Negotiation and Assignment Business Law Notes in Hindi

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Negotiation and Assignment Business Law Notes in Hindi :- 

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Negotiation and Assignment Business Law Notes in Hindi

प्रक्रामण एवं अभिहस्तांकन (Negotiation and Assignment) 

एक विनिमय साध्य विलेख की महत्वपूर्ण विसेह्स्ता यह है की इसे बहुत सरलता से स्वतंत्रता पूर्वक एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित किया जा सकता है | विलेख को हस्तान्तरण निम्न्लिहित दो प्रकार से किया जा सकता है –

1, परक्रमाण द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Negotiation)

2, अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Assignments)|

1, परक्रमाण द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Negotitation)धारा 14 के अनुसार, “जब कोई प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-विपत्र अथवा चैक किसी व्यक्ति को उसका धारक बनाने के उद्देश्य से हस्तान्तरित कर दिया जाता है तो यह कहा जायेगा की विलेह्क का परक्रामण हो गया है |” इस परिभाषा के आधार पर परक्रामण के लिए आवश्यक है की (i) विलेख का हस्तान्तरण रक व्यक्ति से दुसरे को हो. तथा (ii) हस्तान्तरण, हस्तान्तरीको धारक बनाने के उदेश्य से किया जाये यहाँ पर दूसरी शर्त काफी महत्वपूर्ण है क्योकि यदि हस्तान्तरण केवल विल्केह की सुरक्षा के लिये अथवा न्य किसी विशेष उद्देश्य से की अजय तो उसे परक्रामण नही कहा सकते | उदाहरणार्थ – यदि राम, श्याम को चैक इस उदेश्य से सुपुर्द करे की श्याम उस चैक को अपने पास सुरक्षति रखे तो श्याम को चैक का परक्रामण नही माना जायेगा क्योकि यहाँ पर श्याम को चैक की सुपुर्द्गी निक्षेपग्रहीता के रूप में की गई है न की धारक के रूप में |

विलेख के धारक से आशय उस व्यक्ति से है जो विलेख को अपने नाम से अपने पास रखने तथा विलेख में लिखित धनराशि को विलेख से सम्बन्धित पक्षकारों से प्राप्त करने का अधिकारी होता है | इस प्रकार परक्रामण का उद्देश्य हस्तान्तरिती को विलेख का क़ानूनी कब्ज़ा दिलाना है और उसके द्वारा विघमान धारक के अधिकार, उसका स्वमित्व तथा विलेख में निहित सभी हित हस्तान्तरिती को प्राप्त हो जाते है और स्वयम विलेख का धारक बन जाता है इसके अतिरिक्त परक्रामण में हस्तान्तरी को हस्तान्तरक से अच्छा स्वमित्व प्राप्त होता है |

परक्रामण कौन कर सकता है ? (Who can you Negotiate?) – धारा 51 के अनुसार विलेख को लेखक (Maker of drawer), आदाता (Payee) या प्रष्ठांकिती (Endorse) विलेख का परक्रामण कर सकता है यदि विलेख की परक्रम्यता अर्थात् उसके हस्तान्तरण पर कोई रोक नही लगाई गई है | यदि विलेख के लेखक, आदाता अथवा प्रष्ठांकनकर्ता एक से अधिक व्यक्ति हैं तो वे संयुक्त रूप से विलेख का परक्रामण कर सकता है | इसके अतिरिक्त परक्रामण के लिए आवश्यक है तो उसका वैधानिक प्रतिनिधि परक्रामण करने का अधिकारी है | अत: एक अजनबी व्यक्ति (Sir anger) जो विलेख का धारक नही है, परक्रामण  नही कर सकता |

परक्रामण की विधि, रीतियाँ, ढंग या रूप (Nodes of Negotiation) – एक विनिमय साध्य विलेख का परक्रामण निम्न दो प्रकार से किया जा सकता है –

  • सपुर्दगी द्वारा परक्रामण (Negotiation by Delivery)वाहक को देय प्रतिज्ञा-पत्र विनिमय-पत्र या चैक का परक्रामण के केवल उसकी सुपुर्दगी हस्तान्तरी को देने से हो जाता है |

(ब) सुपुर्दगी तथा प्रष्ठांकन द्वारा परक्रामण (Negotiation by Endorsement and Delivery)आदेश पर देयविलेख का परक्रामण ‘बेचान तथा सुपुर्दगी’ दोनों के द्वारा ही हो सकता है |  कोई चैक ‘Anju or order’ को देय है तो उसका उसका परक्रामण उक्त चैक पर अन्जू द्वारा प्रष्ठांकन करके तथा सम्बन्धित व्च्यक्ति को उसकी सुपुर्दगी देकर ही किया जा सकता है |

