Bcom 2nd Year Public Finance Commission Notes

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Bcom 2nd Year Public Finance Commission Notes
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वित्त आयोग (Finance Commission)

प्रश्न 29, वित्त आयोग से क्या आशय है ? बारहवें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशों का लेखा प्रस्तुत कीजिये।

उत्तर- डॉ० सी रंगराजन की अध्यक्षता में 12वें वित्त आयोग का गठन राष्ट्रपति द्वारा 1 नवम्बर, 2002 को 2005-2010 की अवधि के लिए केन्द्र-राज्य राजकोषीय सम्बन्धों के विभिन्न विशिष्ट पहलुओं पर सिफारिशें देने के लिए किया गया।

आयोग को सन्दर्भित विषय

बारहवें वित्त आयोग से निम्नलिखित विषयों पर अपनी सिफारिशें देने के लिए कहा गया-

(1) केन्द्र एवं राज्यों के बीच संघ सरकार के विभाजनीय करों एवं शुल्कों की निबल प्राप्तियों के संवितरण और ऐसी आय का राज्यों के बीच वितरण का आधार निर्धारित करना।

(2) भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व एवं सविधान के अनुच्छेद-275 के तहत राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों को अधिशासित करने वाले सिद्धान्तों का निर्धारण करना। ,

(3) पंचायती राज संस्थाओं तथा स्थानीय नगर निकायों के संसाधनों को बढ़ाने के लिए राज्यों की संचित निधियों में वृद्धि करने के लिए आवश्यक उपायों के सम्बन्ध में सिफारिश करना।

(4) केन्द्र एवं राज्यों के वित्तीय संसाधनों की स्थिति की पुनर्परीक्षा करना।

(5) राज्यों के वित्त की पुनर्संरचना हेतु आवश्यक उपाय सुझाना।

(6) राजकोषीय सुधार कार्यक्रम की समीक्षा करना तथा इसमें निहित उद्देश्यों की प्रभावी प्राप्ति हेतु उपाय सुझाना।

बारहवें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें (Main Recommendations of Twelfth Finance Commission) – बारहवें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं-

1, राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के लिए केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकारों को सम्मिलित रूप से प्रयास करने होंगे। सार्वजनिक एवं उच्चकोटि की सामाजिक वस्तुएँ (Merit Goods) एवं सेवाएँ प्रदान करने के मामले में दोनों स्तरों की सरकारों के दायित्वों के अनुरूप ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिजिक सन्तुलन प्राप्त करने के लिए केन्द्र एवं राज्यों को अपने-अपने राजस्व के आधार के सापेक्ष राजस्व के स्तर को बढ़ाना होगा तथा अनावश्यक व्यय प्रतिबद्धताओं को लेने से बचना होगा।

2, केन्द्र द्वारा विभाजनीय करों की निवल प्राप्तियों का 30,5% राज्यों को हस्तान्तरित किया जाए, वर्तमान में यह अनुपात 29,5% है। आयोग ने केन्द्र से राज्यों को हस्तान्तरित, होने वाले कुछ हस्तान्तरणों की दिशामूलक सीमा को 37,5% से बढ़ाकर 38,0 % कर दिये जाने का भी सुझाव दिया।

3, आयोग ने राज्यों को हस्तान्तरित किए जाने वाले वित्तीय संसाधनों को विभिन्न राज्यों में बाँटने की जो योजना प्रस्तुत की उसमें निम्नलिखित कारकों के बीच सन्तुलन बनाए रखने का प्रयास किया गया है

(i) राजकोषीय क्षमता की कमजोरियाँ (Weaknesses of Fiscal Capacities) (ii) लागत अपंगताएँ (Cost Disabilities) (iii) राजकोषीय दक्षता (Fiscal Efficiency)

