Management Accounting Marginal Costing and Absorption Costing

Management Accounting Marginal Costing and Absorption Costing

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सीमान्त लागत विधि एवं अवशोषण लागत विधि (Marginal Costing and Absorption Costing) 

 

सीमान्त लागत का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Marginal Cost)

किसी वस्तु के उत्पादन की मात्रा में एक इकाई की वृद्धि अथवा कमी किये जाने पर कुल लागत में जो परिवर्तन होता है, उसी को सीमान्त लागत कहते हैं। 

आई. सी. एम. ए., लन्दन के अनुसार, “उत्पादन की किसी दी हुई मात्रा में एक इकाई को वृद्धि या कमी करने से सम्पूर्ण लागत में जो परिवर्तन होता है, उसे सीमान्त लागत कहते हैं।

यह उल्लेखनीय है कि एक इकाई एक अकेली वस्तु हो सकती है अथवा वस्तुओं का एक समूह (lot or batch), एक आदेश या उत्पादन क्षमता का एक स्तर हो सकता हैयदि उत्पादन परिवर्तन में एक से अधिइकाइयों का परिवर्तन होता है तो लागत में कुल परिवर्तन को उत्पादन मात्रा में कुल पारवतन से भाग देकर प्रति इकाई औसत सीमान्त लागत ज्ञात की जा सकती हैउदाहरण के लिए, 100 इकाइया के उत्पादन की कुल लागत 2,000 101 काइयों के उत्पादन की कुल लागत 2,050 कुल लागत में 50₹ वृद्धि को सीमान्त लागत माना जाएगा। 

 

सीमान्त लागत-विधि का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Marginal Costing)

वास्तव में किसी भी वस्तु के उत्पादन में प्राय: दो प्रकार के व्यय किए जाते हैंप्रथम, वे व्यय जिन पर कुछ सीमा उत्पादन की इकाइयों में वृद्धि या कमी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अर्थात् उत्पादन की मात्रा में वृद्धि या कमी करने पर इन व्ययों की रकम में कोई परिवर्तन नहीं होता हैऐसे व्ययों को स्थिर व्ययकहते हैंद्वितीय, कुछ व्यय ऐसे होते हैं, जो उत्पादन इकाइयों में कमी या वृद्धि होने पर उत्पादन की मात्रा के अनुपात में घट या बढ़ जाते हैंइन व्ययों को परिवर्तनशील व्यय कहते हैस्थिर व्यय की यह प्रकृति होती है कि उत्पादन इकाई में वृद्धि होने पर प्रति इकाई स्थिर व्यय कम हा जाता है और इसके विपरीत दशा में बढ़ता जाता हैपरिवर्तनशील व्यय सदैव प्रति इकाई एक समान हैरहता है, चाहे उत्पादन की मात्रा में वृद्धि की गई हो या कमी कर दी गई होसामान्य रूप से यह माजाता है कि कुल व्ययों के स्थिर परिवर्तनशील व्ययों के रूप में बंटवारे द्वारा लागतनियन्त्रण निर्णयन में पर्याप्त सहायता मिल सकती हैइस उद्देश्य के लिए जिस विधि का प्रयोग किया जाता है, सीमान्त लागत विधिकहते हैंसीमान्त लागत विधि को प्रत्यक्ष लागत विधि (Direct Costing) in परिवर्तनशील लागत विधि (Variable Costing) भी कहा जाता है। 

सीमान्त लागतविधि लागत सूचनाओं को प्रदर्शित करने की एक विशेष तकनाक लाभनियोजन, लागतनियन्त्रण तथा प्रबन्धकीय निर्णयों में सहायक होती हैइस विधि उत्पादन लागत में केवल परिवर्तनशील लागतों को ही सम्मिलित करते हैं तथा स्थिर लागते उस लाभों से अपलिखित की जाती हैं जिसमें वे उदय होती हैंविक्रय मल्य से परिवर्तनशाल र लागत को घटाकर जो शेष बचता है उसे अंशदान (Contribution) कहते हैंअंशदान में की स्थिर लागतों को घटाकर शुद्ध लाभ ज्ञात किया जाता हैइस प्रकार सीमान्त लागतवा स्थिर लागतों को आवधिक लागतें (Period Costs) एवं परिवर्तनशील लागतो का (Product Costs) माना जाता है। 

