Bcom 2nd Year Public Finance Effect of Taxation

Bcom 2nd Year Public Finance Effect of Taxation

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Bcom 2nd Year Business Public Finance Effect of Taxation
Bcom 2nd Year Business Public Finance Effect of Taxation

करारोपण के प्रभाव (Effects of Taxation)

प्रश्न 17. करारोपण के उत्पादन, वितरण तथा आर्थिक कल्याण पर होने वाले प्रभाव बताइये।

अथवा

करारोपण उत्पादन और वितरण पर क्या प्रभाव डालता है?

उत्तर

करारोपण के आर्थिक प्रभाव (Economic Effects of Taxation)

वर्तमान समय में सरकार के कार्यों में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जिनको पूरा करने के लिए अत्यधिक धनराशि की आवश्यकता होती है। सरकार की आय का मुख्य स्रोत ‘कर’ ही| है, लेकिन कर लगाते समय करारोपण के आर्थिक प्रभावों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है अर्थात् देश में करारोपण का उत्पादन, उपभोग और वितरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा? ‘डाल्टन के अनुसार, “आर्थिक दृष्टिकोण से एक श्रेष्ठ कर प्रणाली वही है जिसके आर्थिक प्रभाव सबसे अच्छे हों अथवा यदि कोई बुरा प्रभाव पड़े भी तो वह न्यूनतम हो।’ प्राचीन अर्थशास्त्रियों का विचार था कि करारोपण का उद्देश्य आय प्राप्त करना ही है, परन्तु वर्तमान समय में कोई भी अर्थशास्त्री इस विचार का समर्थक नहीं है। आधुनिक समय में करारोपण का उद्देश्य केवल आय प्राप्त करना ही नहीं माना जाता वरन् इसका उद्देश्य उत्पादन क प्रभावित करना तथा समाज में धन के वितरण की असमानता को कम करके सामाजिक न्याय की व्यवस्था करना तथा आर्थिक विकास, पूर्ण रोजगार एवं लोक कल्याणकारी राज्य के स्थापना करना है। अत: यदि करों के आर्थिक प्रभावों की ओर ध्यान न दिया जाये तो उत्पादन, उपभोग, वितरण और आम जनता के हितों पर पड़ने वाले करों के प्रभाव गम्भीर हो सकते हैं जो कि देश और समाज के लिए अहितकर होंगे।

Finance Effect of Taxation

डॉ० डाल्टन के अनुसार, करारोपण के प्रभावों का अध्ययन निम्नलिखित तीन शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(I) करारोपण का उत्पादन पर प्रभाव,

(II) करारोपण का वितरण पर प्रभाव,

(III) करारोपण के अन्य प्रभाव।

(I) करारोपण का उत्पादन पर प्रभाव (Effects of Taxation on Production)

डाल्टन ने करारोपण के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों को तीन भागों में विभाजित किया है-

(1) कार्य करने तथा बचत करने की क्षमता पर प्रभाव,

(2) कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा पर प्रभाव, एवं

(3) आर्थिक साधनों के वितरण पर प्रभाव।

(1) कार्य करने तथा बचत करने की क्षमता पर प्रभाव- कर लगाए जाने के परिणामस्वरूप करदाता की आय का कुछ भाग सरकार के पास हस्तान्तरित हो जाता है। इससे करदाता की क्रय-शक्ति कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त यदि करदाता को कर भुगतान के कारण अपनी अनिवार्य और आरामदायक आवश्यकताओं की कटौती करनी पड़ती है तो इसका करदाता की कार्य करने की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। निर्धन वर्ग के लोगों पर जो भी कर लगाए जाते हैं उसमें उन्हें अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं के उपभोग में कमी करनी होती है। इसका परिणाम यह होता है कि उनका जीवन-स्तर गिर जाता है और उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। अत: निर्धन वर्ग पर ‘करारोपण अनुचित माना जाता है।

