BCom 1st Year Business Economics Imperfect Competition in Hindi
BCom 1st Year Business Economics Imperfect Competition in Hindi:- This post uploaded by sachin daksh. and in this post we share you bcom question paper First year. and all the question solution in this site you can find easily. if you can not able to find solution and all subject notes you can give a comment in comment box. and please share this post of your friends.learn and read this post and comment your feels and sand me.
अपूर्ण प्रतियोगिता
(Imperfect Competition)
प्रश्न 15 – अपूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के कीमत–उत्पाद निर्धारण लप समझाइये |
(1997 P)
अथवा
अपूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के संतुलन को समझाइये |
(1996 R)
अथवा
एकाधिकृत प्रतियोगिता क्या है? इस दशा में मूल्य एवं उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार होता है?
(1995 R)
अथवा
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य निर्धारण किस प्रकार होता है ?
(1994)
अथवा
एकाधिकृत प्रतियोगिता क्या है ? इस दशा में मूल्य एवं उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार होता है?
(1995 R)
अथवा
अपर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत मूल्य निर्धारण किस प्रकार होता है ?
(1994 R)
अथवा
एकाधिकारी (Monopolistic) प्रतियोगिता में एक फर्म किस प्रकार मूल्य तथा उत्पादन सम्बन्धी निर्णय लेती है?
उत्तर– पूर्ण प्रतियोगिता एवं विशुद्ध एकाधिकार दोनों ही स्थितियाँ व्यवहार में नहीं पाई जाती हैं। वास्तविक जीवन में तो इन दोनों के बीच की स्थिति पाई जाती है, जिसे अपूर्ण प्रतियोगिता अथवा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता कहते हैं। यह बाजार की वह स्थिति होती है, जिसमें एकाधिकार एवं प्रतियोगिता दोनों के तत्त्व पाये जाते हैं। प्राचीन अर्थशास्त्री मानते थे कि बाजार में एकाधिकार अथवा पूर्ण प्रतियोगिता दोनों में से एक ही स्थिति पायी जा सकती है, लेकिन सन् 1933 में प्रो० चेम्बरलेन ने नए विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि बाजार में न तो पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है और न ही विशुद्ध एकाधिकार। व्यावहारिक जीवन में तो इन दोनों के बीच की स्थिति पायी जाती है, जिसमें एकाधिकार तथा प्रतियोगिता दोनों के तत्त्व शामिल होते हैं। इसी स्थिति को चेम्बरलेन ने एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता का नाम दिया है।
अपूर्ण प्रतियोगिता अथवा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता का अर्थ
(Meaning of Imperfect or Monopolistic Competition)
अपूर्ण प्रतियोगिता अथवा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें अनेक छोटी-छोटी फर्मे एक-दूसरे से मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करती हैं, परन्तु यह वस्तुएँ पूरी तरह से समरूप नहीं होती,बल्कि वस्तुओं में थोड़ी बहुत भिन्नता अवश्य पाई जाती है। प्रत्येक विक्रेता या उत्पादक का अपनी वस्तु पर पूर्ण एकाधिकार होता है, परन्तु उसे उन विक्रेताओं से प्रतियोगिता करनी पड़ती है, जो उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं से मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, अतः प्रत्येक उत्पादक एकाधिकारी होता है, परन्तु साथ ही साथ उसे अन्य फर्मों से प्रतियोगिता भी करनी पड़ती है,अतः स्पष्ट है कि इस स्थिति में पूर्ण प्रतियोगिता .. तथा एकाधिकार दोनों का मिश्रण होता है।
परिभाषाएँ
(Definitions)
प्रो० लर्नर के अनुसार, “अपूर्ण प्रतियोगिता तब पाई जाती है जबकि एक विक्रेता अपनी वस्तु के लिए एक गिरती हुई माँग रेखा का सामना करता है।”