अटस, करी एवं फ्रैंक के अनुसार, “सीमान्त लागत विधि लागत निर्धारण की एक ऐसी विधि है, अन्तर्गत उत्पादों को केवल ऐसी लागतों से ही प्रभारित किया जाता है जो प्रत्यक्ष रूप से मात्रा के जिसके अन्त साथ परिवर्तित होती हैं। 

डी. जोसेफ के अनुसार, “सीमान्त लागत विधि वर्तमान उत्पादन स्तर से एक इकाई अधिक के जनके कारण कुल लागत में हुए परिवर्तन को निर्धारित करने की तकनीक है।” 

स्पष्ट है कि सीमान्त लागविधि प्रक्रिया लागत, जॉब. लागत. परिचालन लागत. इत्यादि की तरह की पृथक् विधि नहीं है वरन् उत्पादन मात्रा में परिवर्तन होने पर लागत और लाभ में परिवर्तन के अध्ययन और विश्लेषण की विधि है। 

सीमान्त लागत विधि की मान्यताएं  (Assumptions of Marginal Costing)

(1) कारखना (निर्माणी), प्रशासन और विक्रय एवं वितरण व्ययों इन सभी को स्थिर एवं वर्तनशील लागतों में विभाजित किया जा सकता है। 

(2) उत्पादन की प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत उत्पादन के सभी स्तरों पर स्थिर (constant) बनती है अर्थात् कुल परिवर्तनशील लागत उत्पादन की मात्रा के अनुपात में परिवर्तित होती है। 

(3)परिचालन क्रिया के सभी स्तरों पर प्रति इकाई विक्रय मूल्य स्थिर रहता है

(4) त्पादन के सभी स्तरों पर कुल स्थिर लागत अपरिवर्तित रहती है। 

(5) विद्यमान स्तर से धिक उत्पादन किए जाने पर केवल परिवर्तनशील लागते ही अतिरिक्त लागत के रूप में आती हैं। 

सीमान्त लागत-विधि की विशेषताएँ  (Characteristics of Marginal Costing)

(1) कुल स्थिर लागत उत्पादन मात्रा के घटने या बढ़ने पर एक समान होती है तथा उसमें कोई परिवर्तन नहीं होता। 

(2) जैसेजैसे उत्पादन में वृद्धि होती चली जाती है, प्रति इकाई स्थिर लागत कम होती जाती है। 

(3) कुल परिवर्तनीय लागत उत्पादन में वृद्धि के साथसाथ आनुपातिक रूसे बढ़ती है तथा उत्पादन में कमी होने पर अनुपातिक रूप से कम होती है

(4) प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत पर उत्पादन में कमी या वृद्धि का कोई प्रभाव नहीं पड़तायह सदैव एक समान रहती है। 

(5) स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत का योग कुल लागत कहलाता है। यह कुल लागत उत्पादन में वृद्धि के साथसाथ बढ़ती जाती है, किन्तु प्रति इकाई कुल लागत में उत्पादन में वृद्धि के साथसाथ कमी होती चली जाती है। 

(6) वर्तमान स्तर से अधिक जितनी भी इकाइयाँ उत्पादित की जायेंगी उनके उत्पादन के लिए केवल परिवर्तनशील लागत अतिरिक्त रूप से लगेगी। 

(7) सभी व्ययों में स्थिर तथा परिवर्तनशील व्ययों को अलग किया जाता है। 

(8) सीमान्त लागतविधि के अन्तर्गत विक्रय आगम (Sales Revenue) में से सीमान्त लागत को घटाकर अंशदान या दत्तांश ज्ञात करते हैं एवं इसके बाद अंशदान में से स्थिर व्ययों को घटाकर शुद्ध लाभ ज्ञात करते हैं। 

(9) स्थिर लागत को आवधिक लागत (Period Cost) माना जाता है एवं उसे सम्बन्धित अवधि के लाभहानि खाते में दर्शाया जाता है जबकि परिवर्तनशील अर्थात् सीमान्त लागत को उत्पाद लागत (Product Cost) माना जाता है। 

