Bcom Management by Objective Notes in Hindi PDF

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Bcom Management by Objective Notes in Hindi PDF
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उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध [Management by Objective]

प्रश्न 15, उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध क्या है ? निर्णयन की प्रक्रिया में यह किस प्रकार सहायक होता है?

अथवा

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की अवधारणा को समझाइये। इसके लाभ एवं सीमाएँ कौन-कौन सी हैं?

(Rohilkhand Bareilly, 2008)

उत्तर-

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Management by Objectives)

समस्त प्रबन्धकीय क्रियाओं को उद्देश्योन्मुख बनाना ही उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध’ कहलाता है। प्रबन्धन की यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें कार्यों व क्रियाओं के बजाय सुपरिभाषित उद्देश्यों की पूर्ति पर प्रकाश डाला जाता है। यह तकनीक उपक्रमों में प्रत्येक प्रबन्धक का ध्यान और प्रयास समग्र संगठनात्मक उद्देश्यों की ओर निर्देशित करती है। प्रत्येक प्रबन्धक यह जानता है कि उसका संगठन में क्या अस्तित्व है, वह संगठन में किस लिए है, संगठनात्मक लक्ष्यों की पूर्ति में वह कैसे योगदान देगा, और उससे किन परिणामों की अपेक्षा की जाती है। उच्चाधिकारी भी यह भली-भाँति जानते हैं कि वह अधीनस्थों से क्या अपेक्षा रखते हैं तथा किन मापदण्डों पर उनका मूल्यांकन किया जायेगा। पूर्वनिर्धारित लक्ष्यों से विचलनों की पहचान की जाती है और सुधारात्मक कदम उठाये जाते हैं।

विभिन्न विद्वानों द्वारा इस तकनीक के सम्बन्ध में निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गई हैं

जार्ज एस० ऑडियन के अनुसार, “उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध एक प्रणाली है जिसके अन्तर्गत संगठन के शीर्ष व अधीनस्थ प्रबन्धक सामूहिक रूप से संगठन के सामान्य उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं, प्रत्येक व्यक्ति के उत्तरदायित्व को उससे अपेक्षित परिणामों के संदर्भ में परिभाषित करते हैं एवं इकाई के संचालन तथा उसके प्रत्येक सदस्य के योगदान का मूल्यांकन करने में इन्हीं मापदण्डों का उपयोग किया जाता है।”

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के उद्देश्य (Objectives of M,B,O,)- इसके उद्देश्य निम्नांकित होते हैं

(1) अधीनस्थों की कार्यक्षमता को उद्देश्योन्मुखी बनाकर उसमें वृद्धि करना,

(2) प्रत्येक व्यक्ति के उद्देश्यों को संस्था के आधारभूत उद्देश्यों से समन्वित करना,

(3) संदेशवाहन की विधियों को उद्देश्यों के अनुसार व्यवस्थितः करना,

(4) उद्देश्यों के निर्धारण द्वारा अन्तिम परिणाम प्राप्त करना,

(5) कार्य-निष्पादन का माप करना,

(6) वेतन एवं पदोन्नति योग्यता के आधार पर प्रदान करना,

(7) नियन्त्रण को अधिक प्रभावशाली बनाना, एवं

(8) उद्देश्यों एवं उपलब्धियों द्वारा सभी को अभिप्रेरित करना।

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की विशेषताएँ (CHARACTERISTICS OF MANAGEMENT BY OBJECTIVES)

इस तकनीक की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं –

1, वांछित उद्देश्यों का निर्धारणइस तकनीक के अन्तर्गत सर्वप्रथम संस्था के मूल उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है, जिसको प्राप्त करने के लिए उस संस्था की स्थापना की जाती है। इतना ही नहीं, कर्मचारी वर्ग के भी लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं जिससे कर्मचारी उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रत्यक्ष प्रयत्न कर सकें।

2, कर्मचारियों को प्रेरणा देना- “उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध’ पद्धति के अन्तर्गत कर्मचारियों को प्रेरणा देने का भी प्रावधान होता है अत: कर्मचारियों को समय-समय पर आवश्यकतानुसार वित्तीय एवं अवित्तीय प्रेरणाएँ दी जाती हैं। इन प्रेरणाओं से प्रभावित होकर कर्मचारी अपनी शक्ति से अधिक कार्य करने का प्रयत्न करते हैं।

3, टीम भावना- संस्था के सभी अधिकारी एवं कर्मचारी एक टीम भावना से कार्य करते हैं। अत: इन दोनों स्तरों के बीच का अन्तर अपने आप समाप्त हो जाता है, क्योंकि दोनों ही पक्ष समन्वित योजनाओं के आधार पर कार्य करते हैं।

