Bcom 1st Year Chapter Wise Notes Basic form of communication

Bcom 1st Year Chapter Wise Notes Basic form of communication

Bcom 1st Year Chapter Wise Notes Basic form of communication
Bcom 1st Year Chapter Wise Notes Basic form of communication

 

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Basic form of communication

Explaination 

संदेश्वहान से आशय सूचनाओ के आदान प्रदान से होता है | संचार प्रक्रिया के अंतर्ग्रत यह देखा जाता है की संचारक अपना सन्देश दुसरे व्यक्तियों तक कितने प्रकार से पंहुचा  सकता है | प्रत्येक व्यक्ति या व्यवसायिक संस्था किसी ना किसी रूप में सूचनाये भेजता या प्राप्त करता है | वर्तमान समय में व्यावसायिक संगठन का प्रबंधक तभी सफलता पूर्वक संचाली हो सकता है जब सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रभावी रूप संगठन में विधमान हो |

संचार प्रक्रिया के प्रमुख प्रकारों को निम्नलिखित प्रकार वर्गीक्रत किया जा  सकता है |

व्यावसायिक सम्प्रेक्षण के प्रकार

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माध्यम के आधार पर वर्गीकरण

(classificatrion on the basic of medium)

सम्प्रेषण माध्यम से आशय सन्देश की अभिव्यक्ति के ढंग या तरीके से है व्यवसाय में सन्देश की उपयोगिता एंव उद्देश्य को ध्यम में रखते हुए सन्देश को अलग अलग ढंग से अभिव्यक्त किया जाता है | माध्यम के आधार पर सम्प्रेषण को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीक्रत किया जा सकता है –

(1) . शाब्दिक सम्प्रेषण :- ( verbal communication )– जब संचारक सन्देश देने के लिए लिखित अथवा मौखिक शब्द का प्रयोग करता है तो उशे शाब्दिक सम्प्रेषण खा जाता है शब्द भाषा से अभिव्यक्ति सरल , सुगम एंव बोधगम्य हो जाती है शाब्दिक सम्प्रेषण को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

(i)  मौखिक सम्प्रेषण ( oral communication )– संचार प्र्कित्य के  अंतर्ग्रत जब सन्देश को मुख से बोलकर भेजा जाता है तो इसे मौखिक सम्प्रेषण खा जाता है | सरल शब्दों में मौखिक सम्प्रेषण का अर्थ है आमने सामने मौखिक बातचीत करके सूचनाओ का आदान प्रदान करना | इसमें सन्देश देने वाला अधिकारी न केवल अपने विचारो की पूरी और सही जानकारी दे सकता है बल्कि साथ साथ सन्देश प्राप्त करने वाले अधिकारी की समझ तथा प्रतिकिर्या को भी जान सकता है साथ ही सन्देश पाने वाला भी , न केवल सन्देश को समझ सकता है ,क बल्कि अपने शक और संशयो का साथ ही निपटारा भी करा सकता है | वास्तव में प्रत्येक संस्था में मौखिक संदेश्वाहन का महत्वपूर्ण स्थान है | एक प्रबंधक को समूह का नेत्रत्व करने के लिए अधिनस्थो से विचार विमर्श करने के लिए , अधिकार प्र्तायोजन के लिए , कराम्चारियो से आव सहयक सहयोग प्राप्त करने के लिए तथा संस्था में अच्छे वातावरण के निर्माण के लिए मौखिक रूप से ही सन्देश का आदान प्रदान करना होता है

मौखिक सम्प्रेषण के लिए विभिन्न माध्यमो जैसे- आमने सामने वार्तालाप , टेलीफोन पर वार्तालाप , साक्षात्कार , सम्मलेन , संभाये , भाषण रेडियो , प्रसारण आदि का प्रयोग किया जाता है |




