BCom 1st Year Business Economics Oligopoly in Hindi
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अल्पाधिकार
Oligopoly
प्रश्न 1-अल्पाधिकार से आप क्या समझते हैं? अल्पाधिकार की दशा में मूल्य और उत्पादन के निर्णय किस प्रकार लिये जाते हैं? समझाइये। (Meerut 2005 Back)
उत्तर-
अल्पाधिकार का अर्थ एवं परिभाषाएँ
(Meaning and Definitions of Oligopoly)
अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु के बहुत कम विक्रेता होते हैं तथा प्रत्येक विक्रेता कुल पूर्ति के बड़े भाग पर नियन्त्रण रखता है और वस्तु के मूल्य को प्रभावित कर सकता है। अल्पाधिकार के अन्तर्गत फर्मे या तो समान वस्तुओं का अथवा ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करती हैं जो कि निकट स्थानापन्न हों। अल्पाधिकार में फर्मों या विक्रेताओं की संख्या सीमित होने के कारण एक फर्म द्वारा लिये गए निर्णय का प्रभाव उसकी प्रतिद्वन्दी फर्मों पर पड़ता है तथा प्रतिद्वन्दी फर्मों के निर्णयों का प्रभाव इस फ़र्म पर पड़ता है। अत: अल्पाधिकार बाजार में विद्यमान सभी विक्रेता इस परस्पर निर्भरता का अनुभव करते हैं तथा इसके अनुसार ही कीमत एवं उत्पादन सम्बन्धी निर्णय लेते हैं।
श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “अल्पाधिकार, एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता की मध्यवर्ती स्थिति है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या एक से अधिक होती है, परन्तु इतनी अधिक नहीं होती कि बाजार कीमत पर किसी एक के प्रभाव को नगण्य बना दें।” ।
प्रो० मेयर्स के अनुसार, “अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर समुचित प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक विक्रेता इस बात से परिचित होता है।”
लेफ्टविच के अनुसार, “बाजार की वे दशाएँ अल्पाधिकार की दशाएँ कहलाती हैं जिनमें थोड़ी संख्या व इतने से विक्रेता पाये जाते हैं कि एक की क्रियाएँ दूसरों के लिये महत्त्वपूर्ण होती हैं।”
संक्षेप में,अल्पाधिकार की स्थिति उस समय पाई जाती है जब किसी वस्तु के उत्पादक एवं विक्रेता सीमित संख्या में पाए जाते हैं तथा बाजार की पूर्ति में उनका महत्त्वपूर्ण भाग होता है।
अल्पाधिकार की विशेषताएँ
(1) विक्रेताओं की सीमित संख्या– अल्पाधिकार में विक्रेताओं की संख्या बहुत कम होती है तथा प्रत्येक विक्रेता उत्पादन एवं मूल्य को प्रभावित कर सकता है।
(2) समरूप अधवा विभेदित वस्तुएँ– अल्पाधिकारी लगभग समरूप वस्तुओं का अथवा . विभेदित वस्तुओं का उत्पादन कर सकते हैं।
(3) फर्मों के प्रवेश एवं बहिर्गमन में कठिनाई – इसमें नई फर्मों के प्रवेश एवं बहिर्गमन में बहुत कठिनाई होती है। पेटेण्ट, भारी विज्ञापन व्यय, कच्चे माल आदि समस्याओं के कारण नई फर्मों का प्रवेश कठिन होता है।
(4) माँग वक्र की अनिश्चितता– अल्पाधिकार बाजार में सभी फर्मे परस्पर निर्भर होती : है, इसीलिए फर्म का माँग अथवा लागत वक्र अनिश्चित होता है।
(5) गैर–मूल्य प्रतियोगिता–अल्पाधिकार के अन्तर्गत सभी फमैं गैर मूल्य प्रतियोगिता अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करती हैं।
