Unit 3 Technology for online Business Bcom Notes

Unit 3 Technology for online Business Bcom Notes

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ऑनलाइन व्यापार करने हेतु प्रौद्योगिकी (Technology for Online Business)

इण्टरनेट एक बहुत विशाल हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर इन्फ्रास्ट्रक्चर होता है जिसकी वजह से कम्प्यूटर, मोबाइल, एण्डरॉयड टी० वी० आदि को चलाया जाता है। वर्तमान समय में ऑनलाइन व्यापार भी इण्टरनेट की ही देन है। इण्टरनेट विश्वव्यापी कम्प्यूटरों का एक नेटवर्क है। यह नेटवर्कों का एक नेटवर्क है। आज इण्टरनेट एक वैश्विक डेटा संचार प्रणाली के रूप में कार्य कर रहा है जो करोड़ों निजी, सार्वजनिक प्राइवेट शैक्षणिक संस्थाएँ और व्यावसायिक संस्थाओं को नेटवर्क के माध्यम से आपस में जोड़ता है। इण्टरनेट को सुचारू रूप से चलाने के लिए ऑप्टिकल नेटवर्किंग तकनीक व अन्य विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। आज इण्टरनेट ने सम्पूर्ण विश्व को एक गाँव की भाँति परिचित बना दिया है। इण्टरनेट प्राइवेट PCs को लिंक करता तथा यह व्यावसायिक नेटवर्कों तथा नॉन व्यावसायिक नेटवर्कों और टेलीफोन लाइनों को आपस में जोड़ने वाला विशाल विश्वव्यापी नेटवर्क है।

प्रौद्योगिकी ने आज व्यवसाय करने का तरीका ही बदलकर रख दिया। वर्तमान युग को हम प्रौद्योगिकी या तकनीकी युग भी कह सकते हैं। ऑनलाइन व्यापार बहुत तेजी के साथ बढ़ रहा है। आज तकनीकी कम्पनी अपने शोध से व्यापार करने के परम्परागत ढंग को ही बदलकर रख रही है। कोई भी व्यक्ति अपने घर बैठे-बैठे विश्व में कहीं भी कुछ भी खरीद सकता है। वर्तमान ऑनलाइन व्यापार में प्रयोग की जाने वाली प्रौद्योगिक में से कुछ इस प्रकार हैं –

(1) सोशल मीडिया (Social Media)

(2) इण्टरनेट सर्वर (Internet Server)

(3) वेबसाइट सर्वर (Website Server)

(4) कन्टेन्ट मैनेजमैण्ट सिस्टम (Content Management System)

(5) चैट व्यवस्था (Chat Support)

(6) मोबाइल क्रियाएँ (Mobile applications)।

ऑनलाइन व्यापार में प्रयोग किए जाने वाली तकनीक में भी बहुत तेजी से परिवर्तन हो रहा है। प्रौद्योगिक कम्पनियों द्वारा दिन-प्रतिदिन नयी-नयी तकनीक का विकास हो रहा है। कोई भी व्यक्ति अपने व्यापार के अनुसार तकनीक का चयन कर सकता है। वर्तमान में कम्प्यूटर, दूरसंचार और केबल टेलीविजन व्यवसायों में तकनीकी परिवर्तन के कारण बड़ा बदलाव हो रहा है। वर्तमान में इण्टरनेट व्यावसायिक संस्थाओं के लिए एक अनिवार्य साधन बन गया है। 21 वीं शताब्दी ने ऑनलाइन व्यापारों के लिए असीम अवसर एवं प्रतिस्पर्धा का वातावरण प्रदान किया। अनेक ऑनलाइन व्यापारिक कम्पनियों की स्थापना हुई और मौजूदा कम्पनियों ने अपनी शाखाओं का विस्तार किया।

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इण्टरनेट का विकास (Evolution of Internet)

जे०सी०आर० लिंक लिडर ने सन् 1962 में कम्प्यूटरों के ग्लोबल नेटवर्क का सुझाव डिफेन्स एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेन्सी के समक्ष रखा था। 1962 के अन्त में उन्हें इसकी विकसित करने का कार्य मिला लियोनार्ड क्लीमरोक ने पैकेट स्विचिंग की थ्योरी विकसित की जो इण्टरनेट कनैक्शन का आधार बनी। 1969 ई० में अमेरिकी रक्षा विभाग के एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट ऐजन्सी (APRA) ने अमेरिका के पार बड़े विश्वविद्यालयों के कम्प्यूटरों की नेटवर्किंग करके इण्टरनेट अपरानेट (APRANET) की शुरुआत की। इसका विकास शोध, शिक्षा और सरकारी संस्थाओं के लिए किया गया था। इसका एक अन्य उद्देश्य आपात स्थिति में निष्क्रिय हो चुके कम्प्यूटर या साधनों को आपस में पुनः जोड़ना भी था।

सन् 1972 में इलेक्ट्रॉनिक मेल अथवा ई-मेल की शुरुआत हुई। सन् 1973 ई० में ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल/इण्टरनेट प्रोटोकॉल (टी०सी०पी/आई०पी०) को डिजाइन किया गया। सन् 1983 तक आते-आते यह इण्टरनेट पर दो कम्प्यूटरों के बीच संचार का माध्यम बन गया। इसमें से एक प्रोटोकॉल, एफ०टी०पी० (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) की सहायता से इण्टरनेट प्रयोगकर्त्ता किसी भी कम्प्यूटर से जुड़कर फाइले डाउनलोड कर सकता है।

