Mis Communication Barriers And Breakdown and Improvements in Hindi

Mis Communication Barriers And Breakdown and Improvements in Hindi

Mis Communication Barriers And Breakdown and Improvements in Hindi
Mis Communication Barriers And Breakdown and Improvements in Hindi

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Interruption

अभिप्राय: यदि प्रेषक द्वारा प्रेषित विचार अथवा सुचना प्राप्तकर्ता तक उसी रूप (form) एंव भाव (sense)  में पहुच जाये जिस रूप एंव भाव में प्रेषक उसे पहुचना छटा है तो संचार का उदेश्य पूरा हो जाता है , ऐसा मन जाता है | परन्तु सदैव ऐसा सम्भव नही होता है अनेकानेक कारणों से प्रेषक द्वारा प्रेषित सन्देश अपने मूल्य रूप एंव भावना के प्राप्तकर्ता तक नही पहुच पता है तथा उसका रूप विकर्त हो जाता है जिसके कारन संचार का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है , जब इस प्रकार से सन्देश अनेक अवरोधों के कारन अपना अर्थ ही खो देता है , अथवा सन्देश का अर्थ ही बदल जाता है , तो इसे मिथ्या बोधित अथवा भ्रमित संचार (mis- communication)  कहते है |

 सम्प्रेषण की बाधाये सम्प्रेषण के अवरोधक




सम्प्रेषण करते समय निम्न प्रकार की बढ़ाये आ सकती है | जो निम्नलिखित है |

(1) भाषा से सम्बंधित बाधाये (Sematic Barriers) –  इस प्रकार की बाधाये एंव रूकावटे उन कारणों से उत्पन्न होती है जिनका सम्बन्ध भाषा से होता है संचार में प्रयुक्त शब्दों, चिन्हों, तथा आंकड़ो की प्राप्तकर्ता द्वारा अपने अनुभव के आधार पोर व्याख्या की जाती है जिससे शंका की स्थिति उत्पन्न की जाती है | विभिन्न शब्दों और चिन्हों के विभिन्न अर्थ निकलने , ख़राब शव्दावली और व्याकरण के अधूरे ज्ञान के कारन इस प्रकार की बढ़ाये उत्पन्न होती है भाषा सम्बन्धी प्रमुख बाधाये निम्नलिखित है –

(i)  अनेकार्थी शब्दों का प्रयोग –  जब संचार में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिनके अनेक अर्थ हो सकते है यह हो सकता है की प्रेषक ने जिस अर्थ में शब्द का प्रयोग किया है , प्राप्तकर्ता उसको उसी रूप में न समझकर कोई एनी अर्थ समज ले | इस स्थिति में संचार पूर्ण और सफल नही हो सकेगा | मफ्री के अनुसार अंग्रेजी शब्द RUN के 110 अर्थ निकाले जा सकते है | अत: अनेकार्थी शब्दों के प्रयोग के कारन संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो जाती है |

(ii) तकनीकी भाषा का प्रयोग –  कुछ तकनीकी व् विशिस्ट समूह वर्ग के व्यक्ति, जैसे – डॉक्टर , इंजीनियरिंग सम्प्रेशंग्राही के लिए कई प्रकार की समस्याए उत्पन्न करता है, क्योंकि इनका प्रसारण/संचरण व् समझ प्रत्येक व्यक्ति के लिए आसान नही होता | अत: तकनीकी भाषा शैली सम्प्रेषण में बाधा उत्पन्न करती है |

(iii) अस्पष्ट मान्यताये –  प्राय: सम्प्रेषण इस मान्यता के आधार पर किया जाता है की सम्प्रेशंग्राही सम्प्रेषण की आधारभूत प्रष्ठभूमि से पूर्णत: परिचित है परन्तु अधिकांश स्थितियों में यह मान्यता गलत साबित हो जाती है | इसलिए सम्प्रेशंग्राही को सन्देश की विषम वस्तु छेत्र के सम्बन्ध में जानकारी का पूर्वानुमान अत्यंत आवश्यक है अर्थात सम्प्रेषण क्रिया में सन्देश में निहित मान्यताओ की स्पष्टता सम्प्रेषणग्राही हेतु अत्यंत अनिवार्य है |