संसाधन अन्तराल का आँकलन करने के लिए आयोग ने राज्यों के स्वयं के संसाधनों एवं व्ययों का मूल्यांकन करने के लिए आदर्शात्मक दृष्टिकोण को अपनाया है। ऐसा करते हुए आयोग ने शिक्षा एवं स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण एवं क्रांतिक मैरिट सेवाएँ माना है। आयोग की दृष्टि में इन सेवाओं को प्रदान करने के मामले में इन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए, ताकि विभिन्न राज्यों में इन सेवाओं को प्रदान करने में आ रही विषमताओं को कम किया जा सके। आयोग ने समानीकरण दृष्टिकोण के ढाँचे के अन्तर्गत सशर्त अनुदान दिये जाने की सिफारिश की है। इसलिए यह आवश्यक है कि राज्यों के संसाधनों के हस्तान्तरण को कर बँटवारे एवं अनुदानों दोनों को साथ मिलाकर देखा जाना चाहिए। तुलनीय प्रति व्यक्ति सकल राज्य घरेलू उत्पाद (वर्ष 1999-2000 से 2001-02 का औसत) तथा आयोग द्वारा सिफारिश किये गए कुल प्रति व्यक्ति हस्तान्तरण (करों का हिस्सा एवं अनुदान) के बीच सह-सम्बन्ध गुणांक (-) 0,89 है (गोआ को छोड़कर सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए), जो हस्तान्तरण के पुनर्वितरण के अभिलक्षण पर बल देता है।

4, बारहवें वित्त आयोग ने सत्ता के विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया को और अधिक मजबूत तथा कारगर बनाने के लिए स्थानीय निकायों को जितनी राशि हस्तान्तरित किए जाने की सिफारिश की है वह विभाजनीय कर राशि का 1,24% तथा केन्द्र की सकल राजस्व प्राप्तियों का 0,9% है।

5, राज्यों की ऋणग्रस्तता दृष्टि से आयोग द्वारा सुझाई गई ऋण राहत योजना के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं-

(i) 31 मार्च 2004 तक करार किए गए 31 मार्च, 2005 को बकाया सभी ऋणों को एक साथ मिलाकर उन्हें 20 वर्षीय बराबर-बराबर किस्तों वाले 7,5% ब्याज दर के ऋण में परिवर्तित कर दिया जाए। यह सुविधा केवल उन्हीं राज्यों को उसी वर्ष से प्राप्त हो जो राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम पारित कर लें।

(ii) राजस्व घाटे में कमी लाने से सम्बद्ध ऋण माफी योजना 2005-06 से 2009-10 तक चलाई जाए।

(iii) यदि कोई राज्य अपना राजस्व घाटा पूरी तरह से समाप्त कर ले तो उस पर केन्द्र का बकाया सारा ऋण माफ कर दिया जाए।

जहाँ तक राज्यों को मिलने वाले कुल कर राजस्व में से विभिन्न राज्यों के व्यक्तिगत हिस्से के निर्धारण का प्रश्न है, आयोग ने राज्य के व्यक्तिगत हिस्से के निर्धारण हेतु जो

फार्मूला तैयार किया है उसे राज्य की जनसंख्या को 25% भारांकन, राज्य के क्षेत्रफल को 10%, राज्यों से आय दूरी को 50% भारांकन, कर प्रयासों को 7,5% तथा राजकोषीय अनुशासन को 7,5 प्रतिशत भारांकन दिया गया है।

6, लोक वित्त पुनर्संरचना के सम्बन्ध में वित्त आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिये-

(i) 2009-10 के अन्त तक केन्द्र एवं राज्यों को सम्मिलित कर-जी० डी० पी० अनुपात को बढ़ाकर 17,6%, प्राथमिक व्यय-जी० डी० पी० अनुपात को बढ़ाकर 23% तथा पूँजीगत व्यय-जी० डी० पी० अनुपात को बढ़ाकर 7% के स्तर तक लाना।

(ii) ऐतिहासिक विनिमय दरों पर मापित विदेशी ऋण सहित केन्द्र एवं राज्यों का सम्मिलित ऋण-जी० डी० पी० अनुपात 2009-10 के अन्त तक कम-से-कम 75% के स्तर पर लाना।

(iii) दीर्घकाल में केन्द्र एवं राज्यों का अलग-अलग ऋण-जी० डी० पी० अनुपात 28% के आस-पास होना चाहिए।

(iv) केन्द्र एवं राज्यों का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 3% के स्तर पर लक्षित होना चाहिए।

(v) राजस्व प्राप्तियों के सापेक्ष ब्याज का भुगतान केन्द्र के मामले में वर्ष 2009-10 के अन्त तक 28% तथा राज्यों के मामले में 15% होना चाहिए।

(vi) वर्ष 2008-09 तक सम्मिलित रूप से तथा अलग-अलग केन्द्र एवं राज्यों का राजस्व घाटा सकल घरेलू उत्पाद के शून्य स्तर तक नीचे लाया जाए।

