International Marketing Environment Bcom Notes

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International Marketing Environment Bcom Notes:- In this post, we will give you notes of Principal of Marketing of BCom 3rd year English and Hindi, Marketing Mix Bcom Notes Hindi and English.

 

अन्तर्राष्ट्रीय विपणन पर्यावरण (International Marketing Environment)

 

अन्तर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण का अर्थ (Meaning of International Marketing Environment)

विपणन वातावरण से आशय उन घटकों एवं शक्तियों से है, जो प्रत्येक विपणन फर्म के कार्य संचालन को प्रभावित करते हैं। प्रत्येक फर्म का अपना आन्तरिक विपणन वातावरण होता है, उसी प्रकार वह बाह्य वातावरण से भी प्रभावित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण उन सभी घटकों का योग है जो एक व्यवसाय को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावित करते हैं। देशी विपणन की तुलना में अन्तर्राष्ट्रीय विपणन का वातावरण भिन्नताओं एवं विविधताओं के कारण अत्यन्त चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि इसमें संलग्न फर्मे सामान्यतया विश्व के अनेक देशों में उत्पादों एवं सेवाओं का विपणन करती हैं। अन्तर्राष्ट्रीय विपणन में वही फर्म सफल हो सकती है, जो न केवल अपने विपणन वातावरण का बारीकी से मूल्यांकन करे, वरन् उसी के अनुरूप अपनी विपणन नीतियाँ एवं व्यूह रचनाएँ बनाये।

(1) पारस्परिक निर्भरता – विपणन एवं वातावरण परस्पर रूप से सम्बन्धित एवं अन्तः क्रियाशील हैं।

(2) आन्तरिक एवं बाहा वातावरण प्रत्येक संस्था का वातावरण दो प्रकार का होता है आन्तरिक एवं बाह्य संस्था का अपने आन्तरिक विपणन वातावरण पर तो नियन्त्रण होता है, किन्तु बाहरी वातावरण पर उसका कोई नियन्त्रण नहीं होता है।

(3) भौगोलिक सीमा – प्रत्येक व्यवसाय के बाह्य वातावरण की एक भौगोलिक सीमा होती है।

(4) साधन व सूचनाओं का स्त्रोत – प्रत्येक फर्म वातावरण से अपने लिए आवश्यक संसाधन जैसे कच्चा माल, श्रम, पूँजी, तकनीक, मशीनें आदि प्राप्त करती हैं। वातावरण से ही समंक व सूचनायें भी प्राप्त की जाती हैं।

(5) गतिशीलता – विपणन का समस्त वातावरण गतिशील है। वातावरण के सभी घटकों में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। अतः इन परिवर्तनों के साथ-साथ विपणन की समस्याएँ कार्य पद्धति, उद्देश्य एवं व्यूहरचनाएँ भी बदलती रहती हैं।

(6) जटिलता – व्यवसायी के लिए वातावरण का सही से अध्ययन कर पाना, बाह्य प्रभावों का उचित ढंग से मूल्यांकन कर पाना अत्यन्त कठिन होता है।

(7) अनियन्त्रित घटक – वातावरण के अनेक ऐसे घटक भी हैं जो व्यवसाय के नियन्त्रण के बाहर होते हैं, जैसे- राजकीय नीतियाँ, वैधानिक नियन्त्रण, वैज्ञानिक तकनीकें, सामाजिक दशाएँ, देश का राजनीतिक ढाँचा, विदेशी सहयोग आदि। अतः व्यवसाय को सजगता पूर्वक इनके दुष्परिणामों से बचना होता है।

(8) कौशल – वातावरण के दुष्परिणामों से बचने के लिए एक व्यावसायिक उपक्रम में अनुकूलनशीलता (Adaptability) एवं अभिग्रहणशीलता (Adoptability) का गुण होना चाहिए।

(9) सीमाएँ – वातावरण व्यवसाय के कार्य करने की सीमा रेखायें, नियन्त्रणकारी घटकों, दबावों एवं प्रतिबन्धों को स्पष्ट करता है जिनके भीतर फर्म को कार्य करना होता है।

 

