BCom 1st Year Business Economics Internal and External Economics in Hindi

BCom 1st Year Business Economics Internal and External Economics in Hindi

 

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 BCom 1st Year Business Economics Internal and External Economics in Hindi
BCom 1st Year Business Economics Internal and External Economics in Hindi

 

आन्तरिक एवं बाह्रा मिताव्ययिताएँ

Internal and External Economies

 

प्रश्न 11-पैमाने की मितव्ययितायें शब्द से आप क्या समझते हैं? ये मितव्ययिताएँ क्यों अमितव्ययिताओं में बदल जाती हैं?

(2005)

अथवा

बड़े पैमाने के उत्पादन की आन्तरिक एवं बाहरी बचतों पर एक बिस्तृत टिप्पणी लिखिये।

अथवा

 

बड़े पैमाने के उत्पादन से आप क्या समझते हैं ? बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतों की व्याख्या कीजिए। 

 

उत्तर

पैमाने की मितव्ययितायें या पैमाने की बचतें

(Economies of Scale)

ऐसी बचतें जो कि किसी फर्म को उसके उत्पादन के आकार में वृद्धि के कारण अथवा उस उद्योग विशेष में फर्मों की संख्या बढ़ जाने के कारण प्राप्त होती है, उन्हें पैमाने की बचते कहते हैं।

 

बड़े पैमाने का उत्पादन

(Large Scale Production)

 

जब किसी उद्योग में उत्पादन इकाइयाँ बड़े आकार की होती हैं तथा वह उत्पादन के विभिन्न साधनों जैसे-पूँजी, श्रम आदि का बड़ी मात्रा में प्रयोग करती हैं तो इसे ‘बड़े पैमाने का उत्पादन’ कहते हैं । बड़े पैमाने के उत्पादन में निम्नलिखित चार बातें अनिवार्य रूप से पाई जाती हैं

(i) कारखानों में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या का अधिक होना

(ii) पूँजी का बड़ी मात्रा में लगाया जाना।

(iii) अधिकांश उत्पादन कार्य मशीनों की सहायता से करना।

(iv) उत्पादन को बड़े पैमाने में प्राप्त किया जाना।

 

बड़े पैमाने के उत्पादन के लाभ: आन्तरिक एवं बाह्य बचतें

 

उत्पादकों का यह सामान्य अनुभव है कि उत्पादन का पैमाना बड़ा होने पर उसकी औसत लागत कम होती है । औसत लागतं कम होने का कारण उत्पादन की बचतें प्राप्त होना है। इसीलिये उत्पादक अपने उत्पादन-पैमाने को बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहता है जिससे कि उसे पैमाने की बचतें प्राप्त हो सकें। ये बचतें निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं :

(I) आन्तरिक बचतें (Internal Economies), तथा

(II) बाह्य बचतें (External Economies)।

 

(I) आन्तरिक बचतें

(Internal Economies of Scale)

 

जब एक फर्म को उत्पत्ति का पैमाना बढ़ाने पर अपनी आन्तरिक कुशलता तथा संगठन की श्रेष्ठता के कारण बचतें प्राप्त होती हैं तो उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं। इन बचतों का सम्बन्ध सम्पूर्ण उद्योग से नहीं होता है बल्कि किसी फर्म विशेष से होता है। फलतः ये बचतें प्रत्येक उद्योग में प्रत्येक फर्म के लिए अलग-अलग होती हैं। . मार्शल के अनुसार, आन्तरिक मितव्ययिताएँ वे होती हैं जो एक फर्म को उसकी आन्तरिक .. . कुशलता तथा व्यवस्था आदि की श्रेष्ठता के कारण होती हैं।”

 

आन्तरिक बचतों के उत्पन्न होने के कारण

(Causes of Internal Economies)

 