(ii) लिखित सम्प्रेषण (written Communication ) :  लिखित संदेश्वाहन के अंतर्गत विचारो का आदान – प्रदान मुंह से बोलने की बजे लिख क्र किया जाता है लिखित संदेश्वाहन के लिए पत्र- पत्रिकाए , समाचार – पत्र ,. बुलेटिन , रिपोर्ट , सूचनाये , हैंडबुक आदि का प्रयोग किया जाता है | लिखित सन्देश तैयार करते समय बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है | सन्देश स्पस्ट होना चाइये तथा उसकी भाषा ऐसी नही होनी चाइये जिसके अनेक अर्थ निकलते हो | आधुनिक युग में प्रगति के साथ साथ लिखित संचार का महत्व वधता जा रहा है | लिखित संचार के आधुनिक माध्यम मुख्यत : E-mail तथा Fax है | लिखित संचार किसी भी व्यवसाय के संदेशो को प्रमाण रखने में मदद करता है |

(2)   अशब्दिक ( सांकेतिक ) सम्प्रेषण ( Non verbal Communication ) – यह संचार की ऐसी प्रक्रिया है जिसमे दुसरे व्यक्ति तक अपनी बात पहुचने के लिए संकेयो इशारो तथा हावभावो का प्रयोग किया जाता है | सांकेतिक संचार प्रणाली के द्वारा व्यक्ति अपनी भावनाओ को दुसरे व्यक्तयो तक शीघ्रता तथा मित्व्ययितापुर्वक भेज सकता है इसमें व्यक्ति के हावभाव को देखकर  यघ पता चल जाता है की वः क्या कहना चहा रहा है जैसे ख़ुशी व्यक्त करने के लिए ताली बजाना , पीठ थपथपाना या मुस्कुराना आते है जबकि नाराजगी व्यक्त करने के लिए मठे पर सलवटे पड़ना तथा मुहं बनाना आदि आते है | सांकेतिक संचार का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है –

(i)  शारीरिक भाषा ( Body Language) :   यह सांकेतिक संचार का महत्वपूर्ण माध्यम है | इसमें व्यक्ति अपने शरीर की क्रियाओ द्वारा अपना सन्देश अन्य व्यक्तयो को या समूह को पहुचता है इसमें आँखों को घुमाना , सर हिलाना , मुस्कुराना , ताली बजाना , हाथो को ऊपर निचे करने , उंगली दिखाना इत्यादि को शामिल किया जाता है | क्रिकेट मैच में छ: रन के इशारे के लिए empaire द्वारा दोनों हाथो को सर के ऊपर उठाना शारीरक भाषा का ही उदाहरण है |

(ii)  संकेत भाषा : (sigh language):   जब संचार प्रक्रिया में सन्देश देने के लिए संप्रेषक व प्राप्तकर्ता कुछ चिन्हों , संकेतो तथा प्रतिको का प्रयोग करते है तो इसे संकेत भाषा कहते है इसमें दुसरे व्यक्तयो तक सन्देश पहुचने के लिए पोस्टर , चित्र पेंटिंग , रंगों आदि का प्रयोग किया जाता है | संकेत भाषा में ऐसे तरीके का प्रयोग किया जाता है जिनसे किसी न किसी प्रकार की सुचना प्राप्त होती है जैसे खतरे का चिन्ह क्रोसे लगाकर , आगे जाने व् मुड़ने का चिन्ह  तीर बनाकर , गाड़ी रुकने का सन्देश लाल बत्ती द्वारा दिया जाता है | संकेत भाषा में रंगों का प्रयोग किया जाता है जैसे हरा रंग स्फूर्ति तथा पिल्का रंग प्रसन्नता का प्रतीक है |

(iii) भाषा प्रतिरूप para Language ) :  भाषा प्रतिरूप के अंतर्गत यह संकेत प्राप्त होता है की एक व्यक्ति अपने शब्दों को किस स्वर धवनी के साथ व्यक्त करता है इसमें हम आवाज के उतर चढाव , व्यक्ति की गति , अन्तराल या विल्रम आदि का अध्यन करते है जैसे क्रोध में बोला गया वाक्य , कम आवाज में खा गया वाक्य आदि | भाषा प्रतिरूप से सन्देश देने वाले की मानसिक स्थिति का पता आसानी से लगाया जा सकता है |




