अपने खाते में होल्डिंग के रोमैटीरियलाइजेशन के लिए एक अनुरोध प्रस्तुत करेगा।

(2) अनुरोध फॉर्म प्राप्त होने पर डी०पी० सत्यापित करेगा कि फॉर्म विधिवत् भरा हुआ है और ग्राहक को जारी करना है, एक पाने वाली पर्यो हस्ताक्षरित और मुहर लगी हुई।

(3) डी०पी० ग्राहक के हस्ताक्षर का सत्यापन फॉर्म में उसके रिकॉर्ड में उपलब्ध नमूने के साथ करेगा।

(4) यदि हस्ताक्षर अलग है तो DP ग्राहक की पहचान सुनिश्चित करेगा।

(5) यदि प्रपत्र क्रम में है तो DP अपने DPM (NDSL द्वारा DP को प्रदान किया गया सॉफ्टवेयर) में अनुरोध विवरण दर्ज करेगा। विवरण दर्ज करते समय, यदि यह पाया जाता है। कि ग्राहक के खाते में पर्याप्त शेष राशि नहीं है तो DP अनुरोध पत्र को शामिल नहीं करेगा और न ही उस पर कोई कार्यवाही करेगा।

(6) डीपी क्लाइण्ट को सूचित करेगा कि अनुरोध पर विचार नहीं किया जा सकता है क्योंकि क्लाइण्ट के पास पर्याप्त प्रमाण पत्र या सबूत नहीं हैं।

(7) यदि ग्राहक के खाते में पर्याप्त शेष राशि है तो DP में अनुरोध दर्ज करेगा और DPM एक रीमैटीरियलाइजेशन अनुरोध संख्या (RRN) उत्पन्न करेगा।

(8) उत्पन्न किए गए आरआरएन को रीमैटीरियलाइजेशन अनुरोध फॉर्म में प्रयोजना के लिए प्रदान किए गए स्थान में दर्ज किया गया है।

(9) RRN के लिए रिकॉर्ड किए गए विवरण को डेटा दर्ज करने वाले व्यक्ति के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिए। फिर अनुरोध डीपी द्वारा डीएम को जारी किया जाता है।

(10) डीएम जारीकर्त्ता / आर एण्ड टी एजेण्ट को इलेक्ट्रॉनिक रूप से अनुरोध करता है।

(11) डीपी अनुरोध फॉर्म के प्राधिकरण भाग को भर देगा।

(12) इसके बाद DP जारीकर्त्ता / R & T एजेण्ट के अनुरोध फॉर्म को हटा देगा।

(13) अनुरोध को संसाधित करते समय, जारीकर्त्ता / आर एण्ड टी एजेण्ट कुछ आपत्तियों की रिपोर्ट कर सकते हैं। आपत्ति की प्रकृति के आधार पर जारीकर्त्ता / आर एण्ड टी एजेण्ट अनुरोध को अस्वीकार कर सकता है या इसे आंशिक रूप से संसाधित कर सकता है, शेष के लिए सुधार की माँग कर सकता है और DP को एक आपत्ति ज्ञापन भेज सकता है।.

(14) जारीकर्ता आर एण्ड टी एजेण्ट, रीमैटीरियलाइजेशन प्रिण्ट के अनुरोध को स्वीकार करता है और ग्राहक को प्रमाण पत्र भेजता है और DM को इलेक्ट्रॉनिक पुष्टि भेजता है।

(15) अनुरोध की बाद ग्राहक खाते में परिवर्तन के बारे DP ग्राहक करना चाहिए।

(16) जानकारी को DPM डाउनलोड करता है और DPM में रीमैटीरियलाइजेशन

सावधानियां (Precautions)

(1) क्लाइण्ट को रीमैटीरियलाइजेशन फॉर्म में बहुत प्रकार का उल्लेख करना होगा।

(2) रीमैटीरियलाइजेशन लिए भेजे गए प्रतिभूतियों कारोबार नहीं किया जा सकता है।

(3) एक सुरक्षा एक पुनर्विचार अनुरोध करने से पहले ग्राहक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके डिपॉजिटरी में उस सुरक्षा में पर्याप्त रोकड़ बैलेंस हो

