Holder and Holder in Due Course Business Law Notes Hindi

Holder and Holder in Due Course Business Law Notes Hindi



Holder and Holder in Due Course Business Law Notes Hindi :- hello dear all student we are happy to so very much because you gives your love with our team . and so we are to day shearing to you b.com first year subjects’s business law and one the most chapter its name is holder and holder and holder in due course business notes in hindi.

Holder and Holder in Due Course Business Law Notes Hindi
Holder and Holder in Due Course Business Law Notes Hindi

धारी एवं यथाविधिधारी (Holder and Holder in Due Course)

धारक का अर्थ (Meaning of holder)

भारतीय विनिमय-साध्य, विलेख अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, “धारक से आशय ऐसे किसी भी व्यक्ति से है जो विनिमय साध्य विलेख (विनिमय-विपत्र, प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक) को क़ानूनी रूप से अपने नाम में रखने तथा सम्बन्धित पक्षकारो से देयरकम प्राप्त करने अथवा वसूल करने का अधिकारी होता है | जब कोई विनिमय साध्य विलेख खो जाता है अथवा नष्ट हो जाता है, तो उसका अधिकारी होता है जो ऐसी हानि अथवा विनाश के समय उसका अधिकारी था |”

उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार विनिमय साध्य विलेख का धारक बनने के लिये निम्नलिखित दो अधिकारों का होना आवश्यक है –

1, विलेख को अपने नाम से रखने का अधिकार – धारक वही व्यक्ति हो सकता है जिसे विलेख को अपने नाम में अपने पास रखने का वैधानिक अधिकार प्राप्त होता है | अत: चोरी से प्राप्त किये गये अथवा खोये हुये विलेख को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को ‘धारक’ नही कहा जा सकता | धारक को यह अधिकार उस विलेख का प्रापक या प्राप्तकर्ता (payee), पृष्टाँकिती (Endorsee) अथवा वाहक (Bearer) होने के रूप में हो सकता है | यदि किसी एजेण्ड के पास अपने नियोक्ता का विलेख सुरक्षित रखने के लिये हो तो वह उसका धारक नही माना जायेगा | यहाँ पर हा उल्लेखनीय है की धारक को प्रपत्र पर वास्तविक कब्ज़ा रखना आवश्यक नही है, उसे विधान के अनुसार कब्जा रखने का अधिकार होना चाहिये | उदाहरण के लिये, आदेशित चैक का प्रपत्र अपने एजेण्ड को बिना पृष्ठांकन के चैक सुपुर्द करने पर भी प्रलेख का धारक बना रहता है |

2, अपने नाम में धनराशि प्राप्त करने अथवा वसूल का अधिकार – धारक के दूसरी आवश्यक बात यह है कि विलेख में वर्णित धनराशि को सम्बन्धित पक्षकारो से अपने नाम में ही प्राप्त करने अथवा वसूल करने का अधिकार हो | अत: यदी किसी व्यक्ति के अधिकार में कोई विलेख तो है, परन्तु उसे उसकी राशि अपने नाम में प्राप्त करने का अधिकार नही है तो वह व्यक्ति उस विलेख का धारक नही हो सकता है | जैसे एजेण्ड जिसको विलेख की राशि वसूल करने कला अधिकार दिया गया है, विलेख का धारक नही है क्योकि उसे उसकी राशि अपने नाम में प्राप्त करने का अधिकार नही होता है | इसी प्रक्रार कोई चोर अथवा किसी खोये हिये विलेख को पाने वाला व्यक्ति धारक नही कहा जा सकता क्योंकि उसे अपने नाम में विलेख की रकम प्राप्त करने का अधिकार नही होता है |

धारक के अधकार (Rights of a holder) (i) विलेख में लिखित धनराशि के भुगतान करने का अधिकार, (ii) विलेख के कोरे पृष्ठांकन में परिवर्तित करने का अधिकार, (iii) चौक पर अपरक्राम्य शब्द लिखकर रेखांकित करना, (iv) विनिमय-पत्र का तीसरे पक्षकार को बेचाव करना, (v) विलेख के खो जाने पर उसकी दूसरी प्रति माँगने का अधिकार, (vi) अपने नाम से वाद प्रस्तुत करने का अधिकार |

वास्तव में धारक की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योकि – (i) विलेख के सभी पक्ष उसके प्रति उत्तरदायी होते है तथा (ii) केवल वह ही विलेख के अन्य पक्षों को उसनके दायित्त्व से मुक्त हो सकता है |