दिशा के आधार पर वर्गीकरण

(Classification of the basic of direction )

संस्था के निर्दारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के संगठन में शामिल व्यक्तियों के समूह की क्रियाओ, निर्णयों एंव संबंधो के विश्लेषण के आधार पर संगठन सरचना निर्धारित की जाती है संगठन में इस संरचना के द्वारा विभिन्न स्तरों एंव विभागों के मध्य संदेशो का प्रवाह होता है | सन्देश के इस प्रवाह को ही सम्प्रेषण की दिशा कहते है दिशा के आधार पर सम्प्रेषण को निम्लिखित प्रकार वर्गीक्रत किया जाता सकता है –

(1)  लम्बवत सम्प्रेषण ( vertical communication )–  जब संगठन संरचना के विभिन्न स्तरों के मध्य सन्देश का प्रवाह उछ अधिकारियो से अधीनस्थ कर्मचारियों की और अथवा अधीनस्थो से उच्च अधिकारियो की और होता है , तो इसे लम्बवत सम्प्रेषण कहते है | इसमें आदेशो तथा निर्देशों का प्रवाह सीधे क्रम के रूप में ही होता है जिससे संस्था का सर्वोच्च अधिकारी जेनरल मैनेजर होता है जो अपना आदेश विभागीय मैनेजर को देता है विभागीय मैनेजर संदेशो का प्रवाह कार्यालय अधिक्षक की और करता है तथा कार्यालय अधिक्षक सन्देश का प्रवाह कार्यलय सहायक को तथा  कार्यलय सहायक , अधीनस्थ कर्मचारियों को संदेशो प्रवाहित कर देता है | लम्बवत सम्प्रेषण के दो रूप हो सकते है –

(i)  अवरोही सम्प्रेषण या ऊपर से निचे की तरफ स्न्देश्वाहन (Dewnward Communication ) : जब सन्देश उच्च अधिकारियो से अधीनस्थ अधिकारियो एंव कर्मचारियों को दिया जाता है तो लिसे ऊपर से निचे की तरफ संचार कहते है | यह सन्देश लिखित या मौखिक रूप में हो सकता है इसके द्वारा प्रबंधक व्यवसाय की योजनाओ नीतियों तथा कार्यक्रमों की जानकारी अपने अधिनस्थो को उपलब्ध कराते है |

(ii) आरोही सम्प्रेषण या निचे से ऊपर की और संदेश्वाहन (Upward Communication )   संदेश्वाहन अधीनस्थ अधिकारियो एंव कर्मचारियों की और से उच्चस्तरीय  अधिकारियो की और होता है तो इसे निचे से ऊपर की और  संदेशवाहन कहा जाता है सामान्यत: इस पारकर का संदेश्वाहन निम्न स्तरीय अधिकारियो एंव क्रमचारियो द्वारा अपनी प्रार्थना , सुझाव , कठिनाइयों आदि को उच्च अधिकारियो तक पहुचने के लिए किया जाता है | उदाहरण के लिए , यदि कोई कर्मचारी अपने अधिकारी से छुटी के लिए प्रार्थना करता है तो इसे निचे से ऊपर की और संदेश्वाहन खा जायेगा |

(2) समतल सम्प्रेषण (Leteral Or horizontal Communication )– जब समान स्तर के क्रमचारियो अधिकारियो अथवा विभागअध्यक्ष के बीच संदेशो का आदान – प्रदान होता है इसे समतल सम्प्रेसन खा जाता है यह स्न्देश्वाहन भिन्न भिन्न विभाग अधिकारियो के मध्य किया जाता है | इसका उदेश्य विभिन्न कार्यो , विभो अथवा योजनाओ में सामंजस्य उत्पन्न करना होता है | इसमें कार्यो एंव ,निर्णयों को शीघ्रता से पूरा किया जा सकता है | इससे कार्यो एंव निर्णयों को शीघ्रता से पूरा किया जा सकता है | इसके मुख्य माध्यम प्रत्यक्ष व्यक्तिगत वार्तालाप , बैठकें व् गोस्थिया, विभागीय सुचना पत्रक , पत्रचार तथा अनौपचारिक सम्पर्क आदि है |

