Bcom Public Finance Parliamentary Control on Public Expenditure

Bcom Public Finance Parliamentary Control on Public Expenditure

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Bcom 2nd Year Business Finance Parliamentary Control on Public Expenditure
Bcom 2nd Year Business Finance Parliamentary Control on Public Expenditure

सार्वजनिक व्यय पर संसदीय नियन्त्रण (Parliamentary Control on Public Expenditure)

प्रश्न 31, भारत में सार्वजनिक व्यय पर संसदीय नियन्त्रण की व्यवस्था को विस्तार से समझाइये।

उत्तर- लगभग सभी प्रजातान्त्रिक देशों में संसद (Parliament) द्वारा सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण किया जाता है। भारत में संसद निम्न संस्थाओं के माध्यम से सार्वजनिक व्यय पर नियन्त्रण लगाती है

1, संसद अथवा व्यवस्थापिका द्वारा प्रत्यक्ष नियन्त्रण।

2, संसदीय समितियों द्वारा नियन्त्रण।

(i) अनुमान समिति (Estimates Committee)

(ii) लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)

(iii) सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति (Committee on Public Undertakings)

3, लेखा परीक्षण और जाँच विभाग।

इनका विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है-

I, संसदीय अथवा व्यवस्थापिका द्वारा प्रत्यक्ष नियन्त्रण (Direct Control by the Parliament)

प्रजातान्त्रिक राज्यों में राजस्व पर संसद (Parliament) अथवा व्यवस्थापिका का अधिकार होता है। संसद सार्वजनिक व्यय पर निम्न प्रकार नियन्त्रण करती है

(1) संसद अथवा व्यवस्थापिका से स्वीकृत कराये बिना सरकार द्वारा कोई व्यय नहीं किया जा सकता।

(2) कार्यपालिका (The Executive) के बिना माँगे (माँगों को सम्बन्धित मन्त्री द्वारा सदन पटल पर रखा जाता है) संसद कोई व्यय स्वीकृत नहीं कर सकती।

(3) उन व्ययों के अतिरिक्त जो अधिनियम के पारित होने पर ही किये जा सकते हैं, सभी प्रकार के व्यय वार्षिक आधार पर ही स्वीकृत किये जाते हैं।

कार्यपालिका अनुदानों की माँगों और करारोपण के प्रस्तावों को संसद के समक्ष प्रस्तुत करती है और संसद इन पर अपनी स्वीकृति प्रदान करती है। संसद को इनमें वृद्धि करने का अधिकार नहीं होता, वह केवल कटौती कर सकती है।

II, संसद अथवा व्यवस्थापिका समितियों द्वारा नियन्त्रण (Control by Parliamentary or Legislative Committees)

1, अनुमान समिति (The Estimates Committee)- संसदीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था में यह अपेक्षित है कि संसद में अनुमानों (Estimates) को प्रस्तुत करने से पूर्व संसद की स्वतन्त्र वित्तीय समिति द्वारा उनकी जाँच कर ली जाये। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अनुमान समिति का गठन किया जाता है। भारत में प्रथम अनुमान समिति का गठन सन् 1950 में किया गया था। अब यह लोकसभा के सदस्यों में से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर गठित की जाती है।

अनुमान समिति के कार्य (Functions of the Estimates Committee)- अनुमान समिति निम्नलिखित कार्यों को सम्पन्न करती है-

(i) मितव्ययिताओं, संगठन में सुधार, कुशलता अथवा प्रशासनिक सुधार, जो नीति से

सम्बन्धित होते हैं, के सम्बन्ध में सुझाव देना।

(ii) प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता लाने के लिए वैकल्पिक नीतियाँ सुझाना।

(iii) यह जाँच करना कि अनुमानों में निहित नीति की सीमाओं के अन्तर्गत ही व्यय का प्रावधान किया गया है।

(iv) उस खाके (Form) को सुझाना जिसके अनुरुप अनुमानों को संसद के समक्ष प्रस्तुत करना है।

समिति का चेयरमैन, यदि वह उचित समझता है, किसी भी बिन्दु को स्पीकर के आदेश के लिए भेज सकता है। अनुमान समिति निम्न में से किसी भी बिन्दु पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है?

(i) क्या वे व्यक्ति जो अनुमानों का खाका बना रहे हैं, इस कार्य के लिए सक्षम हैं?

(ii) क्या मद व्यय-योग्य हैं?

(iii) क्या अनुमान लगाने की विधियाँ कुशल हैं?

