Parties Competent to Contract Bcom Business Law

Parties Competent to Contract Bcom Business Law

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Parties Competent to Contract Bcom Business Law
Parties Competent to Contract Bcom Business Law

 

अनुबन्ध करने के योग्य पक्षकार (Parties Competent to Contract)

अधिकतर अवयस्क व्यक्ति अपरिपक्व मस्तिष्क के तथा अनुभावहीन होते है कोई व्यक्ति इनकी आभावहिनता से अनुचित लाभ न उठा ले इसलिये उन्हें कानून द्वारा सरक्षण प्रदान किया गया है वस्तुतः अवयस्क होना जहाँ अनुबन्ध करने के लिये योग्यता है, वही यही अयोग्यता अवयस्को को सुरक्षा प्रदान करती है | सालमण्ड (Salmond) ने ठीक कहा है, “कानून अवयस्को की रक्षा करता है, उनके अधिकारों एवं सम्पति की सुरक्षा करता है, उनकी त्रुटियों को क्षमा करता है, उनकी और से वैधानिक कार्यवाही में उनकी सहायता करता है | न्यायधीश उनके सलाहकार होते है, जूरी के सदस्य उनके सेवक होते है तथा कानून उनका सरक्षक होता है |”

अवयस्क की वैधानिक स्थिति (Legal Position of a Minor) – भारतीय अनुबन्ध अधिनियम के अनुसार एक अवयस्क द्वारा किये गये अनुबन्ध में निम्नलिखित प्रावधान दिये गये है –




1) अवयस्क के साथ किये गये अनुबन्ध पूर्णत: व्यर्थ होते है (Contracts with Minors are Absolutely Void) – अवयस्क के साथ किये गये समझौते आरम्भ से ही पूर्णत: व्यर्थ होते है अर्थात् प्रभाव शून्य होते है | जिस प्रकार शून्य से कोई परिणाम नही निकल सकता उसी प्रकार व्यर्थ समझौता ओई दयित्व उत्पन्न दायित्व की पूर्ति के लिये बाध्य नहीं है | कहने का अभिप्राय यह है की यदि अवयस्क ने किसी अनुबन्ध के अन्तर्गत लोई दायित्व अपने ऊपर लिया है या किसी अनुबन्ध अन्तर्गत कोई धनराशी प्राप्त कर ली है तो अवयस्क को ऐसे दातित्व को पूरा करने या धनराशी वापस करने के लिये दायी नही उठाया जा सकता चाहे उसके साथ अनुबन्ध करने वाले पक्षकार को अवयस्कता का ज्ञान हो या नही | यहाँ पर उल्लेखनीय है की यह नियम तभी लागु होगा है जबकि वह अवयस्क के विरुध्द किसी दायित्व को पूरा करने के लिये प्रस्तुत किया गया हो, परन्तु जहाँ अवयस्क अपने दायित्व को पूरा कर चुका है और दुसरे पक्षकार से दायित्व की पूर्ति की माँग करता है तो न्यायालय अवयस्क की सहायता करेगा | इस सम्बन्ध में मोहरी बीबी बनाम धर्मोदास घोष का विवाद महत्पूर्ण है | इसमें प्रतिवादी (धर्मोदास घोष) ने जो की एक अवयस्क था, वादी (मोहरी बीबी) के प्रति से 20 जुलाई, 1895 को 8,000 रूपये उधार लिये थे और उनके बदले में 20,000 रूपये का एक बन्धक-पत्र (Mortgage Bond) लिख दिया था | साथ में धर्मोदास से यह घोषणा भी लिखवा ली गई थी की वह 17 जून, 1895 को ही वयस्क हो गया था | अपनर [अति की मृत्यु के पश्चात् वादी ने बन्धक पत्र के आधार पर वाद प्रस्तुत किया | प्रिवी कौंसिल द्वारा यह निर्णय दिया गया था की वादी में (मोहरी बीबी) रुपया वापस पाने की अधिकारी नही है, क्योकि अवयस्क के साथ किया गया प्रत्येक अनुबन्ध व्यर्थ (Void) होता है | अतएव धर्मोदास ने 8,000 रूपये नही लौटाये |

2) अवयस्क के विरुध्द अवरोध का सिध्दांत लागु नही होते (No Estoppel against Minor) – यदि एक अवयस्क स्वयं को वयस्क बतलाकर किसी व्यक्ति के साथ कोई अनुबन्ध कर लेता है तो ऐसी दशा में भी उसे बाद में यह सिध्द करने में नही रोका जा सकता की अनुबन्ध करते समय वह अयस्क था अवरोध का सिधान्त अवयस्क पर इसलिये लागु नही किया जा सकता क्योकि यदि ऐसा न हो तो चालाक व्यक्ति अवयस्क से वयस्क होंव की लिखित घोषणा करवा क्र अनुबन्ध क्र लेंगे जिससे अवयस्क को हानि हो सकते है |