(10) केवल परिवर्तनशील लागतों को ही उत्पाद की लागत में जोड़ा जाता हैस्थिर लागतों को अशटान में से वसल (Recover) किया जाता है। 

(11) तैयार एवं अर्द्धनिर्मित माल के स्टॉक का मूल्यांकन सीमान्त लागत के धार पर किया जाता है। 

(12) समविच्छेद विश्लेषण या लागतमात्रा लाभ विश्लेषण सीमान्त लागतविधि का एक अभिन्न अंग है। 

सीमान्त लागतपद्धति की सीमाएँ (Limitations of Marginal Costing)

सीमान्त लागतपद्धति के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी तकनीक होने के बावजूद भी इसकी की सीमाएँ हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं 

(1) लागतों के वर्गीकरण में कठिनाई (Difficulties in Division of Costs)

(2) सभी व्यवसायों के लिये उपयुक्त नहीं (Not Suitable for all Types of Business)

(3) मूल्यनिर्धारण का अनुपयुक्त आधार (Inappropriate Basis of Pricing)

(4) तलनात्मक अध्ययन में कठिनाइयाँ (Difficulties in Comparative Study)

(5) स्कन्ध का गलत मूल्यांकन (Wrong Valuation of Stock)

(6) लागत नियन्त्रण में असक्षमता (Incapability in Cost Control

 

सीमान्त लागत-विधि के प्रयोग/उपयोग (Uses/Applications of Marginal Costing)

(1) बनाओ या खरीदो के निर्णय में सीमान्त लागतपद्धति का प्रयोग (Use of Marginal Costing in Make or Buy Decisions): बनाओ या खरीदोकी समस्या व्यावसायिक संस्थाओं के लिए ऐसी समस्या है जो इनके समक्ष निरन्तर उत्पन्न होती रहती है और जिनके सम्बन्ध में प्रबन्ध को निर्णय लेना होता हैउत्पाद के निर्माण में प्रयोग होने वाले पार्ट का उत्पादन, उत्पादक स्वयं अपने कारखाने में कर सकता है या दूसरे उत्पादक से खरीद सकता हैबनाओ या खरीदो की समस्या उन निर्माताओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जो संयोजन (Assembling) द्वारा उत्पाद को तैयार करते हैंजैसे साइकिल निर्माता, मोटर गाड़ी निर्माता, जेनेरेटर निर्माता, हवाई जहाज निर्माता, पंखा निर्माता आदिउदाहरण के लि, साइकिल निर्माता साइकिल की घण्टी का निर्माण स्वयं कर सकता है या तैयार घण्टी अन्य उत्पादकों से खरीदकर अपनी साइकिलों में प्रयोग कर सकता है। 

‘बनाओं या खरीदोसम्बन्धी निर्णय लेते समय निम्नलिखित दो तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ता है 

(1) सम्बन्धित वस्तु, पार्ट या अवयव को क्रय करने पर बाजार में आपूर्तिकर्ताओं को दिया जाने वाला मूल्या

(2) सम्बन्धित वस्तु, पार्ट या अवयव को स्वयं के कारखाने में उत्पादित (निर्माण) करने की सीमान्त लागत। 

यदि उक्त त्पाद या अवयव की सीमान्त लागत क्रय मूल्य से कम है तो उक्त वस्तु या अवयव को अपने कारखाने में उत्पादित करना ही लाभप्रद होगा, परन्तु यदि उक्तवस्तु को उत्पादित करने में प्रयोग की जाने वाली क्षमता का प्रयोग अन्य किसी वस्तु के उत्पादन में किया जा सकता है तो ऐसी दशा में उक्त वस्तु को अपने कारखाने में उत्पादित करने का निर्णय तभी लेंगे जबकि उक्त वस्तु को स्वयं उत्पादित करने से होने वाला लाभ, क्षमता के वैकल्पिक उपयोग के लाभ से अधिक होइसके विपरीत यदि उक्त वस्तु या अवयव का क्रय मूल्य उसे स्वयं उत्पादित करने की सीमान्त लागत से कम है तो बाजार से क्रय करना उपयुक्त होगा