(vii) राज्यों को ऐसी भर्ती एवं मजदूरी नीति अपनानी चाहिए जिससे निवल राजस्व व्यय (ब्याज भुगतानों व पेंशन भुगतानों को घटाते हुए) के सापेक्ष कुल वेतन व्यय 35% से अधिक न हो।

(viii) प्रत्येक राज्य राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम पारित करें।

7, संघ कर साधनों के वितरण के सम्बन्ध में वित्त आयोग के सुझाव निम्नलिखित थे-

(i) विभाजनीय केन्द्रीय करों की निवल प्राप्तियों का 30,5% राज्यों को हस्तान्तरित किया जाए। इस उद्देश्य से बिक्रीकर के बदले लगाए गए अतिरिक्त उत्पाद शुल्क की प्राप्तियों को केन्द्रीय करों के सामान्य पूल का हिस्सा माना जाए।

(ii) संविधान के 80 वें संशोधन के अधिसूचित होने के बाद यदि किसी सेवा कर के बारे में कोई कानून पारित किया जाता है तो यह सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि ऐसे अधिनियम के तहत राज्य को मिलने वाला राजस्व उस हिस्से से कम नहीं होना चाहिए जो उसे केन्द्रीय पूल में शामिल कर लिए जाने पर प्राप्त होता ।

(iii) राज्यों को हस्तान्तरित की जाने वाली दिशाभूलक सीमा केन्द्र की सकल राजस्व प्राप्तियों के 38% तक निर्धारित की जा सकती है।

(iv) राज्यों को विभाजित होने वाली केन्द्रीय कर प्राप्तियों में प्रत्येक राज्य का हिस्सा प्रत्येक वर्ष निम्नलिखित तालिका के अनुसार हो-

तालिका–2005-06 से 2009-10 की अवधि में राज्यों को मिलने वाले कर राजस्व में प्रत्येक राज्य का हिस्सा (प्रतिशत में)

राज्य सेवाकर ले अतिरिक्त अन्य प्रत्येक राज्य का हिस्सा सेवा-कर में हिस्सा (%) संजो विभाजनीय करों में
आन्ध्र प्रदेश 7,356 7,453
अरुणाचल प्रदेश 0,288 0,292
असम 3,235 3,277
बिहार 11,028 11,173
छत्तीसगढ़ 2,654 2,689
गोआ 0,259 0,262
गुजरात 3,569 3,616
हरियाणा 1,075 1,089
हिमाचल प्रदेश 0,522 0,529
जम्मू और कश्मीर 1,297 Nil
झारखण्ड 3,361 3,405
कर्नाटक 4,495 4,518
केरल 2,665 2,700
मध्य प्रदेश 6,711 6,719
महाराष्ट्र 4,997 5,063
मणिपुर 0,362 0,367
मेघालय 0,371 0,376
मिजोरम 0,239 0,242
नागालैण्ड 0,263 0,266
उड़ीसा 5,161 5,229
पंजाब 1,299 1,316
राजस्थान 5,609 5,683
सिक्किम 0,227 0,230
तामिलनाडु 5,305 5,374
त्रिपुरा 0,428 0,433
उत्तर प्रदेश 19,264 19,517
उत्तराखण्ड 0,939 0,952
पश्चिम बंगाल 7,057 1,150
सम्पूर्ण राज्य 100,00 100,00

 

8, स्थानीय निकायों के सम्बन्ध में वित्त आयोग के सुझाव निम्नलिखित थे-

(i) 2005-10 की पाँच वर्षों की अवधि में पंचायती राज संस्थाओं को 20,000 करोड़ रुपये तथा स्थानीय नगर निकायों को 5,000 करोड़ रुपये दिए जाएँ।

(ii) स्थानीय नगर निकायों को दी जाने वाली अनुदान सहायता का कम-से-कम 50% सार्वजनिक निजी सहयोग से ठोस कचरा प्रबन्धन पर खर्च किया जाए।

(iii) राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि की योजना 500 करोड़ रुपये की धनराशि से वर्तमान स्वरूप के अनुसार ही चालू रखी जाए।

10, राज्यों को अनुदान (Grants-in-aid) के सम्बन्ध में आयोग के सुझाव निम्नलिखित थे-

(i) गैर-विशिष्ट संवर्ग के राज्यों को योजना सहायता के रूप में दी जाने वाली धनराशि में ऋण एवं अनुदान के 70 : 30 अनुपात तथा विशिष्ट संवर्ग के राज्यों में 10 : 90 अनुपात की व्यवस्था को समाप्त कर दिया जाए। केन्द्र केवल राज्यों को अनुदान भर दें।