3) वयस्क होने पर भी अनुबन्ध का पुष्टिकरण नही किया जा सकता (Minor’s Contract cannot be Ratified) – अवयस्क द्वारा दिए गये अनुबन्ध पूर्णत: व्यर्थ होते है, अत: व्यस्क होने पर वह उनका पुष्टिकरण नही कर सकता अर्थात् जो अनुबन्ध पहले व्यर्थ था, पुष्टिकरण द्वारा बाद में उसे वैध नही बनाया हा सकता | उदहारणार्थ यदि किस अवयस्क ने अवयस्क की अवधि में ॠण लेकर प्रोनोट लिखा, बाद में वयस्क होने पर पुराने प्रोनोट के बदले में एक नया प्रोनोट लिख दिया | एक नये प्रोनोट (प्रतिज्ञा-पत्र) के आधार पर रकम वसूल नहीं की जा सकती क्योकि यह एक स्वतन्त्र अनुबन्ध न होकर अवयस्क के साथ किये गये समझौते का पुष्टिकरण मात्र है जो व्यर्थ है |

4) जीवनरक्षक आवश्यकताओ के लिये अवयस्क द्वारा अनुबन्ध (Contract for Necessaries done by a Minor) – यघपि एक अवयस्क अनुबन्ध करने के अयोग्य है परन्तु वह अपने जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति के लिये अपनी सम्पति के आधार पर ॠण ले सकता है अथवा अनुबन्ध कर सकता है | ऐसी दशा में केवल अवयस्क की सम्पति ही उतरदायी होदी, अवयस्क स्वयं व्यक्तिगत रूप से उतरदायी नहीं होगा |

5) अवयस्क के सरंक्षक अथवा निरीक्षक द्वारा किया गया अनुबन्ध (Contract done by the Guardian or Count of Words of a Minor) – एक अवयस्क के माता-पिता क़ानूनी संरक्षक अथवा सम्पति के निरीक्षक द्वारा अवयस्क की ओर से किया गया अनुबन्ध उसके विरुध्द लागु कराया जा सकता है, यदि वह अनुबन्ध निम्नलिखित दो शर्तो को पूरी करता हो –

       (i) अवयस्क के सरंक्षक अथवा उसकी सम्पति के निरीक्षक को ऐसा करने का अधिकार प्राप्त हो,

       (ii) ऐसा अनुबन्ध अवयस्क के लाभ के लिये किया गया हो |




6) अवयस्क द्वारा अपने लाभ के लिये अनुबन्ध करना (Minor’s Contract for Benefits) – कानून अवयस्क को लाभ प्राप्त करने के अयोग्य नहीं मानता अर्थात् अवयस्क अपने लाभ के लिये अनुबन्ध कर सकता है परन्तु किसी ऐसे अनुबन्ध को अवयस्क के विरुध्द लागू नहीं किया जा सकता जिससे अवयस्क स्वयं उतरदायी हो जाये |

7) पुनर्स्थापना का सिधान्त (Doctrine of restitution) – कानून अवयस्क को संरक्षण तो प्रदान करता है परन्तु इसका अर्थ बिलकुल भी नहीं है की अवयस्क को दुसरे को धोका देकर ठगने की पूर्ण स्वतंत्रता है | पुनर्स्थापना सिधान्त के अनुसार यदि अवयस्क ने धोका देकर कुछ माल, सम्पति या रकम प्राप्त कर ली है और वह माल, सम्पति या धन अभी अवयस्क के पास ही है तो न्यायालय उस माल, सम्पति या धन को वापिस लौटने का आदेश दे सकता है | परन्तु यदि अवयस्क के पास है, वह वसूल की जा सकती है |

उदाहारणार्थ, अजय ने अपनी आयु गलत बतलाकर विजय से एक साईकिल 500 रूपये में खरीदी तथा माह बाद मूल्य चिकने का वादा किया | अजय ने वह साइकिल संजय को 400 रूपये में बेच दी और इन 400 रूपये में से वह 100 उपये खर्च कर देता है तो विजय उससे 300 रूपये प्राप्त कर सकता है |

