BCom 1st Year Business Economics Rent Notes in Hindi

BCom 1st Year Business Economics Rent Notes in Hindi

 

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BCom 1st Year Business Economics Rent Notes in Hindi
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लगान 

Rent 

प्रश्न 20-“लगान भूमि की मूल तथा अविनाशी शक्तियों के लिए भुगतान है।विवेचना कीजिए।

(1997 Back)

अथवा 

 

रिकार्डो के लगान सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। आधुनिक अर्थशास्त्रियों का इस सम्बन्ध में क्या दृष्टिकोण है

(1997 R, 1995 R)

उत्तरलगान के सम्बन्ध में आधुनिक अर्थशास्त्रियों के दृष्टिकोण को स्पष्ट करने के लिए प्रश्न 20 से लगान के आधुनिक सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा लिख देंगे।

रिकार्डो का लगान सिद्धान्त 

(Ricardian Rent Theory)

डेविड रिकार्डो (David Ricardo) प्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने लगान के सम्बन्ध में निश्चित एवं व्यवस्थित विचार प्रस्तुत किया। इसीलिए इसे ‘रिकार्डो के लगान सिद्धान्त’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है। रिकार्डो के अनुसार, केवल भूमि ही लगान प्राप्त कर सकती है क्योंकि भूमि में कुछ ऐसी विशेषतायें विद्यमान हैं, जो उत्पत्ति के अन्य साधनों में नहीं होती; जैसे-‘भूमि’ प्रकृति का निःशुल्क उपहार है, ‘भूमि’ सीमित होती है आदि । इस कारण रिकार्डो ने इस सिद्धान्त की व्याख्या भूमि के आधार पर की है। रिकार्डो (Ricardo) के अनुसार, “लगान भूमि की उपज का वह भाग है, जो भूमि के स्वामी को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है ।” (“Rent is that portion of the produce of the earth which is paid to the landlord for the use of the original and indestructible powers of the soil.”)

रिकार्डों के अनुसार, सभी भूमियाँ एक-समान नहीं होती; प्रायः उनकी उपजाऊ शक्ति तथा स्थिति में अन्तर पाया जाता है। कुछ भूमियाँ अधिक उपजाऊ तथा अच्छी स्थिति वाली होती हैं तथा कुछ अपेक्षाकृत घटिया होती हैं । जो ‘भूमि’ स्थिति एवं उर्वरता दोनों ही दृष्टिकोण से सबसे घटिया भूमि हो तथा जिससे उत्पादन व्यय के बराबर ही उपज मिलती हो, अधिक नहीं,उस भूमि को रिकार्डो ने ‘सीमान्त भूमि’ कहा है। सीमान्त भूमि से अच्छी भूमि को रिकार्डो ने अधिसीमान्त भूमि’ बताया । अतः रिकार्डों के अनुसार, लगान अधिसीमान्त (Super marginal) और सीमान्त भूमि (Marginal Land) से उत्पन्न होने वाली उपज का अन्तर होता है।” चूँकि सीमान्त भूमि , से केवल उत्पादन व्यय के बराबर उपज मिलती है और कुछ अतिरेक (Surplus) नहीं मिलता। इसलिए रिकार्डों के अनुसार ऐसी भूमि पर कुछ अधिशेष (लगान) भी नहीं होता अर्थात् सीमान्त भूमि, लगान रहित भूमि’ (No Rent Land) होती है।

रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की मान्यतायें

रिकार्डो का लगान सिद्धान्त निम्न मान्यताओं पर आधारित है

(1) भूमि की पूर्ति पूर्णतया स्थिर तथा निश्चित है।

(2) भूमि की अपनी कुछ मौलिक व अविनाशी शक्तियाँ होती हैं।

(3) अलग-अलग श्रेणी की भूमि की उत्पादकता में अन्तर पाया जाता है।

(4) बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।

(5) कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है।

(6) लगान केवल भूमि को ही प्राप्त होता है और यह विभेदक उर्वरता तथा विभेदक स्थिति के कारण उत्पन्न होता है।

(7) सीमान्त भूमि पर कोई लगान नहीं होता है।

(8) जनसंख्या में वृद्धि बढ़ती हुई दर से होती है।

सिद्धान्त की व्याख्या जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि लगान एक भेदात्मक बचत (आधिक्य) है, जो अधिक उपजाऊ भूमियों को कम उपजाऊ भूमियों की तुलना में प्राप्त होता है । लगान को निम्न तीन स्थितियों में समझा जा सकता है

() विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान (Rent Under Extensive Cultivation) – विस्तृत खेती से आशय खेती करने की ऐसी पद्धति से है, जिसके अन्तर्गत उत्पादन में वृद्धि करने के लिए भूमि की मात्रा में वृद्धि की जाती है तथा पहले की अपेक्षा अधिक भूमि पर खेती की जाती है । विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान के निर्धारण को समझाने के लिए प्रो० रिकार्डो ने एक नये देश का उदाहरण प्रस्तुत किया है, जहाँ अभी तक कोई व्यक्ति निवास नहीं करता है तथा वहाँ पर्याप्त मात्रा में भूमि उपलब्ध है । वहाँ का प्रयोग न होने के कारण भूमि निःशुल्क होगी। अब यदि कुछ लोग उस द्वीप पर आकर बसते हैं, तो वे सबसे पहले सबसे अच्छी भूमि के टुकड़े, जो प्रथम श्रेणी की भूमि (A-Grade land) कही जायेगी, पर कृषि करना प्रारम्भ करेंगे। कुछ समय के बाद जनसंख्या में वृद्धि होने पर जब खाद्यान्नों की मांग में वृद्धि होगी, तब प्रथम श्रेणी की भूमि से कम उपजाऊ, द्वितीय श्रेणी (B-Grade land) की भूमि पर खेती की जाने लगेगी। इसी प्रकार जनसंख्या में वृद्धि के साथ निम्न से निम्न श्रेणी की (द्वितीय श्रेणी से तृतीय तथा तृतीय श्रेणी से चतुर्थ श्रेणी) की भूमि पर खेती की जाने लगेगी, परन्तु निम्न कोटि की भूमि पर तभी तक खेती की जायेगी जब तक उस भूमि की उपज से प्राप्त आय उत्पादन लागत के बराबर होगी। ऐसी भूमि को सीमान्त या लगान-हीन भूमि कहा जायेगा। इस श्रेणी से ऊपर वाली श्रेणी की सभी भूमि अधिसीमान्त भूमि होगी और उनकी उपज से प्राप्त आय में से उत्पादन लागत की पूर्ति करने के बाद कुछ लाभ या आधिक्य बचा रहेगा, जिसे लगान कहेंगे।