तालिका–बारहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर केन्द्र  से राज्यों को कुल वित्तीय हस्तान्तरण (करोड़ रुपये)

 

राज्य विभाजनीय निबल का राजस्व का हिस्सा बारहवाँ वित्त्त आयोग अनुदान बारहवाँ वित्त्त आयोग कुल हस्तांतरण बारहवाँ वित्त्त का आयोग
आन्ध्र प्रदेश 45,138,68 5,214,58 50,353,26
अरुणाचल प्रदेश 1,767,34 1,758,22 3,525,56
असम 19,580,69 4,478,71 24,329,40
बिहार 67,671,04 7,975,79 75,646,83
छत्तीसगढ़ 16,285,76 1,987,79 18,273,70
गोआ 1,589,14 135,39 1,720,53
गुजरात 21,900,47 335,39 1,724,53
हरियाणा 6,594,46 1,445,98 8,042,44
हिमाचल प्रदेश 3,203,22 11,247,14 14,450,36
जम्मू और कश्मीर 7,441,71 13,438,57 20,880,28
झारखण्ड 20,624,02 3,032,57 23,656,84
कर्नाटक 27,361,88 4,054,4 31,416,28
केरल 16,353,21 3,254,51 19,607,72
मध्य प्रदेश 41,180,59 5,141,37 46,,321,96
महाराष्ट्र 30,663,19 5,531,06 36,194,25
मणिपुर 2,221,44 4,648,76 6,870,20
मेघालय 2,276,61 2,091,39 4,660,91
मिजोरम 1,466,52 3,194,39 4,660,91
नागालैण्ड 1613,67 5,839,74 7,453,41
उड़ीसा 31,669,47 5,273,30 36,942,77
पंजाब 7,971,00 4,913,59 12,884,59
राजस्थान 34,418,56 4,543,91 39,062,47
सिक्किम 1,392,94 436,20 1,829,14
तामिलनाडु 32,552,74 4,135,39 36,688,13
त्रिपुरा 2,626,09 5,709,91 8,471,00
उत्तर प्रदेश 1,18,209,454 15,562,00 1,33,471,45
उत्तराखण्ड 5,762,22 6,430,12 12,194,22
पश्चिम बंगाल 43,303,91 7,573,37 50,877,28
सम्पूर्ण राज्य 6,13,112,02 1,42,639,60 7,55,751,62

 

 

(ii) 15 राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, उड़ीसा, पंजाब, सिक्किम, उत्तराखण्ड, त्रिपुरा तथा पश्चिम बंगाल) को बाँटने के लिए 2005-10 की अवधि में कुल 56,855,87 करोड़ रुपये का अनुदान दिया जाए।

(iii) आठ राज्यों (असम, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल) को शिक्षा क्षेत्रक हेतु 2005-10 की अवधि में कुल 10,171,85 करोड़ रुपये दिये जाएँ। अर्ह राज्य को किसी वर्ष कम-से-कम 20 करोड़ रुपये अनिवार्यतः प्राप्त हों।

(iv) सात राज्यों (असम, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड) को स्वास्थ्य क्षेत्रक हेतु 2005-10 की अवधि में कुल 5,887,08 करोड़ रुपये इस प्रकार दिये जाएँ कि प्रत्येक अर्ह राज्य को किसी वर्ष कम-से-कम 10 करोड़ रुपये इस प्रकार दिए जाएँ कि प्रत्येक अर्ह राज्य को किसी वर्ष कम-से-कम 10 करोड़ रुपये अवश्य मिलें।

(v) शिक्षा तथा स्वास्थ्य क्षेत्रक के लिए राज्यों को दिया गया अनुदान उनके स्वयं के द्वारा इन क्षेत्रकों पर खर्च की जारी सामान्य धनराशि से ऊपर है।

(vi) सड़कों एवं पुलों के अनुरक्षण हेतु वर्ष 2006-07 से 2009-10 तक के चार वर्षों में बराबर-बराबर किस्तों में 15,000 करोड़ रुपये राज्यों को अनुदान दिया जाए।

(vii) सार्वजनिक भवनों के रख-रखाव हेतु 1,100 करोड़ रुपये तथा विरासत के रख-रखाव के लिए 625 करोड़ रुपये का अनुदान।

