Bcom 1st Year Business Low Foreign Exchange Management Act
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विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 2000 (Foreign Exchange Management Act) (FEMA), 2000)
प्रश्न 49, विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 2000 क्या है? ‘फेमा‘ के विदेशी विनिमय के नियमन एवं प्रबन्ध सम्बन्धी प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिये।
What is Foreign Exchange Management Act, 2000? State the main provisions of FEMA with regard to the regulation and management of Foreign exchange,
उत्तर–आर्थिक उदारीकरण के युग में विदेशी विनिमय के कुशल प्रबन्ध ही आवश्यकता अनुभव की गई। फलतः विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (फेरा की समीक्षा की गई। आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुये विश्व अर्थव्यवस्था के अधिक निकट आने के उद्देश्य से विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (फेरा) में – विदेशी विनिमय एवं विदेशी व्यापार से सम्बन्धित कई संशोधनों को कानूनी रूप दिया गया। प्रारम्भ में भारत सरकार ने ‘फेरा’ (FERA) के पुनर्विचार का मन बनाया, परन्तु बाद में सरकार ने ‘फेरा’ को रद्द करके नया कानून बनाना अधिक अच्छा समझा। तदानुसार केन्द्रीय सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से इस दिशा में एक नया अधिनियम लाने का अनुरोध किया। इस उद्देश्य के लिये एक कार्य-बल (Task Force) का गठन किया गया जिसने 1994 में तत्कालीन अधिनियम (फेरा) में पर्याप्त परिवर्तन की संस्तुति की। परिणामस्वरूप फेरा (Fera) को रद्द करने तथा उसका स्थान ग्रहण करने के लिये लोकसभा में 4 अगस्त, 1998 को एक विधेयक प्रस्तुत किया गया। यह बिल वित्त की स्थायी समिति को संदर्भित (Referred) किया गया जिसने कुछ संशोधनों एवं सुझावों सहित अपना प्रतिवेदन 23 दिसम्बर, 1998 को लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत किया। इस पर कोई निर्णय लेने से पूर्व 12 वीं लोकसभा भंग हो गई और यह विधेयक भी रद्द (Lapsed) हो गया। तत्पश्चात् वित्त की स्थायी समिति के सुधारों एवं संशोधनों को अपनाते हुये केन्द्रीय सरकार ने ‘विदेशी विनिमय प्रबन्ध’ विधेयक को लागू करने और 1973 के ‘फेरा’ (FERA) को रद्द करने का निर्णय किया।
इस विधेयक के प्रावधानों का उद्देश्य है कि विदेशी-विनिमय से सम्बन्धित कानून को इस विचार से संघटित और संशोधित किया जाये कि विदेशी व्यापार का सरलीकरण हो और भारत का विदेशी विनिमय बाजार ठीक से चलता रहे तथा उसका व्यवस्थित विकास हो। यह अधिनियम 13वीं लोकसभा में पारित हुआ। यह अधिनियम 1 जून, 2000 से लागू है।
विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 2000 के उद्देश्य [Objectives of Foreign Exchange Management Act (FEMA), 2000]
इस अधिनियम को संक्षेप में ‘फेमा’ (FEMA) के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम की प्रस्तावना में यह उल्लेख किया गया है कि, “यह अधिनियम विदेशी विनिमय से सम्बन्धित कानून को संघटित और संशोधित करे ताकि विदेशी व्यापार का सरलीकरण हो और भारत का विदेशी विनिमय बाजार ठीक से चले तथा उसका व्यवस्थित विकास हो।” संक्षेप में, इस अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1, विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय पर नियन्त्रण रखना।
2, विदेशी विनिमय दर में स्थिरता लाना।
3, विदेशों से एवं विदेशों को होने वाले भुगतानों का नियमन करना।