अन्तर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व

  1. दीर्घकालीन व्यूहरचना – वातावरण के समग्र घटकों का वर्णन करके एक फर्म अपनी दीर्घकालीन विपणन नीतियाँ, विकास की योजनाएँ एवं व्यूहरचना तैयार कर सकती है।
  2. क्रिया-योजनाओं का निर्माण – तकनीकी प्रगति नये सामाजिक मूल्यों, सामुदायिक समस्याओं, क्रय प्रारूपों, विनियोग संरचना एवं विभिन्न राजनीतिक धारणाओं का अध्ययन करके ही व्यवसाय की विपणन क्रिया योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं के प्रभावों का आंकलन – प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं में भी जुड़ा रहता है। फर्म के स्थायित्व, लाभप्रदता एवं प्रभावी कार्यप्रणाली के लिए इन व्यापक घटनाओं के प्रभावों का विश्लेषण कर लेना आवश्यक होता है।
  4. प्रतिस्पर्द्धा से सुरक्षा – प्रतिद्वन्द्वियों के उत्पादों, तकनीक, लागत संरचना, बाजार-व्यूहरचना, वितरण श्रृंखलाओं व विक्रय विधियों का अध्ययन करके अपनी बिक्री की सम्भावनाओं को स्थायी रखा जा सकता है।
  5. खतरों के प्रति सतर्कता – आर्थिक नीतियों एवं तथ्यों, जैसे- आय, उपभोग स्तर, क्रय प्राथमिकता, माँग प्रतिस्पर्द्धा आदि में होने वाले परिवर्तन व्यवसाय के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी कर देते हैं। इन सब का सामना करने के लिए वातावरण का मूल्यांकन करते रहना आवश्यक होता है।
  6. नव प्रवर्तन – नये उत्पादों, नयी डिजाइनों एवं उत्पादन की नवीन तकनीकों को अपनाने के लिए नये-नये प्रौद्योगिकीय विकासों एवं वैधानिक प्रगति जानकारी रखना आवश्यक होता है।
  7. लाभ के अवसर – व्यवसाय में लाभ के अवसरों का उपयोग वातावरण के प्रति सजग रहकर ही किया जा सकता है।

अन्तर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण के अंग (Componeats of International Marketing Environment)

अन्तर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण को मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है— आन्तरिक वातावरण व बाह्य वातावरण आन्तरिक वातावरण विपणन फर्म के द्वारा नियन्त्रण योग्य होता है। फर्म यदि चाहे तो आन्तरिक वातावरण के घटकों का प्रबन्ध एवं नियन्त्रण कर सकती है परन्तु बाह्य वातावरण के घटकों पर व्यक्तिगत फर्म का नियन्त्रण नहीं होता है। अन्तर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण के विभिन्न घटकों को अग्र चार्ट की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता है –

 

 

अंतर्राष्ट्रीय विपणन वातावरण

 

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इनका विस्तार से वर्णन इस प्रकार है –

(A) आंतरिक वातावरण (Internal Environment)

हर एक अंतर्राष्ट्रीय विपणन संस्था का स्वयं का निजी आन्तरिक वातावरण होता है। आंतरिक वातावरण के अन्तर्गत उन तत्वों को शामिल किया जाता है जिन पर कम्पनी का नियंत्रण होता है। यदि कम्पनी का प्रवन्ध चाहे तो आंतरिक वातावरण के घटकों पर प्रभावी नियमन एवं नियंत्रण स्थापित कर सकता है। इस प्रकार आन्तरिक वातावरण, प्रबन्ध योग्य एवं नियंत्रण योग्य होता है। आन्तरिक वातावरण में कई घटकों को शामिल किया जा सकता है, उनमें से प्रमुख घटक का वर्णन निम्नानुसार है –