(6) परस्पर निर्भरता– इस स्थिति में सभी फर्मे आपस में एक दूसरे पर निर्भर होती है। एक फर्म द्वारा लिये गए वस्तु की कीमत व उत्पादन सम्बन्धी निर्णयों का प्रत्यक्ष प्रभाव अन्य प्रतिद्वन्दी फर्मों के लाभों पर पड़ता है।
(7) मूल्य स्थिरता– अल्पाधिकारी स्थिति में कीमत स्थिरता की स्थिति पाई जाती है। मूल्य युद्ध के भय से कोई भी फर्म मूल्य परिवर्तन पसन्द नहीं करती।
(8) विज्ञापन एवं विक्रय सम्वर्द्धन क्रियाएँ– इस स्थिति में फर्मों द्वारा विज्ञापन एवं विक्रय सम्वर्द्धन क्रियाओं पर बहुत अधिक व्यय किया जाता है।
अल्पाधिकार के अन्तर्गत मूल्य एवं उत्पादन निर्णय
अल्पाधिकार में उद्योग की सभी फर्मे आपस में एक दूसरे से सम्बन्धित होती हैं। इसमें एक फर्म द्वारा लिये गए वस्तु की कीमत तथा उत्पादन सम्बन्धी निर्णयों का प्रभाव अन्य फर्मों के लाभों पर पड़ता है । इसीलिये अल्पाधिकार के अन्तर्गत मूल्य तथा उत्पादन सम्बन्धी निर्णय अन्य बाजार स्थितियों से भिन्न होते हैं । इस स्थिति में मूल्य निर्धारण की निम्नलिखित दशाएँ पाई जाती हैं
(1) स्वतन्त्र कीमत निर्धारण– जब सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु अलग-अलग होती हैं, तो प्रत्येक फर्म अपनी स्वतन्त्र मूल्य नीति अपना सकती है अर्थात् फर्मे बिना दूसरी फर्मों के प्रभाव या हस्तक्षेप के, स्वतन्त्रतापूर्वक मूल्य का निर्धारण कर सकती हैं। लेकिन यदि सभी फर्मे समरूप वस्तु का उत्पादन करती हैं, तो सभी फर्मे समान मूल्य निर्धारित करेंगी अन्यथा कीमत युद्ध के कारण उत्पादन एवं कीमत में अनिश्चितता बनी रहेगी।
(2) गुटबन्दी के अन्तर्गत मूल्य निर्धारण– स्वतन्त्र मूल्य निर्धारण नीति के परिणामस्वरूप जब फर्मों के बीच अनिश्चितता का वातावरण होता है, तब यह अनिश्चितता अल्पाधिकारी फर्मों के बीच गुटबन्दी या कार्टेल को जन्म देती है।
गुटबन्दी में फमों के बीच उत्पादन तथा कीमत निर्धारण के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में समझौता हो जाता है। इस समझौते का उद्देश्य अल्पाधिकार के अन्तर्गत विभिन्न फर्मों के . कारटेल (Cartel) अथवा संघ का निर्माण करना है । ऐसे संघ की शक्ति एकाधिकारी शक्ति से मिलती-जुलती है । संघ के अन्तर्गत फर्मों के द्वारा वस्तु की एक ऐसी कीमत निर्धारित की जाती है, जो समूचे उद्योग के लाभ को अधिकतम कर सकती है। यह कारटेल अपने गुट की प्रत्येक फर्म के लिये उत्पत्ति की मात्रा,मूल्य तथा विक्रय क्षेत्र निर्धारित करता है । यह संस्था अपने गुट के सदस्यों के लाभ को अधिकतम करने के लिये वह मात्रा तथा मूल्य निर्धारित करती है, जिस पर सम्पूर्ण उद्योग की सीमान्त लागत तथा सीमान्त आगम आपस में बराबर होते हैं । कारटेल अनेक प्रकार के हो सकते हैं, जैसे लाभ विभाजन कारटेल, बाजार विभाजन कारटेल आदि । अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिये कारटेल द्वारा मूल्य तथा उत्पादन का निर्धारण उस बिन्दु पर किया जाता है जहाँ सम्पूर्ण उद्योग की सीमान्त लागत (TMC), उद्योग की सीमान्त आगम के बराबर होती है।
रेखाचित्र से स्पष्ट है कि उद्योग का साम्य बिन्दु E है जिस पर TMC=TMR है। अतः सम्पूर्ण उद्योग द्वारा OP मूल्य पर OQ मात्रा में उत्पादन का विक्रय किया जाएगा।