4, भारत के विदेशी विनिमय बाजार का सुव्यवस्थित विकास करना।
5, भारत में पूँजी के बहिर्गमन पर रोक लगाना।
6, भुगतान असन्तुलन को दूर करने में सहायता करना।
7, आर्थिक कार्यक्रमों हेतु विदेशी मुद्रा की पूर्ति बनाये रखने में सहायता प्रदान करना।
8, अनिवासी भारतीयों के भारत में रोजगार, व्यवसाय, विनियोजन, पेशा आदि का नियमन करना।
9, विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन देना।
10, भारत में विदेशी पूँजी की प्रविष्टि का नियमन करना।
11, भारत में विदेशियों को रोजगार का नियमन करना।
विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
1, संक्षिप्त नाम– इस अधिनियम को “विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 2000′” कहा जायेगा। [धारा 1(1)]
2, क्षेत्र या विस्तार– यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। [धारा 1(2)]
3, लागू होना– (i) यह भारत के निवासी किसी भी व्यक्ति के स्वामित्व, अथवा नियन्त्रण वाली भारत के बाहर सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा एजेन्सियों पर भी लागू होता है।
(ii) यह अधिनियम तब भी लागू होता है यदि कोई भारत का निवासी भारत के बाहर इस
अधिनियम का उल्लंघन करता है।
4, प्रारम्भ (प्रभावी)- केन्द्रीय सरकार ने इस अधिनियम को अधिसूचना जारी करके 1 जून, 2000 से प्रभावी कर दिया है।
विदेशी विनिमय के नियमन एवं प्रबन्ध सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान
1, विदेशी विनिमय एवं प्रतिभूतियों के लेन-देन सम्बन्धी प्रावधान-‘फेमा’ (FEMA) में विदेशी विनिमय एवं प्रतिभूतियों के लेन-देन पर कुछ प्रतिबन्ध लगाये गये हैं। ‘फेमा’ की धारा 3 के अनुसार कोई भी व्यक्ति रिजर्व बैंक की सामान्य या विशेष अनुमति के बिना निम्नांकित प्रकार के लेन-देन नहीं करेगा-
(i) कोई भी व्यक्ति अधिकृत व्यक्ति के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति से विदेशी विनिमय
या विदेशी प्रतिभूति में न तो लेन-देन कर सकता है और न उसे हस्तान्तरित कर सकता है।
(ii) कोई भी व्यक्ति किसी भी तरीके से भारत के बाहर के निवासी किसी भी व्यक्ति को न तो धन की अदायगी कर सकता है और न उसके खाते में कोई धन डाल सकता है।
(iii) अधिकृत व्यक्ति को छोड़कर कोई भी व्यक्ति भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति के आदेश से या किसी भी व्यक्ति की ओर से किसी भी तरीके से कोई भुगतान प्राप्त नहीं करेगा।
(iv) भारत से बाहर कोई सम्पत्ति प्राप्त करने, निर्मित करने या हस्तान्तरित करने के उद्देश्य से भारत में कोई व्यक्ति किसी वित्तीय सौदे में शामिल नहीं हो सकता।
2, विदेशी विनिमय, प्रतिभूति आदि को धारित करने से सम्बन्धित प्रावधान-भारत का निवासी कोई भी व्यक्ति (i) किसी भी विदेशी मुद्रा को; अथवा (ii) किसी भी विदेशी प्रतिभूति को अथवा (ii) भारत के बाहर स्थित किसी भी अचल सम्पत्ति को अधिप्राप्त, धारित या अन्तरित नहीं कर सकेगा या अपने कब्जे में नहीं रख सकेगा। [धारा 4]
3, चालू खाते के लेन-देन सम्बन्धी प्रावधान-कोई भी व्यक्ति चालू खाते लेन-देन से सम्बन्धित विदेशी विनिमय किसी अधिकृत व्यक्ति को बेच सकता है अथवा उससे प्राप्त कर सकता है। परन्तु केन्द्रीय सरकार जनहित में उचित समझे तो रिजर्व बैंक से परामर्श करके चालू खाते के लेन-देनों पर कोई भी उचित प्रतिबन्ध लगा सकती है। [धारा 5]
