Bcom 1st Year Business Economics Profit Notes Hindi
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लाभ Profit
प्रश्न 28–लाभ की परिभाषा दीजिये। लाभ निर्धारण के माँग और पूर्ति सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
Define Profit. Explain the demand and supply theory of profit.
अथवा
लाभ के आधुनिक सिद्धान्त को पूर्णतया स्पष्ट कीजिए।
Explain fully the Modern theory of Profit.
उत्तर–
लाभ का अर्थ एवं परिभाषा
उत्पादन के साधन के रूप में उद्यमी या साहसी को जोखिम उठाने के बदले जो प्रतिफल (पुरस्कार) मिलता है,उसे लाभ कहते हैं । दूसरे शब्दों में,राष्ट्रीय आय का वह भाग जो वितरण की प्रक्रिया में साहसियों को प्राप्त होता है, लाभ कहलाता है। लाभ स्वभाव से एक अवशेष है अर्थात् उत्पत्ति के अन्य साधनों को पुरस्कार देने के पश्चात् साहसी के लिए जो भाग शेष बचता है, वह लाभ कहलाता है। शुम्पीटर के अनुसार, “लाभ साहसी के कार्य का प्रतिफल है अथवा यह जोखिम, अनिश्चितता तथा नव–प्रवर्तन के लिए भुगतान है।”
प्रो० स्पीट के अनुसार, “सामान्यतया लाभ जोखिम उठाने का भुगतान है।“
मेयर्स के अनुसार, “कुल आगम में से समस्त लागतों को घटाने के बाद जो वास्तविक आय किसी व्यवयास के स्वामियों को प्राप्त होती है, उसे ही लाभ कहते हैं।”
लाभ का माँग तथा पूर्ति का सिद्धान्त
अथवा
लाभ का आधुनिक सिद्धान्त
यह सिद्धान्त लाभ–निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार जिस प्रकार उत्पत्ति के अन्य साधनों की कीमत उनकी माँग और पूर्ति के अनुसार निश्चित होती है, उसी प्रकार साहसी का लाभ (कीमत) भी उसकी माँग एवं पूर्ति द्वारा निर्धारित होता है। इस प्रकार सिद्धान्त के दो पहलू हैं– (1) साहसी की माँग और (2) साहसी की पर्ति ।
(1) साहसी की माँग– एक साहसी की मांग उसकी सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करती है। साहसी की सीमान्त उत्पादकता जितनी अधिक होगी,साहसी की मांग भी उतनी ही अधिक होगी। साहसी की माँग को साहसी की सीमान्त उत्पादकता के अतिरिक्त (अ) उत्पत्ति का पैमाना, (ब) उद्योग में जोखिम का अंश तथा (स) औद्योगिक विकास का स्तर आदि तत्त्व भी प्रभावित करते हैं। पैमाने के विस्तार के साथ साहसी की माँग बढ़ती है। औद्योगिक विकास के साथ–साथ सासी की माँग बढ़ती है। . एक फर्म के लिये साहसी की सीमान्त आय उत्पादकता (MRP) का पता लगाना कठिन है। क्योंकि फर्म में केवल एक ही साहसी होता है और उसकी मात्रा को घटाना बढ़ाना सम्भव नहीं होता। अत: फर्म के बजाय सम्पूर्ण उद्योग के लिये साहसी की सीमान्त आय उत्पादकता का पता लगाया जाता है क्योंकि उद्योग में साहसी की संख्या में परिवर्तन करना सम्भव होता है। ऐसा करते समय हमारी यह मान्यता रहती है कि उद्योग विशेष में कार्यरत सभी साहसी समान रूप से कार्य–कुशल है। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि साहसियों की संख्या एवं सीमान्त आय उत्पादकता में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है जिसके कारण MRP वक्र बायें से – दायें नीचे को गिरता हुआ अर्थात् ऋणात्मक ढाल वाला होता है।