प्रो० टाजिंग के अनुसार, “अपूर्ण प्रतियोगिता वास्तव में शुद्ध प्रतियोगिता और पूर्ण एकाधिकार के बीच की स्थितियों का नाम है।”
प्रो० फेयर चाइल्ड के अनुसार, “यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित नहीं है, यदि क्रेताओं और विक्रेताओं को आपस में मिलने में कठिनाई मालूम होती है और यदि वे दूसरे व्यक्तियों द्वारा खरीदी या बेची जाने वाली वस्तुओं के गुण या मूल्यों से अपनी वस्तु की तुलना नहीं कर पाते हैं तो इस स्थिति को अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं।”
अपूर्ण प्रतियोगिता अथवा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता की विशेषताएँ
(1) इस स्थिति में विक्रेताओं या उत्पादकों की संख्या अधिक होती है तथा प्रत्येक उत्पादक उद्योग के कुल उत्पादन का.छोटा-सा भाग ही उत्पादित करता है।
(2) इस स्थिति में सभी उत्पादकों की वस्तुओं में समानता के बावजूद कुछ-न-कुछ भिन्नता अवश्य बनी रहती है । उत्पादकों द्वारा वस्तुओं के रूप, रंग, डिजाइन, पैंकिग आदि में थोड़ा-सा अन्तर लाकर वस्तु विभेद उत्पन्न कर दिया जाता है।
(3) इस स्थिति में क्रेताओं तथा विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता।
(4) इस स्थिति में उद्योग में फर्मों के प्रवेश व बहिर्गमन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
(5) इसमें एक ही समान गुण वाली वस्तुओं की कीमतों में अन्तर होता है। उदाहरणार्थ सभा टूथपेस्ट लगभग एक जैसे होते हैं, लेकिन फिर भी उनकी कीमतों में भिन्नता होती है।
(6) इस स्थिति में गैर मूल्य प्रतियोगिता पाई जाती है अर्थात् विक्रेताओं के बीच पायी जाने वाली प्रतियोगिता मूल्य सम्बन्धी न होकर वस्तु के गुण, रूप, रंग, आकार तथा विज्ञापन सम्बन्धी अधिक होती है।
(7) इस स्थिति में सभी फर्मे दीर्घकाल में केवल सामान्य लाभ प्राप्त कर सकती हैं, क्योंकि स्थानापन्न वस्तुओं की प्रतियोगिता का भय बना रहता है ।
एकाधिकारात्मक (अपूर्ण) प्रतियोगिता में मूल्य तथा उत्पादन का निर्धारण
(Determination of Price and output in Imperfect Competition)
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का माँग वक्र या AR वक्र न तो पूर्ण प्रतियोगिता की तरह पूर्ण लोचदार होता है और न ही एकाधिकार की तरह बहुत कम लोचदार होता है, बल्कि अपेक्षाकृत अधिक लोचदार अर्थात् नीचे को गिरती हुई कम ढाल वाली रेखा के रूप में होता है। एकाधिकारी प्रतियोगिता में भी फर्म का सन्तुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर कि फर्म की सीमान्त आय उसकी सीमान्त लागत के बराबर हो जाती है। सन्तुलन की इस अवस्था में फर्म अधिकतम लाभ प्राप्त कर रही होती है तथा उसके कुल उत्पादन में विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं पाई जाती। इस स्थिति में फर्म के अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन सन्तुलन का निम्न प्रकार अध्ययन किया जा सकता है
फर्म का अल्पकालीन सन्तुलन :
(Short-run Equilibrium of the Firm)
अल्पकाल में मांग के अनुसार पूर्ति का पूरी तरह समायोजन नहीं हो पाता, क्योंकि अल्पकाल में माँग में परिवर्तन होने पर फर्म स्थिर साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकती, अतः वह केवल परिवर्तनशील साधनों में परिवर्तन करके पूर्ति को आंशिक रूप से समायोजित करती है, अतः अल्पकाल में फर्म निम्न तीन में से किसी भी एक स्थिति में हो सकती है
(1) असामान्य लाभ की स्थिति– अल्पकाल में यदि बाजार की स्थिति फर्म के अनकल है अर्थात् वस्तु का मूल्य वस्तु की औसत लागत से अधिक है तो फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होता है। फर्म की इस स्थिति को रेखाचित्र में स्पष्ट किया गया है।