(3)  आरेखी सम्प्रेषण (Daigonal communication):  इस प्रकार के सम्प्रेषण में संघठन संरचना के औपचारिक प्रवाह को विचार में नही रखा जाता है | सूचनाओ एंव संदेशो के तिर्व प्रवाह के लिए विभिन विभागों एंव क्रियाओ के अधिनस्थो जो प्रत्यक्ष औपचारिक स्तरों में नही आते , के मध्य किया जाने वाला सम्प्रेषण आरेखी सम्प्रेषण कहलाता हसी इसमें संदेशो के पोर्वः का क्रम निचित नही होता है इस प्रकार के संदेश्वाहन से विभिन्न विभओगो में निर्णयन , दक्षता एंव एंव कर्य्चामता में वृधि होती है , क्न्योकी अनौपचारिक सभा या भोजनावकाश मुलाकात में आरेखी सम्प्रेषण द्वारा वंचित सूचनाओ एंव प्रगति संदेशो का आदान प्रदान होता है |

 

सम्बन्धो के आधार पर वर्गीकरण

(CLASSIFICATION ON THE BASIS OF RELATIONS )

संस्था में कार्य करने वाले विभिन्न व्यक्तियों के अन्तर्सम्बन्धो के आधार पर सम्प्रेषण को दो प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है |-

(i)  औपचारिक सम्प्रेषण (फॉर्मल communication)–   जब विचारो का आदान –प्रदान अधिकार और दायित्व के औपचारिक ढांचे पर आधारित होता है , तो उसे औपचारिक सम्प्रेषण कहते है इस संचार का मार्ग संघठन के ढांचे में निर्धारित प्रक्रियाओ के अनुसन तय होता है | इस प्रकार के संदेश्वाहन में उच्च स्तर के अधिकारी कोई भी सन्देश या सुचना निचले अधिकारियो को  लम्बवत सीडी को ध्यान में रखते हुए , ऊपर से निचे की तरफ भेजते है | इससे उच्च प्रबंधक सन्देश को अपने अधीनस्थ क्रमचारियो को देते है तथा अधीनस्थ अधिकारी अपने से अधीनस्थ क्रमचारियो को सन्देश देते है | सन्देश के प्रवाह यह क्रम तब तक चलता रहता है जब तक की सुचना सम्बंधित व्यक्तयो तक न पहुँच जाये | औपचारिक संचार प्राय: लिखित में ही होते तथा ये स्थायी आदेश , वार्षिक प्रतिवेदन तथा पत्रिकाओ के माध्यम से भेजे जाते है |

(ii)  अनौपचारिक सम्प्रेषण (Informal Communication )  –    जब संवाददाता तथा प्राप्तकर्ता के मध्य अनुप्चारिक सम्बन्ध होते है , तब उनके मध्य संवादों , सूचनाओ भावनाओ , स्पस्तीकरण तथा भविष्यवनियो  का जो आदान- प्रदान होता है , तो उसे अनौपचारिक संचार कहते है यह प्राय : प्रत्यक्ष एंव मौखिक होता है |  अनौपचारिक संचार में शारीर के अनेक अंगो तथा हव भाव को भी काम में लिया जाता है जैसे सर हिलाना , नेत्रों से किये जाने वाले इशारे , मुस्कुराना इत्यादि | इस संचार का मरघ अंगूर की बेल की तरह टेढ़ा – मेधा होता है तथा संस्था की तरफ से इसकी कोई व्यवस्था नही की जाती |

 