(2) साहसी की पूर्ति– साहसी की पूर्ति भी अनेक तत्त्वों पर निर्भर करती है जैसे—जनसंख्या का आकार, औद्योगिक विकास का स्तर, पूँजी की उपलब्धि, आय का वितरण एवं व्यवसाय में जाखिम का अंश आदि । प्रमुख रूप से किसी भी उद्योग में साहसी की पूर्ति उक्त उद्योग विशेष से प्राप्त होने वाले लाभ की दर पर निर्भर करती है। यदि उद्योग में लाभ की दर ऊँची है तो साहसियों की पूर्ति अधिक होगी, अन्यथा वह कम होगी। इस प्रकार लाभ की दर एवं साहसी की पूर्ति के बीच सीधा (प्रत्यक्ष) सम्बन्ध होता है, जिसके कारण साहसी का पूर्ति वक्र नीचे से दायें ऊपर उठता हुआ होता है। किन्तु पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में सभी साहसी समान योग्यता वाले होते हैं। जिससे प्रत्येक साहसी को केवल स्थानान्तरण आय के बराबर सामान्य लाभ प्राप्त होता हैं। इस स्थिति में साहसियों की पूर्ति रेखा OX अक्ष पर एक पड़ी रेखा (Horizontal) होगी। ।
लाभ का निर्धारण– लाभ का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ साहसी की माँग, साहसी की पूर्ति के बराबरहोती है । दूसरे शब्दों में,साहसियों का माँग वक्र अर्थात् सीमान्त आगम उत्पादकता (MRP) तथा साहसियों का पर्ति वक्र SS एक दूसरे के बराबर होते हैं। इस स्थिति को रेखाचित्र के द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
प्रस्तुत रेखाचित्र में MRP साहसियों का सीमान्त आगम उत्पादकता वक्र है जिसे माँग वक्र भी कहा जाता है तथा उनका पूर्ति वक्र SS है । ये दोनों एक दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं अतःE साम्य बिन्दु है जिस पर साहसियों की माँग एवं पूर्ति ON के बराबर है तथा लाभ की दर OP है।
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
प्रश्न 1-आर्थिक लाभ और लेखा लाभ में अन्तर कीजिए। (2006; 2005) Distinguish between .Economic Profit and Accoụnting Profit
उत्तर–
कुल लाभ या सकल लाभ या लेखालाभ (Total Profit or Gross Profit or Accounting Profit)
किसी भी उत्पादक या फर्म की लागतें दो प्रकार की होती हैं
(अ) स्पष्ट लागतें (Explicit Costs)- साहसी द्वारा उत्पत्ति के बाहरी साधनों को उनकी सेवाओं के बदले में किया गया भुगतान, स्पष्ट लागतों के अन्तर्गत आता है।
(ब) अस्पष्ट लागतें (Implicit Costs)- एक साहसी कुछ ऐसे साधनों का भी प्रयोग करता है जिनका वह स्वयं ही स्वामी होता है अर्थात् उन साधनों को उसे बाहर से खरीदना नहीं पड़ता, जैसे–उसकी अपनी भूमि, पूँजी, निरीक्षण या प्रबन्ध सेवाएँ आदि । व्यवसायी को अपने इन साधनों के लिए जो पुरस्कार प्राप्त होना चाहिए, उन्हें अस्पष्ट लागतें कहते हैं।
कुल आगम में से स्पष्ट लागतों को घटाने के पश्चात् जो शेष बचता है, उसे ही कुल लाभ या सकल लाभ या लेखा लाभ कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, एक उत्पादक या फर्म द्वारा अपनी वस्तुओं के विक्रय से प्राप्त कुल आगम . (Total Revenue) में से उत्पत्ति में प्रयुक्त विभिन्न साधनों तथा भूमि,श्रम, पूँजी एवं संगठन की सेवाओं के लिए पुरस्कार के रूप में भुगतान की गई रकम तथा सम्पत्तियों पर हास,रखरखाव के व्यय एवं बीमा व्यय घटाने के बाद जो शेष बचता है, उसे कुल लाभ या सकल लाभ या लेखा लाभ कहते हैं । साहसी के स्वयं के साधनों का पुरस्कार किसी बाहरी व्यक्ति को नहीं चुकाना होता है। इसलिए इसे सामान्यतया लेखाशास्त्री पुस्तकों में नहीं लिखते हैं।