 

डिपॉजिटरी सिस्टम प्रक्रिया 5 आवश्यक चरण (5 Essential Steps Depository System Process)

चरण 1. एक खाता खोलना (Opening Account) – एक निवेशक जो सेवाओं का लाभ उठाना चाहता उसे एक DP के माध्यम डिपॉजिटरी साथ एक खाता खोलना होगा, जो या तो एक संरक्षक, बैंक, एक दलाल या एक व्यक्ति हो सकता है। निवेशक को DP साथ समझौता होता है जिसके बाद उसे ग्राहक खाता संख्या या ग्राहक आईडी नम्बर जारी जाता है।

भारत में अब डीमैट खाता संचालित के लिए पैन कार्ड अनिवार्य है |

चरण 2. डीमैटीरियलाइजेशन (Dematerialization) – प्रतिभूतियों के अपने भौतिक होल्डिंग्स को डीमैटीरियलाइज्ड में परिवर्तित के लिए, निवेशक DP को डीमैटीरियलाइजेशन अनुरोध फॉर्म (DRF) डिपॉजिटरी इलेक्ट्रॉनिक रूप से पंजीकरण बाद जारीकर्त्ता उसके रजिस्ट्रार ट्रांसफर एजेण्ट को डीपी फॉर्म आगे ओर सात दिनों भीतर दिया। डिपॉजिटरी इलेक्ट्रॉनिक रूप से सम्बन्धित जारीकर्ता या उसके रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेण्ट अनुरोध बढ़ाता जो प्रमाण-पत्रों की के साथ-साथ इस तथ्य को भी सत्यापित करता कि डीआरएफ सदस्य रूप में दर्ज एक व्यक्ति द्वारा अपने सदस्यों रजिस्टर में बनाया है।

सत्यापन के बाद, जारीकर्त्ता या उसके लिए एक इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट अधिकृत करते इसके बाद, डिपॉजिटरी ग्राहक के खाते में क्रेडिट प्रविष्टियाँ बनाती है।

चरण 3. रीमैटीरियलाइजेशन (Rematerialization) – डिपॉजिटरी के साथ अपना सिक्योरिटी बैलेंस वापस लेने के लिए निवेशक डिपॉजिटरी को अपने DP के जरिए आवेदन देता है।

वह अपने खाते में शेष राशि के अनुरोध को रीमैटीरियलाइजेशन अनुरोध फॉर्म (RRF) में वापस लेने का अनुरोध करता है। RRP के प्राप्त होने पर, प्रतिभागी जानता है कि ग्राहक के खाते में पर्याप्त मुक्त प्रासंगिक सुरक्षा शेष उपलब्ध है या नहीं। यदि वहाँ है, तो प्रतिभागी RRP को स्वीकार कर लेता है और क्लाइण्ट के शेष को रीमैटीरियलाइजेशन की मात्रा तक सीमित कर देता है और इलेक्ट्रॉनिक रूप से डिपॉजिटरी के अनुरोध को आगे बढ़ाता है।

अनुरोध प्राप्त होने पर, डिपॉजिटरी पार्टिसिपेण्ट की शेष राशि को रीमैटीरियलाइजेशन मात्रा डिपॉजिटरी सिस्टम में ब्लॉक कर देती है। डिपॉजिटरी इलेक्ट्रॉनिक रूप से जारीकर्ता या उसके रजिस्ट्रार एजेण्ट को स्वीकार किए गए रीमैटीरियलाइजेशन एप्लिकेशन को फॉरवर्ड करता है, जो दैनिक आधार पर किया जाता है।

रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेण्ट RRF द्वारा स्वीकार किए गए डिपॉजिटरी को इलेक्ट्रॉनिक रूप से पुष्टि करते हैं। इसके बाद, जारीकर्त्ता या रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेण्ट 30 दिनों के भीतर रीमैटीरियलाइजेशन अनुरोध से उत्पन्न होने वाले शेयर प्रमाण-पत्रों को भेजते हैं।

चरण 4. लाभांश वितरण (Distributing Dividend) – एक कम्पनी (जारीकर्त्ता) या उसके रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेण्ट को कॉर्पोरेट कार्रवाइयों के डिपॉजिटरी जैसे बुक क्लोजर, रिडेम्पशन या सुरक्षा की परिपक्वता, वारण्ट के रूपान्तरण और समय-समय पर पैसा कॉल करना होगा।

डिपॉजिटरी फिर इलेक्ट्रॉनिक रूप से कट ऑफ डेट पर ग्राहकों की होल्डिंग की एक सूची प्रदान करेगी। कम्पनी फिर सूची के आधार पर ग्राहक को सीधे लाभांश, ब्याज और अन्य मौद्रिक लाभ वितरित कर सकती है।

यदि लाभ प्रतिभूतियों के रूप में है तो कम्पनी या इसके रजिस्ट्रार और ट्रांसफर एजेण्ट इन्हें वितरित कर सकते हैं, बशर्ते कि नई बनाई गई सुरक्षा योग्य सुरक्षा हो और ग्राहक डिपॉजिटरी के माध्यम से लाभ प्राप्त करने के लिए सहमति दें।

चरण 5. खाता बन्द करना (Closing an Account) – एक ग्राहक जो खाता बन्द करना चाहता है, वह प्रतिभागी को उस प्रभाव के लिए औपचारिक रूप से एक आवेदन करेगा। यदि खाते में कोई शेष राशि बकाया नहीं है तो ग्राहक अपना खाता बन्द कर सकता है। यदि कोई शेष राशि मौजूदा है तो खाता निम्नलिखित तरीके से बन्द किया जा सकता है

(1) उसके खाते में, और या उसके सभी मौजूदा शेष राशि का पुनर्समानीकरण करके या

(2) अपनी सुरक्षा शेष राशि को अपने दूसरे खाते में स्थानान्तरित करके या तो एक ही प्रतिभागी के साथ या एक अलग प्रतिभागी के साथ आयोजित किया जाता है।

यह सुनिश्चित करने के बाद कि ग्राहक के खाते में कोई शेष नहीं है, प्रतिभागी ग्राहक के खाते को बन्द करने के अनुरोध को कार्यकारी करेगा।

अधिनियम के तहत अधिकारियों की शक्तियाँ (Powers of Authorities Under the Act)

एक डिपॉजिटरी के पास अपने स्वयं के उप-कानूनों को फ्रेम करने की शक्ति है, जो डिपॉजिटरी अधिनियम, 199 के अनुरूप हैं और निम्नलिखित मामलों के लिए इसके तहत निर्धारित नियम और कानून –

(1) डिपॉजिटरी में प्रतिभूतियों के प्रवेश और निष्कासन के लिए पात्रता मानदण्ड ।

(2) जिन शर्तों के साथ प्रतिभूतियों से निपटा जाएगा।

(3) प्रतिभागी के रूप में किसी भी व्यक्ति के प्रवेश के लिए पात्रता मानदण्ड।

(4) प्रतिभूतियों के डीमैटीरियलाइजेशन का तरीका और प्रक्रिया

(5) डिपॉजिटरी के भीतर लेन-देन की प्रक्रिया।

(6) प्रतिभूतियों को डिपॉजिटरी से निकालने या वापस लेने का तरीका।

(7) प्रतिभागियों और लाभार्थियों के हितों की रक्षा के लिए सुरक्षा उपायों को सुनिश्चित करने की प्रक्रियाः

(8) लाभार्थी स्वामी द्वारा प्रतिभागी में प्रवेश (Entry) और निकासी (Exit) की शर्तें ।