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उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरणमान लीजिये किसी स्थान पर A, B, C एवं D चार श्रेणी की समान क्षेत्रफल की भूमियों पर समान लागत लगाकर खेती की जाती है, जिन पर क्रमश: 200, 160, 100 तथा 60 क्विन्टल की उपज प्राप्त होती है। D भूमि पर प्राप्त उपज का विक्रय मूल्य उतना ही है, जितनी कि उत्पादन लागत है, अत: यह सीमान्त भूमि होगी। A, B, व C श्रेणी की भूमि अधिसीमान्त भूमि कहलायेंगी,जिन पर निम्न प्रकार लगान प्राप्त होगा –

भूमि की श्रेणी लगान (किंवटल में)
A 200-60=140
B 160-60=100
C 100-60=40
D 60-60=0

 

 () गहन खेती में लगान (Rent Under Intensive Cultivation) – जब एक ही भूमि के टुकड़े पर श्रम व पूँजी की अतिरिक्त इकाइयाँ लगाई जाती हैं, तो कृषि कार्य की यह विधि, गहन खेती कहलाती हैं । गहन खेती के अन्तर्गत उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण प्रत्येक अगली इकाई से उपज में वृद्धि क्रमशः घटती हुई दर से होती है। कोई भी कृषक किसी भूमि के टुकड़े पर श्रम एवं पूँजी की इकाइयों में वृद्धि उस समय तक करता जायेगा, जब तक कि इकाई पर किया गया व्यय उस इकाई से प्राप्त उपज के मूल्य के बराबर न आ जाये । यह इकाई सीमान्त इकाई कहलाती है तथा इसके पूर्व की इकाइयों को अधिसीमान्त इकाइयाँ कहा जाता है । अधिसीमान्त इकाइयों की उपज सीमान्त इकाइयों की उपज से अधिक होती हैं, अतः इस आधिक्य उपज को ही गहन खेती में लगान की संज्ञा दी जाती है। दूसरे शब्दों में, गहन खेती की दशा में सीमान्त और अधिसीमान्त इकाइयों की उपजों का अन्तर ही, लगान होता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण, माना कोई उत्पादक अपनी भूमि के एक टुकड़े पर श्रम व पूँजी की चार इकाइयाँ लगाता है, जिससे उसे क्रमश: 40, 30, 20 व मी 10 क्विन्टल गेहूँ की उपज प्राप्त होती है। चौथी इकाई सीमान्त इकाई है। सीमान्त इकाई की अपेक्षा पहली, दूसरी और तीसरी इकाइयों से क्रमशः 40-10 = 30, 30-10 = 20 तथा . ” 20 – 10 = 10 क्विन्टल अधिक उपज प्राप्त होती है। यही इन इकाइयों का आर्थिक लगान है।

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चित्र में OX अक्ष पर श्रम व पूँजी की इकाइयाँ तथा OY अक्ष पर उपज क्विटलों में प्रदर्शित की गई है। चित्र में रेखांकित भाग लगान की ओर संकेत करता है। चौथी इकाई सीमान्त इकाई है; अतः यह लगान रहित है।

() भूमि की स्थिति और लगान (Location of Fields and Rent)- भूमि की स्थिति का भी लगान पर प्रभाव पड़ता है। कुछ भूमियाँ बाजार के निकट तथा कुछ उनसे दूर होती हैं । जो भूमि बाजार से दूर होगी उसकी उपज को बाजार तक लाने में अपेक्षाकृत अधिक यातयात व्यय होगा। ऐसी स्थिति में यदि सभी भूमि एकसमान उपजाऊ हो तो भी स्थिति की दृष्टि से बाजार के निकट की भूमि, दूर की भूमि से अपेक्षाकृत श्रेष्ठ होगी।

ऐसी स्थिति में जो भूमि बाजार से सर्वाधिक दूर होगी, वह सीमान्त भूमि कहलायेगी और अन्य भूमियाँ अधिसीमान्त भूमियाँ कहलायेंगी, अतः अधिसीमान्त भूमियों को सीमान्त भूमि की तुलना में परिवहन व्यय में बचत प्राप्त होगी। यह बचत की भूमियों की स्थिति में अन्तर होने से उत्पन्न होने वाला लगान कहलायेगा।

रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की आलोचना

(Criticism of the Recardian Theory of Rent)

आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने रिकार्डो के लगान सिद्धान्त की कटु आलोचनाएँ की हैं। प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं

(1) लगान केवल भूमि को ही प्राप्त नहीं होता रिकार्डो के अनुसार लगान केवल भूमि को प्राप्त होता है तथा यह अन्य उत्पत्ति के साधनों के सम्बन्ध में उत्पन्न नहीं होता, किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों का कहना है कि लगान अवसर लागत के ऊपर बचत है। अत: लगान उत्पत्ति के प्रत्येक साधन को प्राप्त होगा।