(1) साधनों की अविभाज्यतासाधनों की अविभाज्यता का अर्थ है कि साधन की ऐसी इकाइयाँ जिन्हें उत्पादन के विभिन्न पैमानों की उपयुक्तता के अनुसार, विभाजित नहीं किया जा सकता। फलत: ऐसे साधनों को एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में ही प्रयोग किया जा सकता है, आंशिक रूप से नहीं । उदाहरण के लिए, किसी कारखाने में 1000 वस्तुओं के उत्पादन के लिए एक प्रबन्धक रखा जाता है तो 500 इकाइयों का उत्पादन होने पर उसे आधा नहीं किया जा सकता है। इसी तरह मशीन, विपणन, अनुसंधान आदि के क्षेत्र में अविभाज्यता का तत्व रहता है। अविभाज्य साधनों को उत्पादन मात्रा के साथ-साथ उसी अनुपात में घटाया बढ़ाया नहीं जाता है। उत्पादन के पैमाने में वृद्धि के साथ अविभाज्य साधनों की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है जिससे फर्म को आन्तरिक बचतें प्राप्त होती हैं।

(2) श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरणजब कोई फर्म उत्पादन के पैमाने में वृद्धि करती है तो श्रम विभाजन एवं विशिष्टीकरण की अधिकाधिक सम्भावनाएँ होती हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती है और प्रति इकाई लागत घटती है।

 

आन्तरिक बचतों के प्रकार – आन्तरिक बचतों को निम्नलिखित पाँच वर्गों में बाँटा जा सकता है।

(1) तकनीकी बचतें (Technical Economies)- तकनीकी कारणों से जो बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें तकनीकी बचतें कहते हैं। प्रमुख तकनीकी बचतें निम्नलिखित हैं

 

() श्रेष्ठ तकनीकी बचतें बड़े पैमाने के उद्योग ही श्रेष्ठ तकनीकी बचतें प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि इसके लिए उच्चकोटि की काफी महंगी मशीनों व यन्त्रों का प्रयोग करना पड़ता है जिन्हें बड़े पैमाने की फर्मे ही वहन कर सकती हैं । उच्चकोटि की मशीनों व यन्त्रों का प्रयोग किये जाने के कारण प्रति इकाई उत्पादन लागत कम आती है।

() विशिष्टीकरण की बचतेंएक छोटी फर्म की अपेक्षा बड़ी फर्म में श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण की अधिकाधिक सम्भावनाएं होती हैं। जिस कारखाने का विस्तार जितना बड़ा होगा,उसमें श्रम-विभाजन की उतनी ही अधिक सम्भावनाएँ होंगी । परिणामस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आएगी और उद्योग को लाभ होगा।

 

() सम्बद्ध क्रियाओं की बचतेबड़े पैमाने पर उत्पादन करने से सम्बद्ध क्रियाओं को एक ही इकाई या कारखाने के अन्तर्गत किया जा सकता है जिससे बचतें प्राप्त होती हैं। उदाहरणार्थ, एक बड़ी कपड़े की मिल अपने कारखाने में ही कपड़े बुनने के साथ-साथ कताई व रंगाई का काम भी शुरू कर सकती है। इसी प्रकार कागज बनाने का कारखाना लुग्दी (pulp) बनाने का कार्य कर सकता है । सम्बद्ध क्रियाओं से जहाँ कच्चे माल की उचित लागत पर नियमित पूर्ति सम्भव हो जाती है वहाँ समय, यातायात व अनेक दशाओं में ईंधन शक्ति आदि भी बचत सम्भव हो जाती है।

 

(2) प्रबन्ध सम्बन्धी बचतें (Managerial Economies)- बड़े पैमाने के उद्योग में प्रबन्ध सम्बन्धी व्यवस्था को अनेक भागों में बांट दिया जाता है। प्रत्येक विभाग को वह काम दिया जाता है, जिसमें उसे दक्षता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, लेखा-विभाग, विज्ञापन व प्रसारण विभाग, बिक्री और खरीद विभाग, आदि । इसे कार्यात्मक विशिष्टीकरण भी कहा जाता है। इस विभाजन में प्रत्येक विभाग की कार्यकुशलता बढ़ती है और उत्पादन भी बढ़ने लगता है । इसके अतिरिक्त बड़े पैमाने के उद्योग में प्रति इकाई प्रबन्ध कार्य काफी कम हो जाता है।

 

