Meaning Of Industrial Sickness Reason Business Environment Study Material

Meaning Of Industrial Sickness Reason Business Environment Study Material

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Meaning Of Industrial Sickness Reason Business Environment Study Material
Meaning Of Industrial Sickness Reason Business Environment Study Material

भारत में औधोगिक क्षेत्र की समस्याओ में एक प्रमुख समस्या औधोगिक रुग्णता की समस्या है | इस औधोगिक रुग्णता का दुष्प्रभाव न केवल सेवाओ को त्तथा कर्मचारियों पर पड़ता है वरन यह सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था एव समाज को प्रभावित करती है |



( Meaning of Industrial Sickness )औधोगिक रुग्णता से आशय—

Meaning of Industrial Sickness Reason Business Environment Study Material : औधोगिक रुग्णता से आशय उस अवस्था से है जिसमे औधोगिक इकाईयो का घाटा निरन्तर बढ़ता जाता है और वे आर्थिक द्रष्टि से गैर-जीवन योग्य बन जाती है | रुग्ण औधोगिक इकाईयो में श्रम-शक्ति व्यर्थ जाती है तथा विनियोजत पूजी गैर-उत्पादक परिसम्पतियो में परिवर्तित होने लगती है |




( Due to Opiate Morbidity) औघोगिक रुग्णता के कारण

उत्पादन क्षमता का अपूर्ण उपयोग— उधोगो में कार्यशील पूँजी के अभाव माँग में कमी एव कच्चे माल की कमी के कारण उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग नही हो पता | इससे ये इकाईया धीरे-धीरे रुग्णव्यवस्था में पहुच जाती है |

  1. प्रबन्ध कुशलता का अभाव— उधोगो में, अकुशल प्रबन्धन भी एक बड़ी समस्या है | अप्रशिक्षित प्रबन्धक वर्ग, उत्पादन, वित्, विपणन एव कर्मचारीयो के बारे में जब गलत निर्णय ले लेता है तो एक स्मर्द्धिशाली व्यवसाय भी पतन के गर्त में चला जाता है | कार्यशील पूँजी का अकुशल उपयोग, मजदूरी, वेतन-व्रद्धि, मानव शक्ति नियोजन तथा प्दोंती सम्बन्धी दोषपूर्ण नीतिया भी प्रबन्धन-समस्याओ का ही एक स्वरूप है |
  2. वित्त की कमी— वित्त की कमी तथा त्रुटिपूर्ण वित्तीय प्रबन्ध भी ओधोगिक रुग्णता को जन्म देता है | कुछ इकाईया अनुत्पादक पुजीगत सम्पतियो में भारी निवेश कर देती है जिससे उनके सामने किसी न किसी में पूँजी की समस्या बनी रहती है | ये सस्थाए समय पर ऋणों का भुगतान नही कर पाती | अत: रुग्ण उधोगो की ऋणी में आ जाती है |
  3. अप्रचलित एव दोषपूर्ण सयंत्रो का प्रयोग— जिन औघोगिक इकाईयो में अप्रचलित एव दोषपूर्ण सयंत्रो का प्रयोग किया जाता है वे इकाईया शीघ्र ही रुग्ण उधोगो की ऋणी में आ जाती है | ये उधोग वर्तमान में प्रयुक्त की जाने वाली नवीनतम तकनीको की तरह कोई ध्यान नही देते है जिससे प्रियोगिता में नही टिक पाते और उन्हें हानि वहन करनी पडती है |
  4. अनुभव की कमी— प्रवर्तकों के पास अनुभव का अभाव होना परियोजनाओ का गलत चयन तथा त्रुटिपूर्ण परियोजना नियोजन आदि जन्मजात रुग्णता को जन्म देते है |
  5. दुर्बल औधोगिक सम्बन्ध— अनेक बीमार इकाईयो में औधोगिक सम्बन्धो की दुर्बलता के कारण भी प्राय: हड़ताल तालेबन्दीया तथा अन्य विविध प्रकार के सघर्ष पाये जाते है जो एक सीमा के बाद सस्था को अवनति के गर्त में ढकेल देते है |
  6. सरकारी नीतिया— कई बार सरकारी नीतियों में परिवर्तन का ओधोगिक इकाईयो पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है परिणाम स्वरूप ये इकाईया रुग्ण हो जाती है उदारीकरण के कारण लघु उधोगो को वहत उधोगो तथा बहुराष्टीय कम्पनीयो से प्रतियोगिता करनी पडती है | प्रतियोगिता में न ठहर पाने के कारण ये इकाईया तो घाटे में चल रही है अथवा रुग्ण हो चुकी है |
  7. आर्थिक शिथील या मन्दी— जिन उधोगो के द्वारा उत्पादित वस्तुओ की माँग लोचपूर्ण होती है उनमे माँग एव पूर्ति के सन्तुलन में थोडा सा अन्तर आने पर बिक्री घटने लगती है तथा आर्थिक शिथिलता की परिस्थितिया उत्पन हो जाती है |

