B COM 1st Year Communication Audience Analysis Study Material in Hindi

B COM 1st Year Communication Audience Analysis Study Material in Hindi

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B COM 1st Year Communication Audience Analysis Study Material in Hindi
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सम्प्रेषण सिधांत अथवा विचारधारा (B COM 1st Year Communication Audience Analysis Study Material in Hindi)

सम्प्रेषण सन्देश के माध्यम से मनुष्य को एक दुसरे से जोड़ता है | संचार में जिन मान्यताओ , सीमओं व् पोअरिवेश को सर्वहित में संचारित किया जाता है उसे संचार विचारधारा या सिधांत कहते है अर्थात सामाजिक व् सांस्क्रतिक परिवेश में आदर्श मूल्यों की रक्षा व् स्थापना हेतु सार्वभौमिक समुदाय के लिए निर्धारित सीमा में किया गया संचार ही संचार सिधांत है | विश्व में संचार की विभिन्न विचारधाराए प्रचलित है जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित है –



(1) कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिधांत – यह विचारधारा साम्यवाद के सिधांत पर आधारित है | वर्ष 1917की सफल क्रांति के पश्चात् इसे सोवियत संघ में लागु किया गया था | इस सिधांत की प्रमुख बाते निम्नलिखित है –

(i) –  इसके अंतर्गत मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के खिलाफ संचार किया जायेगा |

(ii) देश के निर्माण में जनतंत्र की प्रत्यक्ष भूमिका होगी |

(iii) जनतंत्र के लिए के आचार सहिंता है की देश से सर्वोपरी कोई बात नही होगी |

(iv) मजदूरो पर कही भी हो रहे अत्याचार व् उनकी आवाज व् मानगो को प्रमुखता से लिया जायेगा |

इस सिधांत का प्रभावी काफी व्यपोअक था लेनिन के विचारो को न केवल सोवियत संघ बल्कि चीन व संचार के अनेक देशो में सुना गया | इस संचार का काफी सशक्त सिधांत था , लेकिन साम्यवाद के संकीर्ण विचारो के कारण यह सिधांत अधिक प्रसिद्ध नही हो पाया | सोवियत संघ के विघटन ने भी इस सिधांत के प्रसिद्ध होने में बाधा पहुचाई जाती है |

(2) कंजर्वेटिव अथवा कट्टरपंथी सम्प्रेषण सिधांत – कन्जर्वेटिव् सम्प्रेषण सिधांत से आशय असे सिधांत से है , जिसमे बिना किसी कारण के अचानक धरम व् जाती के नाम पर पाबंदिय लगाकर सम्प्रेषण को एक तरफ क्र दिया जाता है | उनमे से कुछ पहन्दिया ऐसी होती है , जो समाज के रहन – सहन , उठने बैठने , लिखने – पढने आदि पर लगाई जाती है इस स्थिति में स्वाच तथा सरल सम्प्रेषण की कल्पना बेकार होती है |

(3)  क्रिशिचयन सम्प्रेषण सिधांत – यह सिधांत मनुष्य की संवेदना , कोमल ह्रदय सेवाभाव आदि पहुलुओ पर आधारित है | स्वतंत्र विचार , व्यक्तिगत सवतंत्रता व् ईश्वर (प्रभु) के प्रति स्म्रप्नता इसकी मुख्य बाते है | उरोप के अधिकांश देशो की सम्प्रेषण व्यवस्था का आधार यह सिधांत है | यह एक प्रोग्रेशिव सिधांत है इस सिधांत में अवरोधों का कोई स्थान नही है , नयी – से नयी वास्तु मानव कल्याण हित में अविलम्ब व्यक्तियों तक पंहुचा दी जाती है अत: यह सिधांत अत्यधिक लोकप्रिय व् प्रसिद्ध है | इस सिधांत की मुख्य विशेषता व्यक्तिगत स्वतंत्रता का चेत्र है |

(4)  इस्लामिक सम्प्रेषण सिधांत –  इस्लामिक सम्प्रेषण सिधांत का मुख्य आधार पवित्र कुरान व् हदीस है इस सिधांत में धर्म के प्रचार की बात कही गई है यह सिधांत कठोर और कतारवादी है तथा महौमद साहब के बनाये गये कानूनों पर आधारित है इस सिधांत में पुरुषो को ही ऊँचा स्थान दिया गया है | इस सिधांत के दो भाग है पहला भाग सुध इस्लामिक सिधांत है यह अत्यंत मानवीय , वैज्ञानिक व् स्नेही है , जबकि दुसरे भाग को कठ्मुल्लाओ व् धर्म के ठेके दरो ने अपनी जुबान से लिखा है | यह काफी कठोर , निर्दयी व् अरुचिकर है | यह सिधांत अत्यंत ही संकीर्ण है |

