Management Accounting Ration Analysis Notes

Management Accounting Ration Analysis Notes

Management Accounting Ration Analysis Notes:-

 

अनुपात का अर्थ एवं परिभाषा-दो संख्याओं पारस्परिक सम्बन्ध की गणितीय अभिव्यक्ति को अनुपात कहते हैं।

 

आर० एन० एन्थोनी के अनुसार, “अनुपात एक संख्या का दूसरी संख्या के सन्दर्भ में व्यक्त किया गया सम्बन्ध है।”

 

अनुपातों की अभिव्यक्ति (Expression of Ratios)- 1. शुद्ध अनुपात (Pure Ratio) के रूप में, 2. दर अथवा ‘इतने गुने’ (Rate or so many times) के रूप में, 3 प्रतिशत के रूप में।

 

अनुपात विश्लेषण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Ratio Analysis)

 

अनुपात विश्लेषण का आशय वित्तीय विवरणों की मदों के बीच सम्बन्ध स्थापित करके व्यवसाय के वित्तीय विश्लेषण से होता है। इसके अन्तर्गत निर्दिष्ट उद्देश्य के अनुसार वित्तीय विवरणों को दो या अधिक मदों के बीच अनुपात ज्ञात करके एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। वित्तीय आँकड़े स्वयं मूक होते हैं, अनुपात विश्लेषण से उनकी मूक भाषा का सही अर्थ हमारे समक्ष स्पष्ट हो जाता है। प्रो० ओम प्रकाश के अनुसार, “अनुपात विश्लेषण स्थिर अथवा परिवर्तनशील प्रकृति की सम्बन्धित घटनाओं के बीच तार्किक सम्बन्ध की स्थापना है।”

 

अनुपात विश्लेषण में समाहित चरण-1. सम्बन्धित सूचनाओं का चयन, 2. वांछित अनुपातों का परिकलन, 3. अनुपातों का तुलनात्मक अध्ययन एवं 4. अनुपातों का निर्वचन ।

अनुपात विश्लेषण का महत्त्व, उद्देश्य या उपयोगिता – 1. लेखांकन अंकों को स्पष्ट करने में सहायक, 2. वित्तीय विवरणों के विश्लेषण में सहायक, 3. व्यवसाय की कुशलता के मूल्यांकन में सहायक, 4. वित्तीय पूर्वानुमान एवं नियोजन में सहायक, 5. व्यवसाय की कमजोरियों का पता लगाने में सहायक, 6. तुलनात्मक अध्ययन में सहायक, 7. तरलता स्थिति की जानकारी, 8. शोधन क्षमता की जानकारी।

 

अनुपात विश्लेषण की सीमाएँ- लेखांकन अनुपातों का प्रयोग करते समय उनमें अन्तर्निहित निम्नलिखित सीमाओं का ध्यान रखा जाना आवश्यक है

 

  1. एक अकेले अनुपात का सीमित महत्त्व- किसी अनुपात का महत्त्व तभी अधिक स्पष्ट होता है जबकि उसका अध्ययन अन्य सम्बन्धित अनुपातों के साथ किया जाए। कैनेडी व मैकपूलर के अनुसार, “एक अकेला अनुपात अपने आप में अर्थहीन होता है, वह सम्पूर्ण चित्र प्रस्तुत नहीं करता है।”
  2. लेखांकन की स्वाभाविक सीमाओं का प्रभाव, 3. गुणात्मक विश्लेषण का अभाव, 4, ऊपरी दिखावट (Window Dressing) की सम्भावना 5. विश्लेषक की व्यक्तिगत योग्यता व पक्षपात का प्रभाव, 6. मूल्य स्तर में परिवर्तन की उपेक्षा, 7. अनुपातों की गणना में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषाओं में एकरूपता का अभाव, 8. उचित प्रमापों का अभाव, 9. निरपेक्ष समंकों के अभाव में भ्रमपूर्ण परिणाम, 10. निर्वचन का साधन मात्र, 11. ऐतिहासिक विश्लेषण, 12. केवल सापेक्षिक स्थिति का प्रदर्शन, 13. मूल आँकड़ों की गलती का प्रभाव।

 