उपरोक्त विवेचन से स्फ्स्त है की परक्रामण की उपर्युक्त दोनों विधियों के सम्बन्ध में ही ‘सुपुर्दगी’ शब्द का विशेष महत्व है | यहाँ पर सुपुर्दगी से अभिप्राय विलेख के स्वमित्व का स्वेच्छापूर्वक हस्तान्तरण करने से है |

उदाहरण – 1, यदि वाहक को देय विलेख खो जाये तो पाने वाले को अच्छा स्वमित्व प्राप्त नही होगा | हाँ, यदि पाने वाला विलेख को यथाविधि धारक को हस्तान्तरित नही कर देता है तो उसे अच्छा स्वमित्व प्राप्त हो जायेगा |

2, यदि लेखक एक प्रतिज्ञा-पत्र लिखकर मर जाये और प्रतिज्ञा-पत्र उसकी अलमारी से प्राप्त किया जाये तो आदाता प्रतिज्ञा-पत्र की रकम प्राप्त नही कर सकता चाहे प्रतिज्ञा-पत्र उसके नाम में हो क्योकि इसकी सुपुर्दगी मृतक द्वारा आदाता (Payee) को नही दी गई थी |

सुपुर्दगी के प्रकार (Kinds of delivery) – सुपुर्दगी निम्न प्रकार की हो सकती है –

(i) वास्तविक सुपुर्दगी (Actual delivery) जब वास्तविक या भौतिक रूप से (Physically) विलेख का कब्ज़ा एक व्यक्ति द्वारा दुसरे को दे दिया जाता है रो उसे वास्तविक सुपुर्दगी खाते है |

(ii) रचनात्मक सुपुर्दगी (Constrctive delivery)  जब विलेख का कब्ज़ा प्रष्ठांकिती को न देकर उसके एजेन्ट, क्लर्क अथवा कर्मचारी को दे दिया जाता है रो उसे रचनात्मक सुपुर्दगी कहते है | कभी-कभी प्रष्ठांकक प्रष्ठांकन कर देने के बाद, प्रष्ठांकिती के एजेन्ट के रूप में, सिलेख को अपने पास भी रख सकता है | ऐसी दशा में भी इसे रचनात्मक सुपुर्दगी माना जाता है |

(iii) शर्त सहित सुपुर्दगी (Conditional delivery) जहाँ विलेख की सुपुर्दगी देते समय हस्तान्तरक कोई शर्त लगता है जिसका पूरा हों आनिवार्य है तब परक्रामण ऐसी शर्त पूरी होने पर ही पूर्ण माना जायेगा परन्तु ऐसी शर्त केवल हस्तान्तरिती को ही बाध्य करती है जिसने होने पर ही पूर्ण मानाज जायेगा | परन्तु ऐसी शर्त केवल हस्तान्तरिती को ही बाध्य करती है जिसने की उस विलेख को सम्बन्धित शर्त के अधीन स्वीकार किया है | यदि ऐसी हस्तांतरिती उस विलेख को किसी यथाविधिधरी को सुपुर्द कर देता है तो यथाविधिधरी को विलेख पर अच्छा अधिकार प्राप्त हो जायेगा तथा प्रत्येक पूर्व पक्षकार यथाविधिधारीके पूर्ण भुगतान के लिए उत्तरदायी होगा |

2, अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Assignments)विनिमयसाध्य विल्केह अधिनियम में विलेख हस्तान्तरण करने की इस विधि का कोई वर्णन नही किया गया है | 2, अभिहस्तांकन के सम्बन्ध में सम्पति-हस्तान्तरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property act) के अध्याय 8 में यह व्यवस्था की गई है | अभिहस्तांकन  से आशय सम्पति हस्तान्तरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property act)  के अधीन की विलेख (प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक) का लिखित तथा नियमानुसार स्टाम्प लगे हुये रजिस्टर्ड दस्तावेज द्वारा एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति को स्वमित्व का हस्तान्तरण करना है | इस विधि के द्वारा विलेख को हस्तान्तरण करने की विधि बहुत पेचीदा तथा लम्बी है |