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि अनुमान समिति संसद के समक्ष प्रस्तुत किये जाने वाले बजट अनुमानों की न तो जाँच करती है और न ही बजट को तैयार करने में सहायता करती है; यह तो मात्र सार्वजनिक कोषों की फिजूल खर्ची और कार्य व्यय को नियन्त्रित करने के लिए संसद द्वारा गठित ‘मितव्ययिता समिति’ (Economy Committee) है।

2, लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)- एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था में संसद कार्यपालिका द्वारा किये जाने वाले व्यय की स्वीकृति देती है। केवल कार्यपालिका को व्यय करने का अधिकार देना ही काफी नहीं है अपितु यह देखना भी आवश्यक है कि व्यय केवल उन्हीं मदों एवं परियोजनाओं पर किया जा रहा है जिनके लिए स्वीकृति ली गई है। इसके अंकेक्षण के लिए एक स्वतन्त्र अंकेक्षण अधिकारी की नियुक्ति का संविधान द्वारा प्रावधान किया गया है। भारत में यह अधिकारी ‘Comptroller and Auditor General of India (CAG)’ के नाम से जाना जाता है। वह इस बात का अंकेक्षण करता है कि कार्यपालिका द्वारा सभी व्यय, संसद द्वारा स्वीकृत मदों पर ही स्वीकत मात्रा में स्वीकृत उद्देश्यों के लिए ही किया गया है।

लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा तैयार एवं राष्ट्रपति को प्रस्तुत की गई रिपोर्ट अत्यधिक विस्तृत और तकनीकी होती है। यदि इसे इसी रूप में संसद में प्रस्तत किया जाए तो अंकेक्षकों का सभी परिश्रम व्यर्थ जायेगा, क्योंकि प्रत्येक सांसद उसकी जाँच नहीं कर सकेगा। इसे संक्षिप्त रूप देने एवं बोधगम्य बनाने के लिए, भारतीय संविधान के प्रावधान के अन्तर्गत ‘लोक लेखा समिति’ का दोनों सदनों द्वारा गठन किया जाता है जिसमें 22 सदस्य होते हैं (15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्य सभा से)। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति समिति के सदस्यों में से ही स्पीकर द्वारा की जाती है।

लोक लेखा समिति के कार्य (Functions of Public Accounts Committee)- समिति के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1, यह देखना कि– (i) धनराशि जो लेखों में वितरित दर्शाई गई है, वैधानिक रूप से उपलब्ध थी और उन्हीं मदों के लिए थी, जिनके लिए वितरित की गई है;

(ii) व्यय उचित प्राधिकारी द्वारा किया गया है;

(iii) उपयुक्त अधिकारी द्वारा निर्मित नियमों के अन्तर्गत ही धनराशि निकाली गई है।

2, अंकेक्षण रिपोर्ट का अध्ययन करना तथा विभिन्न लेखों, मदों एवं परियोजनाओं, तुलन पत्र आदि की जाँच करना!

3, स्वायत्त एवं अर्द्ध-स्वायत्त संस्थाओं के आय-व्यय लेखों की जाँच करना।

समिति के अन्य उत्तरदायित्व (Other Responsibilities of the Committee)समिति के अन्य उत्तरदायित्व निम्न प्रकार हैं-

1, राज्य निगमों, व्यापारिक एवं निर्माण परियोजनाओं एवं अन्य सम्बन्धित तथ्यों की जाँच करना।

2, विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं के आय-व्यय लेखों की जाँच करना।

3, महामहिम राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षित अंकेक्षण रिपोर्ट के बिन्दुओं पर जाँच करना।

4, यदि धनराशि किसी मद पर स्वीकृत राशि से अधिक व्यय की गयी है तो सम्बन्धित तथ्यों का अध्ययन करना और इस विषय पर उपयुक, सुझाव देना।

3, सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति (Committee on Public Undertakings)स्वतन्त्रता के बाद से ही भारत में सार्वजनिक कम्पनियों का विस्तार तेजी से हुआ है। ये कम्पनियाँ या तो वैधानिक निगम के रूप में हैं अथवा इनका निर्माण कम्पनी अधिनियम 1956 के अधीन हुआ है। इनके परिव्यय का अधिकांश भाग केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है। अत: संसद का यह दायित्व है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इन कोषों का उचित उपयोग हो। इस प्रकार उन कम्पनियों पर भी संसद का नियन्त्रण होता है। इस हेतु संसद में , मई 1996 में ‘सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति’ का गठन किया। इस समिति में 15 सदस्य होते हैं जिनमें 10 सदस्यों का चुनाव लोकसभा द्वारा और 5 सदस्यों का चुनाव राज्य सभा