अनुपातों के प्रयोग में सावधानियाँ-1. लेखांकन नियमों का पूर्ण ज्ञान, 2. शीघ्र संवहन, 3. प्रस्तुतीकरण– वे ही अनुपात प्रस्तुत किए जाने चाहिएं जिन पर विचार किया जाना है तथा उन्हीं व्यक्तियों के समक्ष प्रस्तुत किए जाएं जिनका उनसे सम्बन्ध है, 4. अनुपातों की गणना करने से पूर्व लागत-लाभ विश्लेषण को ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् अनुपातों के ज्ञात करने की लागत उनसे प्राप्त होने वाले लाभों से अधिक नहीं होनी चाहिए, 5. प्रमाप अनुपातों का निर्धारण कर लेना चाहिए, 6. अनुपातों का प्रयोग परिस्थितियों को ध्यान में रखकर करना चाहिए, 7. अनुपातें का विश्लेषण एवं निष्कर्ष निकालते समय मूल्य स्तर में हुए परिवर्तनों का आवश्यक समायोजन किया जाना चाहिए।

 

अनुपातों का वर्गीकरण (Classification of Ratios)

 

अनुपातों का विश्लेषण विभिन्न व्यक्ति एवं संस्थाएँ अपने उद्देश्यानुसार करते हैं। स्पेन्सर ए० टुकर (Spencer A. Trucker) ने अपनी पुस्तक “Successful Managerial Control by Ratio Analysis” में 429 अनुपातों का वर्णन किया है। यहाँ पर इन सभी अनुपातों का वर्णन करना सम्भव नहीं है और न ही आवश्यक है। महत्त्वपूर्ण अनुपातों को निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है—

 

(अ) संरचनात्मक वर्गीकरण या वित्तीय विवरणों के अनुसार वर्गीकरण (Structural Classification or Classification according to Financial Statements) – 1. चिट्ठे से सम्बन्धित अनुपात (Balance Sheet Ratios), 2. लाभ-हानि खाता अनुपात/आय विवरण अनुपात या परिचालन अनुपात, 3. मिश्रित अनुपात (Composite or Mixed Ratios ) ।

संक्षेप में, अध्ययन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए विभिन्न अनुपातों को निम्नलिखित चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है—

(अ) तरलता अनुपात (Liquidity Ratio).

(ब) क्रियाशीलता या बिक्री अनुपात (Activity or Turnover Ratios),

(स) लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios),

(द) पूँजी संरचना अनुपात (Capital Structure Ratios)

 

(अ) तरलता या अल्पकालीन शोधन क्षमता अनुपात

 

तरलता का आशय चालू दायित्वों को भुगतान करने की क्षमता से होता है। तरलता अनुपातों को गणना संस्था की अल्पकालीन शोधनक्षमता को ज्ञात करने के लिए की जाती है। मुख्य तरलता अनुपात निम्नलिखित हैं

 

  1. चालू अनुपात (Current Ratio) यह अनुपात संस्था की चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के मध्य सम्बन्ध को दर्शाता है। इसे ‘कार्यशील पूँजी अनुपात’ (Working Capital Ratio) भी कहते हैं। चालू अनुपात का आदर्श स्तर 2:1 है। चालू अनुपात को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है

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चालू सम्पत्तियाँ वे सम्पत्तियाँ हैं जो रोकड़ या रोकड़ तुल्य (Cash or Cash Equivalents) में हैं अथवा चिट्ठे की तिथि से 12 माह में नकदी में परिवर्तित हो जाती हैं। चालू दायित्वों से आशय उन दायित्वों से है जिनका भुगतान चिट्ठे की तिथि से 12 माह की अवधि में या व्यवसाय के संचालन चक्र में किया जाना है।

 