इसके विपरीत धनी वर्ग पर जो कर लगा

Finance Effect of Taxationए जाते हैं, उसका उनकी कार्यक्षमता पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए, धनी व्यक्ति पर लगाए जाने वाले कर आय-कर, सम्पत्ति कर, उत्तराधिकार कर, इत्यादि भुगतान करने के लिए उन्हें अनिवार्य और आरामदायक आवश्यकताओं की कटौती नहीं करनी पड़ती वरन् इनका भुगतान बचत में से अथवा विलासिताओं की कटौती करके किया जाता है। अत: धनी व्यक्तियों की कार्य करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि विलासिताओं के उपभोग में कमी होने से धनी व्यक्तियों की कार्यक्षमता बढ़ती है।

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इसी प्रकार, करारोपण बचत करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। अप्रत्यक्ष करों से वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो जाती है जिससे व्यय बढ़ जाता है और बचत की मात्रा कम होने लगती है। प्रत्यक्ष करों से भी बचत करने की क्षमता कम हो जाती है क्योंकि आय का एक भाग कर के रूप में सरकार को देना पड़ता है। संक्षेप में, करारोपण के परिणामस्वरूप कार्य करने तथा बचत करने की क्षमता में वृद्धि होने से उत्पादन में वृद्धि होगी जबकि विपरीत दशा में उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

(2) कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा पर प्रभाव- करारोपण, करदाता की कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा को भी प्रभावित करता है। यद्यपि इच्छा मनुष्य की एक मानसिक अनुभूति है और इसका सही-सही माप करना असम्भव है। सामान्य रूप से यही कहा जाता है कि करारोपण से व्यक्तियों में काम करने तथा बचत करने की इच्छा कम हो जाती है परन्तु यह बात हमेशा सत्य नहीं होती। वस्तुत: कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा पर करारोपण के पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन निम्न दो शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है

(अ) करदाताओं की मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया- करारोपण से किसी भी व्यक्ति के मन में क्या प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, काफी सीमा तक उस व्यक्ति की आय की माँग की लोच पर निर्भर करता है अर्थात् वह व्यक्ति अधिक आय प्राप्त करने के लिए कितने प्रयत्न करने को तैयार है ? आय की माँग बेलोचदार, कम लोचदार अथवा लोचदार हो सकती है। यदि एक व्यक्ति एक निश्चित आय प्राप्त करना चाहता है चाहे उसके लिए उसे कितना ही परिश्रम करना पड़े, तो उसके लिये उसकी माँग बेलोचदार कही जायेगी। उदाहरण के लिये एक व्यक्ति की वार्षिक आय ₹ 20,000 है तथा उस पर ₹ 1,000 आयकर लगता है, तब यदि वह ₹ 1,000 की अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए अतिरिक्त परिश्रम करता है जिससे उसकी आय, कर देने के पश्चात् ₹ 20,000 ये ही बनी रहे तो उसकी आय के लिए माँग बेलोचदार कही जाएगी। यदि आय के लिये माँग बेलोचदार है तो करारोपण से कार्य करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

इसके विपरीत यदि व्यक्ति की आय के लिए माँग लोचदार है ते इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति इस बात के इच्छुक नहीं हैं उनकी आय पुराने स्तर पर बनी रहे। इस स्थिति में व्यक्ति की कार्य करने की इच्छा कम हो जाती है क्योंकि वह अधिक परिश्रम करके अपनी आय बढ़ाना नहीं चाहता। इस प्रकार करारोपण होने पर आय के लिये माँग जितनी लोचदार होगी, कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा उतनी ही कम हो जायेगी। इसके विपरीत आय की माँग जितनी बेलोचदार होगी उतनी ही कार्य करने तथा बचत करने की इच्छा में वृद्धि होगी।

इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखने योग्य है कि कार्य करने व बचत करने की इच्छा पर करारोपण के प्रभाव का अध्ययन करने हेतु समाज के अधिकांश व्यक्तियों की आय की माँग की लोच पर विचार किया जाता है न कि किसी एक व्यक्ति की आय की माँग की लोच पर। यदि समाज के अधिकांश व्यक्तियों की आय की माँग लोचदार होगी तो सामूहिक कार्य करने व बचत करने की इच्छा पर करारोपण का प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जबकि यदि समाज के अधिकांश व्यक्तियों की आय की माँग बेलोचदार है तो करारोपण का सामूहिक कार्य करने व बचत करने की इच्छा पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

