BCom 1st Year Business Economics Returns in Scale in Hindi
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पैमाने के प्रतिफल
Returns to Scale
प्रश्न 10-पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं? पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल की विस्तार से व्याख्या कीजिये।
(Avadh, 1995)
अथवा
पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं? पैमाने की विभिन्न प्रतिफल दशाओं को स्पष्ट कीजिये।
(Rohilkhand, 1997)
अथवा
प्रतिफल के नियम एवं पैमाने के प्रतिफल में क्या अन्तर है? पैमाने के प्रतिफल के विभिन्न नियमों की विवेचना कीजिये।
उत्तर–
पैमाने के प्रतिफल का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Returns to Scale)
पैमाने के प्रतिफल से अभिप्राय उत्पादन में होने वाले उस परिवर्तन से हैं जो उत्पादन के सभी साधनों में समान अनुपात में परिवर्तन करने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है । उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन केवल दीर्घकाल में ही सम्भव होता है, अत: पैमाने के प्रतिफल का सम्बन्ध दीर्घकालीन उत्पादन फलन से होता है।
प्रो० लीभाफस्की के अनुसार, “पैमाने के प्रतिफल का सम्बन्ध सभी साधनों में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है, यह एक दीर्घकालीन धारणा हैं |”
प्रो० कोत्तसुवयानी के अनुसार, “पैमाने के प्रतिफल का सम्बन्ध सभी साधनों में समान . अनुपात से होने वाले परिवर्तन के कारण उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है।
मैमाने के प्रतिफल के उपरोक्त विवेचन से पैमाने के प्रतिफल के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य स्पष्ट होते हैं
(1) इसका सम्बन्ध दीर्घकाल से होता है। ये दीर्घकालीन उत्पादन फलन पर आधारित होते हैं।
(2) इनमें सभी साधनों का पारस्परिक अनुपात स्थिर रहता है अर्थात् सभी साधनों की इकाइयों को एक समान अनुपात में परिवर्तित किया जाता है।
(3) उत्पादन की तकनीक स्थिर रहती है।
(4) उत्पादन की गणना मात्रा से की जाती है, मूल्य से नहीं। पैमाने के प्रतिफल के विभिन्न रूप या
पैमाने से प्रतिफल के विभिन्न नियम
(Different Types of Returns to Scale)
सामान्यतः यह माना जाता है कि उत्पादन के साधनों में जिस अनुपात में परिवर्तन किया जाता हैं, उत्पादन में भी उसी अनुपात में परिवर्तन होता है । इस आधार पर यदि उत्पादन के सभी साधनों की मात्रा दुगुनी कर दी जाये तो उत्पादन की मात्रा भी दुगुनी हो जानी चाहिये, परन्त व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। एक उत्पादक जब अपने सभी साधनों की मात्रा में वृद्धि करता है तो प्रारम्भ में अनुपात से अधिक वृद्धि होती हैं । (जैसे-उत्पादन के साधनों को दुगुना कर देने पर उत्पादन में दुगुने से अधिक वृद्धि)। इसे पैमाने का बढ़ता हुआ.प्रतिफल (Increasing Return to Scale) कहते हैं। फिर धीरे-धीरे उत्पादन में कमी आने लगती है और एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जब उत्पादन में वृद्धि साधनों की वृद्धि के अनुपात में होती है (जैसे-उत्पादन के साधनों को दुगुना कर देने पर उत्पादन भी दुगुना हो जाये)। . इसे समता पैमाना प्रतिफल (Constant Return to Scale) कहते हैं, परन्तु यह अवस्था भी. अधिक समय तक नहीं रहती और शीघ्र ही वह स्थिति आ जाती है जब उत्पादन के साधनों में वृद्धि होने पर उत्पादन में अनुपात से कम वृद्धि होती है (जैसे-उत्पादन के साधनों को दुगुना कर देने पर उत्पादन में दुगुने से कम वृद्धि)। इसे पैमाने का घटता हुआ प्रतिफल (Diminishing Return to Scale) कहते हैं । स्पष्ट है कि पैमाने के प्रतिफ़ल को निम्नलिखित ..