  1. तरल अनुपात (Liquid Ratio) – यह अनुपात तरल सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के सम्बन्ध को दर्शाता है। तरल अनुपात को ‘अम्ल परख अनुपात’ (Acid Test Ratio), ‘अग्नि परीक्षा अनुपात’, ‘त्वरित या शीघ्र अनुपात’ (Quick Ratio) भी कहते हैं। तरल अनुपात का आदर्श स्तर 11 है। सूत्र निम्न प्रकार है
  2. पूर्णतया तरल अनुपात (Absolute Liquid Ratio) इसे ‘अधि तरलता अनुपात’ (Super Quick Ratio) भी कहते हैं। इस अनुपात की गणना व्यवसाय की तरलता का अति सूक्ष्म मूल्यांकन करने के लिए की जाती है। इस अनुपात का आदर्श स्तर 1 : 2 अथवा 0.5:1 है। सूत्र
  3. रोकड़ या नकद अनुपात (Cash Ratio) — इस अनुपात से यह पता चल जाता है कि कुल चालू सम्पत्तियों में रोकड़ या नकद का कितना भाग है।

 

(ब) आवर्त (बिक्री) या क्रियाशीलता अनुपात (Turnover or Activity Ratios )

 

  1. स्कन्ध आवर्त अनुपात (Stock or Inventory Turnover Ratio)- यह अनुपात व्यवसाय में रहतिया के प्रवाह (Flow of Stock) की गति का सूचक है। यह अनुपात बिके हुए माल की लागत या शुद्ध विक्रय एवं औसत रहतिया के पारस्परिक सम्बन्ध को दर्शाता है। औसत रहतिया से आशय प्रारम्भिक एवं अन्तिम रहतिए के औसत से है। यह अनुपात यह बताता है कि स्टॉक की कितने गुना बिक्री हुई है। स्कन्ध आवर्त अनुपात जितना अधिक होगा, वह कार्य निष्पादन की उतनी ही अधिक कुशलता को स्पष्ट करता इस अनुपात की कोई प्रमापित दर/आदर्श स्तर नहीं है। सूत्र

नोट

(i) यदि प्रश्न में बेचे गए माल की लागत न दी हो और न ज्ञात हो सकती है, तो इसके स्थान पर विक्रय की शुद्ध राशि (Net Sales) प्रयोग कर सकते हैं।

(ii) यदि प्रश्न में औसत स्कन्ध न दिया हो और न जात हो सकता हो तो प्रारम्भिक या अन्तिम स्कन्ध का ही प्रयोग किया जा सकता है।

(iii) प्रस्तुत सूत्र में स्कन्ध का अर्थ तैयार माल के स्कन्ध (Stock of Finished Goods) से होता है।

2. देनदार आवर्त अनुपात (Debtors or Receivable Turnover Ratio)- यह अनुपात वर्ष की शुद्ध उधार बिक्री और औसत प्राप्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। प्राप्यों के अन्तर्गत देनदार व प्राप्य बिलों को शामिल किया जाता है। यह अनुपात जितना अधिक होता है, उतना ही अच्छा माना जाता है, क्योंकि इसका अर्थ है कि उधार बिक्री की वसूली शीघ्रता से हो रही है।

3. औसत संग्रह अवधि (Average Collection Period)- औसत संग्रह अवधि देनदारों की वसूली में लगने वाले समय को प्रकट करती है अर्थात् इसका उद्देश्य यह मालूम करना है कि व्यवसाय में ग्राहक कितने समय के पश्चात् भुगतान करते हैं। औसत संग्रह अवधि किसी भी दशा में विक्रय शर्त में वर्णित उधार अवधि + इसके 1/3 से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि वास्तविक औसत संग्रह अवधि इससे अधिक है तो यह माना जायेगा कि कम्पनी में उधार वसूली के सम्बन्ध में लापरवाही बरती जाती है।

  1. लेनदार या देय आवर्त अनुपात (Creditors or Payable Turnover Ratio) — लेनदार आवर्त अनुपात, उधार क्रय ( Credit Purchases) एवं कुल देय (Total Payables) के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। इसकी गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है—

यदि उधार क्रय की राशि उपलब्ध न हो तो क्रय की राशि ही प्रयोग की जा सकती है। इसी प्रकार, यदि वर्ष के प्रारम्भ व अन्त के लेनदारों तथा देय बिलों की सूचना उपलब्ध न हो तो वर्ष के अन्त के लेनदारों व देय बिलों की रकम को ही प्रयोग किया जाता है। निम्न अनुपात संस्था की अच्छी तरलता स्थिति व ऊँचा अनुपात संस्था की खराब तरलता स्थिति को प्रकट करता है।