4, उत्तरदायित्व की भावना जागृत होना- जब किसी व्यक्ति में उत्तरदायित्व की भावना जागृत हो जाती है तब वह अपने कार्यों को अच्छी प्रकार से कर सकता है और यह पद्धति इस कार्य में पूरा योगदान देती है।

5, प्रयोगकर्ता को अधिक महत्त्व- इस पद्धति में इनका प्रयोग करने वाले व्यक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है, इसलिए प्रत्येक स्तर पर प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है, क्योंकि इस पद्धति के समर्थक इस बात को मानते हैं कि ‘कोई भी नई पद्धति’ इसके प्रयोगकर्ता से अधिक अच्छी नहीं हो सकती।

6, प्रतिनिधायन- इसके अन्तर्गत अधिकारीगण अपने अधीनस्थों को एक सीमा तक अधिकारों व कर्तव्यों का प्रतिनिधायन कर सकते हैं।

7, नियन्त्रण व्यवस्थाजब उद्देश्यों के अनुसार कार्य प्रारम्भ हो जाता है, तो उपयुक्त नियन्त्रण व्यवस्था द्वारा यह जाँच करनी चाहिए कि निर्धारित विधियों एवं परिणामों के अनुसार ही कार्य हो रहा है अथवा नहीं। इस पद्धति में इस बात की व्यवस्था होती है कि सभी आवश्यक सूचनाएँ सभी सम्बन्धित प्रबन्धकों को समय-समय पर मिलती रहें जिससे वे अपने नियमों में आवश्यकतानुसार समय पर उचित सुधार कर सकें।

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के लाभ (ADVANTAGES OF MANAGEMENT BY OBJECTIVES)

वर्तमान समय में उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध व्यावसायिक प्रबन्ध के क्षेत्र में एक चर्चा का विषय बना हुआ है एवं इसकी लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रबन्ध की यह पद्धति बहुत ही लाभप्रद मानी जाती है। उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं –

1, श्रेष्ठ प्रबन्धन (Better Managing)- प्रबन्ध की यह प्रणाली प्रबन्धकों की कार्यकुशलता को बढ़ाती है। नियोजन के बिना कार्यान्वित किए जा सकने योग्य उद्देश्यों का निर्धारण नहीं किया जा सकता और नियोजन का परिणामयुक्त होना भी सम्भव हो पाता है। इससे प्रबन्धक नियोजन कार्य करने के लिए बाध्य हो जाते हैं एवं उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। यह निश्चित करने के लिए प्रबन्धकों को उन उपायों पर विचार करना होता है जिनसे इच्छितं परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, उन्हें संगठन के प्रकार और व्यक्तियों की आवश्यकताओं पर तथा उपलब्ध साधनों और सहायता पर विचार करना होता है, इससे अच्छा और कोई उपाय नियन्त्रण के लिये नहीं है। यह लक्ष्यों का स्पष्ट रूप से निर्धारण करता है।

2, टीम भावना (Team Spirit)- समूह के सभी सदस्य अपने लक्ष्यों का निर्धारण अपने अधिकारियों के साथ मिलकर करते हैं। इससे उनमें टीम भावना विकसित होती है जिससे संस्था को लाभ मिलता है। प्रबन्ध एवं संगठन में भागीदारी की भावना भी पनपती है, जिससे कुशल निष्पादन संभव होता है।

3, स्व-अभिप्रेरणा (Self-Motivation)- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध में कर्मचारियों की भागीदारी, निर्णयन की स्वतंत्रता तथा प्राप्त परिणामों के आधार पर मूल्यांकन के कारण सभी कर्मचारी स्व-अभिप्रेरित होकर काम करते हैं जिसके परिणामस्वरूप बढ़ी हुई उत्पादकता संस्था को मिलती है।

4, कुशल निष्पादन (Efficient Performance)- इस पद्धति के माध्यम से संस्था में ऐसे वातावरण का निर्माण हो जाता है जिससे कि समस्त उपक्रम निष्ठापूर्वक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एकजुट हो जाता है तथा प्रबन्धकीय निष्पादन में सुधार होता है। सभी लोगों की क्रियाएँ उद्देश्यों पर आधारित होने के कारण वे एक दिशा में होती हैं, अलग-अलग नहीं।

5, वैयक्तिक पहलपन में वृद्धि (Increase in Personal Initativeness)- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के अन्तर्गत कर्मचारियों को नियत सीमाओं के अन्दर समस्याओं को स्वयं हल करने तथा आवश्यक निर्णय लेने की आजादी होती है अत: उनकी वैयक्तिक पहल शक्ति बढ़ जाती है।