मूल्य नेतृत्व – इस स्थिति में मूल्य का निर्धारण उद्योग की किसी एक बड़ी व शक्तिशाली पर्म के द्वारा किया जाता है तथा अन्य सभी फर्मे उसको मूल्य नीति का अनुसरण करती हैं। आर्थर बर्नस् के अनुसार, “यदि एक ही फर्म द्वारा सदैव या प्रायः अपनी कीमत में परिवर्तन किये जाते हैं तथा अन्य विक्रेता सदैव अथवा प्राय: इन कीमत परिवर्तनों का अनुकरण करते हैं, तो ऐसा कीमत निर्धारण मूल्य नेतृत्व के अन्तर्गत आता है।”
प्रधान फर्म के कीमत– नेतृत्व के अन्तर्गत उद्योग के उत्पादन का अधिकांश भाग केवल एक ही फर्म द्वारा तैयार किया जाता है और शेष अल्प भाग अन्य (छोटी) फर्मों के द्वारा तैयार होता है । इस प्रकार उद्योग में छोटी-छोटी फर्मों का विशेष महत्त्व नहीं होता। ये फर्मे न तो उत्पादन की मात्रा को और न ही कीमत को प्रभावित कर सकती हैं। फलतः प्रधान फर्म ही कीमत का निर्धारण करती है और शेष छोटी फर्मे उसे स्वीकार कर लेती हैं। इसीलिए इन फर्मों के सम्बन्ध में कीमत रेखा एक पड़ी हुई रेखा के रूप में होती है।
नेता फर्म द्वारा मूल्य सम्बन्धी निर्णय सम्बद्ध बाजार दशाओं, सरकारी करारोपण तथा उत्पादन लागतों में परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए किये जाते हैं। कीमत नेतृत्व की स्थिति उन उद्योगों में अधिक पाई जाती है, जोकि समरूप या प्रभावित वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जैसे—सीमेन्ट, तेल, चीनी, इस्पात आदि।
लघु उत्तरीय प्रश्न
(Short Answer Questions)
प्रश्न 1-कीमत दृढ़ता से आप क्या समझते हैं? विकुंचित माँग वक्र की सहायता से कीमत दृढ़ता की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कीमत दृढ़ता से आशय
अल्पाधिकार की स्थिति में मूल्य में प्रायः स्थिरता पाई जाती है तथा एक सीमा के अन्दर लागत या माँग दशाओं में परिवर्तन होने पर भी कीमतों में परिवर्तन नहीं होता। अल्पाधिकार में विभिन्न फर्मों के बीच पारस्परिक निर्भरता पाई जाती है जिससे उनकी वस्तु की कीमत पर नियन्त्रण की शक्ति सीमित हो जाती है। यदि एक फर्म वस्तु की कीमत को घटाती है, तो अन्य प्रतियोगी फर्मों के ग्राहक उसकी तरफ आकृष्ट होंगे तथा उसकी बिक्री बढ़ेगी। लेकिन इस स्थिति में प्रतियोगी फमें भी अपनी कीमत घटा देंगी। इससे फर्मों के बीच कीमत युद्ध होगा तथा सभी फर्मों को हानि होगी। इसके विपरीत, यदि एक फर्म अपनी कीमतों में वृद्धि करती है, तो इससे उसके ग्राहक अन्यत्र चले जाएँगे। अत: अल्पाधिकारी फर्मों की इस प्रवृत्ति के कारण ही कोई भी फर्म मूल्य में परिवर्तन करना नहीं चाहती, जिससे बाजार में कीमत दृढ़ता -की स्थिति देखने को मिलती है।
विकुंचित माँग वक्र सिद्धान्त
प्रो० स्वीजी ने अल्पाधिकार के अन्तर्गत कीमत दृढ़ता के कारणों की व्याख्या करने के . लिये विकुंचित माँग वक्र की अवधारणा का प्रतिपादन किया। विकुंचित माँग वक्र सिद्धान्त अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण की व्याख्या नहीं करता। यह तो केवल इतना बताता है कि जब एक बार अल्पाधिकार में कीमत निर्धारित हो जाती है तो यह अपरिवर्तित या स्थिर क्यों रहती है?