(5)  वैदिक संचार सिधांत  – यह विश्व का अत्यंत प्राचीन सिधांत है | यह “जननी  जन्मभूमिश्च सवार्गादापी गरीयसी “ के सिधांत पर लागु है | यह भावना इस सिधांत का सशक्त पहलू है | यह सिधांत किसी समय विशेष से नही बंधा है | वैदिक संचार में हजारो वर्ष पूर्व तक केवल मौखिक स्वर सचरित होता रहा था | यह सिधांत भारतीय संचार प्रक्रिया का आधार है परन्तु ब्रिटिश शसन ने भारतीय संचार पढ़ती को प्रभावित किया और आज ब्रिटिश सिधांत की झलक भारतीय संचार प्रक्रिया में देखने को मिलती है |

(6)  चाइनीज सम्प्रेषण सिधांत – विश्व में चीन अपनी सम्प्रेषण नीति के लिए बहुत प्रसिद्ध है अत: इनके सम्प्रेषण सिधांत को चाइनीज सिधांत कहा जाता है इसने कम्युनिस्ट सम्प्रेषण सिधांत की भांति क्रांति की नही बल्लकी शांति की बात कही है इस देश की संचार व्यवस्था में बौध के विचारो की बाहुल्यता है बड़ो का आदर , सम्मान देना व् सम्मान लेना , देश के प्रति वफादारी इत्यादि इस सिधांत की विशेषताएं है | चीन की सम्प्रेषण पढ़ती पंचशील सिधांत पर आधारित है | इस सिधांत में सरकारी आदेशो , स्थापित मान्यताओ और लोकप्रिय परम्पराव का निर्वहन समिमलित है |




Audience analysis its objectives and types (B COM 1st Year Communication Audience Analysis Study Material in Hindi (श्रोता विश्लेषण तथा उद्देश्य एंव अवस्था)

श्रोता सम्पूर्ण सम्प्रेषण प्रक्रिया का केंद्र बिंदु होता है | श्रोता को अंग्रेजी में audience  कहते है जो अंग्रेजी के audio  शब्द से बना है जिसका अर्थ सुनने वाला देखने वाला अथवा पढने वाला होता है अत: सम्प्रेश्नो में श्रोताओ से आशय व्यक्ति के उस समूह से है जो सम्प्रेषण को सामूहिक रूप से सुनता देखता तथा पढता है | अत: स्पष्ट है की सम्प्रेषण में सन्देश प्राप्तकर्ता को ही वास्तव में श्रोता कहा जाता है |

सम्प्रेषण में श्रोताओ की प्रतिक्रिया अथवा प्र्तिउतर बहुत ही महत्वपूर्ण घटक होते है श्रोता की प्रष्ठभूमि , आदत , विश्वास , पूर्वग्रह , भावना , परिवेश तथा उसका द्रष्टिकोण  आदि प्रेषक के संचार उद्देश्य को प्रत्यक्ष रूप से प्ल्र्भावित करते है | अत: सफल तथा प्ल्र्भावी संचार के लिए यह आवश्यक है की श्रोता के विषय में अधिक से अधिक जाना जाये तथा उसका विश्लेषण किया जाये अत: सम्प्रेषण के प्रभावों का परीशां एंव उनका अध्यन ही श्रोता विश्लेषण कहलाता है |

OBJECTIVE OF AUDIENCE ANALYSIS (श्रोता विश्लेषण के उदेश्य)

सम्प्रेषण में श्रोताओ की जगुरुकता का विश्लेषण निम्न चार महत्वपूर्ण प्रश्नों पोअर निर्भर करता है जिनको श्रोता विश्लेषण के उदेश्य कहा जाता है –

(i) श्रोताओ तक पहुच (Audience Coverge ) सम्प्रेषण श्रोताओ के किस वर्ग, खण्ड , छेत्र तक पंहुच रखता है ? दुसरे शब्दों में ,सम्प्रेषण के फैलाव की परिधि में कितने श्रोता शामिल होती है ? इसको श्रोताओ तक पहुँच भी कहा जाता है |

(ii) श्रोताओ का पर्तिउत्तर ( Audience Response ) – सम्प्रेषण प्राप्तकर्ता अथवा श्रोता ने प्र्तिउतर किस प्रकार दिया है ? क्या वे सन्देश के वास्तविक अर्थ को समझे क्या संदेशानुसार वांछित प्रतिक्रिया हुई ? क्या प्रतिक्रियाव का रुख सकरात्मक है ?

(iii)  सम्प्रेषण प्रभाव (Communication Impact ) क्या सम्प्रेषण ने श्रोताओ पर कोई प्रभाव डाला ? क्या श्रोताओ के द्रष्टिकोण एंव विचारो पर सार्थक प्रभाव पड़ा है |

(iv)  प्रभाव की प्रक्रिया (Process of Influence) श्रोताओ को प्रेरित किस प्रक्रिया द्वारा किया गया है ? किस सम्प्रेषण माध्यम का कितना प्रभावकारी उपयोग सम्प्रेषण में किया गया ? श्रोताओ के ऊपर पड़े प्रभावों का पर्तिउतर किस प्रकार दिया गया है ?