सन् 1983 ई० में अपरानेट (APRANET) के मिलट्री हिस्से को मिलनेट (MILNET) में डाल दिया गया। सन् 1986 में यू०एस० नेशनल साइंस फाउण्डेशन (NSF) ने एन०एस०एफ० नेट (NSF NET) लाँच किया। यह पहला बड़े पैमाने का नेटवर्क था, जिसमें इण्टरनेट तकनीक का प्रयोग किया गया था।

सन् 1988 में फिनलैण्ड के जाक्रको ओकेरीनेने ने इण्टरनेट चैटिंग का विकास किया। सन् 1989 में मैकगिल यूनीवर्सिटी, मॉण्ट्रियल के पीटर ड्यूश ने प्रथम बार इण्टरनेट का इण्डेक्स (अनुक्रमणिका) बनाने का प्रयास किया। सी०ई०आर०एन० के बर्नर्स ली ने इण्टरनेट पर सूचना के वितरण की एक नई तकनीक का विकास किया, जिसे अन्ततः वर्ल्ड वाइड वेब कहा गया। यह वेब हाइपरटैक्स्ट पर आधारित है।

सन् 1991 में प्रथम यूजर फ्रेडली इण्टरफेस, गोफर का अमेरिकन मिननेसोटा यूनिवर्सिटी में विकास हुआ। गोफर का सर्वाधिक प्रयोग कॉमर्शियल ट्रैफिक के लिए किया जाता है।

सन् 1993 में नेशनल सेण्टर ऑफ सुपर कम्प्यूटिंग एप्लीकेशन के मार्क एंड्रीसन ने मोजेइक नामक नैवीगेटिंग सिस्टम का विकास किया। इस सॉफ्टवेयर के द्वारा इण्टरनेट को मैंगजीन फार्मेट में पेश किया जाने लगा। आज भी यह वर्ल्ड वाइड वेब के लिए मुख्य नैवीगेटिंग सिस्टम है।

सन् 1994 में नेटस्केप ने अपने ब्राउजर बाजार में उतारे। सन् 1995 में माइक्रोसॉफ्ट ने अपने ब्राउजर बाजार में उतारे।

इन ब्राउजरों से प्रयोगकर्त्ताओं के लिए इण्टरनेट का प्रयोग करना आसान हो गया। इसी वर्ष व्यावसायिक साइट्स को भी इण्टरनेट पर लाँच किया गया। ई-मेल के द्वारा मास मार्केटिंग कैम्पेन चलाए जाने लगे।

सन् 1962 में इण्टरनेट के प्रयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ते-बढ़ते 4.5 करोड़ तक पहुँच गई। दुनिया भर में इण्टरनेट की लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी।

सन 1999 में ई-कॉमर्स का उद्गमन हुआ जिसके द्वारा ऑनलाइन बिजनेस की शुरुआत हुई, जिससे लोगों को सामान खरीदना व बेचना बहुत ही आसान हो गया। सन 2003 में न्यूजीलैण्ड में नियूई (NIUE) ने इण्टरनेट में देशव्यापी वायरलेस एक्सेस प्रणाली का प्रयोग शुरू कर दिया था।

सन् 2005 में यूट्यूब (Youtube) की शुरुआत 14 फरवरी, 2005 को वैलेनटाइन के दिन हुई थी। यूट्यूब वेबसाइट की शुरुआत एक डेटिंग वेबसाइट के रूप में की गई थी। लेकिन आज यह दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन वीडियो साइट बन गई है। इसको स्टीव चैन, याड हलें और जावेद रशीम ने मिलकर बनाया था। यह तीनों ही दोस्त एक साथ Paypal कम्पनी में नौकरी करते थे।

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इण्टरनेट की आधारभूत संरचना (Internet Infrastructure)

इण्टरनेट किसी भी व्यक्ति अथवा सूचना अथवा डिवाइस को एक-दूसरे से जोड़ने का सबसे प्रचलित टूल्स होता है। इसकी पहुँच हार्डवेयर व साफ्टवेयर की संरचना पर ही निर्भर करती है। इसके द्वारा आज ऑनलाइन बिजनेस, शिपिंग, पढ़ाई, फिल्मी गाने, कोई भी मनोरंजन से सम्बन्धित प्रोग्राम आदि सम्भव बना सकते हैं। इण्टरनेट की आधारभूत संरचना का निर्माण हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर से होता है जो सूचना को प्रसारित और प्राप्त दोनों कार्य करता है। वह यह सब कार्य विभिन्न प्रकार के सिस्टम और नेटवर्कों की मदद से करता है।

इण्टरनेट के महत्त्वपूर्ण घटक इस प्रकार हैं –

  1. डाटासेण्टर (DATA Center) – डाटा सेण्टर एक जगह होती है, जहाँ पर कम्प्यूटिंग और नेटवर्किंग सम्बन्धित उपकरण एक जगह पर स्थित होते हैं। ये उपकरण बड़ी मात्रा में डाटा को जमा करने प्रोसेस करने आदि कार्य के लिए उपलब्ध होते हैं। डाटा सेण्टर एक सुविधा है, जिसमें किसी भी संस्था के सूचना प्रौद्योगिकी गतिविधियों और उपकरणों की पूर्ति के लिए एक जगह होती है जहाँ पर डेटा को संगृहीत किया जाता है।