(2) उत्पादन बन्द करने का निर्णय (Shut Down Decisions): कभीकभी कुछ व्यापारिक गतिरोधों (जैसेव्यापारिक मन्दी, गला काट प्रतियोगिता आदि) के कारण व्यापारिक क्रियाओं को कुछ मय के लिए स्थगित करना पड़ता हैअतः प्रबन्ध को यह निर्णय लेना होता है कि व्यापारिक्रियाओ को किस बिन्द पर बन्द किया जाये। 

(3) उत्पादन बन्द करने का बिन्दु (Shut Down Point)- सीमान्त लागत लेखांकन तकनीक पर आधारित निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करके कारखाने में उत्पादन बन्द करने के बिन्दु की गणना को जा सकती है 

नोट-दि व्यवसाको चालू रखने से होने वाली हानि उसे बन्द करने से होने वाली हानि से अधिक हो तभी व्यवसाय को अल्पकाल के लिये बन्द करने का निर्णय लेना चाहिये अन्यथा व्यवसाय का चाल रखना ही लाभप्रद होगा। 

जिन स्थिर लागतों को कारखाने को अल्पकाल के लिये बन्द करके रोका जा सकता है जैसेअस्थायी कर्मचारियों का वेतन), उन्हें बचाव योग्य लागतें (Escapable Costs) कहत हा इसक विपरीत कुछ स्थिर लागत ऐसी होती हैं जिन्हें कारखाने को अल्पकाल के लिये बन्द करने पर रोका नहीं जा सकता (जैसेसंयन्त्र के रखरखाव का व्यय, स्थायी कर्मचारियों का वेतन, ब्याज, बीमा आदि) इन्हें बचावअयाग्य लागते (Unescapable Costs) या उत्पादन बन्द करने की लागत (Shut Down cost) कहते हैं। 

व्यवसाय में बचावयोग्य स्थिर लागतों के होने पर कारखाने को चालू रखना तभी तक लाभप्रद रहेगा जब तक कि कुल अंशदान की राशि ऐसी लागतों से अधिक है। 

 

अवशोषण लागत-विधि (Absorption Costing)

अवशोषण लागविधि लागत निर्धारण की एक परम्परागत विधि हैइसकी गणना में स्थिर एवं परिवर्तनशील दोनों ही प्रकार की कुल लागतों को शामिल (अवशोषित) किया जाता हैअत: इसे पूर्ण परिव्ययन अथवा कुल लागविधि (Full Costing or Total Costing Technique) भी कहते हैंअवशोषण लागत विधि में सर्वप्रथम कच्चा माल, प्रत्यक्ष श्रम और प्रत्यक्ष व्यय जोड़कर मूल लागत (Prime Cost) ज्ञाकी जाती हैमें कारखाना व्यय को जोड़कर कारखाना लागत निकाली जाती हैकारखाना लागत में प्रशासिनक व्ययों को जोड़कर उत्पादन लागत और उत्पादन लागत में बिक्री एवं वितरण व्यय जोड़कर कुल लागज्ञात की जाती हैइसके पश्चात् विक्रय की राशि में से कुल लागत को घटाकर लाभ ज्ञात किया जाता है या कुछ लागत में वांछित लाभ जोड़कर विक्रय मूल्य निर्धारित किया जाता है। 

अवशोषण लागत विधि में समस्त लागतों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है(1) निर्माणी अथवा कारखाना लागतें (Manufacturing or Factory Cost), (2) सामान्य प्रशासनिक लागतें (General Administration Cost) तथा विक्रय एवं वितरण लागतें (Selling and Distribution Cost)मस्त कारखाना व्ययों को उत्पाद लागत (Product Cost) माना जाता हैइसमें प्रत्यक्ष सामग्री, प्रत्यक्ष श्रम, प्रत्यक्ष व्यय, परिवर्तनशील कारखाना व्यय तथा स्थिर कारखाना व्यय शामिल किया जाता हैदूसरी ओर प्रशासनिक तथा विक्रय एवं वितरण लागतों को अवधि लागत (Period Cost) माना जाता हैइस लागत विधि में अन्तिम रहतिया का मूल्यांकन कारखाना लागत पर किया जाता है। 

 


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