Bcom Set off and Carry Forward of Losses Notes

Bcom Set off and Carry Forward of Losses Notes

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Bcom Income Tax Books Notes Question Paper

हानियों की पूर्ति एवं आगे ले जाना (Set off and Carry Forward of Losses)

उत्तर- जैसा कि हम जानते हैं कि कुल आय की गणना पाँच भिन्न-भिन्न आय शीर्षकों में की जाती है। प्रत्येक शीर्षक एवं किसी शीर्षक के प्रत्येक स्रोत से आय ही प्राप्त हो, यह अनिवार्य नहीं है। इस प्रकार यदि किसी शीर्षक/स्रोत में हानि होती है तो करदाता अपने कर दायित्व को न्यूनतम करने के लिए चाहेगा कि उक्त हानि को उस गत वर्ष की अन्य आयो से अपलिखित अथवा समायोजित कर दिया जाये। यदि उक्त हानि की राशि उस गत वर्ष की कुल आयों से अधिक है तो करदाता हानि की शेष बची हुई रकम को आगामी गत वर्षों की आय से पूरा करना चाहता है। इस सम्बन्ध में आय-कर अधिनियम के प्रावधानों की विवेचना धारा 70 से धारा 80 तक की गई है।

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शीर्षक एवं स्त्रोत (Head and Source)

जैसा कि हम जानते हैं कि आय-कर अधिनियम के अन्तर्गत आय के पाँच शीर्षक बताये गये हैं-0 वेतन से आय, (ii) मकान सम्पत्ति से आय, (i) व्यापार अथवा पेशे के लाभ, (iv) पूँजी लाभ एवं (v) अन्य साधनों से आय। परन्तु आय के प्रत्येक शीर्षक में आय के कई स्रोत (Source of Income) हो सकते हैं, जैसे यदि किसी व्यक्ति के चार प्रकार के व्यवसाय हैं तो व्यवसाय से आय’ शीर्षक कहलायेगा तथा चार प्रकार के व्यवसाय, “4-आय के स्रोत: माने जायेंगे इसी प्रकार, यदि किसी गत वर्ष में कई पूंजी सम्पत्तियाँ हस्तान्तरित की जाती हैं तो पूँजी लाभ’ शीर्षक तथा प्रत्येक हस्तान्तरित पूँजी सम्पत्ति आय के स्रोत माने जायेगे। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के पास तीन मकान सम्पत्ति हैं तो तीनों मकानों की आय का शीर्षक ‘मकान सम्पत्ति से आय’ कहलायेगा एवं तीनों मकान उक्त शीर्षक के अन्तर्गत आय के तीन स्रोत माने जायेंगे।

हानियों की पूर्ति का अर्थ- हानियों की पूर्ति आशय किसी गत वर्ष में किसी शीर्षक/स्रोत में हुई हानि को उसी गत वर्ष की आयों से अपलिखित अथवा समायोजित करने से है।

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हानियों की पूर्ति से सम्बन्धित प्रावधान (Provisions regarding set off losses)

आय-कर अधिनियम, 1961 के अन्तर्गत हानियों की पूर्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं-

(1) किसी शीर्षक के एक स्रोत की हानि की उसी शीर्षक के दूसरे स्त्रोत का आय से पूर्ति (Set-off Loss from one source from another source under the same head) धारा 70: आय के किसी एक ही शीर्षक के अन्तर्गत विभिन्न आय स्रोत होने पर यदि किसी एक स्रोत से हानि हो तो ऐसी हानि को उसी शीर्षक के अन्य स्रोतों की आय से पूरा किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को “अन्तःस्रोत पूर्ति” (Inter-Source Set-off) भी कहते हैं। उदाहरणार्थ-यदि किसी करदाता के पास दो मकान सम्पत्ति हैं प्रथम स्वयं निवास हेतु तथा द्वितीय किराये हेतु। यदि निवास हेतु प्रयोग किये जाने वाले मकान से 5,000 की हानि है एवं किराये पर उठाये गये मकान से 6,000 का लाभ है तो मकान सम्पत्ति शीर्षक के अन्तर्गत आय (6,000 – 5,000) = 1,000 ₹ की होगी। परन्तु इस नियम के निम्नलिखित अपवाद हैं-

(i) सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति सट्टे के व्यापार के लाभों से ही की जा सकती है।