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(ब) करों की प्रकृति- जहाँ तक करों की प्रकृति का प्रश्न है, अलग-अलग प्रकार के करों का कार्य करने की इच्छा पर विभिन्न प्रकार का प्रभाव होता है। जो कर अनायास प्राप्त होने वाले अथवा असाधारण लाभ पर लगाए जाते हैं, उनका कार्य करने की इच्छा पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। सामान्यतः प्रत्यक्ष करों का कार्य करने एवं बचत करने की इच्छा पर विपरीत प्रभाव पड़ता है किन्तु अप्रत्यक्ष करों का प्राय: कार्य तथा बचत करने की इच्छा पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि अप्रत्यक्ष कर वस्तु के मूल्य में ही सम्मिलित रहते हैं जिनका करदाताओं को पता ही नहीं चलता। इसीलिए अप्रत्यक्ष करों का करदाताओं की काम करने व बचत करने की इच्छा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।

(3) आर्थिक साधनों के वितरण (स्थानान्तरण) पर प्रभाव- करारोपण के कारण आर्थिक साधनों का स्थानान्तरण एक उद्योग से दूसरे उद्योग को, एक स्थान से दूसरे स्थान को, वर्तमान उपभोग से भावी उपभोग को होता है। इस प्रकार साधनों के स्थानान्तरण से देश का उत्पादन प्रभावित होता है। साधनों का स्थानान्तरण उत्पादन पर अनुकूल अथवा प्रतिकूल दोनों प्रकार का प्रभाव डाल सकता है। संक्षेप में, करारोपण से साधनों का स्थानान्तरण निम्न प्रकार से हो सकता है |

(अ) लाभप्रद एवं हानिकारक स्थानान्तरण- आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि करारोपण द्वारा उत्पत्ति के साधनों का स्थानान्तरण न सदैव लाभप्रद होता है और न सदैव हानिप्रद ही होता है। हानिकारक वस्तुओं के उपभोग पर लगाया हुआ कर अथवा विलासिता की वस्तुओं पर लगाया हुआ कर सामाजिक कल्याण की दृष्टि से लाभप्रद होता है क्योंकि ऐसी वस्तुओं के मूल्य बढ़ने से उनका उपयोग हतोत्साहित होता है और ऐसे उद्योगों में लगी हुई पूँजी व श्रम अन्य लाभकारी उद्योगों को स्थानान्तरित होने लगते हैं। इसके अतिरिक्त इसका एक लाभ यह भी होगा कि ऐसे अनावश्यक व्यय के घटने के कारण जो बचतें होंगी, उनका पूँजी-निर्माण एवं उत्पादन वृद्धि पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके विपरीत यदि जन-उपयोगी तथा अनिवार्य आवश्यकता की वस्तुओं पर कर लगाये जाते हैं, तो उनका उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने के कारण, उत्पत्ति के साधन अनावश्यक तथा कम उपयोगी उद्योगों की ओर स्थानान्तरित होने लगते हैं। इसी प्रकार यदि करारोपण द्वारा अवांछनीय उद्योगों को संरक्षण दिया जाता है, तो इससे भी आर्थिक साधनों का हानिकारक स्थानान्तरण होता है।

(ब) वर्तमान उपयोग से भविष्य के उपयोगों को स्थानान्तरण- करारोपण से उत्पत्ति के साधनों का स्थानान्तरण वर्तमान उपयोगों से भावी उपयोगों में भी होता है। यदि उपभोग पर कर लगा दिया जाये तो व्यक्ति उपभोग को कम कर देते हैं तथा बचत करने के लिए बाध्य हो जाते हैं जिससे उत्पत्ति के साधनों का स्थानान्तरण वर्तमान उपयोग से भविष्य के उपयोगों की ओर होने लगता है। स्पष्ट है कि ऐसे करारोपण से समाज की भावी उत्पादन-शक्ति में वृद्धि होती है। इसके विपरीत यदि सरकार द्वारा बचतों पर कर लगा दिया जाये तो साधनों का उपयोग भावी उपयोगों के स्थान पर वर्तमान उपयोगों में अधिक होने लगता है, क्योंकि ऐसी दशा में आम जनता वर्तमान में उपभोग पर अधिक व्यय करती है। इसीलिए समाज की वर्तमान उत्पादन-शक्ति में वृद्धि हो जाती है।