यथाविधि धारक से आशय

(Meaning of the holder in due course)

विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, “यथाविधि धारक वह व्यक्ति होता है जो प्रतिफल के बदले विलेख में लिखित धनराशि के देय होने से पूर्व ‘वाहक को देय’ विलेख (प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय विपित्र अथवा चैक) पर कब्ज़ा प्राप्त करता है अथवा आदेश पर देय विलेख को आदाता (Payee) या पृष्टाँकिती (Endorsee) बन जाता है तथाविलेख प्राप्त करते समय उसे हस्तान्तरक के स्वामित्व में किसी दोष को जाने का कोई पर्याप्त कारण ज्ञात नही था |”

उपरोक्त परिभाषा के आधार पारी किसी व्यक्ति को विनिमय-साध्य विलेख का यथाविधिधारक कहलाने के लिये निम्नलिखित शर्तो को पूरा करना अनिवार्य है –

1, विलेख का अधिकार (Possession of Instrument)विनिमय-साध्य विलेख यथाविधिधारक के अधकार में होना चाहिये | यदि विलेख देश पर देय है तो उस पर यथाविधिधारी का नाम, प्राप्तकर्ता (Payee) या पृष्टाँकिती (Endorsee) के रूखा होना चाहिये | यदि विलेख ‘वाहक विलेख’ है तो ‘यथाविधि-धारी’ को उसका धारक होना चाहिये |

2, मूल्यवान प्रतिफल के लिये विलेख प्राप्त करना (Instrument Received for valuable consideration) केवल ऐसा व्यक्ति ही यथाविधिधारी कहलायेगा जिसने वैध तथा पर्याप्त मूल्यवान प्रतिफल देकर विलेख प्राप्त किया जाता है | यदि कोई व्यक्ति कोई दान या उपहार के रूप में या अवैध कार्य के लिये कोई विलेख प्राप्त करता है तो उस व्यक्ति को यथाविधिधारी नही कहा जा सकता |

3, परिपक्वता तिथि अथवा देय से पूर्व विलेख प्राप्त करना (Instrument received before the date maturity)यथ्विधि धारक के लिये यह भी आवश्यक हो है की उसने विलेख को उसकी देय तिथि से पहले ही प्राप्त किया हो | यदि उसने देय तिथि के बाद विलेख को प्राप्त किया हो तो यथाविधि धारक नही माना जा सकता | परन्तु यह शर्त उन्हीं विलेखो पर लागु होती है जिनका भुगतान एक निश्चित अवधि के बीत जाने पर ही किया जाता है | चैकों पर यह शर्त लागु नही होती क्योंकि उनका भुगतना सदैव माँग पर देय होता है |

4, सद्भावना से विलेख प्राप्त करना (Instrument received with good faith)केवल उसी व्यक्ति को यथाविधि धारक माना जाता है जिसके पास विलेख को प्राप्त करते समय विश्वास का ऐसा कोई कर्ण नही था की विलेख के हस्तान्तरक का स्वामित्व दोषयुक्त था | दुसरे शब्दों में, उसे विलेख ईमानदारी तथा सद्भावना से प्राप्त होना चाहिये | यदि कोई व्यक्ति किसी विलेख को चोरी से अथवा कपटपूर्ण ढंग से प्राप्त करता है, तो उसे यथाविधि धारक और नही माना जा सकता | अत: विलेख को प्राप्त करते समय पूर्ण सावधानी बरतनी चाहियें और आवश्यक छानबीन के पश्चात्त् हो विलेख का प्राप्त करना चाहिये | निम्नलिखित दशाओं में उसे पूर्व व्यक्ति के स्वत्वाधिकार की जाँच करनी चाहिये – (i) जब वह किसी प्रकार के दोषयुक्त हो, (i) जब विलेख पर लेखक के हस्ताक्षर न हो, (iii) जब विलेख में प्राप्तकर्ता का नाम परिवर्तित या मिटा हुआ हो, (iv) जब विलेख फटा हुआ हो या चिकाया हुआ है |

अधिनियम की धारा 118 के अनुसार, जब तक यह सिध्द न कर दिया जाये की विलेख का धारक यथाविधि धारक नही है, न्यायालय की दृष्टि में यथाविधि धारक ही माना जाता है |




यथाविधि धारक की विशेषाधिकार

(Privileges of a holder in due course)