 

  1. औसत भुगतान अवधि (Average Payment Period)- औसत भुगतान अवधि यह बताती है कि उधार क्रय का भुगतान कितनी अवधि में किया जाता है। औसत भुगतान अवधि को लेनदारों की गतिशीलता (Creditors Velocity) भी कहते हैं। सूत्र

 

Average Payment Period= Average Creditros / Payables Net Credit Purchaes x365 or 12

 

Net Credit Purchase = Total Purchase – Cash Purchase – Purchase Returns

 

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स्वाति रिफ्रेशर

 

  1. कार्यशील पूँजी आवर्त अनुपात (Working Capital Turnover Ratio) — यह अनुपात व्यापार में कार्यशील पूँजी के प्रयोग की कुशलता को दर्शाता है— सूत्र

यदि यह अनुपात अधिक है तो यह माना जाता है कि कार्यशील पूँजी का कुशलतापूर्वक उपयोग किया गया है। इसके विपरीत इस अनुपात के कम होने पर यह माना जाता है कि कार्यशील पूँजी का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया गया है। 7. सम्पत्तियों का आवर्त अनुपात (Assets Turnover Ratio)- इस वर्ग में मुख्य अनुपात निम्न प्रकार है

 

(स) लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratio)

(I) बिक्री पर आधारित लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratio based on Sales)

1. सकल लाभ अनुपात (Gross Profit Ratio)- यह अनुपात सकल लाभ व शुद्ध विक्रय के सम्बन्ध को प्रकट करता है। यह अनुपात व्यवसाय की लाभप्रदता और कार्यकुशलता का मापक है। ऊँचा सकल लाभ अनुपात संस्था के लिए अच्छी स्थिति का परिचायक होता है। इस अनुपात के लिए कोई आदर्श प्रमाप निर्धारित नहीं किया जा सकता और यह भिन्न-भिन्न उद्योगों के लिए अलग-अलग होता है। सूत्र निम्नलिखित है

  1. शुद्ध लाभ अनुपात (Net Profit Ratio)– यह अनुपात संस्था की सम्पूर्ण गतिविधियों की लाभदायकता एवं कुशलता को प्रकट करता है। शुद्ध विक्रय के प्रतिशत के रूप में यह अनुपात शुद्ध लाभ एवं शुद्ध विक्रय के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है। यह “अनुपात जितना अधिक होगा व्यावसायिक संस्था की लाभदायकता एवं कार्यक्षमता उतनी ही अधिक होगी। सूत्र निम्नलिखित है
  2. संचालन या परिचालन अनुपात (Operating Ratio)- यह अनुपात संचालन लागत एवं शुरू विक्रय की राशि के मध्य विद्यमान सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है। संचालन लागत (Operating Cost) से आशय बेचे गए माल की लागत एवं संचालन व्ययों (जैसे–निर्माण व्यय, कार्यालय, प्रबन्ध एवं प्रशासन व्यय तथा विक्रय एवं वितरण व्ययों) के योग से है। यह अनुपात जितना कम होगा संस्था की लाभदायकता उतनी ही अच्छी मानी जाती है। सूत्र
  3. व्यय अनुपात (Expenses Ratio)—व्यय अनुपात विभिन्न व्ययों का शुद्ध विक्रय से सम्बन्ध प्रकट करते हैं। सूत्र रूप में यह विशिष्ट अनुपात निम्नांकित हो सकते हैं

ये अनुपात यह स्पष्ट करते हैं कि विक्रय का कितना भाग विशेष व्यय में लगा है। ये अनुपात जितने कम होते हैं उतनी ही अधिक लाभदायकता मानी जाती है। इनका विश्लेषण पिछले वर्ष के अनुपातों या प्रबन्धन द्वारा निर्धारित प्रमापों या अन्य समान संस्थाओं के अनुपातों से करके किया जाता है।