मौखिक तथा लिखित गुण – दोष की विवेचना

Advantages and disdvanteges of oral and written communication

जब मौखिक बातचीत करके सूचनाओ का आदान – प्रदान किया जाता है तो उसे मौखिक सम्प्रेषण कहते है यह संचार दो प्रकार का हो सकता है – प्रत्यक्ष संहार तथा अप्रत्यक्ष संचार | प्रत्यक्ष मौखिक संचार में आमने सामने मौखिक बातचीत करके सूचनाओ का आदान प्रदान करना होता है जबकि अप्रत्यक्ष में सन्देश प्रेषक टेलीफ़ोन आदि उपकरणों का प्रयोग करता है यह एक दिव्मर्गी संचार व्यवस्था है , क्योंकि सन्देश देने वाला तुरंत यह जान सकता है की सन्देश प्राप्तकर्ता ने सन्देश को समझा है अथवा नही |

मौखिक सम्प्रेषण में निम्नलिखित माध्यम उपयोग में लाये जाते है –

आमने सामने वर्तापल , दूरभाष पर वार्तालाप , रेडियो प्रसारण , टेप रिकॉर्डर , साक्षात्कार ,  सामूहिक संवाद , सभाए , सम्मेलन  विचारगोष्ठी , भाषण , घोषनाये आदि |

मौखिक संचार तीर्व , मितव्ययी , स्पष्ट , लचीला तथा प्रभावशाली है लेकिन विस्तृत सन्देश के लिए यह उपयुक्त नही माना जाता क्योंकि इसमें लिखित प्रमाण उपलब्ध नही होता |

 

मौखिक संचार के लाभ

(ADVANTAGES OF ORAL COMMUNICATION )

(1)  समय एंव धन की बचत –  इसमें मौखिक उच्चारण द्वारा सन्देश प्रेषित किया जाता है जिससे समय की बचत होती है | इसमें श्रम एंव धन की भी बचत होती है क्योंकि कागज , स्याही इत्यादि का पोर्योग नही करना पड़ता |

(2) प्रभावपूर्ण :  मौखिक संचार , सन्देश प्राप्त करने वाले पर शीघ्र प्रभाव डालता है विशिष्ट अवसरों पर प्रसन्नता , क्रोध , आदर और घरना भावो इत्यादि से इसे और भी अधिक प्रभावपूर्ण बनाया जा सकता है | आमने –सामने वार्या होने के कारण इससे व्यक्तिगत संबंधो में भी मधुरता आती है |

(3)  संचार की स्प्रष्टा – मौखिक सन्देश में यधि कोई भ्रम होता है तो उसका तुरंत निवारण किया जा सकता है तथा स्पष्टिकरन  में भी समय व्यर्थ नही होता इससे संचार में स्पष्टा आती है तथा सन्देश प्राप्त करने वाला उसी भाव में ग्रहण करता है जिस भाव में सन्देश भेजा गया है |

(4)  आवश्यकतानुसार परिवर्तन – मौखिक संचार लोचदार होता है क्योंकि इसमें समय व् परिस्थितियों के अनुसार आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है |

(5)   प्रतिक्रिया का ज्ञान – मौखिक संचार का एक प्रमुख लाभ यह भी है की इससे सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति पर होने वाली प्रतिक्रिया का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है यही सन्देश प्राप्त करने वाले पर इन्छित प्रभाव नही हुवा है तो उस सन्देश को  पुन: प्रेषित करके प्रभावशाली बनाया जा सकता है |

(6) शीघ्र सम्प्रेषण – इसमें आदेशो व् निर्देशों को शीघ्रता के साथ संप्रेषित किया जा सकता है क्योकि सूचनाओ को प्रेषित करने से पूर्व लिखने की आवश्यकता नही होती |+

(7) सहयोगपूर्ण वातावरण के निर्माण में सहयक – मौखिक संचार में प्रबंधक एंव कर्मचारी आपस में व्यक्तिगत सम्पर्क में आते है जिससे संघठन में सहयोगपूर्ण वातावरण का निर्माण होता है मौखिक संदेश्वाहन क्रमचारियो के मनोबल को ऊँचा उठाने , उन्हें प्रेरणा देने तथा कार्यकुशलता में वृधि करने में भी सहायक होता है |