  1. मानवीय संसाधन – किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय विपणन फर्म की सफलता मे उसके मानवीय संसाधनों की महत्वपूर्ण भूमिका है। मानव संसाधन जितना कुशल एवं अभिप्रेरित होगा, उतनी ही संस्था की कार्यकुशलता एवं ग्राहक संतुष्टि बढ़ेग उत्पादन लागत कम होगी।
  2. अनुसंधान एवं विकास – अनुसन्धान करके एक कम्पनी यह जान सकती है कि ग्राहक किस प्रकार के उत्पाद पसंद करते हैं और किस प्रकार के नहीं।
  3. आर्थिक संसाधन – यदि कम्पनी में वित्तीय संसाधन कुशल एवं नियोजित है तो वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सफलता प्राप्त कर सकती है।
  4. कम्पनी की ख्याति – यदि किसी कम्पनी का नाम एवं छवि एक ग्राहकों के दिमाग में जम जाए तो ग्राहक उसी कम्पनी के उत्पाद एवं सेवाएँ करते है।
  5. क्षमता का उपयोग – अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिए व्यवसाय को पूर्ण उत्पादन क्षमता का प्रयोग करना चाहिए।
  6. प्रबन्ध – यदि व्यवसाय का प्रबन्ध अच्छा एवं दूरदर्शी है तो ऐसा व्यवसाय अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अपना स्थान बनाने में सफल हो सकता है।
  7. विपणन – मिश्रण – प्रसिद्ध विपणन विद्वान मेकार्थी ने विपणन-मिश्रण में “चार पी” (Four Ps) बताये थे। ये चार पी क्रमशः प्रोडक्ट प्राइस, प्लेस एवं प्रमोशन है। परन्तु अब विपणन वातावरण में आमूलचूल परिवर्तन होने के कारण मेकार्थी द्वारा प्रतिपादित ‘चार पी’ अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। वर्तमान मे विपणन अवधारणा को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है—

 

International Marketing Environment Notes International Marketing Environment Notes

 

अतः स्पष्ट है कि मेकार्थी के “चार पी” बाजार अभिमुखी (Market Oriented) है, जबकि रॉबर्ट के “चार सौ” ग्राहक अभिमुखी (Customer oriented) हैं। वास्तव में उत्पाद, उत्पाद नहीं है यह ग्राहक को आवश्यकता है। मूल्य, मूल्य नहीं है यह ग्राहक की लागत है। प्लेस, प्लेस नहीं है— यह ग्राह द्वारा क्रय को सुविधाजनक बनाना है। प्रमोशन, प्रमोशन नहीं है वरन् ग्राहक से सन्देशवाहन है, चाहे वह विज्ञापन से हो, चाहे व्यक्तिगत विक्रय से अथवा विक्रय संवर्द्धन से।

“चार पी” से “चार सी” एवं “चार ए” में परिवर्तन एक विपणन फर्म की पूरी सोच एवं मानसिकता में परिवर्तन है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय विपणन भूमण्डलीकरण के प्रभाव से अत्यन्त चुनौतीपूर्ण हो गया है। इसमें सफलता के ही कम्पनियाँ प्राप्त कर पाएगी, जो हर चीज को ग्राहकों के दृष्टिकोण से देखेंगी। इस बदलाव के बाद स्वेटर, स्वेटर नहीं होगा- “सर्दी की गर्माहट” होगा। किताब, किताब नहीं होगी—”ज्ञान का स्रोत” होगी।

इस प्रकार उपरोक्त सभी घटकों पर कम्पनी प्रबन्ध चाहे तो प्रभावी नियमन एवं नियन्त्रण कर सकता है।

 

(B) बाह्य वातावरण (External Environment)

अन्तर्राष्ट्रीय विपणन में बाह्य वातावरण में घटकों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बात यह है कि फर्म का इन पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। बाह्य वातावरण के घटकों का वर्णन इस प्रकार है –