आर्थिक लाभ (Economic Profit)- शुद्ध लाभ (वास्तविक लाभ या आर्थिक लाभ) वह लाभ होता है जो कि साहसी को केवल जोखिम उठाने के बदले मिलता है । कुल आगम में से ‘स्पष्ट लागतों‘ तथा ‘अस्पष्ट लागतों‘ दोनों को घटाने पर जो शेष बचता है,उसे ‘आर्थिक लाभ‘ कहते हैं । संक्षेप में–
आर्थिक लाभ = कुल आगम – स्पष्ट लागतें – अस्पष्ट लागते
अथवा
= कुल लाभ – अस्पष्ट लागतें
शुद्ध लाभ धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी । वास्तव में,लाभ ही एक ऐसा पुरस्कार होता है जोकि ऋणात्मक भी हो सकता है।
आर्थिक लाभ एवं लेखा लाभ में अन्तर
(1) कुल आगम में से स्पष्ट लागतों को घटाने के पश्चात् जो शेष बचता है, उसे लेखा लाभ कहते हैं, जबकि कुल आगम में से स्पष्ट तथा अस्पष्ट दोनों लागतों को घटाने पर जो शेष बचता है, उसे आर्थिक लाभ कहते हैं।
(2) लेखा लाभ अधिकतर धनात्मक होता है, जबकि शुद्ध लाभ धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी।
प्रश्न 2-“लाभ अनिश्चितता वहन करने का पुरस्कार है।” समझाइये (2004 Back)
“Profit is the payment for uncertainty bearing.” Explain.
अथवा
नाइट के लाभ निर्धारण सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
Discuss the knight’s Theory of Profit.
उत्तर–
लाभ का अनिश्चितता वहन करने का सिद्धान्त (The Uncertainty Bearing Theory of Profit)
इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अमेरिका के अर्थशास्त्री प्रोफेसर नाइट (knight) ने किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार साहसी को लाभ जोखिम उठाने के लिए नहीं वरन अनिश्चितता को वहन करने के लिए प्राप्त होते हैं। प्रोफेसर नाइट के अनुसार, “उद्यमी का मुख्य कार्य उत्पादन सम्बन्धी अनिश्चितताओं को सहन करना होता है। अनिश्चितताओं को सहन करने के प्रतिफल को ही लाभ कहा जाता है एवं लाभ की मात्रा अनिश्चितता वहन करने की मात्रा पर निर्भर करती है।” प्रोफेसर नाइट जोखिम तथा अनिश्चितता में भेद करते हैं। उनके अनुसार सभी प्रकार की जोखिमों में अनिश्चितता नहीं होती है।
प्रोफेसर नाइट ने व्यावसायिक जोखिम को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा है –
(1) ज्ञात या निश्चित जोखिम (Known or Certain Risks)- ज्ञात या निश्चित जोखिम वह होती है जिनका पहले से ही अनुमान लगाया जा सकता है, जैसे–चोरी होना, आग लगना आदि । इस प्रकार की जोखिमों का पहले से बीमा कराया जा सकता है, इसीलिए इन्हें बीमा योग्य जोखिम कहा जाता है । इस प्रकार की जोखिम वास्तव में कोई अनिश्चितता उत्पन्न नहीं करती क्योंकि साहसी इनका बीमा कराके निश्चित हो जाता है । इसलिए नाइट का कहना है कि निश्चित जोखिमों के लिए साहसी को कोई पुरस्कार नहीं मिलना चाहिये क्योंकि जोखिम उठाने का कार्य बीमा कम्पनियों ने किया है न कि साहसी ने । इन जोखिमों के लिये जो बीमा प्रीमियम दिया जाता है, उसे उत्पादन लागत में जोड़ दिया जाता है।