तीन भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) पैमाने के बढ़ते हुए या वर्धमान प्रतिफल (Increasing Returns to Scale)
(2) पैमाने के समता (स्थिर) प्रतिफल (Constant Returns to Scale)
(3) पैमाने का ह्रासमान या घटता हुआ प्रतिफल (Decreasing Returns to Scale)
(1) पैमाने के बढ़ते हुए या वर्द्धमान प्रतिफल
जब वस्तु के उत्पादन में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन उत्पादन के साधनों में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन से अधिक होता है तो उसे पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल की स्थिति कहते हैं । उदाहरण के लिए, यदि उत्पादन के साधनों को दुगुना कर देने पर वस्तु के उत्पादन में दुगुने से भी अधिक वृद्धि होती है तो उसे पैमाने का बढ़ता हुआ प्रतिफल कहा जायेगा। दूसरे शब्दों में, इस नियमानुसार उत्पादन साधनों में की गई निश्चित वृद्धि से क्रमशः अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है अथवा उत्पादन में एक समान वृद्धि प्राप्त करने के लिए क्रमशः साधनों की घटती मात्रा में वृद्धि की आवश्यकता पड़ेगा। इस कथन को सम-उत्पाद वक्र (Iso Product Curve) की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।
संलग्न चित्र में समोत्पादक वक्रों की सहायता से पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल को प्रदर्शित किया गया है। चित्र
में X-अक्ष पर उत्पत्ति के साधन A की इकाइयों तथा Y-अक्ष पर साधन B की इकाइयों को प्रदर्शित किया गया है। IP1, IP2, IP3, तथा IP4, क्रमशः समोत्पाद रेखाएँ हैं जिनके उत्पादन क्रमशः 100, 200, 300 व 400 इकाई हैं। OS रेखा पैमाने की रेखा है जिसे विभिन्न समोत्पादक रेखाएँ छोटे-छोटे भागों PQ, QR, RT में बाँटती है। यद्यपि उत्पादन की मात्रा की वृद्धि दर समान है अर्थात् प्रत्येक बिन्दु पर उत्पादन वृद्धि दर 100 इकाइयों के बराबर है,जबकि साधन A एवं साधन B की इकाइयों में वृद्धि का अनुपात क्रमशः घटते हुए क्रम में है अर्थात्
RT < QR < PQ
इसका अभिप्राय यह है कि उत्पादन की 100 अतिरिक्त इकाइयाँ प्राप्त करने के लिए साधन A एवं साधन B की उत्तरोत्तर कम मात्रा की आवश्यकता होगी अर्थात् साधनों की मात्रा में की गई वृद्धि की तुलना में उत्पादन की मात्रा में अधिक वृद्धि हो रही है। यही पैमाने का वर्द्धमान प्रतिफल है।
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल लागू होने के कारण
पैमाने के बढ़ते प्रतिफल लागू होने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं –
(1) उत्पादन के साधनों की अविभाज्यता– उत्पत्ति के अनेक साधन अविभाज्य होते हैं । अविभाज्यता का अर्थ है कि साधन कुछ निश्चित आकार में उपलब्ध होते हैं तथा उन्हें टुकड़ों में बाँटा नहीं जा सकता है। साधनों की अविभाज्यता के कारण उत्पादन की प्रारम्भिक अवस्था में साधनों का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते हैं, लेकिन जब उत्पादन के पैमाने का विस्तार किया जाता है तो इन साधनों का पूर्ण उपयोग होने लगता है और पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल प्राप्त होते हैं।
(2) श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण– उत्पादन के पैमाने को बढ़ाने से जटिल श्रम-विभाजन एवं अधिक श्रम-विशिष्टीकरण सम्भव हो जाता है। श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण के परिणामस्वरूप श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि होती है जिसके कारण पैमाने के बढ़ते हुए प्रतिफल मिलते हैं।
(3) आकार कुशलता– जब उत्पादन के पैमाने के आकार को बढाया जाता है तो उससे आकार की कुशलता बढ़ जाती है । इसके फलस्वरूप कुल उत्पादन में वृद्धि होती है।
(4) उत्पादन मितव्ययिताएँ– उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर अनेक आन्तरिक एवं बाह्य . बचतें प्राप्त होती हैं। इन बचतों के कारण प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती है।
(II) पैमाने के समता या स्थिर प्रतिफल