6, प्रभावी सन्देशवाहन व्यवस्था (Effective Communication System)- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध पद्धति श्रेष्ठ सन्देशवाहन प्रणाली का निर्माण करती है।

7, प्रबन्ध क्षमता को मान्यता (Recognition of Managerial Capacity)- इस पद्धति के अन्तर्गत प्रबन्धकीय क्षमता एवं प्रवीणता को मान्यता प्रदान की जाती है स्पष्ट रूप से परिभाषित उद्देश्य तथा उद्देश्यानुसार कार्य-निष्पादन का मूल्यांकन । नियन्त्रण एवं अभिप्रेरणा को आधार प्रदान करते हैं।

8, निष्ठापूर्वक कार्य करना (Devotion in Working)— इस पद्धति के अन्तर्गत प्रत्येक कर्मचारी व प्रबन्धक अपने-अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों से परिचित होता है। लक्ष्यों के स्पष्ट ज्ञान के कारण वे अधिक निष्ठा व परिश्रम से कार्य करते हैं। चूँकि कार्य-निष्पादन के अनुसार ही उनका मूल्यांकन होता है, अत: वे मन लगाकर कार्य करते हैं।

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की सीमाएँ (LIMITATIONS OF MANAGEMENT BY OBJECTIVES)

जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं ठीक उसी प्रकार उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के दूसरे पहलू की तरफ अगर प्रकाश डालें तो कुछ कमियाँ प्रतीत होती हैं जो निम्नलिखित हैं

1, लक्ष्यों के निर्धारण में कठिनाइयाँ (Difficulty of Setting Goals)- इस पद्धति के अन्तर्गत सबसे ज्यादा कठिनाई उस समय होती है, जब लक्ष्यों का निर्धारण करना होता है जो कि इस पद्धति का आधारभूत तत्त्व है। उपक्रम के सामान्य उद्देश्य, उपक्रम की नीतियाँ, उद्योग की स्थिति, सरकार की आर्थिक व औद्योगिक नीतियाँ, उपक्रम की योजना के आधार आदि अनेक तत्त्व उद्देश्यों के निर्धारण को प्रभावित करते हैं। अत: पूर्वानुमानों की कठिनाइयों तथा भविष्य की अनिश्चितता भी लक्ष्यों के निर्धारण में बाधा उत्पन्न करती है।

2, प्रतिनिधायन का विरोध (Opposition of Delegation)- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध में अधिकारों का प्रतिनिधायन करना पड़ता है, परन्तु व्यवहार में इस कार्य में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं। फलस्वरूप यह पद्धति एक स्वप्न का पर्याय बनकर रह जाती है, जो कभी साकार नहीं हो पाता। ,

3, लोच का अभाव (Lack of Inflexibility)- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध पद्धति के अन्तर्गत लक्ष्यों में परिवर्तन एक जटिल समस्या है। अनेक बार नीतियों, प्राथमिकताओं एवं परिस्थितियों में तेजी से परिवर्तन हो जाते हैं, किन्तु उसके अनुरूप उद्देश्यों में परिवर्तन करना सम्भव नहीं हो पाता।

4, प्रशिक्षण की आवश्यकता (Need of Training)- इस पद्धति को सफलतापूर्वक तभी लागू किया जा सकता है, जब सभी कर्मचारियों को इस पद्धति में पर्याप्त प्रशिक्षण प्राप्त हो जो कि एक कठिन कार्य है। यह पद्धति कर्मचारियों के सहयोग पर आधारित है, परन्तु व्यवहार में यह देखा जाता है कि सहयोग के स्थान पर टकराव की स्थिति अधिक होती है।

5, गणात्मक उद्देश्यों का बलिदान (Sacrifice of Oualitative Objective)- यह पद्धति गुणात्मक उद्देश्यों की बलि चढ़ाने में विश्वास रखती है।

6, संतलन की कठिनाई (Difficulty in Balancing)- अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उद्देश्यों में सन्तुलन स्थापित करने में भी समस्या उत्पन्न होती है।

सुझाव (Suggestions)-उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का प्रभावा बनान हे निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं –

1, उपक्रम के उद्देश्य निश्चित, स्पष्ट व भ्रम रहित होने चाहिएँ।

2, उद्देश्य वास्तविक होने चाहिएँ अर्थात् ऐसे नहीं होने चाहिएँ जो कि आदर्श तो हों, परन्तु प्राप्त करने योग्य न हों।