(iv) अस्पस्ट पूर्ण धारणाये – प्रत्येक सन्देश प्राय: अस्पष्ट पूर्ण धारणाओ से परिपूर्ण  होता है जो की सम्प्रेषण में बाधाये उत्पन्न करता है क्योंकि सम्प्रेषण सन्देश में समहित समस्त बातो की विस्त्रत जानकारी प्रेशकग्राही को नही देता बल्कि वह यह पूर्व अनुमान लगा लेता है की संदेशग्राही इन बातो को स्वय समझ पाने में सक्षम है |

(v) त्रुटिपूर्ण शब्द में अभिव्यक्त सन्देश – अर्थहीन, निर्बल शब्दों में अभिव्यक्त सन्देश सदैव सम्प्रेषण का अर्थ बदल देता है | अत: सदैव सन्देश की गलत व्याक्य की सम्भावना प्रबल रहती है | यह स्थिति तब अधिक जटिल हो जाती है , जब शब्दों के गलत चुनाव के अतिरिक्त सन्देश में अशिष्ट शब्दों का प्रयोग , वाक्यों का गलत कर्म व् उनकी पुनरावर्ती होती है |

(vi) लोकोक्ति एंव मुहावरों का प्रयोग – कभी- कभी प्रेषक सन्देश को आकर्षक बनाने के लिए लोकोक्ति एंव मुहावरों का पोर्योग करता है , लेकिन प्राप्तकर्ता के मुहावरों का अर्थ न कर्मचारियो को संबोधित करते हुए कहा “आजकल गलाकाट प्रतियोगिता चल रही है अत: हमे इसमें टिकने के लिए कड़ी म्हणत करनी होती |” कुछ कर्मचारी जो नये नियिक्त हुए थे उन्होंने समझा की वास्तव में लोगो के गले कटे जा रहे है और वे डर गये | इस प्रकार लोकोक्ति एंव मुहावरों का प्रयोग प्रभावी संचार के मार्ग में कभी कभी बाधा उत्पन्न करता है |

2) भौतिक एंव यांत्रिक अवरोध (PHYSICAL OR MECHANICAL BARRIERS) –




दोषपूर्ण भौतक एंव यांत्रिक व्यवस्था के कारण भी संचार में अवरोध उत्पन्न होता है

भौतक एंव यांत्रिक अवरोध निम्न प्रकार है |-

(i)  शोर – शोर की परिभाषा एक ऐसे उपोद्र्वी तत्व के रूप में की जा सकती है जो पोरेशक अथवा प्राप्तकर्ता की एकाग्रता भंग क्र देता है तथा उन्हें सन्देश पर ध्यान केन्द्रित करने से रोकता है | शोर के कारन संचार का प्रवाह बाधित होता है जिससे सन्देश अपने पूर्ण एंव सही अर्थ में प्राप्तकर्ता तक नही पहुच पता | मानवीय शोर यातायात के कारन शोर , बिजली के पंखे , कूलर अथवा एनी किसी यंत्र के कारन शोर मशीनों का शोर, ख़राब टेलीफोन लाइन आदि शोर के प्रमुख कारन है मानसिक परेशानी भी सन्देश को सुनने और समझने में बाधा उत्पन्न करती है |

(ii)  माध्यम में खराबी –  जिस यंत्र को संचार के माध्यम के रूप में चुना गया है , यदि उसमे गड़बड़ी हो जाते तो इससे संचार बाधित होता है | टेलीफ़ोन लाइन, टेलेक्स मशीन में खराबी अथवा ध्वनी पोर्सरन यंत्र(माइक) का ठीक से कम करना आदि माध्यम में खाराबी के उदहारण है \

(iii) समय एंव दुरी –  कारखानों में प्राय: विभिन्न पालियो में कार्य होता है तथा पोर्त्येक पली में स्टाफ प्राय: बदल जाता है इस समय अवरोध के कारन उचित प्रकार से संचार नही हो पाता | इसी प्रकार यदि सन्देश भेजने एंव प्राप्त करने वाले के बिच दुरी अधिक है तो यह भी संचार  में रूकावट का कारन बन सकता है | यधपि आधुनिक युग में सम्प्रेषण के शीघ्रगामी साधनों जैसे टेलीफ़ोन, टेलेक्स, इन्टरनेट आदि ने इस दुरी को कम कर दिया है ., लेकिन जिन छेत्रो में इनका प्रयोग नही हुआ , वहा पर यह समस्या अभी भी विधमान है |