द्वारा किया जाता है। इसमें 1/5 सदस्य प्रतिवर्ष सेवानिवृत्त होते हैं। इस समिति के चेयरमैन को स्पीकर द्वारा नामित किया जाता है।

समिति के कार्य (Functions of the Committee)- सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति’ के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

(i) सार्वजनिक उपक्रमों के उन लेखों और प्रतिवेदनों की जाँच करना, जिन्हें इस उद्देश्य हेतु समिति को विशेष रूप से सौंपा गया है।

(ii) सार्वजनिक उपक्रमों पर कैग की रिपोर्ट, यदि कोई है, की जाँच करना।

(iii) सार्वजनिक उपक्रमों की कार्यकुशलता एवं स्वायत्ता के सन्दर्भ में यह जाँच करना कि क्या उपक्रमों के कार्यों का प्रबन्ध व्यवसाय के सशक्त सिद्धान्तों के अनुरूप किया जा रहा है अथवा नहीं।

(iv) समिति को सौंपे गये अन्य कार्यों को करना।

समिति को निम्न विषयों पर जाँच करने का अधिकार नहीं है-

(i) सार्वजनिक उपक्रमों के व्यावसायिक कार्यों से भिन्न प्रमुख सरकारी नीति के विषय।

(ii) दैनिक प्रशासन से सम्बन्धित विषय।

(iii) विशिष्ट अधिनियम के अन्तर्गत स्थापित मशीनरी से सम्बन्धित विषय।

संक्षेप में, सार्वजनिक उपक्रमों पर समिति की जाँच का दायरा निष्पादन के मूल्याँकन से सम्बद्ध है जैसे—नीति का क्रियान्वयन, कार्यक्रम प्रबन्ध, वित्तीय निष्पादन आदि।

III, भारत के लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक के अधीनस्थ अंकेक्षण विभाग (The Audit Department Under the Control of Comptroller and Auditor General)

सरकारी व्यवहारों का अंकेक्षण देश के वित्तीय व्यवहारों पर संसदीय नियन्त्रण का एक अत्यधिक महत्वपूर्ण यन्त्र है। स्वतन्त्र अंकेक्षण सार्वजनिक कोषों का अत्यधिक महत्वपूर्ण कवच है। करदाताओं के हितों के संरक्षण के लिए भी यह आवश्यक है। सरकारी लेन-देन का अंकेक्षण यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है कि जो व्यय किया गया है अथवा, किया जा रहा है, वह उन प्रावधानों के अनुकूल है जिनके लिए धन लिया गया है। प्रजातान्त्रिक देशों में, सरकारी धन का अंकेक्षण एक स्वतन्त्र अधिकारी द्वारा किया जाता है जो विधायिका के आदेशानुसार अपना कर्त्तव्य निभाता है। यह देखना उसका कर्त्तव्य है कि व्यय मितव्ययिता के साथ ईमानदारी से किया गया है।

भारतीय संविधान में स्वतन्त्र लेखा नियन्त्रण एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है, जो न केवल सरकार के लेखों को रखेगा, अपितु भारत की संचित निधि से वितरित धन राशि का अंकेक्षणं भी करेगा। लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। उसके कर्त्तव्य और शक्तियाँ संविधान की , धारा 148 में वर्णित हैं; जैसे

1, राष्ट्रपति द्वारा लेखा नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति उसी के लेख एवं सील द्वारा की जाएगी तथा उसे उसी विधि से हटाया जा सकेगा, जो शर्ते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पर लागू होती है।

2, प्रत्येक व्यक्ति जिसकी CAG के रूप में नियुक्ति होती है, अपने कार्य को सम्भालने से पूर्व राष्ट्रपति के समक्ष जाकर, कार्य सम्भालने की विधि को अपनायेगा।

3, उसका वेतन एवं अन्य संसद द्वारा वैधानिक रूप से निर्धारित की जाएगी।

4, अपने कार्यभार से मुक्त होने के बाद वह केन्द्र अथवा राज्य सरकार के किसी अन्य कार्यभार को ग्रहण नहीं कर सकेगा।

5, संविधान के प्रावधानों तथा संसद द्वारा पारित किसी अन्य नियम के अतिरिक्त CAG वे कार्य करेगा जो राष्ट्रपति द्वारा निर्देशित किए जाएंगे।

6, CAG के कार्यालय के सभी प्रशासनिक व्यय जिनमें वेतन, भत्तें, पेंशन आदि हैं भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से आहरित किये जाएंगे।


Bcom 2nd Year Business Public Finance Public Expenditure

Bcom 2nd Year Business Public Finance Public Revenue

 

Parliamentary Control Public Expenditure


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