जब किसी वस्तु के उत्पादन में होने वाला आनुपातिक परिवर्तन उत्पादन के साधनों में होने वाले आनुपा
तिक परिवर्तन के बराबर होता है तो उसे पैमाने का समता या स्थिर प्रतिफल कहते हैं। इस नियम को लागतों के सन्दर्भ में भी व्यक्त किया जा सकता है। उत्पादन में वृद्धि होने पर उत्पादन की सीमान्त लागत स्थिर होती है तथा वह औसत लागत के बराबर होती है। उदाहरण के लिए, यदि उत्पादन के साधनों की मात्रा में. 20 प्रतिशत वृद्धि करने पर उत्पादन की मात्रा में भी 20 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समता या स्थिर प्रतिफल कहेंगे।
संलग्न चित्र में OS एक पैमाने की रेखा है। समोत्पाद रेखाएँ IP1, IP2, IP3 तथा IP4 पैमाने की OS को समान टुकड़ों PQ = QR = RT में विभाजित करती हैं, इसका तात्पर्य यह हुआ कि उत्पादन के दोनों साधनों A तथा B की क्रमशः ब
राबर मात्राओं के प्रयोग से उत्पादन एक समान (अर्थात् 100 इकाइया) वृद्धि प्राप्त की जाती है|
(III) पेमाने का ह्रासमान या घटता हुआ प्रतिफल
जब उत्पादन में होने वाली आनुपातिक वृद्धि उत्पादन के साधनों में होने वाली आनुपातिक वृद्धि से कम है तो उसे पैमाने का घटता हुआ या ह्रासमान प्रतिफल कहते हैं। दूसरे शब्दों में, पैमाने का ह्रासमान या घटता हुआ प्रतिफल की अवस्था में उत्पादन में एक समान वृद्धि प्राप्त करने के लिए क्रमशः साधनों की बढ़ती मात्रा में वृद्धि की आवश्यकता पड़ेगी। उदाहरण के लिए, उत्पादन के साधनों की मात्रा में 20 प्रतिशत वृद्धि करने पर यदि उत्पादन की मात्रा में 20 प्रतिशत से कम वृद्धि हो तो उसे पैमाने का ह्रासमान या घटता हुआ प्रतिफल कहेंगें । पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल उत्पन्न होने का मुख्य कारण यह है कि पैमाने का आकार बहुत बड़ा हो जाने के कारण उत्पादन कार्य में कठिनाई अनुभव करता है और आन्तरिक एवं बाह्य बचतें इस दशा में आन्तरिक एवं बाह्य बचतें इस दशा में आन्तरिक एवं बाह्य हानियों में परिवर्तित हो जाती हैं जिसके कारण पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल उत्पन्न होते हैं।
संलग्न चित्र में IP1, IP2, IP3, एवं IP4, समोत्पाद रेखाएँ, OS पैमाने की रेखा को PQ, QR एवं RT विभिन्न
भागों में विभक्त कर रही हैं। प्रत्येक भाग दोनों स्थानों A तथा B की एक निश्चित मात्रा को बताता है । चित्र में OS पैमाने की रेखा पर प्रत्येक भाग की .. लम्बाई बढ़ती गई है अर्थात् … RT > QR > PQI
इसका अभिप्राय यह है कि दो B, साधनों A तथा की क्रमशः अधिक मात्राओं
के प्रयोग से उत्पादन में एक समान वृद्धि प्राप्त होती है। संक्षेप में, RT > QR > PQ पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल को स्पष्ट करता है।
पैमाने के बदलते प्रतिफल
(Varying Returns to Scale)
ऊपर हमने पैमाने के प्रतिफल की तीन अवस्थाओं की अलग-अलग विवेचना की है, परन्तु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिये कि हमेशा अलग-अलग उत्पादन फलन विभिन्न प्रकार के पैमाने प्रतिफल को बताते हैं। वास्तव में प्राय: एक ही उत्पादन फलन पैमाने के प्रतिफल की तीनों अवस्थाओं को व्यक्त करता है। प्रारम्भ में जब कोई फर्म अपने उत्पादन के पैमाने का विस्तार करती है तो पैमाने के बढ़ते प्रतिफल की अवस्था प्राप्त होती है, तत्पश्चात् पैमाने के स्थिर प्रतिफल एवं अन्त में पैमाने के घटते प्रतिफल की अवस्था प्राप्त होती है। इन तीनों .. अवस्थाओं को समोत्पाद वक्रों की सहायता से अग्रांकित चित्र में प्रदर्शित किया गया है -]
चित्र में OR पैमाना रेखा है। इस रेखा को तीन भागों में बाँटा जा सकता है—
(i) बिन्दु P से बिन्दु S तक : PQ > OR > RS अर्थात् पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल,
(ii) बिन्दु S से बिन्दु K. तक ST = TK अर्थात् पैमाने के स्थिर प्रतिफल,
(iii) बिन्दु K से बिन्दु V तक : KM < MN < NV अर्थात् पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल
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