(2) भूमि में मौलिक एवं अविनाशी शक्तियाँ नहीं होती रिकार्डो के अनुसार, लगान भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाने वाला प्रतिफल है। आलोचकों का मत है कि भूमि में मौलिक एवं अविनाशी शक्तियाँ नहीं होती, क्योंकि भूमि की उपजाऊ शक्ति प्राकृतिक होती है। उसमें सिंचाई,खाद व अन्य प्रकार के भूमि सुधारों से भूमि की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि की जा सकती है, अतः भूमि की उपजाऊ शस्ति मौलिक नहीं है। भूमि की शक्ति को अविनाशी भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि भूमि के निरन्तर प्रयोग से उसकी उपजाऊ शक्ति का हास होता है। इस प्रकार रिकाडों का मत उचित प्रतीत नहीं होता।

(3) रिकार्डो का कृषिक्रम ऐतिहासिक दृष्टि से गलत है-रिकार्डो ने अपने सिद्धान्त में बताया है कि एक नये देश में बसने वाले किसान सर्वप्रथम सर्वश्रेष्ठ भूमि पर कृषि करना आरम्भ करते हैं और जनसंख्या में वृद्धि होने पर जब इस श्रेणी की भूमि समाप्त हो जाती है, तो इससे कम अच्छी अथवा घटिया भूमि पर खेती की जाने लगती है, परन्तु अमेरिकन अर्थशास्त्री हैनरी कैरे (Henry Carey) तथा जर्मन अर्थशास्त्री प्रो० रोशर (Prof. Roscher) ने कहा है कि ऐतिहासिक दृष्टि से रिकार्डो द्वारा प्रतिपादित कृषि-क्रम गलत है। इनका कहना है कि एक देश में जब मनुष्य आकर बसते हैं, तो उन्हें अच्छी-बुरी,उपजाऊ तथा अनुपजाऊ भूमि का ज्ञान ही नहीं होता। ये व्यक्ति तो उस भूमि पर खेती करना आरम्भ कर देते हैं जो उन्हें सुगमता से मिल जाती है।

(4) यह सिद्धान्त लगान के उत्पन्न होने के कारणों की व्याख्या नहीं करताआलोचका का कहना है कि रिकार्डो का सिद्धान्त लगान उत्पन्न होने के कारणों पर प्रकाश नहीं डालता। यह एक सामान्य बात को बताता है कि एक अच्छी वस्तु को कम अच्छी वस्तु की अपेक्षा अधिक बचत प्राप्त होती है। सिद्धान्त यह नहीं बताता कि लगान क्यों उत्पन्न होता है और न यह उन कारणों का विश्लेषण करता है जो लगान को उत्पन्न करते हैं।

(5) सीमान्त या लगानरहित भूमि की धारणा अव्यावहारिक रिकार्डो की यह मान्यता उचित नहीं है कि प्रत्येक देश में सीमान्त भूमि होती हैं । व्यावहारिक जीवन में किसी भी देश में शायद ही कोई ऐसी भूमि हो जिस पर लगान न दिया जाता हो । वर्तमान समय में जनसंख्या की वृद्धि एवं खाघान्न की माँग अधिक होने के कारण भूमिपति, सीमान्त भूमि से भी लगान वसूल करने में सफल हो जाते हैं।

(6) अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित यह सिद्धान्त पूर्ण प्रतियोगिता और दीर्घकाल की अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। वास्तविक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता ही पाई जाती है और न दीर्घकालीन विश्लेषण ही, अतः यह सिद्धान्त व्यावहारिक दृष्टि से कम महत्त्वपूर्ण है।

(7) लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता, यह विचार भी पूर्ण सही नहीं हैरिकार्डो के अनुसार लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता, वरन यह स्वयं मूल्य से प्रभावित होता है। किन्तु आलोचकों का कहना है कि कुछ परिस्थितियों में लगान लागत में सम्मिलित होकर मूल्य को प्रभावित करता है । एक घ्यक्तिगत उत्पादक या किसान के दृष्टिकोण से लगान, लागत का अंग होता है । अत: यह अनाज के मूल्य को प्रभावित करता है।

निष्कर्षउपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी रिकार्डो का लगान सिद्धान्त आर्थिक विश्लेषण में अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । वस्तुतःसिद्धान्त की कुछ बातें आज भी उतनी ही सत्य हैं जितनी कि वह रिकार्डो के समय थीं; जैसे-जब जनसंख्या बढ़ेगी तो निम्न श्रेणी के खेतों पर भी कृषि कार्य प्रारम्भ हो जायेगा तथा कृषि प्रणालियों में सुधार होने के पश्चात् भी एक समय ऐसा अवश्य आता है, जब उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने लगता है । रिकार्डो के लगान सिद्धान्त के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए प्रो० जीड़ ने कहा है कि, “जब मनुष्य अण्डे की जर्दी को विज्ञान की सहायता से उत्पन्न करने लगेगा तभी रिकार्डो का लगान सिद्धान्त निरर्थक हो सकता है। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक रिकार्डो का लगान सिद्धान्त सत्य रहेगा।”

प्रश्न 21- लगान भूमि के लिए भुगतान नहीं है, बल्कि वह साधनों में भूमि तत्त्वके लिए भुगतान है।व्याख्या कीजिए।

(1999 P, 1998 Back)

अथवा

लगान के आधुनिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। 

 (1998 R, 1997, P 1996 Back) 