(Measures To Improve Industrial Sickness)औधोगिक रुग्णता के सुधार के उपाय

औधोगिक रुग्णता को दूर करने के लिए सरकार द्वारा किये गये प्रयास—




  1. रुग्ण इकाईयो का स्वस्थ इकाईयो में सविलयन— सरकार ने ऐसी बहुत इकाईयों को आय-कर आदि में छुट देने की नीति को अपनाया है जो रुग्ण इकाईयो के संविलयन अथवा स्म्मिक्ष्ण को तैयार हो | इससे श्रमिक का रोजगार तथा रुग्ण इकाईयो में विनियोजित धन सुरक्षित रहता है |
  2. सरकारी सहायता एव रियायते— जब औधोगिक रुग्णता किसी विशिष्ट घटक के कारण नही होती तथा सम्पूर्ण उधोग में फैली होती है तब सरकार रुग्ण इकाईयो को रीयायित दरो पर वित्त उपलब्ध कराने के साथ-साथ उन्हें करो व उत्पादन शुल्क में छुट देकर सहायता प्रदान करती है |
  3. औधोगिक एव वित्तीय पुननिर्माण बोर्ड— भारत सरकार ने, जनवरी 1987 में औधोगिक एव वित्तीय पुननिर्माण बोर्ड की स्थापना, अस्वस्थ औधोगिक कम्पनी (विशेष प्रावधान) अधिनियम,1985 के तहत की थी, जिसका उदेश्य यह था की बोर्ड वे सभी उपाय करे, जिससे की उधोगो की अस्वस्थता को रोककर उस इकाई को स्वस्थ बनाया जा सके |बोर्ड रुग्ण औधोगिक इकाईयों के लिये आवश्यक निवारक, सुधारक एव उपचारात्मक उपाय निशिचत करता है तथा इन उपायों के प्रभावी किर्यानयवन हेतु प्रयास करता है
  1. प्रबन्ध में परिवर्तन— यदि किसी इकाई की रुग्णता का कारण आन्तरिक कुप्रबन्धक तो सरकार ऐसी इकाई के प्रबन्ध का अधिग्रहण कर सकती है | ऐसी अधिग्रहित इकाई का प्रबन्ध किसी सरकारी सस्थान अथवा सगठन को सांप दिया जाता है | ये सस्थान अस्थायी तोर पर कुछ प्रबन्ध विशेषज्ञों की सेवाए इकाई को उपलब्ध करा सकते है |
  2. परामर्श सहायता— यदि कोई औधोगिक इकाई कच्चे माल के अभाव, अनुपयुक्त तकनीक, हड़ताल अथवा तालेबंद जैसी किसी समस्या के कारण रुग्ण स्थिति में आ गई है तब सरकारी एजेन्सी अपने अनुभव के आधार पर इन समस्याओ के समाधान के लिये उपयक्त परामर्श देतेहै ऐसा करने से रुग्णता की स्थति से निवटने में सहायता मिलती है |




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