Financial Account Meaning and Definitions of Hire Purchase System
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किराया-क्रय पद्धति Hire-Purchase System
किराया-क्रय पद्धति का अर्थ (Meaning of Hire-Purchase System)
Financial Account Meaning and Definitions of Hire Purchase System : अनेक बार ऐसी स्थिति उत्पन होती है की हम सम्पति (मशीन,कार,वैगन,फर्निचर, आदि) क्रय करना चाहते है परन्तु उसका मूल्य चुकाने की स्थिति में नही होते ऐसी स्थिति में यह प्रशन उठता है की वह सम्पति कैसे क्रय की जाये | एस समस्या का समाधान किराया क्रय पद्धति द्वारा किया जाता है किराया क्रय पद्धति माल के क्रय-विक्रय की एक विशेष पद्धति में क्रेता एव विक्रेता के बीच एक अनुबन्ध होता है क्रेता द्वारा विक्रेता को माल का मुक्य किश्तों में चुकाया जाता है ये किश्ते अनुबन्ध द्वारा ही निर्धारित की जाती है किश्ते मासिक, तिमाही, छमाही, वार्षिक तथा अन्य प्रकार की हो सकती है क्रेता को माल की प्राप्ति तो किराया-क्रय समझोते पर हस्ताक्षर करते समय ही हो जाती है परन्तु वह माल का स्वामी अन्तिम किश्त का भुगतान करने के पशचात ही बनता है क्रेता द्वारा किश्तों का भुगतान न करने की दशा में विक्रेता माल को वापिस माँग सकता है तथा जो किश्त क्रेता द्वारा विक्रेता को दे दी गयी है ,
उन्हें माल का प्रयोग करने के लिए किराये की तरह मान सकता है—
किराया-क्रय पद्धति की परिभाषाये (Definitions of Hire-Purchase System )
कार्टर के अनुसार, “किराया-क्रय पद्धति ऐसी पद्धति है जिसमे माल की कीमत सामायिक किश्तों द्वारा माल को क्रय करने के उदेश्य से भुगतान की जाती है | अन्तिम किश्त के भुगतान के समय तक प्रत्येक भुगतान को किराया माना जाता है और माल का स्वामित्व क्रेता को तभी मिलता है जब उसके द्वारा सभी किश्तों का भुगतान कर दिया जाता है
जे० आर० बाटलीबायके अनुसार. “ किराया क्रय पद्धति में माल ऐसे व्यक्ति को दिया जाता है जो माल की कीमत इसके स्वामी को निशचित सामायिक किश्तों द्वारा भुगतान करता है ये किश्त उस समय तक माल के किराये की तरह समझी जाती है जब तक माल की पूरी राशी का भुगतान न कर दिया जाये और तभी वह माल क्रेता की सम्पति हो जाता है |
किराया-क्रय पद्धति की विशेषताये (Characteristie Hire-Purchase System)
1 . माल का विक्रय उधार होना – किराया-क्रय पद्धति के अंतगर्त माल की बिक्री उधार मानी जाती है क्योकि इस पद्धति में माल की पूरी कीमत का भुगतान क्रय करते समय नही किया जाता है |
2 . क्रेता एव विक्रेता के बीच अनुबन्ध होना – किराया-क्रय पद्धति में विक्रेता एव क्रेता के बीच एक अनुबन्ध होता है अनुबन्ध में ही किश्तों की राशी एव उनके भुगतान का समय निर्धारित किया जाता है किश्तों के अतिरिक्त अन्य सभी शर्तो के सम्बन्ध में भी निणर्य अनुबन्ध में ही ले लिये जाते है
3 . क्रेता को माल का स्वामित्व – किराया-क्रय पद्धति में क्रेता को माल स्वामित्व अन्तिम किश्त का भुगतान करने के पशचात ही प्राप्त होता है अन्तिम किश्त का भुगतान न करने की तिथि तक माल का स्वामित्व विक्रेता के पास ही रहता है |
4 . क्रेता को माल की प्राप्ति व् प्रयोग का अधिकार – किराया-क्रय पद्धति के अंतगर्त क्रेता को माल की प्राप्ति अनुबन्ध पर हस्ताक्षर करते समय ही हो जाती है इसके साथ ही उसे माल प्रयोग करने का अधिकार भी मिल जाता है वह तब तक माल का प्रयोग निरंतर करता रहता है जब तक की वह किस्तों का भुगतान करने में त्रुटी न करे |
5 . मरम्मत का दायित्व विक्रेता पर होना – अन्तिम किश्त का भुगतान करने तक माल की मरम्मत का दायित्व प्राय: विक्रेता पर होता है यदि क्रेता द्वारा माल के प्रति सम्पूर्ण सावधानी बरतने पर भी माल में कुछ मरम्मत की आवश्यकता होती है तो उसका दायित्व विक्रेता का होगा |
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