B Com 2nd Year Income Tax Notes in Hindi

B Com 2nd Year Income Tax Notes in Hindi

B Com 2nd Year Income Tax Notes in Hindi :-

B Com 2nd Year Income Tax Notes in Hindi
B Com 2nd Year Income Tax Notes in Hindi

आयकर अधिनियम के सन्दर्भ में व्याख्या (B Com 2nd Year Income Tax Notes )

  1.  कर निर्धारण वर्ष ( Assessment year) :- आयकर अधिनियम की धारा 2(9) के अनुसार कर निर्धारण वर्ष का अभिप्राय 12 माह की उस अवधि से है जो की 1 अप्रैल से प्रारम्भ होकर अगले वर्ष की 31 मार्च को समाप्त होती है प्रत्येक करदाता को कर निर्धारण वर्ष में अपनी गत वर्ष की कमी हुई आय कर का भुगतान करना होता है | वर्तमान कर – निर्धारण वर्ष 2018-2019 है जो 1 अप्रैल को प्रारंभ हुआ है एंव 31 मार्च 2019 को समाप्त होगा |
  2. माना गया करदाता (Deemed Assesse) – यदि एक व्यक्ति कजो किसी अन्य  व्यक्ति की आय के लिए करदाता माना जाये तो उसे माना गया करदाता कहा जाता है |




    1. उधाहरण के लिए –
      1. किसी करदाता की म्रत्यु के पश्चात उसके वैधानिक उत्तराधिकारी को मर्तक करदाता की आय पर कर देने के लिए करदाता माना जाता है |
      2. अवयस्क, पागल तथा विदेशी व्यक्ति के प्रतिनिधियों को ऐसे व्यक्तिओ की आय के सम्बन्ध में करदाता समझा जाता है |
  1. चुक में करदाता (Assessee in default) – जिन्हें किसी गलती या चुक के कारण करदाता माना जाता है उन्हें दोषी करदाता या चुक के कारण करदाता कहते है |
  • . उधाहरण :- लाभांश, बिमा , कमीशन, वेतन आदि का भुगतान करते समय भुगतान करने वाले व्यक्ति या संस्था का यह दायित्व है की वह आय- कर की निर्धारित दर से कटौती करके शेष राशी का ही भुगतान करे, परन्तु यदि भुगतान करने वाला व्यक्ति या संस्था बिना कर की कटौती किये हुए भुगतान कर देती है तो ऐसी स्थिति में भुगतान करने वाले व्यक्ति या संस्था को दोषी करदाता या चुक के कारण करदाता माना जायेगा अर्थात यह उसकी जिम्मेदारी बन गई की इस प्रकार न काटी गई कर की रकम को स्वयं अपने पास से सरकारी कोष में जमा कराये |
  1. आकस्मिक आय (Casul Income) – आकस्मिक आय से आशय ऐसी प्राप्तियो से है, जो स्योग्व्श एंव बिना आशा के प्राप्त हुई हो तथा बार बार न मिलने वाली प्रक्रति की हो लोटरी की जीत से आय , घुड़दौड़ से आय, वर्ग पहेली ताश के खेल शर्त , लगाने से आय, रस्ते में रूपता से भरा बैग या पर्स मिल जाना ,, टी० वि०  गेम्स एंव प्रतियोगिताओ में जीती गई राशी आकस्मिक आय के प्रमुख उदहारण है |



कर- निर्धारण वर्ष 2002-03  तक आकस्मिक आये धारा 10(3)  अंतर्गत एक निश्चित सीमा तक कर मुक्त थी , परन्तु कर निर्धारण वर्ष से यह कर मुक्ति समाप्त कर दी गई है अब आकस्मिक आय : कर योग्य आय है |

आकस्मिक आयो पर 30% की विशिष्ट दर से कर लगता है तथा ऐसी आयो के सम्बन्ध में न तो कोई हानि समायोजित की जाती सकती है एंव न ही आकस्मिक आय को प्राप्त करने के सम्बन्ध में किये गये किसी व्यय की कोई कटौती स्वीक्रत होती है | यहाँ पर यह उल्लेखनीय है की निम्नलिखित आयो को आकस्मिक आय में शामिल नही किया जाता है –