4, पूँजी खाते के लेन–देन सम्बन्धी प्रावधान– कोई भी व्यक्ति पूँजी खाते के लेन-देन के लिये किसी भी अधिकृत व्यक्ति को विदेशी विनिमय बेच सकता है या उससे विदेशी विनिमय प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार पूँजी खाते के लेन-देन पर सामान्यतः कोई प्रतिबन्ध नहीं है। फिर भी रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार से परामर्श करके पूँजी खाता व्यवहार के किसी वर्ग या किन्हीं वर्गों को अनुमतियोग्य (Permissible) घोषित कर सकता है तथा ऐसे लेन-देनों के लिये स्वीकृति योग्य विदेशी विनिमय की सीमा का भी निर्धारण कर सकता है। रिजर्व बैंक इससे सम्बन्धित कार्यवाहियों के सम्बन्ध में उन्हें रोकने, प्रतिबन्धित करने तथा नियमित करने के नियम बना सकता है। [धारा 6]
5, माल तथा सेवाओं के निर्यात सम्बन्धी प्रावधान [धारा 7]- ‘फेमा’ में कुछ ऐसे प्रावधान किये गये हैं ताकि माल तथा सेवाओं के निर्यात से प्राप्त विदेशी विनिमय का देश में विधिवत् प्रत्यावर्तन हो सके। ‘फेमा’ के अन्तर्गत प्रत्येक निर्यातक के निम्नलिखित कर्तव्य निर्धारित किये गये हैं-(i) वह रिजर्व बैंक या किसी अधिकारी को निर्धारित फार्म पर निर्दिष्ट ढंग से एक घोषणा करेगा जिसमें माल का सच्चा व सही विवरण व मूल्य हो। (ii) यदि माल का पूर्ण निर्यात – मूल्य निर्यात के समय निर्धारित करना सम्भव नहीं हो तो मूल्य की वह राशि जो वर्तमान परिस्थितियों में भारत के बाहर उस माले को बेचने से निर्यातक को प्राप्त होने की आशा है। (iii) रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार अन्य माँगी जाने वाली सूचना भी उपलब्ध करानी होगी।(iv) सेवाओं के प्रत्येक निर्यातक का यह कर्तव्य है कि वह रिजर्व बैंक या ऐसे ही किसी अन्य निर्धारित प्राधिकारी को निर्धारित प्रारूप एवं विधि से एक घोषणा प्रस्तुत करेगा। इस घोषणा में वह निर्यात की गई सेवाओं के भुगतान से सम्बन्धित सही-सही तथ्यात्मक/महत्वपूर्ण विवरण देगा।
6, विदेशी विनिमय की वसूली एवं प्रत्यावर्तन सम्बन्धी प्रावधान– यदि भारत के निवासी किसी व्यक्ति को विदेशी विनिमय देय अथवा अर्जित हो गई है तो ऐसा व्यक्ति रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित अवधि में तथा निर्धारित विधि से वह सभी उचित कदम उठा सकता है जिससे कि उस विदेशी विनिमय की वसूली हो सके एवं उस विदेशी विनिमय को भारत लाया जा सके। [धारा 8]
7, वसूली एवं प्रत्यावर्तन प्रावधानों से छुट– उपर्युक्त धारा 4 के अन्तर्गत वर्णित विदेशी विनिमय, प्रतिभूति आदि को धारित करने से सम्बन्धित प्रावधान एवं धारा 8 के अन्तर्गत वर्णित विदेशी विनिमय की वसूली एवं प्रत्यावर्तन सम्बन्धी प्रावधान निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होंगे-
(5) रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक किसी व्यक्ति द्वारा विदेशी करेन्सी व विदेशी मुद्रा को अपने अधिकार में रखना। (ii) रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा विदेशी करेन्सी खाते का रखना और उसका परिचालन। (iii), रिजर्व बैंक की सामान्य या विशेष आज्ञा के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा 8 जुलाई, 1947 सं पहले विदेशी विनिमय की प्राप्ति या उससे किसी आय का होना। (iv) रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक भारत के निवासी किसी व्यक्ति द्वारा धारित ऐसी विदेशी विनिमय, जो उसे ऐसे व्यक्ति से भेंट या उत्तराधिकार में उस राशि में से प्राप्त हुई हो जो 8 जुलाई, 1947 से पूर्व उसके पास भारत के बाहर थी या उससे प्राप्त होने वाली आय में से प्राप्त हुई हो। (v) नौकरी, व्यवसाय, व्यापार, पेशा, सेवायें, मानदेय, भेंट, वसीयत या विधिसम्मत साधनों द्वारा प्राप्त विदेशी विनिमय जो रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर हो। (vi) रिजर्व बैंक द्वारा विशेष रूप से स्पष्ट की गई किसी अन्य विदेशी विनिमय की प्राप्ति।