(स) एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानान्तरण- यदि दो राज्यों में सम्बन्धित करों की दर में भिन्नता रहती है तो उत्पत्ति के साधन उन क्षेत्रों में जहाँ कर की दर ऊँची होती है, उन स्थानों की ओर जाने लगते हैं जहाँ तुलनात्मक रूप से कर की दर कम होती हैं।

कुछ ऐसे कर भी होते हैं जिनसे साधनों का स्थानान्तरण नहीं होता, जैसे आकस्मिक लाभ पर कर तथा भूमि की स्थिति पर कर आदि।

(II) करारोपण का वितरण पर प्रभाव (Effects of Taxation on Distribution)

देश में आय एवं सम्पत्ति के वितरण को भी करारोपण महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इसीलिए ऐसी कर-प्रणाली का समर्थन किया जाता है जिससे आय एवं सम्पत्ति के वितरण की असमानता को कम किया जा सके।

आय एवं सम्पत्ति के वितरण पर करारोपण का प्रभाव दो बातों से प्रभावित होता है।

(i) करों की प्रकृति एवं (ii) करों के प्रकार।

(i) करों की प्रकृति- कर-भार की दृष्टि से कर तीन प्रकार के होते हैं–प्रगतिशील, आनुपातिक तथा प्रतिगामी। यदि करों की प्रकृति प्रगतिशील (Progressive) है अर्थात् आय या सम्पत्ति में वृद्धि होने पर करों की दरें बढ़ती जाती हैं तो आय एवं सम्पत्ति के वितरण में असमानताएँ कम होंगी।

जब करदाता अपनी आय अथवा सम्पत्ति आदि का एक समान भाग कर के रूप में देते हैं तो उन्हें आनुपातिक कर (Proportional Tax) कहते हैं। इन करों का भार समाज के अधिक सम्पन्न वर्ग के व्यक्तियों की तुलना में कम सम्पन्न वर्ग के व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है। इसीलिए इनके द्वारा आय एवं सम्पत्ति के वितरण की असमानता में वृद्धि होती है। यदि करों की प्रकृति प्रतिगामी (Regressive) है तो आय एवं सम्पत्ति में वृद्धि होने पर करों की दरें घटने लगती हैं। इन करों का भार धनी वर्गों पर कम तथा निर्धनों पर अधिक पड़ता है। ऐसे करों के फलस्वरूप भी आय एवं सम्पत्ति के वितरण में असमानताएँ बढ़ती हैं।

(ii) करों के प्रकार-करों के प्रकार से आशय प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों से है। प्रत्यक्ष कर जैसे, आयकर, सम्पत्ति कर, मृत्यु कर आदि आय व धन की विषमताओं को घटाते हैं क्योंकि इन करों का उद्देश्य धनी वर्ग के व्यक्तियों से धन लेकर, उसका निर्धनों में वितरण करना है। वस्तुत: आय एवं सम्पत्ति के वितरण में असमानताओं को कम करने के लिए सामान्यत: प्रगतिशील प्रत्यक्ष करों का प्रयोग किया जाता है। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष कर जैसे उत्पादन शुल्क, बिक्री कर आदि मुख्यतः प्रतिगामी प्रकृति के होते हैं और इन करों का निर्धनों पर अधिक भार पड़ता है। यदि अप्रत्यक्ष कर आवश्यक वस्तुओं पर अधिक लगाये जाते हैं तो प्रतिगामी सिद्ध होते हैं। अत: आवश्यक वस्तुओं और विशेषकर निर्धनों के द्वारा अधिक प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं पर कम दर से एवं कुछ वस्तुओं को कर मुक्त करके निर्धनों को और अधिक निर्धन होने से रोका जा सकता है। कुल मिलाकर यह अनुभव किया जाता है कि अप्रत्यक्ष करों का आय एवं सम्पत्ति के वितरण की असमानताओं को कम करने में विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। (III) करारोपण के अन्य प्रभाव (Other Effects of Taxation)

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उत्पादन एवं वितरण के अतिरिक्त करारोपण का समाज के उपभोग स्तर, व्यावसायिक क्रियाओं, रोजगार स्तर तथा आर्थिक स्थिरता पर भी प्रभाव पड़ता है। संक्षेप में, करारोपण के अन्य प्रभाव निम्नलिखित हैं