इसमें अतिरिक्त उसमे एक बड़ा भारी दोष यह है की हस्तान्तरी को हस्तान्तरक से अच्छा स्वमित्व प्राप्त नही होगा उदाहरण के लिये, यदि एक व्यक्ति, वाहक को देयविलेख को चुराकर उसका अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरण कर दे तो हस्तान्तरी को भी उस विलेख पर चोर जैसा स्वमित्व ही प्राप्त होगा क्योकि हस्तान्तरक का स्वमित्व दूषित था | अत: अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरी यथाविधि धारक नही बनता वह केवल धारक की बनता है | व्यवहार में प्राय: अभिहस्तांकन द्वारा विलेख के हस्तान्तरण को कोई उदाहरण अपवाद स्वरूप ही देखने को मिलता है | वैसे यदि अभिहस्तांकन द्वार हस्तान्तरण करना चाहे तो वह ऐसा करने के लिये स्वतंत्र है |

परक्रमाण तथा अभिहस्तांकन में अन्तर

(Difference between negotiation and assignments)

अन्तर का आधार परक्रमाण अभिहस्तांकन
1, प्रक्रिया यह विलेख की केवल सुपुर्दगी, अथवा पृष्ठांकन व सुपुर्दगी द्वारा ही सम्पन्न हो जाता है | यह हस्तान्तरणकर्ता द्वारा हस्ताक्षरित, लिखित तथा विधिवत् पंजीकृत दस्तावेज द्वारा ही किया जा सकता है |
2, सुचना इसके अंतर्गत हस्तान्तरण की सुचना ऋणी (अर्थात् लेखक, आहारती या स्वीकर्ता) को देना आवश्यक नही है | इसमें हस्तान्तरण की सूचना ऋणी कको देना आवश्यक है, और ऋणी द्वारा सुचना प्राप्त करने पर ही अभिहस्तांकन प्रभावी होगा |
3, प्रतिफल प्रतिफल का होना मन लिया जाता है , जब रटक की इसके विरुध्द सिध्द न कर दिया जाये | इसमें प्रतिफल कर दिया जाना सिध्द करना पड़ता है |
4, स्वमित्व इसमें यथाविधिधरी को हस्तान्तरणकर्ता से अच्छा स्वमित्व प्राप्त हो सकता है | अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरी को केवल व्ही अधिकार प्राप्त होते है जो हस्तान्तरक को प्राप्त थे अर्थात् उसे अच्छा स्वमित्व प्राप्त नही होता |
5, वाद प्रस्तुत करने का अधिकार इसमें विलेख का धारक सदैव अपने नाम से वाद प्रस्तुत नही कर सकता | इसम धारक अपने नाम से वाद प्रस्तुत कर सकता है |

 

विनिमयसाध्य विलेखों का अनादरण

(Dishonour of Negotiable Instruments)

आशय (Meaning)जब कोई विनिमय साध्य विलेख स्वीकृति अथवा भुगतान प्राप्त करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है तो यदि उस विलेख पर स्वीकृति न दी जाये अथवा आंशिक या शर्तयुक्त स्वीकृति दी जाये अथवा उस विलेख का भुगतान न किया जाये तो वह विलेख ‘अनादरित’ या ‘अप्रतिष्टित’ माना जाता है |

विनिमयसाध्य विलेखो का अनादरण दो प्रकार से हो सकता है – 1, अस्वीकृति द्वारा तथा 2, भुगतान न करने से | किसी विनिमय विपत्र का अनादरण दोनों में से किसी भी रूप में हो सकता है | परन्तु प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक को अनादरण केवल भुगतान न करने से ही हो सकता है क्योकि इन दोनों पर स्वीकृति को कोई आवश्यकता नही होती |

2, भुगतान करने से | अनादरण (Dishonour by Non-acceptance)केवल विनिमय-विपत्र ही ऐसा विलेख ही ऐसा विलेख है जिसमे भुगतान से पहले देनदार की स्वीकृति प्राप्त करनी होती है | अत: स्वीकृति न मिलने पर केवल विनिमय-पत्र ही अनादृत माना जाता है जो निम्नलिखित रूपों में हो सकता है – (i) विपत्र को स्वीकृति के लिए प्रस्तुत किये जाने पर यदि ऋणी, देनदार या आहार्यी (Drawer) स्वीकृति देने से मना कर देता है या बिल की प्रस्तुति के 48 घण्टे तक स्वीकृति प्रदान नही करता है , (ii) स्वीकृति शर्तयुक्त या मर्यादित (Qualified) दी गई हो, (iii) आहार्यी अर्थात् स्वीकर्ता अनुबन्ध करने के अयोग्य हो, (iv) स्वीकृति के लिए प्रस्तुति आवश्यक न हो और देनदार ने स्वयं स्वीकृति नही दी हो, (v) जब आहार्यी को उचित प्रयत्न के बाद भी न ढूँढ़ा जा सके, (vi) जब आहार्यी कल्पित व्यक्ति है |