अथवा

 “लगान विशिष्टता का पारितोषिक होता है।व्याख्या कीजिए।

(1996 R) 

अथवा

लगान एक पारितोषण है जो किसी भी उत्पादन के साधन को उसकी पूर्ण बेलोचनीयता के कारण प्राप्त होता है।विवेचना कीजिए। 

 (1994 P) 

अथवा

लगान का आधुनिक सिद्धान्त क्या है ? यह रिकार्डो के लगान सिद्धान्त से किस प्रकार भिन्न है

(2009)

उत्तर 

लगान का आधुनिक सिद्धान्त

(Modern Theory of Rent)

रिकार्डों के अनुसार, भूमि में सीमितता का गुण होने के कारण लगान केवल भूमि को ही प्राप्त होता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस विचार का खण्डन किया और उन्होंने बताया कि सीमितता का गुण केवल भूमि में न होकर अन्य उत्पत्ति के साधनों में भी होता है, अतः भूमि की भाँति उत्पत्ति के अन्य साधन भी लगान प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार लगान का . आधुनिक सिद्धान्त एक सामान्य सिद्धान्त है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, आर्थिक लगान किसी भी उत्पादन-साधन को किये गये उस अतिरिक्त भुगतान को कहते हैं जो उस साधन को उद्योग में लगाये रखने के लिए आवश्यक न्यूनतम राशि से अधिक होता है।

आधुनिक सिद्धान्त का आधार

(Basis of the Modern Theory)

लगान के आधुनिक सिद्धान्त का आधार साधनों की विशेषता (Specificity of Factors) है। इस सन्दर्भ में आस्ट्रियन अर्थशास्त्री वॉन वीजर (Von Wieser) ने उत्पत्ति के साधनों को दो भागों में बाँटा –

(i) पूर्णतया विशिष्ट साधन (Perfectly Specific Factors), तथा

(ii) पूर्णतया अविशिष्ट साधन (Perfectly Non-specific Factors) ।

(1) पूर्णतया विशिष्ट साधनपूर्णतया विशिष्ट साधन वे साधन होते हैं, जिनका उपयोग केवल एक विशिष्ट कार्य में ही किया जा सकता है। इस प्रकार के साधनों को किसी अन्य उपयोग में नहीं लाया जा सकता, इसलिए इनकी अवसर लागत शून्य होती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी भूमि के टुकड़े पर गेहूँ की फसल बो दी जाये तो भूमि का टुकड़ा विशिष्ट साधन कहलायेगा, क्योंकि इसका प्रयोग अन्य किसी उपयोग में नहीं हो सकता। इस प्रकार विशिष्ट साधनों में गतिशीलता नहीं होती। .

(2) पूर्णतया अविशिष्ट साधनपूर्णतया अविशिष्ट साधन वे साधन होते हैं, जिन्हें अनेक उपयोग में लाया जा सकता है अर्थात् जिनमें गतिशीलता पायी जाती है। उदाहरण के लिए, यदि एक मैनेजर A फर्म में या B फर्म में काम कर सकता है तो मैनेजर उत्पत्ति का अविशिष्ट साधन कहलायेगा क्योंकि वह किसी विशेष फर्म के लिए विशिष्ट नहीं है। अविशिष्ट साधनों में गतिशीलता होती है। .

परन्तु कोई भी साधन न तो पूर्णतया विशिष्ट होता है और न पूर्णतया अविशिष्ट । प्रायः साधन आंशिक रूप से विशिष्ट ओर आंशिक रूप से अविशिष्ट होते हैं। विशिष्ट साधनों के सम्बन्ध में यह भी ध्यान रखने योग्य है कि जो साधन आज विशिष्ट है कल वह अविशिष्ट हो सकता है । उदाहरण के लिए, भूमि का वह टुकड़ा जिसमें कपास की खेती की जा रही है,फसल काटने तक वह विशिष्ट रहेगा। फसल कटने के उपरान्त उसमें मकान बनाया जा सकता है, बगीचा लगाया जा सकता है या किसी अन्य फसल को बोया जा सकता है, इसिलए अब हम इस भूमि के टुकड़े को अविशिष्ट कह सकते हैं।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लगान साधनों की विशिष्टता का परिणाम है। जो साधन जिस सीमा तक विशिष्ट होता है उसे समय सीमा तक लगान प्राप्त होता है और जो साधन पूर्णतया अविशिष्ट होते हैं,उन्हें कोई लगान प्राप्त नहीं होता। इसी बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि किसी साधन को लगान तभी प्राप्त होता है,जब उसकी पर्ति बेलोचदार या सीमित होती है। किसी साधन की पूर्ति बेलोचदार.या सीमित होने का आशय है कि साधन में विशिष्टता है। इस प्रकार लगान विशिष्टता का परिणाम है या लगान साधन की बेलोचदार पूर्ति का परिणाम है–ये दोनों एक ही बात हैं।

प्रमुख आधुनिक अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गई लगान की परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं –

श्रीमती जॉन रॉबिन्सन (Mrs. Joan Robinson) के अनुसार, “किसी साधन का लगान उस साधन के द्वारा उपार्जित वह आधिक्य है जो उसे ऐसी न्यूतनम राशि के ऊपर उपलब्ध होता है जिसके कारण यह अपना कार्य करने के लिए आकर्षित होता है।” (The essence of the conception of rent is the conception of a surplus earned by a particular part of a factor of production over and above the minimum earnings necessary to induce it to do its work.”).