(2) अज्ञात या अनिश्चित जोखिम (Uncertian Risks)- ये वे जोखिम होती हैं जिनका अनुमान नहीं लगाया जा सकता और जिनका बीमा भी नहीं कराया जा सकता है। इन्हें बीमा–अयोग्य जोखिम भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, व्यक्तियों की रुचि एवं फैशन आदि में परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग की दशाओं में परिवर्तन, सरकारी नीति में परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम, व्यापार–चक्र की जोखिमें, तकनीकी जोखिमें आदि। इन जोखिमों से अनिश्चितताएँ उत्पन्न होती हैं । इन जोखिमों को साहसी द्वारा वहन किये जाने के कारण ही साहसी को पुरस्कार के रूप में लाभ की प्राप्ति होती है। वास्तव में, लाभ की मात्रा इस प्रकार की जोखिमों की मात्रा पर ही निर्भर करती है।
लाभ का निर्धारण– नाइट का कहना है कि अनिश्चितता को सहन करना भी उत्पत्ति का एक पृथक साधन है और अन्य साधनों की भाँति इस साधन की भी अपनी ‘माँग–कीमत‘ (Demand-Price) होती है। इसी प्रकार अनिश्चितता सहन करने की एक ‘पूर्ति–कीमत‘ (supply-price) भी होती है और यदि लाभ की मात्रा इस पूर्ति–कीमत अर्थात् न्यूनतम सीमा से कम है तो कोई भी साहसी अनिश्चितता उठाने के लिये तैयार नहीं होगा। नाईट के अनुसार, “लाभ का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ अनिश्चितता उठाने की माँग–कीमत, उसकी पूर्ति–कीमत के बराबर हो जाती है।“
आलोचनाएँ
(1) आलोचकों के अनुसार साहसी का कार्य केवल अनिश्चितताओं को ही सहन करना नहीं होता, बल्कि वह उत्पादन के साधनों में समन्वय भी स्थापित करता है। साहसी के इस कार्य पर इस सिद्धान्त में कोई ध्यान नहीं दिया गया है।
(2) लाभ एकाधिकारी शक्ति का भी परिणाम हो सकता है, केवल अनिश्चितता झेलने का प्रतिफल ही नहीं।
(3) लाभ साहसी की योग्यता का भी परिणाम होता है।
(4) प्रो० नाइट अनिश्चितता को अपने आप में एक अलग तत्व मानते हैं, किन्तु व्यवहार में शायद ही हमें इस प्रकार का कोई अलग साधन मिलेगा
प्रश्न 3-सामान्य तथा अतिरिक्त लाभ में अन्तर बताइये।
Distinguish between normal profit and surplus profit.
उत्तर– सामान्य लाभ (Normal Profit)-प्रत्येक उद्यमी अपने व्यवसाय की जोखिमों एवं अनिश्चितताओं को इस आशा से सहन करता है कि उसे भविष्य में लाभ प्राप्त होगा। अल्पकाल में, भले ही उसे हानि उठानी पड़े, परन्तु दीर्घकाल में उसे कुल निश्चित मात्रा में अवश्य ही लाभ प्राप्त होना चाहिए, अन्यथा वह उस व्यवसाय को छोड़ देगा। दीर्घकाल में प्राप्त होने वाला लाभ ही सामान्य लाभ के नाम से जाना जाता है; अतः किसी व्यवसाय में उद्यमी के लिए सामान्य लाभ, लाभ का वह निम्न स्तर है जोकि उद्यमी को उद्योग में कार्य करने तथा बनाये रखने हेतु पर्याप्त मात्र है।“
वस्तुतः सामान्य लाभ, मजदूरी, लागत तथा ब्याज की भाँति लागत का अंश होता है तथा कीमत में शामिल रहता है।
श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “सामान्य लाभ, लाभ का वह स्तर है जिस पर व्यवसाय में नयी फर्मों के प्रवेश करने या पुरानी फर्मों के उद्योग को छोड़ जाने की कोई प्रवृत्ति नहीं होती।“