(ii) घुड़-दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व एवं अनुरक्षण के व्यापार की हानि किसी भी अन्य आय से पूरी नहीं की जा सकती। इस हानि को इसी स्त्रोत की आय से ही पूरा किया जा सकता है।

(iii) कर-मुक्त आय वाले स्रोत की हानि की पूर्ति अन्य किसी स्रोत की आय से नहीं की जा सकती जैसे-कृषि हानि की पूर्ति अन्य किसी स्त्रोत की आय से नहीं की जा सकती।

(iv) लॉटरी, वर्ग पहेली, घुड़दौड़, ताश के खेल, अन्य प्रकार के खेल, जुए अथवा किसी भी प्रकार की शर्त में जीतने से हुई आय की राशि से किसी भी हानि को पूरा (अपलिखित/समायोजित) नहीं किया जा सकता है।

(v) दीर्घकालीन पूँजी सम्पत्ति की हानि को केवल दीर्घकालीन पूँजी सम्पत्ति के लाभ से ही पूरा किया जा सकता है।

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  1. अन्तर शीर्षक पूर्ति (Inter head set off) (धारा-71]- यदि किसी कर निर्धारण वर्ष में किसी शीर्षक के अन्तर्गत हानि हुई है तो उसे उसी कर निर्धारण वर्ष में अन्य शीर्षक की आयों से पूरा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, किसी करदाता के मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक में 12,000 की हानि है एवं व्यापार एवं पेशे शीर्षक में 52,000 का लाभ हुआ हो तो 12,000 की हानि को 52,000 के लाभ में से समायोजित किया जा सकता है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि धारा 71 में हानि पूर्ति करने से पहले धारा 70 में हानि पूर्ति की जायेगी।

अपवाद- धारा 70 के अपवादों में वर्णित ऐसी हानियाँ जिन्हें अपने ही शीर्षक में पूरा नहीं किया जा सकता, उनकी पूर्ति किसी अन्य शीर्षक की आय से भी नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिए

(अ) सट्टे के व्यापार की हानि व्यापार एवं पेशे शीर्षक के किसी अन्य स्रोत अथवा किसी भी अन्य आय से पूरी नहीं की जा सकती, केवल सट्टे के व्यापार के लाभों से ही पूरी की जा सकती है।

(ब) घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व तथा रखरखाव की क्रिया से हानि, आकस्मिक आय के किसी अन्य स्रोत अथवा किसी अन्य आय से पूरी नहीं की जा सकती। 

(स) लॉटरी की जीत, वर्ग पहेली आदि की आय से किसी भी हानि को पूरा नहीं किया जा सकता।

(ii) पूंजी लाभ शीर्षक की हानि किसी भी अन्य शीर्षक की कर-योग्य आय से पूरी नहीं की जा सकती।

(iii) कर निर्धारण वर्ष 2005-06 से व्यवसाय एवं पेशे शीर्षक की हानि का समायोजन वेतन शीर्षक की आय से नहीं किया जा सकता है।

  1. मकान सम्पत्ति से आय’ शीर्षक की हानि किसी भी अन्य शीर्षक की आय से पूरी की जा सकती है।
  2. सामान्य व्यापार की हानि की पूर्ति (Set off of losses of general business) सट्टे के व्यापार को छोड़कर शेष सभी प्रकार के व्यापारों अर्थात् सामान्य व्यापार की हानि की पूर्ति करदाता के उसी गत वर्ष की अन्य किसी भी शीर्षक की आय से की जा सकती है। 

यदि कोई व्यापार या पेशा गत वर्ष में बन्द कर दिया गया है तो बन्द किये गये व्यापार या पेशे की हानि को उसी वर्ष के अथवा अगले कर-निर्धारण वर्षों के अन्य व्यापार या पेशों के लाभों से पूरा किया जा सकता है।

अवैधानिक व्यापार की हानियाँ अवैधानिक व्यापार के लाभों से ही पूरी की जा सकती हैं। अवैधानिक व्यापार की हानियों को वैधानिक व्यापार के लाभों से पूरा नहीं किया जा सकता। 

  1. निर्दिष्ट व्यापार (Specified Business) की हानि की पूर्ति धारा 73A(2)]- धारा 35AD में वर्णित निर्दिष्ट व्यवसाय की हानि की पूर्ति केवल किसी अन्य निर्दिष्ट व्यवसाय की आय से ही की जा सकती है, अन्य किसी व्यापार के लाभों से नहीं।
  2. सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति (धारा 73 )- ऐसी हानि की पूर्ति केवल सट्टे के ही अन्य किसी व्यापार के लाभों में से की जा सकती है।