  1. शुद्ध परिचालन लाभ अनुपात (Net Operating Profit Ratio)——इसे शुद्ध परिचालन आय अनुपात भी कहते हैं। यह अनुपात शुद्ध परिचालन लाभ एवं शुद्ध विक्रय के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध को प्रकट करता है। परिचालन लाभ से आशय किसी संस्था की सामान्य व्यावसायिक क्रियाओं से प्राप्त होने वाले शुद्ध लाभ से है अर्थात् शुद्ध परिचालन लाभ की गणना में गैर-व्यावसायिक क्रियाओं से होने वाले आय-व्ययों को सम्मिलित नहीं किया जाता है। यह अनुपात जितना अधिक होता है, संस्था की संचालनात्मक कार्यक्षमता उतनी ही अधिक होती है। इसकी गणना 100 में से परिचालन अनुपात को घटाकर भी की जा सकती है। सूत्र रूप में

यह अनुपात जितना अधिक होता है व्यवसाय उतना ही कुशल माना जाता है तथा साथ-ही-साथ बाजार में कम्पनी के अंशों का मूल्य भी उतना ही अधिक होगा तथा कम्पनी उतनी ही आसानी से अतिरिक्त पूँजी की व्यवस्था कर सकती है।

 

(2) अर्जन प्रत्याय अनुपात (Earning Yield Ratio-E.Y.R.) — यह अनुपात प्रति अंश अर्जन और उसके बाजार मूल्य का परस्पर सम्बन्ध है। E.P.S.

(3) प्रति अंश लाभांश (Dividend per Share – D.P.S.) – कुल वितरित लाभांश की रकम में कुल अंशों की संख्या का भाग दे दिया जाये तो प्राप्त रकम को प्रति अंश लाभांश कहेंगे।

यह अनुपात यह बताता है कि समता अंशधारियों को वास्तव में लाभांश के रूप में कितनी राशि प्रति अंश वितरित की गई है। यह अनुपात जितना अधिक होगा उतना ही समता अंशधारियों के लिए अच्छा होगा।

 

(4) भुगतान अनुपात (Pay-out Ratio or P.O.R.)-इस अनुपात से यह ज्ञात करने में सहायता मिलती है कि उपार्जित आय का कौन-सा भाग लाभांश के रूप में भुगतान किया गया है और कौन-सा भाग उद्योग में पुनः प्रयोग के लिए रोक लिया गया है।

(5) लाभांश प्रत्याय अनुपात (Dividend Yicld Ratio)— सूत्र रूप मे

 

Dividend Yield Ratio (D.Y.R.)= Dividend per share Market price per share -X100

 

(6) लाभांश कवर (Dividend Cover)—यह अनुपात इस बात का ज्ञान कराता है कि प्रति अंश लाभांश की तुलना में प्रति अंश अर्जन (Earning) कितनी गुनी है। इस अनुपात को प्रति अंश अर्जन (E.P.S.) में प्रति अंश लाभांश (D.P.S.) का भाग देकर ज्ञात किया जाता है।

(7) मूल्य अर्जन अनुपात ( Price Earning Ratio-P/E Ratio) – यह अनुपात अंश बाजार मूल्य तथा प्रति अंश अर्जन दर के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को व्यक्त करता है। Market Price per share (M.P.S.)

 

(8) पूँजी दन्तिकरण अनुपात (Capital Gearing Ratio)— पूँजी दन्तिकरण की स्थिति का पता लगाने के लिए (उच्च दन्तिकरण है या निम्न दन्तिकरण) पूँजी दन्तिकरण अनुपात ज्ञात करते हैं, जिसका सूत्र निम्नांकित प्रकार है

 

Capital Gearing Ratio = Equity Share Capital + Reserve & Surplus Total Debt Capital including Pref. Share Capital

 

तुलना में निर्वचन-यदि किसी कम्पनी में स्वामी-पूँजी का अनुपात स्थिर लागत वाली पूँजी की कम होता है तो इसे उच्च दन्तिकरण (high gearing) कहते हैं जबकि स्थिर लागत वाली पूँजी की तुलना में स्वामी-पूँजी का अनुपात अधिक होने पर निम्न दन्तिकरण (low gearing) माना जाता है। स्पात है कि पूँजी दन्तिकरण अनुपात और पूँजी दन्तिकरण में विपरीत सम्बन्ध है। जब पूँजी दन्तिकरण अनुपात । से कम हो तो उच्च दन्तिकरण (High Gearing) और । से अधिक हो तो निम्न दन्तिकरण (Low gearing) मानते है