डाटा सेण्टर बहुत-से तकनीकी उपकरणों से मिलाकर बना होता है। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी उपकरण जैसे— Server, Storage, Subsystem, CPU, Security Devices, Application Delivery Controller, Data Centre Processor chips, नेटवर्क स्विच, फायरवॉल, राऊटर आदि होते हैं।

  1. सर्वर (Server) – सर्वर एक कम्प्यूटर प्रोग्राम या डिवाइस होता है जो दूसरे कम्प्यूटरर्स को इनफॉर्मेशन और डाटा भेजता है, जिसे हम आम भाषा में Clients बोलते हैं। इसका मुख्य कार्य सभी इण्टरनेट यूजर्स को सेवा देना होता है। एक सर्वर की क्षमताएँ उसकी प्रोसेसिंग क्षमता और उसके स्टोरेज स्पेस या RAM (रैम) के द्वारा मापी जाती है। एक सर्वर को एक कम्प्यूटर या एक समूह के कम्प्यूटरों द्वारा जुड़ा होना चाहिए जो साथ कार्य कर सकें। वेब सर्वर, मेल सर्वर और फाइल सर्वर सहित कई प्रकार के सर्वर मौजूद हैं। उदाहरणार्थ – वेब सर्वर Appche HTTP सर्वर या Microsoft IIS को चला सकता है। मेल सर्वर EXIM या i Mail जैसे प्रोग्राम चला सकता है जबकि फाइल सर्वर नेटवर्क पर फाइलों को शेयर करने के लिए Operating System की built in File Sharing Services का उपयोग करता है।
  2. स्टोरेज डिवाइस (Storage Device) – स्टोरेज डिवाइस कम्प्यूटर हार्डवेयर का वह भाग होता है जिसका प्रयोग किसी भी डेटा तथा अनुप्रयोग को स्टोर करने, पोर्ट करने, डाटा फाइलो को Export करने तथा डाटा को विनिमय करने के लिए किया जाता है। यह किसी डाटा या इन्फॉर्मेशन को स्थायी (Permanently) और अस्थायी (Temporary) दोनों रूप में रखने का काम करता है। स्टोरेज डिवाइस की क्षमता को गीगा बाइट्स (GB) या टैराबाइट (Teraybytes) (TB) में मापी जाती है। डाटा को एक हार्डड्राइव में स्टोर किया जा सकता है।
  3. सॉफ्टवेयर (Software) – यह निर्देशों तथा प्रोग्राम्स का वह समूह है जो कम्प्यूटर को किसी कार्य विशेष का पूरा करने का निर्देश देता है। यह यूजर को कम्प्यूटर पर काम करने की क्षमता प्रदान करता है। सॉफ्टवेयर के बिना कम्प्यूटर हार्डवेयर का एक निर्जीवी बक्सा मात्र है। सॉफ्टवेयर के प्रकार मे सिस्टम साफ्टवेयर, एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर आदि होते हैं। एक व्यक्ति जो प्रोग्राम लिखता है जिसे हम प्रोग्रामर, डेवेलपर, या सॉफ्टवेयर इन्जीनियर के नाम से भी जानते हैं।
  4. फायरवाल (Firewall) – फायरवाल एक सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग है जो एक हार्डवेयर डिवाइस की नॉन वोलेटाइल मैमोरी (Non-volatile memory) में लिखी जाती है। जो नियमों के एक सैट को लागू करता है कि डाटा पैकेट्स नेटवर्क में किसको प्रवेश करने की अनुमति दी जाए और किसको नहीं दी जाए। फायरवाल नेटवर्क का एक सुरक्षा उपकरण होता है वह नेटवर्क के ट्रैफिक को कण्ट्रोल करने का कार्य करता है।

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वेब डोमेन (Web Domain)

इण्टरनेट हजारों लाखों कम्प्यूटरों का एक विशाल नेटवर्क है। इस नेटवर्क में अनेक प्रकार के कम्प्यूटर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। हजारों कम्प्यूटर रोजाना इण्टरनेट से जुड़ते जा रहे हैं। जैसे ही कोई कम्प्यूटर इण्टरनेट से जुड़ता है वह इण्टरनेट का हिस्सा बन जाता है । इण्टरनेट से जुड़े हुए कम्प्यूटर आपस में एक-दूसरे से सूचनाएँ या जानकारी को साझा कर सकते हैं। इण्टरनेट से जुड़ने वाले प्रत्येक कम्प्यूटर का एक पता होता है जोकि महत्त्वपूर्ण तरह का नम्बर होता है। इस नम्बर को आप आई०पी० या इण्टरनेट प्रोटोकॉल पता या संक्षेप में IP Address कहते हैं। हर कम्प्यूटर का आई०पी० पता अलग-अलग होता है। किसी भी व्यक्ति द्वारा इन नम्बरों को याद रखना और उनका उपयोग करना बहुत ही जटिल समस्या थी। इसी समस्या का समाधान करने के लिए डोमेन नेम सर्वर (DNS) का आविष्कार हुआ। यही डी०एन०एस० एक तरह का बड़ा कम्प्यूटर होता है जिसका काम इण्टरनेट आई०पी० एड्रेस और नामों की सूचना रखना होता है। यह डोमेन नामक कम्प्यूटर सेवा पूरे विश्व में अनेक कम्प्यूटरों पर बॅटी हुई है और निरन्तर बढ़ती जा रही है। जैसे ही कोई नाम कम्प्यूटर से जुड़ने के लिए कहता है तो सबसे पहले डोमेन नाम सेवा उस आई०पी० पता को अपने द्वारा ढूँढ़ती है और उसके बाद आई०पी० पता से कम्प्यूटर का इण्टरनेट से सम्पर्क स्थापित किया जाता है।