इस सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है की यदि विनिमय पत्र में आवश्यकता पड़ने पर आदेशिती (Drake in Case of Need) का नाम दिया हुआ है तो उसे अनादृत तब तक नही माना जाएगी जब तक कि आवश्यकता पड़ने पर आदेशिती ने उसे अनादृत नही कर दिया हो |

2, भुगतान न मिलने पर अनादरण (Dishonour by none-payment)एक विनिमय-साध्य विलेख निम्नलिखित परिस्थतियों में भुगतान ने करने पर अनादरित समझा जाता है –

(i) धारक द्वारा उचित सूप से भुगतान के लिए प्रस्तुतु किये जाने पर भी यदि प्रतिज्ञा पत्र का लेखक, विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता अथवा चैक का देनदार बैंक भुगतान करने से मना कर देता है |

(ii) जब भुगतान के लिये विलेख का प्रस्तुतिकरण अनिवार्य नही है परन्तु देय तिथि बीत जाने पर भी विलेख का भुगतान नही किया जाता है |

अनादरण की सुचना (Note of Dishonour) – जब विलेख स्वीकृति न होने अथवा भुगतान न होने के कर्ण अनादृत हो जाता है तो धारक को चाहिये की वह अन्य सभी पक्षों को जिन्हें वह उत्तरदायी बनाना चाहता है, अनादरण की सुचना दे | यदि वह उचित समय में अनादरण की सुचना नही देता है तो उन स्थितियों को छोड़कर जहाँ अनादरण की सुचना अनावश्यक है या माफ़ है, सभी पूर्व पक्ष अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाते है (धारा 93)

अनादरण का प्रभाव (Effect of Dishonoured) यदि कोई विनिमय-पत्र अस्वीकृति द्वारा अथवा भुगतान न कर्ण एपर अनादरित हो जाता है, तो विपत्र का आहर्ता अर्थात् लेखक (Drawer) तथा सभी प्रष्ठांकनकर्ता धारक के प्रति उत्तरदायी हो जाते है, बशर्ते धारक ने उन्हें अनादरण की उचित रूप से सुचना दी हो | लेकिन धारक, स्वीकर्ता अथवा देनदार को केवल भुगतान न करने पर ही उत्तरदायी ठहरा सकता है |

अनादरण की स्थिति में आवश्यक कार्यवाही (Steps to be Taken in case of Dishonour) –  जब कोई चैक, प्रतिज्ञा-पत्र या विनिमय विपत्र अस्वीकृति द्वारा या भुगतान न होने से अनादरित हो जाता है तो धारक को प्रपत्र की राशि वसूली के लिए देनदार एवं अन्य सभी पर प्रष्ठांकनकर्ताओं वाद प्रस्तुत करने अक अधिकार प्राप्त हो जाता है, किन्तु ऐसा तभी हो सकता है , जबकि धारक ने निम्नांकित कार्यवाही या प्रक्रिया कर ली हो-

(i) उत्तरदायी पक्षकारों को अनादरण की सुचना दे दी हो, एवं

(ii) अनादरित विपत्र की नोटिंग (आलोकन) करा ली गई हो तथा अनादरण प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिया गया हो |

पक्षकारो की दायित्त्व दे मुक्ति

(Discharge of parties From Liability)

विनिमय-साध्य विलेख के सम्बन्ध में ‘मुक्ति ‘ शब्द के दो अर्थ होते है – (अ) विलेख की मुक्ति, तथा (ब) विलेख के एक या अधिक पक्षकारों की उनके दायित्त्व से मुक्ति |

विलेख की मुक्ति उस समय कही जाती है जबकि उसके अन्तर्गत सभी पक्षकारों का दायित्त्व समाप्त हो जाता है | ऐसे विलेख की विनिमय-साध्यता समाप्त हो जाती है और यथाविधिधारी को भी ऐसे विलेख पर कोई अधिकार प्राप्त नही होता है |