3, उद्देश्यों का निर्धारण उच्च अधिकारियों एवं अधीनस्थों को मिलकर करना चाहिएँ।

4, सन्देशवाहन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। 5, टीम भावना का विकास हर स्तर पर होना चाहिए।

6, अभिप्रेरण के लिये उपयुक्त व्यवस्था होनी चाहिए।

7, उद्देश्य तथा उसके मापदण्ड परिमाणात्मक रूप से स्पष्टतया व्यक्त किये जाने चाहिएँ।

8, कार्य निष्पादन का मूल्यांकन समय पर एवं सही ढंग से करना चाहिए। 9, समीक्षा के बाद आवश्यक संशोधन भी करना चाहिए। 10, कठिन परिश्रम एवं अनुशासन ही योजना की सफलता की कुंजी है।

प्रश्न 16, ‘उद्देश्यों द्वारा प्रबन्धसे आप क्या समझते हैं? उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की प्रक्रिया को समझाइए।

(Rohilkhand Bareilly, 2010 and 2008)

उत्तर-

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की प्रक्रिया (PROCESS OF MANAGEMENT BY OBJECTIVES)

इस प्रक्रिया में उद्देश्यों एवं लक्ष्यों का निर्धारण एवं उसका पुनरावलोकन किया जाता है। यह प्रक्रिया निम्न तरीके से सम्पादित की जाती है –

1, संगठन के उद्देश्यों का निर्धारणइस पद्धति को लागू करने के लिए सबसे पहले संस्था के सामान्य लक्ष्यों व उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। इसके उपरान्त संस्था के दीर्घकालीन व अल्पकालीन उद्देश्यों का निर्धारण किया जाता है। यह कार्य उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध का आधार है एवं सर्वोच्च प्रशासन द्वारा सम्पन्न किया जाता है |

2, विभागीय लक्ष्यों का निर्धारण- संस्था के मूल लक्ष्यों के निर्धारण के पश्चात् उसके विभिन्न विभागों के लक्ष्यों का निर्धारण किया जाता है। विभागीय लक्ष्यों का निर्धारण मूल लक्ष्यों के अनुरूप ही होना चाहिए। प्रत्येक विभाग के उद्देश्यों में ऐसा तालमेल होना चाहिए जिससे कि सम्पूर्ण संस्था के मूल उद्देश्य नियत अवधि में प्राप्त किये जा सकें।

3, प्रबन्धकों के लक्ष्यों का निर्धारणसभी प्रबन्धकों को इस बात की स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए कि निश्चित समय के भीतर उनको क्या प्राप्त करना है, इसलिए प्रबन्धकों के लक्ष्यों का भी निर्धारण किया जाना चाहिए। इस कार्य को प्रबन्धक अपने उच्च अधिकारियों के निर्देशानुसार एवं परामर्श से सम्पादित करें तो सर्वथा उचित होगा। लक्ष्य निर्धारण की प्रक्रिया में थोड़ी लोच का होना अपरिहार्य है जिससे कि आवश्यकतानुसार उसमें संशोधन किया जा सके।

4, लक्ष्यों का पुनरावलोकनलक्ष्यों का पुनरावलोकन एक नियत अवधि के पश्चात करते रहना चाहिए जिससे यह स्पष्ट हो जाय कि कार्य निष्पादन निश्चित प्रमापों के अनुरूप हैं या नहीं। आवश्यकतानुसार उच्च अधिकारियों द्वारा उसमें संशोधन भी किया जा सकता है।

इस पद्धति की हर प्रक्रिया में प्रबन्ध के प्रत्येक स्तर पर सभी लोगों को व्यक्तिगत रुचि लेनी पड़ती है। उनकी सक्रिय सम्बद्धता की भावना के कारण समस्त संगठन में उद्देश्यों की प्राप्ति करने का एक अनोखा वातावरण बन जाता है। किसी भी स्तर पर यह प्रतीत नहीं होता कि लक्ष्य या उद्देश्य ऊपर से थोपे गए हैं। परिणामस्वरूप प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा अपने निजी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निष्ठापूर्वक प्रयास किया जाता है।

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के कार्यान्वयन के विभिन्न चरण (VARIOUS STEPS IN THE APPLICATION OF MANAGEMENT)

उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध के कार्यान्वयन के समय निम्नलिखित आवश्यक पग उठाये जाते हैं–