प्रो० बोल्डिंग के अनुसार, “आर्थिक बचत अथवा आर्थिक लगान उत्पत्ति के किसी साधन की एक इकाई का वह भुगतान है जोकि कुल पूर्ति मूल्य के ऊपर आधिक्य है अर्थात् साधन को वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिए आवश्यक न्यूनतम धनराशि के ऊपर आधिक्य

बेनहम के अनुसार, “साधारणतया वह आधिक्य जो अवसर आय के ऊपर उत्पत्ति का कोई साधन प्राप्त करता है, लगान की प्रकृति का ही होता है।”

निष्कर्ष उपर्युक्त परिभाषाओं के विवेचन से स्पष्ट है कि लगान एक प्रकार की बचत है जो उत्पत्ति के किसी भी साधन को अपनी अवसर आय के ऊपर प्राप्त होती है। साधन जितना ही अधिक विशिष्ट होगा, उसकी अवसर लागत उतनी ही कम होगी और उसका लगान उतना ही अधिक होगा, अतः आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, “लगान विशिष्टता का परिणाम

लगान के आधुनिक सिद्धान्त का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरणजैसे की ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि लगान किसी साधन को मिलने वाली वास्तविक आय (वर्तमान आय) और । उसकी अवसर लागत के बीच का अन्तर है। सूत्रानुसार –

लगान (Rent) = वास्तविक आय – अवसर लागत

उपर्युक्त सूत्र केआधार पर लगान की विभिन्न स्थितियों को एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से निम्न तालिका में स्पष्ट किया जा सकता है –

स्थिति (Case) वास्तविक आय (Real Income) अवसर लागत (Opportunity Cost) Rs. लागत (Rent) Rs. साधन की प्रकृति
I 1,000 0 शून्य 1,000-0 = 1,000 पूर्णतया विशिष्ट
II 1,000 1,000 1,000-1,000 = 0 पूर्णतया अविशिष्ट
III 600 600 1,000-600 = 400 आंशिक रूप से विशिष्टतथा आंशिक रूप से अविशिष्ट
IV 1250 1250 1,000-1280 = -250

 

उपर्युक्त तालिका में चार स्थितियों को दर्शाया गया है। इन चारों स्थितियों की विवेचना निम्न प्रकार है –

स्थिति I – इस अवस्था में किसी उत्पत्ति के साधन की वास्तविक आय 1,000 रु० है. तथा अवसर आय या लागत कुछ नहीं है। ऐसी दशा में यह साधन पूर्णरूप से अपने व्यवसाय के लिए विशिष्ट होगा और उसकी सम्पूर्ण आय जो उसे प्राप्त हो रही उसकी विशिष्टता का भुगतान होगी, अतः यहाँ पर उसकी कुल वास्तविक आय ही लगान मानी जायेगी क्योंकि उसकी समस्त आय अवसर लागत के ऊपर आधिक्य है।

स्थिति II- इस अवस्था में साधन की वास्तविक आय और अवसर लागत दोनों बराबर हैं। इस प्रकार उसे कोई आधिक्य (वास्तविक आय का अवसर लागत के ऊपर) नहीं प्राप्त हो रहा है। इसीलिये इस दशा में उसे कोई लगान नहीं प्राप्त होगा। चूँकि साधन की अवसर लागत भी 1,000 रु० है, जिसका अर्थ यह है कि यदि वह अपना वर्तमान व्यवसाय छोड़ भी दे, तो उसे 1,000 रु. प्राप्त ही होंगे, अत: ऐसी दशा में वह साधन अपने वर्तमान व्यवसाय के लिए लेशमात्र भी विशिष्ट न होगा, वह पूर्णतया अविशिष्ट होगा। चूंकि लगान विशिष्टता का भुगतान होता है, अतः इस अवस्था में कोई लगान उत्पन्न नहीं होगा।

स्थिति III- इस अवस्था में साधन की वास्तविक आय 1,000 रु० है, जबकि अवसर लागत केवल 600 रु. है। इस प्रकार साधन अपने वर्तमान व्यवसाय के लिए 400 रु. (1,000 – 600) से विशिष्ट होगा क्योंकि यही वह आधिक्य है, जो उसे वर्तमान आय से अवसर लागत के ऊपर प्राप्त हो रहा है, अतः इस दशा में 400 रु० लगान होगा।

स्थिति IV – इस अवस्था में साधन की वास्तविक आय केवल 1,000 रु० है, जबकि अवसर लागत 1,250 रु० है । इस प्रकार 1,000 – 1,250 = -250 रु. लगान होना चाहिए। किन्तु चूंकि लगान एक प्रकार का आधिक्य या बचत है, अतः यह कभी भी ऋणात्मक नहीं हो सकता। ऐसी दशा में यह मान लिया जायेगा कि सांधन अपने वर्तमान व्यवसाय को छोड़ देगा और उस व्यवसाय को अपना लेगा जहाँ उसे 1,250 रु० प्राप्त होते हैं। इस प्रकार 1,250 रु. उसकी वास्तविक आय हो जायेगी और 1,000 रु० अवसर लागत । इस प्रकार उसे 250 रु० का आधिक्य प्राप्त होगा, जो लगान कहलायेगा।

आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार लगान उत्पन्न होने के कारण

किसी उत्पादन साधन की इकाइयों को ‘अवसर लागत’ से अधिक भुगतान क्यों किया जाता है ? आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने लगान का कारण साधन की विशिष्टता अथवा साधन की पूर्ति की लोच को बताया है। साधन की पूर्ति बेलोचदार, पूर्णतया लोचदार अथवा लोचदार हो सकती है। इन तीनों स्थितियों में लगान को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) यदि कोई साधन पूर्णतया अविशिष्ट है अर्थात् पूर्णतया लोचदार पूर्ति की अवस्था में लगानजब किसी साधन की पूर्ति पूर्णतया लोचदार होती है, तो एक विशेष कीमत पर उस साधन की जितनी चाहे उतनी इकाइयाँ प्राप्त की जा सकती हैं। ऐसी दशा में साधन को पूर्णतया अविशिष्ट कहा जायेगा अर्थात् ऐसे । साधन को हर व्यवसाय में एक ही कीमत मिलेगी, अत: ऐसे साधन की वास्तविक आय और स्थानान्तरण आय एक-दूसरे के बराबर होंगी। अत: ऐसे साधन को कोई लगान प्राप्त नहीं होगा। इस स्थिति को चित्र में स्पष्ट किया गया है।