यह विश्लेषण दो प्रमुख मान्यताओं पर आधारित है-
(1) अल्पाधिकारी उद्योग परिपक्वता की स्थिति में आ चुका है।
(2) अल्पाधिकारी फर्म के प्रतिद्वन्दी मूल्य में कमी का अनुसरण तो करते हैं, परन्तु मूल्य में वृद्धि का अनुसरण नहीं करते।
प्रो० स्वीजी के अनुसार, एक अल्पाधिकारी फर्म को विकुंचित मांग वक्र. (kinked demand curve) का सामना करना पड़ता है । माँग वक्र में एक निश्चित मूल्य पर एक मोड़ (kink) पाया जाता है, जिससे माँग की लोच में एक साथ बहुत अधिक परिवर्तन आ जाता है। माँग वक्र का इस मोड़ से ऊपर वाला भाग अधिक लोचदार होता है तथा नीचे वाला भाग कम लोचदार होता है। इस कारण यदि फर्म अपने मूल्य में कोई भी परिवर्तन करती है, तो उसके लाभ में कोई वृद्धि नहीं होगी। इस स्थिति को रेखाचित्र के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता
इस रेखाचित्र में EKD अल्पाधिकारी फर्म का माँग वक्र है जिस पर प्रचलित मूल्य OP है। इस मूल्य पर फर्म वस्तु की OQ मात्रा का विक्रय कर लेती है । K उस बिन्दु को दर्शाता है जिस पर माँग में अप्रत्याशित परिवर्तन आया है। माँग वक्र का ऊपर वाला भाग EK अधिक लोचदार माँग तथा नीचे वाला भाग KD कम लोचदार माँग को दर्शाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यदि एक अल्पाधिकारी फर्म . . अपनी बिक्री बढ़ाने के लिये अपनी वस्तु की । कीमत को वर्तमान कीमत OP से कम कर देती है,तो इस स्थिति में अन्य फर्मों के ग्राहक उसकी तरफ आकर्षित होंगे तथा इस स्थिति से निबटने के लिये अन्य अल्पाधिकारी फर्मे भी अपनी . कीमतों में कमी कर देगी। परिणामस्वरूप कीमत में कमी करने से अल्पाधिकारी की बिक्री में कोई विशेष वृद्धि नहीं होगी। इसी कारण माँग वक्र का नीचे वाला भाग कम लोचदार होता हैं |
इसी प्रकार यदि कोई अल्पाधिकारी फर्म अपनी वस्तु की कीमत को वर्तमान स्तर से बढ़ा देती है, तो इससे उसके ग्राहक उसकी वस्तु को खरीदने के स्थान पर उसके प्रतिद्वन्दियों की वस्तुओं को खरीदने लगेंगे। परिणामस्वरूप कीमत वृद्धि के कारण अल्पाधिकारी की बिक्री में तीव्र कमी आ जाएगी। इसी कारण माँग वक्र का ऊपरी हिस्सा अधिक लोचदार होता है। – इस प्रकार स्पष्ट है कि कोई भी अल्पाधिकारी न तो प्रचलित कीमत में कमी लाएगा और न ही वृद्धि, बल्कि वह प्रचलित कीमत को ही बनाए रखेगा। यही कारण है की माँग वक्र चालू कीमत स्तर पर विकुंचित होता है।
प्रश्न 2-एकाधिकार तथा अल्पाधिकार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
अल्पाधिकार किसे कहते हैं ? एकाधिकार एवं अल्पाधिकार के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिये।
(2006)
उत्तर – एकाधिकार एवं अल्पाधिकार में प्रमुख अन्तर निम्न प्रकार हैं –
अन्तर का आधार | एकाधिकार | अल्पाधिकार | |
1. | विक्रेता की संख्या | इसमें वस्तु का केवल एक ही उत्पादक तथा विक्रेता होता है | | इसमें एक वस्तु के थोड़े से विक्रेता होते है | |
2. | स्थानापन्न वस्तुएँ | एकाधकर में वस्तु की स्थानापन्न वस्तुएँ नही होती | | अल्पाधिकार में वस्तु की निकट स्थानापन्न वस्तुएँ पाई जाती है |
3. | वस्तु की प्रकृति | एकाधिकार में वस्तु समरूप होती है| | इसमें वस्तुएँ समरूप या विभिन्न हो सकती है | |
4. | प्रतिदृन्दी फर्म का प्रभाव | एकाधिकार फर्म के कार्यों पर अन्य फर्मो द्वारा लिए गए निर्णयों का कोई प्रभाव नही पड़ता है | | इसमें एक फर्म द्वारा लिए गए उत्पादन तथा मूल्य निर्धारण सम्बन्धी निर्णयों का प्रभाव अन्य अल्पाधिकारी फर्मों पर पड़ता है | |
5. | माँग वक्र की निश्चितता | एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र निर्धारित किया जा सकता है | | अल्पाधिकार फर्म का माँग वक्र अनिश्चित होता है तथा इसे निर्धारित नही किया जा सकता | |
6. | विज्ञापन तथा विक्रय सम्वर्ध्दन क्रियाएँ | एकाधिकारी फर्म द्वारा विज्ञापन तथा विक्रय सम्वर्ध्दन क्रियाओं पर आधिक व्यय नही क्या जाता | | अल्पाधिकार में फर्मों विज्ञापन तथा विक्रय सम्वर्ध्दन क्रियाओं का व्यापक प्रयोग अपनी बिक्री को बढ़ने के लिए करती है | |
7. | असामान्य लाभ | एकाधिकारी फर्म के द्वारा दीर्घकाल में असामान्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है | | अल्पाधिकार में असामान्य लाभ प्राप्त करना सम्भव नहीं होता | |
8. | फर्मों का प्रवेश व् बहिर्गमन | इससे नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध होता है | | इसमें नई फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबन्ध नही होता लेकिन कर्हिनाई अवश्य होती है | |
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