B.Com 1st Year Capital and Revenue Items Meaning of Capital and Revenue
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पूंजीगत एव आयगत मदे (Capital and Revenue items)
पूंजीगत अर्थ (Meaning of Capital)
B.Com 1st Year Capital and Revenue Items Meaning of Capital and Revenue : पूंजी से आशय धन एव सम्पति के ऐसे भाग से है जिसकी प्रयोग और अधिक धन कमाने के लिए किया जाता है लेखाकंन में पूंजी से आशय सम्पतियो के दायित्व पर आधिक्य से लगाया जाता है (पूंजी = कुल सम्पतिया – कुल दायित्व) |
पूंजीगत व्ययों से आशय उन व्ययों से है जो व्यवसाय के लिए स्थाई सम्पति प्राप्त करने स्थाई सम्पति में वर्धि करने के लिए किए जाते है व्यवसाय को इन व्ययों का लाभ लम्वे समय तक (एक वर्ष से अधिक) प्राप्त होता रहता है |
पूंजीगत व्ययों की विशेषताये (Characteristics of Capital Exenditure)
- स्थाई स्वभाव – पूंजीगत व्यय स्थाई स्वभाव के होते है ये व्यय लम्बे अवधि के लिए किए जाते है जैसे – 5 वर्ष, 10 वर्ष या इससे भी अधिक |
- दीर्घकालीन उपयोगिता – पूंजीगत व्यय का लाभ व्यवसाय को लम्बे समय तक मिलता रहता है कुछ व्यय तो ऐसे होते है की उनका लाभ जीवन भर ही प्राप्त होता रहता है
- व्यवसाय के लिये प्रयाग करना, न की बेचना – पूंजीगत व्ययों की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह होती है की इनके द्वारा जो सम्पति या अधिकार प्राप्त किए जाते है वे व्यापार चलाने के उद्देश्य से प्राप्त किए जाते है बेचने के उद्देश्य से नही |
- अनावर्तक स्वभाव – पूंजीगत व्यय अनावर्तक स्वभाव (Non-recurring Nature) के होते है अर्थात् इन व्ययों को बार बार करने की आवश्यकता नही होता है इसी कारण इन व्ययों को सम्पति माना जाता है |
आय का अर्थ (meaning of Revenue)
आय से आशय प्राप्तियो के व्ययों पर अधिक्य से है लेखाकन में आय से आशय आयगत प्राप्तियो के आयगत भुगतानो पर अधिक्य से लगाया जाता है (आय = कुल आयगत प्राप्तिया – कुल आयगत भुगतान) |
आयगत व्ययों से आशय उन व्ययों से है जो व्यापार सचालन तथा स्थाई सम्पतियो की कार्यछमता बनाए रखने के सम्बन्ध में सामान्य रूप से किए जाते है ये व्यय बार-बार किए जाते है और इनका लाभ एक निशिचत अवधि के लिए ही प्राप्त होता है
आयगत व्ययों की विशेषताये (Characteristics of Revenue Expenditure)
- अस्थाई स्वभाव – आयगत व्यय अस्थाई स्वभाव के होते है ये व्यय बार बार किये जाते है सच तो यह है की जब तक व्यापार चलता रहता है तभी तक ये व्यय नियमित रूप से होते रहते है |
- अल्पकालीन उपयोगित – आयगत व्ययो की उपयोगिता बहुत कम समय के लिए होती है सच तो यह है की इन व्ययो की उपयोगिता केवल उसी अवधि में होती है जिस अवधि में ये व्यय किए गए है |
- व्यवसाय सचालन का उदेश्य – आयगत व्ययों का उदेश्य व्यवसाय का ठीक प्रकार सचालन करना होता है इनका उदेश्य स्थाई सम्पतियो की कार्यछमता को बनाए रखना भी होता है |
- लाभ-हानि की गणना का आधार – आयगत व्यय की व्यवसाय के लाभ हानि की गणना का आधार बनते है व्यापार का लाभ हानि इन व्ययों के आधार पर ही ज्ञात किया जाता है |
पेपर में इस पाठ से पूंजीगत व्ययों तथा आयगत व्ययों में अंतर जरुर आता है आप अगर इन दोनों के बारे में समझ लेगे तो आप आसानी से इसे लिख सकते है इसलिए इन दोनों को आवश्य यद् करे |
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