इण्टरनेट के बढ़ते विस्तार को देखते हुए कम्प्यूटर इण्टरनेट सोसायटी ने सभी कम्प्यूटरों को पहले आठ श्रेणियों में बाँटा जैसे- com. edu. mil. sov.org. net int. और in uk. av. आदि इन आठ श्रेणियों के लिए अलग-अलग डोमेन नेम सर्वर होता है जिसे मास्टर नेम सर्वर भी कहते हैं जो इण्टरनेट से जुड़ा होता है। यह मास्टर नेम सर्वर अपनी श्रेणी के सभी कम्प्यूटर के नाम व आई०पी० पता के आँकड़ों को अपने पास रखता है और नाम को आई०पी० पता में परिवर्तित कर उस कम्प्यूटर से सम्पर्क स्थापित करता है।

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वेब होस्टिंग Web Hosting)

वेब होस्टिंग एक प्रकार की इण्टरनेट सेवा होती है जो हम सभी को अपने वेबसाइट को इण्टरनेट पर सुरक्षित स्टोर करने की सुविधा प्रदान करती है अपनी वेबसाइट को इण्टरनेट पर सुरक्षित तरीके से स्टोर करने और अपने उपयोगकर्ताओं को 24 घण्टे अपनी वेबसाइट उपलब्ध कराने के लिए हमें एक विश्वसनीय वेब होस्टिंग की आवश्यकता होती है।

वेब होस्टिंग एक ऐसी सेवा होती है जो किसी भी संस्था या फिर किसी इंसान को यह सुविधा देती है कि वह अपनी वेबसाइट को या फिर वेब पेज को इण्टरनेट पर पोस्ट कर सकें। एक वेब होस्ट या फिर वेब होस्टिंग सर्विस प्रोवाइडर एक बिजनेस है जो इण्टरनेट में दिखाई जाने वाली वेबसाइट या वेब पेज के लिए जरूरी तकनीक और सर्विसेस को प्रोवाइड करता है।

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वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web)

वर्ल्ड वाइड वेब आज इण्टरनेट पर सूचना का प्रवाह स्रोत बन गए हैं। इण्टरनेट की अधिकांश एप्लीकेशन इसी पर संचारित होती हैं। वर्ल्ड वाइड वेब में सूचनाओं को वेबसाइट के रूप में रखा जाता है। ये वेबसाइट वेब सर्वर पर हाईपरटैक्स्ट फाइलों को संग्रहीत करती है। वर्ल्ड वाइड वेब की एक नाम प्रणाली है जिसके द्वारा प्रत्येक वेबसाइट को एक विशेष नाम दिया जाता है। उसी नाम से उसे वेब पर पहचाना जाता है। किसी वेबसाइट नाम को उसका URL (Uniform Resource Locator) भी कहा जाता है। वर्ल्ड वाइड वेब और इण्टरनेट दोनों अलग चीजें हैं परन्तु दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। वर्ल्ड वाइड वेब जानकारीयुक्त पेजों का एक विशाल संग्रह है जो एक-दूसरे से जुड़ा है जिसे वेब पेज कहते हैं। ये वेब पेज HTML. भाषा में लिखा होता है जो कम्प्यूटर में प्रयुक्त एक भाषा है। यह वेब पेज को रोचक बनाता है। हाइपरलिंक का हर लिंक किसी दूसरे पेज को इंगित करता है और जब हम इस पर लिंक करते हैं तो हमारा ब्राउजर लिंक से जुड़े पेज को उपलब्ध कराता है। अत: वर्ल्ड वाइड वेब एक विशाल सूचनाओं का डेटाबेस है तथा हर सूचना एक दूसरी सूचना से जुड़ी है।

वर्ल्ड वाइड वेब का आविष्कार सन् 1989 में एक ब्रिटिश कम्प्यूटर साइंटिस्ट Tim Bemers Lee ने किया था। इसका वेब सर्वर एक प्रकार का कम्प्यूटर होता है जिसमें वेबसाइट के सारे contents जैसे web page, images, videos आदि store किया जाता है और सर्वर world wide web (www) से जुड़ा होता है ताकि इन contents को दुनिया के किसी भी कोने से इण्टरनेट के द्वारा access किया जा सके।

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ई-बिजनेस एकीकरण (E-Business Integration)