एक यथाविधि धारक को निम्नलिखित विसेषाधिकार प्राप्त होते है –

1, अपूर्ण विलेख की स्थिति में लिखी रकम पाने का अधिकार – यदि कोई व्यक्ति अपने हस्ताक्षरयुक्त स्टाम्प लगा हुआ परन्तु अपूर्ण विलेख (जो या तो पूर्णत: कोरा है या आंशिक रुप में लिखा हुआ है) किसी दुसरे व्यक्ति को देता है, तो वह यथाविधि धारक के विरुध्द  यह नही कह सकता की विलेख उसके द्वारा दिये अधिकारों अथवा निर्देशों के अनुसार पूर्ण नही है अर्थात् अपूर्ण विलेख की स्थिति में यथाविधि धारक को उसमे लिखी रकम के भुगतान पाने का अधिकार होता है | परन्तु शर्त यह है की विलेख की धनराशि के लिये पर्याप्त स्टाम्प लगाया हुआ हो |

(धारा 20)

उदाहरण – राम अपने हस्ताक्षर करके स्टाम्पयुक्त रक विलेख जिस पर 500 रूपये तक की राशि लिखी जा सकती है, श्याम को इस निर्देश के साथ देता है की शतं उस पर 300 रूपये तक की रकम अंकित कर ल | परन्तु श्याम उस पर 500 रूपये लिख देता है तो यहाँ पर राम ने इस विलेख के यथाविधि धारी के विरुध्द यह नही कह सकता कि वह केवल 300 रूपये के लिये उत्तरदायी है | इस प्रकार यथाविधि उक्त विलेख के आधार पर 500 रूपये ही वसूल कर सकता है |

2, पूर्व पक्षकारों का यथाविधि धारक के प्रति दायित्त्व – विनिमय-साध्य विलेख के सभी पक्षकार (जैसे लेखक, स्वीकर्ता एवं समस्त पृष्ठांकक आदि) यथाविधि धारी के प्रति उस समय तक उत्तरदायी रहते है जब तक की विलेख का उचित रूप से भुगतान नही कर दिया जाता | (धारा 36)

3, विनिमय-विपत्र में कल्पित नाम होने की दशा में अधिकार – जब कोई विनिमय-विपत्र लेखक के आदेशानुसार किसी कल्पित नाम में देय है और उसी व्यक्ति द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो तो विनिमय-विपत्र काल्पनिक नाम से लिखा गया है, अत: वह इस विनिमय-विपत्र का भुगतान नहीं देगा | (धारा 42)

4, सशर्त सुपुर्दगी का कोई प्रभाव नही – यदि कोई विलेख यथाविधि धारक को हस्तान्तरित किया जाता है तो विलेख सम्बन्धित अन्य पक्षकार इस आधार पर अपने दायित्त्व से नही बाख सकते कि विलेख की सुपुर्दगी सशर्त अथवा किसी विशेष उद्देश्य के लिये थी | (धारा 46)

 5, विलेख पर दोषरहित उत्तम स्वामित्व का अधिकार प्राप्त होना – यह यथाविधि धारक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है | यदि विलेख के आवागमन के दौरान यथाविधि धारी स्वयं किसी कपट, जालसाजी या अवैध कार्यवाही में भागीदारी न रहा हो, तो यथाविधि धारी को विलेख के हस्तान्तरणकर्ता एवं पूर्व पक्षकारों से उत्तम और दोषमुक्त स्वामित्व प्राप्त होता है, भले ही पूर्व पक्षकारों के मध्य विलेख की सुपुर्दगी कपटपूर्ण ढंग से क्यों न की गई हो | इतना ही नही इसके बाद के सभी हस्तान्तरियो (Transferee) अथवा धारको को भी उतम एवं दोषमुक्त स्वामित्त्व प्राप्त होता है प्राय:यह कहा जाता है कि जब विलेख में इसकी तुलना गंगा नदी से की जा सकती है | जिस प्रकार गंगाजी में नहाने से सारे पाप धुल जाते है (ऐसा विश्वास किया जाता है), उसी प्रकार से विलेख यथाविधि धारक के हाथ निकलने पर पापयुक्त (दोषमुक्त) हो जाता है |

उदाहरण – अ कपट द्वारा ब से वाहक को देय विपत्र प्राप करके स को मूल्य के बदले हस्तान्तरित कर देता है | स इसे सद्विश्वास से प्राप्त कर लेता है | स यथाविधि धारक होने के कारण अच्छा स्वामित्व प्राप्त का लेगा यघपि अ का स्वामित्व दोषपूर्ण था |

इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखनी चाहिये की यथाविधि धारक केवल स्वामित्व  के दोष (Defect of title) को ही ठीक कर सकता है | यदि स्वामित्व  का एकदम अप्रभाव अभाव (Absence of Title) है तो यथाविधि धारक स्वामित्व प्रदान नही कर सकता | उदहारणार्थ, “एक चैक ‘आशीष को या उसके आदेशानुसार देय है |’ विजय इसे चुराकर और उस पर आशीष के जाली हस्ताक्षर करके अजय को बेचान लार देता है अजय यघपि यथाविधि धारक है परन्तु वह चैक की धनराशि वसूल नही कर सकता है, क्योकि यह मामला दूषित स्वामित्व का नही है बल्कि द्वामित्व के पूर्ण आभाव का है | (धारा 53)

6, अवैधानिक ढंग से या गैर क़ानूनी प्रतिफल के बदले किये गये विलेख के सम्बन्ध में अधिकार – किसी विलेख के भुगतान के लिये उत्तरदायी व्यक्ति यथाविधि धारक के प्रति अपने दायित्व से केवल इस आधार पर मुक्ति प्राप्त नही कर सकता की सम्बन्धी विलेख खो गया था उससे किसी कपट अथवा अपराध द्वारा या किसी गैर-क़ानूनी प्रतिफल के बदले प्राप्त कर लिया गया था | (धारा 58)

7, विलेख की मूल वैधता से मना करने के विरुध्द अवरोध – प्रतिज्ञा-पत्र का लेखक, विनिमय-बिल तथा चैक का आहर्ता (Drawer) तथा लेखक के आदर के लिये विनिमय-बिल के स्विक्रार करने वाले व्यक्ति आदि को विनिमय-साध्य विलेखो के सम्बन्ध में यथाविधिधारक द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर यह कहने की अनुमति नही है की अमुक विलेख प्रारम्भ से ही विधिवत् रूप से तैयार नही किया गया था अर्थात् अवैध था | अत: विलेख का लेखक इस तर्क क्र आधार पर अपने दायित्व से मुक्त नही हो सकता | (धारा 120)

8, आदाता (प्राप्तकर्ता) (Payee) प्रष्ठांकन करने के लिये की क्षमता को अस्वीकार करने पर अवरोध – प्रतिज्ञा-पत्र का लेखक तथा आदेश पर देय विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता, यथाविधिधारक के द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर प्राप्तकर्ता के प्रष्ठांकन करने की क्षमता को अस्वीकार नही कर सकते अर्थात् यह नही कह सकते की यथाविधिधारक को विलेख का बेचान करने व्यक्ति में प्रष्ठांकन करने की क्षमता नही थीं | (धारा 121)

धारक एवं यथाविधिधारक में अन्तर

(Difference between bolder and holder in due course)

अन्तर का आधार धारक यथाविधिधारक
1, प्रतिफल यह विलेख को बिना प्रतिफल के भी प्राप्त कर सकता है, जैसे दान में प्राप्त विलेख | यह विलेख अनिवार्य रूप से प्रतिफल के बदले ही प्राप्त कर सकता है |
2, प्रकृति धारक के लिये यथाविधिधारक होना आवश्यक नही होता है | यथाविधिधारक के लिये धारक होना आवश्यक है |
3, विलेख की प्राप्ति का समय यह विलेख को देय तिथि से पूर्व या बाद कभी भी प्राप्त कर सकते है | इसके द्वारा विलेख को परिपक्वता तिथि से पहले प्राप्त करना आवश्यक होता है |
4, स्वामित्व  धारक का स्वामित्व हस्तान्तरकके स्वमित्व जैसा होता है | यथाविधिधारक का स्वमित्व हस्तानरक के स्वमित्व से अच्छा होता है |
5, सद्भावना से विलेख की प्राप्ति इसके लिये विलेख को सद्भावना से प्राप्त करना आवश्यक नही है | इसके लिये विलेख को सद्भावना से प्राप्त करना आवश्यक है |
6, विशेषधिकार धारक को कोई विशेषधिकार नही होता | यथाविधिधारक को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त होता है |

B Com Study Material in Hindi

B Com Question Paper in Hindi and English

Follow Us on Social Platforms to get Updated : twiter,  facebook, Google Plus



Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top
Open chat
1
Scan the code
Hello
Can We Help You?