(viii) सार्वजनिक भवनों के रख-रखाव हेतु राज्यों को 5,000 करोड़ रुपये का अनुदान।

(ix) वनों के रख-रखाव हेतु 1,000 करोड़ रुपये का अनुदान। (x) राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं हेतु 7,100 करोड़ रुपये का अनुदान।

11, आयोग ने निम्नलिखित ऋण राहत एवं सुधार उपाय सुझाए

(i) प्रत्येक राज्य अपना राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम पारित कर वर्ष 2008-09 के अन्त तक राजस्व घाटे को पूरी तरह से समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित करे।

(ii) ऋण राहत को मानव विकास या निवेश वातावरण में प्राप्त उपलब्धियों से न जोड़ा जाए।

(iii) 31 मार्च, 2004 तक राज्यों के साथ करार किए गए तथा 31 मार्च, 2005 को बकाया केन्द्रीय ऋणों को एक साथ मिलकर 7,5% वार्षिक ब्याज दर के 20 वर्षीय ऋण में परिवर्तित कर दिया जाए। इसकी वूसली 20 बराबर-बराबर किस्तों में हो। यह सुविधा केवल उन्हीं राज्यों को उसी वर्ष से दी जाए जिस वर्ष में वे राजकोषीय उत्तरदायित्व अधिनियम पारित कर लें।

(iv) राजस्व घाटे में कमी किए जाने से सम्बद्ध एक ऋण माफी योजना चलाई जाए इसके तहत वर्ष 2005-06 से 2009-10 की अवधि में जो पुनर्भुगतान देय हो जाएँ उसमें से ठीक उतनी ही राशि माफ की दी जाए जितनी के बराबर राज्य अपने राजस्व घाटे में कमी कर ले।

12, पैट्रोलियम लाभ के सम्बन्ध में आयोग का सुझाव था कि संघ सरकार ‘नई ऊर्जा लाइसेंस नीति’ के अन्तर्गत आबंटित क्षेत्रों में पैट्रोलियम, कच्चे तेल तथा गैस की निकासी से प्राप्त लाभ सम्बन्धित राज्य के साथ 50-50 के अनुपात में बॉटे।

13, वित्त मन्त्रालय के एक विभाग के रूप में वित्त आयोग के लिए स्थायी तौर पर एक सचिवालय का गठन किया जाए। वित्त आयोग सचिवालय का व्यय भारत की संचित निधि पर भारित हो। तेरहवें वित्त आयोग का गठन 2007 तक कर दिया जाए, ताकि उसे निर्धारित अवधि 2011-16 के लिए सिफारिशें देने के लिए पर्याप्त समय मिल जाए।

14, केन्द्र सरकार धीरे-धीरे “Accrual Basis of Accounting” प्रणाली को अपनाए और “राष्ट्रीय लोक वित्त लेखाकार संस्थान” की स्थापना करे।

भारत सरकार ने संसद में पेश रिपोर्ट में ‘बारहवें वित्त आयोग’ की अधिकांश , सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। ,,

प्रश्न 30, तेरहवें वित्त आयोग की सिफारिशों का विस्तार से वर्णन कीजिये।

उत्तर

तेरहवाँ वित्त आयोग (Thirteenth Finance Commission)

केन्द्र और राज्यों के बीच राजस्व के बँटवारे के लिए मानक तय करने के लिए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 13 वें वित्त आयोग का गठन नवम्बर 2007 में किया था। पूर्व वित्त सचिव डॉ, विजय एल० केलकर को इस आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। आयोग ने 30 दिसम्बर, 2009 को अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी। तेरहवें वित्त आयोग का समग्र दृष्टिकोण समावेशी एवं हरित संवृद्धि प्रोन्नत राजकोषीय संघवाद रहा है। ये सिफारिशें 2010-15 के लिये हैं। ,

13वें वित्त आयोग के अधीन विचार किए गए विषय इस प्रकार हैं –

(i) केन्द्र सरकार द्वारा 12वें वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर शुरू की गई राज्य ऋण समेकन और राहत सुविधा 2005-10 को ध्यान में रखते हुए संघ और राज्यों की वित्तीय स्थिति का अवलोकन करना।

(ii) वर्ष 2008-09 के अन्त में पूरा किये जाने वाले कराधान और गैर कर राजस्व के सम्भावित स्तरों के आधार पर 1 अप्रैल, 2010 को आरम्भ होने वाले 5 वर्षों के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों के संसाधनों पर विचार।