  1. (अ) कर- योग्य पूंजी लाभ, अथवा (ब) व्यापार अथवा पेशे से उद्य हुई प्राप्तिया , अथवा (स) एक कर्मचारी के पारिश्रमिक में जुड़ने वाली अन्य प्राप्तियो ; जैसे बोनस , ग्रेच्युटी , अनुलाभ आदि
  2. उपहार आकस्मिक आय नही-  पारिवारिक स्नेह एंव प्रेम के कारण प्राप्त हुई भेंट या उपहार को आकस्मिक आय नही माना जाता | किसी रिश्तेदार से व्यक्तिगत भेंट ( जैसे, जन्म-दिवस या विवाह की व्र्श्गंथ पर प्राप्त भेंट ) बार- बार (प्रति वर्ष ) प्राप्त होने पर भी कर योग्य नही होती यह भेंट पारिवारिक प्रेम कारण दी जाती है | उदाहरन :- एक पिता द्वारा पुत्र को , एक पीटीआई द्वारा पत्नी को तथा एक रिश्तेदार द्वारा दुसरे रिश्तेदार को प्रतिवर्ष कोई राशि भेट के रूप में दिया जाना केवल भेंट माना जाता है इसे किसी भी रूप में आय नही कहा जा सकता है |
  3. सेवा के लिए प्राप्त उपहार – बख्शीस, टिप आदि आकस्मिक आये नही मानी जाती है बैरा, टैक्सी ड्राइवर आदि को प्राप्त बख्शिसे आकस्मिक आय नही मानी जाती है
  4. पेशे के उपहार – डॉ. को रोगी से उपहार या वकील को अपने मुव्किक्ल प्राप्त उपहार भी आकस्मिक आय नही मानी जाती है क्योंकि ये प्राप्तिय पेशे के कारण प्राप्त हुई है |
  5. सट्टेबाजी के व्यापर से आय – सट्टेबाजी के व्यापर से आय आकस्मिक आय नही मानी जाती लेकिन जुए से प्राप्त आय आकस्मिक आय की श्रेणी में आएगी \





उद्गम स्थान पर कर की कुटी – (i) यदि घुड़दौड़ से जीत की राशी रुपए 5,000 (1.7.2010 से ) अधिक है तो उद्गम स्थान पर निर्धारित दर से कर की कटौती करने के उपतंत शेष राशि ही विजेता को भुगतान की जाएगी |

(ii) यदि लाटरी, वर्ग पहेली, तास के खेल एंव अन्य खेलो में जीत अथवा जुए या शर्त से जीत की राशि रुपये  10000 (1.7.2010 से प्रभावी) से अधिक है तो उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने के उपरांत शेष राशी ही विजेता को भुगतान की जाएगी |

 

प्रत्येक करदाता एक व्यक्ति है परन्तु प्रत्येक व्यक्ति एक करदाता नही है व्याख्या करो |

 

  1. व्यक्ति(Person) – सामान्य भाषा में व्यक्ति से आशय मनुष्य से होता है  , परन्तु आय- कर अहिनियम की धारा 2(31) के अनुसार व्यक्ति में निम्नकित शामिल किये जाते है (i) एक व्यक्ति (ii) हिन्दू अविभाजित परिवार (iii) कम्पनी या निगम, (iv) फर्म , (v) व्यक्तियों का समूह या समुदाय (vi) स्थानीय सत्ता और (vii) प्रत्येक क्र्त्रिक व्यक्ति जो उपयुक्त वर्गो में नही आता है |

व्यक्ति :- व्यक्ति से अभिप्राय एक प्राक्रतिक व्यक्ति से है जो पुरुष, स्त्री , अविभाजित परिवार से अभिप्राय उन सभी व्यक्ति से है जो एक ही परिवार के वंशज होते है |

कंपनी से आशय :- कंपनी अधिनियम द्वारा निर्मित एक ऐसी संस्था से है जिसकी एक अलग सार्व्मुर्दा, अविच्छन्न उतराधिकारी और सिमित दायित्व होता है |

एक फर्म से आशय एक ऐसी साझेदारी फर्म से है जिसमे सभी साझेदार लाभ कमाने के उदेश्य से गठित होते है यह व्यवसाय उन सबके द्वारा या उनमे से किसी एक के द्वारा सभी के लिए चलाया जाता है |

व्यक्तियो के संघ (A.O.P.) से अभिप्राय दो या दो से अह्दिक व्यक्तियों का एक ऐसा संघ है जिसमे व्यक्ति अपने सामान्य उद्देश्य पूरा करने के लिए शामिल होते है |