7.घुड़दौड़ के घोड़ों के स्वामित्व तथा रखरखाव की क्रिया से होने वाली हानि की पूर्ति [धारा 74A(3)]- इस प्रकार की हानि की पूर्ति केवल ऐसी क्रिया से होने वाली आय से ही की जा सकती है, अन्य किसी आय से नहीं।

  1. पूंजी हानियां (Capital Losses)- ये हानियां केवल पूंजी लाभ से ही पूरी की जा सकती हैं। दीर्घकालीन पूंजी हानि की पूर्ति केवल दीर्घकालीन पूंजी लाभ से ही की जा सकती है।
  1. लॉटरी, वर्ग पहेली, शर्त आदि की हानियां- इन हानियों की पूर्ति किसी भी आय से नहीं की जा सकती है।
  1. व्यक्तियों के समुदाय की हानियां (Set Off of Losses of AOP)- इनकी हानियाँ यदि इन्हीं की आय के किसी शीर्षक की आय से पूरी नहीं की जा सकती तो इनके सदस्यों को अपनी व्यक्तिगत आय से ये हानियां पूरी करने का अधिकार नहीं है।
  1. साझेदारी फर्म की हानियां- साझेदारी फर्म की हानि फर्म स्वयं अपनी आय से पूरी कर सकती है। साझेदार अपने हिस्से की हानि अपनी व्यक्तिगत आय से पूरी नहीं कर सकते।

नोट- हानियों की पूर्ति केवल कर-योग्य लाभों/आयों में से ही की जा सकती है। किसी भी हानि या हानियों को कर-मुक्त आय से पूरा नहीं किया जा सकता।

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हानियों को आगे ले जाने से आशय (Meaning of Carry Forward of Losses)

यदि गत वर्ष में हुई हानि की राशि विभिन्न शीर्षकों की आयों से भी अधिक है तो ऐसी दशा में हानि के आधिक्य को गत वर्ष में पूरा नहीं किया जा सकेगा ऐसी न पूर्ण हुई (not set off) हानि को अगले वर्षों के विभिन्न शीर्षकों की आयों में से पूरा करने के लिए आगे ले जाया जायेगा। इसी को हानि को आगे ले जाना’ (Carry forward of losses) कहा जाता है।

हानियों को आगे ले जाने एवं उनकी पूर्ति करने के सम्बन्ध में आय-कर अधिनियम के अग्रलिखित प्रावधान हैं-

(1) मकान-सम्पत्ति से हानि (धारा 7IB)- यदि ‘मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक में कोई हानि है तथा ऐसी हानि को उसी कर-निर्धारण वर्ष में किसी अन्य शीर्षक की आय से पूरा नहीं किया जा सकता, तो ऐसी पूरी न हुई हानि की राशि को अगले 8 कर-निर्धारण वर्षों तक आगे ले जाया जा सकता है। आगे ले जाई गई मकान सम्पत्ति शीर्षक की हानि केवल मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक की आय से ही पूरी की जा सकती है, अन्य किसी भी आय से नहीं।

(2) व्यापार तथा पेशे के शीर्षक की हानि (Loss of Business and Profession Head)– व्यापार तथा पेशे शीर्षक की आयों में दो तरह की आयों को सम्मिलित किया जाता है-a) सामान्य व्यवसाय या पेशे से आय, (b) सट्टे के व्यवसाय से आय। इन दोनों स्रोतो की हानि को आगे ले जाकर निम्न प्रकार पूरा किया जा सकता है

(अ) सामान्य व्यवसाय या पेशे से हानि (धारा 72]- सामान्य व्यवसाय व पेशे से हानि को यदि सम्बन्धित वर्ष में धारा 70 एवं 71 के अन्तर्गत अपलिखित नहीं किया जा सका हो तो ऐसी हानियों को आगे ले जाकर अधिकतम अगले 8 कर-निर्धारण वर्षों तक केवल व्यापार तथा पेशे से आय शीर्षक से पूरा किया जा सकता है।

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सामान्य व्यवसाय या पेशे से हानि के सम्बन्ध मे ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बिन्दु