  1. आर्थिक तत्व – आर्थिक वातावरण में अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ, विदेशी सहायता, विदेशी नीति, व्यापार और भुगतान संतुलन, विनिमय दर आदि को शामिल किया जाता है। अतः आर्थिक वातावरण उन समस्त बाह्य शक्तियों का योग है जो किसी व्यावसायिक संस्था की कार्यप्रणाली एवं सफलता को आर्थिक रूप से प्रभावित करती है।
  2. जनसांख्यिकीय वातावरण – जनसांख्यिकी तत्वों से अभिप्राय की आबादी, उसकी बढ़ोत्तरी की दर, आयुवार संरचना (1 से 5 वर्ष के कितने, 60 से 70 वर्ष के कितने इत्यादि), परिवार का आकार, परिवार की प्रकृति (एक या संयुक्त), आय के स्तर इत्यादि जनसांख्यिकी तत्वों का विभिन्न प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं की खपत पर बहुत प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश की जनसंख्या अधिक होगी तो वहाँ वस्तुओं की माँग भी अधिक होगी।
  3. राजनीतिक वातावरण – अन्तर्राष्ट्रीय विपणन में केवल वे ही कम्पनियाँ सफलता प्राप्त कर सकती हैं जो राजनीतिक जोखिम का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन कर उचित निर्णय लेती है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय विपणनकर्त्ता को न केवल वर्तमान बल्कि भावी राजनीतिक वातावरण को भी ध्यान में रखना चाहिए।
  4. वैधानिक वातावरण – विदेशों में व्यापार कर रही कम्पनियों को उन देशों के व्यापारिक कानूनों का पूरा ज्ञान होना चाहिये। कम्पनी को उस देश के कानूनों का, जो उसकी सहायता करते हैं, का भरपूर लाभ उठाना चाहिये तथा जो कानून उसके हितों के विपरीत है, उनका प्रभाव कम करने का प्रयास करना चाहिये।
  5. तकनीकी वातावरण – एक उत्पादक को अपने कार्यक्षेत्र में हो रह तकनीकी प्रगति के विषय में ध्यान रखना अति आवश्यक है।
  6. प्रतिस्पर्द्धा वातावरण – अन्तर्राष्ट्रीय विपणन में निर्यातकों को त्रिस्तरीय प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना होता है- (1) अपने ही देश के अन्य प्रतिस्पर्द्धा करने वालों से, (ii) माल आयात करने वाले देश के उत्पादकों से, तथा (iii) अन्य देशों के निर्यातकर्ताओं से। अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा गलाकाट होती है। वहाँ केवल वे ही निर्यातक बचे रह सकते हैं जो तकनीकी रूप से उन्नत माल कम मूल्य पर बेच सकते हैं।

विदेशी बाजारों में निर्यातक को ब्राण्ड प्रतिस्पर्द्धा का भी सामना करना पड़ता है। कुछ कम्पनियाँ अपने ब्राण्ड की प्रतिष्ठा के आधार पर ही माल बेच सकने की स्थिति में होती हैं।

  1. सांस्कृतिक वातावरण – अन्तर्राष्ट्रीय विपणन के क्षेत्र में संस्कृति शब्द का अर्थ कला, संगीत एवं साहित्य से न लेकर मनुष्य के सामाजिक जीवन रहने की दशा, उसकी सोच, आदतें एवं व्यवहार से लिया जाता है। संस्कृति समाज में रह रहे लोगों के सोचने व आपसी व्यवहार के ढंग को प्रभावित करती है। यह रीति-रिवाज, आदतों, मूल्यों तथा जीवन शैली को प्रभावित करती है। एक -निर्यातकर्त्ता जिस देश में विपणन कर रहा है उस देश की संस्कृति का पूर्व अध्ययन कर लेना चाहिए तथा उन्हीं वस्तुओं का विपणन करना चाहिए जो उस देश के सांस्कृतिक वातावरण के अनुरूप तथा अनुकूल हों।

(8) सामाजिक वातावरण – प्रत्येक समाज अपने सामाजिक मापदण्ड निर्धारित करता है। इन मान्यताओं, मूल्यों एवं मापदण्डों में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कार्यरत कम्पनी को उचित समय अंतराल पर अपने विदेशी बाजार के सामाजिक मूल्यों में आए बदलाव को समझना पड़ता है एवं उसी के अनुरूप अपने विपणन कार्यक्रमों एवं नीतियों में भी उपयुक्त परिवर्तन करने पड़ते हैं।

इस प्रकार एक व्यवसाय का आंतरिक एवं बाहरी वातावरण दोनों ही अन्तर्राष्ट्रीय विपणन को प्रभावित करते हैं। एक व्यावसायिक संस्था अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में तभी सफल हो सकती है यदि वह इन वातावरणीय घटकों को ध्यान में रखकर व्यावसायिक नीतियों एवं नियमों का निर्धारण करती है।

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