संलग्न रेखाचित्र मेंAR फर्म का औसत आय वक्र तथा MR फर्म का सीमान्त आगम वक्र है। इसी प्रकार AC फर्म की औसत लागत तथा MC फर्म का सीमान्त लागत है वक्र है। फर्म का E साम्य बिन्दु है, क्योंकि इस बिन्दु पर फर्म की सीमान्त लागत (MC) ने फर्म की सीमान्त आय (MR) को काटा है। इस साम्य बिन्दु पर फर्म OQ मात्रा का र उत्पादन एवं विक्रय करती है जिसकी कीमत या औसत आय QT या OP है। फर्म की औसत लागत QS या OR है । चूँकि साम्य , बिन्दु पर AR > AC, अतः फर्म को प्रति इकाईST या RP अतिरिक्त लाभ या RSTP के बराबर कुल लाभ हो रहा है।
(2) सामान्य लाभ की स्थिति– यदि अल्पकाल में वस्तु की कीमत न तो फर्म के लिए अनुकूल और न ही
प्रतिकूल हो तो फर्म साम्य की स्थिति में सामान्य लाभ या न 11 लाभ न हानि की स्थिति में रहती है । फर्म की इस स्थिति को रेखाचित्र में दिखाया गया है
संलग्न रेखाचित्र में फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन में है, क्योंकि इस बिन्दु पर MC तथा MR दोनों परस्पर काटते हैं। साम्य की इस अवस्था में फर्म 00 मात्रा का उत्पादन एवं विक्रय करती है। इनकी कीमत 4 या औसत आय QT अथवा OP है। फर्म की औसत लागत भी OT या OP है। .0 चूँकि इस साम्य बिन्दु पर AR = AC के हैं, अतः फर्म को इस स्थिति में न तो लाभ मिल रहा है और न हानि। इस प्रकार फर्म को सामान्य लाभ ही प्राप्त हो रहा है।
(3) हानि की स्थिति– यदि अल्पकाल में वस्तु का मूल्य फर्म के प्रतिकूल है तो साम्यावस्था में फर्म की
औसत लागत फर्म की औसत आय से अधिक होती है तथा फर्म को हानि प्राप्त होती
है। फर्म की हानि की इस स्थिति को रेखाचित्र में प्रदर्शित किया गया है।
‘संलग्न रेखाचित्र में फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन में है। फर्म वस्तु की OQ मात्रा का उत्पादन एवं विक्रय करती है। फर्म की कीमत या औसत आय QT या OP है तथा औसत लागत QS या OR है। चूंकि इस साम्य बिन्दु पर AR < AC से, अतः फर्म को प्रति इकाई औसत हानि TS या PR के बराबर अथवा PTSR के बराबर कुल हानि मिल रही है। हानि की स्थिति में भी फर्म उत्पादन तब तक चालू रखेगी, जब तक कि फर्म को कम से कम औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) के बराबर कीमत मिलती रहे । यदि मूल्य अल्पकाल में इस लागत से भी नीचे चला जाता है तो उत्पादन बन्द कर दिया जायेगा।
फर्म का दीर्घकालीन सन्तुलन
(Long-run Equilibrium of the Firm)
एकाधिकारिक प्रतियोगिता के अन्तर्गत दीर्घकाल में फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की पूर्ण सम्भावना रहती है, अतः दीर्घकाल में फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है । अल्पकाल में प्राप्त होने वाले अतिरिक्त लाभ से आकर्षित हो नयी फर्मे उत्पादन के क्षेत्र में आ जाती हैं, जिससे प्रतियोगिता में वृद्धि होगी तथा अतिरिक्त लाभ समाप्त होकर सामान्य लाभ रह जायेगा। इसी प्रकार अल्पकाल में हानि की स्थिति में कुछ फर्मे उद्योग को छोड़ देंगी, जिससे वस्तु की पूर्ति घटने से दीर्घकाल में कीमत लागत के बराब
रहो जायेगी । दीर्घकाल में एकाधिकारी प्रतियोगिता के अन्तर्गत दो शर्तों का पूरा होना आवश्यक है –
(i) फर्म का MC = MR तथा
(ii) AC = AR अर्थात् फर्म को ” केवल सामान्य लाभ प्राप्त हो रहा हो।
चित्र में E साम्य बिन्दु है, यहाँ पर MR = LMC है। इस स्थिति में फर्म OM मात्रा का उत्पादन कर रही है तथा वस्तु की कीमत OP है। E बिन्दु पर AC तथा AR बराबर हैं, अतः फर्म केवल सामान्य लाभ प्राप्त कर रही है। इससे स्पष्ट है कि दीर्घकाल में फर्मों को केवल सामान्य लाभ की ही प्राप्ति होगी।
Related and Latest Post Link:-
BCom 1st Year Business Economics: An Introduction in Hindi
Types of Business Letters in Business Communication
|
|||