(iii) आपदा प्रबन्धन के वित्त पोषण के सन्दर्भ में राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक निधि आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005 में प्रकल्पित निधियों के प्रतिनिर्देश की विद्यमान व्यवस्थाओं का पुनर्विलोकन करना और उसके सन्दर्भ में उपयुक्त सिफारिश।

(iv) सभी राज्यों और संघ में कर-जी० डी० पी० अनुपात के सुधार करने के लिए अतिरिक्त संसाधन जुटाने की क्षमता पर विचार करना।

(v) संघ और राज्यों के राजस्व खातों को अनुकूल करने तथा पूँजी निवेश में अभिवृद्धि करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए दिशा-निर्देश। ।

(vi) 1 अप्रैल, 2010 से (सम्भावित) लागू होने वाले वस्तु एवं सेवा कर । (जीएसटी) के प्रभावों का अध्ययन करना।

(vii) सार्वजनिक क्षेत्र की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए उपाय सुझाना।

(viii) सतत् विकास, पर्यावरण संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन के प्रबन्धन की आवश्यकता को देखते हुए आधारिक संरचना एवं वृहद् विकास परियोजनाओं के विकास को सुनिश्चित करने के लिए सिफारिशें करना।

आयोग ने ऋण घटाने के एक मध्यकालीन ढाँचे के भीतर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण की प्रक्रिया चालू करने पर बल दिया है। तेरहवें वित्त आयोग ने केन्द्र एवं राज्यों के समग्र ऋण-जी०डी०पी० अनुपात में वर्ष 2014-15 तक 2009-10 के 82 प्रतिशत के स्तर को घटाकर 68 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है केवल केन्द्र के ऋण-जी०डी०पी० अनुपात को वर्ष 2014-15 तक 45 प्रतिशत लाना प्रस्तावित है।

तेरहवें वित्त आयोग ने केन्द्र एवं राज्यों दोनों के राजस्व घाटे को शून्य स्तर पर लाकर राजकोषीय सुदृढ़ीकरण केन्द्र एवं राज्य दोनों के लिए कर आदर्शक अनुपात अपनाने, समता के सिद्धान्त को न अपना कर समानीकरण पर ध्यान देकर एक समान व्यवहार को महत्व दिया है। तेरहवें वित्त आयोग का मानना है कि राज्यों एवं स्थानीय निकायों के पास करारोपण के एक युक्तिसंगत तुलनात्मक स्तर पर सार्वजनिक सेवाएँ प्रदान करने की राजकोषीय सम्भाव्यता है। यह सिद्धान्त सारे देश के लिए सार्वजनिक सेवाओं में एकरूपता की गारण्टी नहीं देता, लेकिन यह सिद्धान्त ऐसी एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक के अधिकार क्षेत्र में राजकोषीय अपेक्षाओं पर विचार अवश्य करता है।

तेरहवें वित्त आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी कर सुधार उपाय बताया है, जो कर राजस्वों की उत्प्लावकता तथा संवृद्धि को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। इसके साथ-साथ यह सकरात्मक बाध्यताओं का सृजन भी करेगा। आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर को युक्तिसंगत तरीके से लागू किए जाने में निम्नलिखित 6 तत्त्वों को चिन्हित किया है-

(1) अभिकल्प;

(2) प्रचलनात्मक रूपात्मकताएँ;

(3) दरों तथा प्रक्रिया विधियों में परिवर्तन के लिए आकस्मिकताओं के साथ केन्द्र तथा राज्यों के बीच आबद्धकारी करार;

(4) अनुपालन के लिए हतोत्साहन;

(5) कार्यान्वयन अनुसूची; तथा

(6) राज्यों के लिए क्षतिपूर्ति का दावा करने हेतु प्रक्रिया विधि।

आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर के क्रियान्वयन के साथ राज्यों को कर राजस्व हानियों की भरपाई के लिए क्षतिपूर्ति हेतु 50,000 करोड़ रुपये की स्वीकृति की सिफारिश की है। आयोग का यह भी आँकलन है कि यदि वस्तु एवं सेवा कर को 1 अप्रैल, 2013 से लगाया जाता है, तो राज्यों के कर राजस्व में होने वाली कमी की भरपाई हेतु उपर्युक्त राशि घटकर 40,000 करोड़ रुपये तथा 1 अप्रैल, 2014 से या उसके बाद लागू करने पर 30,000 करोड़ रुपये रह जाएगी।