प्रश्न 50: फेमा (FEMA) के प्रावधानों के उल्लंघन पर दण्ड की क्या व्यवस्था
(Meerut, 2006)
उत्तर–
फेमा के प्रावधानों का उल्लंघन एवं दण्ड, (Contravention and Penalties)
फेमा अधिनियम के प्रावधानों, इसके अधीन बनाये गये नियमों, या जारी किये गये आदेशों के उल्लंघन की दशा में दण्ड प्रावधानों का उल्लेख भी इस अधिनियम में किया गया – है। फेमा के नियमों का उल्लंघन एवं दण्ड से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान इस प्रकार हैं-
(I) (A) आर्थिक दण्ड का भागी होना (धारा 13 के अनुसार)-
(i) यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के किसी प्रावधान, नियम, अधिसूचना, निर्देश अथवा आदेश का उल्लंघन करता है अथवा किसी शर्त का उल्लंघन करता है, तो न्याय निर्णय होने के बाद उस व्यक्ति पर उल्लंघन से सम्बन्धित राशि के तीन गुनी राशि तक का जुर्माना किया जा सकता है।
(ii) यदि उल्लंघन से सम्बन्धित राशि को मात्रात्मक रूप में प्रकट नहीं किया जा सकता तो दोषी व्यक्ति पर 2 लाख रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।
(iii) यदि ऐसा उल्लंघन जारी रहता है तो उस व्यक्ति पर 5,000 रुपये प्रतिदिन तक का जुर्माना तब तक किया जा सकता है जब तक कि ऐसा उल्लंघन जारी रहता है।
(B) करेन्सी, प्रतिभूति, सम्पत्ति आदि के जब्त करने का निर्देश– न्यायिक प्राधिकारी उपर्युक्त वर्णित उल्लंघनों की दशा में जुर्माना लगाने के अतिरिक्त ऐसे उल्लंघन से सम्बन्धित कोई करेन्सी, प्रतिभूति, मुद्रा या अन्य सम्पत्ति को जब्त करने का भी आदेश दे सकता है।
(C) धारित विदेशी विनिमय को भारत लाने या भारत के बाहर रखने का निर्देश– न्यायिक अधिकारी यह निर्देश भी दे सकता है कि उल्लंघन करने वाले व्यक्ति द्वारा धारित विदेशी विनिमय या उसके किसी भाग को भारत में लाया जायेगा अथवा भारत के बाहर ही रखा जायेगा। , ,
(II) न्यायिक अधिकारी के आदेशों के पालन सम्बन्धी नियम (Enforcement of Order of Adjudicating Authority) (धारा 14)- न्यायिक अधिकारी के आदेशों के पालन सम्बन्धी प्रावधान निम्नानुसार है-
1, जुर्माने की राशि का भुगतान न करने पर कारावास– यदि दोपी व्यक्ति जुर्माने के भुगतान का नोटिस प्राप्त होने के 90 दिन के भीतर जुर्माने की राशि का भुगतान नहीं करता तो उसे कारावास की सजा दी जा सकती है। किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी अथवा कारावास की सजा का आदेश देने से पूर्व न्यायिक प्राधिकारी उसे अपने समक्ष निर्धारित तिथि को उपस्थित होने का नोटिस देगा। न्यायिक प्राधिकारी द्वारा उस व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी करना पड़ेगा। इस नोटिस के द्वारा उससे यह पूछा जायेगा कि उसे क्यों नहीं कारावास, भेज दिया जाये। न्यायिक अधिकारी निम्नांकित दशाओं में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी या कारावास के आदेश दे सकता है-
(i) यदि दोषी व्यक्ति ने जुर्माने की वसूली को रोकने के उद्देश्य से उसके नोटिस जारी करने के बाद बेईमानी से अपनी सम्पत्ति के कि सी भाग-का-हस्तान्तरित कर दिया है अथवा छिपा लिया है या इधर-उधर कर दिया है।
(ii) यदि दोषी व्यक्ति के पास नोटिस जारी होने के समय जुर्माने की पूरी रकम या उसके बड़े भाग को चुकाने की स्थिति में होते हुये भी जुर्माने को चुकाने में लापरवाही करता है या इन्कार करता है।