विलेख के एक या एक से अधिक पक्षकारों की उनके दायित्त्व से मुक्ति उस समय मानी जाती है जब की कुछ पक्षकारों तो अपने दायित्त्वो से मुक्त हो जाते है, परन्तु अन्य पक्षकार विलेख के अन्तर्गत उत्तरदायी रहते है उदाहरण के लिये, देय तिथि पर विनिमय-पत्र को प्रस्तुत न करने से सभी पक्षकार अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाते है, परन्तु उसका स्वीकर्ता मूक ऋण के लिये उत्तरदायी रहता है | इसी प्रकट कोई पक्षकार दिवालिया घोषित हो जाने पर दायित्त्व-मुक्त हो जाता है, परन्तु अन्य पक्षकार दायित्त्व-मुक्त नही होते |

मुक्ति की दशाएँ (Circumstances of Discharge of Parties from their Liability)पक्षकारों की दायित्त्व मुक्ति के निम्नलिखित दो प्रमुख ढंग है – I, भुगतान द्वारा ; II. भुगतान के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से |

भुगतान द्वारा दायित्व मुक्ति (Discharge by Payment) यदि किसी विलेख के परिपक्व (देय) (Mature) होने पर उसके लेखक, स्वीकर्ता अथवा देनदार द्वारा विलेख के धारक की भुगतान कर दिया जाता है एवं वाहक को देय-विलेख की दशा में यथाविधि भुगतान कर लिया जाता है तो विलेख के सभी पक्षकार अपने दायित्त्व दे मुक्त हो जाते है |

भुगतान द्वारा दायित्त्व मुक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्याय देना अत्यन्त महत्वपूर्ण है –

1, ‘आदेश पर देय’ चैक की दशा में (Cheque Payable to Order) यदि आदेश पर देय’ चाय को आदाता (Payee) द्वारा अथवा उसकी ओर से पृष्ठांकित कर दिया जाता है, तो बैंक (चैक का आहार्यी) (Drawee of Cheque) यथाविधि भुगतान करने पर अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाता है | I धारा 85 (I) I

यदि कोई चैक से ही ‘वाहक को देय’ है, तो बैंक, चैक के वाहक का यथाविधिधारी भुगतान का देने पर अपने दायित्त्व दे मुक्त हो जाता है | I धारा 85 (2) I

2, परिवर्तित विलेख के भुगतान की दशा में (By Payment of Altered Instrument) यदि किसी विलेख पर किया गया परिवर्तन इस प्रकार का है की वह देखने से पता नही चलता तो यथाविधि भुगतान कर देने वाला पक्षकार अपने दायित्त्व से मुक्त माना जाता है |

II, भुगतान के अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार से दायित्त्व-मुक्ति (Discharge Otherwise Than by Payment)भुगतान के अतिरिक किसी अन्य प्रकार से विलख में वर्णित दायित्त्व से मुक्ति प्राप्त करने के तरीके एक प्रकार से अपवाद स्वरूप ही है | इस रुप में दायित्त्व-मुक्ति के निम्नलिखित प्रमुख ढंग है –

1, निस्तीकरण या विलोपन द्वारा (By Cancellation) – धारा 82 (ए) के अनुसार, जब किसी विलेख का धारक विलेख के स्वीकर्ता का अथवा प्रष्ठांकनकर्ता का नाम उसको मुक्ति करने के इरादे से निरस्त या रद कर देता है तो ऐसा स्वीकर्ता अथवा प्रष्ठांकनकर्ता उक्त धारक तथा उसके वाद वाले पक्षकारों के प्रति अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाता है |

2, छुटकारे द्वारा (By Release) यदि किसी विलेख का धारक, विलोपन के अतिरिक्त अन्य किसी, विधि से उसके लेखक, स्वीकर्ता अथवा प्रष्ठांकनकर्ता को उनके दायित्त्व से मुक्त कर देता है तो ऐसा पक्षकार धारक के प्रति धारक के बाद स्वामित्त्व प्राप्त कर्ण एवाले सभी पक्षकारों के प्रति छुटकारे के द्वारा अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाता है | I धारा 82 (B) I

3, विलेख के देनदार (आदेशिती) को 48 घण्टे से अधिक का समय देने पर (By Allowing More Than 48 Hours to Drawee)यदि किसी विपत्र का धारक उसके आहर्यी देंदत की स्वीकृति के लिए 48 घण्टे से अधिक समय (सार्वजनिक अवकाश के अतिरिक्त) प्रदान करता है, तो ऐसे सभी पक्षकार जो ऐसी छुट से सहमत नही है, धारक के प्रति, अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाते है | (धारा 83)