वर्तमान में सभी परम्परागत व्यवसाय करने वाले व्यापारी भी ई-बिजनेस की ओर बढ़ रहे हैं। ई-बिजनेस समय की आवश्यकता है। आज लोगों के पास समय की बहुत कमी है। निजी संस्थाओं में कार्यरत लोगों को तो 12-12 घण्टे से भी अधिक काम करना पड़ता है जिसके कारण उनको बाजार जाने का बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता है। उनकी जरूरत के लिए ही ई-बिजनेस व्यवसाय को बल मिला। ई-बिजनेस इण्टरनेट प्रौद्योगिकी आधारित व्यवसाय है। इसमें सभी ई-कॉमर्स कम्पनियाँ अपने उत्पाद या सेवाओं की सम्पूर्ण जानकारी अपनी-अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराती है। ग्राहक अपनी आवश्यकता और पसन्द के अनुसार वस्तुओं का चयन करके उनको घर बैठे-बैठे ही मँगवा लेता है। बहुत बार तो यह कम्पनियाँ भारी छूट भी ग्राहकों को प्रदान करती है।

एक ई-बिजनेस व्यापार के लिए विभिन्न प्रकार की इण्टरनेट योग्य एप्लीकेशन की आवश्यकता होती है, यथा ई-कॉमर्स वेब साइट्स पोर्टलस्, कस्टमर रिलेशनशिप मैनेजमेण्ट, सप्लाई चैन मैनेजमेण्ट, प्रोग्रामर मैनेजमैण्ट, ऑनलाइन बाजार स्थल, एन्टरप्राइजेज रिसोर्स प्लानिंग और ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट आदि। इन सभी एप्लीकेशन का एकीकरण करके ही ई-बिजनेस को सुचारु रूप में चलाया जाता है। ई-बिजनेस के लिए ग्राहकों की पसन्द नापसन्द उनकी जरूरत की वस्तुओं का मूल्य, उत्पाद की गुणवत्ता आदि पर शोध करना बहुत जरूरी होता है। साथ ही इसके लिए विशाल एकीकरण और वृहद् सूचनाओं के संग्रह की भी आवश्यकता होती है। एक सफल ई-बिजनेस के संचालन के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक हैं –

(1) एक निपुण कस्टमर सर्विस प्रतिनिधि, जो ग्राहकों की पूछताछ और सन्तुष्टि का उचित जवाब दे सकता हो ।

(2) ग्राहकों के ऑर्डर को सप्लाई चैन एप्लीकेशन तक ऑटोमेटिक पहुँचाकर उसको डिलीवरी का समय पर भिजवाने का प्रबन्ध करना।

(3) इण्टरनेट पर ग्राहकों को अपने ऑर्डर किए गए उत्पाद की प्रतिदिन की अपडेशन उपलब्ध करवाना तथा समय पर डिलीवरी पहुँचाने का उचित प्रबन्ध करना।

(4) ग्राहकों को उत्पाद पसन्द नहीं आने पर मनी बैंक जैसी स्कीम उपलब्ध करवाना जिससे ग्राहकों का बिजनेस पर विश्वास और पक्का हो सके।

(5) ग्राहकों को लगातार सामान खरीदने पर लायल्टी बोनस जैसी स्कीम उपलब्ध करवाना।

(6) ग्राहकों को अपने उत्पाद की सम्पूर्ण रेंज उपलब्ध करवाना।

(7) ग्राहकों को भुगतान करने के सभी प्रकार के डिजीटल भुगतान प्लेटफार्म उपलब्ध करवाना।

(8) ग्राहकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सप्लाई चैन को और मजबूत बनाना।

(9) एप्लीकेशन सर्विस प्रोवाइडर्स आदि का सही ढंग से ध्यान रखना।

(10) उत्पाद की पैकेजिंग प्रणाली को अधिक सुरक्षित बनाना।

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ई-बिजनेस एकीकरण के कारक (Factors of E-Business Integration)

ई-बिजनेस को सुचारु रूप से एकीकृत करने के लिए कुछ विशेष आवश्यकताएँ होती हैं अर्थात् कुछ कारकों की जरूरत होती है जोकि एकीकृत आधारभूत संरचना के लिए जरूरी हैं वो मुख्यतः तीन कारक होते हैं –

(1) सूचनाओं को एकत्रित करना व संगृहीत करना।

(2) एप्लीकेशनों और व्यापार प्रक्रियाओं को अलग करना।

(3) व्यापार प्रक्रिया को सरल एवं कारगर बनाना।

 

  1. सूचनाओं को एकत्रित करना व संगृहीत करना (Collecting and Storing information)

किसी भी सफल व्यापार को करने के लिए सही सूचनाओं व जानकारियों का होना बहुत आवश्यक होता है। ई-बिजनेस में व्यापारी को व्यापार से सम्बन्धित सभी जानकारियों को एकत्रित करना, चाहे वो उत्पाद से सम्बन्धित हो, चाहे ग्राहकों से सम्बन्धित हो, चाहे वित्तीय लेन-देनों से सम्बन्धित हो बहुत ही आवश्यक है। ई-बिजनेस में सूचनाओं को एकत्रित करने के बाद सभी डाटा को स्टोर करना आवश्यक है। किसी भी लेन-देन से सम्बन्धित समस्या होने पर रिकॉर्ड से उसका समाधान करना बहुत ही सरल होता है। कम्पनी को अपने ग्राहकों का भी एक डाटा तैयार करना चाहिए। किसी भी नये उत्पाद की लाँचिंग पर अथवा उत्पाद के मूल्य में कोई डिस्काउण्ट या ऑफर आने पर अपने ग्राहकों को सूचना देना बहुत सरल हो जाता है। सभी ग्राहकों का एक रिकॉर्ड रखने से कम्पनी को अपने ग्राहकों की संख्या तथा विक्रय का भी पूर्वानुमान हो जाता है। कम्पनी सूचनाओं को एकत्रित करने एवं संगृहीत करने का कार्य सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर के द्वारा करती है। कम्पनी अपनी आवश्यकतानुसार हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर की क्षमता वाले संसाधनों का प्रयोग करती है।