8) अवयस्क एजेण्ड बन सकता है (Minor can be an Agent) – किसी अवयस्क को एजेण्ड के रूप में हो सकता है | परन्तु तृतीय पक्ष के प्रति अवयस्क एजेण्ड के प्रत्येक कार्य के लिये उसका नियोक्ता उतरदायी होता है | अवयस्क एजेण्ड अपने नियोक्ता के प्रति उतरदायी नही होता | अवयस्क एजेण्ड की लापरवाही, कर्तव्य पालन न करने अथवा जानबूझकर गलती करने के कारण होने वाली किसी क्षति की पूर्ति उसक नियोक्ता उसमे नही करा सकता |

9) अवयस्क साझेदार नही बन सकता (Minor cannot become a Partner) – एक अवयस्क फर्म में साझेदार नही बन सकता | हाँ, अन्य अब साझेदार की सहमति से उस फर्म के लाभों में (admitted to the benefits of the film) सम्मिलित अवश्य किया जा सकता है | लें ऐसी स्थिति में भी अवयस्क साझेदार फर्म के दायित्वों के लिये व्यक्तिगत रूप से उतरदायी नहीं होता, उसका दायित्व फर्म मर लगी उसकी पूँजी तक की सीमित होती है |

10) अवयस्क की कंपनी में स्थिति (Position of a Minor in a Company) – अवयस्क की कम्पनी का अंशधारी (Shareholder) नहीं बन सकता | यदि गलती से अवयस्क का नाम कम्पनी के सदस्या रजिस्टर में लिख दिया जाता है तो कंपनी अवयस्क को दिये गये अंशो (शेयरों) को रद कर सकती है | लेकिन यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो आवश्यकता की अवधि में अवयस्क अंशधारी, योजनाओ (Calls) के लिये उतरदायी नही होता |

11) विनिमयसाध्य लेख पत्रों के लिये उतरदायी नहीं (Nor Responsible for Negotiable Instruments) – एक अवयस्क विनिमय लेख–पत्र (जैसे – चैक, विनिमय-पत्र, प्रतिज्ञा पत्र) लिख सकता है, उनका हस्तांतरण क्र सकता है, बेचन का सकता है और सुपुर्दगी दे सकता है, किन्तु ऐसा करते समय वह स्वयं उतरदायी नही होगा | उनको छोड़कर एनी सभी पक्षकार अवश्य उतरदायी होंगे |

12) अवयस्क दिवालिया घोषित नही किया जा सकता (Minor cannot be Adjudged insolvent) – अवयस्क दिवालया भी घोषित नही किया जा सकता, क्योकि जो व्यक्ति अनुबन्ध करने के योग्य ही नहीं है वः देनदार (Debtor) भी नहीं हो सकता | अवयस्क का व्यक्तिगत उतरदायित्व किसी भी परिस्थिति मर नही होता | आवश्यक आवश्यकताओ की पूर्ति के सम्बन्ध में भी उसकी सम्पति हो ही दायी ठहराया जा सकता है | अत: ऐसा व्यक्ति जिसे व्यक्तिगत रूप से दायी न ठहराया जा सकता हो उसे दिवालिया घोषित नही किया जा सकता |

13) अपराधिक कार्यो की प्रति अवयस्क का दायित्व (Liability of a Minor fox Torts) – यदि किसी अवयस्क ने कोई अपराध किया है जिससे किसी व्यक्ति के शरीर या सम्पति को हानि पहुचती है तो अवयस्क को उसके लिये दायी ठहराया जायेगा | बनार्ड बनाम हैंकिंग के विवाद में निर्णय दिया गया है की अवयस्क किसी भी व्यक्ति के शरीर में सम्पति की हानि के लिये उतरदायी होता है | इस विवाद में अवयस्क ने चढ़ने के लिये एक घोडा उधर लेकर अपने मित्र को दे दिया | उसके मित्र ने उछल-कूदकर घोड़े को मार डाला | न्यायालय ने इस क्षति के लिये अवयस्क ओ उतरदायी ठहराया | सरल शब्दों में, फौजदारी मामलों में दण्डनीय अपराध के लिये अवयस्क पूर्णत: उतरदायी होता है |

14) अवयस्क अपने प्रतिभू के प्रति दायी नहीं होता (Minor is not Liable for Surety) – यदि कोई व्यक्ति अवयस्क के किसी ऋण के पारी गारण्टी देता है तो ऐसा व्यक्ति ऋणदाता के प्रति उतरदायी होगा परन्तु अवयस्क के ऋणदाता के प्रति और न प्रतिभू (गारण्टी देने वाले) के प्रति उतरदायी होगा क्योकि वह अनुबन्ध करने के योग्य ही नहीँ है |




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