(i) जिस व्यापार की हानि है, उसका चालू रहना आवश्यक नहीं है।

(ii) सामान्य व्यापार या पेशे की हानि को व्यापार तथा पेशा शीर्षक की किसी भी आय से पूरा किया जा सकता है। इसमें सट्टा व्यवसाय की आय भी शामिल है। 

(iii) व्यापार या पेशा जिसकी हानि को आगे लाया गया है, के स्वामित्व में परिवर्तन नहीं होना चाहिए। विक्रेता व्यापारी की हानि को क्रेता आगे ले जाकर अपलिखित नहीं कर सकता। परन्तु निम्नलिखित परिस्थितियों में स्वामित्व परिवर्तन पर भी हानियों को आगे ले जाकर अपलिखित किया जा सकता है

(अ) उत्तराधिकार में प्राप्त व्यवसाय की दशा में;

(ब) कम्पनियों के एकीकरण की दशा में;

(स) एकाकी व्यवसाय या फर्म के कम्पनी में परिवर्तन की दशा में;

(द) फर्म में यदि अन्त में एक ही साझी रह जाए।

(iv) यदि व्यवसाय धारा 33B की शर्तों के अनुसार किसी प्राकृतिक विपदा के कारण बंद कर दिया गया है व ऐसे व्यवसाय की हानि को अपलिखित नहीं किया जा सकता है, तो ऐसी हानि को अपलिखित करने के लिए 8 वर्षों की अवधि का निर्धारण उस वर्ष से किया जाएगा जबकि व्यवसाय को पुनः प्रारम्भ या पुनर्गठित किया गया है न कि वास्तविक हानि वाले वर्ष से |

(v) यदि व्यवसाय को हानि होने के बाद बंद कर दिया है व करदाता के पास अन्य कोई व्यवसाय नहीं है तो निश्चय ही करदाता ऐसी व्यावसायिक हानि को भविष्य में वसूल नहीं कर पाएगा। किन्तु यदि ऐसे बंद व्यवसाय की पूर्व में कोई स्वीकृत व्यय या हानि की पुन: वसूली हो जाती है तो इसे भविष्य में जब भी प्राप्ति होगी, आय माना जाता है। इस आय में से जिस वर्ष व्यवसाय बंद किया गया है उस वर्ष की व्यवसाय की हानि को घटाया जा सकता है, चाहे आठ वर्ष व्यतीत हो चुके हों बशर्ते ऐसी आय उसी व्यवसाय की हो जो बंद हो चुका है। [धारा 41(1)]

(vi) व्यापारिक हानि की पूर्ति अशोधित हास अथवा अशोधित वैज्ञानिक अनुसंधान सम्बन्धी छूट से पहले की जायेगी।

(ब) सट्टे के व्यवसाय से हानि [धारा 73]- सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति केवल सट्टे के व्यापार के लाभ से ही की जा सकती है। यदि गत वर्ष में किसी अन्य सट्टे के लाभों में से सट्टे के व्यापार की हानि की पूर्ति न की जा सकी हो तो अगले चार कर-निर्धारण वर्षों तक इस हानि को आगे ले जाया जा सकता है और उसकी पूर्ति सट्टे के लाभों से की जा सकती है।

नोट- जिस सट्टेबाजी के व्यवसाय में हानि हुई है, उस हानि का समायोजन करने के लिये यह जरूरी नहीं है कि उस व्यवसाय को आगे के वर्षों में जारी रखा जाये।

  1. पूँजी लाभ शीर्षक से हानि (Loss from capital Gain Head) [धारा 74]- पूँजी लाभ शीर्षक (दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन) के अन्तर्गत हुई हानि की सम्बन्धित गत वर्ष के वाद के आठ गत वर्षों तक पृथक्-पृथक् रूप से आगे ले जाकर दीर्घकालीन हानि की पूर्ति दीर्घकालीन लाभ से जबकि अल्पकालीन हानि की पूर्ति दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन दोनों ही प्रकार के पूँजी लाभ से की जा सकती है।
  1. घुड़दौड़ के घोड़े रखने से हानि [धारा 74A]– यदि कोई करदाता घुड़दौड़ के घोड़ों का स्वामी है और ऐसे घोड़े रखने से उसे यदि हानि होती है जिसकी पूर्ति उसी स्रोत से नहीं होती है तो ऐसी हानि को आगे ले जाकर इनकी पूर्ति इसी मद की आय से की जा सकती है। जिस वर्ष यह हानि होती है उसके बाद के 4 वर्षों तक यह हानि आगे ले जायी जा सकती है।
  1. अशोधित हास- जब किसी गतवर्ष में करदाता अपनी आय (व्यापार अथवा पेशे से आय या अन्य किसी शीर्षक की आय) से हास की पूरी कटौती नहीं ले पाता है तो हास की बकाया रकम अशोधित हास (Unabsorbed depreciation) कहलाती है। उदाहरण के लिए, गत वर्ष 2009-10 में करदाता आय-कर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार स्वीकृत हास के रूप में 50,000 की छूट प्राप्त करने का अधिकारी है, लेकिन आय की अपर्याप्तता के कारण वह 16,000 की ही छूट ले पाता है। ऐसी स्थिति में वह हास की शेष राशि 34,000 अशोधित हास के रूप में पूर्ति के लिए आगे ले जा सकता है।