तेरहवें वित्त आयोग की प्रमुख सिफारिशें

(1) विभिन्न केन्द्रीय करों की निबल प्राप्तियों में राज्यों का हिस्सा संचार की अवधि के प्रत्येक वर्ष के लिए 32 प्रतिशत होगा। अब तक यह 30,5 प्रतिशत था।

(2) केन्द्र सरकार के विभिन्न करों की निबल प्राप्तियों में से 32 प्रतिशत प्राप्तियाँ राज्यों को जाएँगी इनमें से प्रत्येक राज्य के हिस्से का निर्धारण उन्हें प्रदत्त भार के अनुसार किया जाएगा। इस आधार पर सेवा कर को छोड़कर अन्य करों की प्राप्तियों में राज्यों का हिस्सा तालिका 16,4 में दर्शाया गया है। ऐसे राज्य जिनका देश के कुल क्षेत्रफल में हिस्सा 2 प्रतिशत या उससे कम है उन्हें 2 प्रतिशत का न्यूनतम अंश समानुदेशित किया गया है। ये राज्य हैं-गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, पंजाब, सिक्किम, त्रिपुरा तथा उत्तराखण्ड अन्य राज्यों के हिस्सों पर कोई ऊपरी सीमा नहीं

इस प्रकार तेरहवें वित्त आयोग ने राज्यों के व्यक्तिगत हिस्से के निर्धारण हेतु मानदण्डों में दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये हैं-

प्रथम, राजकोषीय क्षमता अन्तर के लिए भार को 50,00 प्रतिशतांक से घटाकर 47,5 प्रतिशतांक कर दिया है; बारहवें वित्त आयोग द्वारा राजकोषीय क्षमता अन्तर के मापन हेतु प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद को आधार बनाया गया था। इस प्रकार प्रतिपत्रित किए जाने पर प्रक्रिया विधि में राज्यों के बीच राजकोषीय क्षमता अन्तर का निर्धारण करने के लिए अन्तर्हित रूप से सकल घरेलू उत्पाद के प्रति एक सकल औसत कर का अनुपात प्रयोज्य किया जाता है। तेरहवें वित्त आयोग ने इसके बजाय कर क्षमता को मापने के लिए पृथक् औसतों की अनुशंसा की है। एक सामान्य श्रेणी के राज्यों के लिए तथा दूसरी विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए। ऐसा किये जाने का औचित्य यह है कि दोनों श्रेणियों के बीच, सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के प्रति अनुप्रयुक्त सकल औसत (अन्तर्हित रूप से) दोनों समूहों के बीच राजकोषीय अन्तर का सही प्रकार अभिग्रहण नहीं करता। ऐसा दो कारणों से होता है

1, सकल राज्य घरेलू उत्पाद का क्षेत्रक संघटक सभी राज्यों में एक जैसा नहीं है तथा प्रत्येक क्षेत्रक अपनी कर योग्यता में एक रूप नहीं है।

2, सकल राज्य घरेलू उत्पाद अनुमान वर्तमान में उपादान लागत पर उपलब्ध हैं तथा उसमें प्रेषण रूप में उपार्जित होने वाली आय जैसी आय शामिल नहीं है। सकल राज्य घरेलू उत्पाद के प्रति कर का अनुप्रस्थ राज्य औसत अनुपात विशेष श्रेणी के राज्यों की तुलना में सामान्य श्रेणी के राज्यों में उच्चतर है, इसलिए दोनों श्रेणियों पर समूह विशिष्ट औसत अनुप्रयुक्त किए जाते हैं।

3, वर्तमान में जम्मू-कश्मीर राज्य में सेवा कर का उद्ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए सेवा कर की निबल प्राप्तियाँ इस राज्य को समानुदेशनीय नहीं हैं। सेवा कर की प्राप्तियों में शेष 27 राज्यों के हिस्से तालिका 14,2 के अनुसार निर्धारित किये गये हैं।

4, केन्द्र अपने सकल कर राजस्व में अपना हिस्सा कम करने के उद्देश्य से उपकरों तथा अधिभारों के उद्ग्रहण की समीक्षा करें।

5, राजस्व खाते पर राज्यों को समग्र अन्तरणों पर निर्दिष्टात्मक सीमा केन्द्र की सकल राजस्व प्राप्तियों के 39,5 प्रतिशत पर निर्धारित की जाए।

6, मध्यावधिक राजकोषीय योजना एक आशय विवरण के बजाय प्रतिबद्धता का विवरण होना चाहिए।