(iv) अपर्याप्त अथवा जरुरत से अधिक सुचना – जिस प्रकार अपर्याप्त सुचना सन्देश को पूरा करने में असफल होती है उसी प्रकार जरुरत से अधिक सुचना सन्देश के लक्ष्य को ही समाप्त क्र देती है | अत्यधिक सन्देश लगातार प्राप्त होने पर प्रभावी श्रवण नही हो पता तथा थकन बेचैनी आदि पैदा हो सकती है | जो की प्रभावी संचार में बाधा उत्पन्न करती है |

(iv) कम रोशनी – ख़राब अथवा कम रौशनी के कारन भी प्राय: लिखित अथवा सांकेतिक संचार में बाधा उत्पन्न होती है |

ORGANISATIONAL BARRIERS  संगठनात्मक अवरोध –

दोषपूर्ण संगठन ढांचे तथा दोषपूर्ण नीतियों एंव नियमो के कारण , संचार के मार्ग में आने वाली बाधाओ को संगठनात्मक अवरोध निम्न प्रकार है –




(i) संस्थान के नियम और व्यवस्था – संस्था के कठोर नियम तथा नीतिया भी संचार के स्वतंत्र बहाव में बाधा उत्पन्न करते है | यदि संसथान में लिखित सन्देश की निति लागु है तो इससे सन्देश भेंजे में देरी हो जाती है और कुछ ऐसे सन्देश जिन्हें तुरंत प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है उनमे अनावश्यक विलम्ब हो जाता है | कभी कभी ऐसा भी होता है की महत्वपूर्ण सन्देश छूट जाता है अथवा उनमे हेर-फेर क्र दी जाती है | इससे संचार के मार्ग में अवरोध उत्पन्न हो जाता है |

(ii) गलत माध्यम का चुनाव –  जहाँ उक्प्युक्त संचार माध्यम संचार की प्रभावशीलता को बढ़ा देता है व्ही गलत माध्यम का चुनाव संचार में अवरोध का कार्य करता है | प्रत्येक माध्यम प्रत्येक अवस्था में उचित नही हो सकता | यदि बिक्री मनेजर द्वारा आमने-सामने बातचीत की संचार व्यवस्था की जाती है तो वह टेलीफ़ोन से अधिक उचित होगी | इसी प्रकार किसी कर्मचारी के श्रेस्ठ निष्पादन पर खुश होकर प्रबंधक यदि शाबाशी देना चाहता है तो चपरासी के हाथ पात्र भेजना ठीक नही होगा, बल्कि उसे स्वयं व्यक्तिगत रूप से कर्मचारी को बधाई देनी चाइए |

(iii) स्थान सम्बन्धी ख़राब व्यवस्था – कार्यलय में क्रमचारियो के बैठने की व्यवस्था आंतरिक साज सज्जा आवागमन का रास्ता आदि तत्वों पर भी संचार प्रक्रिया निर्भर करती है | यदि आंतरिक साज सज्जा ठीक नही है तो प्रेषक एंव प्राप्तकर्ता के बीच सीधा सम्पर्क नही हो पता जिससे संचार में अवरोध उत्पन्न होता है |

(iv) संचार उपकरणों एंव सामग्री की कमी –  यदि संगठन में संचार सामग्री एंव उपोक्र्नो जैसे स्टेशनरी, कंप्यूटर, इन्टरनेट, टेलीफ़ोन आदि की कमी है तो इससे संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है |

 

PERSONAL BARRIERS (व्यक्तिगत अवरोध )