(3) विपणन सम्बन्धी बचतें (Marketing Economies)- बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाली फर्म को कच्चे माल के क्रय तथा निर्मित माल के विक्रय में जो बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें विपणन सम्बन्धी बचतें कहते हैं।

 

() कच्चे माल के क्रय में बचतें (Economies in the Purchases of Raw Materials)- बड़ी फर्मे बड़ी मात्रा में कच्चा माल खरीदती हैं। अतः इन्हें बाजार मूल्य से कम पर माल मिल जाता है। ये फमें क्रय विशेषज्ञों की नियुक्त करके अच्छी किस्म का भी माल क्रय कर पाती हैं।

 

() निर्मित माल के विक्रय में बचतें (Economies in Sale of Finished Goods) – बड़ी फर्मों को माल बेचने में भी बचतें प्राप्त होती हैं। ये बचतें अपनी परिवहन व्यवस्था के कारण तथा प्रति इकाई विज्ञापन व्यय कम होने के कारण प्राप्त होती हैं।

 

(4) वित्तीय बचतें (Financial Economies)- एक छोटी फर्म की अपेक्षा एक बडी फर्म को वित्तीय बचतें प्राप्त होती हैं। बड़ी फमें वित्तीय संस्थाओं, बैंकों तथा अन्य स्रोतों से पर्याप्त मात्रा में वित्त उचित ब्याज दर पर प्राप्त कर लेती हैं। इससे इन फर्मों को वित्तीय बचतें प्राप्त होती हैं।

 

(5) जोखिम उठाने की बचतें (Risk Bearing Economies)- बड़े पैमाने पर उत्पादन करने पर फर्मों की जोखिम उठाने की क्षमता बढ़ जाती है । बड़ी फर्मे कई वस्तुओं का उत्पादन कर सकती हैं और यदि एक वस्तु पर हानि होती है तो उसे दूसरी वस्तुओं पर होने वाले लाभ से पूरा किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त बड़ी फर्मे अपने माल को कई बाजारों में बेचती हैं और यदि एक बाजार में हानि होती है तो उसे दूसरे बाजारों के लाभ से पूरा किया जा सकता है।

 

(II) बाह्य मितव्ययिताएँ (बाह्य बचतें)

(External Economies)

 

किसी फर्म की लागत केवल उसकी उत्पादन मात्रा पर ही निर्भर न होकर सम्पूर्ण उद्योग की उत्पादन मात्रा के स्तर पर निर्भर करती है। बाह्य मितव्ययिताएँ वे हैं जो विभिन्न फर्मों को सम्पूर्ण उद्योग के विस्तार के कारण उपलब्ध होती हैं और ये किसी व्यक्तिगत फर्म के उत्पादन पैमाने के स्तर पर निर्भर नहीं होती हैं। दूसरे शब्दों में, बाह्य मितव्ययिताएँ वे बचतें हैं जो प्रायः समान रूप से किसी उद्योग की सभी फर्मों को उपलब्ध होती हैं । संक्षेप में,बाह्य मितव्ययिताओं की निम्न विशेषताएँ हैं

 

(अ) ये किसी इकाई को उसका आन्तरिक संगठन अच्छा होने के कारण उपलब्ध नहीं होती बल्कि ये किसी बाह्य कारण के परिणामस्वरूप प्राप्त होती हैं।

 

(ब) ये किसी इकाई को उपलब्ध नहीं होती बल्कि उद्योग में लगी सभी इकाइयों को समान रूप से प्राप्त होती हैं।

 

बाह्य मितव्ययिताओं के उत्पन्न होने के कारण

 

(1) उद्योगों का स्थानीयकरण (Localisation of Industries) –जब किसी एक ही स्थान अथवा प्रदेश में एक समान औद्योगिक फर्मे केन्द्रित हो जाती हैं तो इसे उद्योगों का स्थानीयकरण कहते हैं। विभिन्न उद्योग विभिन्न क्षेत्रों में भौगोलिक, प्राकृतिक तथा आर्थिक कारणों से प्रभावित होकर केन्द्रित होते हैं । उदाहरणार्थ, भारत में जूट उद्योग का पश्चिमी बंगाल में, चाय का असम में, सूती वस्त्र उद्योग का अहमदाबाद में स्थानीयकरण इन्हीं कारणों से हुआ है। स्थानीयकरण के फलस्वरूप उद्योग से सम्बन्धित प्रत्येक उत्पादक फर्म की लागत में कमी . आती है। प्रो० टॉमस के शब्दों में, “बाह्य मितव्ययिताएँ वे हैं जो कि उद्योगों के स्थानीयकरण से उत्पन्न होती हैं और सभी फर्मों को समान रूप से उपलब्ध होती हैं।”