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अशोधित ह्रास के सम्बन्ध मे ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बिन्दु

(i) अशोधित हास की पूर्ति सर्वप्रथम व्यापार की आय से की जाएगी।

(ii) यदि व्यापार की आय से अशोधित हास की पूर्ति संभव नहीं है, तो चालू गतवर्ष मे वेतन से आय शीर्षक को छोड़कर अन्य शीर्षक की आय से की जा सकती है।

(iii) इसके बाद भी यदि अशोधित हास की राशि बकाया रहती है, तो उसे भविष्य में पूर्ति के लिए आगे ले जा सकते हैं।

(iv) भविष्य में अशोधित हास की पूर्ति वेतन से आय शीर्षक के अलावा किसी भी शीर्षक की आय से की जा सकती है।

(v) अशोधित हास की पूर्ति के लिए कोई समय सीमा नहीं है।

(vi) यदि व्यापार बंद भी हो गया है तो उसके अशोधित हास की भविष्य में की जा पूर्ति सकती है।

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कतिपय करदाताओं की आगे लाई गई हानियाँ

  1. फर्म की हानियाँ ( धारा 75)- फर्म की आय पर केवल फर्म कर चुकाने के लिए उत्तरदायी है, फर्म की आय में साझेदारों का हिस्सा उनकी व्यक्तिगत आय में शामिल नहीं किया जाता है। अत: हानि की दशा में हानियों की पूर्ति और उन्हें आगे ले जाने का अधिकार फर्म को होगा, साझेदारों को नहीं। साझेदारी फर्म की हानियों की पूर्ति और उनके आगे ले जाने के लिए सामान्य प्रावधान लागू होंगे।
  1. फर्म के संगठन में परिवर्तन ( धारा 78-1)- यदि फर्म के संगठन में परिवर्तन हो जाये, तो अवकाश ग्रहण करने वाले साझेदार अथवा मृतक साझेदार का हानि का भाग नयी फर्म द्वारा अपनी आय से पूरा करने के लिए आगे नहीं ले जाया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, निवृत्त या मृतक साझेदार के हिस्से की हानि, पूर्ति के लिए आगे नहीं ले जायी जा सकती है।

उपर्युक्त वर्णित हानियों के अतिरिक्त अन्य कोई हानि आगे नहीं ले जायी जा सकती है जिससे आगे आने वाले वर्षों से उसकी पूर्ति की जा सके।

नोट- हानि को आगे ले जाकर भविष्य में होने वाले लाभ से तभी पूरा किया जा सकता है बशर्ते करदाता द्वारा निर्धारित अवधि में आय का विवरण दाखिल करके हानि का निर्धारण करा लिया गया हो।

हानियों को अपलिखित करने की अनिवार्यता

करदाता को उपर्युक्त वर्णित नियमों के आधार पर हानियों को अनिवार्य रूप से अपलिखित करना होगा। यदि वह आय होते हुए भी हानियों को अपलिखित नहीं करता है तो वह हानियों को उपलब्ध लाभों की सीमा तक अपलिखित करने के अधिकार को खो देगा।

घटाने का क्रम: ऐसी दशा में जबकि एक करदाता हास, पूंजीगत व्यय, आदि की कटौती की एक साथ मांग करता है तो कटौती का क्रम इस प्रकार होगा

(i) चालू हास, (ii) वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा परिवार नियोजन पर पूंजीगत व्यय, (iii) आगे लायी गयी व्यापारिक हानियां, (iv) अशोधित हास, (v) वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा परिवार नियोजन पर अशोधित पूंजीगत व्यय।

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