(1) करारोपण तथा उपभोग- करारोपण, समाज के उपभोग को भी प्रभावित करता है। करारोपण करदाता को क्रय-शक्ति को कम कर देता है क्योंकि कर का भुगतान आय में से ही किया जाता है। क्रय-शक्ति कम हो जाने के कारण व्यक्तियों को अपना उपभोग कम करना पड़ता है। इसलिए सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर लगने वाले करों को प्राय: उचित नहीं माना जाता है, क्योंकि उनका भार निर्धनों पर पड़ने के कारण उनका रहन-सहन का स्तर और भी अधिक गिर जाता है। इसके विपरीत हानिकारक एव मादक वस्तुओं पर लगाये जाने वाले करों से समाज को लाभ पहुँचता है क्योंकि ऐसी वस्तुओं के मूल्य बढ़ने से जो उपभोग में कमी होती है, उससे एक तरफ लोगों की कार्यक्षमता बढ़ती है तो दूसरी तरफ बचतों की मात्रा में वृद्धि होती है। इसी प्रकार विलासिता की वस्तुओं पर लगाये जाने वाले कर भी अच्छे समझे जाते हैं क्योंकि ऐसे करों का भार केवल धनी वर्ग को ही सहन करना पड़ता है।

(2) करारोपण एवं आर्थिक स्थिरता- आर्थिक स्थिरता का अर्थ मन्दी और तेजीकाल को नियन्त्रित करने से है। उचित करारोपण से देश की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित किया जा सकता है। करारोपण नागरिकों के उपभोग और विनियोजन-शक्ति को प्रभावित करके देश के व्यापार, उद्योग और रोजगार की स्थिति को प्रभावित करता है। मुद्रा-स्फीति (Inflation) के समय में करारोपण का प्रभाव नागरिकों की क्रय-शक्ति को कम करना होता है। स्फीति काल में चलन में मुद्रा की अधिकता के कारण व्यक्तियों की व्यय करने की शक्ति (Spending Power) बढ़ जाती है, जिसके कारण वस्तुओं की माँग बढ़ जाती है और फलस्वरूप मूल्यों में वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में सरकार करारोपण द्वारा चलन में मुद्रा की मात्रा कम कर देती है, जिससे व्यक्तियों की व्यय करने की शक्ति कम हो जाती है तथा मूल्य-स्तर नीचे आ जाता है। इस सम्बन्ध में आय-कर एवं व्यय-कर अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इसके विपरीत मुद्रा-संकुचन (Deflation) के समय में नये करों का लगाना या पुराने करों की दरों में वृद्धि करना हानिकारक होता है क्योंकि व्यक्तियों की क्रय-शक्ति तथा देश में मुद्रा की मात्रा और भी कम हो जाती है। अतएव मुद्रा-संकुचन के समय करारोपण से उत्पादन और रोजगार में और भी अधिक कमी हो जाती है तथा क्रय-शक्ति की कमी से वस्तुओं की माँग में और कमी आती है। अतएव मन्दी काल में करों में छूट दी जानी चाहिए जिससे नागरिकों की क्रय-शक्ति बढ़ जाये। इस प्रकार करारोपण की सही नीति से देश में आर्थिक स्थिरता पैदा की जा सकती है।

(3) करारोपण एवं रोजगार- सामान्यत: यह माना जाता है कि करारोपण से बचत में कमी होती है, फलस्वरूप विनियोग के लिए पूँजी में कमी हो जाती है और रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं परन्तु यह धारणा पूरी तरह से सही नहीं है क्योंकि सरकार ‘कर’ से प्राप्त आय का प्रायः विवेकपूर्ण विनियोजन करती है अर्थात् उद्योगों के विकास के लिए अवसर प्रदान करती है जिससे रोजगार में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त यह भी हो सकता है कि कर न लगाये जाने पर नागरिक अपनी बचत को विनियोजित न करें जबकि सरकार उनकी बचत को कर के रूप में प्राप्त कर आवश्यक उद्योगों में उसका विनियोजन कर रोजगार के अवसर प्रदान करती है। अत: रोजगार पर करों का बुरा प्रभाव पड़ता है, यह विचारधारा गलत है।

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