(2) केन्द्रित फर्मों द्वारा विशिष्टीकरण को अपनाना (Specialisation among Centralised Firms)- एक ही स्थान पर जब एक ही तरह की बहुत-सी फर्मे केन्द्रित हो जाती हैं वे विशिष्टीकरण को अपनाकर बचतें प्राप्त कर सकती हैं। औद्योगिक स्थानीयकरण के कारण वहाँ पर विशिष्ट प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने वाली संस्थाएँ स्थापित हो जाती हैं, जिनसे सभी फर्मों को लाभ प्राप्त होता है । कुछ फर्मे कच्चे माल की पूर्ति में, कुछ फमें विशिष्ट मशीनों की पर्ति में कुछ फर्मे विज्ञापन में तथा अन्य फर्मे अन्य कार्यों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं। इस विशिष्टीकरण के फलस्वरूप उद्योग की प्रत्येक फर्म कम लागत पर उत्पादन करती इस सम्बन्ध में प्रो० स्टिगलर ने ठीक ही कहा है कि, “उद्योग के विकास के फलस्वरूप नों में विशिष्टीकरण की प्रवृत्ति ही बाह्य बचतों का मुख्य स्रोत है।”

 

बाह्य बचतों के प्रकार

(Types of External Economies)

 

(1) केन्द्रीयकरण की बचतें (Economies of Centralisation)- किसी स्थान विशेष पर जब बहुत-सी फर्मे केन्द्रित हो जाती हैं तो उन्हें इस केन्द्रीयकरण के परिणामस्वरूप अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे-कुशल श्रमिकों की प्राप्ति तथा श्रमिकों का प्रशिक्षण आसान हो जाता है, परिवहन व संचार सुविधाओं के विकास का लाभ मिलता है, कच्चा माल व विद्युत-शक्ति सुविधा से उपलब्ध हो जाती है, वहाँ अनेक वित्तीय संस्थायें खुल जाती हैं, जिससे उचित दर पर वित्तीय सहायताएँ उपलब्ध हो जाती हैं इत्यादि ।

 

(2) सूचना एवं सन्देश सम्बन्धी लाभ (Economies of Information)- एक ही स्थान पर जब एक ही तरह की अनेक फर्मे कार्य करती हैं तो उनके लिए संयुक्त रूप से व्यापारिक एवं तकनीकी पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित करना सम्भव होता है, जिनका लाभ प्रत्येक फर्म को प्राप्त होता है।

 

(3) अनुसन्धान की बचतें (Economies of Research)- जब किसी क्षेत्र-विशेष में अनेक फर्मे केन्द्रित हो जाती हैं तो यह सम्भव है कि वे संयुक्त रूप से एक केन्द्रीय अनुसन्धान संस्था की स्थापना कर लें जो उद्योग में कार्य करने वाली फर्मों के लिए नवीन उत्पादन तकनीक की खोज करने में संलग्न रहती है। इसकी खोजों का लाभ सभी फर्मों को मिलता है।

(4) क्रियाओं के विखण्डन (वियोजन) की बचतें (Economies of Disintegration)- जब किसी उद्योग का पर्याप्त विकास हो जाता है तब यह सम्भव होता है कि उस उद्योग की कुछ प्रक्रियाओं को तोड़कर उनका संचालन विशिष्ट फर्म अथवा फर्मों द्वारा किया जाय तथा वे फर्मे जब उसमें विशिष्टीकरण प्राप्त कर लेती हैं, तो उनकी कुशलता बढ़ती है तथा उनका लाभ उद्योग की सभी फर्मों को प्राप्त होता है।

