Balance of Trade and Balance of Payments study notes in Hindi

Balance of Trade and Balance of Payments study notes in Hindi

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व्यापार संतुलन एव भुगतान सन्तुलन (Balance of Trade and Balance of Payments)

Balance of Trade and Balance of Payments study notes in Hindi
Balance of Trade and Balance of Payments study notes in Hindi

Meaning of Balance Trade व्यापार संतुलन का अर्थ

Balance of Trade and Balance of Payments study notes in Hindi : प्रत्येक देश अपनी आवश्यकता की वस्तुओ का दुसरे देशो से आयत करता है तथा अपनी अतिरिक्त वस्तुओ का विश्व के अन्य देशो को निर्यात करता है | यदि एक निशिचत अवधि में किसी देश के कुल निर्यातो मूल्य में से कुल आयातों के मूल्य को घटा दिया जाए तो प्राप्त अन्तर को व्यापार शेष कहा जाता है | इस प्रकार व्यापार सन्तुलन के अन्तगर्त आयातों तथा निर्यातो का विस्तार विवरण रहता है जो आयातों एव निर्यातों के अंतर को स्पष्ट करता है |

बेनहम के अनुसार, “एक निशचित अवधि में किसी देश के निर्यातो के मूल्य एव आयातों के मूल्य के सम्वन्ध को ही व्यापार सन्तुलन कहते है |

किसी देश का व्यापार सन्तुलन या तो अनुकुंल हो सकता है अथवा प्रतिकूल | जब एक देश के आयातों की तुलना में, उसके निर्यात अधिक होते है तो उसे अनुकूल व्यापार सन्तुलन कहते है और जब निर्यात की तुलना में, आयत अधिक होते है तो इसे प्रतिकूल व्यापार-सन्तुलन कहते है |

 

Impact of Adverse Trade Equity प्रतिकूल व्यापार सन्तुलन के प्रभाव




  1. विनिमय दर का देश के विपश्र में होना— प्रतिकूल व्यापार शेष के कारण देश की मुद्रा की विनिमय दर विपश्र में हो जाती है | आयात अधिक होने के कारण विदेशी मुद्रा की माँग बढ़ जाती है तथा निर्यात कम होने के कारण देश की मुद्रा की माँग कम हो जाती है इस प्रकार देश की मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तथा माँग कम हो जाती है परिणामस्वरूप देश की मुद्रा की विनिमय दर विपश्र में हो जाती है |
  2. विदेशी मुद्रा कोषों में कमी— प्रतिकुल व्यापार सन्तुलन की दशा में आयातों के निर्यातो से अधिक होने के कारण विदेशी मुद्रा की आवश्यकता अधिक हो जाती है | अतिरिक्त भुगतानों के लिये पहले से सचित विदेशी मुद्रा कोषों से भुगतान करना पड़ता है जिससे विदेशी मुद्रा भण्डार में कमी आती है |
  3. आर्थिक विकास के मार्ग में बाधा— आर्थिक विकास के लिये देश को पुजीगत सामान, तकनीक,मशीन व सयन्त्र आदि की आवश्यकता होता है | परन्तु प्रतिकूल व्यापार सन्तुलन के कारण विदेशी मुद्रा भण्डार कम हो जाते है तथा विनिमय दर भी देश के विपश्र में हो जाती है | परिणाम स्वरूप आर्थिक विकास के लिए आवश्यक संसाधन उपलव्ध नही हो पाते तथा आर्थिक विकास का मार्ग अवरुद्ध होने लगता है |
  4. ऋणभार में वर्धि— प्रतिकूल भुगतान शेष के कारण विनिमय दर देश के विपश्र में हो जाती है, जिससे देश को विदेशी ऋण को चुकाने के लिए अधिक कोषों की आवश्यकता पडती है | परिणाम स्वरूप देश पर ऋण भार में वर्धि को जाती है |
  5. आर्थिक प्रतिष्ट में कमी— प्रतिकुल व्यापार सन्तुलन से देश की आर्थिक प्रतिष्ट में कमी आती है | यह देश की कमजोर अर्थव्यवस्था का प्रतीक होता है जिससे अन्तगर्त साख सस्थाओ द्वारा देश की आर्थिक स्थिति का निचा मूल्याकंन किया जाता है | इससे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है |

 

भुगतान सन्तुलन— भुगतान सन्तुलन किसी देश का विशव के अन्य देशो  के साथ निशिचत अवधि में किये जाने वाले मोद्रिक लेन-देनो का विवरण होता है यह एक देश के समस्त आयातों, निर्यातों तथा अन्य सेवाओ के मूल्यों का सम्पूर्ण विवरण होता है | इसमे आयत निर्यात की सभी द्रश्य तथा अद्रश्य मदों को शामिल किया जाता हिया द्रश्य मदे वह होती है जिसका बंदरगाह पर रखे रजिस्टर में लिखा नही किया जाता जबकि अद्रश्य  मदों में सभी प्रकार की सेवाए जैसे बैक,  बीमा एव जहाजरानी सेवाए पर्यटक सेवाए, विशेषज्ञों की सेवाए आदि तथा पूजी का आदान-प्रदान, ब्याज की प्राप्ति एव भुगतान, स्वर्ण का आवागमन आदि को शामिल किया जाता है |

 