7, कर, व्यय, सरकारी निजी भागीदारी, देयताओं तथा प्राप्तियों एवं व्यय अनुमानों के अन्तर्हित परिवर्तियों के ब्यौरों सहित बजट/ एमएफटीपी के लिए नाप्रकटन विनिर्दिष्ट किए जाए।

8, वित्तीय विनियमन एवं बजट प्रबन्ध अधिनियम (FRBM Act) में उन प्रघातों के स्वरूप को निर्दिष्ट किया जाना आवश्यक है जिनके लिए उसके तहत् लक्ष्यों में ढील दिया जाना आवश्यक होगा।

9, ऐसी आशा की जाती है कि राज्य वर्ष 2011-12 तक अपने राजकोषीय सुधार मार्ग पर वापस आने में समर्थ हो जाएँगे। इसलिये वे अपने-अपने एफआरबीएम अधिनियमों में यथानुसार संशोधन करें।

10, राज्य सरकारें सामान्य निष्पादन अनुदान के लिए तथा विशेष क्षेत्र निष्पादन अनुदान के उसी दशा में पात्र होंगी जब वे स्थानीय अनुदानों के अर्थ में निहित निर्धारित शर्तों का पालन करती हैं।

11, राष्ट्रीय विपदा आकस्मिकता निधि को राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया निधि में विलयित कर दिया जाए।

12, इसी प्रकार राज्यों की विपदा राहत निधि को सम्बन्धित राज्य की आपदा अनुक्रिया निधि में विलयित कर दिया जाए।

13, आठ राज्यों के लिए पंचवर्षीय अवधि (2010-15) में 51,800 करोड़ रुपये का कुल आयोजन भिन्न राजस्व अनुदान अनुशासित किया गया है। (तालिका 14,5) विशेष श्रेणी के तीन राज्यों, जो आयोजना भिन्न राजस्व घाटे की स्थिति से उबरे हैं, के लिए 15,000 करोड़ रुपये का निष्पादन अनुदान अनुशंसित किया गया है।

14, वर्ष 2011-12 से 2014-15 के चार वर्षों के लिए सड़कों व पुलों के अनुरक्षण अनुदान हेतु 19,330 करोड़ रुपये की राशि की अनुशंसा।

15, प्रारम्भिक शिक्षा के लिए अनुदान राशि 24,068 करोड़ रुपये की अनुशंसा।

16, राज्य विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए 27,945 करोड़ रुपये के अनुदान की अनुशंसा।

17, वन, अक्षय ऊर्जा तथा जल क्षेत्र प्रबन्धन अनुदानों के रूप में 5,000 करोड़ रुपये अनुदान की अनुशंसा।

18, राज्यों को सहायता अनुदान के रूप में पंचाट अवधिक के लिए 3,18,581 करोड़ रुपये की कुल राशि अनुशंसित की गई है।

इस तरह तेरहवें वित्त आयोग की सिफारिशों से 2010-11 से 2014-15 की पाँच वर्षों की अवधि में राज्यों को केन्द्रीय करों एवं शुल्कों के हिस्से के रूप में कल 1,24,48,096,0 करोड़ रुपये तथा सहायता अनुदान के रूप में 2,58,581,0 करोड़ रुपये अर्थात् कुल 17,06,677,0 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। तेरहवें वित्त आयोग ने इस बात का विशेष ध्यान रखा है कि यदि किसी राज्य को केन्द्रीय करों एवं शुल्कों में छोटी-सी धनराशि प्राप्त हो रही है, किन्तु पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक क्षेत्रक-शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विकास तथा सड़कों आदि के अनुसरण से जुड़ी आवश्यकताएँ अधिक हैं तो उसे अनुदान सहायता के रूप में अधिक धनराशि प्राप्त हो जाए जैसे कि पूर्वोत्तर के राज्य तथा जम्मू-कश्मीर तेरहवें वित्त आयोग की सिफारिशों से महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, कर्नाटक, हरियाणा तथा पंजाब जैसे विकसित राज्यों को अपेक्षाकृत कम धनराशि प्राप्त हो सकी है, जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार तथा राजस्थान जैसे पिछड़े राज्य अधिक धनराशि प्राप्त करने में सफल रहे हैं।


Bcom 2nd Year Business Public Finance Public Expenditure

Bcom 2nd Year Business Public Finance Public Revenue

 

Public Finance Commission Notes


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