 

  1. एप्लीकेशनों और व्यापार प्रक्रियाओं को अलग करना (To Separate of Applications and Business Process)

एप्लीकेशनों और व्यापार प्रक्रियाओं को अलग-अलग रखना ई-बिजनेस का दूसरा महत्त्वपूर्ण कारक होता है। ई-बिजनेस में व्यवसायी अपनी सुविधा व आवश्कतानुसार एप्लीकेशन को डाउनलोड व प्रयोग करता है। वह एप्लीकेशनों को भी अलग-अलग रखकर उनसे सम्बन्धित जानकारी व सूचनाओं का संगृहीत करता है। एप्लीकेशन व्यापारिक समकों को आपस में शेयर नहीं करती है। इसी अलगाव से ई-बिजनेस को अनेक लाभ होते हैं। मोड्यूलर विकास आदर्श घटक प्रोग्राम से प्रोग्राम में इण्टरएक्ट करते हैं। मोड्यूलेरटी से एक लाभ यह भी होता है कि इसमें समकों व घटकों को पुनः प्रयोग कर सकते हैं। यदि घटक सही डिजाइन किए हुए होते हैं तो इन घटकों को जोड़कर (assembling) एप्लीकेशनों को तैयार किया जा सकता है। वर्तमान में औद्योगिक इकाइयाँ तीन प्रमुख घटकों का प्रयोग कर रही हैं –

(1) माइक्रोसॉफ्ट का मॉडल comt object model.

(2) सबसे अधिक प्रयोग होने वाला मॉडल जावा 2 एन्टरप्राइस एडीशन (J2EE) या प्राइज जावा बीन्स (EJB) को प्रमुख सॉफ्टवेयर वेण्डरों द्वारा तैयार किया गया है। इनमें Oracle, IBM व SUN जैसी कम्पनियाँ प्रमुख हैं।

(3) दि कॉमन ऑब्जेक्ट रिक्वेस्ट ब्रोकर आर्किटेक्चर (CORBA), स्टैण्ड ऑब्जेक्ट प्रबन्धन समूह (OMG) द्वारा तैयार मॉडल इन घटकीय तकनीकी मॉडल से एप्लीकेशनों की कार्यक्षमता में बहुत तेजी से सुधार हुआ है |

 

  1. व्यापार प्रक्रिया को सरल एवं कारगर बनाना (Streamlining of Business Process)

व्यापार प्रक्रिया का स्वतीकरण एक विशिष्ट प्रक्रिया होती है जो मानव के हस्तक्षेप को समाप्त कर देती है। यह एक ऑटोमेशन प्रक्रिया होती है। इसमें कम्पनी फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (FTP) तकनीक का प्रयोग करती है जिससे उन्हें इण्टरनेट पर बाधारहित और स्तरीय संचार सुविधाओं का अवसर मिलता है। मानवरहित तकनीक का प्रयोग करने से मानवीय गलती होने की सम्भावना नहीं रहती है। बड़ी वेबसाइट इस बहुचरणीय व्यापार प्रक्रिया को स्वचालित (Automate) और ऋजुरेखीय (Streamline) करने के लिए बहुत-सी उद्यमिता एकीकृत तकनीकों (Enterprises Integration Technologies) का प्रयोग करती है। व्यापार प्रक्रिया स्वतीकरण कम्पनियों की वित्तीय लागतों को काफी कम कर देता है. तथा ग्राहकों को सन्तुष्टि बढ़ाने व व्यापार प्रक्रिया को तेज करने में बहुत सहायता करता है।

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एण्टरप्राइज कन्टेन्ट प्रबन्धन (Enterprise Content Management (ECM))

एण्टरप्राइज कन्टेन्ट प्रबन्ध व्यावसायिक प्रक्रियाओं, रणनीतियों और उपकरणों का एक सेट है जो व्यावसायिक कर्मचारियों, ग्राहकों तथा व्यवसाय से सम्बन्धित हितधारकों की महत्त्वपूर्ण जानकारी को प्रभावी ढंग से प्राप्त करना, उनको संगृहीत करना तथा सही तरीके से वितरित करने की एक प्रभावी विधि है। ई०सी०एम० तकनीक कम्पनी की समस्त जानकारियों व सूचनाओं को डिजिटल रूप से प्रबन्ध करने तथा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म का प्रयोग करने की तकनीक होती है। एण्टरप्राइज कन्टेन्ट मैनेजमैण्ट सम्पूर्ण व्यापार चक्र के दौरान महत्त्वपूर्ण संगठनात्मक सूचनाओं को एकत्रित करने, संगृहीत करने, संरक्षित करने और वितरित करने के लिए उपयोग में लायी जाने वाली सभी विधियों, तकनीकों, उपकरणों, एप्लीकेशनों और रणनीतियों को व्यक्त करने की विधि है।