अतिरिक्त या असाधारण या असामान्य लाभ (Excess or Surplus or Abnormal or Super Normal Profit)- असामान्य लाभ वह लाभ होता है जो एक साहसी को सामान्य लाभ के अतिरिक्त प्राप्त होता है । यह कुशल साहसियों को सीमान्त साहसी की तुलना में अपनी कुशलता के कारण अथवा बाजार की अपूर्णता के कारण प्राप्त होता है । सरल शब्दों में,जब ‘वास्तविक लाभ सामान्य लाभ से अधिक होता है तो दोनों का अन्तर असामान्य लाभ कहलाता है। पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में वास्तविक लाभ, सामान्य लाभ से अधिक हो सकता है, बराबर हो सकता है या उससे कम भी हो सकता है, परन्तु दीर्घकाल में वास्तविक लाभ, सामान्य लाभ के बराबर ही होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार के अन्तर्गत प्राय: सामान्य लाभ के साथ–साथ अतिरिक्त लाभ भी प्राप्त होता है । वस्तुतः अतिरिक्त लाभ की मात्रा ही नई फर्मों को आकर्षित करती है।
सामान्य लाभ एवं अतिरिक्त लाभ में अन्तर
(1) सामान्य लाभ ज्ञात जोखिम उठाने का पुरस्कार है, जबकि अतिरिक्त लाभ अज्ञात जोखिम उठाने का पुरस्कार है।
(2) सामान्य लाभ उत्पादन लागत में सम्मिलित होता है, जबकि असामान्य लाभ उत्पादन लागत में सम्मिलित नहीं होता।
(3) सामान्य लाभ सभी साहसियों को प्राप्त होता है, जबकि असामान्य लाभ केवल अधि–सीमान्त साहसियों को ही प्राप्त होता है।
(4) सामान्य लाभ तो स्थिर रहता है, जबकि असामान्य लाभ तेजी–मन्दी के अनुसार घटता–बढ़ता रहता है।
(5) सामान्य लाभ सदैव ही धनात्मक होता है, जबकि असामान्य लाभ ऋणात्मक भी हो सकता है। हानि को ऋणात्मक लाभ कहते हैं।
प्रश्न 4-लाभ के नव–प्रर्वतन सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
Discuss the Innovative Theory of Profit.
अथवा
“लाभ नव–प्रवर्तन का पारितोषिक है।” समझाइये।
“Profit is payment for innovation.” Explain.
उत्तर—
लाभ का नव–प्रवर्तन सिद्धान्त
लाभ के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रोफेसर शुम्पीटर द्वारा किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार लाभ नव–प्रवर्तनों का पुरस्कार होता है। नव–प्रवर्तनों का अर्थ उत्पादन प्रक्रिया में ऐसे परिवर्तन से है जो वस्तु की उत्पादन लागत में कमी लाते हैं। नव–प्रवर्तन अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे–पुरानी उत्पादन तकनीक एवं मशीनों के स्थान पर नवीन उत्पादन तकनीक एवं मशीनों का प्रयोग करना, कच्चे माल के नये स्रोत खोज निकालना, नई वस्तु का उत्पादन, नये बाजार की स्थापना एवं उद्योग का पुनर्गठन आदि। इन नव–प्रवर्तनों के कारण वस्तु के मूल्यों तथा लागतों में अन्तर उत्पन्न होते हैं और यही अन्तर साहसी का लाभ होता है।
नव–प्रवर्तन से उत्पन्न लाभ अस्थायी प्रकृति के होते हैं । जब किसी साहसी द्वारा किसी नयी तकनीक का प्रयोग किया जाता है तो उसे इस नयी तकनीक का तब तक लाभ प्राप्त होता रहता है जब तक कि इसे अन्य साहसी नहीं अपनाते हैं। जैसे ही अन्य प्रतियोगी फर्मे लाभ की आशा से नयी उत्पादन विधि को अपनाती हैं, वैसे ही लाभ की मात्रा कम होने लगती है तथा अन्तत: यह समाप्त हो जाता है। अतः यह कहना उचित नहीं होगा कि लाभ नये प्रवर्तन के कारण मिलता है तथा अनुकरण के कारण समाप्त हो जाता है। अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए फर्मे हर समय किसी नव–प्रवर्तन को अपनाती रहती हैं। नये प्रवर्तन आर्थिक विकास में सहायक होते हैं तथा इस प्रवर्तन के द्वारा लाभ की प्राप्ति होती है। इस दृष्टि से लाभ नये प्रवर्तनों को प्रोत्साहित करता है। यदि नया प्रवर्तन सफल होता है तो लाभ प्राप्त होता है। . अतः शुम्पीटर के अनुसार, “लाभ नये प्रवर्तनों का कारण तथा परिणाम दोनों ही है।“