सम्प्रेषण एक अंतव्रेयक्कितक संबंधो की प्रक्रिया है | एक सम्प्रेषण प्रक्रिया मने प्रेषक व प्राप्तकर्ता के बीच विभिन्न मात्राओ व स्तरों में अंतव्रेयक्कितक सम्बन्ध निहित होता है उनका व्यवहार, शारीरिक हाव–भाव रूचि आदि सन्देश के वास्तविक स्वरूप को बदलने की व्यक्तिगत अवरोध कहते है संचार के मार्ग में प्रमुख व्यक्तिगत अवरोध निम्न प्रकार है –

(i) स्थिति बोध या पद स्थिति – संगठन में व्यक्ति पद की स्थिति प्रभावी संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न  करती है | उच्च अधिकारी, अधीनस्थ अधिकारियो से इसलिए विचार – विमर्श नही करते क्योंकि उन्हें लगता है की ऐसा करने से उनकी प्रतिष्टा कम हो जाएगी तथा अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी से इसलिए विचार विमर्श नही करते की कंही वे अप्रसन्न न हो जाये | यह स्थिति संचार में अवरोध उत्पन्न क्र देती है |

(ii) भावनाएं –  सन्देश प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता की नकारात्मक भावनाए जैसे घर्णा गुस्सा , बातचीत में टोकने का द्र्श्तिकोण इत्यादि भी संचार में बाधा उत्पन्न करते है | उतेजित घबराये हुए , डरे हुए और विचलित व्यक्ति उचित ढंग से नही सोच सकते तथा अपने सन्देश को उचित ढंग से प्रेषत नही क्र सकते इसी पारकर प्रक्त्क्रता के मूड पर भी सन्देश का प्रभावी संचार निर्भर करता है | असामान्य मूड होने पर वह सन्देश को प्रभावी ढंग से ग्रहण नही क्र पायेगा |

(iii) व्यवहार एंव द्रष्टिकोण – सन्देश प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता के व्यवहार एंव द्रष्टिकोण भी प्रभावी संचार को प्रभावित करते है | यदि कोई सन्देश प्राप्तकर्ता के व्यवहार एंव द्रष्टिकोण से मेल खता है तो उस संन्देश पर उसकी प्रतिक्रिया न्करात्म्की होगी इस प्रकार सन्देश प्रेषक एंव प्राप्तकर्ता का व्यवहार एंव द्रष्टिकोण के विपरीत है तो उसकी प्रतिक्रिया नकारात्मक होगी | इस प्रकार सन्देश प्रेषक एंव प्राप्तकर्ता का व्यवहार एंव द्रष्टिकोण अलग अलग होने पर संचार के मार्ग में बन्ध उत्पन्न होती है |

(iv) पूर्ण ध्यान न देना – कई बार देखा जाता है की संम्देश प्राप्तकर्ता की सन्देश में कोई रूचि नही होती | लम्बी-लम्बी रिपोर्टो, नोटिसो, गश्ती पत्रों आदि को लोग पढना नही चाहते | बहुत से व्यक्ति ध्यानपूर्वक कम सुनते है | वे यह सुनना नही चाहते की दुइसरे क्या ख रहे है बल्कि वे वही सुनते है जिसे वे चाहते है | कम ध्यान देने व कम सुनने की यह आदत हिउ प्रभावी संचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है |

(v)  उच्च अधिकारियो का व्यवहार – जब व्यवसाय में अधिकारी अपने अधिस्ठो पर अविश्वास करते है अथवा उनकी छमता पर संदेह करते है तो वे उनके साथ ओपूर्ण रूप से विचार विमर्श नही करते | इसे प्रभावी संचार में अवरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है |
अन्य बाधाये – एक सम्प्रेषण प्रक्रिया में सन्देश के सवाहन प्रवाह के लिए अनुचित माध्यमो का प्रयोग, दोषपूर्ण, यांत्रिक साधन, सम्प्रेषण का दवाब व संप्रेषक/प्राप्तकर्ता की सामाजिक-सांस्क्रतिक प्रष्ठभूमि की विभिन्नताए आदि सम्प्रेषण के प्रभाव को कम, कर देती है |
 HOW TO REMOVE BARRIERS TO COMMUNICATIO N   संचार के अवरोधो को कैसे निराकरण किया जा सकता है ?