(8)   नीति- निर्धारण में सहायक –  मौखिक संचार परामर्श एंव नीति निर्धारण में सहायक होता है मेक्मारा के अनुसन ,”प्रत्येक पारकर के संगठन एंव प्रबंध में अपने अधिनस्थो से परामर्श किया जाना आवश्यक है और इस कार्य के लिए मौखिक संदेश्वाहन महत्वपूर्ण है “

मौखिक संचार के दोष

DISADVANTAGES OF ORAL COMMUNICATION

मौखिक संचार के प्रमुख दोष निम्नकिंत प्रकार है –

(1)   लिखित प्रमाण का आभाव –  मौखिक संदेश्वाहन में प्रेषित किये गये संवादों का कोई लिखित प्रमाण नही रहता भविष्य में वाद विवाद के समय कोई लिखित प्रमाण न होने से किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने कठिनाई उत्पन हो जाती है |

(2)   दोनों पक्षों की उपस्थिति आवश्यक –  मौखिक संचार के लिए दोनों पक्षों अर्थात सवांददाता तथा सवांद प्राप्तकर्ता की उपस्थिति आवश्यक होती है अत: यदि किसी समय सवांद प्राप्तकर्ता उपलब्ध न हो तो मौखिक संचार संभव नही हो पता

(3)   अस्पष्टता —  जब मुखी सन्देश अधिक  विस्तृत तथा लम्बा होता है तो सन्देश प्राप्तकर्ता को उसे समझने में कठिनाई होती है | ऐसी स्थिति में लिखित सन्देश ही उपयुक्त रहता है |

(4)   खर्चीली पद्धति – जब सुचना देने वाले तथा सुचना प्राप्त करने वाले मध्य दुरी इतनी अधिक होती है की प्रत्यक्ष संपर्क संभव नही हो सकता और टेलीफोन से वार्ता हो सकती है , तब यह पद्धति बहु खर्चीली रहती है |

(5)   प्रतिकूल प्रभाव – मौखिक संचार में सूचनाकर्ता तथा सुचनाग्राफी  को सोचने समझने का मौका नही मिल पता जिससे कई बार सन्देश का विपरीत या गलत प्रभाव हो सकता है तथा संबंधो में कटुता उत्पन्न हो जाती है |

लिखित संचार

(WRITTEN COMMUNICATION )

लिखित संचार में सन्देश का आदान –प्रदान मुंह से बोलने की बजे लिखकर किया जाता है | इसमें संदेशो को प्रमाण के रूप में भविष्य के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है तथा विस्तृत सन्देश के लिए भगी यह बहुत उपयुक्त रहता है | लिखित संदेश्वाहन के लिए पत्र ,पत्रिकाए , बुलेटिन , समाचार पत्रों , रिपोर्ट आदेश विज्ञप्ति आदि साधनों का प्रयोग किया जाता है | लिखित संदेश्वाहन करते समय इस बात का पूरा ध्यान रखा जाना चाइये की जो सन्देश भेजा जा रहा है कही उसका अर्थ न बदल जाये | अत: सन्देश को छोटे –छोटे वाक्यों में लिखना चाइये तथा ऐसे शब्दों का प्रयोग नही किया जाना चाइये जिसके अनेक अर्थ निकलते हो |




लिखित संचार के लाभ

ADVANTAGES OF WRITTEN COMMUNICATION )

लिखित संचार के लाभ निम्नलिखित है –

(1)   लिखित प्रमाण उपलब्ध होना ––  लिखित संदेश्वाहन में सुचना लिखित रूप में भेजी जाती है उसे भविष्य में संदर्भ के लिए सुरक्षित रखा जाता है | यदि भविष्य में कोई भी वाद विवाद होता है तो उसे प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है

(2)   प्रत्यक्ष सम्पर्क की आवश्यकता नही – लिखित स्न्देश्वाहन में सूचनाकर्ता तथा सुच्नाग्राही के मध्य सीधे एंव प्रत्यक्ष सम्पर्क की आवश्यकता नही होती | इसमें सूचनाकर्ता सन्देश लिखकर सम्बंधित व्यक्ति के पास भेज देता है तथा वः व्यक्ति के पास भेज देता है तथा वः व्यक्ति आकर उसे सन्देश को कभी भी पढ़ सकता है |