 

आन्तरिक तथा बाह्य बचतों में सम्बन्ध

(Relationship between Internal and External Economies)

आन्तरिक बचतों का सम्बन्ध एक फर्म विशेष के आकार तथा संगठन से होता है। ये किसी फर्म विशेष को उसके आकार में वृद्धि तथा संगठन में सुधार के कारण प्राप्त होती है। जबकि बाह्य बचतें उद्योग के आकार तथा स्थानीयकरण पर निर्भर करती हैं तथा उद्योग में लगी सभी फर्मों को प्राप्त होती है। बाह्य बचतें आन्तरिक बचतों से भिन्न हाती हैं, परन्तु व्यवहार में इन दोनों के मध्य एक स्पष्ट तथा निश्चित रेखा खींचना कठिन होता है क्योंकि एक फर्म के लिए जो आन्तरिक बचत होती है वहीं दूसरी फर्म के लिए बाह्य बचत हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक पोलिस्टर का धागा बनाने वाली फर्म उत्पादन की मात्रा में वृद्धि करके आन्तरिक बचतें प्राप्त कर सकती हैं इससे पोलिस्टर के धागे के मूल्य में स्वाभाविक कमी होगी तथा जो फर्मे पोलिस्टर का सस्ता धागा खरीदेंगी उनके लिए यह बाह्य बचत होगी।

 

बड़े पैमाने की अमितव्ययिताएँ 

(Diseconomies of Large Scale)

अथवा

(Scale Production)

 

यद्यपि बड़े पैमाने पर उत्पादन करना लाभप्रद होता है, परन्तु कोई भी फर्म असीमित रूप से अपने उत्पादन का पैमाना नहीं बढ़ा सकती क्योंकि उत्पत्ति के पैमाने को बढ़ाते-बढ़ाते एक ऐसी सीमा भी आ जाती है कि यदि पैमाने को उससे अधिक बढ़ाया जाये तो लाभ के बजाय हानि होने लगती है। दूसरे शब्दों में, यदि किसी फर्म का आकार अनुकूलतम सीमा के बाद “भी बढ़ाया जाता है तो उससे बचतों के स्थान पर अमितव्ययिताएँ होने लगती हैं। बड़े पैमाने के उत्पादन की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं

(1) प्रबन्धकीय बाधाएँ (Managerial Obstacles) जब किसी फर्म का एक सीमा से अधिक विस्तार किया जाता है तब प्रबन्धक के लिए इसका कुशलतापूर्वक प्रबन्ध करना सम्भव नहीं होता है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तु की लागत में वृद्धि होने लगती है।

(2) बाजार की कठिनाइयाँ (Market Obstacles) बहुत बड़े पैमाने की फर्मों को एक सीमा के बाद बाजार में विपणन की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है तथा विपणन लागतें बढ़ जाती हैं।

(3) वित्तीय कठिनाइयाँ (Financial Obstacles)- एक सीमा के बाद अधिक वित्त प्राप्त होना कठिन हो जाता है तथा उसकी लागत ऊँची होती है।

(4) तकनीकी कठिनाइयाँ (Technical Difficulties) बड़े पैमाने के उत्पादन में छोटी-बड़ी सभी प्रकार की मशीनों का उपयोग होता है, एक सीमा तक मशीनें उत्पादन बढ़ाती हैं, परन्तु एक सीमा के बाद मशीनों की क्षमता भी घट जाती है। यदि इससे आगे उत्पादन किया गया, तो हानि होने लगती है।

(5) पूँजी तथा श्रम की कठिनाइयाँ (Problems of Labour and Capital)- बड़े पैमाने के उत्पादन में श्रम और पूँजी की अधिक इकाइयों की आवश्यकता होती हैं यदि एक सीमा के बाद श्रम और पूँजी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होती है, तो बड़े पैमाने का उत्पादन नहीं होगा।

जब किसी फर्म को उत्पादन का पैमाना बढ़ाने से बचतों के साथ पर अबचतें प्राप्त होने लगती हैं तो ऐसी स्थिति फर्म तथा समाज दोनों के लिए वांछनीय नहीं कहीं जा सकती है।


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