1, लक्ष्यों को परिभाषित करना प्रत्येक संस्था को अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों को परिभाषित करते समय निम्न की व्याख्या करनी चाहिए-(i) उत्पादन क्षमता क्या है, (ii) कितनी अवधि तक इन उद्देश्यों के रहने की सम्भावना है, (iii) कितने बड़े आर्थिक या सामाजिक क्षेत्र में संगठन कार्य करेगा, (iv) प्रबन्धक विनियोग पर कितनी आय की अपेक्षा करते हैं, (v) किन परिस्थितियों में संस्था अपने वर्तमान कार्यों में बदलाव कर सकती है, (vi) कार्यकुशलता एवं तकनीकी प्रगति के सम्बन्ध में संस्था की क्या नीति है, (vii) ग्राहकों के प्रति संस्था की क्या नीति है, और (viii) राष्ट्र तथा समाज के प्रति संस्था का क्या उत्तरदायित्व है। सम्पूर्ण संस्था के लिये सामान्य लक्ष्यों का निर्धारण सामान्य रूप से करना चाहिए और इसी के अनुरूप ही निजी या विभागीय लक्ष्यों का निर्धारण होना चाहिए। उद्देश्यों का विकास तीन चरणों में परा किया जाता है-(i) अल्पकालीन, (ii) मध्यकालीन, और (iii) दीर्घकालीन उद्देश्य।

2, उद्देश्यों एवं साधनों का लिखित विवरण- परस्पर सहमति से उच्च, मध्य एवं निम्नस्तरीय प्रबन्ध के मध्य उद्देश्यों एवं अधिकारों का वितरण कर दिया जाता है, तो इसका एक व्यापक विवरण पत्र तैयार करके सम्बन्धित प्रबन्धकों को सौंप दिया जाता है।

3, उद्देश्यों का क्रियान्वयन- विवरण पत्र तैयार करने के पश्चात उद्देश्यों के क्रियान्वयन के लिए कार्य-योजनाएँ तैयार की जाती हैं एवं उनको क्रियान्वित करने के लिये प्रतिनिधायन, संदेशवाहन एवं मार्गदर्शन का कार्य किया जाता है।

4, नियन्त्रण व्यवस्था लागू करना- यह क्रिया तब की जाती है, जब कार्य योजनाएँ प्रारम्भ हो जाती हैं। इस क्रिया के माध्यम से होने वाले कार्य की जाँच के लिए आवश्यक नियन्त्रण व्यवस्था का आयोजन कर दिया जाता है। विचलन की स्थिति में आवश्यक संशोधन भी किया जा सकता है।

5, सामयिक सभाओं की व्यवस्थाकार्य निष्पादन के बारे में सूचना प्राप्त करने के लिए समय-समय पर प्रबन्धकों तथा अधीनस्थों की सभाओं की भी व्यवस्था की जानी चाहिए। इन सभाओं में इस बात पर विचार किया जाता है कि कार्य निष्पादन योजनानुसार है या नहीं एवं मार्ग में क्या कठिनाइयाँ आ रही हैं तथा उनको किस प्रकार से समाप्त किया जा सकता है।”

6, परिणामों की समीक्षा एवं मूल्यांकन – प्रबन्धक व अधीनस्थ मिलकर प्राप्त परिणामों की समीक्षा नियत प्रमापों से करते हैं। यह समीक्षा सामयिक व वार्षिक दोनों प्रकार की होती है। तत्पश्चात् उपलब्धियों व कमियों का मूल्यांकन किया जाता है। आवश्यकता के अनुरूप पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों में संशोधन भी किया जा सकता है तथा नई तथ्यात्मक सूचनाओं के संदर्भ में नए उद्देश्य भी निर्धारित किये जा सकते हैं।

7, अन्तिम उपलब्धियाँ- इस पद्धति में वर्ष की समाप्ति पर अन्तिम उपलब्धि पर विचार किया जाता है। अधीनस्थों को वेतन तथा पदोन्नति भी उनके द्वारा प्राप्त उपलब्धियों के अनुरूप ही होती है। इस पद्धति में कर्मचारियों के व्यक्तिगत गुण की तुलना में उनके निष्पादन को मूल्यांकन का आधार माना जाता है।

8, मान्यता एवं प्रचार- उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध में अभिप्रेरण का भी महत्वपूर्ण स्थान है। मूल्यांकन के अनुसार जो लक्ष्यों की प्राप्ति सम्भव होती हैं उनका विधिवत प्रचार व प्रसार किया जाता है एवं सम्बन्धित कर्मचारियों को उसका श्रेय दिया जाता है। अतिरिक्त वेतन व पदोन्नति द्वारा उसका सम्मान भी किया जाता है। ऐसी मान्यता से सभी को प्रोत्साहन मिलता है तथा कर्मठ लोगों की अपेक्षाएँ व आशाएँ पूरी होती पद्धति में वर्ष निर्धारित किया जा सकता है |

 


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