 

(द) पूँजी संरचना अनुपात या दीर्घकालीन शोधन क्षमता विश्लेषण (Capital Structure Ratios or Long-term Solvency Analysis)

 

  1. ॠण समता अनुपात (Debt Equity Ratio)- ॠण समता अनुपात अंशधारियों के कोष एवं दीर्घकालीन ऋण के बीच सम्बन्ध प्रकट करता है। यह अनुपात जितना कम होगा, ऋणदाताओं की स्थिति उतनी ही अधिक सुरक्षित होगी। यह अनुपात जितना अधिक होगा लेनदारों की जोखिम भी उतनी ही अधिक होगी। ऋण समता अनुपात का आदर्श स्तर 2:1 माना जाता है। कुछ व्यवसायों में यह अनुपात 1:1 का उचित माना जाता है। इस अनुपात की गणना निम्न प्रकार की जाती है—
  2. स्वामित्व अनुपात (Proprietary Ratio) — यह अनुपात स्वामियों के कोषों तथा संस्था की कुल सम्पत्तियों या कुल समताओं (Total Equities) के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध को व्यक्त करता है अर्थात् इस अनुपात से यह जानकारी मिल जाती है कि व्यवसाय की कुल सम्पत्तियों में स्वामियों के कोष किस सीमा तक लगे हुए हैं। इसे समता अनुपात (Equity Ratio) भी कहते हैं। यह अनुपात जितना अधिक होता है उतनी ही व्यापार की दीर्घकालीन वित्तीय स्थिति सुदृढ़ मानी जाती है जो ऋणदाताओं को सुरक्षा प्रदान करती है। परिणामस्वरूप संस्था को अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने में आसानी रहती है।

Proprietary Ratio = Shareholders Fund / Total Real Assets

3. शोधन क्षमता अनुपात (Solvency Ratio or Debt to Total Assets Ratio) — इस अनुपात से इस बात का ज्ञान होता है कि कम्पनी की सम्पत्तियों से वसूल होने वाली राशि से कम्पनी के बाह्य दायित्वों का भुगतान हो सकेगा या नहीं अर्थात् इस अनुपात के द्वारा कुल सम्पत्तियों एवं कुल बाह्य दायित्वों के मध्य विद्यमान सम्बन्ध की जानकारी होती है। यदि ऐसा सम्भव होता है तो कम्पनी को शोधक्षम्य माना जाता है। इसे ज्ञात करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

कुछ विद्वान उपरोक्त सूत्र का उल्टा सूत्र भी प्रयोग करते हैं। यदि 100 में से स्वामित्व अनुपात घटा दिया जाए तो शोधन क्षमता अनुपात ज्ञात हो जाएगा।

 

नोट- स्वामित्व अनुपात (Proprietary Ratio) एवं शोधनक्षमता अनुपात (Solvency Ratio) का योग प्रतिशत के रूप में 100 होता है। इसका अर्थ यह है कि यदि 100 में से स्वामित्व अनुपात घटा दिया जाए तो शोधन क्षमता अनुपात ज्ञात हो जाएगा।

  1. स्थायी सम्पत्ति अनुपात (Fixed Assets Ratio)— यह अनुपात स्थायी सम्पत्तियों एवं दीर्घकालीन कोषों के मध्य पाए जाने वाले सम्बन्ध को प्रकट करता है। यह अनुपात 11 से अधिक नहीं होना चाहिए। सामान्यतया यह 0.67:1 का अनुपात ठीक होता है।
  1. ऋण सेवा अनुपात (Debt Service Ratio) इस अनुपात को ब्याज आवरण अनुपात (Interest Coverage Ratio) के नाम से भी पुकारा जाता है। इस अनुपात की गणना के लिए व्याज एवं कर से पूर्व शुद्ध लाभ में स्थायी ब्याज प्रभारों से भाग दे दिया जाता है। यह अनुपात ऋणदाता के ब्याज की सुरक्षा का अनुमान लगाने में सहायक होता है। ब्याज आवरण अनुपात लगभग 6-7 गुना होना उत्तम माना जाता है। इस अनुपात की अधिकता ऋणदाताओं के हित का सूचक होती है।

 

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