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चित्र में साधन का पूर्ति वक्र PS द्वारा प्रदर्शित किया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि OP कीमत पर साधन की कितनी भी इकाइयाँ खरीदी जा सकती हैं। चित्र के अनुसार साधन की कुल कीमी = OP X OM = OMEP है । साधन की यह कुल कीमत ही कुल आय अर्थात् अवसर लागत है और उसे कोई लंगान प्राप्त नहीं होता है।

(2) यदि कोई साधन पूर्णतया विशिष्ट है अर्थात् पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति की अवस्था में लगान पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति से अभिप्राय साधनों की स्थिर पूर्ति से हैं। स्थिर पूर्ति होने के कारण सामान्यतः साधन का उपयोग किसी विशेष कार्य में ही होता है। अतः जिस साधन की पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है, वह साधन पूर्णरूप से विशिष्ट साधन होता है, जिसका केवल एक ही प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे साधन की स्थानान्तरण आय अथवा अवसर लागत शून्य होती है अर्थात् ऐसा साधन कीमत कम हो जाने पर भी अन्य वैकल्पिक प्रयोग में स्थानानतरित नहीं होगा, अतः साधन को जो कुछ भुगतान प्राप्त होता है, वह सारी रकम लगान ही कहलाती है। इस स्थिति को चित्र में स्पष्ट किया गया है।

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चित्र में SM रेखा साधन की बेलोच पूर्ति (स्थिर पूर्ति) और DD रेखा साधन की माँग को बताती है । पूर्ति रेखा से स्पष्ट ..है कि साधन का प्रयोग केवल एक ही व्यवसाय में हो पाता है। साधन की माँग तथा पूर्ति के अनुसार साधन की प्रति इकाई कीमत OP है । यदि साधन को ‘OP’ के कम कीमत भी दी जाती है.तो वह किसी दूसरे व्यवसाय में नहीं जाना चाहता है। . इस प्रकार साधन की कुल कीमत = OP X OM = OMEP होगी। साधन की मात्रा साधन की यह कुल कीमत या समस्त वर्तमान आय OMEP ही लगान भी कहलायेगी।

(3) यदि कोई साधन आंशिक रूप से विशिष्ट और आंशिक रूप से अविशिष्ट है अर्थात् लोचदार पूर्ति की स्थिति में लगानजब साधन आंशिक रूप से विशिष्ट व आंशिक रूप से अविशिष्ट होता है, तो साधन की पूर्ति न तो पूर्णतयाः लोचदार होती है और न ही पूर्णतयाः बेलोचदार। प्रायः अधिकांश साधन इसी वर्ग में आते हैं। ऐसी दशा में साधन की कीमत में उस सीमा तक लगान का अंश होगा,जिस सीमा तक वह साधन विशिष्ट हैं। इस स्थिति को चित्र पंह में स्पष्ट किया गया है।

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चित्र में साधन की पूर्ति रेखा SS तथा मॉग रेखा DD एक दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं, अत: साधन की कीमत OP होगी तथा इस कीमत पर उसकी 00 मात्रा का प्रयोग होगा। साधन को दी जाने वाली कुल कीमत या उसे प्राप्त होने वाली कुल आय OP X OQ = OPEQ है। चित्र से यह भी स्पष्ट है कि साधन की कीमत OS या इससे कम होने पर साधन की पूर्ति शून्य हो जाती है । इस प्रकार SS पूर्ति रेखा के विभिन्न बिन्दु साधन की विभिन्न मात्राओं के लिए उन न्यूनतम कीमतों को व्यक्त करते हैं, जिन पर साधन की सम्बन्धित मात्राएँ कार्य में बने रहने के लिए तैयार हैं। दूसरे शब्दों में, पूर्ति रेखा के विभिन्न बिन्दु साधन की सम्बन्धित मात्राओं की अवसर लागत व्यक्त करते हैं । इस प्रकार चित्र से स्पष्ट है कि साधन की OQ मात्रा का प्रयोग करने पर साधन की कुल आय OPEQ तथा कुल अवसर लागत OSEQ है और इन दोनों का अन्तर SPE लगान है।

रिकार्डो के लगान सिद्धान्त एवं आधुनिक लगान सिद्धान्त की तुलना

रिकार्डों के लगान सिद्धान्त एवं आधुनिक लगान सिद्धान्त की तुलना निम्नलिखित बिन्दुओं की सहायता से की जा सकती है

(1) लगान का अर्थरिकार्डों के अनुसार, लगान एक ऐसा भुगतान है जो भूमिपति को भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के बदले दिया जाता है अर्थात रिकार्डो के अनुसार केवल भूमि को ही लगान प्राप्त होता है, जबकि लगान के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार, उत्पादन का प्रत्येक साधन जिसे स्थानान्तरण आय से अधिक भुगतान प्राप्त होता. है, लगान प्राप्त करता है।

(2) लगान उत्पन्न होने के कारण – रिकार्डो के अनुसार, लगान भूमि की उर्वरा शक्ति और स्थितियों केअन्तर के कारण उत्पन्न होता है, जबकि आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार, लगान के उत्पन्न होने के कारण उत्पत्ति के साधनों की सीमितता अथवा विशिष्टता है। .