आलोचनाएँ– (1) शुम्पीटर के अनुसार लाभ जोखिम का पुरस्कार न होकर नव–प्रवर्तन का परिणाम है। वास्तव में, लाभ जोखिम का ही पुरस्कार है।
(2) सभी उद्यमी नव–प्रवर्तनों का प्रयोग नहीं कर पाते, जबकि लाभ सभी साहसियों को प्राप्त होता है।
(3) वास्तव में, नव–प्रवर्तनों के अतिरक्त बहुत से तत्त्व लाभ उत्पन्न करते हैं, परन्तु इस सिद्धान्त में लाभ को प्रभावित करने वाले अन्य तत्त्वों पर कोई विचार नहीं किया जाता है।
(4) यह सिद्धान्त लाभ की मात्रा निर्धारित करने में असमर्थ है।
प्रश्न 5-लगान तथा लाभ में अन्तर कीजिये । किस प्रकार प्रत्येक आय में लगान का कुछ अंश विद्यमान रहता है?
Distinguish between rent and profit. How is some element of rent present in every income?
अथवा
“लगान और लाभ एक से लगते हैं क्योंकि दोनों ही अधिशेष है लेकिन उनमें अन्तर है क्योंकि सब आयों में लगान हो सकता है, परन्तु लाभ नहीं।” विवेचना कीजिये।
“Rent and Profit are alike because both are surplus, but they differ because there might be rent in all incomes but not profit.” Discuss.
अथवा
लगान और लाभ में समानताएँ और असमानताएँ बताइये।
State similarities and dis-similarities between rent and profit.
(2005 Back)
उत्तर–
लगान एवं लाभ (Rent and Profit)
लगान एवं लाभ दोनों ही कीमत द्वारा निर्धारित अतिरेक (surplus) भुगतान होते हैं। लगान किसी साधन की वास्तविक आय का उस साधन की अवसर लागत पर अतिरेक होता है जबकि लाभ एक व्यावसायिक फर्म या उत्पादक की कुल आगम का उत्पादन लागत पर अतिरेक होता है। जिन उद्योगों में साहसी की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार हो, उनमें साहसी की सम्पूर्ण आय लगान के रूप में होती है। प्रोफेसर वाकर ने तो लाभ को योग्यता का लंगान बतलाया है । वाकर का विचार है कि प्रत्येक लाभ में साहसी की योग्यता का पुरस्कार सम्मिलित होता है जोकि रिकार्डो के लगान की तरह ही है। स्पष्ट है कि लाभ में कुछ न कुछ अंश लगान का अवश्य रहता है। इसीलिए लाभ और लगान दोनों एक से लगते हैं। यहाँ पर यह बताना परमावश्यक है कि सभी आयों में कुछ न कुछ लगान अवश्य होगा, लेकिन सभी आयों में लाभ का अंश होना आवश्यक नहीं है। कुछ स्थितियों में साहसी को हानि हो सकती है, ऐसी दशा में लाभ का लोप हो जाता है।
लगान एवं लाभ में अन्तर
(1) लगान एक अनुबन्धात्मक (contractual) आय है, जबकि लाभ एक अवशिष्ट (Residual) आय है।
(2) लगान साधन की सीमितता के कारण उत्पन्न होता है, जबकि लाभ अनिश्चितता सहने और जोखिम उठाने के कारण उत्पन्न होता है।
(3) लगान सदैव धनात्मक होता है, जबकि लाभ धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों ही प्रकार का हो सकता है।
(4) लगान की तुलना में लाभ में उतार–चढ़ाव अधिक तेजी से होते हैं। दूसरे शब्दों में, लगान स्थैतिक होता है, जबकि लाभ प्रावैगिक होता है |
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