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वेब कन्टेन्ट प्रबन्धन (Web Content Management)

वेब कन्टेन्ट प्रबन्धन से आशय वेब पेजों पर कन्टेन्ट बनाने, संग्रह करने, प्रदर्शन करने का प्रबन्धन होता है। एक वेब पेज या वेब कन्टेन्ट आमतौर पर HTML (Hypertext Markup Language) में लिखा गया एक डाक्यूमेण्ट होता है जो इण्टरनेट या अन्य नेटवर्कों के जरिए इण्टरनेट ब्राउजर का उपयोग करके एक्सेस होता है। बहुत सारे web pages के collections को वेबसाइट कहते हैं। हर वेब पेज में कुछ ना कुछ जानकारी अवश्य होती है। वेब सामग्री प्रबन्धन, वेब पेज की सामग्री को बनाने, स्टोर करने, सूचनाओं को प्रकाशित व प्रबन्धन करने की एक एप्लीकेशन है जो टैक्स्ट, ग्रॉफिक्स, वीडियो आदि के रूप में हो सकती है।

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इण्टरनेट सूचना प्रौद्योगिकी के घटक (Component of Internet Information Technology)

वर्तमान कम्प्यूटर युग में व्यापार की एक नई विधि की शुरुआत हुई है। व्यावसायिक, औद्योगिक या शिक्षण संस्थानों में घटकों का एक समूह सूचना प्रौद्योगिकी व्यवस्था कहलाता है। जो सभी डेटा को एकत्रित करने, संगृहीत करने तथा संगठित करने का कार्य करता है। इण्टरनेट सूचना प्रौद्योगिकी के निम्न पाँच घटकों में बाँटा जा सकता है –

  1. कम्प्यूटर हार्डवेयर (Computer Hardware) – कम्प्यूटर के दो भाग जिन्हें हम देख तथा छू सकते हैं उन्हें हार्डवेयर कहते हैं। यह कम्प्यूटर के भौतिक भाग होते हैं, जिनसे मिलकर हमारे कम्प्यूटर का शरीर बनता है जैसे—कीबोर्ड, माउस, कैबिनेट, मॉनिटर, प्रिण्टर आदि सभी हार्डवेयर कहलाते हैं। किसी भी हार्डवेयर के बिना कम्प्यूटर नहीं हो सकता। अगर आपको कम्प्यूटर पर कोई गाना सुनना है तो ऐसा नहीं की आप कम्प्यूटर को बोलेंगे और गाना शुरू हो जाएगा। इसके लिए विण्डोज मीडिया प्लेयर (हार्डवेयर) में जब गाना प्ले करोगे तभी स्पीकर में वह गाना प्ले होगा अर्थात् हार्डवेयर को ही सॉफ्टवेयर के माध्यम से नियन्त्रित किया जाता है।
  2. कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर (Computer Software) – कम्प्यूटर से किसी भी कार्य को करवाने के लिए कम्प्यूटर की भाषा लिखे निर्देशों के प्रोग्राम को सॉफ्टवेयर कहते हैं। सॉफ्टवेयर का प्रमुख कार्य दिए गए डाटा को प्रोसेस करके उससे काम की जानकारी उपलब्ध करवाना होता है। सॉफ्टवेयर दो प्रकार के होते हैं – (1) सिस्टम सॉफ्टवेयर तथा (2) एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर सिस्टम सॉफ्टवेयर का प्राइमरी पीस ऑपरेटिंग सिस्टम है, जैसे—विण्डोज या IOS, जो हार्डवेयर के ऑपरेशन का प्रबन्धन करती है। दूसरा एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर विशिष्ट कार्यों यथा स्क्रैडशीट को संचालित करने, डॉक्यूमेण्ट का सृजन करने तथा वेब पेज की डिजाइनिंग करने के काम आता है।
  3. दूरसंचार (Tele communication) – संचार के लिए दो चीजों की जरूरत होती है— पहला ट्रांसमीटर, दूसरा रिसीवर इसको सरल भाषा में समझें तो दूरसंचार एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें हम बहुत बड़ी दूरी तक सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं। दूरसंचार को अंग्रेजी में टेली कम्यूनिकेशन कहते हैं। दूरसंचार के अन्तर्गत तार के माध्यम से बहुत सारे कम्प्यूटर्स को आपस में एक स्थान पर जोड़ने की प्रक्रिया को लोकल ऐरिया नेटवर्क (LAN) कहते हैं; जैसे—किसी स्कूल या कॉलिज में सभी कम्प्यूटर्स को एक साथ जोड़ना। प्राय: LAN के कम्प्यूटर्स के बीच में दूरी एक किलोमीटर से भी कम होती है। सभी कम्प्यूटर फाइबर ऑप्टिकल अथवा टिवस्टेड पेयर केबिल या कोएक्सियल केबल वायर से जुड़े होते हैं। इस डिजिटल सिगनल द्वारा ही संचार होता है। एक किलोमीटर से अधिक दूरी अथवा एक शहर से दूसरे शहर से सम्बन्धित कम्प्यूटर्स को आपस में जोड़ने का कार्य वाइड ऐरिया नेटवर्क (WAN) द्वारा होता है। WAN को हम उपग्रह (Satellite) तथा रॉकेट रेडियो के माध्यम से जोड़ते हैं। यह माध्यम बहुत महंगे होते हैं परन्तु इनका उपयोग दूरदराज या ऐसे स्थान पर होता है जहाँ पर LAN का प्रयोग सम्भव नहीं होता है। सर्वप्रथम WAN की स्थापना अमेरिकी सुरक्षा प्रयोगशाला के अनुसन्धान प्रोजेक्ट द्वारा की गई थी जिसका नाम ARPANET रखा गया था। भारत में WAN के उदाहरण हैं- भारत सरकार द्वारा स्थापित ERNET तथा सी०एस०सी० लिमिटेड द्वारा स्थापित INDONET) वर्तमान समय में सबसे बड़ा, सबसे सस्ता, तथा विश्व प्रसिद्ध WAN इण्टरनेट है। इसके माध्यम से हजारों कम्प्यूटर्स आपस में तुरन्त जुड़ जाते हैं।
  4. डाटाबेस और डाटा वेयरहाउस (Data Base And Data Ware house) – डाटाबेस वह स्थान होता है जहाँ पर डाटा को एकत्रित किया जाता है। डाटा वेयरहाउस में वह सभी डाटा सम्मिलित होते हैं जो किसी भी व्याससायिक संगठन के लिए आवश्यक होते हैं। सूचना व्यवस्था में डाटाबेस तथा डाटा वेयरहाउस का बिग डाटा के रूप में बहुत अधिक महत्त्व है। बिग डाटा से आशय बड़े स्तर पर डाटा का एकत्रीकरण एवं संग्रहण करना है। किसी भी व्यावसायिक संस्था द्वारा डाटा का संकलन करके उनका विश्लेषण अपने ई-बिजनेस व्यापार किया जाता है।
  5. एक्स्ट्रानेट व इण्ट्रानेट (Extranet and Interanet) – एक्स्ट्रानेट एक प्राइवेट नेटवर्क होता है जो इण्टरनेट और जनसंचार व्यवस्था में प्रौद्योगिकी का प्रयोग करता है। एक्स्ट्रानेट एक नियन्त्रित निजी नेटवर्क (Managed private network) है ग्राहकों, भागीदारों, विक्रेताओं, आपूर्तिकर्ताओं और अन्य व्यवस्थाओं को सूचना प्राप्त करने की अनुमति देता है। साधारणतया एक विशिष्ट कम्पनी या शैक्षणिक संस्थान को सूचनाओं का आदान-प्रदान कराने में सहायता करता है। एक्स्ट्रानेट किसी वेबसाइट का निजी हिस्सा होता है। यह लॉगिन आईडी पर उपयोगकर्त्ता आईडी, पासवर्ड और अन्य प्रमाणीकरण तन्त्र के माध्यम से उपयोगकर्ताओं का चयन करने के लिए प्रतिबन्धित होता है। एक्स्ट्रानेट को कम्पनी का इण्टरनेट भी कहा जाता है जिसका विस्तार कम्पनी के बाहर भी किया जाता है। एक्स्ट्रानेट के लाभ इस प्रकार हो सकते हैं –