2, गिरफ्तारी के वारण्ट का निर्गमन– यदि न्यायिक अधिकारी इस बात से सन्तुष्ट हो,, जाये कि दोषी व्यक्ति कहीं भाग जायेगा तो न्यायिक अधिकारी उस दोपी व्यक्ति की गिरफ्तारी का वारण्ट जारी कर सकता है।
3, गिरफ्तारी के वारण्ट को क्रियान्वित किया जाना– एक न्यायिक अधिकारी द्वारा निर्गमित गिरफ्तारी के वारण्ट का क्रियान्वयन किसी अन्य ऐसे न्यायिक अधिकारी द्वारा भी किया जा सकता है, जिसके क्षेत्राधिकार में दोपी व्यक्ति पाया जाता है।
4, दोषी व्यक्ति की न्यायिक अधिकारी के समक्ष उपस्थिति– गिरफ्तारी वारण्ट के आधार पर गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घण्टों के अन्दर (यात्रा में लगने वाले समय को छोड़कर) यथाशीघ्र गिरफ्तारी वारण्ट जारी करने वाले न्यायिक अधिकारी के समक्ष पेश किया जायेगा। परन्तु यदि दोषी व्यक्ति गिरफ्तारी वारण्ट में लिखी गई राशि तथा गिरफ्तारी में हुये व्ययों को गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को चुका देता है तो ऐसा अधिकारी उसे तुरन्त छोड़ देगा।
5, उपस्थित होने पर दोषी व्यक्ति को कारण बताने का अवसर देना– दोषी व्यक्ति । के न्यायिक अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने पर न्यायिक अधिकारी दोषी व्यक्ति को इस बात की सुनवाई का अवसर देगा कि उसे कारावास की सजा क्यों न दे दी जाये।’
6, अभिरक्षा में रखने या जमानत पर छोड़ने का आदेश देना– न्यायिक अधिकारी जाँच पूरी होने तक दोपी व्यक्ति को किसी अधिकारी की अभिरक्षा में रखने अथवा जमानत पर छोड़ने का आदेश दे सकता है। न्यायिक अधिकारी जमानत पर छोड़ने का आदेश तभी देता है जबकि आवश्यकता पड़ने पर दोषी व्यक्ति की उपस्थिति हेतु उसकी सन्तुष्टि के अनुरूप जमानत दे दी गई हो।
7, कारावास में रखने का आदेश– जाँच पूरी होने एवं दोषी पाये जाने पर न्यायिक अधिकारी उस दोषी व्यक्ति को कारावास में रखने का आदेश दे सकता है। यदि न्यायिक अधिकारी दोषी व्यक्ति को कारावास में रखने का आदेश जारी नहीं करता है तो वह गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश देगा।
8, प्रमाण– पत्र के निष्पादन में कारावास में रखे गये व्यक्ति को नजरबन्द रखना-प्रत्येक व्यक्ति जिसे प्रमाण-पत्र के निष्पादन में कारावास में रखा गया है, को निम्नांकित अवधि तक नजरबन्द या निरूद्ध (Detained) रखा जा सकता है-
(i) यदि प्रमाण– पत्र की राशि एक करोड़ रुपये या अधिक की है तो तीन वर्ष तक तथा
(ii) अन्य किसी भी दशा में छ: माह तक ।
परन्तु ऐसे नजरबन्द या निरूद्ध व्यक्ति को कारावास अधिकारी द्वारा तब छोड़ दिया जायेगा जबकि निरुद्ध वारण्ट में उल्लिखित राशि का उसे भुगतान कर दिया जायेगा।
लघुउत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
प्रश्न 1, माल निर्यात के सम्बन्ध में निर्यातक के क्या दायित्व हैं?
(Meerut, 2006)
उत्तर– फेमा के अन्तर्गत माल निर्यात के सम्बन्ध में प्रत्येक निर्यातक के निम्नलिखित कर्तव्य निर्धारित किये गये हैं:-
(i) निर्यात किये जाने वाले माल के सम्बन्ध में रिजर्व बैंक अथवा अन्य किसी अधिकारी को निर्धारित प्रारूप में माल का सही विवरण प्रस्तुत करेगा। इसमें निर्यात किये जाने वाले माल का पूर्ण निर्यात मूल्य भी सम्मिलित होगा। यदि निर्यात करते समय माल का मूल्य निर्धारित नहीं किया जा सकता हो तो उसका बाजार मूल्य देना होगा।
(ii) निर्यातक को निर्यात किये जाने वाले माल के मूल्य के सम्बन्ध में रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार अन्य माँगी जाने वाली सूचना भी उपलब्ध करानी होगी।
Foreign Exchange Management Act
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