स्थानीय सत्ता में नगरपालिका , नगर महापालिका एंव जिला परिषद् आदि को शामिल किया जायेगा |

  1. करदाता(Assessee) – आय-कर अधिनियम की धारा 2(7) के अनुसार , करदाता के अंतर्गत निम्नकित को सम्मिलित किया जाता है :

(i) वह व्यक्ति जो कर चुकाने के लिए उतरदायी है |

(ii) वह व्यति जो कर के अतिरिक्त अन्य राशि (अर्थदंड, ब्याज ) देने के लिए उतरदायी अहि |

(iii) ऐसा व्यक्ति जिसकी आय पर आय- कर लगाने की कार्यवाही आरम्भ कर दी गई है |

(iv) माना हुआ करदाता भी करदाता की श्रेणी में शामिल किया जाता है |

(v) ऐसा ग्व्यक्ति जिसे चुक में करदाता मान लिया गया हो |

(vi) उस व्यक्ति द्वारा स्वय या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा चुकाए गये कर की वापसी या हानि निर्धारण के लिए कार्यवाही आरम्भ कर दी गई हो |

संक्षेप में, करदाता में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनकी आय गतवर्ष में आय-कर अधिनियम के अनुसार कर देने योग्य होती अहि |

निष्कर्ष :- व्यक्ति एंव करदाता की उपर्यक्त वर्णित विवेचना से यह बात सिद्ध होती है की प्रत्येक करदाता एक व्यक्ति है परन्तु एक व्यक्ति को करदाता होने के लिए उसकी गतवर्ष की आय काय – कर अहिनियम के अनुसार कर योग्य होनी चाहिए |

गत वर्ष की व्याख्या करो गत वर्ष में हुई आय पर अगले कर निर्धारण वर्ष में कर का निर्धारण किया जाता है इस नियम की व्याख्या करो |

गत वर्ष :- सरल शब्दों में , जिस वर्ष में आय कमाई या प्राप्त की जाती है उसे गत वर्ष कहते है गत वर्ष को वितीय वर्ष (Financial year) या लेखांकन या हिसाबी वर्ष (Accounting year ) के नाम से भी जाना जाता है |

आय – कर अहिनियम की धारा 3 के अनुसार कर- निर्धारण वर्ष के ठीक पूर्ण वाले वितीय वर्ष को गत वर्ष कहा जाता है चूँकि कर – निर्धारण वर्ष प्रत्येक वर्ष 1 अप्रैल से प्रारंभ होता है, : इससे ठीक पूर्व की तिथि अर्थात 31 मार्च तक की 12 माह की अवधि को गत वर्ष कहते है उदाहरनार्थ :- कर निर्धारण वर्ष 2016-2017 से सम्बंधित गत वर्ष का अभिप्राय 1अप्रैल, 2016 तक की 12 माह की अवधि से है यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है की आय के सभी  श्रोतो के लिए किए ही गत वर्ष माना जाता है |

यदपि करदाता अपनी सुविधानुसार वितीय वर्ष , दिवाली वर्ष , दशहरा वर्ष, कैलेण्डर वर्ष आदि के अनुसार अपना हिसाब किताब रख सकते है परन्तु सभी करदाताओ को आय- कर हेतु अपना हिसाब किताब 1 अप्रैल से 31 मार्च तक की अवधि का हितैयर करना पड़ेगा | नये न्य व्यापर प्रारंभ किया जाता है या जिस तिथि को आय का न्य साधन अस्तित्व में आता है उस तिथि से वितीय वर्ष के समाप्त होने तक की तिथि की अवधि को ही गत वर्ष माना जायेगा |

उदाहरनार्थ, करदाता अपना व्यवसाय 1 अक्टूबर , 2013 से 31 मार्च , 2014 तक की अवधि ही होगी |

सामान्य नियम : गत वर्ष की आय पर सम्बंधित कर निर्धारण वर्ष में ही कर लगता है |

सामान्य नियम के अपवाद (Exceptions to general rule) – सामान्यतया कर गत वर्ष की आय पर कर निर्धारण वर्ष में ही लगता है , परन्तु इस नियम के कुछ अपवाद भी है निम्नलिखित शितियो में करदाता पर आय कमाने वाले वर्ष में ही कर लग जाता है अर्थात गतवर्ष एंव कर निर्धारण वर्ष एक ही होते है |