VARIOUS STEPS OF AUDIENCE ANALYSIS (श्रोता विश्लेषण के विभिन्न चरण)

प्रभावपूर्ण सम्प्रेषण के लिए श्रोता विश्लेषण अत्यंत आवश्यक होता है इसके लिए सन्देश प्रेषक को निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण करना पड़ता है –

(1) श्रोता समूह के आकर एंव संरचना सम्बन्धी सूचनाओ का संग्रह –  अलग-अलग प्रकार के श्रोता समूहों के लिए अलग – अलग संचार तकनीक का प्रयोग किया जाता है क्योंकि छोटे एंव बड़े समूहों के श्रोता एक सा व्यवहार नही करते | श्रोता समूह के आकर के साथ साथ उसकी संरचना की सामान्य जानकारी होना भी परम आवश्यक है | छोटे श्रोता समूह में अधिक भिन्नताए नही होती है जबी बड़े समूह में श्रोताओ की शिक्षा , रूचिया , जीवन स्तर तथा द्रष्टिकोण में पर्याप्त भिन्नताए होती है | अत: सम्प्रेषण करते समय श्रोताओ के आकर व् सरचना का प्राथमिक ज्ञान होना आवश्यक होता है |

(2) प्राथमिक श्रोता का पता लगाना – संचार प्रक्रिया में श्रोता का पता लगाना अत्यंत आवश्यक है क्योकि यही श्रोता वास्तव में सन्देश को प्राप्त करके उस पर अपनी कार्यवाही करता है अत यदि पता लग जाये की प्राथमिक  कौन है , तो उसी के विषय में अधिक से अधिक सूचनाये एकत्रित की जानी चाइये | सामान्य रूप में प्राथमिक श्रोता एक संगठन के उच्च पदासीन व्यक्ति भी हो सकते है और निचले स्तर पर भी कार्यरत हो सकते है | परन्तु ऐसे श्रोता प्राय: विशिष्ट कार्यो में ही व्यस्त रहते है तथा उसी से सम्बंधित निर्णय लेने की क्षमता रखते है |

(3) श्रोताओ की संभावित प्रतिक्रिया जानना :- श्रोता विश्लेषण के लिए श्रोताओ की सन्देश पर संभावित प्रतिक्रिया जानना महत्वपूर्ण है | यदि यह चाहते है की श्रोता हमारे सन्देश पर अनुकूल प्रतिक्रिया दे या उनका रुख सकारात्मक रहे तो हमें बड़ी स्पष्ट से सन्देश के निष्कर्ष एंव सुझाव से उन्हें अवगत करना होगा | श्रोता को प्रभावित करने के लिए प्रमाणों का प्रयोग किया जा सकता है | बड़े श्रोता समूह के समक्ष सन्देश के सुझावों एंव निष्कर्षो को अत्यधिक प्रमाणिकता तथा क्र्म्बधता से प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है , क्योकि श्रोता समूह जितना बड़ा होता है , आलोचक प्रक्रति के व्यक्ति उतने ही अधिक होते है | छोटे श्रोता समूह के सामने सीधे निष्कर्ष एंव सुझावों के विषय में बात की जा सकती है |

(4)  श्रोताओ के विवेक स्तर की जानकारी प्राप्त करना – दिए जा रहे सन्देश के सम्बन्ध में संचार्क्र्ता को श्रोता के अनुभाफ्व , विवेक एंव परिवेश का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक होता है | यदि सन्देश की प्रष्ठभूमि से श्रोता का परिवेश एंव ज्ञान मेल नही खाता तो श्रोता को अधिक शिक्षित करने की आवश्यकता होती है | श्रोता के विवेक का आकलन सन्देश प्रेषक उससे दो चार प्रशन पूछकर कर सकता है और यह जान सकता है की श्रोता को कितना शिक्षित करने की आवश्यकता है |

(5)  श्रोताओ से सम्प्रेषक का किस प्रकार का सम्बन्ध है ? :– सन्देश देने वाले का श्रोताओ के साथ सम्बन्ध कैसा है , यह जानना भी अत्यंत आवश्यक होता है | एक संगठन में आपका पद व् श्रोताओ से आपका सम्बन्ध , आपके सन्देश की शैली , आवाज एंव प्रस्तुती को प्रभावित करता है | उच्चधिकारी से संचार का ढंग , सहयोगियों या अधिनस्थो के साथ संचार के ढंग से भिन्न होता है | इसी प्रकार यदि किसी ग्रहाक , ऋणदाता , अंशधारी अथवा लेनदार के सत्यह संचार होता है तो पोर्त्येक अवस्था में सन्देश की शैली एंव प्रस्तुतिकरण बदल जाता है | यदि प्रेषक तथा श्रोता अपरिचित है तो सकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए श्रोताओ को अपने विश्वाश में लेना आवश्यक होता है | यदि प्रेषक के प्रति श्रोता के मन में किसी प्रकार का पूर्वग्रह या छवि बनी हुई है तो संचार्क्र्ता कू अपने सवांद से पहले इसे समाप्त करने का प्रयाश करना चाइये | यह ध्यान रखना चाइये की श्रोता हर पल संचार्क्र्ता की योग्यता एंव सन्देश की उपयोगिता का विश्लेषण कर रहा होता है अत: कभी –कभी सन्देश की परिधि के बहार जाकर भी सवांद करना उपयोगी होता है |




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