व्यापार सन्तुलन एव भुगतान सन्तुलन में अंतर Differences in Trade Equity and Payment Equity 

 

अन्तर का आधार

व्यापार सन्तुलन

भुगतान सन्तुलन

1.       विवरण इसमे कवेल आयातों तथा निर्यात का विस्तार विवरण रहता है | इसमे केवल आयातों-निर्यातों का ही नही वरन सेवाओ, पूजी स्वर्ण आदि का भी समावेश होता है |

 

2.       श्रेत्र व्यापार सन्तुलन का श्रेत्र सकुचित होता है | वस्तुत: यह भुगतान सन्तुलन का ही एक भाग है | भुगतान सन्तुलन का श्रेत्र अधिक व्यापक होता है |
3.       प्रक्रति व्यापार सन्तुलन किसी भी समय अनुकूल या प्रति कुल हो सकता है | भुगतान सन्तुलन सदैव सन्तुलित रहता है |
4.       द्रश्य तथा अद्रश्य मदे इसमे केवल द्रश्य मदों के आयात-निर्यात को हो शामिल किया जाता है |  इसमे द्रश्य एव अद्रश्य दोनों प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है |

 

5.       महत्व इसका महत्व तुलनात्मक रूप से कम होता है | यदि किसी देश का व्यापार सन्तुलन उसके पश्र में नही है तो यह अधिक चिंता की बात नही है |

 

इसका तुलनात्मक रूप से अधिक महत्व होता है | यदि भुगतान सन्तुलन देश के पश्र में नही है तो यह देश की प्रतिकूल आर्थिक स्थिति का प्रतीक होता है |
6.       विनिमय दर पर प्रभाव यह विनिमय दर को अधिक प्रभावित नही करता | यह विनिमय दर को अधिक प्रभावित करता है |

 

Measures to solve the problem of payment balance भुगतान सन्तुलन की समस्या को दूर करने के उपाय 




  1. विनिमय नियन्त्रण— विनिमय नियन्त्रण उन सब किर्याओ के समूह को कहते है जो मुद्रा की विनिमय दर को एक निर्धारित स्तर पर बनाये रखने के लिए की जाती है | विनिमय नियन्त्रण वह सरकार नियमन है जी विदेशी विनिमय बाजार में आर्थिक शक्तियों को सरलतापूर्वक कार्य नही करने देता है | प्रतिकुल भुगतान-सन्तुलन को ठीक करने के लिए विनिमय नियन्त्रण की नीति को अधिक निशचित व प्रभावशील माना जाता है | जब किसी देश में विदेशी विनिमय का सकट उपस्थित होता है तो सरकार विदेशी विनिमय के समस्त लेन-देन को नियमित क्र अपने हाथो मे ले लेता है और केवल अधिक्रत व्यापारियों को ही सिमित मात्रा में मुद्रा के लेन-दें की अनुमति देता है |
  2. निर्यात को प्रोत्साहन— सरकार को निर्यात को प्रोत्साहन करना चाहिए जिससे निर्यात बढ़ सके |  इसके लिए (i) निर्यात करो में कमी की जानी चाहिए | या निर्यात की छुट दी जानी चाहिए, (ii) देश के उधोगो को आर्थिक सहायता दी जानी चाहिए. (iii) विदेशो में वस्तुओ के लिए प्रचार व  विज्ञापन किया जाना चाहिए |
  3. आयातों में कमी— भारत को अपने आयातों में कमी करनी चाहिए | इसके लिए (i) आयत करो में वर्धि की जानी चाहिए जिससे आयातित वस्तुए महगी पड़े और उनकी माँग कम हो, (ii) साथ ही लाइसेस व् कोटा-प्रणाली का भरपूर सहयोग लिया जाना चाहिए |
  4. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण— भारतवर्ष में मुद्रास्फीति के कारण वस्तुओ की कीमतों में निरंतर वर्धि हो रही है | बढती कीमतों के कारण भारतीय वस्तुओ की माँग विदेशो में कम हो जाती है; | फलत: इसके निर्यात में कमी हो जाने पर भुगतान-सन्तुलन प्रतिकूल हो जाता है | अत: देश में मुद्रास्फीति पर नियन्त्रण लगातार बढती हुई कीमतों को रोका जाना चाहिए ताकि कम कीमतों पर भारतीय वस्तुओ की विदेशो में माँग बढने से निर्यात बढ़े और भुगतान सन्तुलन की प्रतिकूलता में सुधार हो |
  5. विदेशी पूजी को आकर्षित करना— देश की सरकार उचित राजनितिक एव आर्थिक वातावरण का निर्माण करके विदेशी पूजी को आकर्षति क्र सकती है | ब्याज की दर में वर्धि विनिमय प्रतिबंधो में रियायते करो में छुट आदि उपायों को अपनाने पर जब विदेशी पूजी देश में आने लगती गई तब भुगतान-सन्तुलन की प्रतिकूलता में सुधार होने लगता है |
  6. पर्यटन उधोग का विकास— विदेशी पर्यटकों को आकर्षति करने के उदेश्य से भी किसी देश द्वारा विभिन योजनाओ बनाई जा सकती है अधिक पर्यटकों के आगमन से विदेशी मुद्रा की मात्रा में वर्धि होती है | विदेशी विनिमय कोषों में वर्धि होने से भुगतान सन्तुलन की प्रतिकुलता को कम किया जा सकता है |




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