(3)   विस्तृत सन्देश के लिए उपयुक्त – यदि सन्देश विस्तृत एंव जटिल है तथा उसे यद् रखना कठिन है तो ऐसी स्थिति में लिखित सन्देश उपयुक्त रहता है

(4)  पूर्णता एंव स्पष्टता – लिखित सन्देश में सुचना पूर्ण एंव स्पस्ट होती है जिससे प्रत्येक व्यक्ति उसे आसानी से समझ सकता है | लिखित सन्देश काफी सोच –समझ कर लिखा जाता जाता है तथा उसमे सभी आवश्यक बाते समिमलित क्र ली जाती है , जिससे सन्देश में पूर्णता रहती है |

(5)   कम खर्चीला –  यदि सन्देश प्राप्त करने वाले व्यक्ति दुरी पर रहते है तो मौखिक संचार की अपेक्षा यह साधन मितव्ययी है , क्योंकि डाक व्यय नाममात्र का ही होता है |

(6)  अनेक व्यक्तियों को एक साथ सुचना – एक साथ अनेक व्यक्तियों को सुचना देने के लिए भी लिखित संचार सर्वोतम साधन है | अलग अलग स्थानों पर रहने वाले विभिन्न व्यक्तियों को एक ही सुचना एक समय पर देने के लिए लिखित संचार उपयुक्त रहता है |

लिखित संचार के दोष

Disadvanteges of written communication)

लिखित संचार के प्रमुख दोष निम्नलिखित है –

(1)  खर्चीली पद्धति –  लिखित संचार पढ़ती में कागज , स्याही , टाइप के व्यय एंव सन्देश तैयार करने वाले कर्मचारी के वेताज इत्यादि के रूप में काफी व्यय होता है | अत: मौखिक संचार की तुलना में यह पढ़ती अद्खिक खर्चीली होती है |

(2)  गोपनीयता का आभाव – लिखित सन्देश अनेक क्रमचारियो के होतो से होकर गुजरता है अत: उसे गोपनीय नही रखा जा सकता |

(3)  सन्देश पहुचने में विलम्ब – लिखित सन्देश पढ़ती में अनेक बार सन्देश पहुफ्चने में विलम्ब हो जाता है जिससे संस्त को हानि उठानी पद सकती है |

(4)  प्रभावी न होना – लिखित सन्देश में, प्रेषक की सम्पूर्ण भावनाओ को व्यक्त करना संभव नही होता जिससे यह अधिक प्रभ्व्शाली नही हो पाता |  

(5)   मौखिक संचार की अपेक्षा – इस पढ़ती में समय का अधिक अपव्यय होता है | सन्देश को लिखने और अधिकारियो के हस्ताक्षर कराने में काफी समय नष्ट हो जाता है जिससे संस्था को नुकसान होता है

उपयुक्त दोनों संचार पधतियो के गुण – दोषों का विवेचन करने के पश्चात् यह कहना कठिन है की एक व्यावसायिक उपक्रम के लिए कौन सी पढ़ती उपयुक्त है दोनों संचार विधियों के अपने –अपने गुण तथा दोस है | हैमेन ने इस सम्बन्ध में सही खा है की ,” प्रबंध केवल एक ही विद्खी को चुनता है तो गंभीर असफलता मिलेगी | अत: परिस्थिति के अनुसार इन दोनों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास करना चाइये | संदेश्वाहन की इन दोनों विधियों का अपना- अपना महत्व है | ये एक –दुसरे की प्रतिद्वन्द्वी  नही बल्दी पूरक है अत: दोनों में से किसी भी विधि का परित्याग नही किया जा सकता और न ही किसी एक माध्यम के प्रयोग से कम चल सकता है |

 

मौखिक तथा लिखित संचार में अंतर

Distinguish between oral and written communication

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