4, चैक को देरी से प्रस्तुत करने पर (Discharge by Delay in Presentation of Cheque)एक चैक को निर्गमित करने के बाद उचित समय में भुगतान के लये प्रस्तुत न करने पर यदि चैक के लेखक (अहार्ता) (Drawer) को हानि होती है तो चैक का लेखक उस सीमा तक अपने दायित्त्व से मुक्त माना जाता है | परन्तु धारक उस सीमा तक बैंक का ऋणदाता माना जायेगा | (धारा 84)

उदाहरण – सुरेश 1,000 रूपये का एक चैक लिखता है , और जिस समय चैक को प्रस्तुतु किया जाना चाहिये उस समय इसका भुगतान करने के लिए बैंक में उसके पर्याप्त कोष है | चैक प्रस्तुत करने से पूर्व बैंक फ़ैल हो जाता है | सुरेश अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है, परन्तु उसका धारक बैंक से चैक की राशि वसूल कर सकता है |

5, मर्यादित अथवा सीमित स्वीकृति की दशा में (Discharged by Qualified or Limitrd Acceptance) (धारा 86) – जब किसी बिल का धारक पूर्ववर्ती पक्षकारों (अपने से पहले वाले पक्षकारों) की सहमति के बिमना बिल के स्वीकर्ता द्वारा दी गई शर्तयुक्त या सीमित स्वीकृति के लिए सहमत हो जाता है तो सभी पक्षकार, जिसकी उक्त स्वीकृति के लिये सहमति प्राप्त नही की गई है, धारक के प्रति तथा इसके बाद वाले पक्षकारों के प्रति अपने-अपने दायित्व से मुक्त हो जाते है |

6, महत्वपूर्ण परिवर्तन द्वारा (By Material Alteration) (धारा 87) – यदि कोई धारक पूर्व पक्षों की सहमति के बिना विलेख में महत्वपूर्ण परिवर्तन करता है तो उसके पूर्व के पक्ष अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाते है | परन्तु प्रतिवर्तित विलेख का स्वीकर्ता अथवा प्रष्ठांकनकर्ता अपने दायित्त्व से मुक्त नही हो सकता |

इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखना आवश्यक है की यदि परिवर्तन पूर्व पक्षों की सहमति से या सभी पक्षों का दायित्त्व समाप्त नही होता | (धारा 87 एवं 88)

7, अनादरण की सुचना न देने पपर (धारा 93) – जब किसी विलेख का धारक इसके अनादरण की सुच उचित समु के अंदर सभी पूर्व पक्षकरों को नही देता है तो वे सभी पक्षकार ऐसे धारक के प्रति अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाते है |

8, स्वीकर्ता के धारक बनने पर (By Acceptor becoming Holder) (धारा 90) – जब प्रक्रमित लिये गये विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता देयतिथि पर या उसके बाद विलेख का पुन: धारक बन जाता है तो उस विपत्र के सभी पक्षकार दायित्त्व मुक्त हो जाते है |

9, कानून लगी हो जाने पर (By operation of Law) कभी-कभी किसी कानून के लागु हो जाने पर भी कोई पक्षकार अपने दायित्त्व से मुक्त हो जाता है | उदाहरण के लिये, दिवालिया अधिनियम के अन्तर्गत दिवालिया घोषित हो जाने पर ऋणी अपने दायित्त्व से मुक्त हो जता है | इस प्रकार देय तिथि के तीन वर्ष की अवधि में क़ानूनी कार्यवाही न करने पर ऋण Time Barred हो जाते है तथा दायी पख अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है |

अनादरित बिल से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों के अधिकार

(Rights of Different Parties of a Dishonoured Bill)

1, धारक को अधिकार – धारक अपने से पूर्व के सभी पक्षकारों पर विलेख में देय धनराशि तथा विलेख को प्रस्तुत करने, नोटिंग तथा प्रोटेस्ट करने के उचित व्यय प्राप्त करने के लिये उन पर दावा कर सकता है |

2, प्रष्ठांकनकर्ता को अधिकार – यदि विलेख का अनादर होने पर प्रष्ठांकनकर्ता को भुगतान करना पड़ता है तो वह विलेख की रकम तथा उस पर देय तिथि से भुगतान की तिथि तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज और भुगतान व अनादरण के कारण हुये खर्चो की रकम प्राप्त करने का अधिकारी है |


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