(3) लगान एवं कीमतरिकार्डों के अनुसार, लगान, लागत का भाग नहीं होता, अतः वह कीमत को प्रभावित नहीं करता, बल्कि स्वयं कीमत से प्रभावित होता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान कीमत का अंग होता है और वह कीमत को प्रभावित करता

(4) लगान की मापरिकार्डों के अनुसार किसी भूमि पर लगान का माप अधिसीमान्त भूमि की उपज तथा सीमान्त भूमि की उपज के अन्तर के द्वारा होता है । इसके विपरीत,आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार, लगान का माप साधन की वास्तविक आय तथा स्थानान्तरण आय (अवसर लागत) के अन्तर द्वारा होता है।

(5) सिद्धान्त की उपयोगितारिकार्डो का लगान सिद्धान्त अव्यावहारिक मान्यताओं पर आधारित है, इसलिए अधिक उपयोगी नहीं है, जबकि आधुनिक सिद्धान्त वास्तविकता के अधिक निकट होने के कारण अधिक उपयोगी है।

निष्कर्षउपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि लगान के आधुनिक सिद्धान्त का क्षेत्र तथा उसको उपयोगिता रिकार्डों के सिद्धान्त की अपेक्षा कहीं अधिक है। अत: आधुनिक सिद्धान्त रिकार्डो के लगान सिद्धान्त पर एक व्यावहारिक सुधार है अर्थात् आधुनिक लगान सिद्धान्त रिकार्डो के लगान सिद्धान्त से श्रेष्ठ है।

प्रश्न 22-“मार्शल की आभासलगान की धारणा रिकाडों के लगान सिद्धान्त का, भूमि को छोड़कर अन्य साधनों के लिए विस्तार मात्र है।व्याख्या कीजिए।

(2005) 

उत्तर –

आभासलगान या अर्द्ध लगान

(Quasi-Rent)

आभास लगान का विचार सर्वप्रथम मार्शल द्वारा प्रस्तुत किया गया। मार्शल ने आभास लगान शब्द का प्रयोग मनुष्य द्वारा निर्मित मशीनों तथा अन्य यन्त्रों, जिनकी पर्ति अल्पकाल में स्थिर या बेलोचदार तथा दीर्घकाल में लोचदार होती है, से अल्पकाल में प्राप्त होने वाली आय के रूप में किया है। जैसा कि हम जानते हैं कि भूमि का लगान एक प्रकार का अतिरेक या बचत है जो कि भूमि की बेलोचदार पूर्ति के कारण पैदा होता है। मार्शल के अनुसार, भूमि तथा मनुष्य द्वारा निर्मित पूँजीगत वस्तुओं में अन्तर सिर्फ इतना है कि भूमि की पूर्ति अल्पकाल तथा दीर्घकाल दोनों में निश्चित या बेलोचदार होती है, जबकि पूँजीगत वस्तुओं की पूर्ति अल्पकाल में बेलोचदार तथा दीर्घकाल में लोचदार होती है। अत: अल्पकाल में बेलोचदार पूर्ति वाली पूँजीगत वस्तुओं की माँग में वृद्धि के परिणामस्वरूप उन्हें जो अतिरिक्त आय की प्राप्ति होती है, मार्शल ने उसे आभास लगान कहा है।

मार्शल के अनुसार, “आभास लगान उस अतिरिक्त आय को कहते हैं, जो उत्पादन के साधनों की पूर्ति के अल्पकाल में सीमित होने के कारण होती है।” __ सिल्वर मैन के अनुसार, “आभास-लगान, तकनीकी रूप में, उत्पत्ति के उन साधनों को किया गया अतिरिक्त भुगतान है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर तथा दीर्घकाल में परिवर्तनशील होती है।”

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरणआभास-लगान की धारणा को हम द्वितीय विश्व युद्ध में जहाज-निर्माण उद्योग के उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं । युद्ध के परिणामस्वरूप समुद्री जहाजों की माँग में अकस्मात् वृद्धि हो गयी थी, लेकिन पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना सम्भव नहीं था क्योंकि नये जहाजों को बनाने में काफी समय लग जाता था, अतः विश्व-युद्ध के प्रारम्भिक वर्षों में जहाजों की बड़ी कमी हो गयी थी। परिणामतः उनके भाड़े बढ़ गये थे। पुराने तथा परित्यक्त जहाजों को पुन: उपयोग में लाया गया था। उनसे भी आय होने लगी। जो जहाज पहले से ही काम में लगे थे उनका और अधिक गहन उपयोग होने लगा। इन जहाजों से होने वाली आय और भी बढ़ गयी, अत: इस प्रकार के जहाजों को अपनी सामान्य आय के ऊपर आधिक्य प्राप्त होने लगा। इस आधिक्य को आभास-लगान कहते हैं । जहाजों को यह अतिरिक्त आय इसलिए हुई थी क्योंकि उनकी पूर्ति भूमि की पूर्ति की भाँति स्थिर थी, यद्यपि जहाजों की पूर्ति की यह स्थिरता अल्पकालीन ही थी। दीर्घकाल में नये-नये जहाजों का निर्माण किया गया। जहाजों की पूर्ति बढ़ गई। परिणामतः दीर्घकाल में जहाजों के भाड़े कम हो गये अर्थात दीर्घकाल में जहाजों की पूर्ति बढ़ने पर जहाज सामान्य आय के ऊपर अधिक्य नहीं कमा सकेंगे। अतः आभास लगान की धारणा अल्पकालीन धारणा है। मार्शल ने इसे ‘लगान’ के स्थान पर आभास-लगान इसलिये कहा है क्योंकि यह एक अस्थायी अतिरेक है, जो कि पूँजीगत वस्तुओं को केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है और दीर्घकाल में उनकी पूर्ति बढ़ जाने पर समाप्त हो जाता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि आभास लगान सदैव शून्य के बराबर अथवा उससे अधिक होगा, इसके ऋणात्मक होने का प्रश्न नहीं उठता।