(9) लाभांश घोषणा, शेयरधारक बैठकों और हित मालिकों के हित के अन्य मामलों पर प्रतिभागियों और लाभकारी मालिकों को जानकारी देने की प्रक्रिया।

(10) लाभप्रद मालिकों के बीच कम्पनी से प्राप्त लाभांश, ब्याज और मौद्रिक लाभों के वितरण का तरीका।

(11) डिपॉजिटरी के पास रखी गई प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में प्रतिज्ञा या हलफनामा बनाने का तरीका।

(12) डिपॉजिटरी, जारीकर्ता, प्रतिभागी और लाभकारी मालिकों के बीच अधिकार और दायित्व

(13) बोर्ड, जारीकर्त्ता और अन्य व्यक्तियों को जानकारी प्रस्तुत करने का तरीका और समयावधि।

(14) डिपॉजिटरी जारीकर्त्ता कम्पनी या एक लाभकारी मालिक से जुड़े विवादों को हल करने की प्रक्रिया के भागीदार नियमों और निलम्बन और निष्कासन के लिए प्रावधानों के उल्लंघन करने से प्रतिभागियों से निक्षेपागार के साथ प्रवेश किया और समझौतों को रद्द करने निक्षेपागार लेखा परीक्षा, समीक्षा और निगरानी के लिए प्रक्रिया सहित आन्तरिक नियन्त्रण मानक |

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board of India)

(1) डिपॉजिटरी को शुरू करने का प्रमाण-पत्र जारी करने की शक्ति।

(2) डिपॉजिटरी को शुरू करने के प्रमाण पत्र को अस्वीकार करने की शक्ति ।

(3) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड के पास शक्ति है कि वह किसी पर भी अर्थात् प्रतिभूति जारी करने वाले पर, निक्षेपागार पर भागीदार पर अथवा लाभदारी स्वामी पर प्रतिभूति सम्बन्धित कोई भी जानकारी लिखित रूप में जमा करने के लिए निर्देश दे सकता है निर्देश में वह समय सीमा के साथ-साथ सत्यापित प्रमाण-पत्र की भी माँग कर सकता है।

(4) निवेशकों के हित में प्रतिभूति बाजार से जुड़ी किसी डिपॉजिटरी प्रतिभागी जारीकर्ता या व्यक्ति को निर्देश देने की शक्ति या प्रतिभूति बाजार के क्रमबद्ध विकास।

(5) किसी भी रिकॉर्ड को कॉल करने और जाँच करने की शक्ति |

(6) केन्द्र सरकार को सिफारिशें देने की शक्ति ।

(7) नियम बनाने की शक्ति ।

(8) अलविदा कानूनों को बनाने, संशोधन करने या निरस्त करने के लिए डिपॉजिटरीऑर्डर करने की शक्ति |

केन्द्र सरकार (Central Government)

(1) प्रतिरक्षा प्रदान करने की शक्ति ।

(2) सेबी द्वारा नियुक्त अधीनस्थ अधिकारी द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील सुनने की शक्ति और सेबी द्वारा पारित आदेश।

(3) विशेष न्यायालयों की स्थापना करने की शक्ति ।

(4) विशेष न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति ।

(5) नियमों को निर्धारित करने की शक्ति।

(6) कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति

प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (Securities Appellate Tribunal)

(1) दस्तावेजों की खोज और उत्पादन की आवश्यकता के लिए शक्ति ।

(2) शपथ पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति

(3) गवाहों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन जारी करने की शक्ति

(4) अपने स्वयं के निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति

(5) एक आवेदन को खारिज करने या इसे पूर्व पक्ष तय करने की शक्ति

(6) निर्धारित किसी अन्य मामले से निपटने की शक्ति ।

(7) सेबी द्वारा पारित आदेशों के खिलाफ अपील सुनने या अपील करने की शक्ति या सेवी द्वारा नियुक्त सहायक अधिकारी ।

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