  1. आनिवासियों की समुंद्री जहाज द्वारा व्यापार से आय (धारा 172) :अनिवासी करदाताओ को भारतीय बंदरगाह से सामान पशु, डाक , यात्री, आदि को ले जाने से ऐसे माल के लिए प्राप्त या प्राप्य राशि का 7.5 % जहाज के मालिक की कर योग्य आय मानी जाती है और उसी पर कर लगता है जिस वर्ष वह पुरुजित की गई हो बशर्ते कि जहाज मालिक का कोई एजेंट भारत मे न हो जहाज रावण होने से पूर्व या जहाज का मालिक ऐसा प्रबंध करे जिससे कर का भुगतान एंव आय आय विवरणी 30 दिन के अंदर सरकार को जमा हो जाये वित्त अधिनियम 2008 से ऐसी व्यवस्था की गई है कि ऐसे व्यक्ति का कर निर्धारण गाठ वराह की समाप्ति के 9 माह के भीतर सम्पन्न हो जाना चाहिए
  2. भारत की छोड़कर जाने व्यक्तियो की आय धारा 174 : यदि कर निर्धारण अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है कि कोई व्यतक्ति चालू कर निर्धारण वर्ष ( जिसे गत  वर्ष में जब वह भारत छोड़कर जा रहा हो आय कर वसूल कर लिया जाता है
  3. किसी विशिष्ट उद्देश्य या घटना के किये व्यक्तियों का संघ (aop )  या व्यक्तियों का समूह धारा 174 : यह नियम कर निर्धारण वर्ष 2004-05 से लागु किया गया है यदि कर निर्धारण अधिकारी को ऐसा प्रतीत होता है की कोई व्यक्तियों का संघ व्यक्तियों का समूह अथवा क्रत्रिम व्यक्ति किसी विशिष्ट उद्दीश्य के लिए बनाया गया है एंव चालू गत वर्ष इ ही उसको समाप्त कर दिया जयेगास तो कर निर्धारण अधिकारी विघटन की तिथि तक की कुल आय पर चालू गत वर्ष में ही कर निर्धारण कर देता है |
  4. कर बचने के उद्देश्य से सम्पति का हस्तान्त्र्ण (धारा 175) – यदि कोई व्यक्ति कर बचने के उद्देश्य से अपनी सम्पति का हस्तांतरण किसी दुसरे व्यक्ति को करता है तो ऐसी शिति में चालू गत वर्ष में ही कर निर्धारण कर दिया जाता है |
  5. बंद किये गये व्यापार की आय – धारा 176- के अनुसार, जब कोई व्यापार या पेशा किसी कर निर्धारण वर्ष में बंद क्र दिया जाता है तो उसे बंद करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है की वह 15 दिन के भीतर आय कर अधिकारी को इस सम्बन्ध में सूचित क्र दे | आय कर अधिकारी पिछले गतवर्ष से व्यापार बंद किये जाने की तिथि तक के लाभ पर उसी कर निर्धारण वर्ष में कर निर्धारित क्र देता है |

 

आय – कर अधिनियम में प्रदत आय के प्रावधान की विवेचना-

आय – कर आय पर लगने वाला कर है , प्राप्तियो पर लगने वाला नही ‘ | यह कथन बिलोकुल सत्य है | उदाहरन, यदि एक पत्नी को अपने पति से कोई धनराशी घर खर्च के लिए प्राप्त होती है तो यह पत्नी के ह्बाथ में कर योग्य नही है क्योंकि यह पत्नी की आय नही है इस कथन की निम्न तरीके से भी व्याख्या की जा सकती है |