आभास लगान की विशेषताएँ

(Characteristics of Quasi-Rent)

(1) आभास लगान भूमि के लगान की भाँति ही एक अतिरेक है जो मानव द्वारा निर्मित पूँजीगत वस्तओं को केवल अल्पकाल में, उनकी बेलोचदार पूर्ति होने के कारण, प्राप्त होता है ।

(2) आभास लगान एक अस्थायी आधिक्य है क्योंकि यह केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है और दीर्घकाल में समाप्त हो जाता है।

(3) आभास लगान शून्य हो सकता है, किन्तु कभी भी ऋणात्मक नहीं हो सकता।

लगान एवं आभास लगान में अन्तर

लगान उन सभी साधनों को प्राप्त होता है जिनकी पूर्ति भूमि की भाँति, अल्पकाल एवं दीर्घकाल दोनों में ही स्थिर होती है। इसके विपरीत आभास लगान पूंजीगत वस्तुओं अथवा मनुष्यकृत यन्त्रों,श्रम एवं साहस को प्राप्त होता है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में तो स्थिर रहती है, परन्तु दीर्घकाल में बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार लगान अल्पकाल एवं दीर्घकाल दोनों में विद्यमान रहता है,जबकि आभास लगान केवल अल्पकाल में ही प्राप्त होता है तथा दीर्धकाल में यह समाप्त हो जाता है । लगान स्थायी प्रकृति का होता है जबकि आभास-लगान एक अस्थायी घटना है।

आभासलगान का आधुनिक मत

(Modern view of Quasi-Rent)

अधिकांश आधुनिक अर्थशास्त्री मार्शल के आभास लगान के विचार से सहमत नहीं है और वे इसे एक निरर्थक धारणा मानते हैं। आधुनिक अर्थशास्त्रियों में से अधिकांश अर्थशास्त्री “एक उत्पादक को परिवर्तनशील लागतों के ऊपर अल्पकाल में जो आधिक्य प्राप्त होता है, उसे आभास लगान कहते हैं ।”

सूत्रानुसार –

आभास लगान = कुल आगम – कुल परिवर्तनशील लागते

अल्पकाल में यदि किसी उत्पादक को वस्तु बेचने से परिवर्तनशील लागत के बराबर भी कीमत प्राप्त हो जाती है, तो वह उत्पादन जारी रखेगा क्योंकि उत्पादन बन्द करने पर भी उसे निश्चित लागत (Fixed Cost) का भार सहना पड़ता है। इसीलिए उत्पादक को अल्पकाल में परिवर्तनशील लागतों के अतिरिक्त जो आय प्राप्त होती है, उसे आभास-लगान कहते हैं।

दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में सभी लागतें परिवर्तनशील लागतें होती हैं तथा कुल आगम एवं कुल लागत बराबर होती है, अतः आभास लगान समाप्त हो जाता है ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 2-“लगान मूल्य को निर्धारित नहीं करता वरन् मूल्य द्वारा निर्धारित होता है।” विवेचना कीजिए।

“Rent does not determines the price but price determines the rent.” Discuss.

अथवा

“अनाज का मूल्य इसलिए अधिक नहीं है क्योंकि लगान दिया जाता है, वरन् लगान इसलिए दिया जाता है क्योंकि अनाज का मूल्य अधिक है।” इस कथन का परीक्षण कीजिए।

“Corn is not high because rent is paid but rent is paid because corn is high.” Examine this statement.

उत्तर

लगान तथा कीमत में सम्बन्ध

(Relation between Rent and Price)

प्रायः यह प्रश्न किया जाता है कि लगान तथा कीमत में क्या सम्बन्ध है ? अथवा लगान, मूल्य को प्रभावित करता है अथवा मूल्य,लगान को प्रभावित करता है ? इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दो प्रकार के मत हैं-(अ) रिकार्डो का दृष्टिकोण तथा (ब) आधुनिक अर्थशास्त्रियों का दृष्टिकोण ।

() रिकार्डो का मतप्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों सहित रिकाडों का यह मत था कि लगान मूल्य को निश्चित नहीं करता, बल्कि लगान मूल्य द्वारा निर्धारित होता है। दूसरे शब्दों में, लगांन मूल्य में सम्मिलित नहीं होता अर्थात् यह मूल्य को प्रभावित नहीं करता है । रिकार्डो के , इस मत की पुष्टि उनके इस कथन से भी होती है, “अनाज का मूल्य इसलिए ऊँचा नहीं है कि लगान दिया जाता है वरन् लगान इसलिए दिया जाता है क्योंकि अनाज का मूल्य ऊँचा है।” जैसा कि हम जानते ही हैं कि लगान एक प्रकार का आधिक्य (surplus) है जो कीमत तथा लागत के अन्तर को प्रकट करता है । चूँकि वस्तु की कीमत सीमान्त भूमि पर उत्पादित वस्तु की उत्पादन लागत के बराबर होती है तथा सीमान्त भूमि पर किसी प्रकार का लगान उत्पन्न नहीं होता, अतः कीमत में लगान सम्मिलित नहीं होता अर्थात् लगान मूल्य को निश्चित नहीं करता। रिकार्डों के अनुसार लगान उस समय उत्पन्न होता है जब अच्छी भूमि की अपेक्षा उससे कम अच्छी भूमि पर कृषि होने लगती है । परन्तु कम अ%E


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