एक व्यवसायिक संगठन में संचार के महत्व को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है की संचार के मार्ग में आने वाले अवरोधों को दूर किया जाये | यदि इन अवरोधों को दूर नही किया गया , तो संगठन संचार के लोगो से वंचित रह जायेगा | संचार प्रक्रिया को सुधार क्र उसे अधिक प्रभावशाली बनाने हेतु , संचार  में आने वाली बाधाओ के निराकरण हेतु , कुछ सुझाव निम्नलिखित है –

(i) सन्देश की स्पष्टता एंव पूर्णता – संप्रेषित किया जाने वाला सन्देश उदेश्य की द्रष्टि से पौर्ण एंव स्पष्ट होना चाइये | सन्देश में भ्रमपूर्ण अनेकार्थी शब्दों मुहावरों एंव तकनीकी शब्दों का प्रयोग नही करना चाइये | सन्देश झा तक संभव हो लिखित तथा संक्षिप्त होना चाहिए |

(ii) सरल व स्पष्ट भाषा का प्रयोग – सम्प्रेषित सन्देश में प्रयुक्त भाषा अत्यंत सरल, समझने योग्य व् प्राप्तकर्ता के ग्रहय योग्य होनी चाहिए ताकि प्राप्तकर्ता सन्देश को उसके मौलिक स्वरूप में ग्रहण क्र उस सन्देश के वास्तविक अर्थ को समझ सके |

(iii) आधुनिक संचार उपकरणों की उपलब्धता – संगठन में आधुनिक संचार उपकरणों जैसे कंप्यूटर टेलीफ़ोन आदि को पर्याप्त मात्रा में उपोलाब्ध कराया जाना चाहिए | इससे संचार अवरोधो दो दूर करना संभव हो सकेगा |

(iv) भावनाओ पर सम्पूर्ण नियंत्रण –  एक सफल व प्रभावी सम्प्रेषण के लिए भावनाओ पर दोनों ही पक्षों संप्रेषक/प्राप्तकर्ता का नियंत्रण होना आवश्यक है | भावनाओ पर नियंत्रण न होने से सन्देश के प्रवाह में बाधा उत्पन्न होगी |

(v) प्रबन्धको तथा क्रमचारियो के बीच मधुर सम्बन्ध – संचार के अवरोधों को दूर करने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है की संगठन में प्रबन्धको तथा कर्मचारियों के बीच मधुर सम्बन्ध हो | औधोगिक सम्बन्ध मधुर होने पर संचार अवरोधों को काफी हद तक दूर किया जा सकता है |
(vi) स्वस्थ वातावरण – संचार आरम्भ करने से पूर्व सन्देश प्रेषक तथा प्राप्तकर्ता को स्वस्थ वातावरण पैदा करना चाहिए क्योंकि सहयोग से सहयोग पनपता है और विश्वास से विश्वास | उच्च प्रबंध का यह उत्तर्दयितव है की वह स्वस्थ वातावरण बनाने के लिए पहल करे | स्वस्थ वातावरण में संचार प्रभावपूर्ण ढंग से हो सकता है |

(vii) दो तरफ़ा संचार को बढ़ावा – एक तरफा संचार से गलत फहमिया उत्पन्न हो सकती है , इसलिए संचार दो तरफा तथा उचित प्रत्युतर के साथ होना चाहिए | दो तरफा संचार के द्वारा सन्देश को तोड़-मरोड़कर पहुचने से रोका जा सकता है |

(viii) शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग – संचार करते समय शारीरिक भाषा का प्रभावी प्रयोग करना चाहिए | प्रत्येक सन्देश के साथ सहायक उचित हाव-भाव तथा उचित ध्वनी होनी चाहिए | इससे सन्देश प्राप्तकर्ता उसे ठीक अर्थ में समझ सकेगा |
निष्कर्ष (Conclusion) –  एक संगठन के संचार में सामान्यत: विभ्रम की सम्भावना होती है यह समस्या और भी जटिल तब हो जाती है जब संप्रेषित सन्देश जटिल होता है | उपरोक्त उपायों के द्वारा एक संचार प्रक्रिया को सम्पूर्णता प्रदान करने में सहायता मिलती है तथा सन्देश में विभ्रम की सम्भावना कम-से-कम रहती है |


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