  1. व्यवसाय से प्राप्तियां (Business recepts) – आय – कर अधिनियम के अंतर्ग्रत यह प्रावधान है की व्यवसाय की कुल बिक्री पर आय कर नही लगेगा बल्कि इस बिक्री को राशि में से माल की लागत एंव एनी अप्रत्यक्ष  खर्चे घटने के बाद अगर कोई राशि सेष बचती है तो इस शेष राशि पर ही आय कर लगाया जा सकता है अगर लात्ग्त असंव खर्चे घटने के बाद कोई भी राशि शेष नही बचती है तो आय कर देने के आवश्यकता नही पड़ेगी उदहारण , यदि एक व्यवसाय की बिक्री 3,00,000 रूस है तथा माल की लगत एंव अप्रत्यक्ष खर्चे इत्यादि 80,000 रू है तो यहाँ 220,000 रूपये पर ही आय – कर लगाया जा सकता है न की 3,00 ,000 रुपए पर |
  2. पूंजी सम्पतियो की बिक्री – यदि गत वर्षग में कोई पूंजी सम्पत्ति बेचींजाती है तो इससे प्राप्त होने वाले सम्पूर्ण प्रतिफल पर आय कर नही लगेगा बल्कि इस प्रतिफल की राशी में पूंजी सम्पति की प्राप्ति लागत एंव हस्तान्त्र्ण से सम्बंधित खर्चो को घटाने के बाद असगर कोई राशि शेष बचती है तो इस प्रकार बची हुई शेष राशि पर ही आय – कर लगेगा | उदहारण , एक भवन 4,00,000 रूपये में बेच्फ्हा गया इसकी प्राप्ति लागत 2,00,000 रूपये थी एंव मकान बेचने से सम्बंधित दलाली पर 20,000 रुपए व्यय हुए है तो यहाँ ( 4,00,000- 2,20,000) 1,18,000 रुपए ही आय मानी जाएगी एंव आय कर की गन्ना भी 1,80,000 रुपए ही की जाएगी न की 4,00,000 रुपए पर |
  3. ब्याज की प्राप्ति – यदि करदाता को गत वर्ष में कुछ राशि ब्याज के रूप में प्राप्त हुई है तो इस राशि में से ब्याज को संग्रह करने के खर्च्य्हे घटाए जायेगे | यदि जिन प्रतिभूतियो पर ब्याज प्राप्त हुआ है उन्हें खरीदने के लिए ऋण लिया गया था एंव इस ऋण पर ब्याज का भुगतान किया जाता है तो इस ब्याज की राशि को भी प्राप्त ब्याज की राशी में से घटाया एंव इसके बाद अगर कोई राशि शेष बचती है तो शेष राशि पर ही आय कर की गणना की जाएगी |

संक्षेप में , यह कहा जा सकता है की आय- कर प्राप्तियो पर लगने वाला कर नही बल्कि इसकी गणना आय के आधार पर की जाती है आय कर अधिनियम में एक करदाता की आय ज्ञात करने के लिए विभिन्न प्रावधान बनाये गये है  इन प्रावधानों का पालन करने पर ही कर – योग्य आय का निर्धारण संभव है |

आय के मुख्य लक्षण अथवा आय – कर अधिनियम में प्रदत्त आय के प्रावधान







आय शब्द एक बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है क्योंकि आय – कर आय पर ही लगता है  परन्तु आय – कर अचिनियम में इस शब्द की कोई परिभाषा नही डी गई है केवल धारा 2(24) में इतना ही बताया गया है की आय में क्या क्या शामिल किया जाता हसी आप के मुख्य लक्षण निम्नलिखित है –

  • वैध व अवैध दोनों आयो पर आय कर लगता है |
  • यह आवश्यक नही की आय मुद्रा के रूप में ही प्राप्त की गई हो मुद्रा तुली वस्तु या सेवा के रूप में प्राप्ति भी आय मानी जाती है
  • आय के कर योग्य होने के लिए आय के साधन का होना आवश्यक है |
  • आय एक साथ या किश्तों में प्राप्त हो सकती है अर्थात यह आवश्यक नही है की आय नियमित रूप से ही प्राप्त हो
  • खर्चो की क्षतिपूर्ति आय नही मानी जाती है | उदाहरनार्थ – वास्तविक यात्रा व्यय की क्षतिपूर्ति आय नही मानी जाएगी |
  • कोई प्राप्त धन आय है अथवा नही मानी जाएगी
  • कोई प्राप्त चन आय है अथवा नही , इसका निश्चय प्राप्ति के समय से होता है यदि प्रथम प्राप्ति के समय वह आय नही है परन्तु बाद में आय हुई है तो वह कर योग्य नही हो सकता |
  • आय की प्राप्ति बाहरी साधन से होनी चाहिए यदि किसी संघ को अपने सदस्यों से प्राप्त बाँदा उसके खर्च से अधिक है तो वह अधिक्य कर योग्य आय नही मन जायेगा |
  • यदि किसी व्यक्ति की आय पर क़ानूनी रूप से किसी दायित्व का भर लगा दिया जाये तो इतनी राशि उसकी आय नही मानी जाएगी |
  • व्यक्तिगत उपहारों को आय नही माना जाता |
  • कमाई गई तथा प्राप्त की गई दोनों ही आये कर योग्य होती है |
  • आय ऋणात्मक हो सकती है |

 

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