(1) इलेक्ट्रॉनिक डाटा इण्टरचेंज का उपयोग करके बड़ी मात्रा में डाटा का आदान-प्रदान करने की क्षमता का होना।

(2) व्यावसायिक भागीदारी के साथ उत्पाद डाटा या कैटलॉग साझा करना।

(3) सम्बद्ध बैंकों के बीच ऑनलाइन बैरिंग एप्लीकेशन जैसी सेवाओं को साझा करना।

(4) संयुक्त कम्पनी को सहयोग और प्रशिक्षित करना आदि।

इण्ट्रानेट भी एक निजी नेटवर्क होता है। इसकी पहुँच किसी भी संस्था के स्टाफ तक ही सीमित होती है। यह इण्टरनेट की ही तरह TCP/IP के माध्यम से डाटा और एप्लीकेशन को आन्तरिक रूप से साझा करता है। इस तरह के नेटवर्क में लोकल एरिया नेटवर्क (LAN) के साथ कई और नेटवर्क भी एक साथ जुड़े हो सकते हैं। एक कम् अन्तर्ग इण्ट्रानेट आन्तरिक संचार, सहयोग और आन्तरिक तथा बाहरी साधनों तक पहुँचने का सरल साधन है। इसमें कम्पनी की व्यावसायिक गतिविधियों में सामंजस्य बढ़ता है तथा उनके अन्दर गतिशीलता का तेजी से संचार होता है। इण्ट्रानेट का प्रयोग बड़ी व्यावसायिक संस्थाओं द्वारा सन् 1999 से ही किया जाने लगा था। इण्ट्रानेट का प्रयोग निगमित संस्कृति में होने वाले बदलाव अथवा किसी भी कम्पनी की आन्तरिक समस्याओं को सुलझाने के लिए भी कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। इण्ट्रानेट लोकल एकरिया नेटवर्क (LAN) तथा वाइड ऐरिया नेटवर्क (WAN) की तरह ही कार्य करता है। इण्ट्रानेट की पहुँच प्रत्येक कर्मचारी तक बहुत ही सरलता से उपलब्ध हो जाती है।

Technology for online Business

Unit 3 Technology for online Business Bcom Notes
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